UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सा मौलिक अधिकारों के उपयोग का उदाहरण नहीं है?
(क) बिहार के मजदूरों का पंजाब के खेतों में काम करने जाना।
(ख) ईसाई मिशनों द्वारा मिशनरी स्कूलों की श्रृंखला चलाना।
(ग) सरकारी नौकरी में औरत और मर्द को समान वेतन मिलना।
(घ) बच्चों द्वारा माँ-बाप की सम्पत्ति विरासत में पानी।
उत्तर:
(घ) बच्चों द्वारा माँ-बाप की सम्पत्ति विरासत में पाना।

प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सी स्वतंत्रता भारतीय नागरिकों को नहीं है?
(क) सरकार की आलोचना की स्वतंत्रता।
(ख) सशस्त्र विद्रोह में भाग लेने की स्वतंत्रता।
(ग) सरकार बदलने के लिए आन्दोलन शुरू करने की स्वतंत्रता।
(घ) संविधान के केंद्रीय मूल्यों का विरोध करने की स्वतंत्रता।
उत्तर:
(ख) सशस्त्र विद्रोह में भाग लेने की स्वतंत्रता।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान इनमें से कौन-सा अधिकार देता है?
(क) काम का अधिकार।
(ख) पर्याप्त जीविका का अधिकार
(ग) अपनी संस्कृति की रक्षा का अधिकार।
(घ) निजता का अधिकार।
उत्तर:
(ग) अपनी संस्कृति की रक्षा का अधिकार।

प्रश्न 4.
उस मौलिक अधिकार का नाम बताएँ जिसके तहत निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ आती हैं?
(क) अपने धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता।
(ख) जीवन का अधिकार।
(ग) छुआछूत की समाप्ति।
(घ) बेगार का प्रतिबन्ध।
उत्तर:
(क) धर्म की (धार्मिक) स्वतंत्रता का अधिकार।
(ख) स्वतंत्रता का अधिकार।
(ग) समानता का अधिकार।
(घ) शोषण के विरुद्ध अधिकार।

प्रश्न 5.
लोकतंत्र और अधिकारों के बीच सम्बन्धों के बारे में इनमें से कौन-सा बयान ज्यादा उचित है? अपनी पसंद के पक्ष में कारण बताएँ?
(क) हर लोकतांत्रिक देश अपने नागरिकों को अधिकार देता है।
(ख) अपने नागरिकों को अधिकार देने वाला हर देश लोकतांत्रिक हैं।
(ग) अधिकार देना अच्छा है, पर यह लोकतंत्र के लिए जरूरी नहीं है।
उत्तर:
(क) यह बयान अधिक वैध और उपयुक्त है। प्रत्येक लोकतांत्रिक देश अपने नागरिकों को अधिकार देता है। लोकतन्त्र में प्रत्येक नागरिक को मतदान करने तथा चुनाव लड़ने का अधिकार दिया जाता है। चुनाव लोकतांत्रिक हों, इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने, राजनैतिक दल का निर्माण करने तथा राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार प्राप्त हो। लोकतंत्रीय राज्यों में नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। अधिकतर राज्यों में नागरिकों के महत्वपूर्ण अधिकारों को संविधान में शामिल कर दिया जाता है। भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया है और उनकी सुरक्षा के भी उपाय किए गए हैं।

प्रश्न 6.
स्वतन्त्रता के अधिकार पर ये पाबन्दियाँ क्या उचित हैं? अपने जवाब के पक्ष में कारण बताएँ।
(क) भारतीय नागरिकों की सुरक्षा कारणों से कुछ सीमावर्ती इलाकों में जाने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है।
(ख) स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा के लिए कुछ इलाकों में बाहरी लोगों को सम्पत्ति खरीदने की अनुमति नहीं है।
(ग) शासक दल को अगले चुनाव में नुकसान पहुँचा सकने वाली किताब पर सरकार प्रतिबन्ध लगाती है।
उत्तर:
(क) स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत देश के किसी भी भाग में घूमने-फिरने का अधिकार प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है, किन्तु देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए देश के कुछ भागों जैसे सेना की छावनी, सीमावर्ती संवेदनशील क्षेत्रों में किसी को जाने की अनुमति लेनी पड़ती है। यह प्रति उचित एवं न्यायसंगत है क्योंकि किसी भी देश के लिए उसकी सुरक्षा सर्वोपरि है।
(ख) कुछ क्षेत्रों में ऐसी व्यवस्था को अनुचित नहीं कहा जा सकता है। कुछ जनजातीय क्षेत्रों में तथा जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल आदि राज्यों के बारे में ऐसा प्रतिबन्ध लगाया गया है जिससे वहाँ के लोग अपनी संस्कृति को बनाए रख सकें।
(ग) ऐसे प्रतिबन्ध को उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है।

प्रश्न 7.
मनोज एक सरकारी दफ्तर में मैनेजर के पद के लिए आवेदन देने गया। वहाँ के अधिकारी ने उसका आवेदन लेने से मना कर दिया और कहा, “झाडू लगाने वाले का बेटा होकर तुम मैनेजर बनना चाहते हो। तुम्हारी जाति का कोई कभी इस पद पर आया है? नगरपालिका के दफ्तर जाओ और सफाई कर्मचारी के लिए अर्जी दो।” इस मामले में मनोज के किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है? मनोज की तरफ से जिला अधिकारी के नाम लिखे एक पत्र में इसका उल्लेख करो।
उत्तर:
मनोज के मामले में समानता के अधिकार तथा स्वतंत्रता के अधिकार’ को स्पष्ट उल्लंघन हुआ है। स्वतंत्रता के अधिकार के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कोई भी कार्य, नौकरी अथवा व्यवसाय करने का अधिकार दिया गया है और किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। अतः निम्न जातियों के लोगों को उनका जातिगत काम करने के लिए मजबूर करना उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

प्रश्न 8.
जब मधुरिमा सम्पत्ति के पंजीकरण वाले दफ्तर में गई तो रजिस्ट्रार ने कहा, “आप अपना नाम ‘मधुरिमा बेनर्जी, बेटी ए. के. बनर्जी’ नहीं लिख सकतीं। आप शादीशुदा हैं और आपको अपने पति का ही नाम देना होगा। फिर आपके पति का उपनाम तो राव है। इसलिए आपका नाम भी बदलकर मधुरिमा राव हो जाना चाहिए।” मधुरिमा इस बात से सहमत नहीं हुई। उसने कहा, “अगर शादी के बाद मेरे पति का नाम नहीं बदला तो मेरा नाम क्यों बदलना चाहिए? अगर वह अपने नाम के साथ पिता का नाम लिखते रह सकते हैं तो मैं क्यों नहीं लिख सकती?” आपकी राय में इस विवाद में किसका पक्ष सही है? और क्यों?
उत्तर:
इस विवाद में मधुरिमा का पक्ष सही है। मधुरिमा के व्यक्तिगत मामलों पर प्रश्न करके तथा उनमें दखल करके रजिस्ट्रार मधुरिमा के स्वतंत्रता के अधिकार में हस्तक्षेप कर रहा है। साथ ही अपने पति का नाम अपनाने का प्रश्न सामाजिक मान्यताओं पर आधारित है जो महिलाओं को कमतर तथा कमजोर मानता है। मधुरिमा को अपना नाम बदलने के लिए बाध्य करना समानता के अधिकार तथा धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।

प्रश्न 9.
मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के पिपरिया में हजारों आदिवासी और जंगल में रहने वाले लोग सतपुड़ा राष्ट्रीय पार्क, बोरी वन्यजीव अभ्यारण्य और पंचमढ़ी वन्यजीव अभ्यारण्य से अपने प्रस्तावित विस्थापन का विरोध करने के लिए जमा हुए। उनका कहना था कि यह विस्थापन उनकी जीविका और उनके विश्वासों पर हमला है। सरकार का दावा है कि इलाके के विकास और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए उनका विस्थापन जरूरी है। जंगल पर आधारित जीवन जीने वाले की तरफ से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को एक पत्र, इस मसले पर सरकार द्वारा दिया जा सकने वाला संभावित जवाब और इस मामले पर मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट तैयार करो।
उत्तर:
होशंगाबाद (म.प्र.) जिले के पिपरिया में हजारों आदिवासी और जंगल में रहने वाले लोग अपने प्रस्तावित विस्थापन का विरोध करने के लिए एकात्रित हुए थे। पिपरिया के निवासियों के अनुसार सरकार द्वारा ऐसा करना। उनके स्वतंत्रता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है जो उन्हें देश के किसी भी भाग में बसने का अधिकार देता है। किन्तु सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि सार्वजनिक हित में वह नागरिक के स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन कर सकती है और उसे सीमित कर सकती है। कुछ ही समय पहले दिल्ली में यमुना नदी के किनारे पर बसे कई झुग्गी-झोंपड़ी वालों को वहाँ से हटा दिया गया है क्योंकि ऐसा करना उस स्थान के विका तथा जानवरों की रक्षा के लिए आवश्यक समझा गया था।

उस जंगल में रहने वाले लोगों में राष्ट्रीय मानवाधिकार को एक पत्र लिखा जिसमें यह कहा गया कि सरकार किसी अन्य स्थान पर उनके पुनर्वास का प्रबन्ध करे। दिल्ली सरकार ने ऐसा किया। सर्वोच्च न्यायालय का हाल ही का एक निर्णय भी इसी बात का समर्थन करता है जिसमें नर्मदा बाँध की ऊँचाई को बढ़ाने के उद्देश्य से जिन लोगों को विस्थापित किया गया था, उनके पुनर्वास के लिए सरकार किसी अन्य स्थल पर प्रबन्ध करेगी।

प्रश्न 10.
इस अध्याय में पढ़े विभिन्न अधिकारों को आपस में जोड़ने वाला एक मकड़जाल बनाएँ। जैसे आने जाने की स्वतंत्रता का अधिकार तथा पेशा चुनने की स्वतंत्रता का अधिकार आपस में एक-दूसरे से जुड़े हैं। इसका एक कारण है कि आने-जाने की स्वतंत्रता के चलते व्यक्ति अपने गाँव या शहर के अन्दर ही नहीं, दूसरे गाँव, दूसरे शहर और दूसरे राज्य तक जाकर काम कर सकता है। इसी प्रकार इस अधिकार को तीर्थाटन से जोड़ा जा सकता है जो किसी व्यक्ति द्वारा अपने धर्म का अनुसरण करने की आजादी से जुड़ा है। आप इस मकड़जाल को बनाएँ और तीर के निशानों से बताएँ कि कौन-से
अधिकार आपस में जुड़े हैं। हर तीर के साथ संबंध बताने वाला एक उदाहरण भी दें।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 6 1
नोट : उपर्युक्त चित्र की सहायता से विद्यार्थी स्वयं भी मकड़जाल बनाने का प्रयास करें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
अधिकार वे सुविधाएँ, अवसर व परिस्थितियाँ हैं जो व्यक्ति को समाज तथा राज्य द्वारा उसके विकास के लिए प्रदान की जाती हैं।

  1. प्रो. लॉस्की के अनुसार, “अधिकार सामाजिक जीवन की वे अवस्थाएँ हैं जिनके बिना कोई मनुष्य अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।”
  2. डॉ. बेनी प्रसाद के अनुसार, “अधिकार न अधिक और ने कम वे सामाजिक परिस्थितियाँ हैं जो व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक व अनुकूल हों।”

प्रश्न 2.
जनहित याचिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
जनहित किसी मामले को लेकर कोई व्यक्ति न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है। इस तरह दायर की गयी।
याचिका को जनहित याचिका कहते हैं।

प्रश्न 3.
बंधुआ मजदूरी किसे कहते हैं?
उत्तर:
मजदूरों को अपने मालिक के लिए मुफ्त या बहुत थोड़े से अनाज वगैरह के लिए जबरन काम करना पड़ता है।
जब यही काम मजदूर को जीवन भर करना पड़ता है तो उसे बंधुआ मजदूरी कहते हैं।

प्रश्न 4.
किन्हीं चार राजनैतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. मतदान का अधिकार
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार
  3. सरकारी नौकरी पाने का अधिकार
  4. सरकार की आलोचना करने का अधिकार

प्रश्न 5.
प्रतिज्ञा-पत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
नियमों व सिद्धान्तों को बनाए रखने का व्यक्ति, समूह या देशों का वायदा प्रतिज्ञा-पत्र कहलाता है। ऐसे बयान या संधि पर हस्ताक्षर करने वाले पर इसके पालन की वैधानिक बाध्यता होती है।

प्रश्न 6.
एमनेस्टी इंटरनेशनल क्या है?
उत्तर:
एमनेस्टी इंटरनेशनल मानवाधिकारों के लिए कार्य करने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। यह संगठन विश्व भर में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर स्वतंत्र रिपोर्ट जारी करता है।

प्रश्न 7.
कानुनी अधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे अधिकार जिन्हें राज्य की स्वीकृति मिल जाती है, उन्हें कानूनी या वैधानिक अधिकार कहते हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिए व्यक्ति अदालत में दावा कर सकता है। जीवन, संपत्ति, कुटुंब आदि के अधिकार राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं। यदि कोई व्यक्ति या अधिकार इन्हें छीनने का प्रयत्न करता है तो उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। राज्य इनका उल्लंघन करने वालों को दण्ड देता है, इसलिए कानूनी अधिकार के पीछे राज्य की शक्ति रहती है।

प्रश्न 8.
लोकतांत्रिक अधिकार 347 नैतिकता का अधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी देश में लोगों को कुछ अधिकार नैतिक आधार पर दिए जाते हैं। ये अधिकार मनुष्य एवं समाज दोनों के हित में होते हैं। जीवन की सुरक्षा, स्वतंत्रता, धर्म-पालन, शिक्षा-प्राप्ति, संपत्ति रखने आदि की सुविधाएँ देने पर ही मनुष्य की भलाई हो सकती है। इनसे समाज भी उन्नत होता है, इसलिए समाज स्वेच्छा से इन अधिकारों को प्रदान करता है। जब तक ऐसे अधिकारों के पीछे कानून की मान्यता या दबाव नहीं रहता, ये नैतिक अधिकार कहलाते हैं। नैतिक अधिकारों की मान्यता सामाजिक निंदा तथा आलोचना के भय से दी जाती है। यदि बुढ़ापे में माता-पिता की सेवा नहीं की जाती है तो समाज निंदा करता है। इसलिए माता-पिता का यह नैतिक अधिकार है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनहित याचिका को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
कोई भी पीड़ित व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन के मामले में न्याय पाने के लिए तत्काल न्यायालय जा सकता है। किन्तु यदि मामला सामाजिक या सार्वजनिक हित का हो तो ऐसे मामलों में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को लेकर कोई भी व्यक्ति अदालत में जा सकता है। ऐसे मामलों को जनहित याचिका के माध्यम से उठाया जाता है।

इसमें कोई भी व्यक्ति या समूह सरकार के किसी कानून या काम के खिलाफ सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय में जा सकता है। ऐसे मामले जज के नाम पोस्टकार्ड पर लिखी अर्जी के माध्यम से भी चलाए जा सकते हैं। अगर न्यायाधीशों को लगे कि सचमुच इस मामले में सार्वजनिक हितों पर चोट पहुँच रही है तो वे मामले को विचार के लिए स्वीकार कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना एक कानून के तहत 1993 ई. में की गयी। इस आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इस आयोग में सेवानिवृत्त न्यायाधीश, अधिकारीगण तथा नागरिक शामिल होते हैं। लेकिन इसे अदालती मामलों में निर्णय देने का अधिकार नहीं है। यह पीड़ितों को संविधान में वर्णित सभी मौलिक अधिकारों सहित सारे मानव अधिकार दिलाने पर ध्यान देता है। इनमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा कराई गई वे संधियाँ भी शामिल हैं जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्वयं किसी को सजा नहीं दे सकता।

यह मानव अधिकार हनन के किसी भी मामले की जाँच करता है। तथा देश में मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए अन्य सामान्य कदम उठाता है। यह गवाहों को इसके समक्ष पेश होने के आदेश दे सकता है, किसी सरकारी कर्मचारी से पूछताछ कर सकता है, किसी आधिकारिक दस्तावेज की माँग कर सकता है, किसी जेल का निरीक्षण करने के लिए उसका दौरा कर सकता है तथा किसी स्थान पर जाँच करने के लिए अपना दल भेज सकता है। देश के 14 राज्यों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसे राज्य मानवाधिकार आयोग हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में शामिल किए गए अधिकारों को मौलिक अधिकार क्यों कहते हैं? ।
उत्तर:
नागरिकों के मूल अधिकारों का वर्णन भारतीय संविधान के तीसरे अध्याय में अनुच्छेद 12 से 35 के बीच किया गया है। इन्हें मूल अधिकार इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये अधिकार मनुष्य की उन्नति और विकास के लिए आवश्यक माने जाते हैं। इनके प्रयोग के बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन की उन्नति नहीं कर सकता। ये अधिकार देश में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना में सहायता करते हैं।
संविधान में इन अधिकारों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है ताकि कोई सरकार नागरिकों को इन अधिकारों से वंचित न कर सके और देश के सभी नागरिक इन अधिकारों का प्रयोग कर सकें।

प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा-पत्रों की अधिकारों के विस्तार में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा – पत्र आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आधार पर कई अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है। ये अधिकार भारत के संविधान में प्रत्यक्ष रूप से मौलिक अधिकारों का हिस्सा नहीं हैं।
इन अधिकारों में प्रमुख अधिकार इस प्रकार हैं-

  1. स्वास्थ्य का अधिकार- बीमारी के दौरान चिकित्सीय देखभाल, बच्चे के जन्म के समय महिलाओं की विशेष देखरेख तथा महामारियों की रोकथाम।।
  2. शिक्षा का अधिकार- निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा के लिए समान अवसर। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्रों की अधिकारों के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  3. काम करने का अधिकार- प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका कमाने के लिए अवसर मिलना चाहिए।
  4. सुरक्षित तथा स्वस्थ कार्य परिस्थितियाँ, उचित मेहनताना जो कि मजदूरों तथा उनके परिवारों को सम्मानजनक जीवन स्तर उपलब्ध कराता हो।
  5. उपयुक्त जीवन स्तर का अधिकार जिसमें उपयुक्त भोजन, कपड़े तथा निवासस्थान शामिल हैं।
  6. सामाजिक सुरक्षा तथा बीमे का अधिकार।

प्रश्न 5.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं? इसकी सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से आशय है किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने विचारों को स्वतन्त्र रूप से अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता। यह किसी व्यक्ति को दूसरों से बातचीत करने, सरकार की आलोचना करने हेतु अलग तरीके से सोचने की आजादी देता है। हम पैम्पलेट, पत्रिका या अखबार के द्वारा समाचार प्रकाशित कर सकते हैं।
सीमाएँ-

  1. किसी भी व्यक्ति को दूसरों के विरुद्ध हिंसा भड़काने की स्वतंत्रता नहीं है।
  2. कोई भी व्यक्ति इसका प्रयोग लोगों को सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए नहीं उकसा सकता।
  3. कोई भी व्यक्ति झूठी और घटिया बातें करके किसी अन्य को अपमानित नहीं कर सकता जिससे किसी व्यक्ति के सम्मान को हानि होती है।

प्रश्न 6.
सऊदी अरब में किस तरह की सरकार अस्तित्व में है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सऊदी अरब में वंशानुगत शासन व्यवस्था अस्तित्व में है। यहाँ लोगों की शासक को चुनने में कोई भूमिका नहीं है।
इस शासन व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. वहाँ कोई धार्मिक आजादी नहीं है। सिर्फ मुसलमान ही यहाँ के नागरिक हो सकते हैं। यहाँ रहने वाले दूसरे धर्मों के लोग घर के अन्दर ही धर्म के अनुसार पूजा-पाठ कर सकते हैं। उनके सार्वजनिक धार्मिक अनुष्ठानों पर रोक है।
  2. महिलाओं पर कई सार्वजनिक पाबंदियाँ लगी हुई हैं। औरतों को वैधानिक रूप से मर्दो से कम दर्जा मिला हुआ है।
  3. शाह ही विधायिका और कार्यपालिका का चयन करता है तथा जजों की नियुक्ति भी स्वयं ही करता है और उनके द्वारा किए गए किसी भी निर्णय को बदल सकता है।
  4. नागरिक राजनैतिक दल अथवा राजनैतिक संगठन का गठन नहीं कर सकते।
  5. मीडिया शाह की मर्जी के विरुद्ध कोई भी खबर नहीं दे सकता।

प्रश्न 7.
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गोआन्तानामो में मानवाधिकारों के उल्लंघन के । सम्बन्ध में क्या सूचनाएँ एकत्रित कीं?
उत्तर:
मानवाधिकारों के लिए कार्यरत कार्यकर्ताओं को संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल विश्व भर में मानवाधिकारों के हनन पर स्वतन्त्र रिपोर्ट जारी करता है।
इस संस्था ने गोआन्तानामो में कैदियों के बारे में निम्न सूचनाएँ एकत्रित की थीं-

  1. कैदियों को ऐसे तरीकों से यातनाएँ दी जाती थीं जो अमेरिकी कानूनों का उल्लंघन करते थे।
  2. उन्हें इलाज कराने की भी आज्ञा नहीं थी जो कि अन्तर्राष्ट्रीय संधियों के अनुसार युद्ध बंदियों को भी उपलब्ध था।
  3. कई कैदियों ने भूख हड़ताल करके इन स्थितियों का विरोध करने का प्रयास किया था।
  4. आधिकारिक रूप से निर्दोष घोषित किए जाने के उपरान्त भी कैदियों को रिहा नहीं किया गया था।

इस प्रकार एमनेस्टी इंटरनेशनल ने लोगों का ध्यान मानवाधिकार हनन के मामले की ओर आकृष्ट किया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई एक स्वतंत्र जाँच ने भी एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा जारी तथ्यों की पुष्टि की थी। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने कहा कि गोआन्तानामो बे की जेल बन्द की जानी चाहिए।

प्रश्न 8.
भारत के संविधान में किए गए उन प्रावधानों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए जो भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश घोषित करते हैं।
उत्तर:
विभिन्नता में एकता भारत की विशेषता है। भारत में विभिन्न धर्मों के लोग साथ-साथ रहते हैं। इसलिए भारत का संविधान भी धार्मिक मामलों में तटस्थ रहा तथा इसने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाना स्वीकार किया है। कोई भी ऐसा देश जो किसी धर्म को आधिकारिक धर्म के रूप में मान्यता नहीं देता धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहलाता है।
निम्न संवैधानिक प्रावधान भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करते हैं-

  1. भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। श्रीलंका में बुद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम, इंग्लैण्ड में इसाई धर्म को आधिकारिक धर्म घोषित किया गया है जबकि भारत में ऐसा नहीं है। भारत में किसी भी धर्म को विशेष दर्जा नहीं दिया गया है।
  2. संविधान धर्म के आधार पर भेद-भाव को प्रतिबंधित करता है।
  3. संविधान सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार धर्म चुनकर उसका प्रचार करने, मानने का अधिकार देता है।

प्रश्न 9.
“स्वतंत्रता का अधिकार छः स्वतंत्रताओं का समूह है।” स्पष्ट कीजिए। साथ ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अन्तर्गत की गयी व्यवस्थाओं का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में स्वतंत्रता के अधिकार के अधीन भारतीय नागरिकों को अनेक प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्रदान की गयी हैं जिनका विवरण इस प्रकार है-

  1. भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता।
  2. शान्तिपूर्ण तथा बिना शस्त्रों के इकट्ठा होने की स्वतंत्रता।
  3. संघ अथवा समुदाय बनाने की स्वतंत्रता।
  4. भारत में किसी भी क्षेत्र अथवा स्थान पर घूमने-फिरने की स्वतंत्रता।
  5. भारत के किसी भी भाग में रहने अथवा निवास करने की स्वतंत्रता।
  6. कोई भी व्यवसाय अथवा पेशा अपनाने की स्वतंत्रता।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार (धारा 20-22) के अन्तर्गत निम्न व्यवस्था की गई है-

  1. किसी व्यक्ति को बिना कानून तोड़े दण्ड नहीं दिया जा सकता।
  2. एक ही व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दण्ड नहीं दिया जा सकता।
  3. किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्ध गवाही देने को मजबूर नहीं किया जा सकता।
  4. किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर पुलिस को 24 घण्टे के अन्दर उसे किसी न्यायाधीश के सामने उपस्थित करना होता है। जब कभी किसी व्यक्ति को निवारक नजरबन्दी कानून के अधीन गिरफ्तार किया जाता है। तब उसे 24 घण्टे के अन्दर न्यायाधीश के सामने उपस्थित करना जरूरी नहीं। परन्तु उसे भी दो महीने की अवधि से अधिक समय तक न्यायालय के सामने पेश किए बिना नजरबन्द नहीं रखा जा सकता।
  5. गिरफ्तार किए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण बताना होगा। उस व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार वकील करने का अधिकार होगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि स्वतन्त्रता का अधिकार अनेक अधिकारों का समूह है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायपालिका किस तरह हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में की गयी व्यवस्था के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो वह न्यायालय की शरण में जा सकता है। यह हमारा मौलिक अधिकार है कि हम सीधे सर्वोच्च न्यायालय अथवा किसी राज्य के उच्च न्यायालय में जाकर अपने अधिकारों की सुरक्षा की माँग कर सकते हैं।

विधायिका, कार्यपालिका या सरकार द्वारा गठित किसी अन्य प्राधिकरण की किसी भी कार्रवाई के विरुद्ध हमें हमारे मौलिक अधिकारों की गारंटी प्राप्त है। कोई भी कानून अथवा कार्रवाई हमें हमारे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं कर सकती।
यदि विधायिका या कार्यपालिका की कोई कार्रवाई हमसे हमारे मौलिक अधिकार या तो छीनती हैं या उन्हें सीमित करती है तो यह अवैध होगा। हम ऐसे केन्द्र अथवा राज्य सरकार के ऐसे कानून को चुनौती दे सकते हैं।

न्यायालय भी किसी निजी व्यक्ति या निकाय के विरुद्ध मौलिक अधिकारों को लागू करती है। किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय विभिन्न प्रकार की रिट जारी कर सकते हैं। जब भी हमारे किसी मौलिक अधिकार का हनन होता है तो हम न्यायालय के द्वारा इसे रोक सकते हैं। हमारी न्यायपालिका अत्यंत शक्तिशाली है तथा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह कोई भी आवश्यक कदम उठा सकती है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार बहुत ही व्यापक तथा विस्तृत हैं। इनका वर्णन संविधान के 24 अनुच्छेदों (अनुच्छेद 12-35) में किया गया है।
  2. ये अधिकार सभी नागरिकों को जाति, धर्म, रंग, लिंग, भाषा आदि के भेदभाव के बिना दिए गए हैं।
  3. इसका अर्थ यह है कि यदि कोई व्यक्ति अथवा सरकार नागरिकों के इन अधिकारों को उल्लंघन करने अथवा इन्हें छीनने का प्रयत्न करता है तो नागरिक न्यायालय में जाकर उसके विरुद्ध न्याय की माँग कर सकता है।
  4. मौलिक अधिकारों का प्रयोग नागरिकों द्वारा मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता। यदि कोई नागरिक इनको प्रयोग इस ढंग से करता है कि उससे शांति तथा व्यवस्था भंग होती हो अथवा दूसरों की स्वतंत्रता के प्रयोग के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती हो तो ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा सकती है; उसे ऐसा करने से रोका जा सकता है।
  5. संकटकालीन स्थिति में मौलिक अधिकारों को निलम्बित किया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि संकट काल में सरकार द्वारा इन अधिकारों के प्रयोग पर पाबंदी लगाई जा सकती है।
  6. संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त है।
  7. मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए विशेष संवैधानिक व्यवस्था की गई है, इनकी केवल घोषणा ही नहीं की गई है।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त मौलिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान ने अपने नागरिकों को निम्नलिखित मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं।
समानता का अधिकार- इस अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्न प्रकार की समानता प्रदान की गई है-

  1. कानून के सामने सभी नागरिक समान हैं।
  2. किसी भी नागरिक को उसकी जाति, धर्म, रंग, लिंग तथा जन्म स्थान आदि के आधार पर सार्वजनिक स्थानों जैसे-होटलों, पार्को, नहाने के घाटों आदि पर प्रवेश करने से नहीं रोका जाएगा।
  3. सभी नागरिकों को सरकारी नौकरी पाने के क्षेत्र में अवसर की समानता का अधिकार।
  4. छुआ-छूत की समाप्ति।
  5. सेना तथा शिक्षा सम्बन्धी उपाधियों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की उपाधियों का अन्त।

स्वतन्त्रता का अधिकार- स्वतंत्रता का अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्न स्वतंत्रताएँ प्रदान की गई हैं-

  1. भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता।
  2. शांतिपूर्ण तथा बिना हथियारों के एकत्र होने की स्वतंत्रता।
  3. संघ बनाने की स्वतंत्रता।
  4. भारत में किसी भी स्थान पर (किसी भी भाग में) घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता।
  5. भारत के किसी भी भाग में रहने अथवा निवास करने की स्वतंत्रता।
  6. अपनी इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय अपनाने की स्वतंत्रता।

शोषण के विरुद्ध अधिकार-

  1. इस अधिकार के अधीन मनुष्यों को खरीदना-बेचना तथा बेगार पर रोक लगा दी गई है।
  2. 14 वर्ष अथवा उससे कम आयु वाले बच्चों को किसी कारखाने अथवा खान में नौकरी पर नहीं लगाया जा सकता है।

धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार-

  1. प्रत्येक नागरिकों को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने तथा उसका प्रचार करने का अधिकार है।
  2. प्रत्येक धर्म के अनुयायियों को अपनी धार्मिक संस्थाएँ स्थापित करने तथा उनका प्रबन्ध करने का अधिकार है।
  3. किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी धर्म विशेष के लिए चंदा या कर देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
  4. राज्य द्वारा स्थापित किसी भी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।

सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार- इस अधिकार के अन्तर्गत भारत के सभी नागरिकों को अपनी भाषा, धर्म व संस्कृति को सुरक्षित रखने तथा उसका विकास करने का अधिकार है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार- इस अधिकार के अनुसार नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने की स्थिति में न्यायालय में जाकर न्याय माँगने का अधिकार है।

प्रश्न 4.
भारत का संविधान कहता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति से उसके व्यक्तिगत जीवन की स्वतंत्रता का अधिकार नहीं छीना जा सकता।” इस कथन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इसका आशय है कि जब तक न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति को मृत्यु दण्ड न दिया गया हो, तब तक किसी भी व्यक्ति को मारा नहीं जा सकता। इसका यह भी अर्थ है कि सरकार अथवा पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को तब तक हिरासत में नहीं रख सकते जब तक उनके पास इसके लिए कोई न्यायिक औचित्य न हो। जब भी वे ऐसा करते हैं, उन्हें कुछ विशेष कानूनों का पालन करना पड़ता है।

  1. ऐसे व्यक्ति को अपने वकील से विचार-विमर्श करने और अपने बचाव के लिए वकील रखने का अधिकार होता है।
  2. गिरफ्तार किए गए अथवा हिरासत में लिए गए व्यक्ति को ऐसी गिरफ्तारी या हिरासत के कारण की सूचना देना आवश्यक है।
  3. जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है अथवा हिरासत में लिया जाता है तो उसे ऐसी गिरफ्तारी के 24 घण्टे के अन्दर निकटतम न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाना होता है।

प्रश्न 5.
भारत में नगरिकों के राजनैतिक अधिकारों का वर्णन कीजिए। ।
उत्तर:
भारत में संविधान द्वारा प्रदत्त राजनीतिक अधिकारों द्वारा नागरिक अपने देश के शासन-प्रबन्ध में भाग लेते हैं।
इस श्रेणी के अन्तर्गत नागरिकों को प्रदत्त प्रमुख अधिकार इस प्रकार हैं-

1. मतदान का अधिकार- लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदान का अधिकार एक प्रमुख अधिकार है जो देश के नागरिकों को प्राप्त है। मतदान के अधिकार द्वारा सभी वयस्क नागरिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन-प्रबन्ध में हिस्सा लेने लगे हैं। जनता संसद तथा कार्यपालिका के लिए अपने प्रतिनिधि चुनकर भेजती है, जिससे कानून बनाने तथा प्रशासन चलाने के कार्य जनता की इच्छानुसार किए जाते हैं। इस प्रकार प्रजातांत्रिक शासन जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा चलाया जाता है। सभी आधुनिक राज्य अधिक-से-अधिक नागरिकों को मताधिकार देने का प्रयत्न करते हैं। इसके लिए अब शिक्षा, सम्पत्ति, जाति, लिंग, जन्म-स्थान आदि का भेदभाव नहीं किया जाता, परन्तु नाबालिगों, अपराधियों, दिवालियों, पागलों तथा विदेशियों को मताधिकार नहीं दिया जाता। क्योंकि मताधिकार एक पवित्र तथा जिम्मेदारी का काम है। भारत में 18 वर्ष के सभी स्त्री-पुरुषों को मताधिकार प्राप्त है।

2. चुनाव लड़ने का अधिकार- प्रजातंत्र में सभी नागरिकों को योग्य होने पर चुनाव लड़ने का भी अधिकार दिया जाता है। प्रजातंत्र में तभी जनता की तथा जनता द्वारा सरकार बन सकती है, जब प्रत्येक नागरिक को कानून बनाने में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेने का अधिकार दिया जाता हो। जनता के वास्तविक प्रतिनिधि भी वही होंगे जो उन्हीं में से निर्वाचित किए गए हों। इसलिए राज्य नागरिकों को चुनाव लड़ने का भी अधिकार देता है, परन्तु कानून बनाना अधिक जिम्मेदारी का काम होता है, इसलिए ऐसे नागरिक को ही निर्वाचन में खड़े होने का अधिकार होता है जो कम-से-कम 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो तथा पागल, दिवालिया व अपराधी न हो। भारत में 25 वर्ष की आयु वाले नागरिक को यह अधिकार मिल जाता है।

3. सरकार की आलोचना करने का अधिकार- लोकतन्त्र में नागरिकों को शासन-कार्यों की रचनात्मक आलोचना करने का अधिकार है। लोकतन्त्र लोकमत पर आधारित सरकार है। विरोधी मतों के संघर्ष से ही सच्चाई सामने आती है। स्वतंत्रता का मूल जनता की निरन्तर जागृति ही है। शासन के अत्याचारों अथवा अधिकारों के दोषों को दूर करने के लिए सरकार की आलोचना एक उत्तम तथा प्रभावशाली हथियार है। इससे सरकार दक्षतापूर्वक कार्य करती है। धन व सत्ता का दुरुपयोग नहीं होने पाता।

4. विरोध करने का अधिकार- नागरिकों को सरकार का विरोध करने का भी अधिकार है। यदि सरकार अन्यायपूर्ण कानून बनाती है अथवा राष्ट्र-हित के विरुद्ध कार्य करती है तो उसका विरोध किया जाना चाहिए। ऐसे शासन के सामने झुकना आदर्श नागरिकता का लक्षण नहीं है। इसलिए नागरिकों को बुरी सरकार का विरोध करना चाहिए तथा उसे बदल देने का प्रयत्न करना चाहिए, परन्तु ऐसा संवैधानिक तरीकों के अन्तर्गत ही किया जाना चाहिए। यह भी ध्यान में रखना पड़ता है कि निजी स्वार्थ-सिद्धि के लिए ऐसा नहीं किया जा सकता। नागरिक को सरकार का विरोध करने का तो अधिकार है, परन्तु राज्य का विरोध करने का कोई अधिकार नहीं।

5. प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार- नागरिकों को अपने कष्टों का निवारण करने के लिए प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार है। प्रजातंत्र में संसद में जनता के प्रतिनिधियों द्वारा लोगों को भी स्वतः याचिका भेजकर सरकार के सामने अपनी समस्याएँ रखने तथा उन्हें हल करने की माँग करने का अधिकार है।
सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार- सभी नागरिकों को उनकी योग्यतानुसार अपने राज्य में सरकारी पद या नौकरियाँ प्राप्त करने का अधिकार दिया जाता है। सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, वंश, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

भारत में ऐसा कोई भेदभाव नहीं रखा गया है। यहाँ कोई भी नागरिक राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। राजनीतिक दल बनाने का अधिकार- प्रजातंत्र में लोगों को दल बनाने का अधिकार होता है। समान राजनीतिक विचार रखने वाले लोग अपना दल बना लेते हैं। राजनीतिक दल ही उम्मीदवार खड़े करते हैं, चुनाव आंदोलन चलाते हैं तथा विजयी होने पर सरकार बनाते हैं। जो दल अल्पसंख्या में रह जाते हैं, वे विरोधी दल का कार्य करते हैं। इन राजनैतिक दलों के बिना प्रजातंत्र सरकार बनाना असंभव है।

प्रश्न 6.
भारत में नागरिक के सामाजिक एवं नागरिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पारिवारिक जीवन का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को विवाह करने तथा कुटुम्ब बनाने का अधिकार है। परिवार के पवित्रता, स्वतंत्रता तथा सम्पत्ति की राज्य रक्षा करता है। प्रगतिशील देशों में पारिवारिक कलह दूर करने के लिए पतिपत्नी को एक-दूसरे को तलाक देने का भी अधिकार है। बहु-विवाह एवं बाल-विवाह की प्रथाओं पर भी प्रतिबंध लगाए जाते हैं।

शिक्षा का अधिकार- आधुनिक राज्य में नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है। कई देशों में चौदह वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रबन्ध किया गया है। शिक्षा प्रजातांत्रिक शासन की सफलता का आधार है। शिक्षित नागरिक ही अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान रखते हैं। शिक्षा अच्छे सामाजिक जीवन के लिए भी आवश्यक है, इसलिए राज्य स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, वाचनालय, पुस्तकालय आदि स्थापित करता है। नागरिकों को शिक्षा देना राज्य अपना परम कर्तव्य समझता है।

प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार- समाचार-पत्र प्रजातन्त्र के पहरेदार होते हैं। ये लोकमत तैयार करने के अच्छे साधन हैं। इनके माध्यम से जनता तथा सरकार एक-दूसरे की बातें समझ सकते हैं।  समाचार-पत्रों पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। स्वतंत्र प्रेस द्वारा ही शासन की जनहित विरोधी कार्रवाई की आलोचना की जा सकती है। प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा देने से जनता का गला घोंट दिया जाता है। तानाशाही राज्यों में प्रेस को स्वतंत्र नहीं रहने दिया जाता, परन्तु प्रजातंत्रीय देशों में प्रेस को स्वतंत्रता का अधिकार होता है। समाचार-पत्रों को इस अधिकार का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।

सभा बुलाने तथा संगठित होने का अधिकार- मनुष्य में सामाजिक प्रवृत्ति होती है। वह सभा बुलाकर तथा संगठन बनाकर उसे पूर्ण करता है। जनता को शांतिपूर्वक सभाएँ करने तथा अपने हितों की रक्षा करने के लिए समुदाय बनाने का अधिकार होना चाहिए। आधुनिक राज्य लोगों को यह अधिकार प्रदान करता है। सार्वजनिक वाद-विवाद, मत-प्रकाशन तथा जोरदार आलोचना शासन के अत्याचारों तथा अधिकारों की मनमानी क्रूरताओं के विरुद्ध जनता के शस्त्र हैं, परन्तु इन सभाओं, जलूसों तथा समुदायों का उद्देश्य सार्वजनिक हित की वृद्धि करना ही होना चाहिए। द्वेष या विद्रोह फैलाने, शांति भंग करने आदि के लिए इनका प्रयोग नहीं किया जा सकता। राज्य ऐसे कार्यों को रोकने के लिए सभाओं आदि पर प्रतिबन्ध लगा देता है, परन्तु राज्य की सुरक्षा के नाम पर नागरिक स्वतंत्रता का दमन करना फासिस्टवाद है।

न्याय पाने का अधिकार- आधुनिक राज्य में सभी लोगों को पूर्ण न्याय प्राप्त करने का अधिकार है। अपराध करने पर सभी पर सामान्य अदालत में मुकद्दमा चलाया जाता है तथा सामान्य कानून के अन्तर्गत दण्ड दिया जाता है। गरीब तथा निर्बल व्यक्तियों को अमीरों के अत्याचारों से बचाया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को अदालत में जाने तथा न्याय पाने का अधिकार है। भारतीय संविधान में भी न्याय प्राप्त करने के लिए कानूनी उपचार की व्यवस्था की गयी है। कोई भी व्यक्ति न्याय पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक अपील कर सकता है।

स्वतन्त्र भ्रमण का अधिकार- सुखी तथा स्वस्थ जीवन के लिए भ्रमण करना भी जरूरी है। राज्य प्रत्येक व्यक्ति को आवागमन की स्वतन्त्रता का अधिकार देता है। वह देश भर में कहीं भी आ-जा सकता है। विदेश यात्रा के लिए पासपोर्ट भी मिल सकता है। शांतिपूर्ण ढंग से आजीविका कमाने तथा सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए सभी लोगों को घूमने-फिरने की स्वतंत्रता है, परन्तु विद्रोह फैलाने, तोड़-फोड़ की कार्रवाइयाँ करने वालों को यह अधिकार नहीं दिया जाता। युद्ध के समय विदेशियों के भ्रमण पर भी कठोर नियंत्रण लागू कर दिया जाता है।

विचार तथा भाषण की स्वतंत्रता का अधिकार- प्रजातांत्रिक राज्यों में प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से विचार करने तथा बोलने अथवा भाषण देने का अधिकार दिया जाता है। विचारों के आदान-प्रदान से ही सत्य का पता लगता है। इससे जागृत लोकमत तैयार होता है जो सरकार की रचनात्मक आलोचना करके उसे जनहित में कार्य करते रहने के लिए बाध्य करता है। मंच जनता के दुःखों तथा अधिकारों को दबाने सम्बन्धी अत्याचारों को दूर करने का शक्तिशाली माध्यम है, परन्तु भाषण की स्वतंत्रता का अर्थ झूठी अफवाहें फैलाने, अपमान करने या गालियाँ देने का अधिकार नहीं है। मानहानि करना या राजद्रोह फैलाना अपराध है। युद्ध के समय राज्य की सुरक्षा के लिए इस स्वतंत्रता पर प्रतिबंध भी लगा दिए जाते हैं।

जीवन का अधिकार- प्रत्येक मनुष्य का यह मौलिक अधिकार है कि उसका जीवन सुरक्षित रखा जाए। राज्य बनाने का प्रथम उद्देश्य भी यही है। यदि लोग ही जीवित नहीं रहेंगे तो समाज व राज्य भी समाप्त हो जाएँगे। इसलिए राज्य अपनी प्रजा की बाहरी आक्रमणों तथा आन्तरिक उपद्रवों से रक्षा करने के लिए सेना और पुलिस का संगठन करता है। जीवन के अधिकार के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मरक्षा करने का भी अधिकार है। मनुष्य का जीवन समाज की निधि है। उसकी रक्षा करना राज्य का परम कर्तव्य है। इसलिए किसी व्यक्ति की हत्या करना राज्य के विरुद्ध घोर अपराध माना जाता है। यही नहीं, आत्महत्या का प्रयत्न करना भी अपराध माना जाता है, परन्तु राज्य उस व्यक्ति के जीवन के अधिकार को समाप्त कर देता है जो समाज का शत्रु बन जाती है तथा दूसरों की हत्या करता फिरता है।

सम्पत्ति का अधिकार- सम्पत्ति जीवन के विकास के लिए आवश्यक है। इसलिए व्यक्ति को निजी सम्पत्ति रखने का अधिकार दिया जाता है। कोई उसकी सम्पत्ति छीन नहीं सकता अन्यथा चोरी अथवा डाका डालने को अपराध माना जाता है। बिना कानूनी कार्रवाई किए तथा उचित मुआवजा दिए राज्य भी किसी व्यक्ति की सम्पत्ति जब्त नहीं करता। यद्यपि पूँजीवादी राज्य में निजी सम्पत्ति की कोई सीमा नहीं रखी जाती, फिर भी समाजवादी राज्य में व्यक्तिगत सम्पत्ति रखने की एक सीमा है। अपनी शारीरिक मेहनत से प्राप्त धन रखने का वहाँ अधिकार होता है, परन्तु लोगों का शोषण करके सम्पत्ति इकट्ठी नहीं की जा सकती। आधुनिक कल्याणकारी राज्य में यद्यपि सम्पत्ति रखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता, परन्तु सरकार अधिक धन कमाने वालों पर अधिक-से-अधिक कर (Tax) लगाती है।