UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 25 Major Ports of India
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Geography |
Chapter | Chapter 25 |
Chapter Name | Major Ports of India (भारत के प्रमुख पत्तने बन्दरगाह) |
Number of Questions Solved | 18 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 25 Major Ports of India (भारत के प्रमुख पत्तने बन्दरगाह)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
भारत के किन्हीं दो प्रमुख बन्दरगाहों की स्थिति एवं महत्त्व की विवेचना कीजिए।
या
निम्नलिखित बन्दरगाहों के विकास हेतु उत्तरदायी भौगोलिक कारकों का विश्लेषण कीजिए –
(1) कॉदला, (2) पाराद्वीप, (3) कोचीन, (4) कोलकाता, (5) विशाखापट्टनम् एवं (6) मुम्बई।
या
मुम्बई पत्तन का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए।
(क) स्थिति एवं पृष्ठ प्रदेश (ख) निर्यात एवं आयात। [2016]
या
भारत के पूर्वी समुद्री तट पर स्थित दो प्रमुख पत्तनों (बन्दरगाहों) का भौगोलिक वर्णन कीजिए। टिप्प्णी लिखिए। काँदला बन्दरगाह की स्थिति एवं महत्त्व
या
पूर्वी भारत के किन्हीं दो मुख्य बन्दरगाहों की स्थिति एवं महत्त्व की विवेचना कीजिए।
या
पश्चिमी भारत के किन्हीं दो समुद्र पत्तनों की स्थिति एवं महत्त्व की समीक्षा कीजिए। (2016)
या
भारत के पाराद्वीप बन्दरगाह की स्थिति एवं महत्त्व बताइए।
या
विशाखापट्टनम् पत्तन (बन्दरगाह) का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –
(अ) स्थिति, (ब) पृष्ठ प्रदेश (पश्च भूमि), (स) आयात एवं निर्यात। [2008]
या
भारत के पूर्वी तट के किन्हीं दो बन्दरगाहों के नाम लिखिए एवं इन्हें रेखा-मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए। [2014]
उत्तर
(1) काँदला Kandla
काँदला भारत का एक महत्त्वपूर्ण आधुनिक पत्तन है। कराँची पत्तन के पाकिस्तान के आधिपत्य में चले जाने के उपरान्त पश्चिमी तट पर काँदला पत्तन का विकास किया गया, जिससे यह गुजरात के उत्तरी भाग, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली एवं जम्मू-कश्मीर राज्यों के लिए मुख्य द्वार का काम कर सके तथा मुम्बई पत्तन के व्यापारिक भार को घटाया जा सके। इस कृत्रिम पत्तन के विकास के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये का व्यय किया है। इसका विकास मुम्बई के सहायक पत्तन के रूप में किया गया है। इस पत्तन के विकास में निम्नलिखित भौगोलिक कारकों ने अपना प्रभाव डाला है –
(1) स्थिति – यह पत्तन एक सामुद्रिक कटाव पर स्थित है जो भुज से 48 किमी दूर एवं कच्छ की खाड़ी के पूर्वी सिरे पर स्थित है। इसमें जल की औसत गहराई 9 मीटर है, जहाँ जलयान सुविधा से ठहर सकते हैं। भारत सरकार ने सन् 1965 से इसे मुक्त व्यापार क्षेत्र घोषित कर दिया है अर्थात् यहाँ पर विदेशी आयातित माल पर कोई कर नहीं देना पड़ता है। इसी कारण इस पत्तन का विकास तीव्र गति से हुआ है।
(2) पोताश्रय – इस पत्तन का पोताश्रय प्राकृतिक एवं सुरक्षित है। यहाँ पर 4 डॉक्स इतने गहरे एवं बड़े हैं जिनमें किसी भी आकार के9 मीटर गहरी तली वाले जलयान खड़े हो सकते हैं। इस पत्तन को सभी आधुनिक आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध करायी गयी हैं। यहाँ पर गोदामों की भी अच्छी व्यवस्था है। काँदला पत्तन पर 4 बड़े शेड हैं जिनमें माल सुरक्षित रखा जा सकता है। यहाँ एक खनिज तेल का गोदाम भी है।
(3) आधुनिक संचार सुविधाएँ – इस पत्तन पर 1,600 किमी दूरी तक के समाचार प्राप्त करने और भेजने वाला संचार यन्त्र तथा 48 किमी तक की सूचना देने वाला राडार यन्त्र भी लगाया गया है। एक तैरते हुए डॉक और ज्वार-भाटा के समय प्रयुक्त होने के लिए डॉक भी बनाये गये हैं। यह पत्तन अपने पृष्ठ प्रदेश से रेल एवं सड़क मार्गों से जुड़ा है। यह पत्तन यूरोपीय तथा अन्य पश्चिमी देशों के सबसे निकट पड़ता है।
(4) पृष्ठ प्रदेश – कॉंदला पत्तन का पृष्ठ प्रदेश बहुत ही विशाल है। इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली एवं पश्चिमी मध्य प्रदेश के कुछ भाग सम्मिलित हैं। इसको पृष्ठ प्रदेश मछली, सीमेण्ट बनाने का कच्चा माल, जिप्सम, लिग्नाइट, नमक, बॉक्साइट, अभ्रक, मैंगनीज आदि पदार्थों में काफी धनी है। यहाँ सूती एवं ऊनी वस्त्र, सीमेण्ट, दवाई, घड़ी आदि बनाने के अरब सागरेअनेक उद्योग भी विकसित हुए हैं।
(5) आयात एवं निर्यात – इस पत्तन की स्थिति पत्तन द्वारा लोहे-इस्पात का सामान, मशीन, पेट्रोल, गन्धक, रॉक फॉस्फेट, पोटाश, रासायनिक उर्वरक, उत्तम किस्म की कपास, रसायन, खाद्यान्न आदि वस्तुओं का आयात किया जाता हैं।
यहाँ से लकड़ियाँ, अभ्रक, लोहा, चमड़ा, खालें, ऊन, सेलखड़ी, अनाज, कपड़ा, नमक, सीमेण्ट, हड्डी का चूरा, मैंगनीज, चीनी, इन्जीनियरिंग का सामान आदि वस्तुओं का निर्यात किया जाता है।
इस पत्तन की समृद्धि के लिए इसे मुक्त व्यापार क्षेत्र (Free Trade Zone) घोषित किया गया है। यहाँ आयात किये जाने वाले माल पर कोई कर नहीं देना पड़ता। इस पत्तन द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 165 लाख टन को व्यापार (आयात 91% तथा निर्यात 9%) किया जाता है।
(2) पारादीप Paradweep
पाराद्वीप पत्तन भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा राज्य में कोलकाता एवं विशाखापट्टनम् बन्दरगाहों के मध्य स्थित है। इसके द्वारा सभी मौसमों में व्यापार किया जाता है। यहाँ 60,000 टन क्षमता के जलयान आसानी से ठहर सकते हैं। इस पत्तन के 6 वर्ग किमी क्षेत्र में भवन आदि का निर्माण किया गया है। यह सम्पूर्ण क्षेत्र पहले दलदली था जिसे सुखाकर लेंगून हारबेर, जलयानों के मुड़ने के लिए स्थान, खनिज तथा अन्य सामानों के लिए दो बर्थ, लैगून तक पहुँचने के लिए एक जलधारा तथा माल लादने के लिए एक जैटी का निर्माण किया गया है। जलतोड़ दीवार सागर की ओर से लैगून हारबर में आने वाले जलयानों को संरक्षण प्रदान करती है। इस द्वार से होकर जलयान जलधारा में जा पाते हैं। इसके विकास में निम्नलिखित भौगोलिक कारकों ने अपना योगदान दिया है –
(1) स्थिति – इस पत्तन का विकास उत्कल तट पर कटक से 96 किमी दूर बंगाल की खाड़ी में किया गया है। यह कोलकाता एवं विशाखापट्टनम् पत्तनों के मध्य केन्द्रीय स्थिति रखता है।
(2) पोताश्रय – इसका पोताश्रय लैगून सदृश है, जो चारों ओर से जलतोड़ दीवारों से घिरा हुआ है। यहाँ प्रथम चरण में एक समय में दो जलयान ठहर सकते हैं, परन्तु बाद में अधिक जलयानों को ठहराने की सुविधा के लिए बर्थ क्षेत्र को विस्तृत किये जाने का कार्य विचाराधीन है।
(3) संचार सुविधाएँ – इसका पृष्ठ प्रदेश सड़क एवं रेलमार्गों द्वारा इस पत्तन से जुड़ा हुआ है। पाराद्वीप पत्तन को एक ओर तोमका तथा दूसरी ओर दैतारी लोहे की खानों से जोड़ने के लिए 145 किमी लम्बा राजमार्ग बनाया गया है। इस मार्ग को क्योंझर जिले से लेकर बिहार की सीमा पर स्थित भारत की सबसे बड़ी लोहे की खानों—जादा एवं नारबिल–तक बढ़ाये जाने का प्रस्ताव विचाराधीन है।
(4) पृष्ठ प्रदेश – इस पत्तन का पृष्ठ प्रदेश ओडिशा, उत्तरी आन्ध्र प्रदेश, झारखण्ड एवं छत्तीसगढ़ राज्यों पर विस्तृत है। यहाँ मैंगनीज, लोहा, अभ्रक, बॉक्साइट, कोयला, ग्रेफाइट आदि खनिज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ इमारती लकड़ी भी उपलब्ध है। इस पृष्ठ प्रदेश में लोहा-इस्पात, भारी मशीनें, विद्युत-यन्त्र एवं उपकरण, रासायनिक उर्वरक, सीमेण्ट, कागज आदि उद्योग विकसित हुए हैं।
(5) आयात एवं निर्यात – इस पत्तन के प्रमुख आयात रासायनिक उर्वरक, गन्धक, पोटाश आदि हैं, जबकि यहाँ से लोहा, मैंगनीज, लोहे एवं इस्पात का सामान, इमारती लकड़ी, मछलियाँ, क्रोमाइट आदि वस्तुओं का विदेशों को निर्यात किया जाता है।
सन् 1966 के बाद से इस पत्तन को भारत के 19 बड़े पत्तनों में सम्मिलित कर लिया गया है। इस पत्तन में प्रतिवर्ष 121 जलयान आते हैं तथा 22 लाख टन वस्तुओं का व्यापार किया जाता है, जिसमें
आयात 4 लाख टन एवं निर्यात 18 लाख टन का है। इस पत्तन का विकास देश के निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए किया गया है।
(3) कोचीन (कोच्चि) Kochin
कोचीन पत्तन, भारत के पश्चिमी तट अर्थात् मालाबार तट पर केरल राज्य में स्थित है। यह एक प्राकृतिक पत्तन है जो समुद्र के समानान्तर एक विशाल अनूप के सहारे स्थित है। यह सुदूर-पूर्व, ऑस्ट्रेलिया एवं यूरोप को जाने वाले जलमार्गों के मध्य पड़ता है। इस पत्तन को निम्नलिखित भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं –
(1) स्थिति – यह केरल राज्य में मुम्बई महानगर से दक्षिण में 928 किमी की दूरी पर पश्चिमी तट पर स्थित है। यह एक विशाल पेरियार लैगून के मुहाने पर अपनी स्थिति रखता है।
(2) पोताश्रय – इसका पोताश्रय काफी विकसित है। पोताश्रय से सम्बन्धित जलधारा 140 मीटर चौड़ी तथा 7 किमी लम्बी है। यहाँ पर बड़े-बड़े जलयान सुरक्षित खड़े रह सकते हैं। पूर्वी एवं पश्चिमी देशों के मध्य यह एक कड़ी का कार्य करता है।
(3) यातायात के साधन – इसका पृष्ठ प्रदेश राजमार्गों एवं रेलों द्वारा जुड़ा है। दक्षिणी भारत के पश्चिमी तट पर यह एक प्रमुख पत्तन है जो मुम्बई के भार को कम करता है।
(4) पृष्ठ प्रदेश – कोचीन पत्तन का पृष्ठ प्रदेश पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग, नीलगिरि, इलायची की पहाड़ियों, केरल, कर्नाटक और दक्षिणी तमिलनाडु पर विस्तृत हैं। दक्षिणी भारत के शेष भागों में यह रेल एवं सड़क मार्गों द्वारा जुड़ा है। इसके पृष्ठ प्रदेश में चाय, कहवा, चावल, नारियल, रबड़, काजू, गर्म मसाले एवं रबड़ का अधिक उत्पादन किया जाता है। इसके अतिरिक्त मछलियाँ एवं अन्य सामुद्रिक जीव, इलायची एवं नारियल से बने सामान; जैसे-तेल, चटाई, रस्सी आदि; का भी उत्पादन किया जाता है, परन्तु वृहत् उद्योगों को इसके पृष्ठ प्रदेश में अभाव पाया जाता है। अत: लघु एवं कुटीर वस्तुओं का उत्पादन ही अधिक किया जाता है तथा इन्हीं वस्तुओं का व्यापार किया जाता है।
(5) आयात एवं निर्यात – इस पत्तन के प्रमुख आयात कपास, रासायनिक उर्वरक, पेट्रोल, बॉक्साइट, जस्ता, लोहा एवं इस्पात का सामान, कोयला, वस्त्र आदि वस्तुएँ हैं।
प्रमुख निर्यातक वस्तुओं में नारियल की जटाएँ, रस्से, सूत, चटाइयाँ, खोपरा, गिरि, नारियल का तेल, चाय, कहवा, रबड़, काजू, गर्म मसाले, इलायची, मछलियाँ आदि हैं।
दक्षिणी भारत में कोचीन एक औद्योगिक नगर के रूप में विकसित हुआ है। जलयान निर्माण उद्योग यहाँ का प्रमुख उद्योग है। इसके अतिरिक्त पेट्रोलियम शोधन उद्योग भी विकसित हुआ है। अन्य उद्योगों में विद्युत उपकरण, रासायनिक उर्वरक आदि प्रमुख हैं। इस पत्तन का सामरिक महत्त्व बहुत अधिक है। यह ऑस्ट्रेलिया एवं पूर्वी एशियाई देशों के लिए समुद्री पत्तने की सुविधा प्रदान करता है। यहाँ प्रतिवर्ष 918 जलयाने आते हैं। व्यापार की मात्रा 55 लाख टन हैं, जिसमें आयात 42 लाख टन तथा निर्यात मात्रा 13 लाख टन है।
(4) कोलकाता Kolkata
कोलकाता भारत का ही नहीं अपितु एशिया महाद्वीप का एक प्रमुख पत्तन है। वास्तव में यह गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी का पूर्वी सामुद्रिक द्वार है। निम्नलिखित भौगोलिक कारकों ने इस पत्तन के विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है –
(1) स्थिति – कोलकाता पत्तन हुगली नदी के बायें किनारे पर बंगाल की खाड़ी से 144 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा की ओर स्थित है।
(2) पोताश्रय – कोलकाता पत्तन हुगली नदी द्वारा समुद्र से जुड़ा है। हुगली नदी के तट पर उत्तर में श्रीरामपुर से लेकर दक्षिण में बज बज तक यह पत्तन विस्तृत है। इससे 64 किमी दूर खाड़ी में डायमण्ड एवं खिदिरपुर पोताश्रय बनाये गये हैं। जहाँ जल की पर्याप्त गहराई के कारण 9,000 टन से भी अधिक भार के जलयान आसानी से पहुँच सकते हैं, तथा वहाँ ठहरकर ज्वार की प्रतीक्षा करते हैं। ज्वार के समय ये जलयान खिदिरपुर तक जाते हैं। इस प्रकार जलयानों को समुद्रतटे से कोलकाता पत्तन तक पहुँचने के लिए 8 घण्टे का समय लग जाता है। यहाँ पर अनेक जैटी, गोदाम, व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र स्थित हैं।
(3) कोलकाता पत्तन के विकास के कारण –
- इसका पृष्ठ प्रदेश सघन जनसंख्या रखने वाला है।
- इसका पृष्ठ प्रदेश आर्थिक विकास में बहुत ही धनी है, जहाँ जूट, चावल, चाय तथा गन्ने का अधिक उत्पादन किया जाता है।
- इसके समीप ही कोयला, लौह-अयस्क, मैंगनीज, अभ्रक, चूना-पत्थर आदि खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में निकाले जाते हैं।
- इसके पृष्ठ प्रदेश में सभी प्रकार के आवागमन के साधन विकसित हैं।
- इसका पृष्ठ प्रदेश लोहा-इस्पात, इंजीनियरिंग, भारी विद्युत संयन्त्र, सीमेण्ट, कागज, जूट, सूती वस्त्र आदि उद्योगों में विकसित है।
- समीप में स्थित दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देश भारतीय माल के अच्छे ग्राहक हैं, जो बाजार की सुविधा उपलब्ध कराते हैं।
- कोयले से प्राप्त ताप-विद्युत तथा जल-विद्युत शक्ति पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
- कोलकाता भारत का प्रमुख शैक्षिक, व्यावसायिक एवं व्यापारिक केन्द्र है।
- कोलकाता के समीपवर्ती प्रदेश में सघन जनसंख्या के कारण सस्ते श्रमिक काफी संख्या में उपलब्ध हो जाते हैं।
- हुगली नदी इस पत्तन को परिवहन की सुविधा के साथ-साथ स्वच्छ जल की सुविधा प्रदान करती है।
(4) पृष्ठ प्रदेश – इसके पृष्ठ प्रदेश में असोम, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, ओडिशा तथा छत्तीसगढ़ राज्य सम्मिलित हैं। यह देश के सभी भागों से पूर्वी, उत्तरी-पूर्वी, मध्य और पूर्वी-सीमान्त रेलमार्गों, राष्ट्रीय राजमार्गों, नदी मार्गों और नहरों द्वारा जुड़ा है। अतः सम्पूर्ण क्षेत्र का उत्पादन आसानी से कोलकाता तक लाया जा सकता है तथा विदेशों से प्राप्त माल को देश के भिन्न-भिन्न भागों में आसानी से पहुंचाया जा सकता है।
(5) व्यापार – कोलकाता देश का दूसरा बड़ा पत्तन है। यहाँ से अधिकांशतः भारी पदार्थों का व्यापार किया जाता है। इस पत्तन पर यात्री जलयान बहुत ही कम आते हैं। यहाँ से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ-जूट एवं जूट का सामान, चाय, चीनी, लोहा एवं इस्पात का सामान, तिलहन, चमड़ा, अभ्रक, मैंगनीज आदि हैं। इस पत्तन द्वारा आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में कपास, सूती, ऊनी एवं रेशमी वस्त्र, कृत्रिम रेशम, रासायनिक पदार्थ, कागज, लुग्दी, पेट्रोल, काँच का सामान, रबड़, मशीनें, दवाइयाँ तथा मोटरकार आदि वस्तुएँ सम्मिलित हैं।
इस पत्तन के विकास के कारण ही इस पृष्ठ प्रदेश में अनेक उद्योग-धन्धे स्थापित हो गये हैं। सूती वस्त्र एवं कागज इसी प्रकार के उद्योग हैं। दोनों ही उद्योग आयातित कच्चे माल पर निर्भर करते हैं। जूट उद्योग के विकास में कोलकाता पत्तन का विशेष महत्त्व है। मशीनों के आयात की सुविधा ने इस पत्तन के पृष्ठ प्रदेश में प्रथम इस्पात कारखाना जमशेदपुर में स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। दुर्गापुर, हीरापुर, बर्नपुर तथा कुल्टी के इस्पात कारखाने इसी पत्तन की देन हैं। चमड़ा, दियासलाई, रेशमी वस्त्र, मोटरकार आदि अन्य प्रमुख उद्योग भी यहाँ स्थापित हैं।
(6) कोलकाता पत्तन के भावी विकास की प्रवृत्तियाँ – इस पत्तन पर व्यापारिक दबाव बढ़ जाने के कारण कोलकाता महानगर के दक्षिण में हुगली नदी के नीचे की ओर 90 किमी की दूरी पर हल्दिया पोताश्रय एवं पत्तन का विकास किया गया है। बड़े-बड़े जलयान जो कोलकाता तक नहीं पहुँच पाते, यहाँ पर आसानी से लंगर डाल सकते हैं। यहाँ कोलकाता पत्तन के लिए अनेक आवश्यक वस्तुएँ आयात की जा सकेंगी। हल्दिया पत्तन पर सन् 1981 से माल उतारने-लादने की आधुनिक तकनीक का उपयोग शुरू कर दिया गया है। इस प्रकार हल्दिया, कोलकाता के सहायक पत्तन के रूप में विकसित किया गया है। कोलकाता से प्रतिवर्ष 42 लाख टन तथा हल्दिया से 87 लाख टन माल का व्यापार किया जाता है, जिसमें 80% आयातित एवं 20% निर्यातित माल होता है।
(5) विशाखापट्टनम्
Vishakhapattanam
विशाखापट्टनम् पत्तन को निम्नलिखित भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं –
(1) स्थिति – यह पत्तन भारत के पूर्वी तट पर बंगाल की खाड़ी में कोरोमण्डल तट पर कोलकाता से 800 किमी दक्षिण तथा चेन्नई से 425 किमी उत्तर में आन्ध्र प्रदेश राज्य में स्थित है। यह पत्तन पूर्ण रूप से एक सुरक्षित, प्राकृतिक एवं सबसे गहरा पत्तने है।
(2) पोताश्रय – इसका पोताश्रय काफी गहरा एवं सुरक्षित है। यहाँ जल की गहराई 9 मीटर से कम नहीं है। इस पत्तन पर 4 मुख्य बर्थ हैं जिनमें से प्रत्येक 152 मीटर लम्बा है तथा इनमें सभी आधुनिक सुविधाएँ विकसित की गयी हैं। इनमें से दो बर्थ विशेष रूप से लोहे एवं मैंगनीज के व्यापार के लिए सुरक्षित हैं। इनसे प्रतिदिन लगभग 3,000 मीट्रिक टन माल का व्यापार होता है। लगभग 61 मीटर लम्बी बर्थ पेट्रोल के व्यापार के लिए सुरक्षित है। इसके पोताश्रय में काफी बड़े जलयान भी आकर लंगर डाल सकते हैं।
(3) आवागमन के साधन – विशाखापट्टनम् पत्तन का पृष्ठ प्रदेश दक्षिणी-पूर्वी एवं दक्षिणी-मध्य रेलमार्गों द्वारा जुड़ा है। इसके पृष्ठ प्रदेश से कोलकाता की अपेक्षा यंहाँ पहुँचने में कम समय लगता है तथा व्यय भी। कम करना पड़ता है। यहाँ पर जलयान निर्माण, लोहा-इस्पात, रासायनिक उर्वरक तथा तेलशोधन के कारखाने भी स्थापित किये गये हैं।
(4) पृष्ठ प्रदेश – विशाखापट्टनम् को पृष्ठ प्रदेश आन्ध्र प्रदेश के अधिकतर भाग, ओडिशा, पूर्वी मध्य प्रदेश एवं तमिलनाडु राज्यों पर विस्तृत है। इन राज्यों के व्यापार के लिए यही पत्तन उत्तम एवं सुविधाजनक है। इसका पृष्ठ प्रदेश कृषि पदार्थों की अपेक्षा खनिज पदार्थों में अधिक धनी है। यहाँ कोयला, लौह-अयस्क तथा मैंगनीज के भारी भण्डार हैं। चावल, मूंगफली, नारियल, चमड़ा एवं खाले भी यहाँ के प्रमुख उत्पाद हैं।
(5) व्यापार – इस पत्तन द्वारा सूती वस्त्र, लोहा-इस्पात का सामान, मशीनें, पेट्रोल एवं रासायनिक पदार्थ प्रमुख रूप से आयात किये जाते हैं।
जापान को लौह-अयस्क निर्यात करने में इस पत्तन की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। अन्य वस्तुओं में कोयला, लकड़ियाँ, चमड़ा, खालें, मूंगफली, मैंगनीज, लोहा, हरड़, बहेड़ा, लाख, खली आदि का निर्यात किया जाता है। आयातक वस्तुओं में वस्त्र, पेट्रोलियम उत्पाद, सीमेण्ट, मशीनें, कोयला, लोहा, रासायनिक पदार्थ, अखबारी कागज एवं खनिज तेल प्रमुख हैं। विशाखापट्टनम् पत्तन में प्रति वर्ष 563 जलयान आते हैं, जिनके द्वारा 148 लाख टन माल का व्यापार किया जाता है।
(6) मुम्बई Mumbai
यह भारत का ही नहीं अपितु विश्व का एक प्रमुख पत्तन है। देश का 20% से भी अधिक व्यापार मुम्बई पत्तन द्वारा किया जाता है। इस पत्तन को निम्नलिखित भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं –
(1) स्थिति – मुम्बई पत्तन सालसट द्वीप पर लगभग 200 वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तृत है। यह भारत के पश्चिमी तट पर एक प्राकृतिक कटान में स्थित है, जहाँ मानसून काल के तूफानों से जलयान सुरक्षित खड़े रह सकते हैं। यह पत्तन यूरोप, पूर्वी एशिया एवं ऑस्ट्रेलिया के मार्ग में पड़ता है। पत्तन के निकट 11 मीटर गहराई होने से जलयान समुद्रतट तक आकर ठहर जाते हैं। यहाँ पर एक खाड़ी बन गयी। है जो 23 किमी लम्बी एवं 10 किमी चौड़ी है। स्वेज नहर को पार कर आने वाले सभी प्रकार के जलयान यहाँ पर आसानी से ठहर सकते हैं। इस प्रकार पश्चिम से पूर्व को जोड़ने में इस पत्तन की भूमिका बड़ी ही। महत्त्वपूर्ण है।
(2) संचार सुविधाएँ – मुम्बई को यद्यपि पश्चिमी घाट ने देश के भीतरी भागों से अलग-थलग कर दिया है, परन्तु थालघाट एवं भोरघाट दरों ने इसे सड़क एवं रेलमार्गों द्वारा उत्तरी-दक्षिणी एवं मध्य-पूर्वी भारत से जोड़ दिया है। मुम्बई अन्तर्राष्ट्रीय वायु सेवाओं का भी प्रमुख केन्द्र है।
(3) पोताश्रय – जिस स्थान पर मुम्बई पत्तन का निर्माण किया गया है, वहाँ जल की गहराई 11 मीटर है। इतनी गहराई में वे सभी जलयान आकर ठहर सकते हैं जो स्वेज नहर से होकर निकल सकते हैं, क्योंकि स्वेज नहर की गहराई भी लगभग इतनी ही है।
मुम्बई पत्तन के तीन मुख्य डॉक्स हैं-प्रिंस डॉक में 12, विक्टोरिया डॉक में 13 और एलेक्जेण्ड्रा डॉक में 17 बर्थ हैं। यहाँ पर 2 शुष्क डॉक भी बनाये गये हैं। इनके अतिरिक्त कुछ उप-पत्तनों का भी विकास किया गया है जिनमें नावों से आने वाला सामान एवं यात्री उतरते-चढ़ते हैं। तटीय व्यापार की दृष्टि से इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस पत्तन के निकट ही पेट्रोलियम के गोदाम भी बनाये गये हैं। एक नया गोदाम बचूर द्वीप के समीप में भी निर्मित किया गया है। विशाल गोदामों का होना मुम्बई पत्तन की सबसे बड़ी विशेषता है। यहाँ अनाज एवं कपास रखने के गोदाम भी बनाये गये हैं। जिनमें 178 अग्नि-सुरक्षित कमरे हैं। इन गोदामों में अग्निसुरक्षा, आवागमन, अस्पताल, जलपान-गृह आदि की भी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
(4) पृष्ठ प्रदेश – मुम्बई पत्तन का पृष्ठ प्रदेश बड़ा ही विशाल है जो दक्षिण में तमिलनाडु के पश्चिमी भाग से लेकर उत्तर में कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात एवं महाराष्ट्र राज्यों तक फैला है। इसका पृष्ठ प्रदेश कृषि उत्पादन में बड़ा ही धनी है।
इस पत्तन के विकास के लिए सन् 1969 में मुम्बई पोर्ट ट्रस्ट प्राधिकरण बनाया गया, जिससे इसके विकास की विभिन्न योजनाएँ बनायी गयी हैं। कुल मिलाकर 55 घाटों का निर्माण किया गया है जहाँ पर एक साथ कई जलयानों से माल लादा एवं उतारा जा सकता है। प्रारम्भ में इसकी व्यापार क्षमता 150 लाख मीट्रिक टन थी जिसे बढ़ाकर 300 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है।
(5) व्यापार (महत्त्व) – व्यापार की दृष्टि से इस पत्तन को भारत में प्रथम स्थान है। देश के पेट्रोलियम व्यापार का 45%, सामान्य व्यापार को 44%, खाद्यान्न व्यापार का 30% तथा यात्रियों को लाने-ले-जाने का अधिकांश कार्य इसी पत्तन द्वारा किया जाता है। इस पत्तन द्वारा अलसी, मूंगफली, चमड़े का सामान, तिलहन, लकड़ी, ऊन, ऊनी एवं सूती वस्त्र, चमड़ा, मैंगनीज, अभ्रक, इंजीनियरिंग का सामान, लकड़ी, चाँदी आदि वस्तुएँ विदेशों को निर्यात की जाती हैं।
पेट्रोलियम का आयात इसी पत्तन द्वारा सबसे अधिक किया जाता है। बॉम्बे-हाई (Bombay-High) में तेल के भारी उत्पादन से इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया है। यहाँ पर विदेशों से सूती, ऊनी एवं रेशमी वस्त्र, मशीनें, नमक, कोयला, कागज, रंग-रोगन, फल, रासायनिक पदार्थ, मिट्टी का तेल एवं लोहे का सामान, उत्तम किस्म की कपास, रासायनिक उर्वरक आदि वस्तुओं का आयात किया जाता है।
इस पत्तन के कारण ही इसके पृष्ठ प्रदेश में सूती वस्त्र उद्योग का विकास सम्भव हो सका है। दो पेट्रोल-शोधनशालाएँ ट्राम्बे में आयातित पेट्रोल के कारण स्थापित की जा सकी हैं। इसके अतिरिक्त रासायनिक उर्वरक, इन्जीनियरिंग, ऊनी वस्त्र, चमड़ा, दवाइयाँ, सीमेण्ट, मोटर, सिनेमा आदि उद्योग भी काफी विकसित हैं। इस पत्तन पर 3,557 जलयानों का आवागमन प्रतिवर्ष होता है जिनके द्वारा 286 लाख टन सामान का व्यापार किया जाता है जिसमें 134 लाख टन का आयात तथा 152 लाख टन का निर्यात किया जाता है। भविष्य में इसकी व्यापार क्षमता और भी अधिक बढ़ जाने की सम्भावना है, क्योंकि इसके निकट ही न्हावाशेवा नाम का एक नया पत्तन र 985 करोड़ की लागत से विकसित किया गया है।
मुम्बई पत्तन के विकास के कारण –
- अन्य भारतीय पत्तनों की अपेक्षा यूरोप के अधिक निकट स्थिति।
- स्वेज नहर मार्ग तथा उत्तमाशा-अन्तरीप मार्ग पर केन्द्रीय स्थिति रखना।
- प्राकृतिक एवं विस्तृत पोताश्रय।
- पत्तन का वर्ष भर आवागमन के लिए खुले रहना।
- अपने पृष्ठ प्रदेश से रेल एवं सड़क मार्गों द्वारा जुड़ा होना।
- इसके पृष्ठ प्रदेश का कपास, गेहूँ, गन्ना, मूंगफली जैसी फसलों के उत्पादन में विशेष स्थान।
- पश्चिमी घाट की प्राकृतिक स्थिति का जल-विद्युत शक्ति के विकास के लिए अनुकूल होना।
- समीप में तारापुर अणु शक्ति-गृह का स्थापित किया जाना।
- इसके पृष्ठ प्रदेश में सघन जनसंख्या का निवास होना।
(7) चेन्नई Chennai
पूर्वी तट पर यह भारत का मुख्य कृत्रिम पत्तन है। इसे सुरक्षित बनाने के लिए तट से 3.5 किमी की दूरी पर 90 मीटर गहरे सागर की नींव पर दो चौड़ी सीमेण्ट व कंकरीट की दीवारें बनाकर 80 हेक्टेयर से अधिक सागर जल को सुरक्षित बन्दरगाह क्षेत्र की भाँति विकसित किया गया है। इस पत्तन का मुख्य द्वार 120 मीटर लम्बा है। यहाँ जल की गहराई 10 मीटर रहती है, किन्तु ज्वार आने पर यह 12 मीटर तक हो जाती है। इस सुरक्षित पोताश्रय में वर्षा और तूफान के समय 16 जहाज सरलता से खड़े रहते हैं। बड़े जहाज भी साधारणतया 10 मीटर गहरे भागों तक आते हैं, किन्तु अक्टूबर-नवम्बर में जब कभी बंगाल की खाड़ी में तूफान आते हैं तो इनके द्वारा समुद्र का जल लहर के रूप में ऊपर उठ जाता है। और हानि की सम्भावना रहती है। अब इससे बचाव के लिए दीवारों को ऊँचा एवं अधिक सक्षम अनाया गया है। कुल व्यापार की दृष्टि से अब यह मुम्बई के पश्चात् सबसे व्यस्त बन्दरगाह हो गया है।
चेन्नई का पृष्ठ प्रदेश दक्षिण के प्रायद्वीप के पूर्वी और दक्षिणी राज्यों तक विस्तृत है। इसमें दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश, सम्पूर्ण तमिलनाडु और कर्नाटक का पूर्वी भाग सम्मिलित होता है, किन्तु मुम्बई और कोलकाता की भाँति न तो यह इतना उपजाऊ और समृद्ध है और न ही इतना घना बसा है। तमिलनाडु का पृष्ठ प्रदेशे सड़कों और रेलमार्गों द्वारा अन्य राज्यों से जुड़ा है और यह स्वयं एक औद्योगिक नगर है जहाँ सूती वस्त्रे, सीमेण्ट, सिगरेट, रेशमी वस्त्र, चमड़ा आदि उद्योग स्थापित हैं। इसका पृष्ठ प्रदेश भी अब सुविकसित है।
चेन्नई पत्तन से विदेशों को सूती और रेशमी कपड़े, चाय, नारियल, कहवा, हड्डी की खाद, तम्बाकू, मैंगनीज, विविध समुद्री उत्पाद, इन्जीनियरी सामान, संरक्षित खाद्य पदार्थ, मोटर, अन्य वाहन, प्याज, आलू, खली, मसाले आदि वस्तुएँ निर्यात की जाती हैं। आयात व्यापार में कोयला, कोक, खाद्यान्न, मोटरें, रंग, पेट्रोलियम, कागज, दवाइयाँ, धातुएँ, मशीनें, रासायनिक पदार्थ व उर्वरक मुख्य हैं। सभी बन्दरगाहों से जितना माल लादा या प्राप्त किया जाता है, उसका लगभग 20 प्रतिशत माल इस बन्दरगाह द्वारा प्राप्त किया या लादा जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
भारत का रेखा मानचित्र खींचकर उस पर पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट की स्थिति अंकित कीजिए।
या
भारत का रेखा मानचित्र बनाइए तथा उसमें कॉदला पत्तन (बन्दरगाह) को दिखाइए।
या
मुम्बई बन्दरगाह को एक रेखा मानचित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए। [2014]
या
कोलकाता बन्दरगाह को एक रेखा मानचित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए। [2014, 15]
उत्तर
इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का अध्ययन करें।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
उस पत्तन का नाम बताइए जिसकी स्थापना कोलकाता के सहायक पत्तन के रूप में की गयी है?
उत्तर
हल्दिया।
प्रश्न 2
उस पत्तन का नाम बताइए जिसका विकास मुम्बई पत्तन पर दबाव को कम करने के लिए किया गया।
उत्तर
न्हावाशेवा।
प्रश्न 3
उस पत्तन का नाम बताइए जो पश्चिमी तट से लौह धातु का निर्यात करता है।
उत्तर
मार्मागोआ।
प्रश्न 4
पाराद्वीप पत्तन किसलिए प्रसिद्ध है?
उत्तर
पाराद्वीप पत्तन इसलिए प्रसिद्ध है कि इस पत्तन से मुख्यत: जापान को लौह धातु का निर्यात किया जाता है।
प्रश्न 5
काँदला बन्दरगाह के दो व्यापारिक महत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
- काँदला पत्तन पर आयात किये जाने वाले माल पर कोई कर नहीं देना पड़ता।
- अन्य पत्तनों की भाँति यहाँ विदेशों से लाकर भरे जाने वाले छोटे और पुन: तैयार किये जाने वाले माल व मशीन पर चुंगी नहीं लगती।
प्रश्न 6
भारत के पश्चिमी तट के दो प्राकृतिक बन्दरगाहों के नाम लिखिए। [2007, 09, 16]
उत्तर
- मुम्बई तथा
- कोच्चि (कोचीन)।
प्रश्न 7
भारत के पूर्वी तट के दो प्राकृतिक बन्दरगाहों के नाम लिखिए। [2007, 10]
उत्तर
- विशाखापट्टनम तथा
- कोलकाता।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
निम्नलिखित शहरों में कौन बन्दरगाह नहीं है?
(क) नागपुर
(ख) मुम्बई
(ग) कोलकाता
(घ) विशाखापट्टनम्
उत्तर
(क) नागपुर।
प्रश्न 2
निम्नलिखित पत्तनों (बन्दरगाहों) में से कौन भारत के पूर्वी तट पर स्थित है? [2008, 2014]
(क) तूतीकोरिन
(ख) काँदला
(ग) मार्मागोआ
(घ) कोच्चि
उत्तर
(क) तूतीकोरिन।
प्रश्न 3
निम्नलिखित में से कौन-सा बन्दरगाह भारत के पूर्वी तट पर स्थित है? [2011]
(क) कॉदला
(ख) कोचीन
(ग) मंगलौर
(घ) चेन्नई
उत्तर
(घ) चेन्नई।
प्रश्न 4
निम्नलिखित में से कौन-सा बन्दरगाह भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है? [2013, 14]
(क) पाराद्वीप
(ख) कोच्चि
(ग) तूतीकोरिन
(घ) हल्दिया
उत्तर
(ख) कोच्चि
प्रश्न 5
निम्नलिखित बन्दरगाहों में से कौन-सा भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है?
(क) पाराद्वीप
(ख) हल्दिया
(ग) विशाखापट्टनम्
(घ) मार्मागोआ
उत्तर
(घ) मार्मागोआ।
प्रश्न 6
निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही है? [2007]
(क) गुजरात-मंगलौर
(ख) तमिलनाडु-तूतीकोरिन
(ग) महाराष्ट्र-पाराद्वीप
(घ) कर्नाटक-कॉदला
उत्तर
(ख) तमिलनाडु-तूतीकोरिन।
प्रश्न 7
निम्नलिखित में से कौन-सा पत्तन भारत के पूर्वी तट पर स्थित है? [2010]
(क) मुम्बई
(ख) मंगलौर
(ग) कोच्चि
(घ) पाराद्वीप
उत्तर
(घ) पाराद्वीप।
प्रश्न 8
पाराद्वीप समुद्री पत्तन स्थित है – [2010]
(क) गुजरात में
(ख) कर्नाटक में
(ग) ओडिशा में
(घ) तमिलनाडु में
उत्तर
(ग) ओडिशा में।
प्रश्न 9
न्हावाशेवा उपग्रह पत्तन है – [2010]
(क) चेन्नई का
(ख) कोलकाता का
(ग) मुम्बई का
(घ) कोच्चि का
उत्तर
(ग) मुम्बई का।
प्रश्न 10
भारत का सबसे बड़ा नगर है – [2010]
(क) दिल्ली
(ख) मुम्बई
(ग) कोलकाता
(घ) चेन्नई
उत्तर
(ख) मुम्बई।
प्रश्न 11
निम्नलिखित में से कौन-सा बन्दरगाह भारत के पूर्वी तट पर स्थित है? [2015]
(क) कोचीन
(ख) मंगलौर
(ग) विशाखापट्टनम्
(घ) मुम्बई
उत्तर
(ग) विशाखापट्टनम्।
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