UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे)

UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1.
श्रमिक किसे कहते हैं?
उत्तर
सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देने वाले सभी क्रियाकलापों को हम आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं। वे सभी व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाओं में संलग्न होते हैं, श्रमिक कहलाते हैं।

प्रश्न 2.
श्रमिक-जनसंख्या अनुपात की परिभाषा दें।
उत्तर
श्रमिक जनसंख्या अनुपात एक सूचक है जिसका प्रयोग देश में रोजगार की स्थिति के विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। यह अनुपात यह जानने में सहायक है कि जनसंख्या का कितना अनुपात वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सक्रिय योगदान दे रहा है।

 

प्रश्न 3.
क्या ये भी श्रमिक हैं: एक भिखारी, एक चोर, एक तस्कर, एक जुआरी? क्यों?
उत्तर
एक भिखारी, एक चोर, एक तस्कर और एक जुआरी श्रमिक नहीं हैं क्योंकि ये आर्थिक क्रियाओं में कोई योगदान नहीं देते हैं।

प्रश्न 4.
इस समूह में कौन असंगत प्रतीत होता है—
(क) नाई की दुकान का मालिक,
(ख) एक मोची,
(ग) मदर डेयरी का कोषपाल,
(घ) ट्यूशन पढ़ाने वाला शिक्षक,
(ङ) परिवहन कम्पनी का संचालक,
(च) निर्माण मजदूर।
उत्तर
(घ) ट्यूशन पढ़ाने वाला शिक्षक इन सब में असंगत है क्योंकि यह स्व: नियोजित की श्रेणी में आता है जबकि शेष किराये के श्रमिक की श्रेणी में आते हैं।

 

प्रश्न 5.
नए उभरते रोजगार मुख्यतः …………….क्षेत्रक में ही मिल रहे हैं। (सेवा/विनिर्माण)
उत्तर
सेवा।

प्रश्न 6.
चार व्यक्तियों को मजदूरी पर काम देने वाले प्रतिष्ठान को…………..क्षेत्रक कहा जाता है। (औपचारिक/अनौपचारिक)
उत्तर
अनौपचारिक।

प्रश्न 7.
राज स्कूल जाता है। पर जब वह स्कूल में नहीं होता, तो प्रायः अपने खेत में काम करता| दिखाई देता है। क्या आप उसे श्रमिक मानेंगे? क्यों?
उत्तर
वे सभी व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाकलाप में भाग लेते हैं, श्रमिक कहलाते हैं। खेत में काम करना भी एक आर्थिक क्रियाकलाप है क्योंकि इससे वस्तुओं के प्रवाह में बढ़ोतरी होती है। अत: राज को एक श्रमिक माना जा सकता है।

प्रश्न 8.
शहरी महिलाओं की अपेक्षा ग्रामीण महिलाएँ अधिक काम करती दिखाई देती हैं। क्यों?
उत्तर
भारत में शहरी क्षेत्रों में केवल 14 प्रतिशत महिलाएँ ही किसी आर्थिक कार्य में व्यस्त हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 30 प्रतिशत महिलाएँ आर्थिक कार्यों में लगी हुई हैं। शहरी क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिशत इसलिए कम है क्योंक वहाँ पर पुरुष पर्याप्त रूप से उच्च आय अर्जित करने में सफल रहते हैं और वे परिवार की महिलाओं को घर से बाहर रोजगार प्राप्त करने को प्राय: निरुत्साहित करते हैं। शहरी महिलाएँ घरेलू कामकाज में ही व्यस्त रहती हैं और महिलाओं द्वारा परिवार के लिए किए गए अनेक कार्यों को आर्थिक या उत्पादन कार्य ही नहीं माना जाता।

 

प्रश्न 9.
मीना एक गृहिणी है। घर के कामों के साथ-साथ वह अपने पति की कपड़े की दुकान के काम में भी हाथ बँटाती है। क्या उसे एक श्रमिक माना जा सकता है? क्यों?
उत्तर
हाँ, मीना को एक श्रमिक माना जा सकता है क्योंकि वह घरेलू कामकाज के साथ-साथ पति की पकड़े की दुकान में भी हाथ बंटाती है जोकि एक आर्थिक क्रियाकलाप है।

प्रश्न 10.
यहाँ किसे असंगत माना जाएगा
(क) किसी अन्य के अधीन रिक्शा चलाने वाला,
(ख) राजमिस्त्री,
(ग) किसी मेकेनिक की दुकान पर काम करने वाला श्रमिक,
(घ) जूते पॉलिश करने वाला लड़का।
उत्तर
यद्यपि उपर्युक्त सभी श्रमिक हैं, क्योंकि ये सभी आर्थिक क्रियाकलाप में संलग्न हैं, फिर भी चारों लोगों में (घ) जूते पॉलिश करने वाला लड़का असंगत है क्योंकि प्रथम तीनों किराए के श्रमिक हैं जबकि जूते पॉलिश करने वाला स्वनियोजित है।

 

प्रश्न 11.
निम्न सारणी में 1972-73 ई० में भारत में श्रमबल का वितरण दिखा गया है। इसे ध्यान से पढ़कर श्रमबल के वितरण के स्वरूप के कारण बताइए। ध्यान रहे कि ये आँकड़े 30 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 1
उत्तर
उपर्युक्त तालिका में दिए गए तथ्यों के आधार पर निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं

  1. भारत में कुल श्रमबल (19.4 + 3.9 = 23.3 करोड़) या 233 मिलियन था, जिसमें 194 मिलियन ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत थे, शेष शहरी क्षेत्रों में कार्यरत थे।
  2. कुल श्रमबल में 157 मिलियन पुरुष (68%) तथा 76 मिलियन (32%) महिलाएँ थीं।
  3. 125 मिलियन पुरुष (64%) ग्रामीण क्षेत्रों में काम करते थे।
  4. कुल रोजगार में पुरुष श्रमिकों का प्रतिशत 82 तथा महिलाओं का प्रतिशत 9.18 था।
  5. कुल महिला श्रमिकों में ग्रामीण महिला श्रमिकों का प्रतिशत 91 तथा शहरी क्षेत्रों में महिला श्रमिकों का प्रतिशत 9 था।

प्रश्न 12.
इस सारणी में 1999-2000 में भारत की जनसंख्या और श्रमिक जनानुपात दिखाया गया है। क्या आप भारत के (शहरी और सकल) श्रमबल का अनुमान लगा सकते हैं?
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India 2
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India 3

 

ग्रामीण क्षेत्र में कुल कार्यबल = 30.12
करोड़ शहरी क्षेत्र में कुल कार्यबल = 961 करोड़
|
कुल कार्यबल =39.66 करोड़

प्रश्न 13.
शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से अधिक क्यों होते हैं?
उत्तर
भारत में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च आय के अवसर सीमित होते हैं। श्रम बाजार में भागीदारी हेतु भी संसाधनों की उनके पास कमी होती है। उनमें से अधिकांश व्यक्ति स्कूल, महाविद्यालय या किसी प्रशिक्षण संस्थान में नहीं जा पाते। यदि कुछ जाते भी हैं तो वे बीच में ही छोड़कर श्रम शक्ति में सम्मिलित हो जाते हैं। इसके विपरीत शहरी लोगों के पास शिक्षा और प्रशिक्षण पाने हेतु अधिक अवसृर होते हैं। शहरी जनसमुदाय को रोजगार के भी विविधतापूर्ण अवसर उपलब्ध हो जाते हैं। वे अपनी शिक्षा और योग्यता के अनुरूप रोजगार की तलाश में रहते हैं किन्तु ग्रामीण क्षेत्र के लोग घर पर नहीं बैठ सकते, क्योंकि उनकी आर्थिक दशा उन्हें ऐसा नहीं करते देती। इस कारण गाँवों की तुलना में शहरों में नियमित वेतनभोगी श्रमिक अधिक पाए जाते हैं।

प्रश्न 14.
नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों में महिलाएँ कम क्यों हैं?
उत्तर
जब किसी श्रमिक को कोई व्यक्ति या उद्यम नियमित रूप से काम पर रख उसे मजदूरी देता है, तो वह श्रमिक नियमित वेतनभोगी कर्मचारी कहलाता है। भारत में नियमित वेतनभोगी रोजगारधारियों में पुरुष अधिक अनुपात में लगे हुए हैं। देश के 18 प्रतिशत पुरुष नियमित वेतनभोगी हैं और इस वर्ग में केवल 6 प्रतिशत ही महिलाएँ हैं। महिलाओं की इस कम सहभागिता का एक कारण कौशल स्तर में अन्तर हो सकता है। नियमित वेतनभागी वाले कार्यों में अपेक्षाकृत उच्च कौशल और शिक्षा के उच्च स्तर की आवश्यकता होती है। सम्भवत: इस अभाव के कारण ही अधिक अनुपात में महिलाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहे हैं।

प्रश्न 15.
भारत में श्रमबल के क्षेत्रकवार वितरण की हाल की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करें।
उत्तर
देश के आर्थिक विकास के क्रम में श्रमबल का प्रवाह कृषि एवं सम्बन्धित क्रयाकलापों से उद्योग एवं सेवा क्षेत्रक की ओर बढ़ा है। आर्थिक संवृद्धि की प्रक्रिया में मजदूर ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों को प्रवसन करते हैं। विकास के अन्तर्गत सेवा क्षेत्रक का अधिक विकास होने पर उद्योग क्षेत्र का रोजगार के मामले में हिस्सा घटने लगता है। भारत में अधिकांश श्रमिकों के रोजगार का प्रमुख स्रोत प्राथमिक क्षेत्रक है। द्वितीयक क्षेत्रक केवल 16 प्रतिशत श्रमबल को ही नियोजित कर रहा है। लगभग 24 प्रतिशत श्रमिक सेवा क्षेत्रक में लगे हुए हैं। ग्रामीण भारत में कृषि, खनन एवं उत्खनन की क्रियाओं में तीन-चौथाई प्रतिशत ग्रामीण रोजगार पाते हैं जबकि विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रक में रोजगार पाने वाले ग्रामीणों का अनुपात क्रमशः 10 एवं 13 प्रतिशत है। 60 प्रतिशत शहरी श्रमिक सेवा क्षेत्रक में हैं। लगभग 30 प्रतिशत शहरी श्रमिक द्वितीयक क्षेत्रक में नियोजित हैं।

प्रश्न 16.
1970 से अब तक विभिन्न उद्योगों में श्रमबल के वितरण में शायद ही कोई परिवर्तन आया 
है। टिप्पणी करें।
उत्तर
भारत एक कृषिप्रधान देश है। यहाँ की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में बसा है एवं कृषि और उससे सम्बन्धित क्रियाओं पर निर्भर है। भारत में विकास योजनाओं का ध्येय कृषि पर निर्भर जनसंख्या के अनुपात को कम करना रहा है। लेकिन कृषि श्रम का गैर-कृषि श्रम के रूप में खिसकाव अपर्याप्त रहा है। वर्ष 1972-73 में प्राथमिक क्षेत्रक में 74 प्रतिशत श्रमबल लगा था, वहीं 1999-2000 ई० में यह अनुपात घटकर 60 प्रतिशत रह गया। द्वितीयक तथा सेवा क्षेत्रक में यह प्रतिशत क्रमशः 11 से बढ़कर 16 तथा 15 से बढ़कर 24 प्रतिशत हो गया है। परन्तु राष्ट्र की विशालता एवं भौतिक प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में उक्त बदलाव नगण्य दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 17.
क्या आपको लगता है पिछले 50 वर्षों में भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है? कैसे? उत्तर
सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P.) एक वर्ष की अवधि में देश में हुए सभी वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन का बाजार मूल्य होता है। 1960-2000 ई० की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद में सकारात्मक वृद्धि हुई है और यह संवृद्धि दर रोजगार वृद्धि दर से अधिक रही है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में कुछ उतार-चढ़ाव भी आते रहे हैं परन्तु इस अवधि में रोजगार की वृद्धि लगभग 2 प्रतिशत बनी रही। परन्तु 1990 ई० के अन्तिम वर्षों में रोजगार वृद्धि दर कम होकर उसी स्तर पर पहुँच गई जहाँ योजनाकाल के प्रथम चरणों में थी। इस अवधि में सकल घरेलू उत्पाद एवं रोजगार बढ़ोतरी की दरों में अन्तर रहा है। इस प्रकार हम भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन के बिना ही अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने में सक्षम रहे हैं।

प्रश्न 18.
क्या औपचारिक क्षेत्रक में ही रोजगार का सृजन आवश्यक है? अनौपचारिक में नहीं? कारण बसाइए।
उत्तर
सार्वजनिक क्षेत्रक की सभी इकाइयाँ एवं 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले निजी क्षेत्रक की इकाइयाँ औपचारिक क्षेत्रक माने जाते हैं। इन इकाइयों में काम करने वाले को औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी इकाइयाँ और उनमें कार्य कर रहे श्रमिक, अनौपचारिक श्रमिक कहलाते हैं।

औपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के लाभ मिलते हैं। इनकी आमदनी भी अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों से अधिक होती है। इसके विपरीत अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों की आय नियमित नहीं होती है तथा उनके काम में भी निश्चितता एवं नियमितता नहीं होती। किन्तु दोनों ही क्षेत्रक रोजगार देते हैं, अत: दोनों को ही विकास आवश्यक है। साथ ही अनौपचारिक क्षेत्र को नियमित एवं नियन्त्रित करना भी आवश्यक है।

प्रश्न 19.
विक्टर को दिन में केवल दो घण्टे काम मिल पाता है। बाकी सारे समय वह काम की तलाश में रहता है। क्या वह बेरोजगार है? क्यों? विक्टर जैसे लोग क्या काम करते होंगे?
उत्तर
विक्टर दिन में दो घण्टे काम करता है अर्थात् वह आर्थिक क्रियाकलाप में बहुत कम समय के लिए भाग लेता है। आर्थिक क्रियाकलाप में भाग लेने के कारण उसे श्रमिक कहा जा सकता है। लेकिन विक्टर को पूर्ण रोजगार प्राप्त नहीं है। उसका रोजगार अनियमित है। दूसरे शब्दों में वह अर्द्ध-बेरोजगार है। ऐसे लोग सकल घरेलू उत्पाद में तनिक-सा ही योगदान कर पाते हैं। अत: उनको नियमित रोजगार दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 20.
क्या आप गाँव में रह रहे हैं? यदि आपको ग्राम-पंचायत को सलाह देने को कहा जाए तो आप | गाँव की उन्नति के लिए किस प्रकार के क्रियाकलाप का सुझाव देंगे, जिससे रोजगार सृजन भी हो।
उत्तर
ग्रामवासी होन के नाते मैं ग्राम पंचायत को गाँव की उन्नति के लिए निम्नलिखित सुझाव दूंगा

  1. ग्राम पंचायत आधारित संरचना के विकास पर समुचित ध्यान दे। नालियाँ, पुलियाएँ व सड़क : बनवाएँ। इससे रोजगार के नए-नए अवसर सृजित होंगे।
  2. वह गाँव में कुटीर उद्योगों के विकास पर बल दे। इससे खाली समय में लोगों को रोजगार मिलेगा।
  3. गाँवों में सार्वजनिक निर्माण कार्यों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार वित्तीय सहायता उपलब्ध | कराए।
  4. ग्रामीणों के लिए रोजगार सुनिश्चित किया जाए।
  5. बेसहारा बुजुर्गों, विधवा महिलाओं और अनाथ बच्चों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराए।
  6. ग्राम पंचायत देखे कि गाँव का प्रत्येक बच्चा पढ़ने के लिए पाठशाला जाता है।
  7. ग्राम पंचायत गाँव में बच्चों के लिए स्वस्थ मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराए।

प्रश्न 21.
अनियत दिहाड़ी मजदूर कौन होते हैं?
उत्तर
जब एक श्रमिक को जितने समय काम करना चाहिए उससे कम समय काम मिलता है अथवा वर्ष में कुछ महीनों के लिए बेकार रहना पड़ता है तो उसे अनियत दिहाड़ी मजदूर कहा जाता है। अनियत मजदूर को अपने काम के बदले उचित दाम व सामाजिक सुरक्षा के लाभ नहीं मिलते हैं। निर्माण मजदूर अनियत मजदूरी वाले श्रमिक कहलाते हैं।

प्रश्न 22.
आपको यह कैसे पता चलेगा कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है?
उत्तर
भारत में श्रमबल को औपचारिक तथा अनौपचारिक दो वर्गों में विभाजित किया गया है। सभी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों तथा 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले निजी क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिकों को औपचारिक श्रमिक हो जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी उद्यम और उनमें काम कर रहे श्रमिकों को अनौपचारिक श्रमिक हो जाएगा। किसान, मोची, छोटे दुकानदार अनौपचारिक क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिक हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गाँवों की तुलना में शहरों में नियमित वेतनभोगी श्रमिक पाए जाते हैं
(क) कम
(ख) अधिक
(ग) नगण्य ।
(घ) लगभग बराबर
उत्तर
(ख) अधिक

प्रश्न 2.
जब श्रमिक की उत्पादकता शून्य अथवा ऋणात्मक होती है, उसे कहते हैं
(क) मौसमी बेरोजगारी ।
(ख) स्थायी बेरोजगारी ।
(ग) छिपी हुई बेरोजगारी
(घ) शिक्षित बेरोजगारी
उत्तर
(ग) छिपी हुई बेरोजगारी

प्रश्न 3.
बेरोजगारी का सामाजिक दुष्परिणाम है१
(क) मानव संसाधन का निष्क्रिय पड़ा रहना
(ख) उत्पादन की हानि होना ।
(ग) उत्पादता का स्तर निम्न रहना
(घ) सामाजिक अशान्ति बढ़ना
उत्तर
(घ) सामाजिक अशान्ति बढ़ना

प्रश्न 4.
भारत का मुख्य व्यवसाय क्या है?
(क) कृषि
(ख) वाणिज्य
(ग) खनन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(क) कृषि

प्रश्न 5.
भारत में कौन-सी बेरोजगारी की स्थिति बड़ी करुण व दयनीय है?
(क) शिक्षित
(ख) मौसमी
(ग) औद्योगिक
(घ) अदृश्य
उत्तर
(क) शिक्षित

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सकल घरेलू उत्पाद क्या है?
उत्तर
किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य इसका सकल घरेलू उत्पाद’ कहलाता है।

प्रश्न 2.
आर्थिक क्रियाएँ क्या हैं?
उत्तर
सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देने वाले सभी क्रियाकलापों को आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं।

प्रश्न 3.
श्रमिक कौन हैं?
उत्तर
वे सभी व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाओं में संलग्न होते हैं, श्रमिक कहलाते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में रोजगार की प्रकृति कैसी है?
उत्तर
भारत में रोजगार की प्रकृति बहुमुखी है। कुछ लोगों को वर्ष भर रोजगार प्राप्त होता है तो कुछ लोग वर्ष में कुछ महीने ही रोजगार पाते हैं।

प्रश्न 5.
देश में रोजगार की स्थिति के विश्लेषण के लिए किस सूचक का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर
देश में रोजगार की स्थिति के विश्लेषण के लिए ‘श्रमिक जनसंख्या अनुपात’ का प्रयोग किया जाता है। यह सूचक यह जानने में सहायक है कि जनसंख्या का कितना अनुपात वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है।

प्रश्न 6.
‘जनसंख्या से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
‘जनसंख्या’ शब्द का अभिप्राय किसी क्षेत्र-विशेष में किसी समय-विशेष पर रह रहे व्यक्तियों की कुल संख्या से है।

प्रश्न 7.
श्रमिक-जनसंख्या अनुपात का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर
श्रमिक-जनसँख्या अनुपात का आकलन करने के लिए देश में कार्य कर रहे सभी श्रमिकों की संख्या को देश की जनसंख्या से भाग देकर उसे 100 से गुणा कर दिया जाता है। सूत्र रूप में,
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India 4
प्रश्न 8.
‘श्रमबल से क्या आशय है?
उत्तर
‘श्रमबल’ से आशय व्यक्तियों की उस संख्या से है जो वास्तव में काम कर रहे हैं या काम करने के इच्छुक हैं।

प्रश्न 9.
‘कार्यबल से क्या आशय है?
उत्तर
‘कार्यबल’ से आशय व्यक्तियों की उस संख्या से है जो वास्तव में काम कर रहे हैं।

प्रश्न 10.
सहभागिता दर से क्या आशय है?
उत्तर
सहभागिता दर से आय जनसंख्या के उस प्रतिशत से है जो वास्तव में उत्पादन क्रिया में सहभागी होते हैं। इसे देश की कुल जनसंख्या तथा कार्यबल के बीच अनुपात के रूप में मापा जाता है। सूत्र रूप में,
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India 5

प्रश्न 11.
‘मजदूरी रोजगार’ में कौन आते हैं?
उत्तर
‘मजदूरी रोजगार’ में वे व्यक्ति आते हैं जिनको अन्य व्यक्तियों ने रोजगार प्रदान किया हुआ है और इन्हें अपनी सेवाओं के बदले मजदूरी प्राप्त होती है।

प्रश्न 12.
स्वनियोजित किन व्यक्तियों को कहा जाता है?
उत्तर
स्वनियोजित उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो अपने उद्यम के स्वामी और संचालक होते हैं। कपड़े की दुकान का स्वामी स्वनियोजित है।

प्रश्न 13.
नियमित वेतनभोगी कर्मचारी कौन हैं?
उत्तर
जब किसी श्रमिक को कोई व्यक्ति या उद्यम नियमित रूप से काम पर रख उसे मजदूरी देता है तो वह श्रमिक नियमित वेतनभोगी कर्मचारी’ कहलाता है।

प्रश्न 14.
देश की आजीविका का सर्वप्रमुख स्रोत क्या है? ”
उत्तर
देश की आजीविका का सर्वप्रमुख स्रात ‘स्वरोजगार है। 50 प्रतिशत से अधिक लोग इसी वर्ग में कार्यरत हैं।

प्रश्न 15.
भारत में अधिकांश श्रमिकों के रोजगार का प्रमुख स्रोत कौन-सा है?
उत्तर
भारत में अधिकांश श्रमिकों के रोजगार का स्रोत प्राथमिक क्षेत्रक (लगभग 60%) है।

प्रश्न 16.
गत 50 वर्षों से योजनाबद्ध विकास का प्रमुख उददेश्य क्या रहा है?
उत्तर
गते 50 वर्षों से योजनाबद्ध विकास का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय उत्पाद और रोजगार में वृद्धि के माध्यम से अर्थव्यवस्था का प्रसार रहा है।

प्रश्न 17.
श्रमबल में किन श्रमिकों का अनुपात निरन्तर बढ़ रहा है? ”
उत्तर
श्रमबल में अनियत श्रमिकों का अनुपात निरन्तर बढ़ रहा है।

प्रश्न 18.
श्रमबल को किन दो वर्गों में विभाजित किया जाता है?
उत्तर
श्रमबल को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-
1. औपचारिक अथवा संगठित वर्ग,
2. अनौपचारिक अथवा असंगठित वर्ग।।

प्रश्न 19.
संगठित अथवा औपचारिक वर्ग में कौन-कौन से प्रतिष्ठान आते हैं?
उत्तर
सभी सार्वजनिक क्षेत्रक प्रतिष्ठान तथा 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले निजी क्षेत्रक प्रतिष्ठान, संगठित क्षेत्र में सम्मिलित किए जाते हैं।

प्रश्न 20.
अनौपचारिक (असंगठित क्षेत्रक में कौन-कौन से कर्मचारी सम्मिलित होते हैं?
उत्तर
अनौपचारिक (असंगठित) क्षेत्रक में करोड़ों किसान, कृषि श्रमिक, छोटे-छोटे काम धन्धे चलाने वाले और उनके कर्मचारी तथा सभी सुनियोजित व्यक्ति जिनके पास भाड़े के श्रमिक नहीं हैं, सम्मिलित हैं।

प्रश्न 21.
बेरोजगारी से क्या आशय है?
उत्तर
बेरोजगारी वह दशा है जिसमें शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से कार्य करने के योग्य और प्रचलित मजदूरी पर कार्य करने को तत्पर व्यक्ति को कार्य न मिले।।

प्रश्न 22.
ऐच्छिक बेरोजगारी से क्या आशय है?
उत्तर
प्रत्येक समाज में प्रत्येक समय कुछ-न-कुछ व्यक्ति ऐसे अवश्य होते हैं जो काम करने के योग्य होते हुए भी काम करना नहीं चाहते। यह ऐच्छिक बेरोजगारी की अवस्था कहलाती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेरोजगारी के आर्थिक व सामाजिक दुष्परिणाम बताइए।
उत्तर
बेरोजगारी के आर्थिक दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं

  1. मानव संसाधन निष्क्रिय रहते हैं। यह एक प्रकार का अपव्यय है।
  2. उत्पादन की हानि होती है।
  3. निवेशाधिक्य सृजित न होने के कारण पूँजी-निर्माण की दर धीमी रहती है।
  4. उत्पादकता का स्तर निम्न रहता है।

बेरोजगारी के सामाजिक दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं

  1. जीवन की गुणवत्ता कम होती है।
  2. आय तथा सम्पत्ति के वितरण में असमानता बढ़ती जाती है।
  3. इससे सामाजिक अशान्ति बढ़ती है।
  4. इस अवस्था में वर्ग-संघर्ष पनपता है।

प्रश्न. 2.
रोजगार/बेरोजगारी की सामान्य, साप्ताहिक तथा दैनिक स्थिति को समझाइए।
उत्तर-
1. सामान्य स्तर- यह वह स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति अपना अधिकांश समय काम में व्यतीत करता है। भारत में सामान्य तथा 183 दिवस काम को मानक सीमा बिन्दु माना जाता है। जो व्यक्ति वर्ष में 183 या अधिक दिन काम करते हैं, वे सामान्य रोजगार प्राप्त हैं, अन्य सामान्य रूप से बेरोजगार हैं।

2. साप्ताहिक स्तर- यदि अनुबन्धित सप्ताह के दौरान आप कार्यबल का भाग बन जाते हैं तो आपको साप्ताहिक स्तर के आधार पर रोजगार प्राप्त माना जाएगा अन्यथा साप्ताहिक स्तर पर बेरोजगार।

3. दैनिक स्तर- इसका अनुमान व्यक्ति दिवसों के रूप में लगाया जाता है। ‘साप्ताहिक स्तर दीर्घकालीन बेरोजगारी की ओर संकेत करता है जबकि ‘दैनिक स्तर’ दीर्घकालीन तथा छिपी दोनों बेरोजगारियों का संकेत देता है।

प्रश्न 3.
अदृश्य अथवा छिपी बेरोजगारी से क्या आशय है? ।
उत्तर
अदृश्य अथवा छिपी बेरोजगारी आंशिक बेरोजगारी की वह अवस्था है जिसमें रोजगार में संलग्न श्रम शक्ति का उत्पादन में यागदान शून्य या लगभग शून्य होता है। किसी व्यवसाय/उद्योग में आवश्यकता से अधिक श्रम का लगा होना अदृश्य बेरोजगारी को जन्म देता है। अदृश्य बेरोजगारी निम्न दो रूपों में पाई जाती है
1. जब लोग अपनी योग्यता से कम उत्पादन कार्यों में लगे होते हैं। यह सामान्यतः औद्योगिक देशों में पाई जाती है।
2. जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक लोग लगे होते हैं। यह बेरोजगारी प्रायःअल्पविकसित कृषिप्रधान देशों में पाई जाती है।

अदृश्य बेरोजगारी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इसका सम्बन्ध अपना निजी काम करने वालों से होता है, मजदूरी पर काम करने वाले लोगों से | नहीं।
  2. यह दीर्घकालीन जनाधिक्य का परिणाम होती है।
  3. इसका कारण पूरक साधनों की कमी का होना है।

प्रश्न 4.
सामान्यतः आर्थिक क्रियाओं को किन वर्गों में विभाजित किया जाता है?
उत्तर
आर्थिक क्रियाओं को निम्न वर्गों में विभाजित किया जाता है–
1. प्राथमिक क्षेत्रक, जिसमें
(क) कृषि तथा
(ख) खनन व उत्खनन सम्मिलित होते हैं।

2. द्वितीयक क्षेत्रक, जिसमें
(क) विनिर्माण,
(ख) विद्युत, गैस एवं जलापूर्ति तथा
(ग) निर्माण 
कार्य सम्मिलित होते हैं।

3. तृतीयक अथवा सेवा क्षेत्रक, जिसमें
(क) वाणिज्य,
(ख) परिवहन और भण्डारण तथा
(ग) सेवाएँ सम्मिलित होती हैं।

प्रश्न 5.
सरकार रोजगार सृजन के लिए क्या प्रयास करती है?
उत्तर
केन्द्र एवं राज्य सरकारें रोजगार सृजन हेतु अवसरों की रचना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही हैं। इनके प्रयासों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष रूप से सरकार अपने विभिन्न विभागों में प्रशासकीय कार्यों के लिए नियुक्तियाँ करती है। सरकार अनेक उद्योग, होटल और परिवहन कम्पनियाँ भी चला रही है। इन सब में वह प्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करती है। सरकारी उद्यमों में उत्पादकता के स्तर में वृद्धि अन्य उद्यमों के विस्तार को प्रोत्साहित करती है जिससे रोजगार के नए-नए अवसर सृजित होते हैं।देश में निर्धनता निवारण के लिए चलाए ज रहे विभिन्न कार्यक्रम रोजगार सृजन कार्यक्रम ही हैं। से कार्यक्रम केवल रोजगार ही उपलब्ध नहीं कराते अपितु इनके सहारे प्राथमिक, जनस्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आवास, ग्रामीण जलापूर्ति, पोषण, लोगों की आय तथा रोजगार सृजन करने वाली परिसम्पत्तियाँ खरीदने में सहायता, दिहाड़ी रोजगार के सृजन के माध्यम से सामुदायिक परिसम्पत्तियों का विकास, गृह और स्वच्छता सुविधाओं का निर्माण, गृहनिर्माण के लिए सहायता, ग्रामीण सड़कों का निर्माण और बंजर भूमि आदि के विकास के कार्य पूरे किए जाते हैं।

प्रश्न 6.
क्या आप जानते हैं कि भारत जैसे देश में रोजगार वृद्धि की दर को 2 प्रतिशत स्तर पर बनाए रखना इतना आसान काम नहीं है? क्यों?
उत्तर
भारत एक विकासशील देश है। कृषि यहाँ का मुख्य व्यवसाय है। भारत के लगभग 60 प्रतिशत लोग कृषि कार्यों में संलग्न हैं। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण कृषि क्षेत्र में श्रमाधिक्य है। पूँजी व अन्य सहायक साधनों के अभाव में रोजगार के आवश्यक अवसरों का सृजन नहीं हो पाता है। सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी तथा सार्वजनिक रूप से बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण ये परियोजनाएँ पूर्णत: सफल नहीं हो पाती हैं। बढ़ती मुद्रा स्फीति के कारण इन परियोजनाओं की लागत भी बढ़ती जाती है। इसके अतिरिक्त, इनके लाभ भी लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाते हैं।

प्रश्न 7.
इनमें से असंगठित क्षेत्रकों की क्रियाओं में लगे व्यक्तियों के सामने चिह्न अंकित करें

  1. एक ऐसे होटल का कर्मचारी, जिसमें सात भाड़े के श्रमिक एवं तीन पारिवारिक सदस्य हैं।
  2. एक ऐसे निजी विद्यालय का शिक्षक, जहाँ 25 शिक्षक कार्यरत हैं।
  3. एक पुलिस सिपाही।
  4. सरकारी अस्पताल की एक नर्स।
  5. एक रिक्शाचालक।
  6. कपड़े की दुकान का मालिक, जिसके यहाँ नौ श्रमिक कार्यरत हैं।
  7. एक ऐसी बेस कम्पनी का चालक, जिसमें 10 से अधिक बसें और 20 चालक, संवाहक तथा अन्य कर्मचारी हैं।
  8. दस कर्मचारियों वाली निर्माण कम्पनी का सिविल अभियन्ता।
  9. राज्य सरकारी कार्यालय में अस्थायी आधार पर नियुक्त कम्प्यूटर ऑपरेटर।
  10. बिजली दफ्तर का एक क्लर्क।

उत्तर
असंगठित क्षेत्रकों की क्रियाओं में संलग्न व्यक्ति हैं-
(1) एक ऐसे होटल का कर्मचारी, जिसमें सात भाड़े के श्रमिक एवं तीन पारिवारिक सदस्य हैं।
(5) एक रिक्शाचालक।
(6) कपड़े की दुकान का मालिक, जिसके यहाँ नौ श्रमिक कार्यरत हैं।
(9) राज्य सरकारी कार्यालय में अस्थायी आधार पर नियुक्त कम्प्यूटर ऑपरेटर। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेरोजगारी किसे कहते हैं? भारत में बेरोजगारी के विभिन्न स्वरूप बताइए।
उत्तर
पूर्ण रोजगार के अभाव की स्थिति को बेरोजगारी कहते हैं। यह एक अत्यन्त पतित एवं दूषित स्थिति है जिसे ‘आर्थिक बरबादी’ के नाम से भी पुकारा जाता है। वस्तुतः बेरोजगारी की स्थिति आर्थिक विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है जो सामाजिक और राजनीतिक अशान्ति को जन्म देती है। इसका समस्त समाज पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ता है। अर्थशास्त्रीय दृष्टि से वही व्यक्ति बेरोजगार कहलाता है, जो शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से कार्य करने के योग्य हो। साथ ही, प्रचलित मजदूरी की दर पर कार्य करने को तत्पर भी हो, परंतु उसे कार्य न मिले। इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति शारीरिक या मानसिक दृष्टि से कार्य करने के योग्य नहीं है अथवा प्रचलित मजदूरी की दर पर कार्य करने के लिए तत्पर नहीं है (जबकि उसे कार्य उपलब्ध हो) तो उसे 
बेरोजगार नहीं कहा जाएगा। अभिप्राय यह है कि अर्थशास्त्र में ऐच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment) को बेरोजगारी नहीं कहा जाता।

ऐच्छिक बेरोजगारी
प्रत्येक समाज में प्रत्येक समय कुछ-न-कुछ व्यक्ति ऐसे अवश्य पाए जाते हैं जो काम करने के स्रोग्य होते हुए भी काम नहीं करना चाहते। इस प्रकार की बेरोजगारी प्राय: तीन कारणों से उत्पन्न होती है

  1. कुछ व्यक्ति आलसी व कमजोर होने के कारण काम पसन्द नहीं करते जैसी भिखारी, साधु आदि।
  2. कुछ व्यक्ति धनी होने के कारण काम करने की आवश्यकता ही नहीं समझते।
  3. कुछ व्यक्ति उदासीन प्रकृति के होते हैं।

अनैच्छिक बेरोजगारी
जब स्वस्थ, योग्य एवं काम के इच्छुक व्यक्तियों को मजदूरी की प्रचलित दर पर काम नहीं मिल पाता तो इसे अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं। कीन्स के अनुसार-“इस प्रकार की बेरोजगारी प्रभावपूर्ण माँग में कमी होने के कारण उत्पन्न होती है।”

भारत में बेरोजगारी का स्वरूप

भारत एक विकासशील देश है। अतः यहाँ ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी का स्वरूप एक-सा नहीं पाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी के तीन मुख्य रूप दिखाई देते हैं-खुली बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी और छिपी हुई बेरोजगारी। शहरों में पाई जाने वाली बेरोजगारी मुख्यतः दो प्रकार की है—औद्योगिक बेरोजगारी और शिक्षित बेरोजगारी।

ग्रामीण बेरोजगारी
भारत में ग्रामीण बेरोज़गारी का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

1. खुली बेरोजगोरी– इससे हमारा अभिप्राय उन व्यक्तियों से है जिन्हें जीवन-यापन हेतु कोई कार्य नहीं मिलता। इसे स्थायी बेरोजगारी भी कहा जाता है। इस स्थायी बेरोजगारी के अन्तर्गत भारतीय गाँवों में बहुत सारे व्यक्ति बेरोजगार रहते हैं। स्थायी बेरोजगारी का मुख्य कारण कृषि पर जनसंख्या की अत्यधिक निर्भरता है।

2. मौसमी बेरोजगारी– इस प्रकार की बेरोजगारी वर्ष के कुछ महीनों में अधिक दिखाई देती है। श्रम की माँग में होने वाले परिवर्तनों में मौसमी बेरोजगारी की मात्रा भी परिवर्तित होती रहती है। सामान्यतः फसलों के बोने तथा काटने के समय श्रम की अधिक माँग रहती है, परन्तु अन्य मौसमों में रोजगार उपलब्ध नहीं होता। ग्रामीणों को सामान्यतया साल में 128 से 196 दिन तक बेरोजगार रहना पड़ता है।

3. छिपी हुई बेरोजगारी– जब श्रमिक की उत्पादकता शून्य अथवा ऋणात्मक होती है, तब उसे छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी का अनुमान लगाना कठिन है। , देश की लगभग 67% जनसंख्या कृषि में संलग्न है जबकि इतनी जन-शक्ति की वहाँ आवश्यकता नहीं है।

शहरी बेरोजगारी 
भारत की शहरी बेरोजगारी का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है
1. औद्योगिक बेरोजगारी- औद्योगिक क्षेत्र में पाई जाने वाली बेरोजगारी को औद्योगिक बेरोजगारी
कहा जाता है। इस प्रकार की बेरोजगारी चक्रीय बेरोजगारी तथा तकनीकी बेरोजगारी से प्रभावित होती है। शिक्षित बेरोजगारी 

2. शिक्षा के प्रसार के साथ- साथ इस प्रकार की बेरोजगारी का प्रसार हो रहा है। देश में शिक्षित बेरोजगारी की स्थिति बड़ी करुण एवं दयनीय हो गई है। ‘भारत में प्रशिक्षितों की बेरोजगारी‘ नामक पुस्तक में स्थिति का मूल्यांकन इन शब्दों में किया गया है-“हमारे ।
शिक्षित युवकों में बढ़ती हुई बेरोजगारी हमारे राष्ट्रीय स्थायित्व के लिए जबरदस्त खतरा है। उसे नियन्त्रित करने के लिए यदि समायोचित कदम नहीं उठाया गया तो भारी उथल-पुथल का अन्देशा

बेरोजगारी एक अभिशाप है। इससे एक ओर राष्ट्र के बहुमूल्य साधनों की बरबादी होती है तो दूसरी ओर निर्धनता, ऋणग्रस्तता, औद्योगिक अशान्ति को जन्म मिलता है। सामाजिक दृष्टि से अपराधों में वृद्धि होती है तथा राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होती है, जिसका समस्त समाज पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ता है। अतः राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों में कहा गया है कि आजीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करना नागरिकों का अधिकार है।

प्रश्न 2.
भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण बताइए। बेरोजगारी को दूर करने के लिए उपयुक्त| सुझाव दीजिए।
उत्तर
भारत में बेरोजगारी के कारण भारत में बेरोजगारी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

1. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि–देश में जनसंख्या की वृद्धि-दर लगभग 1.93% वार्षिक रही है। इस प्रकार, जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, लेकिन रोजगार की सुविधाओं में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई है।

2. कुटीर उद्योगों का अभाव- भारत में कुटीर उद्योगों का ह्रास हो जाने के कारण भी बेरोजगारी में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है क्योंकि उनमें संलग्न लोगों को अन्य क्षेत्रों में रोजगार नहीं मिला है।

3. दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली- हमारे देश में दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली के कारण भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। भारत में शिक्षा पद्धति व्यवसाय-प्रधान न होकर सिद्धान्त-प्रधान है, जो बेरोजगारी को जन्म दे रही है।

4. यन्त्रीकरण में वृद्धि – विकास की गति को तेज करने के लिए कृषि व उद्योगों में यन्त्रीकरण व आधुनिकीकरण की नीति को अपनाया जा रहा है, जिसके कारण अस्थायी बेरोजगारी को बढ़ावा मिला है।

5. श्रमिकों की गतिशीलता में कमी– शिक्षा का अभाव, पारिवारिक मोह, रूढ़िवादिता,अन्धविश्वास आदि भारतीय श्रमिक की गतिशीलता में बाधक हैं, जिसके कारण व्यक्ति घर पर बेकार रहना पसन्द करता है।

6. अविकसित प्राकृति साधन- यद्यपि हमारे देश में प्राकृतिक साधने पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।तथापि उनका पूर्ण विदोहन नहीं हुआ है, जिसके कारण देश के औद्योगिक विकास की गति धीमी रही है।

7. तकनीकी ज्ञान का अभाव- देश के शिक्षित समुदाय में तकनीकी ज्ञान का अभाव है। वह केवल लिपिक बन सकता है, किसी भी व्यवसाय को आरम्भ करने की क्षमता उसमें नहीं है। इस कारण देश में शिक्षित बेरोजगारी की प्रचुरता है।

8. बचत तथा विनियोग की न्यून दर– प्रति व्यक्ति आय कम होने के कारण हमारे देश में बचत करने की शक्ति कम है, जिसके फलस्वरूप विनियोग भी कम होता है। विनियोग के अभाव में नवीन उद्योग स्थापित नहीं हो पाते।

9. शरणार्थियों का आगमन- म्यांमार, ब्रिटेन, श्रीलंका, कीनिया, युगाण्डा आदि देशों से भारतीयों के लौटने तथा पाकिस्तान के शरणार्थियों के आगमन के कारण बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि रही

10. दोषपूर्ण विचार पद्धति–अधिकांश व्यक्ति पढ़ाई के पश्चात् नौकरी चाहते हैं। वे स्वयं अपना कोई कार्य करना पसन्द नहीं करते, जिससे रोजगार चाहने वालों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही

11. पूँजी-गहन परियोजनाओं पर अधिक बल–द्रिय योजना के प्रारम्भ से ही हमने आधारभूत उद्योगों के विकास पर अधिक बल दिया है, जिससे भारी इन्जीनियरी व रसायन उद्योगों में अधिक पूँजी तो लगाई गई, लेकिन उसमें रोजगार के अवसर ज्यादा नहीं खुल पाए।

12. रोजगार-नीति व अंम-शक्ति नियोजन का अभाव योजनाओं में रोजगार प्रदान करने केसम्बन्ध में कोई व्यापक व प्रगतिशील नीति नहीं अपनाई गई। श्रम-शक्ति नियोजन की दिशा में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। इसके फलस्वरूप देश में बेरोजगारी बढ़ी है।

बेरोजगारी को दूर करने हेतु सुझाव

बेरोजगारी के लिए उत्तरदायी कारणों से स्पष्ट है कि हमारे देश में बेरोजगारी का मूल कारण देश का मन्द आर्थिक विकास है। आज बेरोजगारी समय की सबसे बड़ी चुनौती है; अतः रोजगार की मात्रा में वृद्धि के लिए आर्थिक विकास के कार्यक्रमों की गति देनी ही होगी। इस समस्या को सुलझाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-

  1. देश में श्रम-शक्ति की वृद्धि को रोकने के लिए जनसंख्या की वृद्धि पर प्रभावपूर्ण नियन्त्रण लगाया | जाए।
  2. जन-शक्ति के उचित उपयोग के लिए जन-शक्ति का नियोजन (Man-power planning) किया जाए।
  3. योजना में वित्तीय लक्ष्यों की उपलब्धि के साथ रोजगार लक्ष्यों की पूर्ति पर ध्यान केन्द्रित होना | चाहिए। अन्य शब्दों में, पंचवर्षीय योजनाओं को पूर्णरूपेण ‘रोजगार-प्रधान’ बनाया जाए।
  4. कुटीर तथा लघु उद्योगों का विकास किया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में तो ये उद्योग ही सम्भावित रोजगार । के केन्द्रबिन्दु हैं।
  5. कृषि के विकास तथा हरित क्रान्ति को स्थायी बनाने के प्रयास किए जाएँ।
  6. ग्रामीण औद्योगीकरण का विस्तार किया जाए।
  7. बचत तथा विनियोग दर में वृद्धि का हर सम्भव प्रयास किया जाए, क्योंकि अधिक पूँजी का विनियोग रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करेगा।
  8. आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करने की दृष्टि से शिक्षा-प्रणाली तथा सामाजिक व्यवस्था में वांछित परिवर्तन किया जाए।
  9. रोजगार कार्यालयों (Employment Exchanges) द्वारा रोजगार सेवाओं का विस्तार किया जाए।
  10. बेरोजगारी विशेषज्ञ समिति का सुझाव है कि रोजगार और जन-शक्ति के आयोजन के लिए एक राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया जाए।

 We hope the UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे).