UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 12 Montessori Method
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Pedagogy |
Chapter | Chapter 12 |
Chapter Name | Montessori Method (मॉण्टेसरी पद्धति) |
Number of Questions Solved | 29 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 12 Montessori Method (मॉण्टेसरी पद्धति)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मॉण्टेसरी पद्धति के मूल सिद्धान्त क्या हैं? सविस्तार समझाइए।
या
मारिया मॉण्टेसरी के अनुसार शिक्षा के सिद्धान्त क्या हैं?
उत्तर:
मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली छोटे बच्चों की एक लोकप्रिय शिक्षा-प्रणाली है। इस प्रणाली का प्रारम्भ मैडम मारिया मॉण्टेसरी ने किया था। यह प्रणाली बाल-मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर आधारित है।
मॉण्टेसरी पद्धति के सिद्धान्त
(Principles of Montessori Method)
मॉण्टेसरी ने अपनी किसी पुस्तक में अपने शिक्षण सिद्धान्तों की व्याख्या नहीं की है, लेकिन उनकी पद्धति का गहन अध्ययन करके सहज ही हम उनके शिक्षण सिद्धान्तों के विषय में अनुमान लगा सकते हैं। वास्तव में मॉण्टेसरी पद्धति के मुख्य शिक्षण सिद्धान्त वही हैं, जो किण्डरगार्टन पद्धति के हैं। मॉण्टेसरी ने केवल उनमें आंशिक संशोधन करके उनको नया रूप प्रदान किया है। संक्षेप में मॉण्टेसरी पद्धति के सिद्धान्तों को निम्नवत् समझा जा सकता है|
1. विकास हेतु शिक्षा का सिद्धान्त- मॉण्टेसरी ने शिक्षा को आन्तरिक विकास की प्रक्रिया माना है। उनका मत है कि शिशु एक अविकसित बीज के समान है, जिसमें उनके भावी विकास की समस्त शक्तियाँ निहित होती हैं। शिशुओं के सम्बन्ध में उनका कथन है, “बालक एक मॉण्टेसरी पद्दति के सिद्धान्त ऐसा शरीर है जो बढ़ता है तथा आत्मा है जो विकास प्राप्त करती है। विकास के इन रूपों को हमें न तो कुरूप बनाना चाहिए और न दबाना, विकास हेतु शिक्षा का सिद्धान्त बल्कि उस काल के लिए प्रतीक्षा करनी चाहिए जब किसी शक्ति का । क्रम के अनुसार प्रादुर्भाव हो। उन्होंने आगे कहा है, “यदि शिक्षण की किसी प्रणाली को प्रभावशाली बनाना है तो वह बालक के सम्पूर्ण विकास के लिए। प्रभावशाली होनी चाहिए।’
2. पूर्ण स्वतन्त्रता का सिद्धान्त- फ्रॉबेल के समान मॉण्टेसरी मांसपेशियों की शिक्षा का का भी यह मत था कि बालक को अपनी शिक्षा ग्रहण करने में पूर्ण स्वतन्त्र होना चाहिए। मॉण्टेसरी का कथन है, “स्वतन्त्रता का अर्थ , आयनिता न इसमें निहित नहीं है कि बालकों से साधारण सेवाएँ कराने के लिए व्यावहारिक शिक्षा का सिद्धान्त दूसरों द्वारा दी गई आज्ञाओं का पालन करवाया जाए, वरन् उन्हें इस व्यक्तित्व के विकास का सिद्धान्त योग्य बनाना है कि वह स्वयं अपने आदेशों का पालन करें। आत्मनिर्भर होना ही स्वतन्त्रता है।
मॉण्टेसरी के अनुसार, बालकों को इस प्रकार का वातावरण देना चाहिए जिसमें कि वह अपनी रुचि के। अनुसार कार्य कर सके। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में भी बालक को स्वतन्त्रता देना आवश्यक है। शिक्षा में स्वतन्त्रता का अर्थ है कि बालक की मूल तथा सामान्य प्रवृत्तियों को शिक्षा का माध्यम बना दिया जाए। इस सिद्धान्त में बालक को अपनी रुचि के अनुसार खेलने, कूदने, पढ़ने, खाने और पाठ्य-विषयों को चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है।
3. आत्मशिक्षण का सिद्धान्त- प्रत्येक बालक में अपने आप कार्य करने की कुछ क्षमता होती है। किलपैट्रिक के अनुसार, “बालक जितना अधिक अपने अनुभव से बिना किसी शिक्षक की सहायता से सीखता है, उतना ही अधिक ज्ञान उसको होता है।” इसी मनोवैज्ञानिक तथ्य के आधार पर मॉण्टेसरी ने भी अपनी शिक्षा-पद्धति में बालकों को स्वयं अपने प्रयत्नों द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इस सम्बन्ध में प्रोफेसर भाटिया ने लिखा है, स्वशिक्षा ही सच्ची शिक्षा है, क्योंकि यहाँ बच्चे को किसी बड़े के हस्तक्षेप से दुःखित नहीं किया जाता, वरन्। वह स्वतः शिक्षा प्राप्त करना सीखता है।”
मॉण्टेसरी ने कुछ शिक्षा उपकरणों का निर्माण किया है, जिनकी सहायता से बालक आत्म-शिक्षण कर सकता है। उन्होंने इस तथ्य पर भी बल दिया है कि बालक अपनी गलती को समझकर स्वयं उसे सुधारे। इससे बालक में आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास, सहनशीलता, धैर्य आदि गुणों का विकास हो सकता है। इस प्रकार मॉण्टेसरी पद्धति में शिक्षक का कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं है। शिक्षक का कार्य केवल बालक का पथ-प्रदर्शन एवं निरीक्षण करना है।
4. ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा का सिद्धान्त- मॉण्टेसरी ने अपनी शिक्षा-पद्धति में ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया है। उन्होंने ज्ञानेन्द्रियों को द्वार’ अर्थात् ज्ञान का द्वार’ कहा है, क्योंकि विश्व का अधिकांश ज्ञान मनुष्य को ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ही प्राप्त होता है। अत: बालक की ज्ञानेन्द्रियाँ जितनी अधिक प्रशिक्षित होंगी, उतनी ही सरलता से वह ज्ञान प्राप्त कर सकेगा। यदि ज्ञानेन्द्रियाँ निर्बल रहती हैं तो उसका ज्ञान अस्पष्ट और अपूर्ण रहता है। इसलिए मॉण्टेसरी ने विभिन्न शैक्षिक उपकरण बनाए हैं, जिनके प्रयोग से बालक की ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षित किया जाता है।
5. खेल द्वारा शिक्षा का सिद्धान्त- खेल बालक की जन्मजात प्रवृत्ति है। इसलिए अन्य शिक्षाशास्त्रियों की भाँति मॉण्टेसरी ने भी अपनी शिक्षण-पद्धति में खेल द्वारा शिक्षा के सिद्धान्त को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। इस पद्धति में विभिन्न उपकरणों की सहायता से खेलते-खेलते ही बालक को वर्णमाला, भाषा तथा गणित का ज्ञान कराया जाता है। खेलों में बालक को पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है और उनके माध्यम से वह तरह-तरह का ज्ञान प्राप्त करते हैं। किलपैट्रिक ने लिखा है, “उसके खेल, खेल न होकर नाममात्र के खेल हैं, जिनसे शिशु खेल तथा ज्ञानार्जन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति करता है।”
6. विवेकपूर्ण अनुशासन का सिद्धान्त- मॉण्टेसरी का विचार था कि जब बालक के सम्मुख शिक्षा सम्बन्धी वातावरण उपस्थित किया जाएगा, तब उसमें स्वत: ही उत्तरदायित्व की भावना जाग उठेगी और इसके परिणामस्वरूप उसके अन्दर एक प्रकार के अनुशासन की भावना उत्पन्न होगी जो कि सच्चा अनुशासन होगा।
7.मांसपेशियों की शिक्षा का सिद्धान्त- मॉण्टेसरी का विचार था कि जब तक बालक की मांसपेशियों को सुदृढ़ नहीं किया जाएगा तब तक उसे काम करने में कठिनाई होगी और वह अपने अंगों का समुचित प्रयोग नहीं कर सकेगा। अत: बालक की प्रारम्भिक शिक्षा में मांसपेशियों को साधने की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, जिससे कि बालक भली-भाँति चलना, फिरना, दौड़ना आदि सीख जाए। इससे बालक में आत्मनिर्भरता के गुण का भी विकास होता है।
8. आत्मनिर्भरता का सिद्धान्त- मॉण्टेसरी ने अपनी शिक्षा-पद्धति में इस बात पर विशेष बल दिया है। कि बालक किसी दूसरे पर निर्भर न रहकर अपना काम स्वयं करे। बालकों में प्रारम्भ से ही यह आदत डाल देनी चाहिए कि वे स्वयं अपना मुँह धोना, कपड़े पहनना, सफाई करना तथा अपना सामान ठीक तरह से रखना सीख लें।।
9. व्यावहारिक शिक्षा का सिद्धान्त- मॉण्टेसरी ने अपनी शिक्षा-पद्धति में व्यावहारिक शिक्षा पर । विशेष बल दिया है। मॉण्टेसरी विद्यालयों में बालकों को ऐसा ज्ञान दिया जाता है, जिनका जीवन में उपयोग होता है। बालक भोजन करना, बातचीत करना, सोना, हँसना, भोजन परोसना, सफाई करना आदि सभी बातें मनोवैज्ञानिक ढंग से सीख जाते हैं। शिक्षा देते समय बालकों की अवस्था का भी ध्यान रखा जाता है और जो बालक जिस योग्य होता है, उसे उसी प्रकार की शिक्षा दी जाती है।
10. व्यक्तित्व के विकास का सिद्धान्त- मॉण्टेसरी पद्धति में बालक के व्यक्तित्व के विकास पर विशेष बल दिया जाता है और उसके व्यक्तित्व का समुचित आदर किया जाता है। मॉण्टेसरी का विचार था कि प्रत्येक बालक की अपनी व्यक्तिगत विशेषता होती है, क्योंकि सभी बालक एक समान नहीं होते, उनमें कुछ-न-कुछ वैयक्तिक भिन्नता होती है। प्रत्येक बालक अपनी व्यक्तिगत योग्यता, क्षमता, सामर्थ्य, शक्ति
और रुचि के अनुसार विकास करता है। अत: शिक्षक को प्रत्येक बालक का ध्यान रखना चाहिए और उसकी आवश्यकता पूर्ति में उसे सहायता देनी चाहिए। मॉण्टेसरी का मत है कि समूह में रहते हुए बालक को व्यक्तिगत शिक्षा दी जा सकती है।
प्रश्न 2.
मॉण्टेसरी शिक्षा-पद्धति के मुख्य गुणों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
मॉण्टेसरी पद्धति के गुण
(Merits of Montessori Method)
मॉण्टेसरी पद्धति की सफलता उसके अनेक गुणों पर आधारित है। इन गुणों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित
1. शिशु-शिक्षा के लिए उपयुक्त- मॉण्टेसरी पद्धति का पहला प्रमुख गुण यह है कि यह पद्धति अल्प आयु के शिशुओं के लिए अत्यन्त उपयोगी और उपयुक्त है। शिशुओं को छोटे-छोटे विभिन्न शिक्षा उपकरणों के साथ खेलने में बहुत आनन्द मिलता है और वस्तुओं के प्रयोग से | मॉण्टेसरी पद्धति के गुण उनकी ज्ञानेन्द्रियाँ भी प्रशिक्षित हो जाती हैं। वे इनसे थोड़ी देर के लिए भी अलग नहीं होना चाहते। इस आयु के बालकों को क्रिया एवं खेल। के द्वारा ज्ञान देना उपयुक्त भी है।
2. स्वशिक्षा का महत्त्व- इस पद्धति में स्वयं शिक्षा के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। इसमें बालक अपना सब काम स्वयं करते हैं और काम करने में रुचि भी लेते हैं। बालक वातावरण का उचित लाभ उठाकर अपने स्वयं के अनुभवों एवं निरीक्षणों के द्वारा सीखते हैं। इस प्रकार स्वशिक्षा आत्मनिर्भरता तथा आत्मविश्वास के स्वाभाविक विकास में सहायक होती है।
3. वैज्ञानिक पद्धति- यह शिक्षण-पद्धति वैज्ञानिक है, क्योंकि बालक की वैयक्तिकता को यह अनुभव और परीक्षण पर बल देती है। इसमें बालक पूर्णरूप से महत्त्व क्रियाशील रहता है। अपने अनुभवों के आधार पर वह प्रयत्न और भूल – वैयक्तिक विभिन्नता का महत्त्व के सिद्धान्त पर मूल ज्ञान प्राप्त करता है। एडम्स (Adams) के शब्दों में, “मॉण्टेसरी ने अपनी पद्धति में दूसरे विद्यालयों की विधियों से मित्र के रूप में भिन्न एक नई वैज्ञानिक विधि प्रदान की है। उनकी पद्धति का आधार के अनुशासन की समस्या का बालक द्वारा स्वतन्त्रतापूर्वक निरीक्षण एवं परीक्षण है।’
4. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान पर आधारित- यह पद्धति मनोवैज्ञानिक है, क्योंकि इसमें मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों, बालकों की योग्यता, अनुभव, शक्ति आदि के आधार पर व्यावहारिक ढंग से शिक्षा दी जाती है। इसमें प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के स्वरूपों, निष्कर्षों और सिद्धान्तों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान की तरह इसमें भी बालक को विभिन्न यन्त्र और उपकरण प्रदान किए गए हैं। इन उपकरणों से खेलते हुए ही बालक अपने व्यक्तित्व के विकास का अवसर प्राप्त करते हैं।
5. ज्ञानेन्द्रियों का प्रशिक्षण- मॉण्टेसरी ने बालकों की शिक्षा में ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल देकर शिक्षा जगत् में एक नई चेतना प्रस्तुत की है। इससे पूर्व की शिक्षा-प्रणालियों में ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा का पूर्णतया अभाव था। इस कमी को पूरा करने का श्रेय मॉण्टेसरी को ही है। मॉण्टेसरी ने ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण द्वारा मन्द तथा हीनबुद्धि बालकों को भी साधारण स्तर पर ला दिया है। लगभग सभी शिक्षाशास्त्री ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा से सहमत हैं। उनका कहना है कि जब तक ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा उचित रूप से न होगी, बालक ज्ञान ग्रहण करने में असमर्थ होंगे।
6. व्यावहारिकता तथा सामाजिकता के गुणों का विकास- मॉण्टेसरी पद्धति में प्रायोगिक कार्यों का सामाजिक महत्त्व है। व्यावहारिक क्रियाओं द्वारा बालकों में व्यावहारिकता तथा सामाजिकता के गुणों का विकास किया जाता है। इस पद्धति वाले विद्यालयों में बालक को सामाजिक जीवन व्यतीत करने के अवसर मिलते हैं, इसलिए इनमें बालक को ऐसा वातावरण मिलता है कि उसके अन्दर सामाजिकता तथा व्यावहारिकता के गुणों का विकास किया जा सके।
7. भाषा-शिक्षण की उत्तम विधिं- मॉण्टेसरी पद्धति में भाषा-शिक्षण की बड़ी उत्तम विधि को अपनाया गया है। लिखना, पढ़ना तथा अंकगणित बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से सिखाया जाता है। लिखने व पढ़ने के लिए जो अभ्यास मॉण्टेसरी ने बताए हैं, वे क्रमानुसार एवं एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। इस पद्धति में लेखन क्रिया के द्वारा बालक की मांसपेशियों पर उचित ध्यान दिया जाता है। लिखने और पढ़ने का अभ्यास साथ-साथ किया जाता है, इसलिए बालके बिना सिखाए पढ़ना सीख जाते हैं।
8. बालक की वैयक्तिकता का महत्त्व- मॉण्टेसरी पद्धति में बालक की रुचियों, प्रवृत्तियों, इच्छाओं व स्वभाव का सदैव ध्यान रखा जाता है। इससे बालक के व्यक्तित्व का स्वाभाविक विकास होता है। बालक विभिन्न शिक्षा उपकरणों से काम करते हुए अपने आपको स्वतन्त्र अनुभव करता है और अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति का विकास करता है। मॉण्टेसरी पद्धति के इस गुण की प्रशंसा करते हुए रस्क (Rusk) ने लिखा है, इस पद्धति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता निर्देशन में वैयक्तिकता का स्थान है।”
9. वैयक्तिक विभिन्नता का महत्त्व- इस पद्धति में बालक के व्यक्तित्व को स्वतन्त्र एवं पूर्ण विकास होता है, क्योंकि इसमें व्यक्तिगत विभिन्नता का विशेष ध्यान रखा जाता है और हस्तक्षेप के बिना स्वतन्त्र एवं आदर्श वातावरण में बालकों को रखा जाता है। इस पद्धति में बालकों को उनकी बुद्धिलब्धि, रुचियों, इच्छाओं एवं प्रवृत्तियों के अनुसार प्रशिक्षित किया जाता है। इसमें प्रत्येक बालक अपनी क्षमता के अनुसार ज्ञान प्राप्त करता है, जोकि सामूहिक शिक्षा में सम्भव नहीं है।
10. शिक्षक का स्थान पथ- प्रदर्शक व मित्र के रूप में इस पद्धति में शिक्षक बालक का सच्चा निर्देशक, मित्र, निरीक्षक, सहायक और पथ-प्रदर्शक होता है न कि आदेशक या अधिकारी। वह बालकों को कार्य करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करता है तथा कठिनाई आने पर उनकी सहायता भी करता है। मॉण्टेसरी शिक्षक बाल-मनोविज्ञान, प्रयोगात्मक मनोविज्ञान तथा मानवीय गुणों से युक्त होता है।
11. अनुशासन की समस्या का निराकरण- मॉण्टेसरी ने बाह्य अनुशासन का विरोध किया है और वास्तविक आन्तरिक अनुशासन स्थापित करने के नियमों को बताया है। इस पद्धति में कार्य में व्यस्त रहने के कारण बालकों को अनुशासन भंग करने का अवसर नहीं मिलता, जिसके फलस्वरूप उन्हें आत्म-अनुशासन की प्रेरणा मिलती है।
प्रश्न 3.
मॉण्टेसरी शिक्षा-पद्धति के मुख्य दोषों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
मॉण्टेसरी पद्धति के दोष
(Defects of Montessori Method)
यद्यपि मॉण्टेसरी शिक्षा-पद्धति बालकों की शिक्षा के लिए बड़ी उपयोगी है, तथापि इसमें कुछ दोष और कमियाँ भी हैं, जिनका विवेचन निम्नवत् किया जा सकता है|
1. अमनोवैज्ञानिक- किलपैट्रिक तथा स्टर्न ने मॉण्टेसरी पद्धति को अमनोवैज्ञानिक बताया है, क्योंकि इसमें बालकों से कुछ ऐसे कार्य कराए जाते हैं, जो उनके स्तर से ऊँचे हैं। कुछ शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि चार वर्षीय बालक को अधिक लिखना-पढ़ना सिखाना लाभदायक नहीं है।
2. शक्ति मनोविज्ञान का अनुचित आधार- मॉण्टेसरी पद्धति में एक समय में केवल एक ही ज्ञानेन्द्रिय को शिक्षित करने की व्यवस्था की गई है। यह सिद्धान्त शक्ति मनोविज्ञान पर आधारित है और वर्तमान युग में शक्ति मनोविज्ञान को कोई मान्यता नहीं दी जाती है। वास्तव में सभी ज्ञानेन्द्रियाँ एक साथ कार्य करती हैं, इसलिए उनकी शिक्षा भी एक साथ होनी चाहिए।
3. ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा अपर्याप्त- मॉण्टेसरी की यह व्याख्या सही नहीं है कि सात वर्ष के बालकों में। उच्चकोटि की मानसिक क्रियाओं-स्मृति, विचार, कल्पना, तर्क-का अभाव रहता है और उसे केवल इन्द्रिय अनुभव प्राप्त होते हैं। मनोवैज्ञानिक परीक्षण से यह सिद्ध हो चुका है कि तीन वर्ष के बालक में भी मानसिक क्रियाएँ होती हैं। उसमें स्मृति, कल्पना, जिज्ञासा आदि होती हैं। वह प्रत्येक वस्तु के बारे में जानना चाहता है और साथ-साथ अपनी कल्पनाशक्ति का प्रयोग भी करता है।
4. गेस्टाल्ट.मनोविज्ञान के विरुद्ध- भाषा की शिक्षा के सम्बन्ध में आधुनिक विचारधारा यह है कि बालकों को पहले वाक्ये, फिर शब्द और बाद में अक्षर ज्ञान कराना चाहिए, लेकिन मॉण्टेसरी ने इसके विपरीत विचारधारा का प्रयोग किया है। उनका कहना है कि बालक को पहले अक्षर और तत्पश्चात् वाक्य का ज्ञान कराना चाहिए, इसलिए इस पद्धति को गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के विरुद्ध माना जाता है।
5. कल्पनात्मक एवं क्रियात्मक खेलों का अभाव- इस पद्धति का सबसे मुख्य दोष है कि यह बालक की कल्पनाशक्ति को अविकसित रखती है। इस पद्धति में कल्पनात्मक तथा क्रियात्मक खेलों का सर्वथा अभाव है। मॉण्टेसरी का विचार है कि बालक स्वयं कल्पनाओं से पूर्ण है, इसलिए उसे और काल्पनिक बनाना वास्तविक जीवन से दूर ले जाना है। इसलिए वे बालक को कला, कहानी, नाटक तथा कलात्मक भावनाओं से दूर रखना चाहती हैं, क्योंकि उनके विचार से व्यावहारिक जीवन की शिक्षा के लिए इनका कोई महत्त्व नहीं है। परन्तु मॉण्टेसरी यह भूल गई हैं कि कल्पना के सहारे । | मॉण्टेसरी पद्धति के दोष ही बालक अपनी मूल-प्रवृत्तियों को सन्तुष्ट करता है तथा अपने मानसिक तनाव को दूर करता है। इसके अभाव में विभिन्न प्रकार की भावना ग्रन्थियाँ बन जाती हैं और बालक का सम्पूर्ण व्यक्तित्व कुण्ठित हो जाता है। इसलिए कल्पना को स्थान न मिलने के कारण मॉण्टेसरी पद्धति दोषपूर्ण प्रतीत होती है।
6. समय और धन की अधिक आवश्यकता- इस पद्धति में। बालकों का बहुत-सा समय व्यर्थ नष्ट हो जाता है। सामान्य रूप से जो ज्ञान बालक एक महीने में ग्रहण कर सकता है, इस पद्धति द्वारा उसे। वह ज्ञान एक वर्ष में प्राप्त होता है। ज्ञानेन्द्रियों का अभ्यास मन्दबुद्धि के बालकों के लिए तो ठीक है, किन्तु वह साधारण बालक के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव निरर्थक है। साधारण बालक से इस प्रकार के अभ्यास कराना समय , शिक्षा उपकरणों पर अधिक बल की बरबादी करना है, क्योंकि घर और बाहर की अनेक वस्तुओं को । चाकचर आर बाहर का अनक वस्तुआ का प्रचार का अभाव देखकर और उनका प्रयोग करके उसकी इन्द्रियों पहले ही शिक्षित हो । प्रतिभाशाली बालकों के लिए जाती हैं।
7. प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव- जनता के अज्ञान के , सीमित स्वतन्त्रता कारण इस पद्धति के लिए प्रशिक्षित अध्यापक नहीं मिल पाते हैं। वातावरण के प्रभाव की उपेक्षा मॉण्टेसरी शिक्षा देने के लिए एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण लेना व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन होता है। हमारे देश में इस प्रकार का कोई प्रशिक्षण विद्यालय नहीं है।
8. शिक्षा उपकरणों पर अधिक बल- इस पद्धति में शिक्षा के उपकरणों को आवश्यकता से अधिक महत्त्व दिया जाता है। अमेरिकन शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा उपकरणों की कटु आलोचना की है। उनका कहना है कि अधिक शिक्षा उपकरणों से बालक का बौद्धिक विकास एकांगी रह जाता है। इससे बालक की आत्माभिव्यक्ति का क्षेत्र सीमित रह जाता है। इसके साथ-ही-साथ बालकों को उन क्रियाओं को करने के लिए बाध्य किया जाता है, जिनका वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं होता।
9. प्रचार का अभाव हमारे देश में इस पद्धति के समुचित प्रचार का अभाव है। सामान्य जनता मॉण्टेसरी विद्यालयों के विषय में कुछ नहीं जानती है। प्रचार और प्रोत्साहन के अभाव में मॉण्टेसरी शिक्षा पद्धति हमारे देश में अधिक प्रचलित नहीं हो पाई है।
10. प्रतिभाशाली बालकों के लिए अनुपयुक्त- वास्तव में मॉण्टेसरी पद्धति का आविष्कार मन्दबुद्धि और अपाहिज बालकों के लिए किया गया था। इसके शिक्षण उपकरण भी उन्हीं के लिए उपयुक्त हैं, इसलिए इस पद्धति से मन्दबुद्धि वाले बालक तो लाभ उठा सकते हैं, लेकिन प्रतिभाशाली बालकों को इससे कोई विशेष लाभ नहीं होता।
11. सीमित स्वतन्त्रता- इस पद्धति में बालक की स्वतन्त्रता सीमित होती है, क्योंकि उसे कुछ शिक्षा उपकरण देकर उनसे खेलने के लिए बाध्य किया जाता है। उसे किसी अन्य बालक से बातचीत करने का अधिकार भी नहीं होता।
12. वातावरण के प्रभाव की उपेक्षा- वातावरण के प्रभाव को जितना महत्त्व मिलना चाहिए, उतना महत्त्व इस पद्धति में नहीं मिला है। मॉण्टेसरी का यह मत नितान्त अवैज्ञानिक है कि सब कुछ बालक के ही अन्त:करण में विद्यमान है और उन आन्तरिक शक्तियों को ही विकसित करने का प्रयत्न करना चाहिए। वातावरण के प्रभाव से बालकों में बहुत-सी बुरी आदतें भी फ्ड़ जाती हैं। इसलिए मॉण्टेसरी स्कूलों में अध्यापिका हस्तक्षेप नहीं करेगी तो बालक का चरित्र कैसे बनेगा?
13. व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन- मॉण्टेसरी पद्धति पूर्ण रूप से व्यक्तिवादी है और इसमें बालकों को सामूहिक तथा सामाजिक कार्य करने के लिए कोई अवसर नहीं दिया गया है। इससे बालकों में अभिमान और स्वार्थ की भावना आ जाती हैं, क्योंकि बालक अलग-अलग रहकर शिक्षा उपकरणों से खेलते रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनमें सामाजिकता तथा सहकारिता की भावना का विकास नहीं हो पाता है।
14. राष्ट्रीयता की भावना का अभाव- हमारे देश में राष्ट्रीयता की भावना की कमी के कारण भी मॉण्टेसरी पद्धति को अधिक प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। जिन पर शासन का उत्तरदायित्व है वे अपने स्वार्थ के कारण यह चाहते हैं कि गरीबी-अमीरी का भेदभाव बना रहे। उन्हीं के बच्चे शासक बने, इसलिए वे ही लोग जनता की शिक्षा के प्रति उदार नहीं हैं। | 15. अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का अभाव–अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का अभाव भी मॉण्टेसरी पद्धति के मार्ग में बाधक है। कुछ लोगों का कहना है कि यह एक विदेशी शिक्षा-प्रणाली है और इसकी जड़े हमारे देश की मिट्टी में न होकर अन्यत्र हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मैडम मारिया मॉण्टेसरी का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
मैडम मारिया मॉण्टेसरी का सामान्य परिचय
(General Introduction of Madam Maria Montessori)
डॉ० मॉण्टेसरी की गणना विश्व के महाम् शिक्षाशास्त्रियों में की जाती है। उन्होंने अपना जीवन एक डॉक्टर के रूप में आरम्भ किया और बाल शिक्षा के क्षेत्र में अपनी मौलिक देन देकर अपना नाम अमर कर लिया। डॉ० मॉण्टेसरी इटली की मूल निवासी थीं। 24 वर्ष की आयु में उन्होंने रोम विश्वविद्यालय से डॉक्टरी पास करके अपाहिज और मन्दबुद्धि के बालकों की चिकित्सा करनी आरम्भ की। उन्होंने अपाहिज और मन्दबुद्धि के बालकों की दयनीय दशा देखकर निर्णय किया कि ऐसे बालकों की शिक्षा की कोई नई व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने अपने अनुभवों से यह निष्कर्ष निकाला कि मन्दबुद्धि वाला बालक भी बुद्धिमान बन सकता है, यदि उसकी शिक्षा-पद्धति पूर्ण मनोवैज्ञानिक हो। इसीलिए उन्होंने प्रयोगात्मक मनोविज्ञान तथा सामाजिक मानवशास्त्र का गहन अध्ययन करके बालकों के लिए एक नवीन शिक्षा-पद्धति को जन्म दिया, जिसे ‘मॉण्टेसरी पद्धति’ के रूप में विश्वभर में ख्याति प्राप्त हुई।
सन् 1907 में मॉण्टेसरी ने अपना स्कूल ‘Children Home’ स्थापित किया। सन् 1939 में वे ‘इण्डियन ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट’ (Indian Training Institute) की डायरेक्टर बनकर भारत आयीं। उन्होंने भारत में अनेक स्थानों पर अपनी पद्धति के सम्बन्ध में भाषण दिए। थियोसोफिकल सोसायटी के माध्यम से उनकी पद्धति के सम्बन्ध में अनेक लेख, व्याख्यान आदि प्रकाशित हुए। इसके परिणामस्वरूप भारत में मॉण्टेसरी पद्धति का व्यापक प्रचार और प्रसार हुआ। भारत में असंख्य मॉण्टेसरी स्कूलों की स्थापना हो गई और ये स्कूल आज भी पूरी सफलता के साथ कार्यरत हैं।
प्रश्न 2.
मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के विद्यालयों का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
मॉण्टेसरी विद्यालय
(Montessori Schools)
मॉण्टेसरी पद्धति में बच्चों को विद्यालय में घर के समान ही वातावरण मिलता है, इसीलिए मॉण्टेसरी ने विद्यालय को ‘बच्चों का घर’ (Children’s Home) कहा है। मॉण्टेसरी स्कूलों का वातावरण बालकों के अनुकूल तथा स्वतन्त्र होता है और उसमें उन्हें खेलने-कूदने तथा अपने व्यक्तित्व को विकसित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।
बालघर में एक बड़ा कमरा तथा कई छोटे-छोटे कमरे होते हैं। बड़े कमरे में बालक उपकरणों की सहायता से सीखता है तथा छोटे-छोटे कमरे भोजन, व्यायाम, विश्राम, गोष्ठी आदि कार्यो के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। बालकों को घूमने तथा खेलने के लिए छोटे-छोटे पार्क तथा उद्यान होते हैं, जिनमें बालक स्वच्छन्दतापूर्वक खेलता है तथा उसके भूलने-भटकने का भी डर नहीं रहता है। बालक पूर्ण स्वतन्त्र होता है। कि वह चाहे बाग में जाकर सीखे या कमरे में बैठकर सीखें। विद्यालय में नीचे कमरे, नीची खिड़कियाँ, नीची अलमारियाँ एवं छोटी-छोटी मेज-कुर्सियों का प्रबन्ध होता है। खिड़कियों के खोलने, बन्द करने एवं अलमारियों के उपयोग में बालक स्वतन्त्र होता है। आवश्यकतानुसार बालक स्वयं ही अपनी कुर्सी को यत्र-तत्र ले जाता है। छोटे-छोटे प्याले, चम्मच एवं अन्य बर्तन होते हैं, जिन्हें वह अपना समझता है और वास्तविक आनन्द एवं तृप्ति पाता है।
प्रश्न 3.
मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के अन्तर्गत कर्मेन्द्रियों की शिक्षा-व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कर्मेन्द्रियों की शिक्षा
(Education of Action-Sense)
मॉण्टेसरी ने अपनी शिक्षण-पद्धति में बालक की कर्मेन्द्रियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया है। मॉण्टेसरी स्कूलों का वातावरण ऐसा होता है और बालकों के सम्मुख ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी जाती हैं कि बालक चलने-फिरने के साधारण कार्य से लेकर अपने से सम्बन्धित सभी कार्यों को स्वयं कर लेता है। हाथ-मुँह धोना, कपड़े पहनना और उतारना, मेज तथा कुर्सी को ठीक स्थान पर रखना, कमरा सजाना, चीजों को सँभालकर रखना, भोजन बनाना और परोसना, बर्तन धोना आदि काम बालक स्वयं कर लेते हैं। ऐसे कार्यों को अपने आप करने से बालक प्रसन्नता का अनुभव प्राप्त करता है तथा अन्य कार्यों के लिए उत्साहित होता है। इस प्रकार के शिक्षण का उद्देश्य बालकों में अच्छी आदतों का निर्माण करना एवं उनका जीवन सफल बनाना है। इसके द्वारा बालक दैनिक जीवन के सभी आवश्यक कार्यों की शिक्षा प्राप्त कर लेता है। वह शिष्ट तथा सभ्य हो जाता है।
प्रश्न 4.
मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के अन्तर्गत ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा-व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा
(Education of Senses)
ज्ञानेन्द्रियाँ ही हमारे बाह्य संसार के ज्ञान के द्वार हैं तथा ये ही आन्तरिक एवं बाह्य संसार से सम्बन्ध स्थापित करती हैं। इसलिए मॉण्टेसरी ने ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया है। उनके अनुसार बालकों को सूक्ष्म विचारों का ज्ञान देना व्यर्थ है, क्योंकि बालकों में इतनी क्षमता नहीं होती कि वे सूक्ष्म विचारों को समझ सकें। उनका कहना है कि जितने अधिक ज्ञानेन्द्रिय अनुभव बालकों को कराए जाएँ, उतनी ही बालक अधिक शिक्षा ग्रहण कर सकेगा। विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए मॉण्टेसरी ने विभिन्न शिक्षा उपकरणों का निर्माण किया है। इनकी विशेषता यह है कि एक उपकरण से केवल एक ही काम हो सकता है। इन उपकरणों से खेलते-खेलते बिना शिक्षक की सहायता के बालक स्वयं समझ जाते हैं कि उन्हें क्या करना है। ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा पर बल देते हुए मॉण्टेसरी ने लिखा है, “ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा सम्बन्धी क्रियाओं का यह ध्येय नहीं है कि बालकों को विभिन्न वस्तुओं के रूप, वर्ण और गुण का ज्ञान हो जाए, वरन् उनसे हम उनकी ज्ञानेन्द्रियों को परिष्कृत करना चाहते हैं। इससे उनकी बुद्धि का विकास होता है। उनसे बुद्धि के विकास में वैसी ही सहायता मिलती है, जैसी व्यायाम से शारीरिक विकास में। अतएव ज्ञानेन्द्रियों की साधना एक प्रकार । का बौद्धिक व्यायाम है।”
प्रश्न 5.
मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के अन्तर्गत भाषा की शिक्षा-व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भाषा की शिक्षा-व्यवस्था
(Education Systems of Language)
बालक की ज्ञानेन्द्रियों को विकसित और प्रशिक्षित करने के बाद उन्हें लिखने, पढ़ने तथा अंकगणित की शिक्षा दी जाती है। भाषा, जीवन के लिए आवश्यक और उपयोगी है। भाषा को वातावरण के माध्यम से अधिक जल्दी सिखाया जा सकता है। मॉण्टेसरी का कथन है कि बालक को पहले लिखना सिखाना चाहिए।
और लिखना सीखते-सीखते वे स्वयं पढ़ना सीख जाएँगे। मॉण्टेसरी का सिद्धान्त है कि पढ़ने से लिखना . सरल है, इसलिए बालक की भाषा की शिक्षा लिखने से प्रारम्भ होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त उच्चारण में लय तथा गति पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। लिखना सिखाने के लिए उँगली फेरते-फेरते बालक की उँगलियाँ सध जाती हैं। वह अक्षर के स्वरूप का ज्ञान सरलता से कर लेता है। इससे बालक में सफलता की भावना बड़ी जल्दी आती है और वह उत्साहित होकर अधिक सीखने का प्रयत्न करता है। इससे उसमें आत्म-गौरव की भावना आती है।
प्रश्न 6.
मॉण्टेसरी प्रणाली और किण्डरगार्टन प्रणाली के संस्थापक कौन थे तथा इन दोनों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
मॉण्टेसरी प्रणाली की संस्थापिका मैडम मारिया मॉण्टेसरी थी तथा किण्डरगार्टन प्रणाली के संस्थापक फ्रॉबेल थे। इन दोनों शिक्षा-प्रणालियों में पर्याप्त समानता होते हुए भी निम्नलिखित अन्तर हैं
- मॉण्टेसरी प्रणाली का आधार वैज्ञानिक है, जब कि किण्डरगार्टन प्रणाली का आधार मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक है।
- मॉण्टेसरी प्रणाली में व्यक्तिगत शिक्षा पर बल दिया गया है, जब कि किण्डरगार्टन प्रणाली में सामाजिक शिक्षा पर बल दिया गया है।
- मॉण्टेसरी प्रणाली में कक्षा-अध्यापन नहीं होता, जब कि किण्डरगार्टन प्रणाली में कक्षा-अध्यापन होता है।
- मॉण्टेसरी प्रणाली में शिक्षा की प्रक्रिया बालक की इच्छानुसार संचालित होती है, जब कि किण्डरगार्टन प्रणाली में शिक्षा की प्रक्रिया कार्यक्रमानुसार संचालित होती है।
- मॉण्टेसरी प्रणाली में स्वत: अनुशासन एवं आत्म-निर्भरता के गुणों का विकास होता है, जब कि किण्डरगार्टन प्रणाली में नेतृत्व एवं सामाजिक गुणों का विकास होता है।
- मॉण्टेसरी प्रणाली में व्यावहारिक क्रियाओं पर बल दिया जाता है, जब कि किण्डरगार्टन प्रणाली में शारीरिक क्रियाओं पर बल दिया जाता है।
- मॉण्टेसरी प्रणाली में शिक्षण का कार्य शिक्षा-उपकरणों के माध्यम से किया जाता है, जब कि किण्डरगार्टन प्रणाली में शिक्षण कार्य खेल के माध्यम से दिया जाता है।
- मॉण्टेसरी प्रणाली में कृत्रिम साधनों तथा शैक्षिक उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया जाता है, जब कि किण्डरगार्टन प्रणाली में प्राकृतिक शिक्षा, संगीत, गीत एवं भावे पर बल दिया जाता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली में शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मॉण्टेसरी पद्धति की सफलता शिक्षक की योग्यता पर निर्भर करती है। अत: मॉण्टेसरी स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षक का होना अनिवार्य है। शिक्षक को बालकों के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और उनकी आवश्यकतानुसार उनकी यथोचित सहायता करनी चाहिए। शिक्षक को तानाशाह न होकर एक योग्य निर्देशक एवं पथ-प्रदर्शक होना चाहिए। बालकों की आवश्यकताओं को समझकर उन्हें स्वतन्त्र वातावरण देना चाहिए, जिससे वह अपनी इच्छानुसार प्राकृतिक शक्तियों का विकास कर सके। शिक्षक को बाल-मनोविज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है। रॉबर्ट रस्क (Robert Rusk) के अनुसार, “मॉण्टेसरी पद्धति के शिक्षक के लिए उन शिक्षकों की ही नियुक्ति करनी चाहिए जिन्होंने बाल-मनोविज्ञान तथा उनके प्रयोग का प्रशिक्षण लिया हो।’
प्रश्न 2.
मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली का तटस्थ मूल्यांकन प्रस्तुत कीजिए।
या
मॉण्टेसरी प्रणाली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
यह सत्य है कि अन्य विभिन्न शिक्षा- प्रणालियों के ही समान मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के भी अपने गुण-दोष हैं, परन्तु इस शिक्षा प्रणाली की अपनी कुछ मौलिक विशेषताएँ हैं जिनके कारण इस शिक्षा-प्रणाली को सारे विश्व में पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त हुई है। मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली को शिक्षा-जगत की एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा-प्रणाली माना जाता है। इस शिक्षा-प्रणाली का तटस्थ मूल्यांकन मेयर्स ने इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, “मॉण्टेसरी की सफलता ने इस धारणा को नवजीवन प्रदान किया है कि परम्परागत सामूहिक रटाई पद्धति केवल बालकों को कूपमण्डूक ही नहीं बनाती थी, बल्कि एक वर्ग के सदस्यों के विकास को बाधा पहुँचाती थी। मॉण्टेसरी के वैयक्तिक शिक्षा पर जोर देने के कारण शिक्षाशास्त्री फिर से । अधिक उत्तम पद्धति की खोज में लग गए, जिसमें वे छात्रों की वैयक्तिक आवश्यकताओं एवं योग्यताओं पर ध्यान दे सकें।’
प्रश्न 3.
मॉण्टेसरी प्रणाली की सीमाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
मॉण्टेसरी प्रणाली की मुख्य सीमाएँ या दोष इस प्रकार हैं।
- मॉण्टेसरी प्रणाली बाल-मनोविज्ञान के अनुकूल नहीं है।
- यह शिक्षा प्रणाली अधिक समय तथा व्यय साध्य है।
- यह प्रणाली प्रतिभाशाली बालकों के लिए अनुपयुक्त है।
- इस प्रणाली में सामूहिक भावना का समुचित विकास नहीं हो पाता।
- मॉण्टेसरी प्रणाली में बोल उपयोगी कल्पनात्मक खेलों का प्रायः अभाव ही है।
- इस प्रणाली के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी है।
प्रश्न 4.
मॉण्टेसरी प्रणाली की शिक्षण पद्धति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मॉण्टेसरी प्रणाली में शिक्षण पद्धति तीन भागों में विभक्त है। ये भाग हैं क्रमशः कर्मेन्द्रियों की शिक्षा, ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा तथा भाषा एवं गणित की शिक्षा। कर्मेन्द्रियों की शिक्षा का उद्देश्य बालकों में अच्छी आदतों का निर्माण करना एवं उनका जीवन सफल बनाना है। ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए मॉण्टेसरी प्रणाली में विभिन्न शिक्षा उपकरणों का निर्माण किया गया है। इनकी विशेषता यह है कि एक उपकरण से केवल एक ही काम हो सकता है। इन उपकरणों से खेलते-खेलते बिना शिक्षक की सहायता के बालक स्वयं समझ जाते हैं कि उन्हें क्या करना है। मॉण्टेसरी प्रणाली में बालक की ज्ञानेन्द्रियों को विकसित और प्रशिक्षित करने के बाद उन्हें लिखने, पढ़ने तथा अंकगणित की शिक्षा दी जाती है।
निश्चित उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
छोटे बच्चों को शिक्षा प्रदात करने वाली मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली को किसने लागू किया था?
उत्तर:
छोटे बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाली मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली को लागू करने का श्रेय मैडम मारिया मॉण्टेसरी को था।
प्रश्न 2.
मॉण्टेसरी का जन्म किस देश में हुआ था?
उत्तर:
मैडम मारिया मॉण्टेसरी का जन्म इटली में हुआ था।
प्रश्न 3.
मैडम मॉण्टेसरी ने अपना प्रथम विद्यालय कब तथा किस नाम से स्थापित किया था?
उत्तर:
मैडम मॉण्टेसरी ने अपना प्रथम विद्यालय सन् 1907 ई० में Children Home के नाम से स्थापित किया था।
प्रश्न 4.
मैडम मॉण्टेसरी भारत कब आई थीं तथा वह किस संस्था की डायरेक्टर थीं?
उत्तर:
डम मॉण्टेसरी सन् 1939 में ‘इण्डियन ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट’ की डायरेक्टर बनकर भारत आई थीं।
प्रश्न 5.
मैडम मॉण्टेसरी द्वारा लिखित मुख्य पुस्तकों के शीर्षक क्या हैं?
उत्तर:
- द मॉण्टेसरी मैथड,
- रीकन्सट्रक्शन इन एजूकेशन,
- डिस्कवरी ऑफ दि चाइल्ड,
- चाइल्ड ट्रेनिंग तथा
- सीक्रेट ऑफ दि चाइल्डहुड।
प्रश्न 6.
मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के अनुसार शिक्षा का मुख्यतम उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली के अनुसार शिक्षा का मुख्यतम उद्देश्य बालक के सुचारु विकास में योगदान प्रदान करना है।
प्रश्न 7.
माण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली में शिक्षक का क्या स्थान है?
उत्तर:
मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली में शिक्षक को निर्देशक, मित्र तथा निरीक्षक का स्थान दिया गया है।
प्रश्न 8 मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली में बच्चों को किस प्रकार के खेल खिलाए जाते हैं?
उत्तर:
मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली में बच्चों को मुख्य रूप से कल्पनात्मक खेल खिलाए जाते हैं।
प्रश्न 9.
मॉण्टेसरी शिक्षा में ज्ञानेन्द्रिय प्रशिक्षण क्या है?
उत्तर:
मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली में ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञान का द्वार माना गया है। इस प्रणाली का मानना है। कि यदि ज्ञानेन्द्रियाँ निर्बल रहती हैं तो व्यक्ति का ज्ञान अस्पष्ट तथा अपूर्ण रहता है। अत: इस प्रणाली में विभिन्न शैक्षिक उपकरणों द्वारा बालक की ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षित किया जाता है।
प्रश्न 10.
शिक्षा की कौन-सी विधि ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से शिक्षा पर बल देती है?
उत्तर:
मॉण्टेसरी प्रणाली।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य
- मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली को मिस हेलेन पार्कहर्ट ने प्रारम्भ किया था।
- मैडम मॉण्टेसरी जर्मनी की मूल निवासी थीं।
- मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली में सैद्धान्तिक एवं पुस्तकीय शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान की जाती
- मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली में शिक्षिका की भूमिका कठोर नियन्त्रक की है।
- मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली में विभिन्न शिक्षण उपकरणों को अपनाया जाता है।
उत्तर:
- असत्य,
- असत्य,
- असत्य,
- असत्य,
- सत्य।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1.
मॉण्टेसरी प्रणाली की प्रणेता हैं
(क) एनी बेसेण्टं
(ख) मारिया मॉण्टेसरी
(ग) हरबर्ट
(घ) पेस्टालॉजी
प्रश्न 2.
मारिया मॉण्टेसरी किस देश की निवासी थीं?
(क) इटली
(ख) फ्रांस
(ग) जर्मनी
(घ) स्वीडन
प्रश्न 3.
मॉण्टेसरी की शिक्षा सम्बन्धी प्रसिद्ध पुस्तक है
(क) एजूकेशन ऑफ चाइल्ड
(ख) एजूकेशन ऑफ मैन
(ग) एजूकेशन ऑफ वर्ल्ड
(घ) दि मॉण्टेसरी मैथड
प्रश्न 4.
मॉण्टेसरी में किसको विशेष महत्त्व दिया जाता है?
(क) बालक को
(ख) शिक्षक को
(ग) परिवार को
(घ) विद्यालय को
प्रश्न 5.
मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली का सिद्धान्त है
(क) आत्माभिव्यक्ति का सिद्धान्त
(ख) पूर्ण स्वतन्त्रता का सिद्धान्त
(ग) विकास के लिए शिक्षा का सिद्धान्त
(घ) उपर्युक्त सभी सिद्धान्त
उत्तर:
1. (ख) मारिया मॉण्टेसरी,
2. (क) इटली,
3. (घ) दि मॉण्टेसरी मैथड,
4. (घ) विद्यालय को,
5. (घ) उपर्युक्त सभी सिद्धान्त।
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