UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems (वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ)
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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न (i) यदि धरातल पर वायुदाब 1,000 मिलीबार है तो धरातल से 1 किमी की ऊँचाई पर वायुदाब कितना होगा?
(क) 700 मिलीबार
(ख) 900 मिलीबार।
(ग) 1,100 मिलीबार ।
(घ) 1,300 मिलीबार
उत्तर-(ख) 900 मिलीबार।।
प्रश्न (ii) अन्तर उष्णकटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र प्रायः कहाँ होता है?
(क) विषुववृत्त के निकट
(ख) कर्क रेखा के निकट
(ग) मकर रेखा के निकट
(घ) आर्कटिक वृत्त के निकट
उत्तर-(क) विषुवत् वृत्त के निकट।
प्रश्न (iii) उत्तरी गोलार्द्ध में निम्न वायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(क) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(ग) समदाबे रेखाओं के समकोण पर ।
(घ) समदाब रेखाओं के समानान्तर
उत्तर-(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत।
प्रश्न (iv) वायुराशियों के निर्माण का उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(क) विषुवतीय वन ।
(ख) साइबेरिया का मैदानी भाग |
(ग) हिमालय पर्वत ।
(घ) दक्कन पठार
उत्तर-(ख) साइबेरिया का मैदानी भाग।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न (i) वायुदाब मापने की इकाई क्या है? मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्र तल तक क्यों घटाया जाता है?
उत्तर-वायुदाब को मापने की इकाई मिलीबार तथा पासकल है। व्यापक रूप से वायुदाब मापने के लिए किलो पासकल इकाई का प्रयोग किया जाता है जिसे hPa द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्र तल तक घटाया जाता है क्योंकि समुद्र तल पर औसत वायुमण्डलीय दाब 1,013.2 मिलीबार या 1,013.2 किलो पासकल होता है। अतः वायुदाब पर ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने के लिए और मानचित्र को तुलनात्मक बनाने के लिए वायुदाब मापने के बाद इसे समुद्र स्तर पर घटा दिया जाता है।
प्रश्न (ii) जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफ हो अर्थात उपोष्ण उच्च दाब से विषुवत वृत्त की ओर हो तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्णकटिबन्ध में पवनें उत्तरी-पूर्वी क्यों होती है?
उत्तर-जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा में होता है तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्ण कटिबन्धीयं पेवनों की दिशा कोरिओलिस बल से प्रभावित होकर उत्तरी-पूर्वी हो जाती है।
प्रश्न (iii) भूविक्षेपी पवनें क्या हैं?
उत्तर-जब समदाब रेखाएँ सीधी होती हैं तो उन पर घर्षण का प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि दाब प्रवणता बल कोरिओलिस बल से सन्तुलित हो जाता है। इसलिए पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर चलती हैं। अतः ऐसी क्षैतिज पवनें जो ऊपरी वायुमण्डल की समदाब रेखाओं के समानान्तर चलती हों, भूविक्षेपी (Geostrophic) पवनें कहलाती हैं (चित्र 10.1)।
प्रश्न (iv) समुद्र व स्थल समीर का वर्णन करें।
उत्तर-ऊष्मा के अवशोषण तथा स्थानान्तरण की प्रकृति स्थल व समुद्र में भिन्न होती है अर्थात् दिन के समय स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा शीघ्र एवं अधिक गर्म हो जाते हैं, अतः यहाँ निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है, जबकि समुद्र अपेक्षाकृत ठण्डे रहते हैं और उन पर उच्चदाब बना रहता है। इसलिए दिन में पवनें समुद्र से स्थल की ओर प्रवाहित होती हैं। इन पवनों को स्थल समीर कहते हैं। रात के समय स्थल भाग शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं; अतः वहाँ उच्चदाब पाया जाता है जबकि समुद्र देर से ठण्डे होने के कारण रात्रि में निम्न दाब के क्षेत्र रहते हैं। इसलिए पवनें रात्रि में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। इनको समुद्री समीर कहते हैं (चित्र 10.2)।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (1) पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताएँ।
उत्तर-पवनों की दिशा एवं वेग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. दाब प्रवणता-किन्हीं दो स्थानों के वायुदाब का अन्तर दाब प्रवणता कहलाता है। दाब प्रवणता में अन्तर जितना अधिक होगा पवनों की गति उतनी ही अधिक होती है। सामान्यतः प्रवणता के सम्बन्ध में दो तथ्य अधिक महत्त्वपूर्ण हैं–(i) पवनें समदाब रेखाओं को काटती हुई उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं तथा (ii) इनकी गति दाब प्रवणता पर आधारित होती है।
2. घर्षण बल-पवनों की गति तथा दिशा पर घर्षण बल का विशेष प्रभाव होता है। घर्षण बल की उत्पत्ति तथा उसके ऊपर चलने वाली पवन के संघर्ष से होती है। घर्षण बल हवा के विपरीत दिशा में कार्य करता है। जलीय भागों पर स्थल भागों की अपेक्षा घर्षण कम होता है इसलिए पवन तीव्र गति से चलती है। जहाँ घर्षण नहीं होता है, वहाँ पवन विक्षेपण बल तथा प्रवणता बल में सन्तुलन पाया जाता है; अतः पवन की दिशा समदाब रेखा के समानान्तर होती है, किन्तु घर्षण के कारण पवन वेग कम हो जाता है तथा वह समदाब रेखाओं के समानान्तर ने चलकर कोण बनाती हुई चलती है।
3. कोरिऑलिस बल-पृथ्वी की दैनिक गति (घूर्णन) के कारण उसका वायुमण्डलीय आवरण भी घूमता है; अत: इस बल के कारण पवनें सीधी न चलकर अपने दाईं अथवा बाईं ओर मुड़ जाती हैं। अर्थात् पवनों में विक्षेप उत्पन्न हो जाते हैं। इसे विक्षेपण बल (Deflection Force) कहा जाता है। इस बल की खोज सर्वप्रथम फ्रांसीसी गणितज्ञ कोरिऑलिस ने सन् 1844 में की थी; अत: इसे कोरिऑलिस बल भी कहते हैं। बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिनी तरफ तथा दक्षिण गोलार्द्ध में बाईं तरफ विक्षेपित हो जाती हैं। जब पवनों का वेग अधिक होता है तब विक्षेपण भी अधिक होता है। कोरिऑलिस बल अक्षांशों के कोण के सीधा समानुपात में बढ़ता है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक और विषुवत् वृत्त पर अनुपस्थित रहता है।
प्रश्न (ii) पृथ्वी पर वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करते हुए चित्र बनाएँ। 30°उत्तरी व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब के सम्भव कारण बताएँ
उत्तर-वायुमण्डलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण कहा जाता है। वायुमण्डलीय परिसंचरण महासागरीय जल की गति को गतिमान रखता है, जो पृथ्वी की जलवायु को भी प्रभावित करता है। पृथ्वी पर वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण का क्रमिक प्रारूप चित्र 10.3 में प्रस्तुत है। पृथ्वी की सतह से ऊपर की दिशा में होने वाले परिसंचरण और इसके विपरीत दिशा में होने वाले परिसंचरण को कोष्ठ (Cell) कहते हैं। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में ऐसे कोष्ठ को हेडले का कोष्ठ तथा उपोष्ठ उच्च दाब कटिबन्धीय क्षेत्र में फेरल कोष्ठ एवं ध्रुवीय अक्षांशों पर ध्रुवीय कोष्ठ कहा जाता है। ये
तीन कोष्ठ वायुमण्डलीय परिसंचरण का प्रारूप निर्धारित करते हैं जिसमें तापीय ऊर्जा का निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांओं में स्थानान्तर सामान्य परिसंचरण प्रारूप को बनाए रखता है। 30° उत्तरी व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब के दो सम्भव कारण निम्नलिखित हैं
1. उच्च तापमान व न्यून वायुदाब से अन्तर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र पर वायु संवहन धाराओं । के रूप में ऊपर उठती है। हम जानते हैं कि विषुवत् रेखा पर घूर्णन गति तेज होती है जिसके कारण वायुराशियाँ बाहर की ओर जाती हैं। यह हवा ऊपर उठकर क्रमशः ठण्डी होती है। ऊपरी परतों में यह हवा ध्रुवों की ओर बहने से और अधिक हो जाती है और इसका घनत्व बढ़
जाता है।
2. दूसरा कारण यह है कि पृथ्वी के घूर्णन के कारण ध्रुवों की ओर जाने वाली हवा कोरिऑलिस बल के कारण पूर्व की ओर विक्षेपित होकर कर्क और मकर रेखा व 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उतर जाती है और उच्च वायुदाब कटिबन्ध का निर्माण करती है। इसको उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध कहते हैं।’
प्रश्न (iii) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है? उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के किस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है और उच्च वेग की पवनें चलती हैं। क्यों?
उत्तर-उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात अत्यन्त आक्रामक एवं विनाशकारी होते हैं। इनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबन्ध के महासागरीय क्षेत्रों पर होती है। यहाँ इनकी उत्पत्ति एवं विकास के लिए निम्नलिखित अनुकूल स्थितियाँ पाई जाती हैं
1. बृहत् समुद्री सतह, जहाँ तापमान 27° सेल्सियस से अधिक रहता है।
2. इस क्षेत्र में कोरिऑलिस बल प्रभावी रहता है जो उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति में सहायक है।
3. इन क्षेत्रों में ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में अन्तर कम रहता है।
4. यहाँ वायुदाब निम्न होता है जो चक्रवातीय परिसंचरण में सहायक है।
5. समुद्र तल तन्त्र पर ऊपरी अपसरण का होना।
उच्च वेग वाली और मूसलाधार वर्षा उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों के केन्द्रीय भाग में होती है। क्योंकि यहाँ केन्द्रीय (अक्षु) भाग इस चक्रवात का शान्तक्षेत्र होता है, जहाँ पवनों का अवतलन होता है। चक्रवात अक्षु के चारों तरफ अक्षुभित्ति होती है जहाँ वायु का प्रबल वेग में आरोहण होता है, यह वायु आरोहण क्षोभसीमा की ऊँचाई तक पहुँचकर इसी क्षेत्र में उच्च वेग वाली पवनों को उत्पन्न करता है। (चित्र 10.4)। यह पवनें समुद्रों से आर्द्रता ग्रहण करती हैं जिससे समुद्रों के तटीय भाग पर भारी वर्षा होती है। और सम्पूर्ण क्षेत्र जलप्लावित हो जाता है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. भूपृष्ठ (पृथ्वी के गोले) पर वायुदाब की कुल पेटियों की संख्या है
(क) पाँच
(ख) सात
(ग) चार
(घ) छः
उत्तर-(ख) सात।
प्रश्न 2. भूपृष्ठ पर उच्च वायुदाब की पेटियों (मेखलाओं) की संख्या है
(क) पाँच
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) दो।
उत्तर-(ग) चार।।
प्रश्न 3. समदाब रेखाएँ हैं
(क) काल्पनिक रेखाएँ ।
(ख) वास्तविक रेखाएँ
(ग) (क) और (ख) दोनों ।
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क) काल्पनिक रेखाएँ।
प्रश्न 4. तापमान के अधिक होने पर वायुदाब
(क) अधिक होता है।
(ख) कम होता है।
(ग) मध्यम होता
(घ) अपरिवर्तनीय होता है।
उत्तर-(ख) कम होता है।
प्रश्न 5. तापीय चक्रवात को सूर्यातप चक्रवात का नाम देने वाले विद्वान हैं
(क) ल्यूक हावर्ड
(ख) बाइज बैलट
(ग) हम्फ्रीज
(घ) जर्कनीज
उत्तर-(ग) हम्फ्रीज।।
प्रश्न 6. जब पवनें वायु के निम्न दाब के कारण भंवर केन्द्र की ओर वेगपूर्वक दौड़ती हैं तो वायु का यह भंवर कहलाता है
(क) चक्रवात
(ख) प्रति-चक्रवात
(ग) शीतोष्ण चक्रवात
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क) चक्रवात।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुदाब का क्या अर्थ हैं?
उत्तर-वायुमण्डल की ऊँचाई धरातल से हजारों किलोमीटर तक है। इतनी अधिक ऊँचाई तक फैली वायुमण्डल की गैसें एवं जलवाष्प धरातल पर भिन्न-भिन्न मात्रा में दबाव डालती हैं, इसी दबाव को वायुदाब कहते हैं।
प्रश्न 2. वायुदाब विभिन्नता के मुख्य कारण बतलाइए।
उत्तर-धरातल पर वायुदाब सभी जगह समान नहीं होता। वायुदाब की भिन्नता का मुख्य कारण तापमान, ऊँचाई तथा जलवाष्प की भिन्नता एवं पृथ्वी की घूर्णन गति है।
प्रश्न 3. डोलडम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-डोलड्रम विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी है जो भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° अक्षांशों में मध्य स्थित है। इस पेटी में वायु शान्त रहती है।
प्रश्न 4. अश्व अक्षांश की स्थिति बतलाइए।
उत्तर-उच्च वायुभार अथवा अश्व अक्षांश पेटी दोनो गोलार्द्ध में 30°से 35° अक्षांशों के मध्य स्थित है।
प्रश्न 5. चक्रवात में पवनों की दिशा किस ओर होती है?
उत्तर-चक्रवात अण्डाकार समदाब रेखाओं का घेरा है जिसमें पवनें बाहर से केन्द्र की ओर तेजी से चलती हैं। इसमें पवनों की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अनुकूल होती है।
प्रश्न 6. तापीय चक्रवात उत्पन्न होने का क्या कारण है?
उत्तर-तापीय चक्रवात की उत्पत्ति महासागरों में तापमान एवं वायुदाब की भिन्नता एवं असमानता के कारण होती है। ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में आइसलैण्ड एवं ग्रीनलैण्ड तथा एल्यूशियन द्वीपों के निकट उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 7. टाइफून क्या हैं? ये कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर-फिलीपीन्स, जापान तथा चीन सागर में चलने वाले चक्रगामी चक्रवातों को टाइफून कहते हैं। इसमें तीव्र पवनें चलती हैं और तेज वर्षा होती है। प्रश्न 8. हरिकेन का क्या अर्थ है? उत्तर–कैरेबियन सागर तथा मैक्सिको के तट पर चलने वाले भयंकर चक्रवात जिनकी गति 120 किमी प्रति घण्टा से भी अधिक होती है, हरिकेन कहलाते हैं।
प्रश्न 9. व्यापारिक पवनें क्या हैं?
उत्तर-उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से विषुवतीय निम्न दाब कटिबन्ध की ओर दोनों गोलार्द्ध में निरन्तर चलने वाली पवनों को व्यापारिक पवन कहते हैं।
प्रश्न 10. मिस्ट्रल तथा फोहन क्या हैं? इनकी स्थिति बताइए।
उत्तर-मिस्ट्रल-ये तीव्र गति की शुष्क गर्म पवनें हैं जो आल्पस पर्वतीय पर्वतीय क्षेत्रों में चलती हैं। इसके प्रभाव से यूरोप में अंगूर शीघ्र पक जाते हैं। फोहन-ये ठण्डी एवं शुष्क पवनें हैं जो शीत ऋतु में फ्रांस में भूमध्यसागरीय तट पर चलती हैं। ये पवनें तापमान को हिमांक से नीचे गिरा देती हैं।
प्रश्न 11. वायुराशि क्या है? ।
उत्तर-वायुमण्डल का वह विस्तृत भाग जिसमें तापमान एवं आर्द्रता के भौतिक लक्षण क्षैतिज दिशा में समरूप हों वायुराशि कहलाती है। एक वायुराशि कई परतों का समूह होती है जो क्षैतिज दिशा में एक-दूसरे के ऊपर फैली होती है। इन परतों में तापमान एवं आर्द्रता की दशाएँ लगभग समान होती हैं।
प्रश्न 12. दाब प्रवणता क्या है?
उत्तर-दो स्थानों के बीच वायुदाब परिवर्तन की दर को दाब प्रवणता कहते हैं। दाब प्रवणता सदैव उच्चदाब की ओर परिवर्तित होती है। इसीलिए जिस स्थान पर समदाब रेखाएँ अधिक पास-पास होती हैं वहाँ दाब-प्रवणता अधिक होती है।
प्रश्न 13. तृतीय समूह की पवनों के नाम बताइए।
उत्तर-तृतीय समूह की पवनों को स्थानीय पवन भी कहते हैं। लू, फोहन, चिनुक, मिस्ट्रल तथा हरमटन तृतीय समूह की प्रमुख पवनें हैं।
प्रश्न 14. तीन प्रकार की स्थायी पवनों के नाम लिखिए।
उत्तर-तीन प्रकार की स्थायी पवनों के नाम निम्नलिखित हैं
- व्यापारिक पवन,
- पछुआ पवन तथा
- ध्रुवीय पवन।
प्रश्न 15. वायुदाब पेटियों के नाम लिखिए।
उत्तर-वायुदाब की पेटियों के नाम निम्नलिखित हैं 1. विषुवत्रेखीय निम्नदाब पेटी, 2. उपोष्ण उच्च दाब पेटी (उत्तरी गोलार्द्ध), 3. उपोष्ण उच्च दाब पेटी (दक्षिणी गोलार्द्ध), 4. ध्रुवीय निम्न दाब पेटी (उत्तरी गोलार्द्ध), 5. ध्रुवीय निम्न दाब पेटी (दक्षिणी गोलार्द्ध), 6. ध्रुवीय वायुदाब पेटी।।
प्रश्न 16. मिलीबार क्या है तथा वायुदाब किस यन्त्र द्वारा मापा जाता है?
उत्तर-वायुदाब मापने की इकाई को मिलीबार कहते हैं। एक मिलीबार एक वर्ग सेमी पर एक ग्राम भार के बल के बराबर होता है। वायुदाब बैरोमीटर द्वारा मापा जाता है।
प्रश्न 17. कोरिऑलिस बल क्या है? इसके खोजकर्ता का नाम बताइए।
उत्तर-पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनें अपनी मूल दिशा से विक्षेपित हो जाती हैं। इसे कोरिऑलिस बल कहा जाता है। इस तथ्य की खोज सर्वप्रथम फ्रांसीसी वैज्ञानिक कोरिऑलिस द्वारा की गई थी। अत: उन्हीं के नाम पर इसका यह नाम पड़ा है।
प्रश्न 18. विषुवत वृत्त के निकट उष्णकटिबन्धीय चक्रवात क्यों नहीं बनते है।
उत्तर-विषुवत् वृत्त पर कोरिऑलिस बल शून्य होता है और पवनें समदाब रेखाओं के समकोण पर बहती है। अत: निम्न दाब क्षेत्र और अधिक गहन होने के बजाय पूरित हो जाता है। यही कारण है कि विषुवत् वृत्त के निकट उष्णकटिबन्धीय चक्रवात नहीं बनते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. चक्रवात से आप क्या समझते हैं? इनसे सम्बन्धित मौसम का वर्णन कीजिए।
उत्तर-चक्रवात उन चक्करदार अथवा अण्डाकार पवनों को कहते हैं जिनके मध्य में निम्न वायुदाब तथा बाहर की ओर क्रमशः उच्च वायुदाब पाया जाता है। जब ये निम्न वायुदाब के भंवर भयंकर झंझावातों का रूप धारण कर लेते हैं तो उन्हें चक्रवात (Cyclone) कहते हैं (चित्र 10.5)। सामान्यतया इनका व्यास 320 किमी से 480 किमी तक होता है। कुछ बड़े चक्रवातों का व्यास कई हजार किमी तक पाया गया है। पी० लेक के अनुसार, “अण्डाकार समदाब रेखा से घिरे हुए निम्न वायु-भार क्षेत्र को चक्रवात कहते हैं।”
मौसम-इन चक्रवातों के आगमन से पूर्व मौसम उष्ण एवं शान्त होने लगता है। आकाश में धीरे-धीरे श्वेत बादल छाने लगते हैं। चक्रवात के प्रवेश करते समय बादलों का रंग परिवर्तित हो जाता है। इनके आते ही ठण्डी वायु वायुभार चलने लगती है तथा आकाश में घने काले बादल छा जाते हैं एवं मिलीबार तूफान आ जाते हैं। बादलों की गर्जना तथा वायु की चमक के साथ घनघोर वर्षा होती है। जैसे-जैसे चक्रवाते आगे की ओर बढ़ता जाता है वैसे-वैसे मौसम स्वच्छ और शान्त होता जाता है।
प्रश्न 2. फैरल अथवा बाइज बैलेट के नियम को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-फैरल का नियम-पवन संचरण के इस नियम का प्रतिपादन अमेरिकी जलवायुवेत्ता फैरल ने किया था। उनके अनुसार, “पृथ्वी पर प्रत्येक स्वतन्त्र पिण्ड अथवा तरल पदार्थ, जो गतिमान है, पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर मुंडू जाता है।” इसी नियम के अनुसार ही सनातनी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल चलती हैं।
बाइज बैलेट का नियम-उन्नीसवीं शताब्दी में हॉलैण्ड के जलवायु वैज्ञानिक बाइज बैलेट ने पवन संचरण के सम्बन्ध में एक नवीन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। उन्हीं के नाम पर इसे बाइज बैलेट का नियम कहते हैं। उनके अनुसार, “यदि हम उत्तरी गोलार्द्ध में चलती हुई वायु की ओर पीठ करके खड़े हो जाएँ तो हमारे बाईं ओर निम्न वायुभार तथा दाईं ओर उच्च वायुभार होगा। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में दाईं ओर निम्न वायुभार तथा बाईं ओर उच्च वायुभार होगा।” यही कारण है कि सनातनी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में उच्चदाब के चारों ओर घड़ी की सुइयों के अनुकूल और न्यूनदाब के चारों ओर घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल चला करती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में पवनों की दिशा ठीक इसके विपरीत होती है।
प्रश्न 3. वायुदाब पेटियों का स्थायी पवनों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-पृथ्वी पर वायुदाब पेटियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वायुदाब सभी स्थानों एवं प्रदेशों में समान नहीं होता है। वायुदाब की इस असमानता को दूर करने के लिए वायु में गति उत्पन्न होती है अर्थात् वायुदाबे की भिन्नता के कारण वायुमण्डल की गैसें पवनों के रूप में बहने लगती हैं। वायु सदैव उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती है तथा उसका प्रवाह क्षेत्र बढ़ जाता है। इस प्रकार पृथ्वी तल के समानान्तर किसी दिशा में चलने वाली वायु को पवन (Wind) कहते हैं। वायुदाब पेटियों तथा स्थायी या सनातनी पवनों में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। धरातल पर वायु की गति के कारण ही वायुदाब में भी भिन्नता उत्पन्न हो जाती है। वायुदाब पेटियों के कारण ही स्थायी पवने वर्षभर उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं।
प्रश्न 4. समदाब रेखाएँ क्या होती हैं? विभिन्न वायुदाब परिस्थितियों में समदाब रेखाओं की आकृति को चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर-समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ हैं जो समुद्र तल से एकसमान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हैं। वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समान अन्तराल पर खींची गई इन्हीं समदाब रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है। मानचित्र पर प्रदर्शित करते समय विभिन्न स्थानों का जो वायुदाब मापा जाता है।
उसे समुद्र तल के स्तर पर घटाकर दिखाया जाता है। इससे दाब पर ऊँचाई का प्रभाव समाप्त हो जाता है तथा तुलनात्मक अध्ययन सरलता से किया जाता है चित्र 10.6 में वायुदाब परिस्थितियों में समदाब रेखाओं की आकृति को प्रदर्शित किया गया है। चित्र में निम्न दाब प्रणाली एक : या अधिक समदाब रेखाओं से घिरी है। चित्र 10.6 : उत्तरी गोलार्द्ध में समदाब रेखाएँ तथा पवन तन्त्र जिनके केन्द्र में निम्न वायुदाब है। उच्च दाब प्रणाली में भी एक या अधिक समदाब रेखाएँ होती हैं जिनके केन्द्र में उच्चतम वायुदाब है।
प्रश्न 5. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का प्रभाव क्षेत्र बताइए।
उत्तर-शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों से प्रभावित क्षेत्र उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनका प्रभावित क्षेत्र प्रशान्त महासागर का पश्चिमी तथा पूर्वी क्षेत्र, अटलाण्टिक महासागर का मध्य क्षेत्र एवं
भूमध्य व कैस्पियन सागर का ऊपरी क्षेत्र है। प्रशान्त महासागर में इनके द्वारा अलास्का, साइबेरिया, चीन तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया में फिलीपीन्स में शीतकाल में प्रबल चक्रवात चलते हैं तथा भारी हानि पहुँचाते हैं। मध्य अटलाण्टिक क्षेत्र में शीतकाल में यह मैक्सिको की खाड़ी के निकट स्थित रहते हैं। भूमध्य व कैस्पियन सागर क्षेत्र में शीतोष्ण चक्रवात यूरोपीय देशों तथा तुर्की, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा भारत तक अपना प्रभाव रखते हैं।
दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म व शीत दोनों ऋतुओं में चक्रवातों की उत्पत्ति होती है। यहाँ 60° अक्षांश के समीप सबसे अधिक संख्या में चक्रवात में चक्रवात उत्पन्न होते हैं। यहाँ अण्टार्कटिक महाद्वीप पर वर्षभर अति शीतल एवं स्थायी वायुराशियों का उत्पत्ति क्षेत्र होने के कारण चक्रवात बड़े प्रबल और विनाशकारी होते हैं। इनका प्रभाव दक्षिणी महाद्वीपों के दक्षिणी तटीय भागों पर अधिक पड़ता है। शीत ऋतु में इनका प्रभाव अत्यन्त तीव्र होता है।
प्रश्न 6. वाताग्र क्या है? इनके विभिन्न प्रकार बताइए।
उत्तर-जब दो विभिन्न प्रकार की वायुराशियाँ परस्पर मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। वाताग्र मध्य अक्षांशों में ही बनते हैं। तीव्र वायुदाब व तापमान प्रवणता इनकी विशेषता होती है। इनके कारण वायु ऊपर उठकर बादल बनाती है तथा वर्षा करती है। वाताग्र निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं
1. अचर वाताग्र-जब वाताग्र स्थिर हो अर्थात् ऐसे वाताग्र जब कोई भी वायु । ऊपर नहीं उठती तो उसे अचर वाताग्र कहते हैं।
2. शीत वाताग्र-जब शीतल एवं भारी वायु आक्रामक रूप में उष्ण । वायुराशियों को ऊपर धकेलती है तो इस सम्पर्क क्षेत्र को शीत वाताग्र कहते हैं।
3. उष्ण वाताग्र-जब उष्ण वायुराशियाँ आक्रामक रूप में ठण्डी वायुराशियों के ऊपर चढ़ती हैं तो इस सम्पर्क क्षेत्र , को उष्ण वाताग्र कहते हैं।
4. अधिविष्ट वाताग्र-जब एक वायुराशि पूर्णतः धरातल के ऊपर उठ जाए तो ऐसे वाताग्र को अधिविष्ट वाताग्र कहते हैं (चित्र 10.7)।
प्रश्न 7. वायुराशियों से क्या अभिप्राय है? उद्गम क्षेत्र के आधार पर इनको वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर-जब वायुराशि लम्बे समय तक किसी समांगी क्षेत्र पर रहती है तो वह उस क्षेत्र के गुणों को धारण कर लेती हैं। अतः तापमान एवं आर्द्रता सम्बन्धी इन विशिष्ट गुणों वाली यह वायु ही वायुराशि कहलाती है। दूसरे शब्दों में, वायु का वह बृहत् भाग जिसमें तापमान एवं आर्द्रता सम्बन्धी क्षैतिज भिन्नताएँ बहुत कम हों, तो उसे वायुराशि कहते हैं।
वायुराशियाँ जिस समांग क्षेत्र में बनती हैं वह वायुराशियों का उद्गम क्षेत्र कहलाता है। इन्हीं उद्गम क्षेत्रों के आधार पर वायुराशियाँ अग्रलिखित पाँच प्रकार की होती हैं
- उष्णकटिबन्धीय महासागरीय वायुराशि (mT),
- उष्णकटिबन्धीय महाद्वीपीय वायुराशि (CT),
- ध्रुवीय महासागरीय वायुराशि (mP),
- महाद्वीपीय आर्कटिक वायुराशि (CA),
- ध्रुवीय महाद्वीपीय (cP)।
प्रश्न 8. कोरिऑलिस बल क्या है? पवनों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर-पृथ्वी के घूर्णन के कारण ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने वाली पवनें पूर्व की ओर विक्षेपित हो जाती हैं। इस तथ्य की खोज सर्वप्रथम फ्रांसीसी गणितज्ञ कोरिऑलिस ने की थी; अतः उन्हीं के नाम पर यह कोरिऑलिस बल कहलाता है।
इस बल के प्रभाव से उत्तरी गोलार्द्ध की पवन अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाई ओर विक्षेपित हो जाती है। वास्तव में पवनों में यह विक्षेप पृथ्वी के घूर्णन के कारण होता है। कोरिऑलिस बल दाब प्रवणता के समकोण पर कार्य करता है। दाब प्रवणता बल समदाब रेखाओं के समकोण पर होता है। अतः दाब प्रवणता जितनी अधिक होती है पवनों का वेग उतना ही अधिक होगा और पवनों की दिशा उतनी ही अधिक विक्षेपित होगी। अतः यह बल पवनों की दिशा को प्रभावित करता
प्रश्न 9. घाटी समीर एवं पर्वत समीर में अन्तर बताइए।
उत्तर-घाटी समीर-दिन के समय सूर्याभिमुखी पर्वतों के ढाल घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। इस स्थिति में वायु घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाती है। इस स्थिति में वायु घाटी तल से पर्वतीय ढाल की ओर प्रवाहित होने लगती है। इसलिए इसे घाटी समीर या दैनिक समीर कहते हैं।
पर्वत समीर-सूर्यास्त के पश्चात् पर्वतीय ढाल पर भौमिक विकिरण ऊष्मा तेजी से होता है। इस कारण ढाल की ऊँचाई से ठण्डी और घनी हवा नीचे घाटी की ओर उतरने लगती है। यह प्रक्रिया चूँकि रात्रि में होती है अतः पवनों की इस व्यवस्था को पर्वत समीर या रात्रि समीर कहते हैं।
प्रश्न 10. वायुराशि तथा पवन या वायु में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-वायुराशि एवं वायु में अन्तर
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुमण्डलीय दाब को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए तथा पृथ्वीतल पर वायुदाब पेटियों का विवरण दीजिए।
या संसार की वायुदाब पेटियों का सचित्र विवरण दीजिए।
या पृथ्वी पर वायुदाब पेटियों की उत्पत्ति एवं वितरण की विवेचना कीजिए।
उत्तर- वायुमण्डलीय दाब को प्रभावित करने वाले कारक
वायुमण्डलीय दाब को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं
1. तापक्रम (Temperature)-तापक्रम एवं वायुदाब घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। ताप बढ़ने के साथ-साथ वायु गर्म होकर फैलती है तथा भार में हल्की होकर ऊपर उठती है। वायु के ऊपर उठने के कारण उस स्थान का वायुदाब कम हो जाता है। तापक्रम कम होने पर इसके विपरीत स्थिति होती है; अतः स्पष्ट है कि गर्म वायु हल्की तथा विरल होती है, जबकि ठण्डी वायु भारी तथा सघन होती है। यदि तापमान हिमांक बिन्दु के समीप हो तो यह वायुमण्डल की उच्च वायुभार पेटी को प्रदर्शित करता है। उच्च अक्षांशों पर अर्थात् ध्रुवीय प्रदेशों में सदैव उच्च वायुभार रहता है, क्योंकि ताप की कमी के कारण सदैव हिम जमी रहती है। इसके अतिरिक्त हिम द्वारा सूर्यातप का 85 प्रतिशत भाग परावर्तित कर दिया जाता है।
2. आर्द्रता (Humidity)-आर्द्रता का वायुदाब पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वायु में जितनी अधिक आर्द्रता होगी, वायु उतनी ही हल्की होगी। इसीलिए यदि किसी स्थान पर आर्द्रता अधिक है। तो उस स्थान पर वायुदाब में कमी आ जाएगी। शुष्क वायु भारी होती है। वर्षा ऋतु में वायु में जलवाष्प अधिक मिले रहने के कारण वायुदाब कम रहता है। अत: मौसम परिवर्तन के साथ-साथ वायु में आर्द्रता की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है तथा वायुदाब भी बदलता रहता है। सागरों के ऊपर वाली वायु में जलवाष्प अधिक मिले होने के कारण यह स्थलीय वायु की अपेक्षा हल्की होती है।
3. ऊँचाई (Altitude)-ऊँचाई में वृद्धि के साथ-साथ वायुदाब में कमी तथा ऊँचाई कम होने के साथ-साथ वायुदाब में वृद्धि होती जाती है। वायुमण्डल की सबसे निचली परत में वायुदाब अधिक पाया जाता है। इसी कारण वायुदाब समुद्र-तल पर सबसे अधिक मिलता है। धरातल के समीप वाली वायु में जलवाष्प, धूल-कण तथा विभिन्न गैसों की उपस्थिति से वायुदाब अधिक रहती है। लगभग 900 फीट की ऊँचाई पर वायुदाब 1 इंच यो 34 मिलीबार कम हो जाता है। अधिक ऊँचाई पर वायुमण्डलीय दाब में कमी आती है, क्योंकि वायु की परतें हल्की तथा विरल होती हैं। यही
कारण है कि अधिक ऊँचाई पर वायुयान एवं रॉकेट आदि आसानी से चक्कर काटते रहते हैं।
4. पृथ्वी की दैनिक गति (Rotation of the Earth)-पृथ्वी की दैनिक गति भी वायुदाब को प्रभावित करती है। इस गति के कारण आकर्षण शक्ति का जन्म होता है। यही कारण है कि विषुवत् रेखा से उठी हुई गर्म पवनें ऊपर उठती हैं तथा ठण्डी होकर पुनः मध्य अक्षांशों अर्थात् 40° से 45° अक्षांशों पर उतर जाती हैं। यही क्रम ध्रुवीय पवनों में भी देखने को मिलता है। इस प्रकार इन अक्षांशों पर वायुमण्डलीय दाब अत्यधिक बढ़ जाता है। इसके विपरीत विषुवत रेखा पर वायु का दबाव कम रहता है।
5. दैनिक परिवर्तन की गति (Rotation of Diurmal Change)-दैनिक परिवर्तन की गति द्वारा दिन एवं रात के समय वायुमण्डलीय दाब में परिवर्तन होते हैं। दिन के समय स्थलखण्डों एवं । समुद्री भागों के वायुदाब में भिन्नता पायी जाती है, जबकि रात के समय समुद्री भागों पर वायुदाब में कम परिवर्तन होता है। विषुवत्रेखीय भागों में यह परिवर्तन अधिक पाया जाता है। ध्रुवों की ओर बढ़ने पर इस परिवर्तन में कमी आती जाती है। धरातल दिन के समय ताप का अधिग्रहण करता है तथा उसी ताप को पृथ्वी रात्रि के समय उत्सर्जन करती है। इस प्रकार तापमान घटने-बढ़ने से वायुमण्डलीय दाब में भी परिवर्तन होता रहता है।
पृथ्वीतल पर वायुदाब पेटियाँ
वायुमण्डल में वायुदाब असमान रूप से वितरित है। वायुदाब का अध्ययन समदाब रेखाओं (Isobars) की सहायता से किया जाता है। वायुदाब का वितरण निम्नलिखित दो रूपों में पाया जाता है
1. उच्च वायुदाब (High Pressure) तथा
2. निम्न वायुदाब (Low Pressure)।
पृथ्वी पर उच्च एवं निम्न वायुदाब क्षेत्र एक निश्चित क्रम में वितरित मिलते हैं। यदि ग्लोब पर . स्थल-ही-स्थल हो या फिर जल-ही-जल हो तो वायुदाब पेटियाँ एक निश्चित क्रम से वितरित मिल
सकती हैं। जल एवं स्थल की विभिन्नता महाद्वीपों एवं महासागरों के तापमान में विभिन्नता उपस्थित । करती है। फलस्वरूप धरातल पर विषुवत् रेखा से लेकर ध्रुव प्रदेशों तक वायुदाब का वितरण असमान एवं अनियमित पाया जाता है। पृथ्वी पर वायुदाब की सात पेटियाँ पायी जाती हैं। उत्पत्ति के आधार पर इन पेटियों को निम्नलिखित दो समूहों में रखा जा सकता है|
(i) तापजन्य वायुदाब पेटियाँ (Thermal Pressure Belts)-इन वायुदाब पेटियों पर ताप का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। इन पेटियों में विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब तथा ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियों को सम्मिलित किया जाता है।
(ii) गतिक वायुदाब पेटियाँ (Dynamic Pressure Belts)-इन वायुदाब पेटियों पर पृथ्वी की परिभ्रमण गति का प्रभाव पड़ता है। इन पेटियों में उपोष्ण उच्च वायुदाब तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब को सम्मिलित किया जाता है।
वायुदाब पेटियाँ
1. विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब पैटी (Equatorial Low Pressure Belt)-इस पेटी का विस्तार विषुवत् रेखा के दोनों ओर 5° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य है। सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायण स्थितियों के कारण ऋतुओं के अनुसार इस पेटी का स्थानान्तरण उत्तर-दक्षिण होता रहता है। स्थल की अधिकता के कारण अधिक तापमान की भाँति इस पेटी का विस्तार भी उत्तरी गोलार्द्ध की ओर अधिक है। इस पेटी में वर्ष-भर सूर्य की, किरणें सीधी चमकती हैं तथा दिन एवं रात । बराबर होते हैं। अतः सूर्यातप की अधिकता के कारण दिन के समय धरातल अत्यधिक गर्म हो जाता है, जिससे उसके सम्पर्क में आने वाली वायु भी गर्म हो जाती है। गर्म होकर वायु हल्की होती है। जिससे उसका फैलाव होता है तथा वह ऊपर उठ जाती है। इसी कारण वायु में संवहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ताप की अधिकता के कारण यहाँ पर निम्न वायुदाब सदैव बना रहता है। वायुमण्डल में अधिक आर्द्रता निम्न वायुदाब के कारण होती हैं।
इस प्रकार यह पेटी प्रत्यक्ष रूप में ताप से सम्बन्धित है। इस पेटी के दोनों ओर स्थित उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियों से विषुवत रेखा की ओर व्यापारिक पवनें चलती हैं तथा धरातलीय वायु में गति कम होने के कारण ये शान्त तथा अनिश्चित दिशा में | प्रवाहित होती हैं। इसी कारण इसे पेटी को ‘डोलड्रम’ अथवा ‘शान्त पवन की पेटी’ भी कहते हैं। सूर्य की उत्तरायण स्थिति में यह पेटी उत्तर की ओर खिसक जाती है तथा दक्षिणायण होने पर दक्षिण की ओर खिसक आती है।
2. उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब पेटी (Sub-tropical High Pressure Belt)-विषुव॑त् रेखा के दोनों ओर दोनों गोलार्डों में 30° से 35° अक्षांशों के मध्य यह पेटी विकसित है। वर्ष में शीतकाल के दो माह छोड़कर इस पेटी में तापमान लगभग उच्च रहता है। ग्रीष्मकाल में इस पेटी में उच्चतम तापमान अंकित किया जाता है, परन्तु फिर भी वायुदाब उच्च रहता है, क्योकि इस वायुदाब पेटी की उत्पत्ति पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण होती है। उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी तथा विषुवत्रेखीय निम्न वायुदाब पेटी के ऊपर से आने वाली वायुराशियाँ इसी पेटी में नीचे उतरती हैं। धरातल पर नीचे उतरने के कारण तथा दबाव के फलस्वरूप इन वायुराशियों के तापमान में वृद्धि । हो जाती है। इस प्रकार इस पेटी को उच्च वायुदाब ताप से सम्बन्धित न होकर पृथ्वी की परिभ्रमण गति तथा वायु के अवतलन से सम्बन्धित है। इसीलिए इस पेटी में उच्च वायुदाब तथा स्वच्छ आकाश मिलता है।
पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ध्रुवों के समीप की वायु कर्क तथा मकर रेखाओं तक प्रवाहित होकर एकत्रित हो जाती है, जिससे इस पेटी के वायुदाब में वृद्धि हो जाती है। वायुदाब की इस पेटी को ‘अश्व अक्षांश’ (Horse Latitudes) के नाम से पुकारते हैं। इन वायुदाब पेटियों के मध्य वायु शान्त रहती है, जिससे इन अक्षांशों में वायुमण्डल भी शान्त हो जाता है। धरातल पर वायु बहुत ही मन्द-मन्द प्रवाहित होती है जो अनियमित होती है।
3. उपधृवीय निम्न वायुदाब पेटी (Sub-polar Low Pressure Belt)-उत्तरी एवं दक्षिणी गोलाद्ध में इस पेटी का विस्तार 60° से 65° अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। इस पेटी में निम्न वायुदाब ‘ मिलता है। इनका विस्तार उत्तर तथा दक्षिण में क्रमशः आर्कटिक तथा अण्टार्कटिक वृत्तों के समीप है। उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी में अनेक केन्द्र पाये जाते हैं, जिसके निम्नलिखित कारण हैं—
(i) इन पेटियों के दोनों ओर उच्च वायुदाब पेटियाँ स्थित हैं। ये पेटियाँ ध्रुवीय भागों में अधिक शीत के कारण तथा मध्य अक्षांशों में पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण विकसित हुई हैं।
(ii) इन पेटियों के सागरतटीय भागों में गैर्म जलधाराएँ प्रवाहित होती हैं जिनसे तापक्रम में अचानक वृद्धि हो जाती है तथा वायुदाब निम्न हो जाता है।
(iii) पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण उपध्रुवीय भागों में भंवरें उत्पन्न हो जाती हैं जिससे उपध्रुवीय भागों के ऊपर वायु की कमी के कारण न्यून वायुदाब उत्पन्न हो जाता है, परन्तु इस भाग में अधिक शीत पड़ने के कारण तापमान की अपेक्षा पृथ्वी की गति को प्रभाव बहुत ही कम रहता है। तापमान की कमी के कारण ध्रुवों पर उच्च वायुदाब की उत्पत्ति होती है तथा बाहर की ओर वायुदाब निम्न रहता है।
इस प्रकार इस वायुदाब पेटी का निर्माण पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण हुआ है। तापमान का बहुत ही कम प्रभाव इस निम्न वायुदाब पेटी पर पड़ता है।
4. ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी (Polar High Pressure Belt)-उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवीय वृत्तों के समीप उच्च वायुदाब पेटी का विस्तार मिलता है। सम्पूर्ण वर्ष तापमान निम्न रहने के कारण यह प्रदेश बर्फाच्छादित रहता है। इसी कारण धरातलीय वायु भारी तथा शीतल होती है। यद्यपि इस प्रदेश में पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण वायु की धाराएँ पतली हो जाती हैं, परन्तु अधिक शीत एवं भारीपन के कारण वर्ष-भर उच्च वायुदाब बना रहता है। इस उच्च वायुदाब की उत्पत्ति में ताप को अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।
ध्रुवीय प्रदेशों के वायुदाब में प्रायः समता पायी जाती है, क्योंकि वर्ष-भर ये प्रदेश हिम से ढके रहते हैं। उच्च वायुदाब वाले इन ध्रुवीय प्रदेशों से विषुवत रेखा की ओर शीत वाताग्र चलते हैं। इन वायुराशियों को। उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी-पूर्वी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पूर्वी के नाम से पुकारा जाता है। इसका प्रमुख कारण पृथ्वी की आन्तरिक गतियाँ हैं, जो इन्हें मोड़ने में सहायता करती हैं। सामान्यतया इन। वायु-राशियों को ध्रुवीय पूर्वी पवनों के नाम से पुकारा जाता है। अत: इन प्रदेशों में सदैव उच्च वायुदाब बना रहता है।
प्रश्न 2. जनवरी एवं जुलाई के आधार पर वायुदाब के क्षैतिज विश्व वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर-वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समदाब रेखाओं की सहायता से किया जाता है। समदाब रेख़ाएँ समुद्रतल से समान वायुदाब को प्रदर्शित करती हैं।
वायुदाब का विश्व वितरण
जनवरी महीने का समुद्र तल से वायुदाब का विश्व वितरण चित्र 10.9 में दिखाया गया है जिससे स्पष्ट है कि विषुवत् वृत्त के निकट वायुदाब अफ्रीका महाद्वीप के मध्य में 1020 मिलीबार है, जबकि पूर्वी द्वीप समूह एवं दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के उत्तर तथा पूर्वी व पश्चिमी भाग में 1010 मिलीबार की समदाब. रेखा आवृत है। जैसे-जैसे भूमध्यरेखा से उत्तरी ध्रुवों की ओर जाते हैं, वायुदाब घटकर. 1005 मिलीबार
तक पहुँच जाता है, वायुदाब घटने का क्रम उत्तरी ध्रुवों की अपेक्षा दक्षिणी ध्रुवों पर अधिक है। यहाँ । 995 मिलीबार की समदाब रेखा दक्षिणी अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया के दक्षिण में स्थत है।
चित्र 10.10 में जुलाई महीने का समुद्रतल से वायुदाब का विश्व वितरण दर्शाया गया है। मानचित्र से स्पष्ट है कि जुलाई माह में विषुवत् वृत्ते पर निम्न वायुदाब की समदाब रेखाओं का मान अपेक्षाकृत जनवरी से बहुत कम तो नहीं होता, किन्तु यह कुछ उत्तर-दक्षिण अवश्य खिसक जाता है।
अतः सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि भूमध्यरेखा पर वायुदाब कम होता है जिसे भूमध्यरेखीय न्यून अवदाब कहते हैं। 30° उत्तर एवं दक्षिण अक्षांशों पर उच्चदाब क्षेत्र पाए जाते हैं जिन्हें उपोष्ण उच्च दाब क्षेत्र कहा जाता है। पुनः ध्रुवों की ओर 60° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों पर निम्न दाब पेटियाँ हैं जिन्हें अधोध्रुवीय निम्नदाब पेटियाँ कहते हैं। ध्रुवों के निकट वायुदाब अधिक होता है क्योंकि यहाँ तापमान कम रहता है। वायुदाब की ये पेटियाँ स्थायी नहीं होतीं बल्कि इनमें ऋतुवत् परिवर्तन होता रहता है। अर्थात् उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु में ये दक्षिण की ओर तथा ग्रीष्म ऋतु में उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। यही कारण है कि जनवरी एवं जुलाई की समदाब रेखाओं की स्थिति में अन्तर पाया जाता है।
प्रश्न 3. पवनों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए। पृथ्वी की नियतवाही अथवा स्थायी पवनों का वर्गीकरण कीजिए तथा उनकी उत्पत्ति के कारणों को भी समझाइए।
या पृथ्वी की सनातनी हवाओं की उत्पत्ति एवं उनके वितरण का वर्णन कीजिए।
या ‘अश्व अक्षांश से आप क्या समझते हैं ?
या व्यापारिक हवाओं की दिशा एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
या पृथ्वी की भूमण्डलीय पवनों का वर्णन कीजिए एवं उनकी उत्पत्ति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-वायुदाब में भिन्नता होने पर उच्च वायुदाब से कम निम्न वायुदाब की ओर वायु का क्षैतिज प्रवाह होता है, जिसे पवन कहते हैं।
पवनों का वर्गीकरण
भूमण्डल में पवने नियतवाही तथा अनियतवाही क्रम से चलती हैं, तदनुसार इन्हें दो वर्गों में रखा जाता है-
(I) स्थायी या नियतवाही या सनातनी या ग्रहीय पवनें (Permanent or Planetary Winds) तथा
(II) अनिश्चित अथवा अस्थायी पवने (Seasonal Winds)।
स्थायी या नियतवाही या सनातनी या ग्रहीय पवनें
ग्लोब या भूमण्डल पर उच्च वायुदाब की पेटियों से निम्न वायुदाब की ओर जो पवनें चलने लगती हैं, उन्हें नियतवाही पवनें कहते हैं। ये पवनें वर्ष भर एक निश्चित दिशा एवं क्रम से प्रवाहित होती हैं। इन पवनों में अस्थायी मौसमी स्थानान्तरण होता रहता है। इनकी उत्पत्ति तापमान तथा पृथ्वी के घूर्णन एवं वायुदाब से होती है, जिसके फलस्वरूप उच्च वायुदाब सदैव निम्न वायुदाब की ओर आकर्षित होता है।
1. विषुवतरेखीय पछुवा हवाएँ तथा डोलड्रम की पेटी (Equatorial westerly and Doldrum)-विषुवत् रेखा के 5° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य निम्न वायुदाब पेटी पायी जाती है। यहाँ पर हवाएँ शान्त रहती हैं। इसीलिए इसे शान्त पेटी या डोलड्रम कहते हैं। सूर्य की उत्तरायण स्थिति में यह उत्तर की ओर अधिक खिसक जाती है तथा दक्षिणायण होने पर पुन: अपनी प्रारम्भिक अवस्था में आ जाती है। विषुवत् रेखा के सहारे इस डोलड्रम का विस्तार निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में पाया जाता है
(i) हिन्द-प्रशान्त डोलड्रम-इसका विस्तार विषुवत्रेखीय प्रदेश के एक-तिहाई भाग पर है। “यह अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी भाग से 180° देशान्तर तक विस्तृत है।
(ii) विषुवतरेखीय मध्य अफ्रीका के पश्चिमी भाग-डोलड्रम की यह पेटी अफ्रीका के पश्चिमी भाग में खाड़ी से लेकर अन्ध महासागर में कनारी द्वीप के उत्तरी भाग तक विस्तृत है।
(iii) विषुवतरेखीय मध्य अमेरिका के पश्चिमी भाग-इस पेटी में दोपहर बाद संवहन धाराएँ उत्पन्न होती हैं तथा ठण्डी होकर गरज के साथ वर्षा करती हैं। यह डोलड्रम पश्चिम | से पूर्व दिशा की ओर धरातल पर चलता है।
2. व्यापारिक पवनें या सन्मार्गी पवनें (Trade Winds)-दोनों गोलार्डो में उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब क्षेत्र से विषुवत्रेखीय निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर चलने वाली पवनों को व्यापारिक पवनों के नाम से पुकारा जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है। व्यापारिक पवनें 5° से 35° अक्षांशों के मध्य चलती हैं। ये स्थायी एवं सतत पवनें हैं तथा सदैव एक निश्चित दिशा एवं क्रम,से प्रवाहित होती हैं। इसलिए इन्हें ‘सन्मार्गी पवनें’ भी कहा जाता है। प्राचीन काल में नौकाएँ एवं जलयान इन्हीं पवनों के माध्यम से आगे बढ़ते थे। यदि इन पवनों का प्रवाह रुक जाता था तो व्यापार में बाधा पड़ती थी। यही कारण है कि इन पवनों का नाम व्यापारिक पवनें रखा गया था। व्यापारिक पवनों की स्थिति स्थल भागों की अपेक्षा जल भागों में अधिक शक्तिशाली होती है। साधारणतया पवनों की गति 16 से 24 किमी प्रति घण्टा होती है।
3. अश्व अक्षांश (Horse Latitudes)-दोनों गोलार्डों में 30° से 35° अक्षांशों के मध्य इनका विस्तार है। यह पेटी उपोष्ण उच्च वायुदाब की है। यह पेटी पछुवा पवनों एवं व्यापारिक पवनों के मध्य विभाजन का कार्य करती है। विषुवत् रेखा के समीप गर्म हुई वायु व्यापारिक पवनों के विपरीत दिशा में प्रवाहित होती हुई शीतले होकर 30° से 35° अक्षांशों के समीप नीचे उतरती है। अत: इन पवनों के नीचे उतरने के कारण यहाँ उच्च वायुदाब उत्पन्न हो जाता है। इसी कारण यहाँ उपोष्ण कटिबन्धीय प्रति-चक्रवात उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे वायुमण्डल में स्थिरता आ जाती है। इस प्रकार वायु-प्रवाह शान्त हो जाता है जिससे मौसम भी शुष्क एवं मेघरहित हो जाता है।
प्राचीन काल में स्पेन के व्यापारी अपने जलयानों पर घोड़े (Anchor) ले जाते थे, क्योंकि इनके संचालन का आधार पछुवा पवनें होती थीं, परन्तु अत्यधिक वायुदाब के कारण जलयान डूबना प्रारम्भ कर देते थे। अतः नाविक जलयानों को हल्का करने के लिए कुछ घोड़े सागर में फेंक देते थे जिससे इन्हें अश्व-अक्षांशों के नाम से पुकारा जाने लगा।
4. पछुवा पवनें (Westerly Winds)-उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी से उपध्रुवीय निम्न वायुभार पेटियों (60° से 65° अक्षांश) के मध्य चलने वाली स्थायी पवनों को ‘पछुवा पवनों के नाम से पुकारते हैं। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व की ओर होती है। ये पवनें शीत एवं शीतोष्ण कटिबन्धों में चलती हैं। शीत-प्रधान ध्रुवीय पवनों के उष्णार्द्र पछुवा पवनों के सम्पर्क में आने से वाताग्र (Front) उत्पन्न हो जाता है। इन्हें शीतोष्ण वाताग्र के नाम से जाना जाता है। चक्रवातों से इनकी दिशा में परिवर्तन हो जाता है तथा मौसम में भी परिवर्तन आ जाता है। आकाश बादलों से युक्त हो जाता है तथा वर्षा होती रहती है। उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुवा पवनों का प्रवाह तीव्र होता है, क्योंकि यहाँ पर जल की अधिकता है। यहाँ पर पछुवा पवनें गर्जन-तर्जन के साथ चलती हैं जिससे समुद्री यात्रियों ने इन्हें ‘गरजने वाला चालीसा’, ‘क्रुद्ध पचासा’ तथा ‘चीखती साठा’ आदि नामों से पुकारा है।
5. ध्रुवीय पवनें (Polar Winds)-उत्तरी ध्रुवीय प्रदेशों में 60° से 65° अक्षांशों के मध्य पूर्वी पवनें चलती हैं। ग्रीष्मकाल में इन अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्डो में निम्न वायुदाब मिलता है, परन्तु शीतकाल में यह समाप्त हो जाता है। ध्रुवों पर वर्ष-भर उच्च वायुदाब बना रहता है। अतः ध्रुवीय उच्च वायुदाब से उप-ध्रुवीय निम्न वायुदाब की ओर चलने वाली पवनों को ‘ध्रुवीय पवनें’ कहते हैं। इनकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्व तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व होती है। सूर्य की उत्तरायण स्थिति में इनके प्रवाह क्षेत्र उत्तर की ओर खिसक जाते हैं तथा दक्षिणायण में स्थिति इसके विपरीत होती है। ध्रुवीय पवनें 70° से 80° अक्षांशों के मध्य ही चल पाती हैं, क्योंकि इससे । आगे उच्च वायुदाब के क्षेत्र सदैव बने रहते हैं। ध्रुवों की ओर से चलने के कारण ये पवनें-अधिक ठण्डी एवं प्रचण्ड होती हैं। जब इनका सम्पर्क शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों की पवनों से होता है तो भयंकर चक्रवातों एवं प्रति-चक्रवातों की उत्पत्ति होती है।
नियतवाही या स्थायी या सनातनी हवाओं की उत्पत्ति
सनातनी हवाओं की उत्पत्ति के नियम को ग्रहीय वायु सम्बन्धी नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार हवाएँ सदैव उच्च वायुदाब क्षेत्रों से निम्न वायुदाब क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होती हैं। तापमान की भिन्नता इन्हें गति प्रदान करती है, क्योंकि वायु गर्म होकर हल्की होने से ऊपर उठती है तथा उसके रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए दूसरे स्थानों से भारी वायु पवनं के रूप में दौड़ने लगती है। इन हवाओं की गति एवं दिशा पर पृथ्वी की घूर्णन गति का प्रभाव पड़ता है। पवन के निश्चित दिशा की ओर बहने के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
1. फैरल का नियम (Ferrel’s Law)-पवन-संचरण के इस नियम का प्रतिपादन अमेरिकी विद्वान् | फैरल ने किया था। फैरल के अनुसार, “पृथ्वी पर प्रत्येक स्वतन्त्र पिण्ड अथवा तरल पदार्थ, जो गतिमान है, पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बायीं ओर मुड़ जाता है। इसी नियम के अनुसार ही सनातनी हवाएँ उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के अनुकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के प्रतिकूल प्रवाहित होती हैं।
2. बाइज बैलट का नियम (Buys Ballot’s Law)-उन्नीसवीं शताब्दी में हॉलैण्ड के वैज्ञानिक बाइज बैलट ने पवन-संचरण के सम्बन्ध में एक नवीन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। उन्हीं के नाम पर इसे बाइज बैलट का नियम कहते हैं। बाइज बैलट के अनुसार, “यदि हम उत्तरी गोलार्द्ध में चलती हुई हवा की ओर पीठ करके खड़े हों तो हमारे बायीं ओर निम्न वायुभार तथा दायीं ओर उच्च वायुभार होगा। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में दायीं ओर निम्न वायुभार तथा बायीं ओर उच्च वायुभार होगा। यही कारण है कि सनातनी हवाएँ उत्तरी गोलार्द्ध में उच्च दाब के चारों ओर घड़ी की सूइयों के अनुकूल और न्यून दाब के चारों ओर घड़ी की सूइयों के प्रतिकूल चला करती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में हवाओं की दिशा ठीक इसके विपरीत होती है।
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