UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 भारत का विदेशी व्यापार (अनुभाग – चार)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 भारत का विदेशी व्यापार (अनुभाग – चार)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
भारत में निर्यात व्यापार की तीन विशेषताएँ बताइट। [2012]
उत्तर :
भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएँ भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. अधिकांश भारतीय विदेशी व्यापार (लगभग 90%) समुद्री मार्गों द्वारा किया जाता है। हिमालय पर्वतीय अवरोध के कारण समीपवर्ती देशों एवं भारत के मध्य धरातलीय आवागमन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसी कारण देश का अधिकांश व्यापारे पत्तनों द्वारा अर्थात् समुद्री मार्गों द्वारा ही किया जाता है।

2. भारत का निर्यात व्यापार 27% पश्चिमी यूरोपीय देशों, 20% उत्तरी अमेरिकी देशों, 51% एशियाई एवं ऑस्ट्रेलियाई देशों तथा 20% अफ्रीकी एवं दक्षिणी अमेरिकी देशों से किया जाता है। कुल निर्यात व्यापार का 61.1% भाग विकसित देशों (सं० रा० अमेरिका 17.4%, जापान 7.2%, जर्मनी 6.8% एवं ब्रिटेन 5.8%) को किया जाता है। इसी प्रकार आयात व्यापार 26% पश्चिमी यूरोपीय देशों, 39% एशियाई एवं ऑस्ट्रेलियाई देशों, 13% उत्तरी अमेरिकी देशों तथा 7% अफ्रीकी देशों से किया जाता है।

3. यद्यपि भारत में विश्व की लगभग 17% जनसंख्या निवास करती है, परन्तु विश्व व्यापार में भारत का भाग 0.5% से भी कम है, जबकि अन्य विकसित एवं विकासशील देशों का भाग इससे कहीं अधिक है। इस प्रकार देश के प्रति व्यक्ति विदेशी व्यापार का औसत अन्य देशों से बहुत कम है।

4. भारत के विदेशी व्यापार का भुगतान सन्तुलन स्वतन्त्रता के बाद से ही हमारे पक्ष में नहीं रहा है। सन् 1960-61 ई० का तथा 1970-71 ई० में भुगतान सन्तुलन हमारे पक्ष में रहा है। सन् 1980-81 ई० में घाटा ₹ 5,838 करोड़ था, 1990-91 ई० में यह घाटा ₹ 10,635 करोड़ तक पहुँच गया। वर्ष 1999-2000 में व्यापार घाटा १ 55,675 करोड़ हो गया। परन्तु 2000-2001 ई० में इस घाटे में कुछ गिरावट आई और यह घटकर ₹ 27,302 करोड़ हो गया है। तत्पश्चात् पुन: इस घाटे में वृद्धि होनी शुरू हो गयी। वर्ष 2005-06 के आँकड़ों के मुताबिक इस घाटे के ₹ 1,75,727 करोड़ होने का ” अनुमान है। वर्ष 2006-07 में विदेशी व्यापार में घाटा 56 अरब डॉलर से अधिक का रहा। 2011-12 में व्यापार घाटा बढ़कर 8,85,492 करोड़ हो गया। अमेरिकी डॉलर के हिसाब से 184.5 बिलियन डॉलर का हो गया। घाटे में वृद्धि का प्रमुख कारण आयात में भारी वृद्धि का होना है। आयात में भारी वृद्धि पेट्रोलियम पदार्थों के आयात के कारण हुई है।

5. देश का अधिकांश विदेशी व्यापार लगभग 35 देशों के मध्य होता है, जो विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के आधार पर किया जाता है।

6. विगत दो दशकों में भारत के आयातों की प्रकृति में भारी परिवर्तन हुए हैं। पहले भारत निर्मित माल का अधिक आयात करता था, किन्तु अब खाद्य तेल, पेट्रोलियम तथा उसके उत्पाद, स्नेहक पदार्थ, उर्वरक, कच्चे माल तथा पूँजीगत वस्तुओं का भी आयात करने लगा है।

7. निर्यातों की प्रकृति में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। पहले भारत के निर्यात पदार्थों में कृषि तथा खनन-आधारित कच्चे मालों की प्रधानता थी, अब भारत सूती वस्त्र, सिले-सिलाये वस्त्र, जूट का ग़मान, चमड़ा निर्मित सामान, अभ्रक, मैंगनीज, लौह-अयस्क, मशीनरी, साइकिल, पंखे, फर्नीचर, रेल के इंजन तथा उपकरण, सीमेण्ट, हौजरी, हस्त निर्मित वस्तुएँ, रत्न-जवाहरात, आभूषण आदि का निर्यात करता है।

8. 31 अगस्त, 2004 ई० में भारत ने नई निर्यात नीति लागू कर दी है। इस नीति के तहत निर्यात क्षेत्र को सेवा कर से मुक्त कर दिया गया है तथा लघुत्तर व कुटीर उद्योगों हेतु निर्यात संवर्द्धन पूँजीगत सामान योजना के तहत निर्यात दायित्व पूरा करने की समय सीमा को आठ वर्षों की बजाय 12 वर्ष किया गया है।

प्रश्न 2.
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्त्व तथा भारतीय निर्यातों और आयातों की दिशा पर प्रकाश डालिए। [2017]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्त्व पर एक नोट लिखिए।
या
भारत के विदेशी व्यापार की दिशा लिखिए। किसी देश के लिए विदेशी व्यापार का महत्त्व समझाइए। [2010]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्यात व्यापार के तीन महत्त्व लिखिए। [2013]
उत्तर :

भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार का महत्त्व

किसी भी देश का विदेशी व्यापार उसके आर्थिक विकास का दर्पण होता है। विदेशी व्यापार के दो घटक होते हैं –

  1. आयात तथा
  2. निर्यात। विदेशी व्यापार से प्रत्येक देश लाभान्वित होता है।

निम्नलिखित तथ्यों से भारत के विदेशी व्यापार का महत्त्व स्पष्ट होता है –

1. प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग – एक देश ऐसे उद्योगों की स्थापना एवं संचालन करता है, जिनसे उसे अधिकतम तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है और वह उस बाजार (देश) में अपनी उत्पादित वस्तुओं को बेचता है, जहाँ उसे वस्तुओं का सर्वाधिक मूल्य मिलता है। फलत: वह उपलब्ध प्राकृतिक ‘ संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करता है।

2. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन – विदेशी व्यापार के माध्यम से देश में उद्योग-धन्धों को विकसित करने के लिए आवश्यक उपकरण, कच्चा माल व तकनीकी ज्ञान सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं। फलतः देश में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।

3. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सद्भावना में वृद्धि – विदेशी व्यापार के फलस्वरूप विभिन्न देशों के नागरिक एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं और एक-दूसरे के विचारों एवं दृष्टिकोणों से परिचित होते हैं। फलस्वरूप सांस्कृतिक सहयोग एवं परस्पर विश्वास में वृद्धि होती है।

4. सस्ती वस्तुओं की उपलब्धि – विदेशी व्यापार के फलस्वरूप विदेशों से सस्ती एवं उत्तम वस्तुएँ उपलब्ध होने लगती हैं। इन वस्तुओं के उपभोग से लोगों के जीवन-स्तर एवं आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है।

5. भौगोलिक श्रम-विभाजन – विदेशी व्यापार के स्वतन्त्र होने पर प्रत्येक देश उन वस्तुओं का उत्पादन करता है, जिनसे उसे सर्वाधिक प्राकृतिक लाभ प्राप्त होता है अथवा जिनकी उत्पादन-लागत न्यूनतम होती है। इस प्रकार विदेशी व्यापार की क्रियाएँ भौगोलिक श्रम-विभाजन को सम्भव बनाती हैं।

6. उपभोक्ताओं को लाभ – उत्पादन अनुकूलतम परिस्थितियों में होने के कारण वस्तु की उत्पादन लागत कम हो जाती है, जिससे उपभोक्ताओं को उत्तम वस्तुएँ कम कीमत पर देश में ही उपलब्ध हो जाती हैं। इससे उनके जीवन-स्तर में वृद्धि होती है।

7. उत्पादन व तकनीकी क्षमता में सुधार – विदेशी व्यापार के कारण देश के उद्योगपतियों को सदैव विदेशी प्रतियोगिता का भय बना रहता है। वे जानते हैं कि यदि वे उच्चकोटि का उत्पादन कम लागत पर न कर सके तो उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग कम हो जाएगी। अतः वे अपनी कार्यकुशलता एवं उत्पादन तकनीकी में सुधार करते रहते हैं।

8. एकाधिकारी प्रवृत्ति पर अंकुश – विदेशी प्रतियोगिता के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में एकाधिकारी प्रवृत्ति पर अंकुश लगा रहता है, जिससे उपभोक्ता की एकाधिकारात्मक शोषण से रक्षा होती है।

9. कच्चे माल की उपलब्धि – विदेशी व्यापार के कारण विभिन्न देशों को आवश्यक कच्चा माल सरलता से उपलब्ध हो जाता है, जिससे देश के औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।

10. मूल्य-स्तर में समानता की प्रवृत्ति – विदेशी व्यापार के कारण विश्व के प्राय: सभी देशों में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में समानता की प्रवृत्ति पायी जाती है।

11. विदेशी विनिमय की उपलब्धि – विदेशी व्यापार विदेशी विनिमय को अर्जित करने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन है।

12. आय की प्राप्ति – विदेशी व्यापार के कारण सरकार को भारी मात्रा में आयात व निर्यात कर लगाकर आय की प्राप्ति होती है।

भारत के विदेशी व्यापार (आयात-निर्यात) की दिशा

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं –

  1. भारत का विदेशी व्यापार कॉमनवेल्थ देशों तक सीमित न रहकर विश्वव्यापी हो गया है।
  2. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत कच्चे पदार्थों (कृषि तथा खनिजों) का निर्यातक देश था, किन्तु स्वतन्त्रता के बाद उसके निर्यातों में तैयार माल सम्मिलित हुए तथा उनमें विविधता आ गयी।
  3. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत में पर्याप्त अन्नोत्पादन होता था, किन्तु देश के विभाजन के बाद गेहूँ तथा चावल के बड़े उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चले जाने से भारत को अन्न का आयात करना पड़ा।
  4. खाद्य एवं कृषिगत पदार्थ भारत के परम्परागत निर्यात पदार्थ रहे हैं, किन्तु अब भारत मशीनरी, सूती वस्त्र, सिले-सिलाये वस्त्र, हस्तनिर्मित वस्तुओं आदि का भी निर्यात करने लगा है।

भारतीय निर्यातों का आधे से अधिक भाग पश्चिमी यूरोप के विकसित देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान को, लगभग एक-तिहाई भाग पूर्वी यूरोप तथा अन्य विकासशील देशों को और केवल एक छोटा-सा भाग मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों को जाता है। भारत के निर्यातों में रूस और जापान का महत्त्व बढ़ा है तथा ब्रिटेन का एकाधिकार समाप्त हो गया है। भारत का अपने पड़ोसी देशों से व्यापार कम होता जा रहा है तथा पूर्व साम्यवादी देशों-पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया व रूस से बढ़ा है। भारत जिन देशों को निर्यात करता है, क्रमानुसार उनके नाम हैं—सं० रा० अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, इटली, सऊदी अरब, इराक, कुवैत, हॉलैण्ड, ईरान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया आदि।

भारतीय आयातों का आधे से अधिक भाग विकसित देशों से होता है। एक-चौथाई भाग पूर्वी यूरोपीय देशों एवं अन्य विकसित देशों से और एक बहुत बड़ा भाग (20%) मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों से होता है। भारत के आयात में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, पश्चिमी जर्मनी, कनाडा तथा जापान से होने वाले आयातों में विशेष वृद्धि हुई है। भारत के आयातों में ब्रिटेन का एकाधिकार समाप्त हो गया है और कुछ नये देशों; जैसे-ईरान और अन्य पूर्व साम्यवादी देशों के साथ व्यापार बढ़ा है। भारत जिन देशों से आयात करता है, क्रमानुसार उनके नाम हैं—सं० रा० अमेरिका, जापान, सऊदी अरब, इराक, रूस, जर्मनी, ईरान, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, कुवैत आदि।

प्रश्न 3.
भारत के प्रमुख आयातों का उल्लेख कीजिए। [2018]
या
भारत के आयात की चार प्रमुख मदें लिखिए।
उत्तर :

भारत के प्रमुख आयात

भारत विश्व के 140 देशों से 6,000 से अधिक वस्तुओं का आयात करता है। देश की विकासशील अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुरूप आयातों में भी भारी वृद्धि दर्ज हुई है। देश में आयात किये जाने वाले प्रमुख पदार्थ निम्नलिखित हैं –

1. पेट्रोल एवं पेट्रोलियम उत्पाद – भारत के आयात में पेट्रोल एवं पेट्रोलियम उत्पादों का विशिष्ट स्थान है। यह आयात बहरीन, फ्रांस, इटली, अरब, सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमेरिका, ईरान, इण्डोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, मैक्सिको, अल्जीरिया, म्यांमार, इराक, रूस आदि देशों से किया जाता है।

2. मशीनें – देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास के लिए भारी मात्रा में मशीनों का आयात किया जा रहा है। इनमें विद्युत मशीनों का आयात सबसे अधिक किया जाता है। इसके अतिरिक्त सूती वस्त्र उद्योग, कृषि, बुल्डोजर, शीत भण्डारण, चमड़ा, चाय एवं चीनी उद्योग, वायु-सम्पीडक, खनिज आदि अनेक प्रकार के उद्योगों से सम्बन्धित मशीनों का आयात ब्रिटेन, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, बेल्जियम, फ्रांस, जापान, कनाडा, चेक तथा स्लोवाक गणतन्त्र देशों से किया जाता है।

3. कपास एवं रद्दी रुई – भारत में उत्तम सूती वस्त्र तैयार करने के लिए लम्बे रेशे वाली कपास तथा विभिन्न प्रकार के कपड़ों के लिए रद्दी रुई विदेशों से आयात की जाती है। यह कपास एवं रुई मित्र, संयुक्त राज्य अमेरिका, तंजानिया, कीनिया, सूडान, पीरू, पाकिस्तान आदि देशों से मँगवायी जाती है।

4. अलौह धातुएँ, लोहे तथा इस्पात का सामान – इन वस्तुओं का कुल आयातित माल में दूसरा स्थान है। ऐलुमिनियम, पीतल, ताँबा, काँसा, सीसा, जस्ता, टिन आदि धातुएँ विदेशों से अधिक मात्रा में मँगवायी जाती हैं। इन वस्तुओं का आयात प्रायः ब्रिटेन, कनाडा, स्विट्जरलैण्ड, स्वीडन, संयुक्त राज्य अमेरिका, बेल्जियम, कांगो गणतन्त्र, मोजाम्बिक, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार, सिंगापुर, मलेशिया, रोडेशिया, जापान आदि देशों से किया जाता है।

5. उर्वरक एवं रसायन – अनेक रासायनिक उद्योगों के लिए रासायनिक कच्चे माल तथा उर्वरक आयात, किये जाते हैं। भारत में कृषि के विकास के लिए उर्वरकों की बहुत आवश्यकता है; क्योंकि देश में इनका उत्पादन यथेष्ट मात्रा में नहीं होता है। भारत इनको आयात संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, कनाडा आदि देशों से करता है।

6. खाद्यान्न एवं अन्य उत्पाद – अतिशय जनसंख्या तथा कुछ वर्षों में प्रतिकूल मौसम के कारण देश में खाद्यान्नों की कमी हो गयी है, जिससे देश को भारी मात्रा में इनका आयात करना पड़ा है। अमेरिका, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया खाद्यान्नों (मुख्यतः गेहूँ) के आयात के प्रमुख स्रोत हैं। खाद्यान्नों के अतिरिक्त भारत के द्वारा विदेशों से मोती तथा मूल्यवान व विकल्प रत्न भी मँगवाये जाते हैं एवं खाद्य तेल, कागज व गत्ता या लुगदी, कृत्रिम रेशे तथा औषधियों का आयात किया जाता है।

प्रश्न 4.
भारत के प्रमुख निर्यातों का उल्लेख कीजिए। [2017, 18]
या
भारत से निर्यात की जाने वाली किन्हीं तीन प्रमुख वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर :

भारत के प्रमुख निर्यात

भारत एक विकासशील देश है। इसके निर्यातों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। यह 190 देशों को 7,500 वस्तुओं का निर्यात करता है, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं –

1. जूट का सामान – भारत के निर्यात व्यापार में जूट का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसके निर्यात से विदेशी मुद्रा का 35% भाग प्राप्त होता है। इससे निर्मित बोरे, टाट, मोटे कालीन, फर्श, गलीचे, रस्से, तिरपाल आदि निर्यात किये जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, अर्जेण्टाइना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, अरब गणराज्य इसके मुख्य ग्राहक हैं। पच्चीस वर्ष पूर्व तक इसी के निर्यात को प्रथम स्थान प्राप्त था, किन्तु अब दूसरी वस्तुओं का निर्यात अधिक होने लगा है।

2. चाय – भारत द्वारा अपनी कुल चाय का 59% भाग ब्रिटेन को निर्यात किया जाता हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका (4%), रूस (12%), कनाडा (3%), ईरान (1%), अरब गणराज्य (6%), नीदरलैण्ड (2%) तथा सूडान एवं जर्मनी इसके अन्य प्रमुख ग्राहक हैं।

3. खालें, चमड़ा व चमड़े की वस्तुएँ – भारतीय चमड़े की माँग मुख्यत: ब्रिटेन (45%), जर्मनी (10%), फ्रांस (7%) एवं संयुक्त राज्य अमेरिका (9%) देशों में रहती है। अन्य ग्राहकों. में इटली, जापान, बेल्जियम और यूगोस्लाविया आदि देश हैं। भारत के निर्यात व्यापार की यह भी एक महत्त्वपूर्ण मंद है।

4. तम्बाकू – भारत द्वारा ब्रिटेन, जापान, पाकिस्तान, अदन, चीन, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों को तम्बाकू को निर्यात किया जाता है। भारत तम्बाकू के निर्यात से लगभग ₹ 1,000 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त करता है।

5. रसायन, मछली एवं समुद्री उत्पाद – भारत अमेरिका आदि देशों को प्रॉन, श्रिम्प आदि लोकप्रिय मछली किस्मों तथा अन्य समुद्री उत्पादों का निर्यात करता है। इनके अतिरिक्त भारत द्वारा रसायन, उससे सम्बद्ध उत्पाद, भेषज व प्रसाधन सामग्री का भी निर्यात किया जाता है।

6. खनिज पदार्थ – भारत अभ्रक, मैंगनीज तथा लौह-अयस्क का निर्यात करता है। अमेरिका तथा जर्मनी भारतीय अभ्रक के प्रमुख ग्राहक हैं। लौह धातु का निर्यात मुख्यतः जापान को किया जाता है।

7. सूती वस्त्र – भारत अपने सूती वस्त्रों का निर्यात इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, मलाया, म्यांमार, अदन, इथोपिया, सूडान, अफगानिस्तान, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों को करता है। इस क्षेत्र में जापान एवं चीन भारत से प्रतिस्पर्धा करने वाले देश हैं। अत: इसके निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन परिषद् की स्थापना की है।

8. इंजीनियरिंग का सामान – भारत ने इंजीनियरिंग के सामान का निर्यात करना भी प्रारम्भ कर दिया है। इसके अन्तर्गत मोटरें, रेल के डिब्बे, बिजली के पंखे, सिलाई की मशीनें, टेलीफोन, विद्युत उपकरण आदि प्रमुख हैं। भारत इन वस्तुओं का निर्यात-रूस, अमेरिका, हंगरी, श्रीलंका, इराक आदि देशों को करता है।

9. मसाले – भारत अमेरिका तथा यूरोपीय देशों को मसाले का निर्यात करता है।

10. आभूषण, रत्न एवं जवाहरात – भारत से स्वर्ण आभूषण, रत्नों तथा जवाहरातों के निर्यात भी किये जाते हैं।

प्रश्न 5.
व्यापार से क्या आशय है? ये कितने प्रकार के होते हैं? भारत के विदेशी व्यापार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
भारत के विदेशी व्यापार की किन्हीं दो अभिवन प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिए। [2018]
उत्तर :
दो पक्षों के मध्य वस्तुओं के ऐच्छिक, पारस्परिक एवं वैधानिक लेन-देन को व्यापार कहते हैं। एक देश के व्यापार को दो भागों में बाँटा जा सकता है-घरेलू व विदेशी। जब किसी देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों अथवा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो इसे आन्तरिक, घरेलू अथवा अन्तक्षेत्रीय व्यापार कहते हैं और जब विभिन्न राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो इसे विदेशी, बाह्य अथवा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। इस प्रकार विदेशी व्यापार से हमारा अभिप्राय विभिन्न राष्ट्रों के मध्य होने वाले व्यापार से है।

विदेशी व्यापार की विशेषताएँ – [संकेत-इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।

प्रश्न 6.
भारत की आयात-निर्यात नीति पर एक लेख लिखिए।
या
भारत की नवीन आयात-निर्यात नीति की चार विशेषताएँ लिखिए।
या
भारत के निर्यात में वृद्धि कैसे की जा सकती है? कोई दो सुझाव दीजिए। [2013]
या
भारत के विदेशी व्यापार की किन्हीं दो अभिनव प्रवृत्तियों की व्याख्यान कीजिए। [2018]
उत्तर :
भारत का आयात दो वित्तीय वर्षों को छोड़कर सदैव निर्यात से अधिक रहा है। इसलिए भारत का विदेशी व्यापार सन्तुलन भी प्रतिकूल ही रहा है। इस प्रतिकूलता को कम करने के लिए ही सरकार आयात-निर्यात नीति की घोषणा करती है, जिसका उद्देश्य आयातों को नियन्त्रित करना और निर्यातों को प्रोत्साहित करना होता है। आयात-निर्यात नीति, 1997-2002 ई० का उद्देश्य गत नीतियों की उपलब्धियों को सुदृढ़ करना और उदारीकरण की प्रक्रिया को आगे ले जाना था। कार्य-प्रणाली को सुचारु और सरल बनाने, परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को चरणबद्ध तरीके से हटाने और निर्यातक समुदाय के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने हेतु ठोस उपाय अपनाये गये तथा सभी मामलों में निर्यात सम्बन्धी अनिवार्यता को पूरा करने की अवधि बढ़ाकर 8 वर्ष कर दी गयी।

शुल्क में छूट दिये जाने की योजना का विस्तार किया गया है जिससे इसमें निर्यात पश्चात् निःशुल्क पुन:पूर्ति लाइसेन्स-योजना को सम्मिलित किया जा सके। निर्यात पूर्व डी०ई०पी०बी० योजना समाप्त कर दी गयी है। निर्यात पश्चात् डी०ई०पी०बी० योजना अभी चल रही है, किन्तु इसकी दरों को युक्तिसंगत बनाया गया है। इसी प्रकार विश्वसनीय निर्यात लाभों को भी युक्तिसंगत बनाया गया है। निर्यातों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रतिबन्धों में ढील दी गयी है, बुनियादी सुविधाओं में सुधार लाने की घोषणा की गयी है तथा सभी निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों को मुक्त व्यापार क्षेत्र में बदल दिया गया है। इस प्रकार भारत की आयात-निर्यात नीति में निरन्तर संशोधन किये जा रहे हैं। इसी प्रकार अब पूँजीगत सामान, कच्चा माल, मध्यवर्ती माले, घटक सामान, उपभोज्य वस्तुएँ, कलपुर्जे, सहायक पुजें, औजार और अन्य सामान बिना किसी प्रतिबन्ध के आयात किये जा सकते हैं, बशर्ते कि ऐसा सामान आयात निषेध सूची में सम्मिलित न हो।

भारत ने 1 अप्रैल, 2001 ई० को अपनी नयी विदेशी व्यापार नीति की घोषणा की। नयी व्यापार नीति का उद्देश्य है कि निर्यातक लोग लालफीताशाही, जटिल प्रक्रियाओं और मनमाने निर्णयों से मुक्त होकर उत्पादन, निर्यात वृद्धि, बाजार और व्यापार पर ध्यान दें।

नयी विदेशी व्यापार नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं –

सरकार ने निर्यात की मात्रा में 20% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया है। सात सौ चौदह वस्तुओं के आयात को अप्रैल, 2000 से तथा 715 वस्तुओं के आयात को अप्रैल, 2001 से कोटा पाबन्दी से मुक्त कर दिया है। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 5 हजार से अधिक वस्तुओं को निर्यात-शुल्क से मुक्त करने और उनके लिए निर्यात लाइसेन्स खत्म करने का निश्चय किया है। सरकार का कहना है कि चीन की तरह उदार निवेश की व्यवस्था वाले विशेष आर्थिक क्षेत्र देश में स्थापित किये जाएँगे तथा रत्न, आभूषण, कृषि रसायनों, जैव औषधियों, चमड़ा, सिले हुए वस्त्रों, रेशम और ग्रेनाइट क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा देने के विशेष प्रयास किये जाएँगे। तटकर आयोग को मजबूत बनाया जाएगा।

नयी विदेश व्यापार-नीति देश को उदारीकरण और बाजार-व्यवस्था के लिए तैयार कर देश को आर्थिक मजबूती प्रदान करेगी।

प्रश्न 7.
भारत के विदेशी व्यापार की संरचना लिखिए।
उत्तर :

विदेशी व्यापार की संरचना

(i) आयात संरचना – भारत की आयात संरचना में तीन प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं –

  1. पूँजी वस्तुएँ; जैसे—मशीन, धातुएँ, अलौह धातुएँ, परिवहन साधन।
  2. कच्चा माल; जैसे-खनिज तेल, कपास, जूट तथा रासायनिक पदार्थ।
  3. उपभोक्ता वस्तुएँ; जैसे-खाद्यान्न, विद्युत उपकरण, औषधियाँ, वस्त्र, कागज आदि।

योजनाकाल में आयात संरचना में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं –

  1. इस्पात, खनिज तेल वे रासायनिक पदार्थों के आयात में तेजी से वृद्धि हुई है।
  2. मशीनों के आयात में वृद्धि-दर बढ़ी है।
  3. खाद्यान्नों के आयात में कमी हुई है।

(ii) निर्यात संरचना – भारत की निर्यात संरचना में चार प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं –

  1. खाद्यान्न; जैसे—अनाज, चाय, तम्बाकू, कॉफी, मसाले, काजू आदि।
  2. कच्चा माल जैसे—खालें, चमड़ा, ऊन, रुई, कच्चा लोहा, मैंगनीज, खनिज पदार्थ, हीरे-जवाहरात आदि।
  3. निर्मित वस्तुएँ; जैसे-जूट का सामान, कपड़ा, चमड़े का सामान, रेशम के वस्त्र, तैयार कपड़े, सीमेण्ट, रसायन, खेल का सामान, जूते आदि।
  4. पूँजीगत वस्तुएँ; जैसे-मशीनें, परिवहन उपकरण, लोहा-इस्पात, इन्जीनियरिंग वस्तुएँ, सिलाई मशीन आदि।

योजनाकाल में निर्यात संरचना में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं

  1. पटसन, वस्त्र, चाय, कच्ची धातु, काजू तथा तम्बाकू आदि परम्परागत वस्तुओं के निर्यात में निरन्तर वृद्धि हुई है।
  2. तम्बाकू, मसाले, अभ्रक, आदि के निर्यात में कमी हुई है।
  3. वनस्पति तेल, गोंद तथा रुई आदि के निर्यात में कमी हुई है।
  4. चमड़ा और चमड़े से बनी वस्तुएँ, खेल का सामान और परियोजनागत सामान के निर्यात की प्रगति में कमी आई है।
  5. गत कुछ वर्षों में निर्मित वस्तुओं के निर्यात में आशातीत वृद्धि हुई है। इनमें चमड़ा तथा उससे बने माल लोहा और इस्पात, रसायन और इन्जीनियरिंग का समान, शक्कर और हस्तशिल्प का सामान मुख्य हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
या
विदेशी व्यापार से होने वाले चार लाभ बताइए।
या
भारत के आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार के कोई दो योगदान बताइए।
उत्तर :

विदेशी व्यापार

व्यापार मुख्यत: दो प्रकार का होता है—(1) देशी व्यापार तथा (2) विदेशी व्यापार। विदेशी व्यापार का अर्थ उस व्यापार से है, जिसके अन्तर्गत दो या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय किया जाता है; उदाहरणार्थ, यदि हम इंग्लैण्ड से मशीनें आयात करें या ऑस्ट्रेलिया को खेल का सामान निर्यात करें, तो इन दोनों को ही विदेशी व्यापार कहा जाएगा।
[संकेत – विदेशी व्यापार के महत्त्व के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 2 देखें।]

प्रश्न 2.
आयात-निर्यात को स्पष्ट कीजिए तथा उनके एक-एक उदाहरण भारतीय सन्दर्भ में लिखिए।
उत्तर :
देश की आर्थिक समृद्धि एवं विकास आयात-निर्यात पर निर्भर करता है। जब दों या अधिक देश पारस्परिक रूप से वस्तुओं का आयात-निर्यात करते हैं तो इसे विदेशी व्यापार कहते हैं। आयात एवं निर्यात को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है –

आयात – जब कोई देश अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ अन्य देश से मँगाता है, तो इसे आयात कहा जाता है। इस प्रकार कोई भी देश किसी वस्तु का आयात इसलिए करता है कि या तो अमुक वस्तु का उत्पादन उस देश में नहीं किया जाता अथवा उसकी उत्पादन लागत उसके आयात मूल्य से अधिक पड़ती है। उदाहरण के लिए–भारत विदेशों से पेट्रोलियम का आयात करता है।

निर्यात – ज़ब कोई देश अपने अधिकतम उत्पादन को अन्य देश को भेजता है, तो उसे निर्यात कहा जाता है। इस प्रकार किसी वस्तु का निर्यात इसलिए किया जाता है कि उस देश में उत्पन्न की गयी उस अतिरिक्त उत्पादित वस्तु की माँग विदेशों में है तथा उसे निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है। उदाहरण के लिए-भारत द्वारा चाय विदेशों को भेजना निर्यात है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व भारत का विदेशी व्यापार परम्परागत तथा कृषि प्रधान देश की भाँति था। परन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् हुए औद्योगिक विकास ने भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप को काफी हद तक प्रभावित किया है। वर्तमान में भारत की निर्यात-सूची में 500 से अधिक वस्तुएँ हैं।

देश की औद्योगिक विकास की गति तीव्र होने से आयातों में भारी वृद्धि हुई है। साथ ही आयातों की प्रकृति भी बदलती है। अब मुख्य रूप से मशीनों, दुर्लभ कच्चे माल, तेल, रासायनिक पदार्थ आदि वस्तुओं का आयात होता है। निर्यात की तुलना में आयात अधिक होने के कारण भारत का व्यापार-सन्तुलन प्रतिकूल रहता है।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के बाद भारत में निर्यात की प्रवृत्ति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के निर्यातों में वृद्धि हुई है, किन्तु आयातों की तुलना में वृद्धि की दर धीमी रही है। निर्यात की मुख्य प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. योजना काल में निर्यातों में भारी वृद्धि हुई है और विविधता आयी है।
  2. हमारे निर्यातों में परम्परागत वस्तुओं व कच्चे माल के स्थान पर निर्मित वस्तुओं का निर्यात बढ़ा है।
  3. निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुएँ हैं-जूट का सामान, सूती वस्त्र, चाय, खनिज पदार्थ, तम्बाकू, खाल और चमड़ा, तिलहन, चीनी, मसाले व इंजीनियरिंग का सामान।
  4. सर्वाधिक निर्यात एशिया व ओसोनिया देशों को किये जाते हैं।

प्रश्न 4
अन्तर्राष्ट्रीय एवं देशीय व्यापार के दो अन्तरों को स्पष्ट कीजिए। [2011]
या
विदेशी व्यापार और आन्तरिक व्यापार में अन्तर बताइए। [2010, 11]
या
राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर बताइट। [2016]
उत्तर :
अन्तर्राष्ट्रीय और देशीय व्यापार के दो अन्तर निम्नलिखित हैं –

  • जब किसी देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों अथवा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है तो उसे देशीय व्यापार कहते हैं और जब विभिन्न राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दो अंग हैं—आयात और निर्यात। आयात के लिए विदेशी मुद्रा प्रदान करनी होती है और निर्यात करने पर विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है; जब कि देशीय व्यापार में अपने देश की मुद्रा ही प्रयुक्त होती है। इसमें विदेशी मुद्रा का कोई लेन-देन नहीं होता।

प्रश्न 5.
भारत के विदेशी व्यापार की दिशा में क्या मुख्य परिवर्तन हुए हैं?
या
स्वाधीनता के बाद भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर :
स्वतन्त्रता के बाद भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं –

  1. भारत का विदेशी व्यापार कॉमनवेल्थ देशों तक सीमित न रहकर विश्वव्यापी हो गया है।
  2. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत कच्चे पदार्थों (कृषि तथा खनिजों) का निर्यातक देश था, किन्तु स्वतन्त्रता के बाद उसके निर्यातों में तैयार माल सम्मिलित हुए तथा उनमें विविधता आ गई।
  3. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत में पर्याप्त अन्नोत्पादन होता था, किन्तु देश के विभाजन के बाद गेहूँ तथा चावल के बड़े उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चले जाने से भारत को अन्न का आयात करना पड़ा।
  4. खाद्य एवं कृषिगत पदार्थ भारत के परम्परागत निर्यात पदार्थ रहे हैं, किन्तु अब भारत मशीनरी, सूती – वस्त्र, सिले-सिलाये वस्त्र, हस्तनिर्मित वस्तुओं आदि का भी निर्यात करने लगा है।

भारतीय निर्यातों का आधे से अधिक भाग पश्चिमी यूरोप के विकसित देशों संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान को, लगभग एक-तिहाई भाग पूर्वी यूरोप तथा अन्य विकासशील देशों को और केवल एक छोटा-सा भाग मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों को जाता है। भारत के निर्यातों में रूस और जापान का महत्त्व बढ़ा है तथा ब्रिटेन का एकाधिकार समाप्त हो गया है। भारत का अपने पड़ोसी देशों से व्यापार कम होता जा रहा है तथा पूर्व साम्यवादी देशों-पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया व रूस से बढ़ा है। भारत जिन देशों को निर्यात करता है, क्रमानुसार उनके नाम हैं—सं० रा० अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, इटली, सऊदी अरब, इराक, कुवैत, हॉलैण्ड, ईरान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया आदि।

प्रश्न 6.
विदेशी व्यापार के अनुकूल प्रभाव क्या होते हैं ?
उत्तर :
विदेशी व्यापार के प्रमुख अनुकूल प्रभाव निम्नवत् हैं –

  1. विदेशी व्यापार भारत के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करता है, जो विदेशों से लिये हुए ऋणों तथा ब्याजों की अदायगी में काम आती है।
  2. विदेशी व्यापार से भारतीयों के जीवन-स्तर में वृद्धि होती है।
  3. भारत शेष संसार से लाभदायक ढंग से उन वस्तुओं को खरीद सकता है जिनका अपने ही देश में उत्पादन करने पर लागत अधिक आती है, उसकी तुलना में वे विश्व व्यापार में सस्ती उपलब्ध रहती हैं। इन वस्तुओं के उपभोग से लोगों के जीवन-स्तर एवं आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है।
  4. भारत शेष संसार को उन वस्तुओं की बिक्री कर सकता है, जिनका वह अधिक सफलता से अर्थात् दूसरे देशों की तुलना में सस्ता उत्पादन कर सकता है। इस प्रकार विदेशी व्यापार की क्रियाएँ भौगोलिक श्रम-विभाजन को सम्भव बनाती हैं।
  5. आयातों के द्वारा भारत अनिवार्य वस्तुओं की किसी भी कमी को पूरा कर सकता है।
  6. भारत दूसरे देशों से उन पूँजीगत वस्तुओं को मँगवा सकता है जिन वस्तुओं का वह बिल्कुल उत्पादन नहीं कर सकता अथवा बहुत कुशलता से उत्पादन नहीं कर सकता।

प्रश्न 7.
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार का क्या महत्त्व या लाभ है?
उत्तर :
भारत के लिए विदेशी व्यापार के महत्त्व या लाभ निम्नलिखित हैं –

1. प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग – एक देश ऐसे उद्योगों की स्थापना एवं संचालन करता है, जिनसे उसे अधिकतम तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है और उस बाजार (देश) में वह अपनी उत्पादित वस्तुओं को बेचता है, जहाँ उसे वस्तुओं का सबसे अधिक मूल्य मिलता है। फलस्वरूप वह उपलब्ध प्राकृतिक संसाधानों को सर्वोत्तम उपयोग करता है।

2. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन – विदेशी व्यापार के माध्यम से देश में उद्योग-धन्धों को विकसित करने के लिए आवश्यक उपकरण, कच्चा माल व तकनीकी ज्ञान सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं। फलतः देश में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।

3. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सदभावना में वृद्धि – विदेश व्यापार के फलस्वरूप विभिन्न देशों के नागरिक एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं और एक-दूसरे के विचारों एवं दृष्टिकोणों से परिचित होते हैं। फलस्वरूप सांस्कृतिक सहयोग एवं परस्पर विश्वास में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
निर्यात व्यापार से आप क्या समझते हैं? भारत की चार प्रमुख निर्यात की वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2014, 18]
उत्तर :
निर्यात व्यापार–किसी देश द्वारा अपने देश से दूसरे देशों को वस्तुएँ बेचने का व्यापार निर्यात व्यापार कहलाता है।

भारत देश की चार प्रमुख निर्यात की वस्तुएँ निम्नवत् हैं –

  1. चाय
  2. तम्बाकू
  3. सूती वस्त्र
  4. चमड़ा व चमड़े से बनी वस्तुएँ।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार का क्या अर्थ है ? [2014]
या
विदेशी व्यापार से आप क्या समझते हैं ? [2010, 11, 18]
या
विदेशी व्यापार को स्पष्ट कीजिए। [2015]
उत्तर :
जब दो या दो से अधिक देश परस्पर एक-दूसरे की वस्तुओं या सेवाओं का क्रय-विक्रय करते हैं तब इसे विदेशी व्यापार कहते हैं।

प्रश्न 2.
व्यापार सन्तुलन का क्या अर्थ है?
उत्तर :
यदि निर्यात आयातों से अधिक होते हैं तो देश का व्यापार-शेष ‘अनुकूल’ होता है। यदि आयात निर्यातों से अधिक होते हैं तो व्यापार-शेष प्रतिकूल’ होता है। यदि निर्यात और आयात बराबर होते हैं तो व्यापार-शेष सन्तुलित होता है। इसी को व्यापार सन्तुलन भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
भारत के आयात की किन्हीं चार वस्तुओं के नामों का उल्लेख कीजिए। [2010, 11, 14, 16, 18]
उत्तर :
भारत के आयात की चार वस्तुओं के नाम हैं –

  1. खनिज तेल
  2. उर्वरक एवं रसायन
  3. मशीनें तथा
  4. धातुएँ; जैसे-टिन, पीतल, ताँबा।

प्रश्न 4.
भारत के विदेशी व्यापार को अनुकूल बनाने हेतु दो सुझाव दीजिए।
उत्तर :
भारत के विदेशी व्यापार को अनुकूल बनाने हेतु दो सुझाव इस प्रकार हैं-

  1. अधिकतम निर्यात किया जाना चाहिए तथा
  2. न्यूनतम आयात किया जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
भारत में निर्यात-वृद्धि के लिए दो सुझाव दीजिए। [2013]
उत्तर :
भारत में निर्यात वृद्धि के लिए दो सुझाव निम्नवत् हैं –

  1. प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति बढ़ाने के लिए उत्पादन लागत घटायी जानी चाहिए।
  2. निर्यात वस्तुओं की किस्म में सुधार किया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
आन्तरिक व्यापार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
जंब किसी देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों अथवा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं व सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो उसे आन्तरिक व्यापार करते हैं।

प्रश्न 7.
विदेशी व्यापार के दो उद्देश्य लिखिए।
या
विदेशी व्यापार की आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए। [2015]
उत्तर :
विदेशी व्यापार के दो उद्देश्य निम्नवत् हैं –

  1. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन देना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व सद्भावना में वृद्धि करना।

प्रश्न 8.
आयात एतं निर्यात का अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2015, 16]
उत्तर :
“आयात’ का अर्थ है-विदेशों से माल अपने देश में मँगाना तथा “निर्यात का अर्थ है–विदेशों में अपने देश का माल भेजना।

प्रश्न 9.
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के दो लाभ लिखिए।
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के दो लाभ इस प्रकार हैं –

  1. भारत की राष्ट्रीय आय और पूँजी–निर्माण में वृद्धि होती है तथा
  2. देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 10.
भारत से निर्यात की जाने वाली दो वस्तुओं के नाम लिखिए। [2010, 11, 16, 17]
उत्तर :
भारत से निर्यात की जाने वाली दो वस्तुएँ हैं –

  1. चाय तथा
  2. जूट का सामान।

प्रश्न 11.
भारत के निर्यात व्यापार की दो समस्याएँ लिखिए।
उत्तर :

  1. कच्चे माल की अनुपलब्धता।
  2. हिमालय पर्वतीय अवरोध के समीपवर्ती देशों एवं भारत के मध्य धरातलीय आवागमन की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

प्रश्न 12.
भारत की दो निर्यात की जाने वाली परम्परागत तथा दो गैर-परम्परागत वस्तुओं के नाम लिखिए।
या
भारतीय निर्यात की किन्हीं दो प्रमुख वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2010, 11, 16]
या
भारत के किन्हीं दो आयात तथा दो निर्यात वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2015, 16]
उत्तर :
परम्परागत निर्यातक वस्तुएँ – चाय और जूट।
गैर-परम्परागत निर्यातक वस्तुएँ – सिले वस्त्र, इंजीनियरिंग का सामान।

प्रश्न 13.
भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के नाम लिखिये।
उत्तर :
भारत से जूट का सामान, चाय, तम्बाकू, सूती वस्त्र, चमड़ा व चमड़े से बनी वस्तुएँ आदि निर्यात की जाती हैं।

प्रश्न 14.
भारत में आयात की जाने वाली मुख्य वस्तुएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर :
भारत में पेट्रोल एवं पेट्रोलियम उत्पाद, मशीनें, कपास एवं रद्दी रुई, अलौह धातुएँ, लोहे तथा इस्पात का सामान आयात किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. कौन-सा ग्रुप भारत के आयात व्यापार को दर्शाता है?

(क) चाय, खाद्य तेल, तम्बाकू, पेट्रोलियम
(ख) पेट्रोलियम, जूट की वस्तुएँ, कपास, खाद्य तेल
(ग) रसायन, मशीनें, खाद्य तेल, पेट्रोलियम
(घ) रसायन, कपड़े की वस्तुएँ, जूट की वस्तुएँ, कपास

2. भारत की प्रमुख आयातित वस्तु है।

(क) ऊनी मशीनें
(ख) सूती वस्त्र
(ग) खनिज तेल
(घ) जूट उत्पाद

3. वर्तमान में भारत के निर्यातों का अकेला सबसे बड़ा खरीदार है –

(क) सं० रा० अमेरिका
(ख) इंग्लैण्ड
(ग) अफ्रीकी देश
(घ) तेल उत्पादक देश

4. व्यापार सन्तुलन किसे कहते हैं?

(क) आयात अधिक हो
(ख) निर्यात अधिक हो
(ग) आयात व निर्यात बराबर हों
(घ) आयात व निर्यात न हों।

5. निम्नलिखित में से कौन-से देश-समूह भारत के आयात में प्रमुख हिस्सा रखते हैं?

(क) अफ्रीकी देश
(ख) विकसित देश
(ग) दक्षिणी अमेरिका के देश
(घ) दक्षिण-पश्चिमी एशिया के देश

6. भारत के निर्यात व्यापार में कितने प्रतिशत हिस्सा विकसित देशों का है?

(क) 4%
(ख) 6%
(ग) 61%
(घ) 59%

7. विश्व व्यापार में भारत का कितना अंश है?

(क) 3.6%
(ख) 2.6%
(ग) 1.6%
(घ) 0.6%

8. निम्नलिखित में से भारत की प्रमुख निर्यात वस्तु कौन-सी है? [2012]

(क) कागज
(ख) खनिज तेल
(ग) खाद्य तेल
(घ) जवाहरात व आभूषण

9. भारत का सर्वाधिक विदेशी व्यापार निम्नलिखित में से किस देश के साथ होता है?

(क) जापान
(ख) रूस
(ग) ब्रिटेन
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका

10. कौन-सा समूह भारत के निर्यात व्यापार को दर्शाता है? [2017]

(क) खनिज तेल, चाय, अभ्रक, खाद्य तेल
(ख) चाय, मशीनरी, खाद्य तेल, लौह-अयस्क
(ग) चाय, लौह-अयस्क, चमड़े की वस्तुएँ, अभ्रक
(घ) लौह-अयस्क, चाय, खनिज-तेल, मशीनरी

11. कौन-सा समूह भारत के आयात व्यापार को दर्शाता है?

(क) खनिज तेल, कच्चा जूट, चाय, लौह-अयस्क
(ख) अभ्रक, चाय, कच्चा जूट, खनिज तेल
(ग) चाय, लौह-अयस्क, खनिज तेल, खाद्य तेल
(घ) खनिज तेल, खाद्य तेल, कच्चा जूट, मशीनरी

12. निम्नलिखित में से भारत के आयातों में सर्वाधिक मूल्य किस वस्तु का है? [2017]

(क) कृषि पदार्थ
(ख) धातु एवं खनिज
(ग) विनिर्मित सामान
(घ) अशुद्ध तेल एवं उत्पाद

13. निम्नलिखित में से कौन-सी वस्तु भारत के निर्यात की वस्तु है? [2009, 13, 18]

(क) खनिज तेल
(ख) जूट निर्मित वस्तुएँ।
(ग) मशीनें
(घ) मशीनों के पुर्जे

14. अपने देश की सीमा के अन्दर व्यापार कहलाता है

(क) आन्तरिक व्यापार
(ख) विदेशी व्यापार
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं

15. व्यापार घाटे को कम करने का उपाय है

(क) निर्यातों को बढ़ाना
(ख) आयातों को कम करना
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं

16. विदेशी व्यापार नीति लागू की गयी

(क) 1 अप्रैल, 2001 से
(ख) 1 अप्रैल, 2003 से
(ग) 1 अप्रैल, 1951 से
(घ) 1 अप्रैल, 2002 से

17. भारत में निम्नलिखित वस्तुओं में से सबसे अधिक किस वस्तु का निर्यात किया जाता है? [2014, 17]

(क) मशीनरी
(ख) चाय
(ग) उर्वरक
(घ) खनिज तेल

18. निम्नलिखित में से किसका आयात भारत में किया जाता है? [2016]

(क) चाय
(ख) कॉफी
(ग) पेट्रोलियम
(घ) लौह-अयस्क

उत्तरमाला

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