UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 21 Development of Language (भाषा का विकास)

UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 21 Development of Language

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BoardUP Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectPedagogy
ChapterChapter 21
Chapter NameDevelopment of Language (भाषा का विकास)
Number of Questions Solved21
CategoryUP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 21 Development of Language (भाषा का विकास)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भाषा के विकास से क्या आशय है? भाषा के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
शैशवावस्था में भाषा-विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

भाषा-विकास का आशय
(Meaning of Language Development)

बालकों के मानसिक विकास को समझने के लिए भाषा के विकास का जानना आवश्यक है। भाषा भाव तथा विचार व्यक्त करने का एक साधन है। भाषा के अतिरिक्त हम दूसरी तरह से भी भाव तथा विचार व्यक्त करते हैं, किन्तु जितनी सुविधा से हेम शब्दों द्वारा उन्हें व्यक्त कर सकते हैं, उतनी सुविधा से हम किसी दूसरी तरह से व्यक्त नहीं कर सकते। भाषा केवल विचार अभिव्यक्ति का ही साधन मात्र नहीं है, वरन् वह हमारी अनेक मानसिक शक्तियों की वृद्धि का भी मुख्य आधार है। प्रो० स्वीट के शब्दों में, “भाषा; ध्वनि तथा वाणी द्वारा विचार की अभिव्यक्ति है।’ बालक जन्म के समय केवल क्रन्दन करता है। वह क्रमश: भाषा सीखता है। इस प्रकार से बालक द्वारा भाषा को सीखने की प्रक्रिया को ही ‘भाषा का विकास’ या ‘भाषागत विकास’, कहते हैं। भाषा के विकास के लिए शिशु का अन्य व्यक्तियों के साथ सम्पर्क स्थापित होना अनिवार्य शर्त है।

भाषा-विकास का स्वरूप
(Nature of Language Development)

क्रो और क्रो (Crow & Crow) के अनुसार भाषा के विकास पर विचार करते समय दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है

  1. संवेदनात्मक प्रतिक्रियाएँ; जैसे-देखना और सुनना।
  2. संवेदन क्रिया सम्बन्धी अनुक्रियाएँ; जैसे-बोलना, लिखना तथा चित्रांकन।

भाषा-विकास की अवस्थाएँ (चरण)
(Stages of Language Development)

बालक के भाषा-विकास की प्रमुख अवस्थाएँ (चरण) निम्नांकित हैं|

1. चिल्लाना एवं रोना- बालक जन्म लेने के पश्चात् ही रोना और चिल्लाना प्रारम्भ कर देता है। अत: चिल्लाना तथा रोना ही उसकी प्रारम्भिक भाषा मानी जा सकती है। जब शिशु कुछ बड़ा हो जाता है तो उसका मास का शिशु भूख लगने या पेट में दर्द होने पर रोने लग जाता है। रोते समय उसका चेहरा लाल हो जाता है और आँखों में आँसू भी बहने लगते हैं, परन्तु ज्यों-ज्यों बालक बड़ा होने लगता है, उसके रोने में
बलबलाना कमी आ जाती है।
हाव-भाव

2. बलबलाना- बालक का चिल्लाना ही उसके बलबलाने में परिवर्तित हो जाता है और इसी बलबलाने से शब्द उच्चारण का विकास होता है। बलबलाना चिल्लाने की ध्वनियों से अलग होता है। क्रो एवं क्रो के अनुसार बलबलाने की आयु 3 मास से 8 मास तक। होती है। हैवलाक इसे 12 मास मानता है। बालक बलबलाना कब प्रारम्भ करता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसके स्वर यन्त्रों का विकास कहाँ तक हुआ है। मैकार्थी बलबलाने को एक खेल मानते हैं। बालक इसमें एक आनन्द का अनुभव करता है। प्रायः प्रसन्नता की दशा में ही बालक बलबलाता है। बलबलाने में एक ही ध्वनि की पुनरावृत्ति होती है। बालक प्रथम स्वरों को ही दोहराता है और व्यंजनों का उच्चारण बाद में करता है। अतः सर्वप्रथम अ, इ, उ, ए आदि स्वर दोहराये जाते हैं।

3. हाव-भाव- हाव-भाव भी भाषा विकास में अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। बालक में हाव-भाव का आविर्भाव बलबलाने के साथ-साथ ही हो जाता है। छोटे बालक शब्दों के उच्चारण के साथ हाव-भाव भी प्रदर्शित करते हैं और इस प्रकार बोले गये शब्दों पर बल देते हैं। वास्तव में छोटे बालकों के साथ हाव-भाव को शब्दों का स्थानापन्न समझना चाहिए।

4. शब्द-भण्डार- ज्यों-ज्यों बालक बड़ा होने लगता है, त्यों-त्यों उसके शब्द-भण्डार में वृद्धि होती जाती है। प्रारम्भ में बालक संज्ञाओं का प्रयोग अधिक करता है। दो वर्ष का बालक लगभग पचास प्रतिशत से अधिक संज्ञाएँ बोलता है। इन संज्ञाओं में मुख्यतया मूल आवश्यकताओं से सम्बन्धित संज्ञाएँ होती हैं। धीरे-धीरे उसकी रुचि खिलौने आदि में होने लगती है। अतः वह उनके नाम भी लेना सीख जाता है। संज्ञाओं के पश्चात् बालक क्रियाओं का प्रयोग करना सीखते हैं। प्रायः साधारण क्रिया-सूचक शब्द; जैसे-लाओ, आओ, लो, दो, पकड़ो आदि का प्रयोग बालक पहले करता है। डेढ़-दो वर्ष का बालक विशेषण शब्दों का प्रयोग करना सीख जाता है। प्रारम्भ में प्रायः गरम, ठण्डा, अच्छा, बुरा आदि विशेषणों का ही प्रयोग करता है। तीन वर्ष का बालक सर्वनामों का भी प्रयोग करना सीख जाता है। स्मिथ, शर्ती, गैसेल, थॉमसन आदि के अनुसार इस अवस्था के बालक लगभग 900 शब्दों का प्रयोग करते हैं। बालक पाँच वर्ष में दो हजार और छह वर्ष में लगभग 2500 शब्दों का प्रयोग करने लग जाते हैं। संक्षेप में उसके शब्द भण्डार में तीव्रता से वृद्धि होती

5. वाक्य-निर्माण- भाषा विकास की एक अन्य अवस्था वाक्य-निर्माण की अवस्था है। 12वें मास में बालक वाक्य प्रयोग करने लग जाता है। प्रारम्भ में बालक एक शब्द के वाक्यों का प्रयोग करते हैं; जैसे-‘पानी’। इसका अर्थ है-‘मुझे पानी दो।’ 18वें मास में दो शब्दों के वाक्यों का प्रयोग करने लगते हैं। इन दो शब्दों में प्राय: एक शब्द संज्ञा होती है और दूसरी क्रिया; जैसे-‘खाना खाऊँ। गैसेल, गैरीसन, मैकार्थी तथा जर्सील्ड का मत है कि ढाई वर्ष के पश्चात् बालक पूरे वाक्यों का प्रयोग करने लग जाता है। प्रारम्भ में बालक सरल वाक्यों का प्रयोग करता है, बाद में लम्बे और मिश्रित वाक्यों का। कुशाग्र और प्रतिभाशाली बालक अपेक्षाकृत लम्बे तथा मिश्रित वाक्यों का प्रयोग सरलता से कर लेता है। 5 वर्ष के बालक छ: से दस शब्दों का प्रयोग अपने वाक्यों में करने लग जाते हैं।

6. शुद्ध उच्चारण- दस मास की आयु तक के बालक की बोली को समझना बहुत कठिन है। केवल परिवार के लोग ही उसकी भाषा या बोली का अर्थ लगा पाते हैं, क्योंकि उसका उच्चारण शुद्ध नहीं होता। लगभग 18 मास के पश्चात् ही उसका उच्चारण सुधर पाता है तथा तीन वर्ष की आयु तक उसमें पर्याप्त सुधार हो जाता है। जरसील्ड के अनुसार, बालकों के उच्चारण में व्यक्तिगत भेद पाये जाते हैं। कुछ छोटे बालके बड़े होने पर भी शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते। इस भेद का प्रमुख कारण है-स्वर यन्त्रों के विकास में अन्तर, परिवार के सदस्यों द्वारा अशुद्ध उच्चारण, प्रेरणा में अन्तर। उपर्युक्त विवरण द्वारा भाषा के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का सामान्य परिचय प्राप्त हो जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि बालक के भाषागत विकास को विभिन्न कारक या तत्त्व प्रभावित करते हैं। इस प्रकार के मुख्य कारक हैं-परिपक्वता, शारीरिक स्वास्थ्य, सीखने के अवसर एवं अनुकरण, ” बौद्धिक क्षमता, लिंग-भेद, पारिवारिक सम्बन्ध तथा परिवार का सामाजिक-आर्थिक स्तर।

प्रश्न 2
वे कौन-से कारक हैं, जो बालकों के भाषा-विकास को प्रभावित करते हैं? विवेचना कीजिए।
उत्तर:

भाषा-विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors Influencing the Language Development)

बालकों के भाषा-विकास को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं|

1. स्वास्थ्य स्वास्थ्य का प्रभाव भाषा- विकास पर भी पड़ता है। जीवन के पहले दो वर्षों में गम्भीर या लम्बी बीमारी होने से बालक का भाषा-विकास ठीक से नहीं हो पाता। रोगी बालक को अन्य बालकों का सम्पर्क नहीं मिलता। बिना बोले ही उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है। उसे बोलने की कोई प्रेरणा नहीं मिलती, जिससे उसका भाषा-विकास पिछड़ जाता है। जिन बालकों में श्रवण दोष पाया जाता है उनका भाषा-विकास अवरोधित हो जाता है। दोषयुक्त तालु, कण्ठ, दाँत तथा जबड़ों के कारण भी बालक शुद्ध भाषा की योग्यता प्राप्त नहीं कर पाता।

2. बुद्धि परीक्षणों के द्वारा यह देखा गया है कि बालक की बुद्धि व उसकी भाषा- योग्यता में गहरा सम्बन्ध है। तीव्रबुद्धि बालक सामान्य बालक की अपेक्षा कम-से-कम चार माह पूर्व बोलना प्रारम्भ कर देता है और मन्दबुद्धि बालक सामान्य बुद्धि वाले बालक से बोलने में तीन वर्ष पिछड़ जाता है। परन्तु सभी मन्दबुद्धि बालकों के सम्बन्ध में यह बात नहीं कही जा सकती। ऐसा भी देखा गया है कि जो बालक अपनी प्रारम्भिक कक्षाओं में भाषा में पिछड़े रहते हैं, ऊँची कक्षाओं में काफी आगे बढ़ जाते हैं।

3. सामाजिक-आर्थिक स्थिति बालक के भाषा- विकास पर परिवार की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का प्रभाव भी पड़ता है। शिक्षित परिवार के बालकों का भाषा-विकास अशिक्षित परिवार के बालकों की तुलना में अधिक द्रुतगति से होता है। उच्च सामाजिक स्तर के परिवारों के बालकों का शब्द-भण्डार निर्धन परिवारों के बालकों की अपेक्षा अधिक होता है। मेकार्थी के अनुसार, “उच्च व्यवसाय वाले परिवारों के बालकों पारिवारिक सम्बन्ध की वाक्य-रचना निम्नकोटि के व्यवसाय वाले परिवारों के बालकों की वाक्य-रचना की अपेक्षा कहीं अधिक सुन्दर होती है। इन सबका कारण यही है कि शिक्षित और उच्च सामाजिक व आर्थिक स्तर के परिवारों के बालकों को सीखने और समझने के अधिक अवसर उपलब्ध होते हैं।”

4. पारिवारिक सम्बन्ध- बालक के माता-पिता के साथ क्या सम्बन्ध हैं, माता-पिता बालक के साथ कितना समय व्यतीत करते हैं, माता-पिता बालक से अत्यधिक प्रेम करते हैं या उसे हर समय झिड़कते हैं, इन सब बातों का प्रभाव बालक के भाषा-विकास पर पड़ता है। जिन परिवारों में बालकों की संख्या अधिक होती है, वहाँ माता-पिता बालकों की ओर उचित ध्यान नहीं दे पाते, जिसके परिणामस्वरूप बालकों का भाषा-विकास पिछड़ जाता है। अकेले बालक का विकास जुड़वाँ बालक की तुलना में अधिक अच्छा होता है। क्योंकि जुड़वाँ बालकों को अनुकरण के अवसर नहीं मिलते। सामान्य परिवार में पले बालक का भाषा-विकास अनाथालय में पले बालक की अपेक्षा अच्छा होता है।

5. लिंग-भेद- जीवन के प्रथम वर्ष में शिशु के भाषा-विकास में किसी प्रकार का लिंग-भेद नहीं पाया जाता लेकिन दूसरे वर्ष के आरम्भ से ही यह अन्तर स्पष्ट होने लगता है। लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा शीघ्र बोलना शुरू करती हैं। शब्द-भण्डार, वाक्यों की लम्बाई और उनकी शुद्धता, भाषा की समझ और उच्चारण आदि में लड़कियाँ लड़कों से आगे होती हैं और यह श्रेष्ठता लड़कियों में काफी बड़ी अवस्था तक बनी रहती है लेकिन अन्त में पूर्ण विकास की स्थिति में बहुधा लड़के लड़कियों से आगे हो जाते हैं।}

6. दो भाषाएँ- जहाँ बालक को एक साथ दो भाषाएँ सिखाई जाती हैं वहाँ बालक का भाषा-विकास अवरुद्ध हो जाता है। क्योंकि बालक का ध्यान दोनों ओर रहता है, उसके मस्तिष्क में सन्देह पैदा हो जाता है, उसे एक ही बात के लिए दो-दो शब्द याद करने पड़ते हैं। इससे बालक का शब्द-भण्डार नहीं बढ़ पाता। वह सही उच्चारण नहीं कर पाता। उसमें तनाव पैदा हो जाता है। उसके मस्तिष्क पर व्यर्थ का बोझा लदा रहता है, जिससे उसे समायोजन करने में कठिनाई पैदा होती है। दो भाषाएँ सीखने से केवल भाषा-विकास पर ही नहीं उसके चिन्तन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। वह यह निश्चय नहीं कर पाता कि किस समय कौन-सा शब्द बोलना उचित है। अतः शैशवावस्था में बालक को केवल उसकी मातृभाषा ही सिखाई जानी चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भाषा-विकास के मुख्य सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
या
भाषा का विकास बालक में किस प्रकार सम्भव है? इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:

भाषा-विकास के मुख्य सिद्धान्त
(Main Theories of Language Development)

बालक में भाषा का विकास कुछ सिद्धान्तों के अनुसार होता है। इन सिद्धान्तों का विवरण निम्नलिखित है-

1. बोलने के लिए प्रेरणा- बालक को प्रारम्भ में बोलने के लिए किसी-न-किसी प्रकार की प्रेरणा या प्रोत्साहन की आवश्यकता रहती है। वह प्रारम्भ में अपनी मूल आवश्यकताओं के अनुसार ही बोलना सीखता है। दूसरे शब्दों में, बालक भाषा का प्रयोग करके अपने माता-पिता को अपनी विभिन्न आवश्यकताओं से अवगत कराने का प्रयास करता है। संक्षेप में, बालकों में भाषा का विकास प्रेरणाओं पर आधारित होता है।

2. अनुकरण- बालक का भाषा का विकास उसकी अनुकरण-क्षमता पर भी निर्भर करता है। वह अपने परिवारजनों द्वारा बोले गये शब्दों का भी अनुकरण बड़े चाव से करता है। अत: यह आवश्यक है कि बालकों के सम्मुख जिन शब्दों का प्रयोग किया जाए उनको शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण किया जाए।

3. स्वर यन्त्र की परिपक्वता- गले, फेफड़ों और स्वर यन्त्र के द्वारा शब्द उच्चारण का कार्य होता है। इनके अतिरिक्त तालू, होंठ, नाक और दाँत भी शब्दोच्चारण में सहायक होते हैं। ज्यों-ज्यों इन अंगों में परिपक्वता आती है, त्यों-त्यों भाषा विकसित होती है।

4. सम्बद्धता- बालक के भाषा-विकास में सम्बद्धता का अपना विशेष योग रहता है। वह अपने विकास-क्रम में शब्दों और उसके अर्थों का सम्बन्ध तथा साहचर्य समझने लगता है। उदाहरण के लिएबालक के सम्मुख जब ‘कुत्ता’ शब्द बोला जाता है, तो उसके सम्मुख कुत्ता उपस्थित किया जाता है। इस प्रकार कुत्ता शब्द के अर्थ से वह ‘कुत्ते’ नामक जानवर से परिचित हो जाता है। भविष्य में जब कभी ‘कुत्ता’ शब्द बोला जाता है तो बिना कुत्ता देखे ही बालक के मानस पटल पर उसकी प्रतिभा अंकित हो जाती है।

प्रश्न 2
मानव-समाज के लिए भाषा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:

मानव-समाज के लिए भाषा का महत्त्व
(Importance of Language for Human Society)

समस्त प्राणी-जगत् में केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जिसके पास अत्यधिक विकसित भाषा है। विकसित भाषा के ही कारण मनुष्य एक विकसित एवं बहुक्षमतायुक्त प्राणी है। भाषा के ही आधार पर मानव-समाज अत्यधिक संगठित एवं व्यवस्थित है। मानवीय संस्कृति के भरपूर विकास में भी सर्वाधिक योगदान भाषा का ही है। भाषा के अभाव के ही कारण अन्य कोई भी पशु संस्कृति का विकास नहीं कर पाया है। मानव-समाज में सम्पन्न होने वाली समस्त सामाजिक अन्त:क्रियाएँ मुख्य रूप से भाषा के ही माध्यम से परिचालित होती हैं। इस तथ्य को शैरिफ तथा शैरिफ ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “शब्दों के द्वारा व्यक्ति एक-दूसरे के निकट सम्बन्ध में आते हैं। भाषा के माध्यम से व्यक्ति ऐसी योजनाएँ बनाता है जो मनुष्य को भविष्य में उन्नति की ओर ले जाती हैं। भाषा के माध्यम से व्यक्ति संचित ज्ञान को अन्य व्यक्तियों तक पहुँचाता है। मानव-समाज में व्यक्ति के समाजीकरण की प्रक्रिया में भी सर्वाधिक योगदान भाषा का ही होता है। भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा व्यक्ति पर समाज का नियन्त्रण लागू किया जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना भी आवश्यक है कि समाज में बालकों की शिक्षा की प्रक्रिया भी मुख्य रूप से भाषा के ही माध्यम से सम्पन्न होती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बालक के सन्दर्भ में भाषा के विकास पर परिपक्वता तथा शारीरिक स्वास्थ्य का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
बालक के भाषागत विकास पर उसकी परिपक्वता तथा शारीरिक स्वास्थ्य को अनिवार्य रूप से प्रभाव पड़ता है। बोलना अनेक अंगों पर निर्भर करता है; जैसे–फेफड़े, गला, जीभ, होंठ, दाँत, स्वर यन्त्र तथा मस्तिष्क के बाकी केन्द्र आदि। बालक के ये अंग जब परिपक्व हो जाते हैं, तब ही बालक ठीक से बोल पाता है। इसके अतिरिक्त यदि कोई बालक दीर्घकाले तक बीमार रहता है तो भी उसके बोलने की क्रिया कुछ बिगड़ सकती है। यदि बालक के सुनने की क्षमता कम हो या उसके कानों में कुछ दोष हो तो भी बालक की भाषा का विकास सामान्य नहीं रह पाता। यही कारण है कि बधिर बच्चे मूक या गूंगे भी होते हैं।

प्रश्न 2
भाषागत विकास का बालक की बौद्धिक क्षमता से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर
टरमन, शर्ली, मैकार्थी आदि मनोवैज्ञानिकों का मत है कि बालक की बौद्धिक क्षमता और उसके भाषा-विकास में विशेष सम्बन्ध है। बालक की बोली सुनकर उसकी बौद्धिक योग्यता का ज्ञान हो जाता है, परन्तु जरसील्ड का कहना है कि बोलने की क्षमता को बौद्धिक योग्यता से कोई सम्बन्ध नहीं है। उनके अनुसार जो बालक शीघ्र बोलना सीख जाता है, वह प्राय: सामान्य बुद्धि का होता है और यह भी आवश्यक नहीं है कि जो बालक देर से बोलना सीखता है, वह मन्दबुद्धि वाला ही हो।

प्रश्न 3
भाषागत विकास पर लिंग-भेद का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
एक वर्ष तक बालक तथा बालिका में भाषा-विकास प्राय: एक-सा होता है, परन्तु दूसरे वर्ष से ही दोनों में अन्तर प्रारम्भ हो जाता है। बालिकाएँ बालकों की अपेक्षा पहले बोलना प्रारम्भ कर देती हैं। बालिकाएँ लम्बे वाक्य सरलता से बोल सकती हैं, परन्तु बालक छोटे-छोटे वाक्य ही बोल पाते हैं। इसी प्रकार बालिकाओं को शब्दोच्चारण बालकों की तुलना में अधिक शुद्ध होता है। मैकार्थी के अनुसार, इस भिन्नता का कारण है, बाल्यावस्था में बालिकाओं का अपनी माँ के साथ अधिक रहना। बालक अपने पिता से अधिक लगाव का अनुभव करते हैं, परन्तु पिता प्रायः जीविका हेतु बाहर जाकर कार्य करते हैं। अत: बालकों का भाषा-विकास उचित ढंग से नहीं हो पाता।

प्रश्न 4
भाषागत विकास पर सीखने के अवसरों तथा अनुकरण का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
वातावरण में अनेक ऐसे तत्त्व होते हैं, जो बालक के भाषा-विकास में सहायक होते हैं। इन तत्त्वों में सीखने के अवसर और अनुकरण प्रमुख हैं। जिन बालकों को भाषा सीखने के पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाते हैं, वे शीघ्र ही सीख जाते हैं। बालक का शब्द-भण्डार पड़ोसी बालकों के साथ खेलने से भी पर्याप्त विकसित होता है। माता-पिता के बोलने-चालने का अनुकरण करके भी बालक बहुत-कुछ सीखते हैं। अत: माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चे के सम्मुख शुद्ध और प्रभावमयी भाषा का ही प्रयोग करें। जिन परिवारों के सदस्य आपस में गाली-गलौज और असभ्य शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहाँ बालक भी गाली-गलौज करने लग जाते हैं।

प्रश्न 5
बालक के भाषागत विकास पर पारिवारिक सम्बन्धों का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पारिवारिक सम्बन्ध भाषा-विकास में विशेष योग देते हैं। मैकार्थी और थॉमसन के अनुसार, अनाथालय में रहने वाले बालक बहुत अधिक रोते हैं और कम बलबलाते हैं। ये बालक प्राय: देर से बोलना प्रारम्भ करते हैं। अतः यह सिद्ध होता है कि बालक का भाषा-विकास परिवार में ही समुचित ढंग से होता है। माता-पिता के सम्पर्क और दुलार में बालक शीघ्र बोलना सीख जाता है। डेविस तथा मैकार्थी के अनुसार, बड़े लड़के की भाषा अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक शुद्ध होती है, क्योंकि प्रौढ़ लोगों के साथ उसका सम्पर्क अधिक रहता है।

प्रश्न 6
भाषागत विकास पर परिवार के सामाजिक-आर्थिक स्तर का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि जिन परिवारों का सामाजिक तथा आर्थिक स्तर निम्न होता है, उनमें पले बालक देर से बोलना सीखते हैं। जर्सील्ड, गेसेल, डेविस, यंग तथा मैकार्थी के अनुसार, उच्च वर्गों के बालक जल्दी बोलना सीखते हैं तथा अधिक बोलते हैं। इस प्रकार के वातावरण में पले बालकों का उच्चारण भी शुद्ध होता है तथा शब्द-भण्डार बड़ा होता है। इन बच्चों की भाषा अधिक सुसंस्कृत, शिष्ट तथा परिष्कृत होती है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भाषा से क्या आशय है?
उत्तर:
पारस्परिक संचार के शाब्दिक रूप को भाषा कहा जाता है।

प्रश्न 2
भाषा की एक संक्षिप्त परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
‘‘भाषा की परिभाषा व्यक्तियों के बीच परम्परागत प्रतीकों के पाध्यम से विचार-विनिमय की प्रणाली के रूप में की जा सकती है।”

प्रश्न 3
नवजात शिशु की भाषा किस रूप में होती है?
उत्तर:
नवजात शिशु का क्रन्दन या जन्म-रोदन ही उसकी प्रारम्भिक भाषा होती है।

प्रश्न 4
भाषा के विकास के लिए सर्वाधिक अनिवार्य कारक क्या है?
उत्तर:
भाषा के विकास के लिए सर्वाधिक अनिवार्य कारक है-सामाजिक सम्पर्क।

प्रश्न 5
मानवीय भाषा के मुख्य प्रकारों या रूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मानवीय भाषा के मुख्य प्रकार यो रूप हैं-

  1. वाचिक अथवा मौखिक भाषा
  2. अंकित अथवा लिखित भाषा तथा
  3. सांकेतिक भाषा।

प्रश्न 6
संस्कृति के विकास में भाषा के योगदान या महत्त्व को स्पष्ट करने वाला कोई कथन लिखिए।
उत्तर:
“निश्चित रूप से भाषा मानव-संस्कृति की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण वस्तु है तथा भाषा के बिना संस्कृति का अस्तित्व और कार्य नहीं हो सकता।”

प्रश्न 7
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. भाषा पारस्परिक संचार का सर्वोत्तम माध्यम है
  2. शिशु की प्रारम्भिक भाषा क्रन्दन के रूप में होती है
  3. भाषा के विकास के अभाव में शिक्षा की प्रक्रिया सुचारु रूप से चलती है
  4. संस्कृति के विकास, संरक्षण एवं हस्तान्तरण में सर्वाधिक योगदान भाषा का ही होता है
  5. सामाजिक सम्पर्क के नितान्त अभाव में भी भाषा को सुचारु रूप से विकास हो सकता है

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. असत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
विचारों के आदान-प्रदान का प्रमुख साधन है
(क) भाषा
(ख) संकेत
(ग) प्रतीक
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 2.
शिशु की भाषा का प्रारम्भ होता है
(क) बुब्बू शब्द से
(ख) माँ शब्द से
(ग) जन्म-रोदन से
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 3.
भाषागत विकास के लिए अनिवार्य शर्त है
(क) नियमित रूप से विद्यालय में जाना
(ख) लिखना-पढ़ना सीखना
(ग) सामाजिक सम्पर्क
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 4.
भाषा के विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं
(क) परिपक्वता
(ख) सामाजिक सम्पर्क
(ग) परिवार का सामाजिक एवं आर्थिक स्तर
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
भाषा तथा शिक्षा का सम्बन्ध है
(क) भाषा तथा शिक्षा में कोई सम्बन्ध नहीं है
(ख) भाषा तथा शिक्षा का सम्बन्ध स्पष्ट नहीं है
(ग) भाषा सीखने के लिए शिक्षा आवश्यक है
(घ) सामान्य रूप से भाषा के माध्यम से ही शिक्षा का आदान-प्रदान होता है

उत्तर:

  1. (क) भाषा
  2. (ग) जन्म रोदन से
  3. (ग) सामाजिक सम्पर्क
  4. (घ) उपर्युक्त सभी
  5. (घ) सामान्य रूप से भाषा के माध्यम से ही शिक्षा का आदान-प्रदान होता है

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