UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 15 प्राथमिक चिकित्सा के प्रमुख सिद्धान्त
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा उसके सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
या
प्राथमिक चिकित्सा किसे कहते हैं? प्राथमिक चिकित्सा के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का अर्थ
सामान्य रूप से, कोई भी दुर्घटना होने पर अथवा आकस्मिक बीमारी होने पर डॉक्टर अथवा चिकित्सक के पास जाया जाता है, परन्तु हर समय तथा हर स्थान पर चिकित्सक को तुरन्त उपलब्ध होना प्रायः सम्भव नहीं होता, क्योंकि दुर्घटना तो कहीं भी घटित हो सकती है। इस स्थिति में डॉक्टर अथवा चिकित्सक को रोगी या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के पास लाने या ले जाने में काफी समय लग सकता है, परन्तु दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति को तुरन्त सहायता की आवश्यकता होती है। यह सहायता इसलिए आवश्यक होती है ताकि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की दशा और अधिक न बिगड़े अथवा उसे सांत्वना प्राप्त हो जाए। इस प्रकार की सहायता दुर्घटनास्थल पर ही उपस्थित व्यक्तियों द्वारा तुरन्त दी जाती है। इस प्रकार की तुरन्त दी जाने वाली सहायता को प्राथमिक चिकित्सा कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है। कि- ”आकस्मिक रूप से रोगी अथवा घायल हुए व्यक्ति को डॉक्टर अथवा चिकित्सक के आने से पूर्व दी जाने वाली सहायता एवं उपचार ही प्राथमिक चिकित्सा है।” प्राथमिक चिकित्सा के अर्थ को एक व्यावहारिक उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। सड़क पर चलते हुए यदि कोई व्यक्ति किसी वाहन से टकरा जाए तथा उसकी बाँह एवं घुटना घायल हो जाए तथा वह गिर जाए तो सड़क पर चलते हुए अन्य व्यक्तियों द्वारा उसे उठाया जाता है, आराम से लिटाया या बैठाया जाता है तथा उसके घाव पर पट्टी अथवा रूमाल बाँध दिया जाता है। ये सभी कार्य वास्तव में प्राथमिक चिकित्सा ही है। इसी प्रकार घर पर गर्म तवे से हाथ जल जाने पर तुरन्त बरनॉल लगाना भी प्राथमिक चिकित्सा ही है।
प्राथमिक चिकित्सा के सिद्धान्त अथवा नियम
रोगी अथवा दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा सहायता देने वाला व्यक्ति प्राथमिक चिकित्सक कहलाता है। प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को हर परिस्थिति में निम्नलिखित सिद्धान्तों को पालन करना चाहिए
(1) रोगी की अवस्था का अनुमान:
प्राथमिक चिकित्सक को सर्वप्रथम पीड़ित व्यक्ति की अवस्था का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना चाहिए। जैसे कि रोगी का कौन-सा अंग प्रभावित हुआ है, रक्तस्राव हो रहा है अथवा नहीं, हड्डियाँ टूटी हैं अथवा नहीं आदि। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए।
(2) चिकित्सक से सम्पर्क:
यदि दुर्घटना गम्भीर हो तो प्राथमिक चिकित्सक को तुरन्त किसी योग्य चिकित्सक से भी सम्पर्क स्थापित करना चाहिए। इस स्थिति में दुर्घटना की प्रकृति तथा घायल व्यक्ति की स्थिति को ध्यान में रखकर ही सम्बन्धित चिकित्सक से सम्पर्क किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए–यदि दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति की हड्डी टूट गई हो तो किसी हड्डी विशेषज्ञ से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए तथा यदि व्यक्ति मूर्च्छित हो या उसे किसी साँप ने काट लिया हो तो उस दशा में काय-चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित किया जाना चाहिए।
(3) सहायता की सीमा:
प्राथमिक चिकित्सक को पूर्ण चिकित्सक बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए। उसे रोगी को तत्काल केवल जीवन-रक्षक सहायता तब तक देनी चाहिए जब तक कि उपयुक्त चिकित्सा सहायता उपलब्ध न हो।
(4) सांत्वना देना व धैर्य बँधाना:
कई बार चोट से अधिक दुर्घटना का सदमा पीड़ित व्यक्ति की अधिक हानि करता है। अतः प्राथमिक चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह पीड़ित व्यक्ति को सांत्वना दे तथा उसे धैर्य बँधाए।
(5) कृत्रिम श्वसन की सहायता:
डूबने, विद्युत करन्ट लगने तथा आत्महत्या के प्रयास में प्रायः पीड़ित व्यक्ति को श्वास अवरुद्ध हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को तुरन्त कृत्रिम श्वास दिलाना चाहिए।
(6) हृदय गति अवरुद्ध होने पर सहायता देना:
कई बार श्वसन क्रिया के साथ-साथ पीड़ित व्यक्ति की हृदय गति भी अवरुद्ध हो जाती है। यदि तत्काल विधिवत् सहायता उपलब्ध हो जाए, तो कई बार पीड़ित व्यक्ति की जीवन रक्षा हो जाती है।
(7) शरीर को गर्म रखना:
यदि व्यक्ति घायल हो गया हो तथा शरीर से रक्त बह रहा हो तो उस व्यक्ति के शरीर को गर्म रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए व्यक्ति को गर्म दूध या चाय पिलानी चाहिए। ध्यान रहे ऐसी स्थिति में कभी भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को ठण्डा पानी नहीं पिलाना चाहिए।
(8) मूर्छित अवस्था में सहायता:
यदि पीड़ित व्यक्ति मूर्च्छित अवस्था में है तो उसके चारों ओर भीड़ न लगने दें तथा उसे खुले व हवादार स्थान पर लिटाएँ। उसके सीने के वस्त्रों को बटन खोलकर ढीला कर दें तथा ठण्डे पानी के छीटें देकर मूच्छ दूर करने का प्रयास करें।
(9) रक्त-स्राव रोकना:
घायल व्यक्ति का रक्त-स्राव रोकना प्राथमिक चिकित्सा का सर्वाधिक आवश्यक नियम या सिद्धान्त है, क्योंकि अधिक रक्तस्राव के कारण भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की प्रायः आकस्मिक मृत्यु हुआ करती है। इसके लिए बन्द लगाना या टूर्नीकट का प्रयोग करना चाहिए। घायल व्यक्ति को इस प्रकार लिटाना चाहिए कि उसका सिर शेष शरीर से कुछ नीचा रहे, जिससे कि मस्तिष्क तक रक्त संचार में रुकावट न उत्पन्न हो।
(10) भीड़ न करें:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के आस-पास अधिक लोगों को एकत्रित नहीं होना चाहिए। जो लोग पास रहें, वे भी शान्त रहें। भीड़ होने पर रोगी व्यक्ति घुटन महसूस कर सकता है क्योंकि वातावरण में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।
(11) घाव पर पट्टी बाँधना:
घायल व्यक्ति के घावों पर कोई नि:संक्रामक लगाकर कसकर पट्टी बाँधनी चाहिए। पट्टी न होने पर कोई स्वच्छ कपड़ा अथवा रूमाल घाव पर कसकर बाँध देना चाहिए।
(12) कम से कम हिलाना:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को कम-से-कम हिलाना-डुलाना चाहिए, क्योंकि इससे रक्तस्राव बढ़ सकता है तथा यदि पीड़ित व्यक्ति के फ्रेक्चर है, तो निम्नलिखित सावधानियाँ रखें
- (क) जटिल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति को पहले रक्तस्राव बन्द करने का उपाय करें तथा फिर उसे किसी योग्य चिकित्सक की देख-रेख में ही अस्पताल तक ले जाएँ।
- (ख) सरल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति के फ्रेक्चर के दोनों ओर खरपच्चियाँ बाँधे तथा फिर उसे सहारा देकर अथवा स्ट्रेचर पर लिटाकर अस्पताल तक ले जाएँ।
(13) विष-पीड़ित व्यक्ति की सहायता:
विष का सेवन किए व्यक्ति को वमन कराना प्रायः लाभप्रद रहता है। अस्पताल ले जाते समय पीड़ित व्यक्ति के वमने का नमूना तथा विष की खाली शीशी ले जाना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विष के प्रकार की जानकारी पीड़ित व्यक्ति को शीघ्र एवं सही चिकित्सा उपलब्ध करा सकती है।
(14) जले हुए व्यक्ति को सहायता:
जलने की दुर्घटना या तो आग के द्वारा हो सकती है या फिर रासायनिक पदार्थों (अम्ल आदि) के कारण होती है। आग से जलने पर पीड़ित व्यक्ति के घावों को तुरन्त एक स्वच्छ कपड़े से ढक दें तथा यदि वह होश में है तो उसे पर्याप्त मात्रा में पानी, चाय, कॉफी व दूध आदि पिलाएँ। अम्ल से जलने पर प्रभावित स्थान पर पर्याप्त ठण्डा पानी डालें तथा जलन कम होने पर घाव को स्वच्छ कपड़े से ढक दें। उपर्युक्त दोनों प्रकार के व्यक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाएँ।
प्रश्न 2:
प्राथमिक चिकित्सक में होने वाले आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिए।
या
प्राथमिक चिकित्सक के वांछित गुणों का वर्णन कीजिए।
या
प्राथमिक चिकित्सक में किन गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा एक महत्त्वपूर्ण मानवीय-सामाजिक कार्य है। एक प्राथमिक चिकित्सक यदि योग्य, दूरदर्शी एवं मानवीय गुणों से युक्त है तो वह जीवन-रक्षा जैसे अमूल्य एवं अतिप्रशंसनीय कार्य को सम्पादित कर सकता है।
प्राथमिक चिकित्सक के गुण
एक सरल प्राथमिक चिकित्सक में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है
(1) दुरदर्शी एवं फुर्तीला:
प्राथमिक चिकित्सक दूरदर्शी एवं फुर्तीला होना चाहिए, ताकि दुर्घटना स्थल पर पहुँचते ही पीड़ित व्यक्तियों की आवश्यकतानुसार तुरन्त सहायता कर सकें। दूरदर्शी व्यक्ति घटित होने वाली दुर्घटना के दूरगामी परिणामों का भी अनुमान लगा लेता है तथा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की स्थिति के अनुकूल ही निर्णय लेता है।
(2) स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट:
प्राथमिक चिकित्सक अच्छे स्वास्थ्य का व्यक्ति होना चाहिए। उसका मानसिक एवं शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट होना भी आवश्यक है, क्योंकि उसे शीघ्र ही पीड़ित व्यक्तियों की देखभाल तथा उनका अस्पताल तक स्थानान्तरण करना होता है। दुर्घटना स्थल का दृश्य अनेक बार बहुत ही हृदयविदारक होता है। ऐसी स्थिति में केवल मजबूत हृदय वाला व्यक्ति ही दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को सहायता प्रदान करता है।
(3) चतुर एवं विवेकशील:
एक चतुर एवं विवेकशील प्राथमिक चिकित्सक सही समय पर सही निर्णय ले सकता है तथा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की आवश्यकता को समझकर उन्हें सांत्वना दे सकता है।
(4) धैर्यवान एवं सहनशील:
रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति प्रायः चिड़चिड़े हो जाते हैं; अतः प्राथमिक चिकित्सक को धैर्यवान व सहनशील होना चाहिए।
(5) मृदुभाषी एवं सेवाभाव रखने वाला:
रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति सहानुभूति एवं मृद व्यवहार के पात्र होते हैं। अत: प्राथमिक चिकित्सक अपना दायित्व सफलतापूर्वक तब ही निभा सकता है। जबकि वह मृदुभाषी हो तथा सेवाभाव रखता हो।
(6) आत्मविश्वासी:
प्राथमिक चिकित्सक को पूर्णरूप से आत्मविश्वासी होना चाहिए, क्योंकि दुर्बल आत्मविश्वास रखने वाला प्राथमिक चिकित्सक किसी बड़ी दुर्घटना को देखकर घबरा सकता है। अथवा बौखला सकता है।
(7) साधन सम्पन्नता:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए रोगी अथवा घायल व्यक्ति को कुछ औषधियाँ अथवा अन्य सहायता दी जाती है। अतः यह आवश्यक है कि प्राथमिक चिकित्सक के पास उपचार एवं सहायता के लिए अनिवार्य साधन उपलब्ध हों। सामान्य रूप से प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स’ में इस प्रकार की आवश्यक सामग्री रखी जाती है।
(8) शारीरिक विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सक को मानव शरीर की बाह्य एवं आन्तरिक रचना का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है। गम्भीर रोगों एवं गम्भीर रूप से घायल व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार करते समय उपर्युक्त ज्ञान उसे अतिरिक्त सहायता प्रदान करेगा।
(9) प्राथमिक चिकित्सा का अधिकाधिक ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सा करने वाले व्यक्ति को भली प्रकारे सम्बन्धित विषय में प्रशिक्षित होना चाहिए। उदाहरण के लिए उसे तीव्र ज्वर के रोगी के प्रारम्भिक उपचार की जानकारी होनी चाहिए। इसी प्रकार डूबने, विद्युत करन्ट लगने तथा जलने वाले व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार किस प्रकार किया जाता है आदि का उसे अपेक्षित ज्ञान होना चाहिए।
(10) पर्याप्त दक्षता:
प्राथमिक चिकित्सक पर्याप्त दक्ष होना चाहिए ताकि वह सोचने में समय व्यर्थ न करके घायलों की तुरन्त सहायता कर सके तथा विधिपूर्वक उनका स्थानान्तरण अस्पताल तक करा सके।
(11) सीमाओं का ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सक को अपने कर्तव्य की सीमाओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह प्राथमिक चिकित्सक है, कोई डिग्री प्राप्त चिकित्सक नहीं। अतः उसे पीड़ित व्यक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाने अथवा पहुँचवाने का प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 3:
‘प्राथमिक चिकित्सा बक्से में आप कौन-कौन से आवश्यक उपकरण एवं औषधियाँ रखेंगी?
या
प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक वस्तुओं की सूची बनाइए।
या
घर में प्राथमिक सहायता पेटिका रखना क्यों आवश्यक है? इसमें आप क्या-क्या रखेंगी?
उत्तर:
‘प्राथमिक चिकित्सा बक्से’ (फर्स्ट एड बॉक्स) से अभिप्राय सरलतापूर्वक इधर-उधर ले। जाए जा सकने वाले बक्से से है, जिसमें कि प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरण एवं औषधियाँ रखी होती हैं। प्रत्येक घर, सार्वजनिक एवं राजकीय प्रतिष्ठान तथा स्कूल-कॉलेज में प्राथमिक चिकित्सा बक्से के रखने से, अनेक लाभ हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
- घर में होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं; जैसे-जलना, चोट लगना आदि के समय प्राथमिक उपचार के लिए आवश्यक सामग्री सुविधापूर्वक एवं तुरन्त उपलब्ध हो जाती है।
- स्कूल व कॉलेज आदि के खेल के मैदान में अथवा अन्य अवसरों पर विद्यार्थियों को लगने वाली चोटों की प्राथमिक चिकित्सा तुरन्त सम्भव हो जाती है।
- बस व ट्रेन में यात्रा करते समय अथवा पिकनिक के समय होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्तियों की प्राथमिक चिकित्सा के लिए प्राथमिक चिकित्सा बक्से में व्यवस्थित रूप से रखी सामग्री अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है।
प्राथमिक चिकित्सा बक्से का निर्माण
इसे बनाने के लिए आवश्यक सामग्री को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
(क) आवश्यक उपकरण तथा
(ख) अत्यावश्यक औषधियाँ।
(क) आवश्यक उपकरण:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए उपयोगी उपकरणों की सूची निम्नलिखित ह
- कैंची
- चाकू
- चिमटी
- सेफ्टी पिन
- सुई-धागा
- गिलास व चम्मच
- स्वच्छ रुई
- नि:संक्रमित गॉज
- छोटी-बड़ी पट्टियाँ
- गर्म पानी की बोतल
- बर्फ की टोपी
- स्वच्छ कपड़ा
- छोटा तौलिया
- साबुन
- खपच्चियाँ
- तीली तथा तैयार फुरेरी
- मोमबत्ती व दियासलाई
- टार्च।
(ख) उपयोगी औषधियाँ:
प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स में प्रायः निम्नलिखित औषधियाँ रखी जाती हैं
- अमृतधारा
- पुदीनहरा
- कोरामिन
- बरनौल
- फ्यूरासिन
- पचनोल
- नावलजिन
- आयोडेक्स
- ग्लिसरीन
- ऐक्रीफ्लेविन
- सुंघाने वाले लवण
- ग्लूकोस
- पोटैशियम परमैंगनेट
- डिटॉल
- स्प्रिट
- विक्स
- बाम
- सामान्य नमक
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
हम जानते हैं कि अनेक बार आकस्मिक दुर्घटनाएँ घातक एवं भयंकर भी हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यदि दुर्घटना होते ही तुरन्त सम्बन्धित व्यक्ति को आवश्यक सहायता दे दी जाए, तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्राथमिक चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति का जीवन बचाना है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का एक उद्देश्य रोगी अथवा घायल व्यक्ति को सांत्वना देना भी होता है। इससे रोगी का मनोबल बढ़ता है तथा वह अधिक नहीं घबराता। प्राथमिक चिकित्सा मिल जाने से रोगी की दशा अधिक बिगड़ने से बच जाती है।
प्रश्न 2:
प्राथमिक चिकित्सा की दो विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा की निम्नलिखित दो मुख्य विशेषताएँ हैं
(1) जीवन रक्षा:
प्राथमिक चिकित्सा की सर्वोपरि विशेषता गम्भीर रोगी अथवा गम्भीर रूप से घायल व्यक्ति की जीवन-रक्षा के प्रयास करना है।
(2) तत्काल उपचार:
प्रायः दुर्घटना स्थल पर उपयुक्त चिकित्सा देर से सुलभ होती है। ऐसे विपरीत समय में प्राथमिक चिकित्सा दैवी सहायता के समान होती है।
प्रश्न 3:
प्राथमिक चिकित्सक के कोई चार महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सक के कर्तव्यों की कोई सीमा नहीं है, परन्तु प्राथमिकता के आधार पर उसके निम्नलिखित चार कर्तव्यों को अति महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है
(1) धैर्यपूर्वक तत्काल उपचार करना:
प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को दुर्घटना स्थल पर बिना घबराए पीड़ित व्यक्तियों का तुरन्त उपचार प्रारम्भ कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसे समय पर शीघ्र उपचार प्रायः जीवन-रक्षक सिद्ध होता है।
(2) आपातकालीन सेवा प्रदान करना:
प्राथमिक चिकित्सक को दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को कृत्रिम श्वास देना, रक्त-स्राव रोकना तथा अवरुद्ध हृदय-गति को चालू करने के प्रयास करना आदि
आपातकालीन सेवाएँ तुरन्त प्रदान करनी चाहिए।
(3) सांत्वना देना एवं धैर्य बँधाना:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों के लिए कई बार दुर्घटना का मानसिक आघात घातक सिद्ध होता है। अतः प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक का एक मुख्य कर्तव्य है कि वह दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को सांत्वना दे तथा उनका साहस बढ़ाए।
(4) उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध कराना:
प्राथमिक चिकित्सक का कर्तव्य है कि पीड़ित व्यक्तियों के प्राथमिक उपचार के तुरन्त पश्चात् सबसे पास के डॉक्टर अथवा अस्पताल को दुर्घटना की सूचना दे।
प्रश्न 4:
गृहिणी के लिए प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
अनेक बार आकस्मिक दुर्घटनाएँ घातक एवं भयंकर हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यदि दुर्घटना होते ही तुरन्त दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को आवश्यक सहायता दे दी जाए, तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का एक उद्देश्य रोगी अथवा घायल व्यक्ति को सांत्वना देना भी होता है, इससे रोगी का मनोबल बढ़ता है और वह घबराता नहीं। प्राथमिक चिकित्सा मिल जाने से रोगी की दशा अधिक बिगड़ने से बच जाती है। अतः गृहिणी को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना नितान्त आवश्यक है, क्योंकि समय-समय पर घर में छोटी-छोटी घटनाएँ घटती रहती हैं। प्राथमिक चिकित्सा के ज्ञान के अभाव में ये घटनाएँ ही कभी-कभी भयंकर रूप धारण कर सकती हैं। इसीलिए स्पष्ट है कि गृहिणी को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना सर्वोपरि कार्य है।
प्रश्न 5:
प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता की मुख्य दशाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वैसे तो किसी दुर्घटना के घटित होने अथवा व्यक्ति के रोगग्रस्त हो जाने पर तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है। यहाँ कुछ ऐसी सामान्य दशाओं का उल्लेख किया जा रहा है, जिनमें प्राथमिक चिकित्सा की अनिवार्य रूप से आवश्यकता होती है
- चोट लगने से अथवा गिर जाने से हड्डी टूट गई हो।
- विद्युल का झटका लग गया हो।
- किसी भी नशे का अधिक मात्रा में सेवन कर लिया गया हो।
- किसी विषैले जानवर अथवा कीड़े ने काट लिया हो।
- कोई व्यक्ति पानी में डूब जाए तथा उसके पेट में पानी भर जाने पर उसे बाहर निकाल कर तुरन्त उपचार देना।
- आग से जल जाने या झुलस जाने पर।
- कोई व्यक्ति जान-बूझकर अथवा अनजाने में किसी विष को अथवा जलाने वाली वस्तु को खा या पी ले।
- व्यक्ति के किसी भी अंग से रक्त बह निकले।
- व्यक्ति को श्वास लेने में कठिनाई हो रही हो।
उपर्युक्त आकस्मिक दुर्घटनाओं के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की दुर्घटना के होते ही प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता पड़ सकती है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा क्या है?
उत्तर:
रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को विशिष्ट चिकित्सा सहायता उपलब्ध होने से पूर्व दुर्घटनास्थल पर ही प्रदान की जाने वाली सामान्य परन्तु आवश्यक चिकित्सा सहायता को प्राथमिक चिकित्सा कहते हैं।
प्रश्न 2:
क्या प्राथमिक चिकित्सा के लिए मान्यता प्राप्त चिकित्सक होना आवश्यक है?
उत्तर:
नहीं, कोई भी सेवाभाव रखने वाला व्यक्ति आवश्यक प्रशिक्षण ग्रहण करने पर प्राथमिक चिकित्सा करने योग्य बन सकता है।
प्रश्न 3:
प्राथमिक चिकित्सा कौन प्रदान कर सकता है?
उत्तर:
दुर्घटना स्थल पर उपस्थित कोई भी व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकता है।
प्रश्न 4:
क्या आवश्यकता पड़ने पर लड़कियाँ भी प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकती हैं?
उत्तर:
नि:सन्देह, आवश्यकता पड़ने पर लड़कियाँ भी प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकती हैं।
प्रश्न 5:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम उद्देश्य है- दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जान बचाना।
प्रश्न 6:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम सिद्धान्त है- दुर्घटना की वास्तविकता तथा गम्भीरता को । जानना तथा प्राथमिकता के आधार पर आवश्यक कार्यवाही तुरन्त प्रारम्भ करना।
प्रश्न 7:
प्राथमिक चिकित्सा बक्सा क्यों बनाया जाता है?
उत्तर:
जिससे कि समय पड़ने पर प्राथमिक चिकित्सा सम्बन्धी आवश्यक सामग्री एक ही स्थान पर तुरन्त उपलब्ध हो सके।
प्रश्न 8:
क्या एक प्राथमिक चिकित्सक के लिए अतिविशिष्ट औषधियों का प्रयोग करना उचित है?
उत्तर:
कदापि नहीं, अतिविशिष्ट औषधियों का प्रयोग एक मान्यता प्राप्त चिकित्सक को करना चाहिए।
प्रश्न 9:
कृत्रिम श्वसन की कब आवश्यकता होती है? या कृत्रिम श्वसन कब दिया जाता है?
उत्तर:
प्राय: डूबने व विद्युत करन्ट लगने वाले व्यक्ति की सामान्य श्वास गति अवरुद्ध हो जाती है, अत: उसे तुरन्त कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 10:
यदि कोई दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति मूर्च्छित हो तथा उसके शरीर से रक्त बह रहा हो, तो । प्राथमिक चिकित्सक को सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
उत्तर:
इस स्थिति में सर्वप्रथम शरीर से रक्त का बहना रोकने के उपाय करने चाहिए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए
(1) दुर्घटनास्थल पर दी जाने वाली तुरन्त सहायता को कहते हैं
(क) औपचारिक चिकित्सा,
(ख) अनावश्यक चिकित्सा,
(ग) प्राथमिक चिकित्सा,
(घ) कृत्रिम चिकित्सा।
(2) प्राथमिक चिकित्सक होता है
(क) कोई भी सामान्य व्यक्ति
(ख) कुशल डॉक्टर
(ग) सम्बन्धित दुर्घटना का अनुभवी व्यक्ति
(घ) जिसे प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान हो
(3) प्राथमिक चिकित्सक में निम्नलिखित दोष नहीं होना चाहिए
(क) धैर्यवान,
(ख) दूरदर्शी,
(ग) चिड़चिड़ा,
(घ) मृदुभाषी।
(4) प्राथमिक चिकित्सा की विशेषता है
(क) घायलों की मरहम पट्टी,
(ख) पीड़ितों की जीवन-रक्षा,
(ग) दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को धैर्य बँधाना,
(घ) ये सभी।
(5) दुर्घटना घटने पर हमारा कर्तव्य है ।
(क) तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना,
(ख) मूक दर्शक बनकर खड़े रहना,
(ग) अनदेखा कर देना,
(घ) तुरन्त घटनास्थल से भाग जाना।
(6) दुर्घटना में पीड़ित जटिल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति का सर्वप्रथम
(क) हड्डी टूटने का उपचार करना चाहिए,
(ख) रक्तस्राव रोकना चाहिए,
(ग) हाथ पकड़कर अस्पताल ले जायें,
(घ) खपच्चियाँ लगाए।
(7) कृत्रिम विधि से श्वास कब दिलाई जाती है ।
(क) दम घुटने पर,
(ख) जल में डूबने पर,
(ग) फाँसी लगाने पर,
(घ) तीनों अवस्थाओं में।
(8) टूर्नीकेट का प्रयोग किया जाता है
(क) टूटी हुई हड्डी जोड़ने में,
(ख) घाव पर पट्टी को रोकने में,
(ग) रक्तस्राव को रोकने में अथवा विष को अधिक दूर तक न फैलने देने के लि
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
(9) आकस्मिक घटना के समय प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है
(क) अल्पकालीन,
(ख) दीर्घकालीन,
(ग) तत्काल,
(घ) निरुद्देश्य।
उत्तर:
(1) (ग) प्राथमिक चिकित्सा,
(2) (घ) जिसे प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान हो,
(3) (ग) चिड़चिड़ा,
(4) (घ) ये सभी,
(5) (क) तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना,
(6) (ख) रक्तस्राव रोकना चाहिए,
(7) (घ) तीनों अवस्थाओं में,
(8) (ग) रक्तस्राव को रोकने में अथवा विष को अधिक दूर तक न फैलने देने के लिए,
(9) (ग) तत्काल।