UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 6 महामना मालवीयः

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अवतरणों का सन्दर्भ अनुवाद

(1) महामनस्विनः ……………………………………… सम्मानभाजनमभवत् । [2017]
युवकः मालवीयः ………………………………………… सम्मानभाजनमभवत् ।। [2009]
महामनस्विनः ………………………………………………….. मनांसि अमोहयत् ।।
महामनस्विनः मदनमोहन………………………………………………………… कर्तुं प्रेरितवन्तः । । (2013)

[ महामनस्वी = बहुत बुद्धिमान्, दृढ़-निश्चयी। आरब्धवान् = आरम्भ किया। प्राविवाक = वकील। विधिपरीक्षा = कानून की परीक्षा।]

सन्दर्भ-यह गद्यखण्ड हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महामना मालवीयः’ नामक पाठ से उद्धृत है।
[ विशेष—इस पाठ के सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। ]
अनुवाद–महामना (महा बुद्धिमान्) मदनमोहन मालवीय का जन्म प्रयाग के प्रतिष्ठित (सम्मानित) परिवार में हुआ था। इनके पिता पण्डित ब्रजनाथ मालवीय संस्कृत के प्रतिष्ठित विद्वान् थे। इन्होंने प्रयाग में ही संस्कृत पाठशाला, राजकीय विद्यालय एवं म्योर सेण्ट्रल महाविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करके यहाँ ही राजकीय विद्यालय में पढ़ाना आरम्भ किया। युवक मालवीय अपने प्रभावपूर्ण भाषण से मनुष्यों का मन मोह लेते थे। इसलिए इनके मित्रों ने इन्हें वकील की पदवी प्राप्त करके देश की उच्चतर सेवा करने को प्रेरित किया। उसी । के अनुसार इन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करके प्रयाग में उच्च न्यायालय में वकालत आरम्भ कर दी। कानून के उत्कृष्ट ज्ञान, मधुर वार्तालाप एवं उदार व्यवहार से ये शीघ्र ही मित्रों एवं न्यायाधीशों के सम्मानपात्र बन गये।

(2) महापुरुषाः ……………………………………. नात्यजत् । [2012, 15, 18]
महापुरुषाः …………………………………………. अध्यक्षपदमलङ्कृतवान् । [2009, 12, 16]

[ नियतलक्ष्यान्न (नियतलक्ष्यात् + न) = निश्चित उद्देश्य से नहीं। नात्यजत् (न + अत्यजत्) = नहीं छोड़ा। ]
अनुवाद–महापुरुष सांसारिक प्रलोभनों में फंसकर (अपने) निश्चित लक्ष्य से कभी विचलित नहीं होते। देश-सेवा में अनुरक्त यह युवक उच्च न्यायालय की सीमाओं में (बँधकर) न रह सका। पण्डित मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपतराय जैसे अन्य राष्ट्रीय नेताओं के साथ वे भी देश के स्वतन्त्रता संग्राम में उतरे। दिल्ली में कांग्रेस के तेईसवें अधिवेशन के अध्यक्ष पद को इन्होंने सुशोभित किया। ‘रॉलेट ऐक्ट’ के विरोध में इनके ओजस्वी भाषण को सुनकर अंग्रेज शासक भयभीत हो उठे। बहुत बार जेल में डाले जाने पर भी इसे वीर ने देशसेवा का व्रत नहीं छोड़ा।

(3) हिन्दी-संस्कृताङ्ग्लभाषासु …………………………………………….. अभिधातुमारब्धवन्तः । [2017]
अस्य निर्माणाय ………………………………………………………………….. मालवीयः ।
हिन्दी-संस्कृताङ्ग्लभाषासु ……………………………………………… प्रतिमूर्तिरिव विभाति । [2014, 16]
शिक्षयैव देशे समाजे ………………………………………………… मनीषिमूर्धन्यः मालवीयः । [2013,18]

[अचायत = माँगा। अभिधातुम् = सम्बोधित कर।] । पछि ,
अनुवाद-इनका हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं पर समान अधिकार था। हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान की उन्नति के लिए ये निरन्तर प्रयत्न करते रहे। शिक्षा द्वारा ही देश और समाज में नवीन प्रकाश का उदय होता है, इसलिए श्री मालवीय ने वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसके निर्माण के लिए इन्होंने लोगों से धन माँगा और लोगों ने इस महान् ज्ञानयज्ञ में इन्हें प्रचुर धन दिया। इनके द्वारा बनवाया हुआ यह विशाल विश्वविद्यालय भारतीयों की दानशीलता और श्री मालवीय के यश की प्रतिमूर्ति की भाँति सुशोभित हो रहा है। साधारण स्थिति का मनुष्य भी महान् उत्साह, बुद्धिमत्ता एवं पुरुषार्थ से असाधारण कार्य करने में सक्षम होता है, यह बुद्धिमानों में श्रेष्ठ मालवीय जी ने दिखा दिया। इसी कारण लोगों ने इन्हें महामना की उपाधि से पुकारना आरम्भ कर दिया।

(4) महामना ……………………………………………… क्वचित् ।।
महामना …………………………………………. उपस्थित एव । [2011]
महामना ………………………………………………… एवासीत् । [2011, 15]
अद्यास्माकम् ……………………………………………………: क्वचित् ।।
जयन्ति ते ……………………………………………….. क्वचित् ।। [2010, 12, 14]

पटु = कुशल। पीयमानान् = पीड़ितों को। कीर्तितनोः = यशरूपी शरीर से।]
अनुवाद–महामना विद्वान् वक्ता (भाषणकर्ता), धार्मिक नेता एवं कुशल पत्रकार थे, किन्तु इनका सर्वोच्च गुण जनसेवा ही था। जहाँ कहीं भी ये लोगों को दु:खित और पीड़ित देखते थे, वहीं शीघ्र उपस्थित होकर सब प्रकार की सहायता करते थे। प्राणियों की सेवा इनका स्वभाव ही था। आज हमारे बीच विद्यमान न होने पर भी महामना मालवीय अमूर्तरूप से अपने यश का प्रकाश फैलाते हुए घोर अन्धकार में डूबे मनुष्यों को सन्मार्ग दिखाते हुए स्थान-स्थान पर प्रत्येक मनुष्य के अन्दर उपस्थित हैं।
जनसेवा में लगे महापुरुष की जय हो, जिनके यशरूपी शरीर को कहीं भी बुढ़ापे और मृत्यु का भय नहीं है।

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