UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 5 Nomadic Empires (यायावर साम्राज्य)
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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
संक्षेप में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
मंगोलों के लिए व्यापार क्यों इतना महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर :
स्टैपी प्रदेशों में मूल आवश्यकताओं की वस्तुओं के स्रोतों की कमी के कारण मंगोलों और मध्य एशिया के यायावरों को व्यापार और वस्तुओं के विनिमय के लिए चीनवासियों के पास जाना पड़ता था। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए लाभकारी थी। यायावर कबीले खेती से प्राप्त उत्पादों और लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे और घोड़े, फर और शिकार का व्यापार (विनिमय) करते थे। जब मंगोल कबीलों के लोगों के साथ मिलकर व्यापार करते थे तो वे अपने चीनी पड़ोसियों से व्यापार में लाभकारी शर्ते और व्यापारिक सम्बन्ध रखते थे। इन सभी परिस्थितियों के कारण मंगोलों के लिए व्यापार महत्त्वपूर्ण था।
प्रश्न 2.
चंगेज खान ने यह क्यों अनुभव किया कि मंगोल कबीलों को नवीन सामाजिक और सैनिक इकाइयों में विभक्त करने की आवश्यकता है?
उत्तर :
मंगोलों के विभिन्न निकायों में अलग-अलग प्रकार के लोगों का एक विशाल समूह सम्मिलित था जिन्होंने चंगेज खान की सत्ता को स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया था। इसमें पराजित लोग भी शामिल थे। चंगेज खान इन विभिन्न जनजातीय समूहों की पहचान को क्रमबद्ध रूप से मिटाकर उन्हें एक नई पहचान देना चाहता था। इसलिए उसे मंगोल कबीलों को नवीन सामाजिक और सैनिक इकाइयों में विभक्त करने की आवश्यकता अनुभव दुई।
प्रश्न 3.
यास के बारे में परवर्ती मंगोलों का चिन्तन किस तरह चंगेज खान की स्मृति के साथ जुड़े | हुए उनके तनावपूर्ण सम्बन्धों को उजागर करता है?
उत्तर :
‘यास’ एक प्रकार की नियम-संहिता है। चंगेज खान ने 1206 ई० में यह संहिता किरिलताई में लागू की थी। अपने प्रारम्भिक स्वरूप में यास को यसाक (Yasaq) लिखा जाता था जिसका अर्थ था विधि, आज्ञप्ति व आदेश। वास्तव में जो थोड़ा-बहुत विवरण यसाक के बारे में हमें मिला है उसका सम्बन्ध प्रशासनिक विनियमों से है; जैसे-आखेट, सैन्य और डाक-प्रणाली का संगठन। 13वीं सदी के मध्य तक, किसी तरह से मंगोलों ने ‘यास’ शब्द का प्रयोग अधिक सामान्य रूप से करना प्रारम्भ कर दिया। इसका मतलब था-चंगेज खान की विधि संहिता। 16वीं शताब्दी के अन्त में चंगेज खान के सबसे बड़े पुत्र जोची का एक दूर का वंशज अब्दुल्लाह खान बुखारा के उत्सव मैदान में गया वहाँ उसने छुट्टी की नमाज अदा की और यास के नियमों का उल्लंघन किया। परवर्ती मंगोलों का चिन्तन यास के विषय में बदल गया था।
प्रश्न 4.
यदि इतिहास नगरों में रहने वाले साहित्यकारों के लिखित विवरणों पर निर्भर करता है तो | यायावर समाजों के बारे में हमेशा प्रतिकूल विचार ही रखे जाएँगे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्या आप इसका कारण बताएँगे कि फारसी इतिवृत्तकारों ने मंगोल अभियानों में मारे गए लोगों की इतनी बढ़ा-चढ़ाकर संख्या क्यों बताई है?
उत्तर :
यह सत्य है कि यदि इतिहास लिखित तथ्यों पर विश्वास रखता है तो नगरों में रहने वाले साहित्यकारों के लिखित विवरणों के यायावरों के समाज के बारे में हमेशा ही प्रतिकूल विचार रखे जाएँगे। इन साहित्यकारों ने यायावरों के समाज सम्बन्धी जो सूचनाएँ प्रस्तुत की हैं, वे पक्षपातपूर्ण और विभिन्न दोषों से परिपूर्ण हैं। फारसी इतिहासकारों ने मंगोल अभियान में मारे गए लोगों की संख्या निम्नलिखित कारणों से
बढ़ा-चढ़ाकर बताई है
- इतिहासकारों की सोच मंगोलों के प्रति गलत थी। वह उन्हें लुटेरे और हत्यारों के रूप में ही देखते थे।
- मारे गए लोगों की संख्या अनुमान पर आधारित है। यथा-इल्खन के फारसी इतिवृत्ताकार जुबैनी ने कहा कि मर्व में 13,00,000 लोगों का वध किया गया, उसने इस संख्या का अनुमान इस प्रकार लगाया कि तेरह दिन तक 1,00,000 शव प्रतिदिन गिने जाते थे।
संक्षेप में निबन्ध लिखिए
प्रश्न 5.
मंगोल और बेदोइन समाज की यायावरी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए यह बताइए कि आपके विचार में किस तरह उनके ऐतिहासिक अनुभव एक-दूसरे से भिन्न थे? इन भिन्नताओं से जुड़े कारणों को समझाने के लिए आप क्या स्पष्टीकरण देंगे?
उत्तर :
मंगोल और बेदोइन समाज यायावरी समाज था। बेदोइन मंगोलों के समान क्रूर और असभ्य नहीं थे। वे ऊँटों के साथ चारे की तलाश में यहाँ-वहाँ भटकते रहते। कालान्तर में वे शहरों में बस गए। और व्यापार या कृषि कार्य करने लगे, जबकि मंगोल लूटमार कर अपना पोषण करते थे। हालाँकि कालान्तर में ये सभ्य हुए और इन्होंने अपना साम्राज्य स्थापित किया। मंगोलों और बेदोइन की इस भिन्नता का कारण पर्यावरणीय स्थितियाँ और नेतृत्व की विचारधारा को माना जा सकता है।
प्रश्न 6.
तेरहवीं शताब्दी के मध्य में मंगोलिया द्वारा निर्मित ‘पैक्स मंगोलिका’ का निम्नलिखित विवरण उसके चरित्र को किस तरह उजागर करता है?
एक फ्रेन्सिसकन भिक्ष, रूब्रुक निवासी विलियम को फ्रांस के सम्राट लुई IX ने राजदूत बनाकर महान खान मोंके के दरबार में भेजा। वह 1254 में मोंके की राजधानी कराकोरम पहुँचा और वहाँ वह लोरेन, फ्रांस की एक महिला पकेट (Paquette) के सम्पर्क में आया जिसे हंगरी से लाया गया था। यह महिला राजकुमार की पत्नियों में से एक पत्नी की सेवा में नियुक्त थी जो नेस्टोरियन ईसाई थी। वह दरबार में एक फारसी जौहरी ग्वीयोम बूशेर के सम्पर्क में आया, जिसका भाई पेरिस में ग्रेन्ड पोन्ट’ में रहता था। इस व्यक्ति को सर्वप्रथम रानी सोरगकतानी ने और उसके उपरान्त मोंके के छोटे भाई ने अपने पास नौकरी में रखा। विलियम ने यह देखा कि विशाल दरबारी उत्सवों में सर्वप्रथम नेस्टोरियन पुजारियों को उनके चिह्नों के साथ तथा इसके उपरान्त मुसलमान, बौद्ध और ताओ पुजारियों को महान खान को आशीर्वाद देने के लिए आमन्त्रित किया जाता था।…
उत्तर :
तेरहवीं शताब्दी के मध्य में मंगोलिया द्वारा निर्मित ‘पैक्स मंगोलिया’ (मंगोल शान्ति) का । उपर्युक्त विवरण उसकी धर्मसहिष्णुता को प्रकट करता है। मंगोल राजदरबार में किसी प्रकार का जातीय भेदभाव नहीं था। विभिन्न देशों के निवासी राजदरबार में कार्यरत थे। पकेट फ्रांस और हंगरी से सम्बद्ध थी। उसका धर्म ईसाई था। पर्सियन स्वर्णकार भी इस दरबार में था। राजदरबार में शासक सभी धर्मों का सम्मान करता था। वह ईसाई, बौद्ध, इस्लाम, ताओ धर्म के पुजारियों से आशीर्वाद लेता था। इस प्रकार मंगोल राजा का चरित्र धर्मनिरपेक्ष था।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्व
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
यायावरी लोगों में कौन-सा गुण नहीं होता?
(क) घुमक्कड़ी
(ख) आखेटक
(ग) संग्रही
(घ) स्थायी निवास
उत्तर :
(घ) स्थायी निवास
प्रश्न 2.
मंगोल मूलतः कहाँ के निवासी थे?
(क) स्टेपी प्रदेश
(ख) भारत
(ग) चीन
(घ) पाकिस्तान
उत्तर :
(क) स्टेपी प्रदेश
प्रश्न 3.
चंगेज खान का प्रारम्भिक नाम था
(क) तेमुजिन
(ख) च्यांग
(ग) बाटू
(घ) ओगोदेई
उत्तर :
(क) तेमुजिन
प्रश्न 4.
मंगोलिया गणराज्य कब बना?
(क) सन् 1921 में
(ख) सन् 1922 में
(ग) सन् 1923 में
(घ) सन् 1924 में
उत्तर :
(क) सन् 1921 में
प्रश्न 5.
चंगेज खान का वंशज था
(क) तैमूर
(ख) अकबर
(ग) जहाँगीर
(घ) औरंगजेब
उत्तर :
(क) तैमूर
प्रश्न 6.
चंगेज खान की मृत्यु कब हुई?
(क) 1224 में
(ख) 1226 में
(ग) 1227 में
(घ) 1238 में
उत्तर :
(ग) 1227 में
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
चंगेज खान कौन था और उसका साम्राज्य किन-किन महाद्वीपों में था?
उत्तर :
चंगेज खान मंगोल साम्राज्य का संस्थापक था। उसका साम्राज्य यूरोप और एशिया महाद्वीप तक विस्तृत था।
प्रश्न 2.
मार्को पोलो कौन था?
उत्तर :
मार्को पोलो इटली का यात्री था। इसने अपने यात्रा वृत्तान्तों में मंगोलों के विषय में बहुत कुछ लिखा है।
प्रश्न 3.
बाटू के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
बाटू चंगेज खान का पौत्र था जिसने 1236 से 1241 तक शासन किया। उसने अपने अभियान ” में रूस की भूमि को मास्को तक जीत लिया था।
प्रश्न 4.
सुल्तान महमूद कौन था? चंगेज खान उससे क्यों नाराज था?
उत्तर :
सुल्तान महमूद ख्वारिज्म का शासक था। उसने मंगोल दूत की हत्या कर दी थी। इसलिए चंगेज खान उससे नाराज था और उसकी हत्या करने के लिए उसका पीछा करता रहा।
प्रश्न 5.
बाबर का मंगोलों से क्या सम्बन्ध था?
उत्तर :
जहीरुद्दीन बाबर तैमूर और चंगेज खान का वंशज था। उसने तैमूर के राज्य फरगान ओर समरकन्द में सफलता प्राप्त की। वहाँ से उसे निर्वासित किया गया। उसने 1526 ई० में काबुल, दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया और भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी।
प्रश्न 6.
उलुस किसे कहते हैं?
उत्तर :
चंगेज खान ने नवविजित प्रदेशों के शासन का कार्य चार पुत्रों में बाँट दिया प्रत्येक को उलुस कहा जाता था।
प्रश्न 7.
तैमूर ने भारत पर आक्रमण कब किया था?
उत्तर :
तैमूर ने सन् 1398 में भारत पर आक्रमण किया था।
प्रश्न 8.
तैमूर के आक्रमण का घातक प्रभाव किस पर पड़ा?
उत्तर :
तैमूर के भारतीय आक्रमण को सबसे घातक प्रभाव तुगलक वंश पर पड़ा। उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा धूल में मिल गई।
प्रश्न 9.
मंगोल कौन थे?
उत्तर :
मंगोल का शाब्दिक अर्थ ‘दिलेर’ या ‘बहादुर’ होता है। मंगोल मध्य एशिया की एक असभ्य और बर्बर जाति थी।
प्रश्न 10.
तैमूर के भारत पर आक्रमण के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर :
तैमूर के भारत पर आक्रमण के उद्देश्य निम्नलिखित थे
- ख्याति अर्जित करना।
- धन लूटना।
- इस्लाम धर्म का प्रचार करना।
प्रश्न 11.
क्वारिलताई संस्था क्या थी?
उत्तर :
चंगेज खान के परिवार के सदस्यों में राज्य के उत्तरदायित्व का निर्धारण क्वारिलताई नामक परिषद् करती थी। यह मुखियाओं की परिषद् होती थी। उत्तरदायित्व के अन्तर्गत राज्य के भविष्य के निर्णय, अभियान, लूट के माल का बँटवारा, चरागाह भूमि का प्रबन्ध आदि आता था।
प्रश्न 12.
चंगेज खान किस देश का राष्ट्रनायक है?
उत्तर :
चंगेज खान मंगोलिया का राष्ट्रनायक है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘बर्बर’ से क्या आशय है?
उत्तर :
बर्बर (अंग्रेजी में बारबेरियन) शब्द यूनानी भाषा के बारबरोस (Barbaros) शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका आशय गैर-यूनानी लोगों से है जिनकी भाषा यूनानियों को बेतरतीब कोलाहल ‘बर-बर’ के समान लगती थी। यूनानी ग्रन्थों में बर्बरों को बच्चों के समान दिखाया गया है जो सुचारू रूप से बोलने या सोचने में असमर्थ, डरपोक, विलासप्रिय, निष्ठुर, आलसी, लालची और स्वशासन चलाने में असमर्थ थे।
प्रश्न 2.
मंगोलों की सामाजिक दशा के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
मंगोलों की सामाजिक दशा
- नृजातीय सम्बन्धों और एक भाषा ने मंगोल लोगों को आपस में जोड़े रखा था। समाज अनेक पितृवंशीय पक्षों में विभाजित था।
- धनी लोगों के परिवार विशाल होते थे। उनके पास अधिक भू-क्षेत्र था, वे स्थानीय राजनीति में भी पर्याप्त दखल रखते थे।
- खाद्य-सामग्री की समाप्ति, अकाल या सूखे की स्थिति में मंगोलों को भोजन की तलाश में यहाँ-वहाँ भटकना पड़ता था।
- लूटपाट करने या आक्रमण करने के लिए मंगोल लोग आपस में परिसंघ भी बना लेते थे।
प्रश्न 3.
चंगेज खान के सैन्य संगठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
चंगेज खान का सैन्य संगठन
- प्रारम्भ में चंगेज खान की सेना स्टैपी मैदानों की पुरानी दशमलव पद्धति के अनुसार गठित की गई थी 10,100,10000,10000 सैनिकों में विभाजित थी।
- चंगेज खान ने बाद में इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया। उसने नवीन सैन्य इकाइयों की स्थापना की।
- उसकी सेना अनुशासित थी। आज्ञा का उल्लंघन करने पर दण्ड दिया जाता था।
- चंगेज खान अपने सैनिकों से पुत्रवत् प्रेम करता था।
प्रश्न 4.
‘यास क्या है? इसकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
‘यास’ को चंगेज खान की विधिसंहिता कहा जाता है। इस बात की पूरी सम्भावना है कि ‘यास मंगोल जाति की ही प्रथागत परम्पराओं का एक संकलन था। ‘यास मंगोलों को समान आस्था रखने के आधार पर संयुक्त करने में सफल हुआ। यास ने मंगोलों को आत्मविश्वास प्रदान किया। निश्चित रूप से यास एक शक्तिशाली सिद्धान्त था जिसने मंगोल साम्राज्य की संरचना में अहम् भूमिका निभाई थी।
प्रश्न 5.
मंगोलों की पराजय के दो प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
मंगोलों की पराजय के क़ई कारण थे, जिनमें से दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
- मंगोल सेना की निर्बलताएँ—यद्यपि मंगोल सेना संख्या में अधिक होती थी, परन्तु मंगोल सैनिक संगठित एवं नियोजित रूप में युद्ध करने की कला से अनभिज्ञ थे। उनमें धैर्य एवं सहनशीलता का भी पर्याप्त अंभाव था। यही कारण है कि कई बार दिल्ली के समीप आकर भी बिना युद्ध किए ही वापस लौट गए।
- मंगोल सेनापतियों में योग्यता का अभाव–अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में भारत पर मंगोलों के जो भी आक्रमण हुए, उन सबका संचालन करने वाले सेनापतियों में युद्ध संचालन करने की योग्यता का पूर्ण अभाव था। वे अपने कुशल नेतृत्व और कूटनीति द्वारा मंगोल सेनाओं को युद्ध में सफलता प्राप्त कराने की दृष्टि से पूर्णत: अयोग्य सिद्ध हुए।
प्रश्न 6.
तैमूर के भारतीय आक्रमण के प्रभावों को रेखांकित कीजिए।
उत्तर :
तैमून के भारतीय आक्रमण के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित थे
- तुगलक वंश पर घातक प्रहार–तैमूर के आक्रमण का सबसे प्रमुख परिणाम यह हुआ कि इससे तुगलक वंश पर घातक प्रहार हुआ और उसका पतन हो गया।
- अकाल तथा रोगों का प्रकोप-तैमूर ने लाखों व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया। उनकी लाशों के सड़ने से महामारी फैल गई और हजारों व्यक्ति मारे गए। तैमूर की. लूटमार से अनेक . गाँव तथा नगर उजड़ गए और वहाँ अकाल की स्थिति पैदा हो गई।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(अ) चंगेज खान
(ब) तैमूर
उत्तर :
(अ) चंगेज खान : चंगेज खान मंगोल सरदार हलाकू खान का भतीजा था। वह बड़ा ही क्रूर तथा अत्याचारी था। चंगेज खान ने अपनी वीरता व शौर्य से सम्पूर्ण मध्य एशिया को रौंद डाला।
उसे ‘पृथ्वी का प्रकोप’ कहा जाता था। 1221 ई० में उसने भारत पर भी आक्रमण किया था, लेकिन भीषण गर्मी व इल्तुतमिश की दूरदर्शिता के कारण वह वापस लौट गया था।
(ब) तैमूर :
तैमूर बरलास तुर्क शाखा का एक प्रभावशाली नेता था। उसे बचपन से कुरान पढ़ने, तलवार चलाने और घोड़े पर चढ़ने का शौक था। तैमूर लंग शक्ति और तलवार का धनी था। उसने भारत पर 1398 ई० में आक्रमण करते हुए कहा था, “भारत पर आक्रमण करने का हमारा उद्देश्य काफिरों के विरुद्ध लड़ाई करना, पैगम्बर के आदेशानुसार उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य करना, उस देश को बहुदेववाद और अन्धविश्वास से छुटकारा दिलाना तथा मंदिरों की मूर्तियों को तोड़-फोड़ करना है।” वस्तुतः तैमूर लंग का मूल उद्देश्य भारत की अपार सम्पत्ति एवं धन लूटना भी था। इसलिए तैमूर ने अपने आक्रमणों के अंतर्गत पंजाब एवं दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों को भी जी-भरकर लूटा था। उसने दिल्ली में तीन दिन तक सामूहिक कत्लेआम करवाया था और इस कत्लेआम में एक लाख सैनिकों को भी मरवा दिया था। तैमूर के आक्रमण के परिणामस्वरूप हिन्दू और मुस्लिमों में विनाशकारी द्वेष की भावना जाग्रत हो गई। हिन्दुओं के मंदिरों को बहुत अधिक क्षति पहुँचाई गई और बहुत-से हिंदुओं को मुसलमान बना दिया गया, जिससे हिन्दू जनता की धार्मिक भावना को बहुत अधिक ठेस पहुँची। तैमूर ने भारत को बुरी तरह लूटा और यहाँ के मन्दिरों को लूटकर देश को निर्धन बना दिया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
चंगेज खान का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उसके साम्राज्य विस्तार की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
चंगेज खान का जन्म 1162 ई० के लगभग आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका प्रारम्भिक नाम तेमुजिन था। उसके पिता कियात कबीले के मुखिया थे। उसके पिता की हत्या कर दी गई थी। तेमुजिन की माता ने उसका तथा उसके अन्य भाइयों का पालन-पोषण बड़ी कठिनाई से किया था। युवा होने पर तेमुजिन ने कैराइटे लोगों के शासक व अपने पिता के सगे भाई जो वृद्ध थे, तुगरिल ऊर्फ ओंग खान के साथ पुराने रिश्तों को स्थापित किया। 1180 और 1190 के दशकों में तेमुजिन और ओंग खाने में मित्रवत् सम्बन्ध रहे। उसने अपने पिता के हत्यारे शक्तिशाली तातार कैराइट और ओंग खान के विरुद्ध 1203 में युद्ध छेड़ा। 1206 तक तमाम शक्तिशाली लोगों को परास्त करने के बाद तेमुजिन स्टेपी प्रदेश की राजनीति में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उभरा। उसकी इस प्रतिष्ठा को मंगोल कबीले के सरदार (कुरिलताई) की एक सभा में मान्यता प्राप्त हुई और उसे चंगेज खान’ की उपाधि के साथ मंगोलों का महानायक घोषित किया गया। 1206 ई० में कुरिलताई में मान्यता मिलने से पूर्व चंगेज खान ने मंगोल लोगों को एक बड़ी सैन्य शक्ति के रूप में संगठित कर लिया था। चंगेज खान की पहली इच्छा चीन पर विजय प्राप्त करने की थी। चीन उस समय तीन भागों में विभक्त था। ये थे-उत्तरी-पश्चिमी प्रान्तों के तिब्बती मूल के सी सिआ लोग, जरचेन लोगों का चिन राजवंश और दक्षिण चीन जिसे पर शुंग राजवंश का शासन था।1209 में सी-सिआ परास्त हो गए। 1213 में चीन की महान् दीवार का अतिक्रमण हो गया। 1215 में पेकिंग नगर को लूटा गया। चिन वंश के विरुद्ध 1234 तक लम्बी लड़ाइयाँ चलीं पर चंगेज खान अपने अभियानों की प्रगति से पूरी तरह सन्तुष्ट था। 1218 तक मंगोलों का साम्राज्य अमू दरिया, तुरान और ख्वारज्म राज्यों तक विस्तृत हो गया था।1219 और 1221 ई० तक के अभियानों में बड़े नगरों ओट्रार, बुखारा, समरकन्द, बल्ख, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हेरात ने मंगोल सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अपने जीवन का अधिकांश भाग युद्धों में व्यतीत कर देने के बाद 1227 में चंगेज खान की मृत्यु हो गई।
प्रश्न 2.
चंगेज खान और मंगोलों का विश्व इतिहास में क्या स्थान है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
तेरहवीं शताब्दी ई० के चीन, ईरान और पूर्वी यूरोप के शहरों के बहुत-से निवासी चंगेज खान द्वारा किए गए स्टैपी के नर-संहारों को भय और घृणा की दृष्टि से देखते थे। फिर भी मंगोलों के लिए चंगेज खान अब तक का सर्वाधिक महान् शासक था। उसने मंगोलों को एकजुट किया। लम्बे समय से चले आ रहे जनजातीय संघर्षों और चीनियों के शोषण से मुक्ति दिलवाई साथ ही उन्हें समृद्ध बनाया। एक शानदार पार महाद्वीपीय साम्राज्य गठित किया और व्यापार के रास्तों और बाजारों को खोल दिया। मंगोलों और किसी भी घुमक्कड़ शासन प्रणाली से सम्बन्धित जिस तरह के प्रलेख प्राप्त हुए हैं-उनसे यह समझना वास्तव में कठिन है कि वह कौन-सा ऐसा प्रेरणा स्रोत था जिसने व्यक्तियों के विभाजित हुए समूहों को संगठित कर साम्राज्य निर्माण की महत्त्वाकांक्षा को जाग्रत किया। मंगोल साम्राज्य के संस्थापक की प्रेरणा एक प्रभावशाली शक्ति बनी रही। चौदहवीं शताब्दी ई० के अन्त में एक अन्य राजा तैमूर, जो एक विश्वव्यापी राज्य की आकांक्षा रखता था, ने स्वयं को राजा घोषित करने में संकोच का अनुभव किया, क्योंकि वह चंगेज खान का वंशज नहीं था। जब उसने अपने स्वतन्त्र प्रभुत्व की घोषणा की तो स्वयं को चंगेज खान का दामाद बताया। वर्तमान में दो दशकों के रूसी नियन्त्रण के पश्चात् मंगोलिया एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। उसने चंगेज खान को एक राष्ट्र-नायक के रूप में लिया है जिसका जनता सम्मान करती है और जिसकी उपलब्धियों का वर्णन अभिमान के साथ किया जाता है। मंगोलिया के इतिहास में इस निर्णायक समय पर चंगेज खान एक बार फिर मंगोलों के लिए एक आराध्य प्रतिमा के रूप में उभरकर सामने आया है, जो महान् अतीत की स्मृतियों को जाग्रत कर राष्ट्र की पहचान बनाने की दिशा में शक्ति प्रदान करेगा।
प्रश्न 3.
तैमूर के आक्रमण का वर्णन करते हुए उसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर :
तैमूर का परिचय तैमूर का जन्म 1336 ई० में ट्रांस ऑक्सियाना प्रदेश के केश नामक स्थान पर हुआ था। उसके पिता का नाम अमीर तुर्गे था जो वरलास शाखा को प्रमुख था। 1369 ई० में तैमूर ने समरकन्द के सिंहासन पर अधिकार कर लिया। सिंहासन पर अधिकार करने के उपरान्त उसने ईरान, अफगानिस्तान, इराक, ख्वारिज्म आदि देशों को जीत लिया। इसके बाद उसने भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई।
तैमूर के भारत पर आक्रमण के उद्देश्य
तैमूर के भारत पर आक्रमण करने के निम्नलिखित उद्देश्य थे
- ख्याति अर्जित करना : तैमूर अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी था। वह भारत पर विजय प्राप्त करके ख्याति प्राप्त करना चाहता था।
- धन लूटना-तैमूर भारत की धन : सम्पदा की ओर भी आकर्षित हुआ था; अत: धन लूटने की | लालसा से प्रेरित होकर भी उसने भारत पर आक्रमण किया।
- इस्लाम धर्म का प्रसार : तैमूर ने स्वयं ही यह घोषित किया था कि भारत पर आक्रमण करने का उसका उद्देश्य इस्लाम धर्म को प्रचार करना है।
तैमूर का भारत पर आक्रमण
सन् 1398 ई० में तैमूर ने 92,000 सैनिकों सहित भारत पर आक्रमण किया उस समय दिल्ली का सुल्तान मुहम्मद तुगलक था। उसने तैमूर का सामना किया, परन्तु वह तैमूर से परास्त होकर गुजरात की ओर भाग गया। तैमूर ने इस युद्ध से पूर्व एक लाख युद्धबन्दियों को कत्ल करवा दिया। तैमूर 15 दिन तक दिल्ली में रहा, वहाँ उसने खूब लूटमार मचायी। वह फिरोजाबाद, मेरठ, हरिद्वार होता हुआ काँगड़ा तथा जम्मू को लूटता हुआ समरकन्द लौट गया। इस मध्य उसने हजारों व्यक्तियों को दास बना लिया। वह अनेक कलाकारों को भी पकड़कर अपने साथ समरकन्द ले गया। उसने खिज्र खाँ को मुल्तान, लाहौर तथा दिमालपुर का शासक नियुक्त किया।
तैमूर के आक्रमण का प्रभाव
तैमूर के आक्रमण के प्रभाव निम्नलिखित थे
- तुगलक वंश का पतन-तैमूर के भारतीय आक्रमण का सबसे घातक प्रभाव तुगलक वंश पर | पड़ा। उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा धूल में मिल गई और 1414 ई० में मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के पश्चात् तुगलक वंश का अन्त हो गया।
- दिल्ली सल्तनत का विघटन तैमूर का आक्रमण दिल्ली सल्तनत के लिए पक्षाघात का रोग सिद्ध हुआ। दिल्ली सल्तनत को ऐसा धक्का लगा कि इसके बाद उसकी स्थिति में सुधार न हो पाया। जौनपुर, मालवा, गुजरात और अन्य प्रान्त स्वतन्त्र हो गए। सम्पूर्ण भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त हो गया केन्द्रीय शक्ति पूर्णत: नष्ट हो गई तथा सर्वत्र अव्यवस्था फैल गई।
- अकाल तथा रोगों का प्रकोप-तैमूर ने कई नगरों तथा गाँवों को लूटा तथा उन्हें उजाड़ दिया। उसने हजारों लोगों को मार डाला जिससे चारों ओर अकाल तथा रोगों का प्रकोप छा गया।
- कला पर प्रभाव-तैमूर के आक्रमण से भारतीय कला और साहित्य की प्रगति अवरुद्ध हो गई। तैमूर अनेक बहुमूल्य कलाकृतियों और शिल्पियों को अपने साथ समरकन्द ले गया, किन्तु इससे भारतीय कला और शैली का विस्तार मध्य एशिया तक अवश्य हुआ।
- आर्थिक प्रभाव-तैमूर के आक्रमण से उत्तरी भारत की आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई, तैमूर अपने साथ भारत का बहुत-सा धन ले गया। तैमूर के आक्रमण से कृषि की व्यवस्था भी बिगड़ गई थी। इस प्रकार, तैमूर का आक्रमण दिल्ली सल्तनत के लिए पक्षाघात का रोग सिद्ध हुआ। डॉ० आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने तैमूर के आक्रमण के विषय में ठीक ही लिखा है, “भारत को ‘जितनी क्षति और दुःख तैमूर ने पहुँचाया, उतना उससे पहले किसी आक्रमणकारी ने एक आक्रमण में नहीं पहुँचाया।”
प्रश्न 4.
सल्तनत काल में भारत पर मंगोल आक्रमणों तथा उनके परिणामों का वर्णन कीजिए। अथवा अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति का परीक्षण कीजिए। अथवा बलबन तथा अलाउद्दीन खिलजी की मंगल नीतियों की तुलना कीजिए।
उत्तर :
मंगोलों का परिचय मंगोल का शाब्दिक अर्थ ‘दिलेर या ‘बहादुर’ होता है। मंगोल मध्य एशिया की एक असभ्य और बर्बर जाति थी। इस जाति के लोग अत्यन्त वीर, लड़ाकू, साहसी, अत्याचारी और निर्दयी होते थे। उन्हें व्यक्तियों के सिरों की मीनार बनाने, नगरों को जलाकर राख करने में बड़ा आनन्द आता था। उनकी आकृति भयानक, रंग पीला, चेहरा चपटा और चौड़ा, बाल काले, आँखे तिरछी, गाल की हड्डियाँ उभरी हुई, कान बड़े और खोपड़ी गोल होती थी। इनका प्रमुख नेता चंगेज खान था जिसके नेतृत्व में मंगोलों ने कुछ ही वर्षों में बल्ख, बुखारा, समरकन्द चीन तथा मध्य एशिया के अनेक राज्यों को लूटकर और जलाकर पूरी तरह नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था।
दिल्ली सुल्तानों की मंगोल नीति
भारत एक दुर्ग के समान है। इसमें प्रवेश करने का एकमात्र स्थल मार्ग उत्तर-पश्चिम से ही है। इसी मार्ग से भारत पर सिकन्दर, महमूद गजनवी तथा मुहम्मद गोरी आदि ने आक्रमण किए थे। सल्तनत काल का आरम्भ होने के समय से ही इस सीमा से प्रविष्ट होने वाले मंगोलों के आक्रमण होने लगे थे। ख्वारिज्म के शाह ने पंजाब को अपने साम्राज्य का अंग बना लिया था। मंगोलों ने अफगानिस्तान, गजनी तथा पेशावर तक अपनी विजय-पताका फहराकर भारत पर सुनियोजित ढंग से आक्रमण करना आरम्भ कर दिया था। अतएव दिल्ली सल्तनत काल के आरम्भ में ही, मंगोलों के आक्रमण से सीमा को सुरक्षित रखने की समस्या सुल्तानों के समक्ष उत्पन्न हुई। इस समस्या को हल करने के लिए विभिन्न राजवंशों के सुल्तानों ने अपनी विभिन्न नीतियों का प्रयोग किया।
(क)
दास वंश
दास वंश के शासकों के समय हुए मंगोल आक्रमणों और इन आक्रमणों को रोकने हेतु दास वंश के शासकों द्वारा किए गए प्रयासों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है
- इल्तुतमिश का शासनकाल : दास वंश का प्रथम शासक कुतुबद्दीन ऐबक था। अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाने के कारण वह शासन के कार्यों को भली-भाँति न देख सका। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश के शासनकाल (1221 ई०) में मंगोल नेता चंगेज खाने, ख्वारिज्म के शाह जलालुद्दीन मगबर्नी का पीछा करता हुआ भारत की ओर आया था। शाह जलालुद्दीन ने सिन्ध को पार करके दोआब प्रदेश को अपना शरण-स्थल बनाना चाहा था, किन्तु दूरदर्शी इल्तुतमिश ने शाह जलालुद्दीन को सहायता नहीं दी। अत: इल्तुतमिश ने कूटनीति से कार्य करते हुए चंगेज खान से शत्रुता मोल नहीं ली थी। अत: चंगेज खान ने सिन्धु नदी को पार नहीं किया और वह वापस लौट गया। इस प्रकार, मंगोलों की भयंकर आँधी टल गई।
- रजिया के उत्तराधिकारियों का शासनकाल : चंगेज खान के चले जाने के बाद मंगोलों ने अफगानिस्तान को केन्द्र बनाकर भारत पर आक्रमण किया। मंगोलों ने सिन्धु नदी के पार स्थित प्रदेशों पर अनेक आक्रमण किए। इन प्रदेशों ने रजिया से समझौता करना चाहा, किन्तु दूरदर्शी सुल्ताना रजिया ने तटस्थ नीति का पालन किया और अपने साम्राज्य को मंगोलों के आक्रमणों से बचाए रखा।
- रजिया के उत्तराधिकारियों का शासनकाल : रजिया का पतन 1240 ई० में अमीरों की दलबन्दी के कारण हुआ। उसके शासनकाल के उपरान्त 1241 ई० में मंगोल सरदार बहादुर ताहिर’ ने लाहौर को लूटा। 1245 ई० में मुल्तान पर हसन कार्लंग’ ने और सिन्ध पर कबीर खाँ के वंशजों ने अधिकार कर लिया। 1247 ई० में मंगोल नेता सली बहादुर ने मुल्तान को घेरकर लाहौर पर आक्रमण किया। लाहौर के अमीरों ने सली बहादुर के सामने आत्म-समर्पण कर दिया। इस प्रकार, मुल्तान व सिन्ध के प्रदेश दिल्ली सल्तनत से कुछ समय तक कट गए। 1250 ई० में इन पर पुन: दासवंशीय शासकों की विजय पताका फहराने लगी, फिर भी प्रान्तीय सूबेदारों के षड्यन्त्र मंगोलों के साहस में निरन्तर वृद्धि करते रहे।
- मंगोल सरदार हलाकू का अभियान :सुल्तान नासिरुद्दीन के शासनकाल में मंगोल नेता हलाकू ने दिल्ली से मित्रता बनाए रखी, किन्तु बलबन के सुल्तान होते ही मंगोलों ने भारत पर पुनः आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। बलबन ने हलाकू आक्रमणों को रोकने के लिए सीमान्त प्रदेशों पर छावनियों की व्यवस्था का कार्य अपने पुत्रों को सौंप दिया। उन्होंने इन प्रदेशों में । मंगोलों की गतिविधियों को रोकने के लिए विशाल दुर्गों का निर्माण कराया।
- तैमूर खाँ का आक्रमण : 1285 ई० में मंगोल सरदार तैमूर खाँ ने आक्रमण किया। इस | आक्रमण में बलबन का पुत्र मुहम्मद मारा गया था।
(ख)
खिलजी व अन्य वंश
खिलजी वंश तथा तुगलक वंश के शासकों के समय में होने वाले मंगोल आक्रमणों का उल्लेख अग्रवत् । है
- खिलजी का शासनकाल–अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में मंगोलों ने बार-बार आक्रमण किए। 1299 ई० में साल्दी व कुतलुग ख्वाजा, 1303 ई० में तार्गी औरी 1305 ई० में अलीबेग, 1306 ई० में कूबक और 1307 ई० में इकबाल मन्दा के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किए, किन्तु अलाउद्दीन की विशाल सेना के सामने इन मंगोल आक्रमणकारियों का सदैव नतमस्तक होना पड़ा।
- निर्बल सुल्तानों का काल- अलाउद्दीन खिलजी के बाद दिल्ली सल्तनत का पतन आरम्भ हो गया। तुगलक शासकों के काल में भी मंगोलों के आक्रमण का ताँता बँधा रहा। इस काल में तरमाशीरीन के नेतृत्व में मंगोलों का आक्रमण महत्त्वपूर्ण रहा। कालान्तर में 1398 ई० में तैमूर लंग ने दिल्ली को तहस-नहस कर डाला और वहाँ भयंकर रक्तपात किया। कई महीनों तक दिल्ली उजाड़ श्मशान-सी दिखाई देती रही। अन्ततः मंगोलों के आक्रमण दिल्ली सल्तनत के विघटन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुए।
मंगोलों के आक्रमण का प्रभाव
मंगोलों के आक्रमण के निम्नलिखित प्रभाव हुए
- मंगोलों के आक्रमणों को रोकने में व्यस्त रहने के कारण सुल्तान प्रशासकीय कार्यों के प्रति
जागरूक न रह सके। - इन्हीं आक्रमणों के कारण प्रान्तीय सूबेदार स्वतन्त्र रूप से विद्रोह करते रहे, क्योंकि सुल्तान इन
मंगोल आक्रमणों को दबाने में लगे रहते थे। - सुल्तानों को विवश होकर दमेन नीति का आश्रय लेना पड़ा था, जिसके कारण प्रजा सुल्तानों से अप्रसन्न रही।
कुछ सुल्तानों ने सीमा नीति की उपेक्षा भी की, जिससे मंगोलों के आक्रमण निरन्तर जारी रहे और विद्रोहों की भी अधिकता रही। इतना ही नहीं, एक सुल्तान की मृत्यु पर दूसरे सुल्तान का सिंहासनारोहण तलवार के द्वारा ही सम्भव था। इन कारणों से मंगोलों को भारतीय आक्रमणों के समय कभी-कभी अपार सफलता मिलती थी, जो उन्हें पूर्वी आक्रमण के लिए प्रेरणा देती थी।
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