UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 7 पञ्चशील-सिद्धान्ताः
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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 7 पञ्चशील-सिद्धान्ताः
अवतरणों का सन्दर्भ अनुवाद
(1) पञ्चशीलमिति …………………………………………………. गृहीतवन्तः ।
बौद्धयुगे इमे सिद्धान्ताः …………………………………………………… स्वरूपं गृहीतवन्तः । [2014, 16, 18]
बौद्धयुगे इमे सिद्धान्ताः ………………………………………………………… एवाभवत् ।
बौद्धयुगे: ……………………………………………………… निष्ठावन्तौ । [2010]
परमद्य इमे …………………………………………………. बौद्धधर्मे निष्ठावन्तौ ।
[ शास्ति स्म = उपदेश दिया था। अस्तेयम् = चोरी न करना। अप्रमादः = असावधान न होना।
गृहीतवन्तः = ग्रहण किया। ]
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यखण्ड हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘पञ्चशील-सिद्धान्ताः’ नामक पाठ से उधृत है।
अनुवाद-पंचशील शिष्टाचार-सम्बन्धी सिद्धान्त हैं। महात्मा गौतम बुद्ध ने इन पाँच सिद्धान्तों का पंचशील के नाम से अपने शिष्यों को उपदेश दिया था। इसलिए यह शब्द अब भी वैसा ही स्वीकृत है। ये सिद्धान्त क्रमश: इस प्रकार हैं–
- अहिंसा,
- सत्य,
- स्तेय (चोरी न करना),
- अप्रमाद (प्रमाद न करना) तथा
- ब्रह्मचर्य।
बौद्ध-युग में ये सिद्धान्त व्यक्तिगत जीवन की उन्नति के लिए प्रयुक्त थे, किन्तु आजकल ये सिद्धान्त राष्ट्रों की पारस्परिक मैत्री एवं सहयोग के आधार (तथा) विश्व-बन्धुत्व और विश्व-शान्ति के साधन हैं। राष्ट्रनायक श्री जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमन्त्रित्व-काल में चीन के साथ भारत की मैत्री पंचशील सिद्धान्तों के आधार पर ही हुई थी, क्योंकि दोनों ही देश बौद्ध धर्म में आस्था रखते थे। आधुनिक विश्व में पंचशील सिद्धान्तों ने नया राजनीतिक स्वरूप ग्रहण किया है।
(2) एवं च व्यवस्थिताः ……………………………………………..दृढीकुर्वन्ति ।
[ व्यवस्थिताः = निश्चित किये गये हैं। व्याघातं = बाधा, हस्तक्षेप। नाक्र्स्यते (न + आक्रुस्यते) =
आक्रमण नहीं करेगा।]
सन्दर्भ-पूर्ववत्।। अनुवाद-वे इस प्रकार निश्चित (किये गये) हैं-
- कोई राष्ट्र किसी भी अन्य राष्ट्र के आन्तरिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा।
- प्रत्येक राष्ट्र परस्पर प्रभुसत्ता और प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान करेगा।
- प्रत्येक राष्ट्र परस्पर समानता का व्यवहार करेगा।
- कोई भी राष्ट्र दूसरे (राष्ट्र) पर आक्रमण नहीं करेगा।
- सारे ही राष्ट्र परस्पर मिलकर अपनी-अपनी प्रभुसत्ता की शान्तिपूर्वक रक्षा करेंगे। विश्व में जो राष्ट्र शान्ति चाहते हैं, वे इन नियमों को स्वीकार कर दूसरे राष्ट्र के साथ अपने मैत्रीभाव को दृढ़ करते हैं।
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