UP Board Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 7 सभाषितानि
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सभाषितानि
शब्दार्था:-निजः = अपना, परः = पराया, दूसरे का, लघुचेतसाम् = छोटे चित वालों को, अनुदार लोगों को, वसुधैव = सम्पूर्ण पृथ्वी ही, कुटुम्बकम् = परिवार (है), परवशम् = दूसरों के वश में होना, आत्मवशम् = अपने अधीन, समासेन = संक्षेप में, विद्यात् = जानना चाहिए, समर्थस्य = भरे-पूरे,, सशक्त के लिए, दिवा = दिन में, धीमताम् = बुद्धिमानों का, व्यसनेन = बुरी आदतों के द्वारा, निद्रयो । = सोने से, कलहेन = लड़ाई झगड़ा से, सुचिका = सुईं, कृपाण = तलवार, देहिनः = जीव का, अविद्यः = विद्याहीन, वपुषा = शरीर से।
अयं निजः ………………………………………………. कुटुम्बकम् ॥1॥
हिन्दी अनुवाद-यह अपना है या यह पराया है. यह विचार छोटे मन वालों का है। उदारहदय वालों के लिए तो सारी पृथ्वी ही परिवार है।
सर्व परदशं ……………………………………………….. सुख दुःखयो ॥2॥
हिन्दी अनुद-दुसरा के वश में होना दुख है. अपने वश में होना सुख है। संक्षेप में इस तरह | सुख दुख दोनों के न उड़द हिंए।
वृथा वृष्टिः ……………………….. …..दिवापि च ॥3॥
हिन्दी अनुवाद-समुद्र में वर्षा होना बेकार है। तृप्त को भोजन देना बेकार है। शक्तिशाली अर्थात् | धनवान को दान देना बेकार है और दिन में दीपक जलाना बेकार है।
काव्यशास्त्रविनोदेन …………………………………………. कलहेन वा 4॥
हिन्दी अनुवाद-बुद्धिमान लोगों को समय साहित्य की चर्चा या वाद-विवाद में (व्याख्या) बीतता है; जबकि मूर्खा का समय निंदा, कलह या झगड़ने में बीतता है।
महान्तं ……………………………………………………. करिष्यति ॥5॥
हिन्दी अनुवांद-सद्बुद्धि के महान होने पर किसी को छोटा (तुच्छ) नहीं समझना चाहिए। क्योंकि जहाँ पर सूई का काम है (वहाँ) तलवार क्या काटेगी, (अर्थात् कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनमें तुच्छ व्यक्ति ही सफल हो पता है।
किं कुलेन …………………………………………………… परिपूज्यते ॥6॥
हिन्दी अनुवाद-जीव के विद्याहीन होने से बड़े कुल का होने पर भी कोई लाभ नहीं विद्यावान की संसार में पूजा होती है, विद्याहीन की नहीं (होती है)।
वेशेन वपुषा ……………………………………………………………….. पूजितः ॥7॥
हिन्दी अनुवाद-अच्छे वेश, वपुष अर्थात् शरीर, वाणी, विद्या और विनय इन पाँचों वकारों से युक्त मनुष्य की पूजा होती है।
अभ्यासः
प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुते पुस्तिकायां च लिखते
उत्तर
नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत
(क) उदारचरितानां कृते सम्पूर्णा वसुधा किम् अस्ति?
उत्तर
कुटुम्बकम्
(ख) अयं निजः परो वेति कः गणयति?
उत्तर
लघुचेतसः
(ग) समुद्रेषु वृष्टिः कीदृशी भवति?
उत्तर
वृथा।
(घ) विद्वान् कुत्र पूज्यते?
उत्तर
लोके।
प्रश्न 3.
प्रश्नानामुत्तराणि लिखत (लिखकर)
(क) सुखदुःखयो किं लक्षणम् अस्ति?
उत्तर
सर्वमात्मवशं सुखम् सर्वं परवशं दुःखम् अस्ति।
(ख) पञ्चवकाराः के सन्ति।
उत्तर
वेशः, वपुषः, वाचा, विद्या विनयं च पञ्च वकाराः सन्ति।
(ग) धीमतां कालः कथं गच्छति।
उत्तर
धीमताम् कालः काव्यशास्त्रविनोदेन गच्छति।
(घ) दीपः वृथा कदा भवति।
उत्तर
दीप वृथा दिवसे भवति।
प्रश्न 4.
लघुचक्र मध्ये चत्वारि क्रियापदानि सन्ति। तानि द्विधा दीर्घचक्रस्थवाक्यांशैः प्रयुज्य सार्थकवाक्यानि रचयत
उत्तर
प्रश्न 5.
मञ्जूषातः-पदानि चित्वो वाक्यानि पूरयत (पूरा करके)
उत्तर
यथा- उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
(क) वृथा वृष्टिः समुद्रेषु।।
(ख) महान्तं प्राप्य सदबुद्धी।
(ग) मूर्खाणां समयः व्यसनेन निद्रया कलहेन गच्छति।
(घ) वेशेन वपुषा वाचाः विद्यया विनयेन च।।
प्रश्न 6.
विलोमपदानि योजयत (जोड़कर)
उत्तर
प्रश्न 7.
हिन्दीभाषायाम् अनुवादं कुरुत (अनुवाद करके)
(क) सर्वं परवशं दुःखम् सर्वमात्मवशं सुखम्।
उत्तर
अनुवाद-किसी के वश में रहना दुख और स्वतन्त्र रहना ही सुख है।
(ख) वृथा तृप्तस्य भोजनम्।।
उत्तर
अनुवाद-तृप्त व्यक्ति को खिलाना व्यर्थ है।
(ग) महान्तं प्राप्य सद्बुद्ध।
उत्तर
अनुवाद-सद्बुद्धि के महान होने पर (किसी) को तुच्छ (छोटी नहीं समझना चाहिए।
(घ) विद्यावान् पूज्यते लोके नाविद्यः परिपूज्यते।
उत्तर
अनुवाद-विद्यावान की पूजा संसारभर में होती है; मूर्ख की नहीं।
• नोट – विद्यार्थी ‘ध्यातव्यम!’ स्वयं करें। अष्टमः पाठः
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