UP Board Solutions for Class 11 Physics Chapter 6 Work Energy and power (कार्य, ऊर्जा और शक्ति)

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अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1.
किसी वस्तु पर किसी बल द्वारा किए गए कार्य का चिह्न समझना महत्त्वपूर्ण है। सावधानीपूर्वक बताइए कि निम्नलिखित राशियाँ धनात्मक हैं या ऋणात्मक –

(a) किसी व्यक्ति द्वारा किसी कुएँ में से रस्सी से बँधी बाल्टी को रस्सी द्वारा बाहर निकालने में किया गया कार्य।
(b) उपर्युक्त स्थिति में गुरुत्वीय बल द्वारा किया गया कार्य।
(c) किसी आनत तल पर फिसलती हुई किसी वस्तु पर घर्षण द्वारा किया गया कार्य।
(d) किसी खुरदरे क्षैतिज तल पर एकसमान वेग से गतिमान किसी वस्तु पर लगाए गए बल द्वारा किया गया कार्य।
(e) किसी दोलायमान लोलक को विरामावस्था में लाने के लिए वायु के प्रतिरोधी बल द्वारा किया गया कार्य।

उत्तर :

(a) चूँकि मनुष्य द्वारा लगाया गया बल तथा बाल्टी का विस्थापन दोनों ऊपर की ओर दिष्ट हैं; अत: कार्य धनात्मक होगा।
(b) चूँकि गुरुत्वीय बल नीचे की ओर दिष्ट है तथा बाल्टी का विस्थापन ऊपर की ओर है; अतः गुरुत्वीय बल द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक होगा।
(c) चूँकि घर्षण बेल सदैव वस्तु के विस्थापन की दिशा के विपरीत दिष्ट होता है; अत: घर्षण बल द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक होगा।
(d) वस्तु पर लगाया गया बल घर्षण के विपरीत अर्थात् वस्तु की गति की दिशा में है; अत: इस बल द्वारा कृत कार्य धनात्मक होगा।
(e) वायु का प्रतिरोधी बल सदैव गति के विपरीत दिष्ट होता है; अतः कार्य ऋणात्मक होगा।

प्रश्न 2.
2kg द्रव्यमान की कोई वस्तु जो आरम्भ में विरामावस्था में है, 7N के किसी क्षैतिज बल के प्रभाव से एक मेज पर गति करती है। मेज का गतिज-घर्षण गुणांक 0:1 है। निम्नलिखित का परिकलन कीजिए और अपने परिणामों की व्याख्या कीजिए –

(a) लगाए गए बल द्वारा 10 s में किया गया कार्य।
(b) घर्षण द्वारा 10 s में किया गया कार्य।
(c) वस्तु पर कुल बल द्वारा 10 s में किया गया कार्य।
(d) वस्तु की गतिज ऊर्जा में 10 s में परिवर्तन।



व्याख्या – गतिज ऊर्जा में कुल-परिवर्तन (625 J) बाह्य बल द्वारा किए गए कार्य (875 J) से कम है। इसका कारण यह है कि बाह्य बल के द्वारा किए गए कार्य का कुछ भाग घर्षण के प्रभाव को समाप्त करने में व्यय होता है।

प्रश्न 3.
चित्र – 6.1 में कुछ एकविमीय स्थितिज ऊर्जा-फलनों के उदाहरण दिए गए हैं। कण की कुल ऊर्जा कोटि-अक्ष पर क्रॉस द्वारा निर्देशित की गई है। प्रत्येक स्थिति में, कोई ऐसे क्षेत्र बंताइए, यदि कोई हैं तो जिनमें दी गई ऊर्जा के लिए, कण को नहीं पाया जा सकता। इसके अतिरिक्त, कण की कुल न्यूनतम ऊर्जा भी निर्देशित कीजिए। कुछ ऐसे भौतिक सन्दर्भो के विषय में सोचिए जिनके लिए ये स्थितिज ऊर्जा आकृतियाँ प्रासंगिक हों।

उत्तर :
K.E. + P.E. = E (constant)
∴ K.E. = E – P.E.

(a) इस ग्राफ में x < a के लिए स्थितिज ऊर्जा वक्र, दूरी अक्ष के साथ सम्पाती है (P.E. = O) जबकि x > a के लिए स्थितिज ऊर्जा कुल ऊर्जा से अधिक है; अतः गतिज ऊर्जा ऋणात्मक हो जाएगी जो कि असम्भव है।

अतः कण x > a क्षेत्र में नहीं पाया जा सकता।

प्रश्न 4.
रेखीय सरल आवर्त गति कर रहे किसी कण का (d) स्थितिज ऊर्जा फलन v (x) = 1/2 kx2 / 2 है, जहाँ k दोलक का बल नियतांक है। k= 0.5 N m-1 के लिए v (x) व x के मध्य ग्राफ चित्र-6.2 में दिखाया गया है। यह दिखाइए कि इस विभव के अन्तर्गत गतिमान कुल 1J ऊर्जा वाले कण को अवश्य ही ‘वापस आना चाहिए जब यह x = ± 2 m पर पहुँचता है।


प्रश्न 5.
निम्नलिखित का उत्तर दीजिए –

(a) किसी रॉकटे का बाह्य आवरण उड़ान के दौरान घर्षण के कारण जल जाता है। जलने के लिए आवश्यक ऊष्मीय ऊर्जा किसके व्यय पर प्राप्त की गई रॉकेट या वातावरण?

(b) धूमकेतु सूर्य के चारों ओर बहुत ही दीर्घवृत्तीय कक्षाओं में घूमते हैं। साधारणतया धूमकेतु पर सूर्य का गुरुत्वीय बल धूमकेतु के लम्बवत नहीं होता है। फिर भी धूमकेतु की सम्पूर्ण कक्षा में गुरुत्वीय बल द्वारा किया गया कार्य शून्य होता है। क्यों?

(c) पृथ्वी के चारों ओर बहुत ही क्षीण वायुमण्डल में घूमते हुए किसी कृत्रिम उपग्रह की ऊर्जा धीरे-धीरे वायुमण्डलीय प्रतिरोध (चाहे यह कितना ही कम क्यों न हो) के विरुद्ध क्षय के कारण कम होती जाती है फिर भी जैसे-जैसे कृत्रिम उपग्रह पृथ्वी के समीप आता है तो उसकी चाल में लगातार वृद्धि क्यों होती है?

(d) चित्र-6.3 (i) में एक व्यक्ति अपने हाथों में 15 kg का कोई द्रव्यमान लेकर 2 m चलता है। चित्र-6.3 (ii) में वह उतनी ही दूरी अपने पीछे रस्सी को खींचते हुए चलता है। रस्सी घिरनी पर चढ़ी हुई है और उसके दूसरे सिरे पर 15 kg का द्रव्यमान लटका हुआ है। परिकलन कीजिए कि किस स्थिति में किया गया कार्य अधिक है?

उत्तर :

(a) बाह्य आवरण के जलने के लिए आवश्यक ऊष्मीय ऊर्जा रॉकेट की यान्त्रिक ऊर्जा (K.E. + P.E.) से प्राप्त की गई।

(b) धूमकेतु पर सूर्य द्वारा आरोपित गुरुत्वाकर्षण बल एक संरक्षी बल है। संरक्षी बल के द्वारा बन्द पथ में गति करने वाले पिण्ड पर किया गया नेट कार्य शून्य होता है; अत: धूमकेतु की सम्पूर्ण कक्षा में सूर्य ‘क गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा कृत कार्य शून्य होगा।

(c) जैसे-जैसे उपग्रह पृथ्वी के समीप आता है वैसे-वैसे उसकी गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा घटती है, ऊर्जा संरक्षण के अनुसार गतिज ऊर्जा बढ़ती जाती है; अत: उसकी चाल बढ़ती जाती है। कुल ऊर्जा का कुछ भाग घर्षण बल के विरुद्ध कार्य करने में खर्च हो जाती है।

(d) (i) इस दशा में व्यक्तिद्रव्यमान को उठाए रखने के लिए भार के विरुद्ध ऊपर की ओर बल लगाता है जबकि उसका विस्थापन क्षैतिज दिशा में है (θ = 90°)

∴ मनुष्य द्वारा कृत कार्य W = F d cos 90° = 0

(ii) इस दशा में पुली मनुष्य द्वारा लगाए गए क्षैतिज बल की दिशा को ऊर्ध्वाधर कर देती है तथा द्रव्यमान का विस्थापन भी ऊपर की ओर है (θ = 0° )

∴ मनुष्य द्वारा कृत कार्य W = m g h cos 0° = 15 kg × 10 m s-2 × 2 m = 300 J

अतः दशा (ii) में अधिक कार्य किया जाएगा।

प्रश्न 6.
सही विकल्प को रेखांकित कीजिए –

(a) जब कोई संरक्षी बल किसी वस्तु पर धनात्मक कार्य करता है तो वस्तु की स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है/घटती है/अपरिवर्ती रहती है।
(b) किसी वस्तु द्वारा घर्षण के विरुद्ध किए गए कार्यका परिणाम हमेशा इसकी गतिज/स्थितिज ऊर्जा में क्षय होता है।
(c) किसी बहुकण निकाय के कुल संवेग-परिवर्तन की दर निकाय के बाह्य बल/ आन्तरिक बलों के जोड़ के अनुक्रमानुपाती होती है।
(d) किन्हीं दो पिण्डों के अप्रत्यास्थ संघट्ट में वे राशियाँ, जो संघट्ट के बाद नहीं बदलती हैं; निकाय की कुल गतिज ऊर्जा/कुल रेखीय संवेग/कुल ऊर्जा हैं।

उत्तर :

(a) घटती है, क्योंकि संरक्षी बल के विरुद्ध किया गया कार्य (बाह्य बल द्वारा धनात्मक कार्य) ही स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित होता है।
(b) गतिज ऊर्जा, क्योंकि घर्षण के विरुद्ध कार्य तभी होता है जबकि गति हो रही हो।
(c) बाह्य बल, क्योंकि बहुकण निकाय में आन्तरिक बलों का परिणामी शून्य होता है तथा आन्तरिक बल संवेग परिवर्तन के लिए उत्तरदायी नहीं होते।
(d) कुल रेखीय संवेग

प्रश्न 7.
बताइए कि निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य। अपने उत्तर के लिए कारण भी दीजिए –

(a) किन्हीं दो पिण्डों के प्रत्यास्थ संघट्ट में, प्रत्येक पिण्ड का संवेग व ऊर्जा संरक्षित रहती है।
(b) किसी पिण्ड पर चाहे कोई भी आन्तरिक व बाह्य बल क्यों न लग रहा हो, निकाय की कुल ऊर्जा सर्वदा संरक्षित रहती है।
(c) प्रकृति में प्रत्येक बल के लिए किसी बन्द लूप में, किसी पिण्ड की गति में किया गया कार्य शून्य होता है।
(d) किसी अप्रत्यास्थ संघट्ट में, किसी निकाय की अन्तिम गतिज ऊर्जा, आरम्भिक गतिज ऊर्जा से हमेशा कम होती है।

उत्तर :

(a) असत्य, पूर्ण निकाय का संवेग व गतिज ऊर्जा संरक्षित रहते हैं।
(b) सत्य, निकाय की कुल ऊर्जा सदैव संरक्षित रहती है।
(c) असत्य, केवल संरक्षी बलों के लिए, बन्द लूप में गति के दौरान पिण्ड पर किया गया कार्य शून्य होता है।
(d) सत्य, क्योंकि अप्रत्यास्थ संघट्ट में गतिज ऊर्जा की सदैव हानि होती है।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित का उत्तर ध्यानपूर्वक, कारण सहित दीजिए –

(a) किन्हीं दो बिलियर्ड-गेंदों के प्रत्यास्थ संघट्ट में, क्या गेंदों के संघट्ट की अल्पावधि में (जब वे सम्पर्क में होती हैं) कुल गतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है?
(b) दो गेंदों के किसी प्रत्यास्थ संघट्ट की लघु अवधि में क्या कुल रेखीय संवेग संरक्षित रहता
(c) किसी अप्रत्यास्थ संघट्ट के लिए प्रश्न (a) व (b) के लिए आपके उत्तर क्या हैं?
(d) यदि दो बिलियर्ड-गेंदों की स्थितिज ऊर्जा केवल उनके केन्द्रों के मध्य, पृथक्करण-दूरी पर निर्भर करती है तो संघट्ट प्रत्यास्थ होगा या अप्रत्यास्थ? (ध्यान दीजिए कि यहाँ हम संघट्ट के दौरान बल के संगत स्थितिज ऊर्जा की बात कर रहे हैं, न कि गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा की)

उत्तर :

(a) नहीं, संघट्ट काल के दौरान गेंदें संपीडित हो जाती हैं; अत: गतिज ऊर्जा, गेंदों की स्थितिज ऊर्जा में बदल जाती है।
(b) हाँ, संवेग संरक्षित रहता है।
(c) उत्तर उपर्युक्त ही रहेंगे।
(d) चूंकि स्थितिज ऊर्जा केन्द्रों की पृथक्करण दूरी पर निर्भर करती है, इसका यह अर्थ हुआ कि संघट्ट काल में पिण्डों के बीच लगने वाला संरक्षी बल है; अत: ऊर्जा संरक्षित रहेगी। इसलिए संघट्ट प्रत्यास्थ होगा।

प्रश्न 9.
कोई पिण्ड जो विरामावस्था में है, अचर त्वरण से एकविमीय गति करता है। इसको किसी। समय पर दी गई शक्ति अनुक्रमानुपाती है –

  1. t1/2
  2. t
  3. t3/2
  4. t2


प्रश्न 10.
एक,पिण्ड अचर शक्ति के स्रोत के प्रभाव में एक ही दिशा में गतिमान है। इसकाt समय में विस्थापन, अनुक्रमानुपाती है –

  1. t1/2
  2. t
  3. t3/2
  4. t2


प्रश्न 11.
किसी पिण्ड पर नियत बल लगाकर उसे किसी निर्देशांक प्रणाली के अनुसार z – अक्ष के अनुदिश गति करने के लिए बाध्य किया गया है, जो इस प्रकार है –

जहाँ  \hat { i }, \hat { j }तथा \hat { k }क्रमशः x , y एवं z – अक्षों के अनुदिश एकांक सदिश हैं। इस वस्तु को 2-अक्ष के अनुदिश 4 मी की दूरी तक गति कराने के लिए आरोपित बल द्वारा किया गया कार्य कितना होगा?

प्रश्न 12.
किसी अन्तरिक्ष किरण प्रयोग में एक इलेक्ट्रॉन और एक प्रोटॉन का संसूचन होता है जिसमें पहले कण की गतिज ऊर्जा 10 kev है और दूसरे कण की गतिज ऊर्जा 100 kev है। इनमें कौन-सा तीव्रगामी है, इलेक्ट्रॉन या प्रोटॉन? इनकी चालों को अनुपात ज्ञात कीजिए।

प्रश्न 13.
2 मिमी त्रिज्या की वर्षा की कोई बूंद 500 मी की ऊँचाई से पृथ्वी पर गिरती है। यह अपनी आरम्भिक ऊँचाई के आधे हिस्से तक (वायु के श्यान प्रतिरोध के कारण) घटते त्वरण के साथ गिरती है और अपनी अधिकतम (सीमान्त) चाल प्राप्त कर लेती है, और उसके बाद एकसमान चाल से गति करती है। वर्षा की बूंद पर उसकी यात्रा के पहले व दूसरे अर्द्ध भागों में गुरुत्वीय बल द्वारा किया गया कार्य कितना होगा? यदि बूंद की चाल पृथ्वी तक पहुँचने पर 10 मी / से-1 हो तो सम्पूर्ण यात्रा में प्रतिरोधी बल द्वारा किया गया कार्य कितना होगा?


प्रश्न 14.
किसी गैस-पात्र में कोई अणु200 m s-1 की चाल से अभिलम्ब के साथ 30° का कोण बनाता हुआ क्षैतिज दीवार से टकराकर पुनः उसी चाल से वापस लौट जाता है। क्या इस संघट्ट में संवेग संरक्षित है? यह संघट्ट प्रत्यास्थ है या अप्रत्यास्थ?

प्रश्न 15.
किसी भवन के भूतल पर लगा कोई पम्प 30 m3 आयतन की पानी की टंकी को 15 मिनट में भर देता है। यदि टंकी पृथ्वी तल से 40 m ऊपर हो और पम्प की दक्षता 30% हो तो पम्प द्वारा कितनी विद्युत शक्ति का उपयोग किया गया?


प्रश्न 16.
दो समरूपी बॉल-बियरिंग एक-दूसरे के सम्पर्क में हैं और किसी घर्षणरहित मेज। पर विरामावस्था में हैं। इनके साथ समान द्रव्यमान का कोई दूसरा बॉल-बियरिंग, जो आरम्भ में y चाल से गतिमान है. सम्मुख संघट्ट करता है। यदि संघट्ट प्रत्यास्थ है तो संघट्ट के पश्चात् निम्नलिखित (चित्र-6.4) में से कौन-सा परिणाम सम्भव है?


∴ केवल दशा (ii) में ही गतिज ऊर्जा संरक्षित रही है; अतः केवल यही परिणाम सम्भव है।

प्रश्न 17.
किसी लोलक के गोलक A को, जो ऊधर से 30° का कोण बनाता है, छोड़े जाने पर मेज पर, विरामावस्था में रखे दूसरे गोलक B से टकराता है जैसा कि चित्र-6.5 में प्रदर्शित है। ज्ञात कीजिए कि संघट्ट के पश्चात् गोलक A कितना ऊँचा उठता है? गोलकों के आकारों की उपेक्षा कीजिए और मान लीजिए कि संघट्ट प्रत्यास्थ है।

उत्तर :
दोनों गोलक समरूप हैं तथा संघट्ट प्रत्यास्थ है; अतः संघट्ट के दौरान लटका हुआ गोलक अपना सम्पूर्ण संवेग नीचे रखे गोलक को दे देता है और जरा भी ऊपर नहीं उठता।

प्रश्न 18.
किसी लोलक के गोलक को क्षैतिज अवस्था से छोड़ा गया है। यदि लोलक की लम्बाई 1.5 m है तो निम्नतम बिन्दु पर आने पर गोलक की चाल क्या होगी? यह दिया गया है कि इसकी प्रारम्भिक ऊर्जा का 5% अंश वायु प्रतिरोध के विरुद्ध क्षय हो जाता है।


प्रश्न 19.
300 kg द्रव्यमान की कोई ट्रॉली, 25 kg रेत का बोरा लिए हुए किसी घर्षणरहित पथ पर 27 km h-1 की एकसमान चाल से गतिमान है। कुछ समय पश्चात बोरे में किसी छिद्र से रेत 0.05 kg s-1 की दर से निकलकर ट्रॉली के फर्श पर रिसने लगती है। रेत का बोरा खाली होने के पश्चात् ट्रॉली की चाल क्या होगी?
उत्तर :
ट्रॉली तथा रेत का बोरा एक ही निकाय के अंग हैं जिस पर कोई बाह्य बल नहीं लगा है (एकसमान वेग के कारण); अत: निकाय का रैखिक संवेग नियत रहेगा भले ही निकाय में किसी भी प्रकार का आन्तरिक परिवर्तन (रेत ट्रॉली में ही गिर रहा है, बाहर नहीं) क्यों न हो जाए। अतः ट्रॉली की चाल 27 km h-1 ही बनी रहेगी।

प्रश्न 20.
0.5 kg द्रव्यमान का एक कण = a x 3/2 वेग से सरल रेखीय मति करता है, जहाँ a = 5 m-1/2 s-1 है। x = 0 से x= 2m तक इसके विस्थापन में कुल बल द्वारा किया गया कार्य कितना होगा?


प्रश्न 21.
किसी पवनचक्की के ब्लेड, क्षेत्रफल A के वृत्त जितना क्षेत्रफल प्रसर्प करते हैं।
(a) यदि हवा υ वेग से वृत्त के लम्बवत दिशा में बहती है तो t समय में इससे गुजरने वाली वायु का द्रव्यमाने क्या होगा?
(b) वायु की गतिज ऊर्जा क्या होगी?
(c) मान लीजिए कि पवनचक्की हवा की 25% ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित कर देती है। यदि A = 30 मी2 और υ = 36 किमी/घण्टा-1 और वायु का घनत्व 1 : 2 किग्रा – मी-3  है। तो उत्पन्न विद्युत शक्ति का परिकलन कीजिए।

प्रश्न 22.
कोई व्यक्ति वजन कम करने के लिए 10 किग्रा द्रव्यमान को 0.5 मी की ऊँचाई तक 1000 बार उठाता है। मान लीजिए कि प्रत्येक बार द्रव्यमान को नीचे लाने में खोई हुई ऊर्जा क्षयित हो जाती है।
(a) वह गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध कितना कार्य करता है?
(b) यदि वसा 3.8 × 107 J ऊर्जा प्रति किलोग्राम आपूर्ति करता हो जो कि 20% दक्षता की दर से यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है तो वह कितनी वसा खर्च कर डालेगा


प्रश्न 23.
कोई परिवार 8 kw विद्युत-शक्ति का उपभोग करता है।
(a) किसी क्षैतिज सतह पर सीधे आपतित होने वाली सौर ऊर्जा की औसत दर 200 w m-2 है। यदि इस ऊर्जा का 20% भाग लाभदायक विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित किया जा सकता है तो 8kw की विद्युत आपूर्ति के लिए कितने क्षेत्रफल की आवश्यकता होगी?
(b) इस क्षेत्रफल की तुलना किसी विशिष्ट भवन की छत के क्षेत्रफल से कीजिए।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 24.
0.012 kg द्रव्यमान की कोई गोली 70 ms-1  की क्षैतिज चाल से चलते हुए 0.4 kg द्रव्यमान के लकड़ी के गुटके से टकराकर गुटके के सापेक्ष तुरन्त ही विरामावस्था में आ जाती है। गुटके को छत से पतली तारों द्वारा लटकाया गया है। परिकलन कीजिए कि गुटका किस ऊँचाई तक ऊपर उठता है? गुटके में पैदा हुई ऊष्मा की मात्रा का भी अनुमान लगाइए।
हल : गोली का द्रव्यमान, m= 0.012 किग्रा
गोली की प्रारम्भिक चाल µ = 70 मी से-1 तथा गुटके का द्रव्यमान M = 0.4 किग्रा
जब गोली गुटके से टकराकर गुटके के सापेक्ष विरामावस्था में आ जाती है तो इसका अर्थ है कि गोली गुटके में घुसकर रुक जाती है तथा (गोली + गुटका) निकाय (माना) एक साथ υ वेग से गति करके (माना) h ऊँचाई ऊपर उठ जाता है।
संवेग संरक्षण के सिद्धान्त से,
mu + M × 0 = (M + m) υ

प्रश्न 25.
दो घर्षणरहित आनत पथ, जिनमें से एक की ढाल अधिक है। और दूसरे की ढाल कम है, बिन्दु A पर मिलते हैं। बिन्दु A से प्रत्येक पथ पर एक-एक पत्थर को विरामावस्था से नीचे सरकाया जाता है (चित्र-6.7) क्या ये पत्थर एक ही समय 40 पर नीचे पहुँचेंगे? क्या वे वहाँ एक ही चाल से पहुँचेंगे? व्याख्या कीजिए। यदि θ1 = 30°, θ2, = 60° और h= 10 m दिया है तो दोनों पत्थरों की चाल एवं उनके द्वारा नीचे पहुँचने में लिए गए समय क्या हैं?



प्रश्न 26.
किसी रूक्ष आनत तल पर रखा हुआ 1 kg द्रव्यमान का गुटका किसी 100 N m-1 स्प्रिंग नियतांक वाले स्प्रिंग से दिए गए चित्र 6.8 के अनुसार जुड़ा है। गुटके को सिंप्रग की बिना खिंची। स्थिति में, विरामावस्था से छोड़ा जाता है। गुटका विरामावस्था में आने से पहले आनत तल पर 10 cm नीचे खिसक जाता है। गुटके और आनत तल चित्र 6.8 के मध्य घर्षण गुणांक ज्ञात कीजिए। मान लीजिए कि स्प्रिंग का द्रव्यमान उप्रेक्षणीय है और घिरनी घर्षणरहित है।

हल : यहाँ दिये गये गुटके पर कार्य करने वाले विभिन्न बल चित्र 6.9 में प्रदर्शित किये गये हैं। नत समतल के लम्बवत् पिण्ड की साम्यावस्था के लिए तल की गुटके पर अभिलम्ब प्रतिक्रिया


प्रश्न 27.
0.3 kg द्रव्यमान का कोई बोल्ट 7 m s-1 की एकसमान चाल से नीचे आ रही किसी लिफ्ट की छत से गिरता है। यह लिफ्ट के फर्श से टकराता है (लिफ्ट की लम्बाई = 3m) और वापस नहीं लौटता है। टक्कर द्वारा कितनी ऊष्मा उत्पन्न हुई? यदि लिफ्ट स्थिर होती तो क्या आपको उत्तर इससे भिन्न होता?
हल : जड़त्व के कारण बोल्ट की प्रारम्भिक चाल, लिफ्ट की चाल के बराबर है। अत: लिफ्ट के सापेक्ष बोल्ट की प्रारम्भिक चाल शून्य है। जब बोल्ट नीचे गिरता है, इसकी स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में बदलती है, जो अन्त में ऊष्मा में बदल जाती है।

∴ उत्पन्न ऊष्मा = mgh = 3 × 9.8 × 3 जूल = 8.82 जूल।

यदि लिफ्ट स्थिर होती तो भी बोल्ट की लिफ्ट के सापेक्ष चाल शून्य होती; इसलिए उत्तर अब भी वही रहेगा अर्थात् अब भी इस दशा में उत्पन्न ऊष्मा = 8.82 जूल।

प्रश्न 28.
200 kg द्रव्यमान की कोई ट्रॉली किसी घर्षणरहित पथ पर 36 km h-1 की एकसमान चल से गतिमान है। 20 kg द्रव्यमान का कोई बच्चा ट्रॉली के एक सिरे से दूसरे सिरे तक (10 m दूर) ट्रॉली के सापेक्ष 4 m s-1 की चाल से ट्रॉली की गति की विपरीत दिशा में दौड़ता है। और ट्रॉली से बाहर कूद जाता है। ट्रॉली की अन्तिम चाल क्या है? बच्चे के दौड़ना आरम्भ करने के समय से ट्रॉली ने कितनी दूरी तय की ?

प्रश्न 29.
चित्र-6.10 में दिए गए स्थितिज ऊर्जा वक़ों में से कौन-सा वक्र सम्भवतः दो बिलियर्ड-गेंदों के प्रत्यास्थ संघट्ट का वर्णन नहीं करेगा? यहाँr गेंदों के केन्द्रों के मध्य की दूरी है और प्रत्येक गेंद का अर्धव्यास R है।

उत्तर :
जब गेंदें संघट्ट करेंगी और एक-दूसरे को संपीडित करेंगी तो उनके केन्द्रों के बीच की दूरी r, 2R से घटती जाएगी और इनकी स्थितिज ऊर्जा बढ़ती जाएगी।

प्रत्यानयन काल में गेंदें अपने आकार को वापस पाने की क्रिया में एक-दूसरे से दूर हटेंगी तो उनकी स्थितिज ऊर्जा घटेगी और प्रारम्भिक आकार पूर्णतः प्राप्त कर लेने पर (r = 2R) स्थितिज ऊर्जा शून्य हो जाएगी।

केवल ग्राफ (V) की ही उपर्युक्त व्याख्या हो सकती है; अतः अन्य ग्राफों में से कोई भी बिलियर्ड गेंदों के प्रत्यास्थ संघट्ट को प्रदर्शित नहीं करता है।

प्रश्न 30.
विरामावस्था में किसी मुक्त न्यूट्रॉन के क्षय पर विचार कीजिए n → p + e

प्रदर्शित कीजिए कि इस प्रकार के द्विपिण्ड क्षय से नियत ऊर्जा का कोई इलेक्ट्रॉन अवश्य उत्सर्जित होना चाहिए, और इसलिए यह किसी न्यूट्रॉन या किसी नाभिक के β – क्ष्य में प्रेक्षित सतत ऊर्जा वितरण का स्पष्टीकरण नहीं दे सकता। (चित्र-6.11)

[नोट – इस अभ्यास का हल उन कई तर्कों में से एक है जिसे डब्ल्यु पॉली द्वारा β – क्षय के क्षय उत्पादों में किसी तीसरे कण के अस्तित्व का पूर्वानुमान करने के लिए दिया गया था। यह कण न्यूट्रिनो के नाम से जाना जाता है। अब हम जानते हैं कि यह निजी प्रचक्रण 1/2 (जैसे e, p या n) का कोई कण है। लेकिन यह उदासीन है या द्रव्यमानरहित या इसका द्रव्यमान (इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान की तुलना में) अत्यधिक कम है और जो द्रव्य के साथ दुर्बलता से परस्पर क्रिया करता है। न्यूट्रॉन की उचित क्षय – प्रक्रिया इस प्रकार है : n → p + e + v]

उत्तर :
चूँकि न्यूट्रॉन विरामावस्था में है; अत: उक्त अभिक्रिया के अनुसार न्यूट्रॉन क्षय में एक नियत ऊर्जा मुक्त होनी चाहिए और β – कण को उस नियत ऊर्जा के साथ नाभिक से उत्सर्जित होना चाहिए। इस प्रकार नाभिक से उत्सर्जित β – कण की ऊर्जा नियत होनी चाहिए, जबकि दिया गया ग्राफ यह प्रदर्शित करता है कि उत्सर्जित β – कण शून्य से लेकर एक महत्तम मान के बीच कोई भी ऊर्जा लेकर बाहर आ सकता है; अतः न्यूट्रॉन क्षय की उक्त अभिक्रिया ग्राफ द्वारा प्रदर्शित हु-कणों के सतत ऊर्जा वितरण की व्याख्या नहीं कर सकता।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्य ऊर्जा प्रमेय है।
(i) न्यूटन के गति के प्रथम नियम का समाकल रूप
(ii) न्यूटन के द्वितीय नियम का समाकल रूप
(iii) न्यूटन के तृतीय नियम का समाकल रूप
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(i) न्यूटन के गति के प्रथम नियम का समाकल रूप

प्रश्न 2.
कार्य का S.I. मात्रक है।
(i) जूल
(ii) अर्ग
(iii) किग्रा-भार x मीटर
(iv) किलोवाट
उत्तर :
(i) जूल

प्रश्न 3.
यदि किसी पिण्ड का संवेग दोगुना कर दिया जाए, तो उसकी गतिज ऊर्जा हो जायेगी
(i) दोगुनी
(ii) आधी
(iii) चार गुनी
(iv) चौथाई
उतर :
(ii) चार गुनी

प्रश्न 4.
किसी पिण्ड का द्रव्यमान दोगुना तथा वेग आधा करने पर उसकी गतिज ऊर्जा हो जायेगी
(i) आधी
(ii) दोगुनी
(iii) अपरिवर्तित
(iv) चौथाई
उत्तर :
(i) आधी

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन गतिज ऊर्जा का उदाहरण है।
(i) पृथ्वी-तल से 2 मीटर ऊँचाई पर उठा हुआ 5 किग्रा-भार का एक पिण्ड
(ii) चाबी भरी हुई घड़ी का स्प्रिंग
(iii) भूमि पर लुढ़कती क्रिकेट की गेंद
(iv) बन्द बेलन में पिस्टन द्वारा सम्पीडित गैस
उत्तर :
(iii) भूमि पर लुढ़कती क्रिकेट की गेंद

प्रश्न 6.
संरक्षी बल तथा स्थितिज ऊर्जा (U) में सम्बन्ध होता है।
(i) = ∆U
(ii) U = ∆ .
(iii) = ∆U
(iv) U = – ∆ .
उत्तर :
(iii) = ∆U

प्रश्न 7.
ऊर्जा संरक्षण के नियम का अभिप्राय है।
(i) कुल यान्त्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है।
(ii) कुल गतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है।
(iii) कुल स्थितिज ऊर्जा संरक्षित रहती है।
(iv) सभी प्रकार की ऊर्जाओं का योग संरक्षित रहता है।
उत्तर :
(iv) सभी प्रकार की ऊर्जाओं का योग संरक्षित रहता है।

प्रश्न 8.
शक्तिका S.I. मात्रक है।
(i) जूल
(ii) अश्वशक्ति
(iii) वाट
(iv) किलोवाट
उत्तर :
(iii) वाट

प्रश्न 9.
किलोवाट-घण्टा मात्रक है।
(i) शक्ति का
(ii) ऊर्जा का
(iii) दोनों का
(iv) किसी का भी नहीं
उत्तर :
(ii) ऊर्जा का

प्रश्न 10.
एक किलोवाट बराबर होता है।
(i) 1.34 अश्व-सामर्थ्य
(ii) 10 अश्व-सामर्थ्य
(iii) 746 अश्व-सामर्थ्य
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(i) 1.34 अश्व-सामर्थ्य

प्रश्न 11.
कार्य एवं सामर्थ्य में सम्बन्ध होता है।
(i) कार्य = सामर्थ्य x समय
(ii) कार्य = सामर्थ्य + समय
(iii) कार्य = समय/सामर्थ्य
(iv) कार्य = सामर्थ्य/समय
उत्तर :
(i) कार्य = सामर्थ्य x समय

प्रश्न 12.
एक मशीन 200 जूल कार्य 8 सेकण्ड में करती है। मशीन की सामर्थ्य होगी
(i) 25 वाट
(ii) 25 जूल
(iii) 1600 जूले-सेकण्ड
(iv) 25 जूल-सेकण्ड
उत्तर :
(i) 25 वाट

प्रश्न 13.
दो पिण्डों की प्रत्यास्थ टक्कर में
(i) निकाय की केवल गंतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है।
(ii) निकाय का केवल संवेग संरक्षित रहता है।
(iii) निकाय की गतिज ऊर्जा व संवेग दोनों संरक्षित रहते हैं।
(iv) निकाय की न तो गतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है और न ही संवेग
उत्तर :
(iii) निकाय की गतिज ऊर्जा व संवेग दोनों संरक्षित रहते हैं।

प्रश्न 14.
पूर्णतः अप्रत्यास्थ संघट्ट में होते हैं।
(i) संवेग एवं गतिज ऊर्जा दोनों संरक्षित
(ii) संवेग एवं गतिज ऊर्जा दोनों असंरक्षित
(iii) संवेग संरक्षित एवं गतिज ऊर्जा असंरक्षित
(iv) संवेग असंरक्षित एवं गतिज ऊर्जा संरक्षित
उत्तर :
(iii) संवेग संरक्षित एवं गतिज ऊर्जा असंरक्षित

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
1 जूल से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
यदि किसी वस्तु पर 1 न्यूटन का बल कार्य करता है और वस्तु को अपनी ही दिशा में 1 मीटर विस्थापित कर देता है तो बल द्वारा किया गया कार्य 1 जूल कहलाता है।
1 जूल = 1 न्यूटन × 1 मीटर अर्थात्
= 1 न्यूटन मीटर

प्रश्न 2.
एक क्षैतिज प्लेटफॉर्म पर अपने सिर पर बॉक्स रखकर कुली घूम रहा है। क्या वह गुरुत्व बल के विरुद्ध कोई कार्य कर रहा है? वह किस बल के विरुद्ध कार्य कर रहा है?
उत्तर :
उसकी गति क्षैतिज है और गुरुत्व बल ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर होता है, अत: वह कोई कार्य नहीं कर रहा है। परन्तु चलते समय वह घर्षण बल के विरुद्ध कार्य कर रहा है।

प्रश्न 3.
5.0 ग्राम द्रव्यमान की एक गेंद 1.0 किमी की ऊँचाई से गिर रही है। यह 50.0 मी/से के वेग से पृथ्वी से टकराती है। किये गये कार्य की गणना कीजिए। (g = 10 मी/से2)
हल : गुरुत्वीय बल f = mg = 5.0 × 10 = 50 न्यूटन
∴ कृत कार्य, W = बल × विस्थापन = 50 × 1000= 50,000 जूल

प्रश्न 4.
एक हल्की और एक भारी वस्तु के संवेग समान हैं तो किसकी गतिज ऊर्जा अधिक होगी?
उत्तर :
हल्की वस्तु की। (∵ K = p2/2m)

प्रश्न 5.
स्थितिज ऊर्जा किन कारणों से उत्पन्न होती है?
उत्तर :
वस्तु की विकृत अवस्था एवं स्थिति के कारण।

प्रश्न 6.
स्थितिज ऊर्जा का मान धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों ही हो सकते हैं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
ऊर्जा संरक्षण नियम से, कुल ऊर्जा E = K + U = नियतांक। अब क्योंकि गतिज ऊर्जा K = 1/2 mυ2, सदैव धनात्मक है, अत: U का मान धनात्मक या ऋणात्मक दोनों ही सम्भव हैं।

प्रश्न 7.
द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध लिखिए। यह किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर :
E = mc2 (आइन्स्टीन की द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध)।

प्रश्न 8.
किलोवाट-घण्टा तथा जूल में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर :
1 किलोवाट-घण्टा =3.6 × 106 जूल।

प्रश्न 9.
72 किमी प्रति घण्टाकी चाल से क्षैतिज सड़क पर चलने वाली कोई कार 180 न्यूटन बल का सामना कर रही है। उसके इंजन की शक्ति ज्ञात कीजिए।

प्रश्न 10.
अप्रत्यास्थ संघट्ट में ऊर्जा-हानि का क्या होता है?
उत्तर :
टकराने वाले पिण्डों की आन्तरिक उत्तेजन ऊर्जा ऊष्मीय तथा ध्वनि ऊर्जा में बदल जाती है।

प्रश्न 11.
प्रत्यास्थ टक्कर में ऊर्जा का आदान-प्रदान अधिकतम कब होता है?
उत्तर :
जब टकराने वाली वस्तुओं के द्रव्यमान बराबर होते हैं।

प्रश्न 12.
दर्शाइए कि समान द्रव्यमान की दो गतिशील वस्तुओं के प्रत्यास्थ संघटन के बाद उनके वेग आपस में बदल जाते हैं।
उत्तर :
माना संघट्टन के बाद उनके वेग क्रमशः υ1 तथा υ2 हैं तो संवेग संरक्षण के नियम से,

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्य क्या है? इसका S.I. मात्रक तथा विमीय सूत्र लिखिए।
उत्तर :
कार्य – बल लगाकर किसी वस्तु को बल की दिशा में विस्थापित करने की क्रिया को कार्य कहते
कार्य = बल × बल की दिशा में वस्तु का विस्थापन
W = F. s. कार्य एक अदिश राशि हैं।
कार्य का S.I. पद्धति में मात्रक जूल तथा विमा [ML2-T-2] है।

प्रश्न 2.
एक पिण्ड पर बल लगाकर उसे विस्थापित किया जाता है, बताइए

  1. पिण्ड पर किस दिशा में बल लगाने पर अधिकतम कार्य होगा?
  2. पिण्ड पर किस दिशा में बल लगाने पर कार्य शून्य होगा?

या
अधिकतम एवं न्यूनतम कार्य के लिए बल तथा विस्थापन के बीच कितना कोण होना चाहिए?
उत्तर :
पिण्ड पर किए गए कार्य का सूत्र w = F × s cos θ से,

(i) यदि 8 = 0° तो cos θ = 1 जो कि Cose का अधिकतम मान है। Wmax= F × s

अतः जब पिण्ड का विस्थापन लगाए गए बल की दिशा में होता है, अर्थात् θ = 0° तो किया गया कार्य अधिकतम होगा।

(ii) यदि θ = 90° तो cos 90° = 0 जो कि cos θ का न्यूनतम मान है। Wmin (न्यूनतम) = 0

अतः जब पिण्ड का विस्थापन लगाए गए बल के लम्बवत् होता है, अर्थात् θ = 90° तो किया गया कार्य शून्य (न्यूनतम) होगा।

प्रश्न 3.
गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं? किसी पिण्ड की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा का व्यजंक प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
किसी वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा उस कार्य के बराबर है जो गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध वस्तु को पृथ्वी के तल से उच्च स्थिति में रखने में किया जाता है।

किसी पिण्ड की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक – माना m द्रव्यमान का एक पिण्ड पृथ्वी तल से उठाकर h ऊँचाई पर रखा जाता है।

तब पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा = पिण्ड को गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध h ऊँचाई तक रखने में कृत कार्य = बाह्य बल (F) × दूरी (h)
परन्तु बाह्य बल = पिण्ड का भार = mg

∴ स्थितिज ऊर्जा = भार × ऊँचाई = (mg) × h = mgh

स्थितिज ऊर्जा (mgh) गुरुत्वीय के विरुद्ध कार्य करने के कारण है, इसलिए इसे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।

प्रश्न 4.
द्रव्यमान-ऊर्जा समलुल्यता का अर्थ स्पष्ट कीजिए। आइन्स्टाइन का द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर :
द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता – सन् 1905 में अल्बर्ट आइंस्टाइन ने प्रदर्शित किया कि द्रव्यमान तथा ऊर्जा एक-दूसरे के तुल्य हैं। द्रव्य को ऊर्जा एवं ऊर्जा को द्रव्य में परिवर्तित किया जा सकता है। उन्होंने द्रव्य को ऊर्जा में बदलने के लिए एक सरल समीकरण का प्रतिपादन किया जिसे द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता कहते हैं।
द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध E = mc2
(जहाँ m = द्रव्यमान तथा c = प्रकाश की निर्वात् में चाल 3 × 108 मी/से) इसे ही द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध कहते हैं।
1 किग्रा द्रव्यमान के तुल्य ऊर्जा E = 1 × (3 × 108) जूल = 9 × 1016 जूल

प्रश्न 5.
ऊर्जा संरक्षण का सिद्धान्त उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर :
ऊर्जा संरक्षण का सिद्धान्त – ऊर्जा संरक्षण सिद्धान्त के अनुसार, “ऊर्जा न तो नष्ट की जा सकती है और न ही इसे उत्पन्न किया जा सकता है इसका एक रूप से दूसरे रूप में रूपान्तरण ही सम्भव है। दूसरे शब्दों में, जब ऊर्जा का एक रूप विलुप्त होता है तो वही ऊर्जा इतने ही परिमाण में किसी और रूप में प्रकट हो जाती है।

यह व्यापक सिद्धान्त संरक्षी एवं असंरक्षी दोनों प्रकार के बलों के लिए समान उपयोगी है।

उदाहरण – बाँधों में संचित जल की स्थितिज ऊर्जा, टरबाइन की गतिज ऊर्जा में बदलती है जो अन्ततः जेनरेटर द्वारा विद्युत ऊर्जा में बदल दी जाती है।

प्रश्न 6.
प्रत्यास्थ तथा अप्रत्यास्थ संघट्ट से आप क्या समझते हैं?
या
प्रत्यास्थ संघट्ट की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :

  1. प्रत्यास्थ संघट्ट – यदि संघट्ट के दौरान निकाय की कुले गतिज ऊर्जा एवं संवेग नियत रहते हैं, तो संघट्ट प्रत्यास्थ संघट्ट कहलाता है। अपरमाणविक कणों (sub atomic particles) में संघट्ट प्रायः प्रत्यास्थ होता है। ऐसे संघट्टों में यांत्रिक ऊर्जा की हानि नहीं होती। दो स्टील की गेंदों का संघट्ट लगभग प्रत्यास्थ होता है।
  2. अप्रत्यास्थ संघट्ट – यदि संघट्ट के दौरान निकाय की कुल गतिज ऊर्जा नियत न रहे, तो संघट्ट अप्रत्यास्थ कहलाता है। दैनिक जीवन में होने वाले संघट्ट सामान्यत: अप्रत्यास्थ ही होते हैं। बन्दूक की गोली का लक्ष्य से संघट्ट अप्रत्यास्थ है। यदि दो वस्तुएँ संघट्ट के पश्चात् परस्पर चिपक जाती हैं, तो संघट्ट पूर्णत: अप्रत्यास्थ कहलाता है। दीवार के साथ कीचड़ का संघट्ट पूर्णतः अप्रत्यास्थ है।

प्रश्न 7.
10 किग्रा के द्रव्यमान की, जिसका वेग 5 मीटर/सेकण्ड है, एक अन्य 10 किग्रा के द्रव्यमान से, जो विरामावस्था में है, सम्मुख प्रत्यास्थ टक्कर होती है। टक्कर के बाद दोनों द्रव्यमानों के वेग ज्ञात कीजिए।

चूँकि टक्कर पूर्ण प्रत्यास्थ है तथा दोनों द्रव्यमान बराबर हैं, अतः टक्कर के पश्चात् दूसरा द्रव्यमान 5 मी/से के वेग से गति करेगा तथा पहला विरामावस्था में आ जायेगा। अतः टक्कर के बाद υ1 = 0 तथा υ2 =5 मी/से।

प्रश्न 8.
4.0 मी/से वेग से गतिमान एक 10 किग्रा द्रव्यमान की वस्तु एक घर्षणहीन मेज से जुड़े हुए स्प्रिंग से टकराती है और स्थिर हो जाती है। यदि स्प्रिंग का बल नियतांक 4 × 105 न्यूटन/मी हो तो स्प्रिंग की लम्बाई में कितना परिवर्तन होगा?

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्य-ऊर्जा प्रमेयः बताइए तथा उसको सिद्ध कीजिए। इस प्रमेय की उपयोगिता समझाइए।
या
कार्य-ऊर्जा प्रमेय का कथन लिखिए।
या
कार्य-ऊर्जा प्रमेय का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
कार्य-ऊर्जा प्रमेय –“जब किसी बाह्य बल द्वारा किसी वस्तु पर कुछ कार्य किया जाता है तो वस्तु की गतिज ऊर्जा में इस कार्य के बराबर वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत यदि कोई वस्तु किसी अवरोधी बल के विरुद्ध कुछ कार्य करती है.तो उसकी गतिज ऊर्जा में इस कार्य के बराबर कमी हो जाती है।”

अतः कार्य-ऊर्जा प्रमेय के अनुसार, “कार्य तथा गतिज ऊर्जा एक-दूसरे के समतुल्य हैं तथा गतिज ऊर्जा में परिवर्तन किये गये कार्य के बराबर होता है।”

उपपत्ति Proof – स्थिति 1 : जब वस्तु पर अचर (constant) बल लगा हो – माना एक अचर या नियत बल , m द्रव्यमान की वस्तु पर कार्य करता है। यदि इस बल के कारण, बल की दिशा में, विस्थापन हो तो किया गया कार्य

W = . = Fs

यदि बल द्वारा वस्तु में त्वरण a उत्पन्न होता है, तो F = ma (न्यूटन के गति विषयक द्वितीय नियम से)
∴ w = (ma) s = m (as) ……(1)
वस्तु के प्रारम्भिक और अन्तिम वेगों के परिमाण क्रमशः µ तथा υ हैं तब गति की तृतीय समीकरण υ2 = u2 +2as से,


अत: किसी नियत बल द्वारा किसी वस्तु पर किया गया कार्य उसकी गतिज ऊर्जा में परिवर्तन के बराबर होता है। (यही कार्य-ऊर्जा प्रमेय का कथन है।)

स्थिति 2 : जब वस्तु पर परिवर्ती (variable) बल लगा हो – माना m द्रव्यमान का एक कण बिन्दु A से B तक। एक वक्र के अनुदिश (चित्र 6.12) एक परिवर्ती बल के आधीन गति करता है। अब यदि कण के बिन्दु A से B तक की यात्रा के मध्य कृत कार्य की गणना करनी हो तो ऐसी दशा में बिन्दु A व B के बीच के पथ को ∆x लम्बाई के छोटे-छोटे खण्डों में इस प्रकार विभाजित किया जाना चाहिए कि इन खण्डों में बल F लगभग नियत रहे। यदि प्रथम अन्तराल के मध्य औसत बल F1 हो तथा यह लघुखण्ड ∆X1, से θ1, कोण बनाता हो। इसी प्रकार द्वितीय लघु खण्ड ∆x2 पर लग रहा औसत बल F2 हो और यह खण्ड ∆X2 से θ2 कोण बनाता हो तब,

अत: यह स्पष्ट है कि परिवर्ती बल द्वारा किया गया कार्य वस्तु की गतिज ऊर्जा में परिवर्तन के बराबर होता है (यही कार्य ऊर्जा-प्रमेय का कथन है)। इस प्रकार कार्य-ऊर्जा प्रमेय, चाहे बल नियत हो या परिवर्ती, दोनों ही स्थितियों में सत्य होती है।

कार्य-ऊर्जा प्रमेय की उपयोगिता – अनेक समस्याओं में बल और उसके विस्थापन का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं होता है, अत: बल द्वारा किये गये कार्य की गणना सीधे ही नहीं की जा सकती। ऐसी समस्याओं में प्रायः वस्तु की या निकाय की गतिज ऊर्जा में वृद्धि या कमी को आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।

गतिज ऊर्जा में यह परिवर्तन ही बल द्वारा किये गये कार्य के बराबर होता है।

प्रश्न 2.
किसी पिण्ड की यान्त्रिक-ऊर्जा से क्या तात्पर्य है? मुक्त रूप से गिरते हुए पिण्ड के लिए यान्त्रिक ऊर्जा के संरक्षण सिद्धान्त की पुष्टि कीजिए।
या
सिद्ध कीजिए कि मुक्त रूप से गिरते हुए पिण्ड में प्रत्येक बिन्दु पर स्थितिज ऊर्जा तथा गतिज ऊर्जा का योग सदैव स्थिर रहता है।
उत्तर :
यान्त्रिक-ऊर्जा के संरक्षण का नियम-यदि बल संरक्षी है, तो कण की यान्त्रिक ऊर्जा नियत रहती है। अर्थात्

मुक्त रूप से गिरते हुए पिण्ड का उदाहरण

मुक्त रूप से गिरते हुए पिण्ड की यान्त्रिक ऊर्जा (अर्थात् गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा) नियत रहती है। इसे गणनों द्वारा निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है
माना m द्रव्यमान की कोई वस्तु पृथ्वी तंल से h ऊँचाई पर स्थित बिन्दु A से गिरती है। प्रारम्भ में बिन्दु A पर गतिज ऊर्जा शून्य है और केवल स्थितिज ऊर्जा है।

∴A बिन्दु पर वस्तु में कुल ऊर्जा
= गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा
= 0 + mgh = mgh …(1)
माना गिरते समय किसी क्षण वस्तु बिन्दु B पर है, जो अपनी प्रारम्भिक स्थिति से x दूरी गिर चुकी है। यदि बिन्दु B पर वस्तु का वेग υ हो, तो सूत्र
υ2 = u2 + 2as
υ2 = 0 + 2gx = 2gx

∴ बिन्दु B पर वस्तु की गतिज ऊर्जा =2
= m x 2gx = mgx
बिन्दु B पर वस्तु की स्थितिज ऊर्जा = mg (h – x)

∴ बिन्दु B पर वस्तु की कुल ऊर्जा = गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा
= mgx + mg (h – x) = mgh …(2)

अब माना वस्तु पृथ्वी तल पर स्थित बिन्दु c के ठीक ऊपर है तथा वस्तु पृथ्वी से ठीक टकराने ही वाली है। अब उसकी स्थितिज ऊर्जा शून्य है। वस्तु द्वारा गिरी ऊँचाई = h
सूत्र = υ2 +u2 + 2as से, C पर वस्तु का वेग (a = g तथा s = h),
υ2 = 0 + 2gh = 2gh

C पर वस्तु की गतिज ऊर्जा = m (υ’)2 = m × 2gh = mgh
C पर वस्तु की कुल ऊर्जा = गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा
= mgh + 0 = mgh

इस प्रकार हम देखते हैं कि गिरती वस्तु के प्रत्येक बिन्दु पर गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा का योग नियत बना रहता है। अतः गुरुत्वीय बल के अन्तर्गत वस्तु की कुल यान्त्रिक ऊर्जा नियत रहती है।

प्रश्न 3.
प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा से आप क्या समझते हैं। किसी स्प्रिंग की प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक का निगमन कीजिए।
उत्तर :
प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा – किसी वस्तु में उसके सामान्य आकार अथवा विन्यास में परिवर्तन के कारण जो कार्य करने की क्षमता होती है, वस्तु की प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।

जब किसी प्रत्यास्थ वस्तु को उसकी सामान्य अवस्था से विकृत किया जाता है, तो वस्तु पर एक प्रत्यानंयन बल (restoring force) कार्य करता है जो वस्तु को उसकी सामान्य अवस्था में लाने का प्रयत्न करता है। इस प्रत्यानयन बल के कारण ही विकृत वस्तु में कार्य करने की क्षमता निहित रहती है।

सिंप्रग की प्रत्यास्थ ऊर्जा के लिए व्यंजक – जब किसी स्प्रिंग को संपीडित या प्रसारित किया जाता है, तो स्प्रिंग में एक प्रत्यानयन बल (restoring force) कार्य करता है, जो स्प्रिंग में होने वाले परिवर्तन का विरोध करता है। अतः लगाए गए बाह्य बल को प्रत्यानयन बल के विरूद्ध कार्य करना पड़ता है जो स्प्रिंग में प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।

अतः संपीडित अथवा प्रसारित स्प्रिंग में जो कार्य करने की क्षमता निहित रहती है, स्प्रिंग की प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।

माना एक भारहीन एवं पूर्ण प्रत्यास्थ स्प्रिंग का एक सिरा एक दृढ़ आधार (rigid support) से जुड़ा है तथा इसके दूसरे सिरे से m द्रव्यमान का एक गुटका सम्बन्धित है जो एक घर्षणरहित क्षैतिज समतल मेज पर गति के लिए स्वतन्त्र है।

स्प्रिंग की सामान्य स्थिति में गुटके की माध्य स्थिति बिन्दू o पर है। [चित्र-6.14 (a)] स्प्रिंग पर बाह्य बल लगाकर उसकी लम्बाई में ऋणात्मक वृद्धि करने पर स्प्रिंग पर एक प्रत्यानयन बल कार्य करता है जो स्प्रिंग की लम्बाई में वृद्धि के अनुक्रमानुपाती होता है।

यदि स्प्रिंग की लम्बाई में वृद्धि x हो, तब उस पर कार्यरत् है प्रत्यानयन बल F α – x अथवा F = – kx

जहाँ k एक नियतांक है जिसे स्प्रिंग का बल नियतांक या स्प्रिंग नियतांक कहते हैं।

सिंप्रग की लम्बाई में वृद्धि के लिए प्रत्यानयन बल के विपरीत दिशा में बराबर बाह्य बल लगाना पड़ता है। [चित्र – 6.14(b)]। अतः स्प्रिंग पर लगाया गया बाह्य बल
Fext = – F = – (- kx) = kx

बाह्य बल द्वारा स्प्रिंग की लम्बाई में अत्यन्त सूक्ष्म वृद्धि dx करने में किया गया कार्य
dw = Fext × dx = kx dx

बाह्य बल द्वारा स्प्रिंग की लम्बाई में x1 = 0 से x2 = x तक वृद्धि करने में किया गया कार्य

प्रश्न 4.
X – अक्ष में 0.1 किग्रा द्रव्यमान की एक गेंद 4.0 मी/से के वेग से गति करती हुई, उसी दिशा में 3.0 मी/से के वेग से गतिशील 0.2 किग्रा की दूसरी गेंद से टकराती है। टक्कर के बाद प्रथम गेंद 0.2 मी/से के वेग से वापस लौटने लगती है। दूसरी गेंद की टक्कर के बाद गतिज ऊर्जा की गणना कीजिए।
हल : दिया है, पहली गेंद का द्रव्यमान, m1 = 0.1 किग्रा,
पहली गेंद का वेग u1 = 4.0 मी/से,
दूसरी गेंद का द्रव्यमान m2 = 0.2 किग्रा
तथा दूसरी गेंद का वेग u2 = 3.0 मी/से
टक्कर के पश्चात् पहली गेंद का विपरीत दिशा में वेग υ1 = – 0.2 मी/से
(ऋणात्मक चिह्न इसलिए लिया गया है, क्योंकि गेंद टक्कर के बाद वापस लौटने लगती है।) संवेग संरक्षण के नियमानुसार,

प्रश्न 5.
0.5 किग्रा द्रव्यमान का एक पिण्ड 4.0 मी/से के वेग से एक चिकने तल पर गति कर रहा है। यह एक-दूसरे से 1.0 किग्रा के स्थिर पिण्ड से टकराता है और वे एक पिण्ड के रूप में एक साथ गति करते हैं। संघट्ट के समय ऊर्जा हास की गणना कीजिए।

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