UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 5 Natural Vegetation (प्राकृतिक वनस्पति)
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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए
(i) चन्दन वन किस तरह के वन के उदाहरण हैं?
(क) सदाबहार वन
(ख) डेल्टाई वन
(ग) पर्णपाती वन
(घ) कॉटेदार वन
उत्तर-(ग) पर्णपाती वन।।
(ii) प्रोजेक्ट टाइगर निम्नलिखित में से किस उद्देश्य से शुरू किया गया है?
(क) बाघ मारने के लिए।
(ख) बाघ को शिकार से बचाने के लिए ।
(ग) बाघ को चिड़ियाघर में डालने के लिए
(घ) बाघ पर फिल्म बनाने के लिए
उत्तर-(ख) बाघ को शिकार से बचाने के लिए।
(iii) नन्दादेवी जीवमंण्डल निचय निम्नलिखित में से किस प्रान्त में स्थित है?
(क) बिहार ।
(ख) उत्तरांचल
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) उड़ीसा
उत्तर-(ख) उत्तरांचल (उत्तराखण्ड)।
(iv) निम्नलिखित में से कितने जीवमण्डल निचय आई०यू०सी०एन० द्वारा मान्यता प्राप्त हैं?
(क) एक
(ख) तीन ।
(ग) दो
(घ) चार
उत्तर-(घ) चार।
(v) वन नीति के अनुसार वर्तमान में निम्नलिखित में से कितना प्रतिशत क्षेत्र वनों के अधीन होना चाहिए?
(क) 33
(ख) 55
(ग) 44
(घ) 22
उत्तर—(क) 33.
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें–
(i) प्राकृतिक वनस्पति क्या है? जलवायु की किन परिस्थितियों में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन उगते हैं?
उत्तर–जो पौधे जंगल में प्राकृतिक परिस्थितियों के अनुसार स्वयं फलते-फूलते हैं या विकसित होते हैं, प्राकृतिक वनस्पति कहलाते हैं। उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन आंद्रे प्रदेशों में पाए जाते हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सेमी से अधिक होती है और औसत वार्षिक तापमान 22° सेल्सियस से अधिक रहता है। भारत में इन वनों का विस्तार लगभग 46 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मिलता है।
(ii) जलवायु की कौन-सी परिस्थितियाँ सदाबहार वन उगने के लिए अनुकूल हैं?
उत्तर-20° सेग्रे से अधिक तापमान तथा 150 से 200 सेमी वर्षा वाले उष्ण आर्द्र जलवायु प्रदेशों की परिस्थितियाँ सदाबहार वनों के लिए अनुकूल मानी जाती हैं।
(iii) सामाजिक वानिकी से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर–सामाजिक वानिकी, पर्यावरणीय सुरक्षा तथा ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक विकास से सम्बन्धित है। इसके द्वारा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों की बंजर एवं ऊसर भूमि पर वनारोपण करके उसके द्वारा आर्थिक आय और सामाजिक विकास का प्रयास किया जाता है।
(iv) जीवमण्डल निचय को परिभाषित करें। वन क्षेत्र और वन आवरण में क्या अन्तर है?
उत्तर–जीवमण्डल निचय विशेष प्रकार के भौतिक (स्थलीय) और तटीय पारिस्थितिक क्षेत्र हैं। इनको यूनेस्को के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय पहचान का मानक प्राप्त है। ये आरक्षित क्षेत्र वन्य-जीव और वनों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए बनाए गए हैं। वन क्षेत्र वह क्षेत्र है जो राजस्व विभाग के द्वारा वनों के लिए निर्धारित होता है, जबकि वास्तविक वन आवरण वह क्षेत्र है जो वास्तव में वनों से ढका हुआ है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें
(i) वन संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर-वनों का मानवीय विकास एवं जीव जगत के पोषण में महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसलिए वनों के संरक्षण को महत्त्वपूर्ण माना जाता है, फलस्वरूप भारत सरकार ने पूरे देश के लिए वन संरक्षण नीति, 1952 में लागू की जिसे 1988 में संशोधित किया, अब नई वन्य-जीवन कार्ययोजना (2002-2016) स्वीकृत की गई है। अत: वन नीति द्वारा देश की सरकार ने वनों के संरक्षण हेतु निम्नलिखित कदम उठाए हैं
- नई वन नीति के अनुसार सरकार सतत पोषणीय वन प्रबन्धन पर बल देती है जिससे एक ओर वन । संसाधनों का संरक्षण व विकास किया जाए और दूसरी ओर वनों से स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
- देश में 33 प्रतिशत भाग पर वन लगाना, जो वर्तमान राष्ट्रीय स्तर से 6 प्रतिशत अधिक है।
- पर्यावरण असन्तुलन समाप्त करने के लिए वन लगाने पर बल देना।
- देश की प्राकृतिक धरोहर जैवविविधता तथा आनुवंशिक पुल का संरक्षण करना।
- पेड़ लगाने को बढ़ावा देना तथा पेड़ों की कटाई रोकने के लिए जन-आन्दोलन चलाना, जिसमें महिलाएँ भी शामिल हों।
- सामाजिक वानिकी कार्यक्रम चलाना, जिससे ऊसर भूमि का उपयोग वनों को उगाने के लिए किया जा सके।
(ii) वन और वन्य-जीव संरक्षण में लोगों की भागेदारी कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-वन और वन्य-जीव संरक्षण केवल सरकारी प्रयासों द्वारा ही सम्भव नहीं है। स्वयंसेवी संस्थाएँ और जनसमुदाय का सहयोग इसके लिए अत्यन्त आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है। भारत में वन्य प्राणियों के बचाव की परम्परा बहुत पुरानी है। हमारे धर्मग्रन्थों में इसका व्यापक उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं, पंचतन्त्र, जंगल बुक इत्यादि की कहानियाँ हमारे वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
सरकार द्वारा वैधानिक प्रयासों के अन्तर्गत बनाए गए विभिन्न अधिनियम तथा परियोजनाएँ (बाघ परियोजना, हाथी परियोजना आदि) वन्य-जीव एवं वन संरक्षण के लिए मुख्य प्रयास हैं। फिर भी वन्य प्राणी संरक्षण का दायरा अत्यन्त व्यापक है और इसमें मानव-कल्याण की असीम सम्भावनाएँ निहित हैं। फलस्वरूप इस लक्ष्य को तभी प्राप्त किया जा सकता है जब हर व्यक्ति इसका महत्त्व समझे और अपना योगदान दे। अतः लोगों की सहभागिता द्वारा ही वनों और जीवों का संरक्षण हो सकता है और तभी यह प्राकृतिक धरोहर सुरक्षित रह सकती है।
उत्तराखण्ड का चिपको आन्दोलने वन और वन्य-जीवों के संरक्षण का विश्वप्रसिद्ध आन्दोलन है, जो जनसमुदाय की इस क्षेत्र में भागीदारी का उत्तम उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. जलवायु, मिट्टी आदि तत्त्वों के आधार पर वनों को विभाजित किया गया है
(क) चार भागों में
(ख) पाँच भागों में
(ग) तीन भागों में
(घ) दो भागों में
उत्तर-(ख) पाँच भागों में।
प्रश्न 2. भारत में ‘वन-महोत्सव के जन्मदाता माने जाते हैं
(क) सुन्दरलाल बहुगुणा ।
(ख) आचार्य विनोबा भावे :
(ग) मेधा पाटेकर ।
(घ) डॉ० कन्हैयालाल माणिकलाल मुन्शी
उत्तर-(घ) डॉ० कन्हैयालाल माणिकलाल मुन्शी।
प्रश्न 3. वन सहायक हैं
(क) वायु एवं जल-प्रदूषण रोकने में
(ख) भूमि का क्षरण रोकने में
(ग) (क) और (ख) दोनों में |
(घ) इनमें से किसी में नहीं ।
उत्तर-(ग) (क) और (ख) दोनों में।
प्रश्न 4. निम्नलिखित वनों में से कौन-सा भारत में सर्वाधिक विस्तार में फैला है?
(क) उष्ण कटिबन्धीय पतझड़ वाले वन
(ख) उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन
(ग) ज्वारीय वन
(घ) काँटेदार वन
उत्तर-(ख) उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन।
प्रश्न 5. आर्थिक दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण वन कौन-से हैं?
(क) मानसूनी
(ख) पर्वतीय
(ग) उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती
(घ) ज्वारीय
उत्तर-(ग) उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती।
प्रश्न 6. डेल्टाई वनों का मुख्य वृक्ष है
(क) चन्दने
(ख) पाइन
(ग) सुन्दरी
(घ) सिल्वर फर
उत्तर-(ग) सुन्दरी।
प्रश्न 7. ‘सुन्दरवन कहाँ पाया जाता है? |
(क) गंगा डेल्टा में
(ख) गोदावरी डेल्टा में
(ग) महानदी डेल्टा में
(घ) कावेरी डेल्टा में
उत्तर-(क) गंगा डेल्टा में।।
प्रश्न 8. ‘सुन्दरवन स्थित है
(क) जम्मू एवं कश्मीर में
(ख) केरल में
(ग) अरुणाचल प्रदेश में
(घ) पश्चिम बंगाल में
उत्तर-(घ) पश्चिम बंगाल में। ||
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश के कितने भू-भाग पर वन होने चाहिए?
उत्तर-एक-तिहाई।
प्रश्न 2, सुरक्षित वनों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर–वे वन जिन्हें इमारती लकड़ी अथवा वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए सुरक्षित किया गया है।
प्रश्न 3. संरक्षित वन किन्हें कहते हैं?
उत्तर–जिन वनों में सामान्य प्रतिबन्धों के साथ पशुचारण एवं खेती करने की अनुमति दे दी जाती है, उन्हें संरक्षित वन कहते हैं।
प्रश्न 4. वर्तमान में वनों की क्या महत्ता है?
उत्तर–वन पर्यावरणीय स्थिरता और पारिस्थितिक सन्तुलन को बनाए रखने में सहायक हैं।
प्रश्न 5. भारत में सबसे अधिक और सबसे कम वन क्षेत्र कहाँ है?
उत्तर-भारत में सबसे अधिक वन क्षेत्र अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में (86.93%) और सबसे कम हरियाणा में (3.8%) हैं।
प्रश्न 6. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों के मुख्य वृक्षों के नाम तथा प्रमुख क्षेत्र बताइए।
उत्तर-इन वनों में रोजवुड, एबोनी और आयरन वुड आदि वृक्ष पाए जाते हैं। भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन पश्चिमी घाट के पर्वतीय क्षेत्रों पर 450 से 1,370 मीटर की ऊँचाई के मध्य उगते हैं। असम और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों की पहाड़ियों, पूर्वी हिमालय के तराई क्षेत्र तथा अण्डमान निकोबार द्वीपसमूह में भी इसी प्रकार के वन उगते हैं।
प्रश्न 7. प्राकृतिक वनस्पति का क्या अर्थ है?
उत्तर–प्राकृतिक वनस्पति से आशय उन पेड़-पौधों, झाड़ियों एवं घासों से है, जो प्राकृतिक रूप से बिना भूमि जोते व बीज बोए स्वयं ही उग आती हैं।
प्रश्न 8. वनों के दो प्रत्यक्ष लाभ बताइए।
उत्तर-(1) ईंधन एवं इमारती लकड़ियों की प्राप्ति तथा (2) कागज, रबड़, कत्था, बीड़ी, दियासलाई, लुगदी, प्लाई पैकिंग आदि उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति।
प्रश्न 9. भारत में प्राकृतिक वनस्पति की भिन्नता के क्या कारण हैं?
उत्तर-भारत में उच्चावच, जलवायु, वर्षा तथा मिट्टियों में पर्याप्त विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। अत: इसी कारण यहाँ प्राकृतिक वनस्पति में भी पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है।
प्रश्न 10. पारितन्त्र का क्या अर्थ है?
उत्तर-वनस्पति, जीव-जन्तु तथा अन्य सूक्ष्म जीवाणु और भौतिक पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों से बना तन्त्र पारितन्त्र कहलाता है।
प्रश्न 11. प्राकृतिक संसाधनों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-प्रकृति-प्रदत्त उपहार; जैसे—स्थलाकृतियाँ, मृदा, जल, वायु, प्राकृतिक वनस्पति, सूर्य का प्रकाश, खजिन पदार्थ, जंगली जीव-जन्तु आदि जो मानव की अनेक आवश्यकताएँ पूर्ण करते हैं या उसके लिए उपयोगी अथवा उपयोगिता में किसी प्रकार सहायक होते हैं, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं।
प्रश्न 12. सदाबहार तथा पर्णपाती वनों में कोई एक अन्तर बताइए।
उत्तर-सदाबहार तथा पर्णपाती (पतझड़ी) वनों में अन्तर
प्रश्न 13. भारत के उन राज्यों के नाम बताइए जिनके दो-तिहाई भौगोलिक क्षेत्र वनों से ढके हैं?
उत्तर–जहाँ दो-तिहाई भौगोलिक क्षेत्र वनों से ढके हैं, उन राज्यों के नाम हैं–(1) मणिपुर, (2) मेघालय, (3),त्रिपुरा, (4) सिक्किम।।
प्रश्न 14. उन चार राज्यों के नाम बताइए जिनके भौगोलिक क्षेत्रफल में 10 प्रतिशत से भी कम भाग पर वन हैं।
उत्तर–राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)।
प्रश्न 15. उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित वनों के वृक्षों के नाम लिखिए।
उत्तर–रोजवुड, एबोनी और गुरजन आदि उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित वनों के वृक्ष हैं।
प्रश्न 16. भारत की वनस्पति में विविधता क्यों है?
उत्तर-प्राकृतिक वनस्पति और जलवायु दशाओं एवं मृदा में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। भारत में तापमान, वर्षा और मृदा में पर्याप्त विभिन्नताएँ मिलती हैं, इसलिए यहाँ वनस्पति में भी इतनी विभिन्नताएँ पाई जाती हैं।
प्रश्न 17. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार क्न भारत में कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर-उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन भारत में पश्चिमी, घाट उत्तर-पूर्वी भारत तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं।
प्रश्न 18. देवदार के वृक्ष भारत में कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर–देवदार के वृक्ष भारत में हिमालय पर्वतीय वनों में मिलते हैं।
प्रश्न 19. बिना फूल वाले पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर-बिना फूल वाले पौधों के नाम हैं-फर्न, शैवाल तथा कवक।
प्रश्न 20. पौधों की किस पादप जात को बंगाल का आतंक कहा जाता है?
उत्तर-जलहायसिन्ध’ को बंगाल का आतंक कहा जाता है, क्योंकि यह नदियों-नालों के मुंह पर रुककर जल प्रवाह को अवरुद्ध कर देता है। के
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जनजातीय समुदायों के लिए वनों की महत्ता का वर्णन कीजिए।
उत्तर–जनजातीय समुदायों के लिए वनों का विशेष महत्त्व है। वन इस समुदाय के लिए आवास, रोजी-रोटी और अस्तित्व हैं। ये उन्हें भोजन, फल, खाने लायक वनस्पति, शहद, पौष्टिक जड़े और शिकार के लिए वन्य शिकार प्रदान करते हैं। वन उन्हें घर बनाने का सामान और कला की वस्तुएँ भी देते हैं। इस प्रकार वन जनजातीय समुदाय के लिए जीवन और आर्थिक क्रियाओं के आधार हैं। सामान्यत: यह माना जाता है कि 2001 में भारत के 593 जिलों में से 187 जनजातीय जिले हैं। इनमें देश का 59.8 प्रतिशत वन आवरण पाया जाता है। इससे पता चलता है कि भारत के जनजातीय जिले वन सम्पदा में धनी हैं।
प्रश्न 2. बाघ परियोजना का क्या महत्त्व है? भारत में कितने बाघ संरक्षण क्षेत्र हैं?
उत्तर-भारत में बाघों की घटती संख्या को बढ़ाने के लिए बाघ संरक्षण परियोजना 1973 में प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में बाघों की जनसंख्या का स्तर बनाए रखना है जिससे वैज्ञानिक, सौन्दर्यात्मक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्य बनाए रखे जा सकें। प्रारम्भ में यह परियोजना नौ बाघ निचयों (आरक्षित क्षेत्रों) में शुरू की गई थी और इसमें 16,339 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल था। अब यह योजना 27 बाघ निचयों में चल रही है और इनका क्षेत्रफल 37.761 वर्ग किलोमीटर है और 17 राज्यों में व्याप्त है।
प्रश्न 3. ऊँचाई के आधार पर हिमालय के वनस्पति कटिबन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-ऊँचाई के आधार पर हिमालय क्षेत्र में वनस्पति की निम्नलिखित पेटियाँ पाई जाती हैं
1. उष्ण कटिबन्धीय आर्दै पर्णपाती वन-शिवालिक हिमालय की श्रेणियों में उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र पर्णपाती वन उगते हैं। साल यहाँ का मुख्य वृक्ष है। आर्थिक दृष्टिकोण से इसकी लकड़ी बहुत उपयोगी होती है। बाँस भी यहाँ बहुतायत में उगता है।
2. शीतोष्ण कटिबन्धीय चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वन-इन्हें ‘आर्द्र पर्वतीय वन’ भी कहते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में ये वन 1,000 से 2,000 मीटर की ऊँचाई तक मिलते हैं। इन वनों में चेस्टनट, चीड़, ओक, देवदार, बर्च, एल्डर, पोपलर, एल्म, मैपिल तथा सेब के वृक्ष उगते हैं। उत्तर-पूर्वी भागों में जहाँ भारी वर्षा होती है, उपोष्ण कटिबन्धीय चीड़ के वन पाए जाते हैं।
3. शंकुल या कोणधारी वन-हिमालय-पर्वतीय प्रदेश में 1,600 से 3,300 मीटर की ऊँचाई के मध्य चीड़, सीडर, सिल्वर, फर, स्पूस, सनोवर, ओक, मैपिल, बर्च, एल्डर तथा ब्लू पाइन के वृक्षों की प्रधानता है। ये कोमल लकड़ी के वृक्ष हैं, जिनसे कागज, लुगदी, दियासलाई आदि का | निर्माण किया जाता है।
4. अल्पाइन वन–हिमालैय-पर्वतीय प्रदेश में 3,600 मीटर से अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन वन शंकुल वनों का स्थान ले लेते हैं। इस प्रदेश में निम्न भागों में सिल्वर; फर, बर्च तथा जूनीपर के वृक्ष उगते हैं। इससे अधिक ऊँचाई पर काई एवं लाइकेन ही उगती हैं।
प्रश्न 4. भारत में उष्ण कटिबन्धीय वर्षा का वितरण एवं विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-जिन प्रदेशों में उष्णार्द्र जलवायु पाई जाती है, वहाँ वर्षा का औसत 200 सेमी या उससे अधिक रहता है। ऐसी जलवायु में किसी ऋतु विशेष में वृक्ष अपनी पत्तियाँ नहीं गिराते, बल्कि वे सदैव हरे-भरे (सदाबहार) रहते हैं। विषुवरेखीय वनों की भाँति ये वन बहुत सघन होते हैं। इनमें वृक्षों की ऊँचाई 60 मीटर या इससे भी अधिक हो जाती है। भारत में ये वन 4.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर उगे हैं। असम, मेघालय, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिमी घाट, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल के मैदानी भागों तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में इन वनों का विस्तार पाया जाता है। इन वनों में ताड़, महोगनी बाँस, सिनकोना, बेंत, रबड़, रोजवुड, आबनूस आदि वृक्ष उगते हैं।
प्रश्न 5. भारतीय वनों की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-भारतीय वनों की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- भारत में जलवायु की विभिन्नता के कारण विविध प्रकार के वन पाये जाते हैं। यहाँ विषुवत्रेखीय सदाबहार वनों से लेकर शुष्क, कॅटीले वन व अल्पाइन (कोमल लकड़ी वाले) वन तक मिलते हैं।
- भारत में कोमल लकड़ी वाले वनों का क्षेत्र कम पाया जाता है। यहाँ कोमल लकड़ी वाले वन हिमालय के अधिक ऊँचे ढालों पर मिलते हैं, जिन्हें काटकर उपयोग में लाना अत्यन्त कठिन है।
- भारत के मानसूनी वनों में ग्रीष्म ऋतु से पूर्व वृक्षों की पत्तियाँ नीचे गिर जाती हैं, जिसे पतझड़ कहते हैं।
- भारत के वनों में विविध प्रकार के वृक्ष मिलते हैं। अतः उनकी कटाई के सम्बन्ध में विशेषीकरण नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 6. वन्य जीवन के संरक्षण की क्या आवश्यकता है?
उत्तर-वन्य जीवन संरक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित दो कारणों से होती है
1. प्राकृतिक सन्तुलन में सहायक-वन्य जीवन वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार हैं, किन्तु वर्तमान समय में अत्यधिक वन दोहन तथा अनियन्त्रित और गैर-कानूनी आखेट के कारण भारत की वन्य जीव-सम्पदा का तेजी से ह्रास हो रहा है। अनेक महत्त्वपूर्ण पशु-पक्षियों की प्रजातियाँ विलोप के कगार पर हैं। प्राकृतिक सन्तुलन बनाये रखने के लिए
वन्य-जीव संरक्षण की बहुत आवश्यकता है।
2. पर्यावरण प्रदूषण–पर्यावरण प्रदूषण पर प्रभावी रोक लगाने के लिए भी पशुओं एवं वन्य-जीवों का संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि इनके द्वारा पर्यावरण में उपस्थित बहुत-से प्रदूषित पदार्थों को नष्ट कर दिया जाता है। इसके साथ ही वन्य-जीव पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने में अपना अमूल्य योगदान देते हैं।
प्रश्न 7. राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य-जीव अभयारण्य को परिभाषित करते हुए इनमें किसी एक अन्तर का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-राष्ट्रीय उद्यान एक या एक से अधिक पारितन्त्रों वाला वृहत् क्षेत्र होता है। विशिष्ट वैज्ञानिक शिक्षा तथा मनोरंजन के लिए इसमें पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं की प्रजातियों, भू-आकृतिक स्थलों और आवासों को संरक्षित किया गया है। राष्ट्रीय उद्यान की ही भाँति, वन्यजीव अभयारण्य भी वन्य-जीवों की सुरक्षा के लिए स्थापित किये गये हैं।
अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यानों में सूक्ष्म अन्तर हैं। अभयारण्य में बिना अनुमति शिकार करना वर्जित है,परन्तु चराई एवं गो-पशुओं का आवागमन नियमित होता है। राष्ट्रीय उद्यानों में शिकार एवं चराई पूर्णतया वर्जित होते हैं। अभयारण्यों में मानवीय क्रियाकलापों की अनुमति होती है, जबकि राष्ट्रीय उद्यानों में मानवीय हस्तक्षेप पूर्णतया वर्जित होता है।
प्रश्न 8. भारत में सामाजिक वानिकी के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-सामाजिक वानिकी ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास का कार्यक्रम ही नहीं है, बल्कि यह पारितन्त्र के सन्तुलन में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। भारत में सामाजिक वानिकी द्वारा ग्रामीण।जनसंख्या जलावन लकड़ी, छोटी-छोटी वनोत्पाद और इमारती लकड़ी प्राप्त करके आर्थिक विकास को बढ़ाती है। भारत में यह कार्यक्रम 1976 में राष्ट्रीय कृषि आयोग द्वारा शुरू किया गया था। इसके अन्तर्गत कई प्रकार के महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम चलाए गए हैं।
सामाजिक वानिकी किसानों को अपनी भूमि पर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करता है। इस कार्यक्रम द्वारा सड़कों व नहरों के किनारे खाली का वनों के लिए उपयोग होता है तथा बंजर और ऊपर भूमि में सुधार का प्रयास भी किया जाता है।
प्रश्न 9. भारत में वन्य प्राणियो की संख्या कम होने के मुख्य कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- भारत में वन्य प्राणियों की संख्या कम होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
- औद्योगिकी और तकनीकी विकास के कारण वनों का अत्यधिक दोहन।
- कृषि, मानवीय बस्ती, सड़कों, खदानों, जलाशयों इत्यादि के लिए भूमि से वनों का सफाया किया जाना।
- स्थानीय लोगों का चारे व इमारती लकड़ी की आपूर्ति हेतु वनों पर दबाव।
- पालतू पशुओं के लिए नए चरागाहों की खोज में मानव द्वारा वन्य जीवों और उनके आवासों को नष्ट किया जाना।
- रजवाड़ों और सम्भ्रांत वर्ग द्वारा जंगली जानवरों का शिकार क्रीड़ा या मनोरंजन के लिए किया जाना।
- वनों में आग लगने से वन्य-जीवों की मृत्यु होना।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में सदाबहार वनों का वितरण एवं उनके आर्थिक महत्त्व का विवरण दीजिए।
या भारत के विभिन्न प्रकार के वनों का वर्णन कीजिए।
या भारत में वनों के विकास का सकारात्मक विवरण दीजिए।
या उष्ण कटिबन्धीय पतझड़ वन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या भारत में प्राकृतिक वनस्पति का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) प्रकार, (ख) क्षेत्र।
उत्तर – भारत में वनों का वितरण
वन राष्ट्र की बहुमूल्य निधि होते हैं, परन्तु मानव इनके महत्त्व को पूरी तरह नहीं समझ पाया है। भारत के विशाल मैदान में तो शायद ही वन देखने को मिलते हैं, किन्तु पर्वतीय क्षेत्रों, समुद्रतटीय मैदानों तथा नदीतटीय भू-भागों में प्राकृतिक वनस्पति अवश्य विकसित हुई है।
भारत में 657.6 लाख हेक्टेयर भूमि (22%) पर वन पाये जाते हैं, जबकि भारतीय सुदूर संवेदन द्वारा लगाये गये नवीनतम अनुमानों के आधार पर देश में केवल 14% क्षेत्रफल पर ही वनों का विस्तार बताया गया है। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान समय में देश के भौगोलिक क्षेत्रफल के 19.39% भाग पर वनों का विस्तार पाया जाता है। 1952 ई० में निर्धारित ‘राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश के 33.3% क्षेत्र पर वन होने चाहिए। वर्तमान समय में वृक्षारोपण एवं वन-महोत्सव आदि कार्यक्रम इसी दिशा में किये गये प्रयास हैं। देश में वनों का भौगोलिक वितरण बड़ा ही असमान है। भारत के पर्वतीय राज्यों एवं दक्षिणी पठारी राज्यों में वन-क्षेत्र अधिक पाये जाते हैं।
भारतीय वनों का वर्गीकरण
वनों के प्रकार प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों पर निर्भर करते हैं। वर्षा की मात्रा, मिट्टी के प्रकार, भूगर्भीय संरचना तथा भूमि की बनावट के आधार पर भारतीय वनों का विभाजन प्रस्तुत किया जा सकता है। भौगोलिक आधार पर वनों के प्रथम चार प्रकार वर्षा की मात्रा के आधार पर तथा शेष पाँच प्रकार वर्षा की मात्रा (जलवायु) के अतिरिक्त मिट्टी आदि अन्य तत्त्वों के आधार पर निर्धारित किये जा सकते हैं। इन वनों के वर्गीकरण का विवरण अग्रलिखित है–
1. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests)-ईस प्रकार के वन उन भागों में पाये जाते हैं जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 200 सेमी तथा औसत तापमान 24° सेग्रे के लगभग रहता है। उत्तर में हिमालय की तराई, पूर्वी हिमालय के उप-प्रदेश, दक्षिण में पश्चिमी घाट के ढालों पर महाराष्ट्र से लेकर उत्तरी एवं दक्षिणी ढाल, नीलगिरि, अन्नामलाई, कर्नाटक, केरल तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह तक इस प्रकार के वनों का विस्तार है। पश्चिमी घाट पर 457 से 1,360 मीटर की ऊँचाई के मध्य तथा असोम में 1,067 मीटर की ऊँचाई तक इन वन का विस्तार मिलता है।
अत्यधिक वर्षा के कारण ये वन सदैव हरे-भरे रहते हैं, परन्तु वर्षा की कमी के कारण ये कभी-कभी अहरित भी हो जाते हैं। इनके वृक्षों की ऊँचाई 30 से 50 मीटर तक होती है। इनमें कठोर लकड़ी के वृक्ष अत्यधिक होते हैं तथा इन्हें काटना भी कठिन होता है। विभिन्न प्रकार की लताओं, झाड़ियों तथा छोटे-छोटे पौधों की अधिकता के कारणं ये वन दुर्गम हो गये हैं। इन वनों में अधिकांशत: रबड़, महोगनी, एबोनी, जंगली आम, नाहर, गुरजन, तुलसर, अमलतास, तून, ताड़, बाँस, सिनकोना, बेंत, रोजवुड आदि के वृक्ष महत्त्वपूर्ण होते हैं। असोम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, पूर्वी घाट, अण्डमान निकोबार द्वीप समूह आदि पर इस प्रकार के वनों का विस्तार पाया जाता है। ये वन आर्थिक दृष्टि से अनुपयोगी हैं।
2. उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती (पतझड़) वन या मानसूनी वन-ये वन अधिकतर उन भागों में उगते हैं जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 100 से 200 सेमी के मध्य रहता है। इन्हें मानसूनी वन भी कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में इन वनों के वृक्ष अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं जिससे उनकी नमी नष्ट न हो सके। इन वनों के नीचे सघन झाड़-झंखाड़ आदि नहीं पाये जाते हैं, जिस कारण यहाँ बाँस अधिक पैदा होता है; परन्तु बेंत, ताड़ तथा लताओं का अभाव रहता है। ये वन भारत के चार क्षेत्रों में मिलते हैं(i) उप-हिमालय प्रदेश में पंजाब से लेकर असोम हिमालय तक बाह्य एवं निचले ढालों पर; (ii) पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में; (iii) दक्षिणी भारत में पश्चिमी घाट के पूर्व से लेकर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल राज्यों में तथा (iv) दक्षिणी-पूर्वी घाट के ढालों पर।
ये वन व्यापारिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्व रखते हैं। इन वनों का क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किमी है। इन्हें सुरक्षित वनों की श्रेणी में रखा गया है। इन वनों में साल एवं सागौन के वृक्ष महत्त्वपूर्ण हैं जो महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्यों में अधिक मिलते हैं। शीशम, चन्दन, पलास, हल्दू, आँवला, शहतूत, बाँस, कत्था आदि अन्य प्रमुख वृक्ष हैं। वार्निश, चमड़ा रँगने आदि के उपयोगी पदार्थ भी इन्हीं वनों से प्राप्त होते हैं।
3. उष्ण कटिबन्धीय शुष्क वन-इस प्रकार के वन उन भागों में उगते हैं जिन भागों में वर्षा का औसत 50 से 100 सेमी तक रहता है। जल के अभाव के कारण ये वृक्ष न तो अधिक ऊँचे ही हो पाते हैं एवं न ही हरे-भरे रहते हैं। इन वृक्षों की ऊँचाई केवल 6 से 9 मीटर तक होती है। इन वृक्षों की जड़े लम्बी एवं मोटी होती हैं ताकि वे भूगर्भ में अधिक गहराई से जल खींच सकें तथा अपने अन्दर संचित रख सकें। इन वनों में अधिकतर नागफनी, रामबॉस, खेजड़ी, बबूल, कीकर, खैर, रीठा, कुमटा, खजूर आदि वृक्ष मुख्य हैं।
उत्तरी भारत में ये वन पूर्वी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दक्षिणी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कम उपजाऊ भूमि पर उगते हैं। दक्षिणी भारत के शुष्क भागों में आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात,
महाराष्ट्र में भी ऐसे ही वन मिलते हैं।
4. मरुस्थलीय एवं अर्द्ध-मरुस्थलीय वन-ये वन उन भागों में उगते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 50 सेमी से कम होती है। इनके वृक्ष छोटी-छोटी झाड़ियों के रूप में होते हैं जिनकी जड़े लम्बी होती हैं। बबूल यहाँ का प्रमुख वृक्ष है। खेजड़ी, खैर, खजूर, रामबाँस, नागफनी आदि प्रमुख वृक्ष हैं। दक्षिणी-पश्चिमी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात तथा कर्नाटक के वृष्टिछाया प्रदेश में इन वनों का विस्तार है।
5. पर्वतीय वन-ऊँचाई एवं वर्षा के अनुसार ये वन भिन्नता लिये होते हैं। पश्चिमी हिमालय क्षेत्र की अपेक्षा पूर्वी हिमालय प्रदेश में वर्षा अधिक होती है। अतः यहाँ वनों में भी भिन्नता पाया जाना स्वाभाविक है। इस प्रदेश के वनों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है
(i) पूर्वी हिमालय प्रदेश के वन-भारत के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र में पहाड़ी ढालों पर इन वनों का विस्तार मिलता है। इन क्षेत्रों में वर्षा का औसत 200 सेमी तक रहता है। ऊँचाई के अनुसार वनस्पति में भी भिन्नता मिलती है, परन्तु यह वनस्पति सदाबहार वनों की होती है। इस प्रदेश में 1,200 से 2,400 मीटर ऊँचाई पर उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार के वन मिलते हैं। इन वनों में साल, ओक, लॉरेल, दालचीनी, चन्दन, शीशम, खैर एवं सेमल के वृक्ष मिलते हैं। कहीं-कहीं बाँस भी उग आता है। शीतोष्ण सदाबहार की वनस्पति 2,400 से 3,600 मीटर की ऊंचाई पर मिलती है। यहाँ पर कम ऊँचाई वाले कोणधारी वृक्ष उगते हैं। प्रमुख वृक्षों में ओक, मैपिल, बर्च, एल्डर, लॉरेल, सिल्वर-फर, पाइन, स्पूस, जूनीपर प्रमुख हैं।
(ii) पश्चिमी हिमालय प्रदेश के वन-पश्चिमी हिमालय प्रदेश में वर्षा का प्रभाव वृक्षों के प्रकार पर पड़ता है। यहाँ ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी भिन्नता पायी जाती है। इस प्रदेश में 900 मीटर की ऊँचाई तक अर्द्ध-मरुस्थलीय वनस्पति पायी जाती है, जो छोटे-छोटे वृक्ष एवं झाड़ियों के रूप में होती है। 900 से 1,800 मीटर की ऊँचाई तक चीड़, साल, सेमल, ढाक, शीशम, जामुन एवं बेर के वृक्ष उगते हैं। इन वृक्षों पर कम वर्षा एवं निम्नः तापमान का प्रभाव पड़ता है। 1,800 से 3,000 मीटर की ऊँचाई तक सम-शीतोष्ण कोणधारी वन पाये जाते हैं। 2,500 मीटर की ऊँचाई तक चौड़ी पत्ती वाले मिश्रित वन मिलते हैं। इनमें चीड़, देवदार, नीला-पोइन, एल्डर, पोपलर, बर्च, एल्म आदि के वृक्ष महत्त्वपूर्ण हैं। 2,500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर सिल्वर-फर एवं येलो-पाइन मुख्य वृक्ष हैं।
हिमालय पर्वतीय प्रदेश में 2,400 मीटर से अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन वन मिलते हैं। इन्हें कोणधारी वन कहा जा सकता है। ये वन 3,600 मीटर की ऊँचाई तक अधिक मिलते हैं। ओक, मैपिल, सिल्वर-फर, पाइन, जूनीपर आदि इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। पश्चिमी हिमालय प्रदेश की अपेक्षा पूर्वी हिमालय प्रदेश में इन वनों का विस्तार अधिक है। 3,600 से 4,800 मीटर की ऊँचाई तक टुण्ड्रा वनस्पति, छोटी-छोटी झाड़ियाँ एवं काई उगती है। इससे अधिक ऊँचाई पर सदैव हिमावरण रहता है अर्थात् 4,800 मीटर की ऊँचाई पर हिमालय प्रदेश में स्थायी हिम रेखा है।
6. ज्वारीय वन-नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में एक विशेष प्रकार की वनस्पति उगती है जिनमें मैनग्रोव एवं सुन्दरी वृक्षों की प्रधानता होती है। ये वन सदाबहारी होते हैं। सागरीय जल की लवणता का प्रभाव इन वनों पर अधिक पड़ता है, क्योंकि इनकी छाल नमकीन एवं लकड़ी कठोर होती है। जिसकी नावें बनाई जाती हैं तथा छाल का उपयोग चमड़ा रँगने में किया जाता है। ताड़, नारियल, फोनिक्स, गोरेन, नीपा एवं केसूरिना (झाऊ) अन्य प्रमुख वृक्ष हैं। भारत में ये वन गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा आदि नदियों के डेल्टाओं में उगते हैं।
वनों का राष्ट्र के आर्थिक विकास में महत्व
वन राष्ट्र की अमूल्य निधि होते हैं। प्रकृति द्वारा प्रदत्त नि:शुल्क प्राकृतिक उपहारों में वन सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “उगता हुआ वृक्ष प्रगतिशील राष्ट्र का जीवन प्रतीक है।” वन महोत्सव के जन्मदाता डॉ० के० एम० मुन्शी ने वृक्षों की उपयोगिता को इन शब्दों में व्यक्त किया है-“वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है।” वृक्षों के महत्त्व को देखते हुए ही भारत सरकार ने 1950 ई० में वन-महोत्सव कार्यक्रम लागू किया था। वनों के आर्थिक महत्त्व को अग्रलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है
(अ) वनों से प्रत्यक्ष लाभ-वनों के प्रत्यक्ष लाभों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है
1. प्रधान उपजे–वनों की मुख्य उपज लकड़ी है। वनों से प्राप्त होने वाली आय का लगभग 75%
भाग लकड़ी से ही प्राप्त होता है। भारतीय वनों से प्रति वर्ष लगभग 25 करोड़ की लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं। देवदार, सागौन, शीशम, चीड़, पाइन तथा साल के वृक्षों से उत्तम, कोमल तथा टिकाऊ लकड़ियाँ मिलती हैं, जिनसे विविध प्रकार को फर्नीचर बनाया जाता है। चन्दन वृक्ष की लकड़ी से सुगन्धित तेल निकाला जाता है। गंगा डेल्टा में सुन्दरी वृक्षों की लकड़ी से टिकाऊ एवं मजबूत नावें बनाई जाती हैं। भारत में प्रति वर्ष 108 लाख घन मीटर औद्योगिक लकड़ी (15 लाख घन मीटर शंकु वृक्षी और 93 लाख घन मीटर चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों की) प्राप्त की जाती है। भारतीय वनों से प्रति वर्ष 490 लाख टन ईंधन की लकड़ी का उत्पादन होता है, जबकि माँग 1,330 लाख घन मीटर लकड़ी की रहती है।
2. गौण उपों-लकड़ी के अतिरिक्त वनों से अन्य अनेक ऐसे पदार्थ भी प्राप्त होते हैं जो आर्थिक दृष्टि से बहुत उपयोगी होते हैं तथा जिनका उपयोग उद्योग-धन्धों के कच्चे माल के रूप में किया जाता है। वनों से निम्नलिखित गौण उपजे प्राप्त होती हैं|
(i) लाख-लाख वनों की महत्त्वपूर्ण उपज है। लाख के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम – स्थान है। यहाँ विश्व का लगभग 75% लाख उत्पन्न किया जाता है। भारत में प्रति वर्ष १ 11 करोड़ मूल्य के लाख उत्पादन में से लगभग 90 प्रतिशत का निर्यात कर दिया जाता है, जिससे प्रति वर्ष १ 10 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। बिहार राज्य भारत का 50
प्रतिशत लाख उत्पन्न करता है। लाख उत्पादन में दूसरा स्थान मध्य प्रदेश का है।
(ii) गोंद-अनेक वृक्षों के तने चिपचिपा रस छोड़ते हैं, जो सूखकर गोंद बन जाता है। यह मुख्यतः बबूल, चीड़, नीम, पीपल, खेजड़ा, कीकर तथा साल के वृक्षों से प्राप्त होता है।
(iii) कत्था-खैर वृक्षों की लकड़ी को पानी में उबालकर तथा सुखाकर कत्था प्राप्त किया जाता है। खैर के वृक्ष उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में अधिक पाये जाते हैं।
(iv) चमड़ा रँगने तथा पकाने के पदार्थ-वनों के अनेक वृक्षों की छालें चमड़ा पकाने तथा रँगने में प्रयुक्त की जाती हैं। बबूल, सुन्दरी, खैर, हरड़, बहेड़ा, आँवला आदि वृक्षों की छालें तथा पत्तियाँ चमड़ा कमाने एवं रँगने में प्रयुक्त की जाती हैं।
(v) अन्य पदार्थ-वनों से प्राप्त अन्य गौण उपजों में रबड़, रीठा, तेल, ओषधियाँ, घास, सिनकोना आदि महत्त्वपूर्ण हैं, जिनका उपयोग विभिन्न उद्योग-धन्धों में किया जाता है। वनों में रहने वाले पशु-पक्षियों से मांस, चमड़ा, हड्डी तथा पंख भी प्राप्त होते हैं। वनों में उगी हुई हरी घास पशुओं के लिए उत्तम चरागाह का काम देती है। वनों से सरकार को राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है तथा अनेक लोगों की जीविका भी चलती है।
(ब) वनों से अप्रत्यक्ष लाभ-वनों से निम्नलिखित अप्रत्यक्ष लाभ भी प्राप्त होते हैं
- वन जलवायु को सम रखने में सहायक होते हैं तथा वर्षा कराने में भी योगदान देते हैं, क्योंकि इनसे । वायुमण्डल को नमी प्राप्त होती है।
- वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। ये वायुमण्डल की कार्बन डाइऑक्साइड गैस को ऑक्सीजन में बदल देते हैं। इस प्रकार वनों से वायु प्रदूषण कम हो जाता है।
- वन बाढ़ों के प्रकोप को रोकने में सहायक होते हैं, क्योंकि वृक्षों की जड़ों से जल का प्रवाह मन्द पड़ जाता है।
- वन मरुस्थल के प्रसार को रोकते हैं। वृक्षों से वायु की गति मन्द हो जाती है तथा तीव्र आँधियों से | होने वाली हानि भी कम हो जाती है।
- वनों से भूमि-क्षरण तथा कटाव रुकता है, क्योंकि वृक्षों की जड़े वर्षा के जल की गति को मन्द करे | देती हैं तथा मिट्टी को पकड़कर रखती हैं।
- वनों में रेशम के कीड़े तथा मधुमक्खी पालने का कार्य सुविधापूर्वक किया जाता है।
- वन देश के प्राकृतिक सौन्दर्य में भी वृद्धि करते हैं। वृक्षों की हरियाली नेत्रों को बहुत भली प्रतीत | होती है।
- वनों के वृक्षों से गिरी हुई पत्तियाँ भूमि में मिलकर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ा देती हैं। इससे मिट्टी में जीवांशों की मात्रा में भी वृद्धि होती है।
- वन पशु-पक्षियों के लिए शरणस्थली होते हैं, जिनसे हमें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
- वन मिट्टी में दब जाने पर कालान्तर में कोयले तथा खनिज तेल का निर्माण करते हैं।
- वनों की जड़ों द्वारा भूमि में जल का रिसाव अधिक होता है। इससे भूमिगत जल का भण्डार बढ़ता है।
भारत में प्राचीन काल से वनों का विस्तार पर्याप्त मात्रा में था, परन्तु जनसंख्या के दबाव के बढ़ने के फलस्वरूप आवास, कृषि तथा उद्योगों की स्थापना के लिए वनों को बुरी तरह काट डाला गया। वन-क्षेत्रों का अभाव हो जाने से पर्यावरण असन्तुलन के अनेक दुष्प्रभाव प्रकट होने लगे हैं। वर्तमान में हमारी सरकार ने इस ओर ध्यान दिया है तथा राष्ट्रीय वन नीति घोषित की है, जिसके अनुसार भूमि के 33% भाग पर वन होने चाहिए। वन महोत्सव तथा सामाजिक वानिकी इसी दिशा में हमारे कदम हैं। वस्तुत: वन-सम्पदा हमारी धरोहर है, हमें इसे नष्ट नहीं करना चाहिए। हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम इसे बढ़ाकर आगे आने वाली पीढ़ियों को दें। हमें इस सम्पत्ति का ब्याज ही काम में लेना चाहिए, इसके मूल को कम नहीं करना चाहिए, तभी हम आज के भयावह पर्यावरण असन्तुलन से राहत पा सकते हैं।
वन-संरक्षण के उपाय।
पर्यावरण के संरक्षणार्थ वनों को संरक्षण अत्यन्त आवश्यक प्रतीत होता है। वन-संरक्षण हेतु देश में संशोधित राष्ट्रीय वन नीति 1988 में लागू की गई है। इस वन नीति के मुख्य लक्ष्य पारिस्थितिकीय सन्तुलन के संरक्षण और पुन:स्थापन द्वारा पर्यावरण स्थायित्व को बनाए रखना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु वन-संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं–
- व्यापक वृक्षारोपण और सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों के द्वारा वन और वृक्ष के आच्छादन में महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी की जाए।
- वन उत्पादनों के उचित उपयोग को बढ़ावा देना और लकड़ी के अनुकूलन विकल्पों की खोज की जाए।
- वनों पर पड़ रहे दबाव को न्यूनतम करने के लिए जन-साधारण; विशेषकर महिलाओं को अधिकतम सहयोग प्रदान करने के लिए प्रेरित करना।
- नदियों, झीलों और जलाशयों के जलग्रहण क्षेत्रों में भूमि-कटाव और वनों के क्षरण पर नियन्त्रण किया जाए।
- वन संरक्षण और प्रबन्धन हेतु ग्रामीण समितियों का गठन किया जाए।
- आदिवासी बहुल क्षेत्रों में नष्ट हो चुके वनों को पुनः हरा-भरा करने के लिए विशेष प्रायोजित रोजगार योजना के माध्यम से वनों को पुनर्जीवित किया जाए।
- प्राकृतिक और मानव द्वारा लगी वनों की आग (दावानल) पर नियन्त्रण करना तथा वनों में आग | लगने की घटनाओं में कमी लाकर वनों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना।
- रेगिस्तानी, बंजर और अनुपयुक्त अन्य प्रकार की भूमि पर उसकी प्रकृति के अनुरूप प्रजातियों की वनस्पति का विस्तार करना भी वन-संरक्षण में सहायक कदम होगा।
वास्तव में वन-सम्पदा हमारे लिए प्रकृति का अमूल्य वरदान है, अतः हमें झ्स सम्पत्ति का ब्याज ही काम में लेना चाहिए, इसके मूल को कभी भी कम नहीं करना चाहिए, तभी हम आज के भयावह पर्यावरण, असन्तुलन से राहत पा सकते है।
प्रश्न 2. जीवमण्डल निचय (आरक्षित क्षेत्र) क्या हैं? इसके उद्देश्य बताइए तथा यूनेस्को द्वारा भारत के मान्यता प्राप्त जीवमण्डल निचय का वर्णन कीजिए।
उत्तर-जीवमण्डल निचय
देश में जैव विविधता की सुरक्षा और संरक्षण के लिए विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं। जीवमण्डल निचय भी इनमें एक है। ये विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तन्त्र हैं, जिन्हें यूनेस्को के मानव और जीवमण्डल प्रोग्राम (MAB) के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त है।
जीवमण्डल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य हैं, जो निम्नांकित चित्र द्वारा स्पष्ट होते हैं
भारत में 14 जीवमण्डल निचय हैं। इनमें से 4 जीवमण्डल निचय (नीलगिरि, नन्दादेवी, सुन्दरवन और मन्नार की खाड़ी) को यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त है।
1. नीलगिरि जीवमण्डल निचय-इस आरक्षित क्षेत्र की स्थापना 1986 की गई थी। यह भारत का पहला जीवमण्डल निचय है। इस निचय में वायनाड वन्य जीवन सुरक्षित क्षेत्र नगरहोल, बाँदीपुर
और मुदुमलाई, लिम्बूर का सारा वन से ढका ढाल, ऊपरी नीलगिरि पठार, सायलेण्ट वैली और सिद्वानी पहाड़ियाँ सम्मिलित हैं। इस जीवमण्डल निचय का कुल क्षेत्र 5,520 वर्ग किलोमीटर है।
2. नन्दादेवी जीवमण्डल निचय-जय जीवमण्डल निचय उत्तराखण्ड में स्थित है। इसमें चमोली, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों के भाग सम्मिलित हैं। इस निचय में शीतोष्ण कटिबन्धीय वन तथा कई प्रकार के वन्य-जीव; जैसे-हिम तेन्दुआ, काला भालू, भूरा भालू, कस्तूरी मृग, हिममुर्गा, बाज और काला बाज आदि पाए जाते हैं।
3. सुन्दरवन जीवमण्डल निचय-यह पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के दलदली डेल्टा पर स्थित है। | यह विशाल क्षेत्र 9,630 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहाँ मैंग्रोव वृक्ष, लवणीय और ताजा जल प्राप्त है। सबको पर्यावरण के अनुरूप ढालते हुए बाघ पानी में तैरते हैं और चीतल, भौंकने वाला मृग, जंगली सूअर जैसे दुर्लभ जीव भी पाए जाते हैं।
4. मन्नार की खाड़ी का जीवमण्डल निचय-यह निचय लगभग एक लाख पाँच हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है और भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है। समुद्री जीव विविधता के मामले में यह क्षेत्र विश्व के सबसे धनी क्षेत्रों में से एक है। इस जीवमण्डल निचय में 21 द्वीप हैं और इन पर अनेक ज्वारनदमुख पुलिन, तटीय पर्यावरण के जंगल, समुद्री घासे, प्रवालद्वीप, लवणीय अनूप
और मैंग्रोव पाए जाते हैं।
प्रश्न 3. भारत के जीवरिजर्व क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति, विस्तार और क्षेत्रफल का विवरण दीजिए।
उत्तर-भारत में 14 जीव रिजर्व क्षेत्र या जीवमण्डल निचय हैं। इनका नाम, कुल भौगोलिक क्षेत्रफल,. स्थिति और विस्तार अग्रांकित तालिका में दिया गया है
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