UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 भारत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन एवं प्रसार (अनुभाग – एक)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 भारत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन एवं प्रसार (अनुभाग – एक)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में आने वाली यूरोपीय शक्तियों की व्यापारिक तथा राजनीतिक गतिविधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
          या
भारत में किन यूरोपीय देशों ने प्रभुत्व स्थापित किया ?
          या
भारत में पुर्तगाली शक्ति के उत्थान और पतन का विवरण दीजिए।
उत्तर :
भारत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन व्यापार के लिए हुआ था, किन्तु बाद में उन्होंने भारत में केन्द्रीय शक्ति के अभाव तथा इससे उपजी राजनीतिक अस्थिरता तथा दुर्बलता का लाभ उठाकर अपने उपनिवेश स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। इन देशों में पुर्तगाल, हॉलैण्ड, इंग्लैण्ड तथा फ्रांस सम्मिलित थे।

1. पुर्तगाल – सर्वप्रथम भारत में पुर्तगाली आये और उन्होंने गोआ, दमन व दीव, सूरत बेसिन, सालसेट बम्बई (मुम्बई) आदि स्थानों पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया। उन्होंने स्थानीय भारतीयों को ईसाई बनाने का बहुत प्रयत्न किया। वे भारतीयों के साथ व्यापारिक समझौतों का भी पालन नहीं करते थे। इसलिए उनकी सफलता अधिक समय तक टिकी नहीं रह सकी। पुर्तगाल के 1580 ई० में स्पेन के साथ विलय से उसका पृथक् अस्तित्व समाप्त हो गया। सन् 1588 ई० में स्पेन के जहाजी बेड़े आरमेडा को इंग्लैण्ड द्वारा पराजित कर दिये जाने के पश्चात् एशिया के व्यापार पर पुर्तगाल का अधिकार समाप्त हो गया और इंग्लैण्ड तथा हॉलैण्ड इस व्यापार पर अपना प्रभाव स्थापित कर सके। पुर्तगालियों का प्रभाव केवल पश्चिमी समुद्र तट तक ही सीमित रह गया।

2. हॉलैण्ड – सन् 1595 ई० में कार्नीलियस हाउटमैन नामक डच व्यापारी भारत पहुँचा तथा 1597 ई० में बहुत-सा माल लेकर ऐम्स्टर्डम (हॉलैण्ड) वापस लौटा। उसकी यात्री ने डचों के लिए भारत से व्यापार करने का मार्ग खोल दिया। सन् 1602 ई० में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई। डच कम्पनी का मुख्य उद्देश्य व्यापार करना था। इसलिए उन्होंने सबसे पहले मसालों के द्वीपों (जावा, सुमात्रा, बोर्नियो आदि) पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। फिर डचों ने भारत में अनेक स्थानों पर पुर्तगालियों को हराकर सूरत, चिनसुरा, कासिम बाजार, नेगापट्टम, कालीकट आदि स्थानों पर अपनी बस्तियाँ स्थापित कीं। अन्त में 1759 ई० में अंग्रेजों ने डचों को पराजित कर भारत में डच कम्पनी के प्रभाव का अन्त कर दिया।

3. इंग्लैण्ड – लन्दन के कुछ व्यापारियों की एक कम्पनी को 31 दिसम्बर, 1600 ई० को पूर्वी देशों से व्यापार करने का एकाधिकार (चार्टर) प्रदान किया गया। यही कम्पनी आगे चलकर ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नाम से प्रसिद्ध हुई। सन् 1690 ई० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने तीन हजार रुपये वार्षिक कर देकर बंगाल में व्यापार करना स्वीकार किया। सन् 1715 ई० में कम्पनी के एक शिष्टमण्डल ने जॉन सरमन की अध्यक्षता में मुगल सम्राट से भेंट की और उससे व्यापारिक सुविधाओं के लिए एक शाही फरमान (आदेश) प्राप्त किया। इस फरमान के फलस्वरूप अंग्रेजों को बंगाल में व्यापारिक करों तथा चुंगी की छूट मिल गयी। सन् 1717 ई० में अंग्रेजों ने इस छूट का लाभ निजी व्यापार के लिए उठाना शुरू कर दिया। यही 1757 ई० में अंग्रेजों तथा बंगाल के नवाब के झगड़े का भी प्रमुख कारण बना।

4. फ्रांस – फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1664 ई० में स्थापित हुई। इस कम्पनी ने भारत में सूरत (1668 ई०) और पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) में 1669 ई० में अपनी बस्तियाँ स्थापित कीं। बंगाल में चन्द्रनगर (1690-92 ई०) नामक स्थान पर फ्रांसीसियों ने अपना व्यापारिक केन्द्र स्थापित किया। बाद में माही (1725 ई०) तथा कराईकल पर फ्रांसीसियों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। भारत में राजनीतिक सत्ता की स्थापना में मुख्य संघर्ष अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच हुआ। इस संघर्ष की मुख्य कड़ी कर्नाटक के युद्ध थे। इन युद्धों में अन्तिम विजय अंग्रेजों को मिली और भारत में फ्रांसीसी शक्ति का सूर्यास्त हो गया।

प्रश्न 2.
भारत में राजनीतिक सत्ता की स्थापना हेतु अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच संघर्ष का वर्णन कीजिए तथा इसके परिणाम लिखिए।
          या
कर्नाटक युद्धों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। इनके क्या परिणाम हुए ?
उत्तर :
अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य भारत में राजनीतिक सत्ता की स्थापना के लिए मुख्यतः कर्नाटक में युद्ध हुए। इन युद्धों को ‘कर्नाटक युद्धों के नाम से जाना जाता है। सन् 1742 ई० में कर्नाटक के नवाब सफदर अली के चचेरे भाई मुर्तजा अली ने उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचकर उसकी हत्या कर दी और गद्दी पर कब्जा कर लिया। लेकिन अर्कोट की जनता ने मुर्तजा अली का स्वागत नहीं किया और विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया तथा सफदर अली के एक नाबालिग पुत्र सैयद मुहम्मद को कर्नाटक की गद्दी पर बैठा : दिया। जब किसी ने उस नाबालिग की भी हत्या कर दी तो निजाम ने अनवरुद्दीन को कर्नाटक का नवाब घोषित कर दिया। इसी भूमिका में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य संघर्ष आरम्भ हो गया। इन दोनों में तीन युद्ध हुए।

कर्नाटक का प्रथम युद्ध (सन् 1744-48 ई०)

कर्नाटक के प्रथम युद्ध में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा की प्रमुख भूमिका थी। इस युद्ध का दूसरा मुख्य कारण 1740 ई० में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार के प्रश्न पर इंग्लैण्ड तथा फ्रांस का परस्पर संघर्षरत होना था। यूरोप में ऑस्ट्रिया के युद्ध के साथ-साथ भारत में भी इन दोनों शक्तियों के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया। युद्ध के प्रारम्भ में फ्रांसीसियों ने अंग्रेजी बेड़े को पराजित किया, फिर मद्रास (चेन्नई) पर घेरा डाल दिया तथा कर्नाटक के नवाब को मद्रास देने का वादा करके अपनी ओर मिला लिया। सन् 1746 ई० में फ्रांस ने मद्रास पर अधिकार कर लिया, किन्तु सन्धि के अनुसार नवाब को मद्रास देने से इन्कार कर दिया। इस पर नवाब और डूप्ले (फ्रांसीसियों) में संघर्ष छिड़ गया। सेण्ट थॉमस (अड्यार) नामक स्थान पर भारतीय सेना पराजित हो गयी। इसके बाद डूप्ले ने फोर्ट सेण्ट डेविड किले पर आक्रमण किया, किन्तु अंग्रेज अफसर लॉरेन्स की रणकुशलता के कारण वह सफल न हो सका। इसके प्रत्युत्तर में अंग्रेजों ने पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) जीतने का असफल प्रयास किया। सन् 1748 ई० में यूरोप में फ्रांस और इंग्लैण्ड में सन्धि होने के साथ भारत में भी दोनों के मध्य युद्ध बन्द हो गया। फ्रांस ने मद्रास (चेन्नई) अंग्रेजों को वापस लौटा दिया। प्रथम कर्नाटक युद्ध से भारत में फ्रांसीसियों की धाक जम गयी। डूप्ले अब खुलकर भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करने लगा।

कर्नाटक का द्वितीय युद्ध (सन् 1749-54 ई०)

अंग्रेज और फ्रांसीसी एक-दूसरे की शक्ति को नष्ट करना चाहते थे। सन् 1748 ई० में हैदराबाद के निजाम आसफशाह की मृत्यु होने पर उसके पुत्र मुजफ्फरजंग और दूसरे पुत्र नासिरजंग के मध्य उत्तराधिकार का युद्ध आरम्भ हो गया। इसी समय कर्नाटक में भी नवाब अनवरुद्दीन तथा भूतपूर्व नवाब दोस्त अली के दामाद चाँदा साहब के मध्य संघर्ष आरम्भ हो गया। तंजौर में राजा प्रतापसिंह से फ्रांसीसी गवर्नर ड्यूमा ने कराईकल की बस्ती प्राप्त की थी, जिससे अंग्रेज बहुत रुष्ट थे। अत: उन्होंने प्रतापसिंह के स्थान पर शाहजी को सहायता देकर उसे तंजौर की गद्दी पर बिठा दिया। बाद में धन के लालच में दूसरे पक्ष का समर्थन भी किया। डूप्ले, मुजफ्फरजंग और चाँदा साहब तीनों ने मिलकर कर्नाटक पर आक्रमण किया, जिसमें नवाब मारा गया। चाँदा साहब को कर्नाटक का नवाब बनाया गया। चाँदा साहब ने डूप्ले को पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) के निकट 80 गाँव जागीर में दिये।

हैदराबाद पर आक्रमण करके डूप्ले ने नासिरजंग को परास्त किया और उसके प्रथम पुत्र मुजफ्फरजंग को नवाब बनाया। मुजफ्फरजंग ने भी डूप्ले को एक जागीर प्रदान की। सन् 1751 ई० में अंग्रेजों ने मृतक निजाम असफशाह के तृतीय पुत्र सलावतजंग को गद्दी पर बैठा दिया।

चाँदा साहब ने फ्रांसीसी सेनाओं की सहायता से त्रिचनापल्ली पर घेरा डाल दिया, जहाँ कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन का पौत्र मुहम्मद अली छिपा था। इस पर अंग्रेज सेनापति क्लाइव ने चाँदा साहब की राजधानी अर्काट पर अधिकार कर लिया और उसके बाद क्लाइव ने त्रिचनापल्ली पर आक्रमण कर दिया। इस भीषण युद्ध में चाँदा साहब की मृत्यु हो गयी। क्लाइव ने मुहम्मद अली को कर्नाटक का नवाब बना दिया। जनवरी, 1755 ई० में दोनों पक्षों में युद्ध विराम हो गया। पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) की सन्धि के अनुसार दोनों पक्षों (फ्रांस तथा इंग्लैण्ड) ने देशी राजाओं के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का निर्णय लिया और मुगल सम्राट द्वारा प्रदत्त अधिकारों को त्याग दिया। मद्रास (चेन्नई), फोर्ट सेण्ट डेविड तथा देवी कोटा पर अंग्रेजों का अधिकार मान लिया गया।

कर्नाटक का तृतीय युद्ध (सन् 1756-63 ई०)

सन् 1754 ई० में डूप्ले के वापस लौटने के बाद फ्रांसीसी कम्पनी की आर्थिक दशा शोचनीय होती चली गयी। सन् 1756 ई० में यूरोप में फ्रांस तथा इंग्लैण्ड के बीच सप्तवर्षीय युद्ध आरम्भ हो गया। अत: भारत में भी दोनों पक्ष युद्ध की तैयारियों में लग गये।

अप्रैल, 1758 ई० में फ्रांसीसी सरकार ने काउण्ट डी-लैली को गवर्नर तथा प्रधान सेनापति बनाकर भारत भेजा। उसने मद्रास (चेन्नई) पर घेरा डाल दिया। सन् 1760 ई० में लैली ने अंग्रेजों के सेण्ट डेविड फोर्ट पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया। किन्तु 1760 ई० में वाण्डेवाश के युद्ध में अंग्रेज सेनापति आयरकूट ने फ्रांसीसी सेना को परास्त कर दिया। इसके बाद अंग्रेजों ने कराईकल पर अधिकार कर लिया और 1761 ई० में पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) पर घेरा डाल दिया। आंशिक युद्ध के बाद लैली ने आत्मसमर्पण कर दिया और पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। सन् 1763 ई० की पेरिस सन्धि के साथ ही कर्नाटक के तीसरे युद्ध का अन्त हो गया। पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी), माही तथा चन्द्रनगर के बन्दरगाह फ्रांस को लौटा दिये गये। हैदराबाद का निजाम और कर्नाटक का नवाब अंग्रेजों के प्रभाव में आ गये तथा सम्पूर्ण दक्षिण भारत पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

प्रश्न 3
भारत में अंग्रेजों की सफलता और फ्रांसीसियों की असफलताओं के कारणों का वर्णन कीजिए। [2011]
उत्तर :
अंग्रेजों के विरुद्ध फ्रांसीसियों की पराजय के निम्नलिखित कारण थे

1. व्यापार की शोचनीय दशा – फ्रांसीसी व्यापार की थति अंग्रेजी व्यापार की तुलना में बहुत शोचनीय थी। अंग्रेजों का अकेले बम्बई (मुम्बई) में ही इतना विस्तृत व्यापार था कि कई फ्रांसीसी बस्तियों का व्यापार मिलकर भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता था। अंग्रेज व्यापारियों ने कभी भी व्यापार की उपेक्षा नहीं की, क्योंकि वे सोचते थे कि इसी के माध्यम से भारत में धीरे-धीरे पैर जमाना सम्भव है। इसलिए अंग्रेजों की आर्थिक स्थिति बहुत सुदृढ़ थी।

2. दुर्बल सामुद्रिक शक्ति – इंग्लैण्ड विश्व में सामुद्रिक शक्ति के मामले में अजेय था, जबकि फ्रांसीसियों ने सामुद्रिक शक्ति को विशेष महत्त्व नहीं दिया। इस कारण भी फ्रांसीसियों की पराजय हुई। फ्रांसीसी इतिहासकार मार्टिन ने लिखा है, “नौशक्ति की दुर्बलता ही वह प्रधान कारण थी, जिसने डूप्ले की सफलता का विरोध किया।” इसके विपरीत, अंग्रेजों की सामुद्रिक स्थिति इतनी सुदृढ़ थी कि वे आवश्यकतानुसार कर्नाटक में यूरोप से अंग्रेजी सेनाएँ तथा बंगाल से रसद आदि भेज सकते थे। लेकिन फ्रांसीसियों को ऐसी सुविधा प्राप्त न थी।

3. फ्रांसीसी कम्पनी पर सरकारी नियन्त्रण – अंग्रेजी कम्पनी एक व्यक्तिगत कम्पनी थी और उसकी आर्थिक स्थिति बहुत सुदृढ़ थी, जबकि फ्रांसीसी कम्पनी एक सरकारी कम्पनी थी। इस कारण अपनी सहायता के लिए फ्रांसीसी सरकार पर आश्रित रहना पड़ता था और फ्रांसीसी सरकार समय पर आर्थिक सहायता नहीं दे पाती थी।

4. फ्रांसीसियों में एकता का अभाव – ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भारतीय उच्चाधिकारी उच्चकोटि के राजनीतिज्ञ और कुशल प्रशासक थे। फ्रांसीसी कम्पनी के डूप्ले, बुसी, लैली आदि में यद्यपि अनेक गुण थे फिर भी वे अंग्रेजों के समकक्ष कुशल राजनीतिज्ञ न थे। उनमें अंग्रेज राजनीतिज्ञों क्लाइव और लॉरेंस जैसे कुशल संगठनकर्ताओं के समान कार्यक्षमता न थी। इन अधिकारियों में आपस में एकता की भावना भी नहीं थी। इस प्रकार, एकता और संगठन के अभाव के कारण फ्रांसीसियों को असफलता ही प्राप्त हुई।

5. योग्य सेनापतियों का अभाव – फ्रांसीसी सेना में योग्य सेनापतियों का अभाव था। फ्रांसीसी सेनापति अयोग्य और रण-विद्या में अकुशल थे। इन्हें फ्रांस के मान-सम्मान की कोई चिन्ता नहीं रहती थी। इसके अतिरिक्त, अस्त्र-शस्त्रों का भी फ्रांसीसियों के पास सदैव अभाव बना रहता था।

6. डूप्ले द्वारा अपनी असफलताओं को छिपाना – डूप्ले भारत में व्यापार की उन्नति का उद्देश्य लेकर आया था। यहाँ आकर उसने फ्रांसीसी साम्राज्य की स्थापना का विचार बना लिया, लेकिन इसे विचार से उसने फ्रांसीसी सरकार और उच्च अधिकारियों को अवगत नहीं कराया। यहाँ तक कि जब उसे अपने सीमित साधनों के कारण सफलता प्राप्त नहीं हुई तब उसने सरकार को सूचना नहीं दी। वास्तव में, यह डूप्ले की भयंकर भूल थी जिसके कारण फ्रांसीसियों की असफलता निश्चित हो गई।

7. डूप्ले की फ्रांस वापसी – यह फ्रांसीसी सरकार का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि उसने डूप्ले के विचारों को जानने या सम्मान देने की आवश्यकता अनुभव नहीं की और उसे ऐसे समय में फ्रांस बुला लिया, जबकि भारत में उसकी अत्यन्त आवश्यकता थी। यदि वह कुछ समय तक रहता और फ्रांसीसी : सरकार से उसे पर्याप्त सहायता मिलती तो वह भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य की सत्ता स्थापित करने में सफल हो सकता था।

8. भारतीय नरेशों की मित्रता से हानि – डुप्ले को चाँदा साहब की मित्रता से कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ। चाँदा साहब ने उसकी इच्छा के अनुसार समयानुकूल त्रिचनापल्ली पर चढ़ाई नहीं की और तंजौर की धनराशि प्राप्त करने के लिए ही संघर्ष करता रहा। परिणामस्वरूप त्रिचनापल्ली पर शीघ्र विजय प्राप्त नहीं की जा सकी। इसके पश्चात् जब चाँदा साहब ने त्रिचनापल्ली पर घेरा डाला, तो भी उसने डूप्ले की इच्छा के विरुद्ध आधी सेना अर्काट भेज दी और अन्ततः उसका कोई भी सन्तोषजनक फल नहीं मिला। इसके अतिरिक्त, उसका मित्र हैदराबाद का वीर सूबेदार मुजफ्फरजंग भी संघर्ष में मारा गया।

9. अंग्रेजों द्वारा बंगाल की विजय – कर्नाटक के तृतीय युद्ध तक अंग्रेज बंगाल पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर चुके थे और बंगाल का धन, सम्पत्ति आदि सब उनके अधिकार में आ गए थे। बंगाल से प्राप्त सुविधाओं से ही मद्रास (चेन्नई) का अंग्रेज गवर्नर तीन वर्षों तक फ्रांसीसियों से सफलतापूर्वक युद्ध करता रहा था। अन्तत: फ्रांसीसियों के साधन समाप्त हो गए और पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) का पतन हो गया, जिसमें फ्रांसीसियों को अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता मिलनी बन्द हो गई। 1757 ई० में प्लासी के निर्णायक युद्ध में विजय प्राप्त हो जाने के बाद अंग्रेजों की स्थिति अत्यधिक सुदृढ़ हो गई थी।

10. फ्रांसीसियों की अपेक्षा अंग्रेजों को अधिक समृद्ध क्षेत्रों की प्राप्ति – डूप्ले को अपनी सफलताओं के फलस्वरूप कर्नाटक और पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) जैसे निर्धन प्रान्त मिले थे। इसके विपरीत, अंग्रेजों को बंगाल जैसा समृद्धशाली प्रदेश मिला, जिससे अंग्रेजों की स्थिति दिन दूनी-रात चौगुनी गति से सुदृढ़ होती चली गई।

11. लैली का असहयोगात्मक एवं घमंडी स्वभाव – फ्रांसीसियों की पराजय के लिए फ्रांसीसी सेनापति लैली भी कम उत्तरदायी नहीं था। वह घमण्डी, जल्दबाज तथा क्रोधी स्वभाव का था। फलस्वरूप उसे अन्य कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त न हो सका और भारत में फ्रांसीसी सत्ता की सम्भावना समाप्त हो गई।

इन्हीं कारणों से अंग्रेजों के समक्ष फ्रांसीसियों की पराजय हुई। भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने के अभियान में फ्रांसीसी पराजित हो गए और अंग्रेज विजयी हुए। इस प्रकार, डूप्ले की सम्पूर्ण योजनाओं पर पानी फिर गया, तथापि अनेक कारणों से उसका नाम इतिहास में अमर रहेगा।

अल्फ्रेड लॉयल के शब्दों में, “अठारहवीं शताब्दी में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के बीच समुद्र पार के साम्राज्य के लिए किए गए लम्बे तथा कठिन संघर्ष के संक्षिप्त घटना-चक्र में सबसे अधिक चमत्कारी
व्यक्ति डूप्ले ही था।”

प्रश्न 4.
प्लासी तथा बक्सर के युद्धों ने किस प्रकार भारत में ब्रिटिश शासन की नींव डाली ? [2013]
          या
“बक्सर के युद्ध ने ब्रिटिश कम्पनी को प्रभुतासम्पन्न बना दिया।” संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अठारहवीं सदी के आते-आते कम्पनी और बंगाल के नवाबों के बीच टकराव बढ़ने लगे। औरंगजेब की मृत्यु के बाद तत्कालीन क्षेत्रीय रियासतें शक्तिशाली होने लगीं। मुर्शीद कुली खाँ, अलीवर्दी खाँ तथा सिराजुद्दौला जैसे बंगाल के नवाबों ने कम्पनी को रियायतें देने से साफ मना कर दिया। साथ ही अंग्रेजों को किलेबन्दी बढ़ाने से रोक दिया। धीरे-धीरे ये टकराव गम्भीर होते गये और इनकी परिणति प्लासी के युद्ध के रूप में हुई।

प्लासी को युद्ध–सन् 1756 ई० में सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। परन्तु कम्पनी उसकी शक्ति को देखते हुए किसी अन्य को नवाब बनाना चाहती थी जो उन्हें व्यापारिक सुविधाएँ तथा अन्य रियायतें आसानी से दे सके। परन्तु वे कामयाब न हो सके। सिराजुद्दौला ने कम्पनी को किलेबन्दी रोकने तथा बकाया राजस्व चुकाने का आदेश दिया। कम्पनी के ऐसा न करने पर नवाब ने कलकत्ता (कोलकाता) स्थित कम्पनी के किले पर कब्जा कर लिया।

कलकत्ता (कोलकाता) की खबर सुनकर कम्पनी के अफसरों ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में सेनाओं को रवाना कर दिया। आखिरकार सन् 1757 ई० में प्लासी के मैदान में रॉबर्ट क्लाइव तथा सिराजुद्दौला अपनी-अपनी सेनाओं के साथ आमने-सामने थे।

सिराजुद्दौला को हार का सामना करना पड़ा, जिसका एक बड़ा कारण उसके सेनापति मीरजाफर का षड्यन्त्र था।।

प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की जीत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी। क्योंकि भारत में यह कम्पनी की पहली बड़ी जीत थी। इस युद्ध के बाद मीरजाफर को बंगाल की कठपुतली नवाब बनाया गया। इस युद्ध ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन को भारत में स्थिरता प्रदान करते हुए ब्रिटिश उपनिवेशवाद का बीजारोपण किया।

बक्सर का युद्ध – ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को यह एहसास हो गया कि कठपुतली नवाब हमेशा उनका साथ देने वाला नहीं है। अत: जब मीरजाफर कम्पनी का विरोध करने लगा तो उसे हटाकर मीरकासिम को नवाब बना दिया गया। परन्तु जब मीरकासिम भी देशहित में स्वतन्त्र निर्णय लेने लगा और अंग्रेजों के हित प्रभावित होने लगे तो अंग्रेजों को 1764 ई० में एक दूसरा युद्ध करना पड़ा जिसे ‘बक्सर का युद्ध’ कहा जाता है। इस युद्ध में एक ओर अंग्रेजों की सेना तथा दूसरी ओर बंगाल के पूर्व नवाब मीरकासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाहआलम की संयुक्त सेनाएँ थी। इस युद्ध में भी अन्तत: ‘हेक्टर मुनरो’ के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना विजयी हुई। इस युद्ध ने न केवल प्लास के अपूर्ण कार्य को पूरा किया बल्कि उसने ब्रिटिश कम्पनी को एक पूर्ण प्रभुतासम्पन्न बना दिया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में डच व्यापारी एकाधिकार स्थापित करने में क्यों असफल रहे ?
उत्तर :
सन् 1595 ई० में डच व्यापारी हाउटमैन ने भारत में प्रवेश किया और दो वर्षों बाद वह बहुत-सा माल लेकर हॉलैण्ड वापस पहुँचा। उसकी यात्रा ने डचों के लिए भारत से व्यापार करने का मार्ग खोल दिया। सन् 1602 ई० में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य व्यापार करना था। इस कम्पनी ने पहले मसाले के द्वीपों पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया, फिर भारत में पुर्तगालियों को हराकर सूरत, चिनसुरा, कासिम बाजार, नेगापट्टम, कालीकट आदि स्थानों पर अपनी बस्तियाँ स्थापित कीं। अन्त में 1759 ई० में अंग्रेजों ने डचों को पराजित कर भारत में डच शासन का अन्त कर दिया। डच लोग भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित न कर सके, क्योंकि अंग्रेज या फ्रेंच कम्पनी की भाँति उनके पास कोई सेना या यूरोप की डचे सरकार का समर्थन न था।

प्रश्न 2.
डूप्ले की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
डूप्ले एक महत्त्वाकांक्षी, योग्य तथा कूटनीतिक व्यक्ति था, जिसे फ्रांसीसी सरकार ने भारत में पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) का गवर्नर नियुक्त किया था। उसने स्थानीय भारतीय सैनिकों को अपनी सेना में नियुक्त करके उन्हें आधुनिक युद्ध रणनीति एवं प्रणाली में प्रशिक्षण देना आरम्भ कर दिया। इस सेना की सहायता से डूप्ले ने अपने चिर प्रतिद्वन्द्वी इंग्लैण्ड तथा स्थानीय शासकों के विरुद्ध संघर्ष किये। किन्तु फ्रांसीसी कम्पनी की आर्थिक दशा अच्छी न होने के कारण डुप्ले ने मॉरीशस के फ्रेंच गवर्नर से सहायता प्राप्त करके मद्रास (चेन्नई) पर घेरा डाल दिया तथा प्रथम कर्नाटक युद्ध के दौरान 1746 ई० में मद्रास पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों ने जब पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) पर कब्जा करने का प्रयत्न किया तो डूप्ले ने सफलतापूर्वक इसकी रक्षा की।

द्वितीय कर्नाटक युद्ध के दौरान डूप्ले ने हैदराबाद के निजाम की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के युद्ध में मुजफ्फरजंग का साथ दिया, फिर चॉदा साहब से मिलकर 1749 ई० में अनवरुद्दीन को हराकर चाँदा साहब को कर्नाटक का नवाब बनाया, जिसने फ्रांसीसियों को पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) के निकट 80 गाँव जागीर के रूप में उपहारस्वरूप प्रदान किये। उधर, मुजफ्फरजंग (हैदराबाद के निजाम) ने भी फ्रांसीसियों को पर्याप्त उपहार दिये। डूप्ले की सफल कूटनीति के कारण ही दक्षिण भारत में फ्रांसीसियों के पैर जम सके, किन्तु जब फ्रांसीसी शक्ति भारत में अपने शिखर पर थी, तभी डूप्ले को यूरोप वापस बुला लिया गया।

प्रश्न 3.
क्लाइवे पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
रॉबर्ट क्लाइव अंग्रेजी सेना में एक मामूली सैनिक था। अपनी योग्यता के बल पर वह अंग्रेजी सेना का सेनापति बन गया। वह एक सफल कूटनीतिज्ञ भी था। कर्नाटक के तीनों युद्धों में उसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी तथा अंग्रेजों को विजय दिलाकर फ्रांसीसियों के प्रभाव को क्षीण कर दिया। इससे समस्त दक्षिण भारत पर अंग्रेजों का प्रभुत्व कायम हो गया। सन् 1757 ई० में प्लासी के युद्ध में विजय प्राप्त करके बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली। बक्सर के युद्ध (1764 ई०) के बाद बंगाल में अंग्रेजों की राजनीतिक सत्ता स्थापित करने में भी क्लाइव का ही हाथ था।

प्रश्न 4.
यूरोपीय कम्पनियों के भारत आने के क्या कारण थे ?
उत्तर :
भारत की समृद्धि की चर्चाओं से प्रेरित होकर व्यापार के उद्देश्य से अनेक यूरोपीय व्यापारी पन्द्रहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के मध्य भारत आये। उनके भारत आगमन का देश के भावी इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनमें पुर्तगाली, अंग्रेज, डच, डेनिश एवं फ्रांसीसी जातियाँ मुख्य थीं। इनके भारत-आगमन के मुख्य कारण निम्नवत् थे –

  1. भारत आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न देश था। यहाँ की आर्थिक सम्पन्नता ने यूरोपीय व्यापारियों को आकर्षित किया।
  2. यूरोपीय बाजार में भारतीय मसालों की प्रचुर मात्रा में माँग थी। यहाँ के मसाले यूरोप में अधिकाधिक मात्रा में बिकते थे।
  3. वेनिस और जेनेवा के व्यापारियों ने यूरोप व एशिया के व्यापार पर अपना अधिकार कर लिया था। वे स्पेन व पुर्तगाली व्यापारियों को हिस्सा देने के लिए तैयार न थे।
  4. वास्कोडिगामा द्वारा भारत आने का सुगम जलमार्ग खोज लेना यूरोपीय व्यापारियों के लिए लाभकर रहा।
  5. भारत में निर्मित मिट्टी के बर्तनों की यूरोपीय देशों में व्यापक माँग थी। 6. भारत में कुटीर उद्योग एवं कच्चे माल की अत्यधिक सम्भावना व्याप्त थी।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों एवं बंगाल के नवाब के बीच टकराव के क्या कारण थे ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच टकराव के निम्नलिखित कारण थे –

  1. बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला एक शक्तिशाली शासक था। उसकी शक्ति से अंग्रेज घबरा रहे थे और वह सिराजुद्दौला के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को बंगाल का नवाब बनाना चाहते थे।
  2. अंग्रेजों को नवाब सिराजुद्दौला से भरपूर व्यापारिक सुविधाएँ नहीं मिल पा रही थीं, क्योंकि नवाब अंग्रेजों को किसी प्रकार की रियायत देने के पक्ष में नहीं था। इसलिए अंग्रेज एक ऐसे व्यक्ति को बंगाल का नवाब बनाना चाहते थे जो उन्हें अधिक-से-अधिक व्यापारिक सुविधाएँ एवं रियायतें दे सके।
  3. सिराजुद्दौला ने कम्पनी को किलेबन्दी रोकने तथा बकाया राजस्व चुकाने का आदेश दिया। कम्पनी के ऐसा न करने पर नवाब ने कलकत्ता (कोलकाता) स्थित कम्पनी के किले पर कब्जा कर लिया।

प्रश्न 6. 
प्लासी के युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर :

प्लासी के युद्ध के कारण

अलीवर्दी खाँ द्वारा मृत्यु शय्या पर दी गई चेतावनी को सिराजुद्दौला भूला नहीं था। यद्यपि इस समय बंगाल में व्यापार करने वाली यूरोपियन शक्तियों-फ्रांसीसी, डच तथा अंग्रेज-में सिराजुद्दौला के सबसे अधिक अच्छे सम्बन्ध अंग्रेजों के साथ ही थे।

1. अंग्रेजों का षड्यन्त्र – बंगाल में अंग्रेजों की बढ़ती हुई शक्ति से नवाब सशंकित हो उठा था। उसके राज्याभिषेक के समय अंग्रेजी कम्पनी की उदासीनता से नवाब अत्यन्त क्रुद्ध था। नवाब की प्रजा होने के नाते ब्रिटिश कम्पनी को नवाब के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना आवश्यक था किन्तु अंग्रेजों ने उसके राज्याभिषेक के समय कोई भेट आदि नहीं भेजी थी। यही नहीं, अंग्रेजों से सिराजुद्दौला से व्यक्तिगत ईष्र्या रखने वाले सम्बन्धियों और अधिकारियों का साथ देना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने हिन्दुओं के साथ मिलकर मुस्लिम शासन के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना आरम्भ कर दिया था तथा कलकत्ता (कोलकाता) नवाब के शत्रुओं का शरण-स्थल बन गया था।

2. व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग – नवाब द्वारा दी गई व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग करना अंग्रेजों ने आरम्भ कर दिया था। फर्रुखसियर ने कम्पनी को बिना चुंगी के व्यापार करने की सुविधा दी थी परन्तु कम्पनी के कर्मचारी इसका अपने व्यक्तिगत व्यापार के लिए भी लाभ उठाने लगे। दस्तक-प्रथा के दुरुपयोग के कारण बंगाल के नवाब को आर्थिक क्षति पहुँची।

3. किलेबन्दी का प्रश्न – नवाब और अंग्रेजों के मध्य वैमनस्य का सबसे प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा अपनी बस्तियों की किलेबन्दी करना था। नवाब ने अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों को उनके द्वारा की जा रही किलेबन्दी को रोकने की आज्ञा दी, परन्तु अंग्रेजों ने आज्ञा का पालन नहीं किया।

सारांश यह है कि अंग्रेज केवल दस्तकों के सम्बन्ध में अपने अधिकारों का ही दुरुपयोग नहीं कर रहे थे अपितु अनधिकार वे अपने यूरोपियन प्रतिद्वन्द्वियों से भय के बहाने अपनी बस्तियों की किलेबन्दी भी कर रहे थे। इसके परिणामस्वरूप नवाब को अंग्रेजों को दंड देने के लिए बाध्य होना पड़ा। वास्तव में यदि देखा जाए तो अंग्रेज अपराधी थे तथा उन्होंने नवाब की आज्ञा का उल्लंघन किया था। बंगाल में भी अंग्रेज दक्षिण भारत (कर्नाटक) के समान ही कुचक्र रच रहे थे। अलीवर्दी खाँ का संशय ठीक था। यही संशय सिराजुद्दौला के काल में प्लासी के युद्ध के रूप में प्रकट हुआ।

प्रश्न 7.
इलाहाबाद की सन्धि का भारतीय इतिहास में क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
अंग्रेजों ने बक्सर के युद्ध में विजय के बाद नाममात्र के मुगल सम्राट शाहआलम के साथ 1765 ई० में सन्धि कर ली, जो इलाहाबाद की सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है। इस सन्धि के अनुसार मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय ने शाही फरमान द्वारा अंग्रेज कम्पनीको बंगाल, बिहार और उड़ीसा (ओडिशा) की दीवानी प्रदान कर दी। साथ-साथ अंग्रेजों ने सम्राट को र 26 लाख की वार्षिक पेंशन बाँध दी। दीवानी के अधिकार के बदले कम्पनी ने कड़ा और इलाहाबाद के किले अवध के नवाब से लेकर शाहआलम को दे दिये। नवाब ने कम्पनी को १ 50 लाख युद्ध का हर्जाना दिया। क्लाइव और अवध के नवाब के बीच यह भी समझौता हुआ कि दोनों भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर मराठों के आक्रमणों के समय एक-दूसरे की सहायता करेंगे।

अतः स्पष्ट है कि दोनों युद्धों के पश्चात् जो लाभ अंग्रेजों को हुआ उसकी पुष्टि इलाहाबाद की सन्धि (1765) के द्वारा हो गयी। .

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
भारत में सर्वप्रथम किस यूरोपियन जाति ने प्रवेश किया ?
उत्तर :
भारत में सर्वप्रथम पुर्तगालियों ने प्रवेश किया।

प्रश्न 2. 
भारत के दो पुर्तगाली गवर्नरों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत के दो पुर्तगाली गवर्नर थे –

  1. डी-अल्मोडा तथा
  2. अल्बुकर्क।

प्रश्न 3. 
डूप्ले कौन था ?
उत्तर :
डूप्ले पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) का गवर्नर था, जिसने कर्नाटक के प्रथम तथा द्वितीय युद्ध में फ्रांसीसी सेनाओं का नेतृत्व किया था।

प्रश्न 4. 
लाइव की दो उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
क्लाइव की दो उपलब्धियाँ थीं

  1. तृतीय कर्नाटक युद्ध में फ्रांसीसियों के विरुद्ध विजय।
  2. प्लासी-युद्ध में विजय के साथ. बंगाल में अंग्रेजों की सत्ता की नींव डालना।

प्रश्न 5. 
कर्नाटक में कितने युद्ध हुए ?
उत्तर :
कर्नाटक में तीन युद्ध हुए।

प्रश्न 6. 
कर्नाटक का दूसरा युद्ध किनके बीच हुआ था ? [2011]
उत्तर :
कर्नाटक का दूसरा युद्ध मुजफ्फरजंग तथा नासिरजंग के बीच हुआ था।

प्रश्न 7. 
कर्नाटक युद्धों में अंग्रेजों की विजय के दो कारण लिखिए।
उत्तर :
कर्नाटक युद्धों में अंग्रेजों की विजय के दो कारण निम्नवत् थे –

  1. अंग्रेजों को अपनी सरकार को पूर्ण सहयोग तथा समर्थन प्राप्त था।
  2. अंग्रेजों के पास लॉरेन्स, क्लाइव, आयरकूट आदि योग्य तथा कूटनीतिज्ञ सेनापति थे।

प्रश्न 8. 
भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कब हुई ? [2010]
उत्तर :
भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना सन् 1600 ई० में हुई।

प्रश्न 9. 
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को पूरब के देशों में व्यापार करने के लिए आदेश कब मिला ?
उत्तर :
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को पूरब के देशों में व्यापार करने का आदेश 31 दिसम्बर, 1600 ई० को मिला।

प्रश्न 10. 
अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के बीच लड़े गये युद्धों को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर :
अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य लड़े गये युद्धों को ‘कर्नाटक युद्ध’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 11. 
प्लासी का युद्ध कब और किस-किस के बीच हुआ ? (2018)
उत्तर :
प्लासी का युद्ध अंग्रेजों तथा बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच सन् 1757 ई० में लड़ा गया।

प्रश्न 12. 
बक्सर का युद्ध कब और किस-किस के बीच हुआ ?
उत्तर :
बक्सर का युद्ध अंग्रेजों तथा बंगाल के पूर्व नवाब मीरकासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाहआलम की संयुक्त सेनाओं के मध्य हुआ था।

बहुविकल्पीय प्रशन

1. डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कब हुई थी?

(क) 1595 ई० में
(ख) 1597 ई० में
(ग) 1602 ई० में
(घ) 1615 ई० में

2. भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कौन था ? [2012]

(क) अल्बुकर्क
(ख) अल्मोडा
(ग) कोलम्बस
(घ) वास्कोडिगामा

3. बंगाल में फ्रांसीसियों ने सर्वप्रथम किस स्थान पर व्यापारिक बस्ती स्थापित की?

(क) कासिम बाजार
(ख) चन्द्रनगर
(ग) हुगली
(घ) चिनसुरा

4. भारत में फ्रांसीसी कम्पनी का गवर्नर था

(क) हॉकिन्स
(ख) वास्कोडिगामा
(ग) क्लाइव
(घ) डूप्ले

5. भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का संस्थापक किसे माना जाता है?

(क) क्लाइव को
(ख) वारेन हेस्टिग्स को
(ग) आयरकूट को
(घ) लॉर्ड वेलेजली को।

6. यूरोप के किस देश ने सर्वप्रथम भारत में अपना उपनिवेश स्थापित किया? [2013, 14, 16]
          या
भारत के पश्चिमी तट पर किस यूरोपीय देश ने सबसे पहले अपना उपनिवेश स्थापित किया था ? [2013]

(क) फ्रांस
(ख) इंग्लैण्ड
(ग) पुर्तगाल
(घ) हॉलैण्ड

7. कर्नाटक का युद्ध किस-किस के बीच हुआ ?

(क) फ्रांसीसी-पुर्तगाली
(ख) पुर्तगाली-डच
(ग) अंग्रेज-फ्रांसीसी
(घ) अंग्रेज-पुर्तगाली

8. प्लासी का युद्ध हुआ था (2012)

(क) 1754 ई० में
(ख) 1757 ई० में
(ग) 1864 ई० में
(घ) 1857 ई० में

9. इलाहाबाद की सन्धि हुई थी

(क) 1757 ई० में
(ख) 1765 ई० में
(ग) 1857 ई० में
(घ) 1865 ई० में

10. निम्न में कौन भारत में फ्रांसीसी उपनिवेश था? [2014]

(क) फोर्ट विलियम
(ख) मद्रास
(ग) पॉण्डिचेरी।
(घ) सूरत

11. फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की गई थी [2014]

(क) 1600 ई० में
(ख) 1611 ई० में
(ग) 1615 ई० में
(घ) 1664 ई० में

12. प्लासी के युद्ध के समय बंगाल का नवाब कौन था? (2014)

(क) सिराजुद्दौला
(ख) अलीवर्दी खाँ
(ग) मुर्शीद कुली खां
(घ) मीर कासिम

13. किस यूरोपीय शक्ति ने भारत में सबसे अन्त में प्रवेश किया? [2015, 17]

(क) हॉलैण्ड
(ख) इंग्लैण्ड
(ग) फ्रांस
(घ) पुर्तगाल

14. प्लासी के युद्ध में निम्नलिखित में से किसकी पराजय हुई थी? [2015, 17]

(क) लॉर्ड क्लाइव
(ख) सिराजुद्दौला
(ग) मीरजाफर
(घ) मीरकासिम

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 (Section 1) 1

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 are helpful to complete your homework.