UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 4 Poverty (निर्धनता)

UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 4 Poverty (निर्धनता)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1.
निर्धनता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर
शाहीन रफी खान और डेनियन किल्लेन के शब्दों में-“निर्धनता भूख है। निर्धनता बीमार होने पर चिकित्सक को न दिखा पाने की विवशता है। निर्धनता स्कूल में न जा जाने और निरक्षर रह जाने का नाम है। निर्धनता बेरोजगारी है। निर्धनता भविष्य के प्रति भय है; निर्धनता दिन में एक बार भोजन पाना है। निर्धनता अपने बच्चे को उस बीमारी से मरते देखने को कहते हैं जो अस्वच्छ पानी पीने से होती है। निर्धनता शक्ति, प्रतिनिधित्वहीनता और स्वतंत्रता की हीनता का नाम है।” संक्षेप में, निर्धनता से अभिप्राय है-“जीवन, स्वास्थ्य और कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति की अयोग्यता।”

प्रश्न 2.
काम के बदले अनाज कार्यक्रम का क्या अर्थ है?
उत्तर
‘काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम देश के 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में इस उद्देश्य के साथ शुरू किया गया ताकि पूरक वेतन रोजगार के सृजन को बढ़ाया जा सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत मुख्यतः जल संरक्षण, सूखे से सुरक्षा और भूमि विकास संबंधी कार्य सम्पन्न कराए जाते हैं और मजदूरी के न्यूनतम 25% का भुगतान नकद राशि में तथा शेष भुगतान अनाज के रूप में किया जाता है। इस योजना के अंतर्गत देश में प्रत्येक परिवार के एक सक्षम व्यक्ति को 100 दिनों के लिए न्यूनतम मजदूरी पर रोजगार देने का प्रावधान है। यह कार्यक्रम शत-प्रतिशत केन्द्र प्रायोजित है।

 

प्रश्न 3.
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वरोजगार का एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर
ग्रामीण क्षेत्र में जब एक किसान अपनी भूमि पर अपने निजी संसाधनों का प्रयोग करके फसलों का उत्पादन करता है तो यह स्वरोजगार कहलाएगा। इस प्रकार शहरी क्षेत्र में जब कोई आदमी एक दुकान खोलकर उसे चलाता है तो वह भी स्वरोजगार श्रमिक कहलाएगा।

प्रश्न 4.
आय अर्जित करने वाली परिसम्पत्तियों के सृजन से निर्धनता की समस्या का समाधान किस प्रकार हो सकता है?
उत्तर
निर्धनों के विकास के लिए विकल्पों की खोज के क्रम में नीति निर्धारकों को लगा कि वर्धनशील परिसम्पत्तियों और कार्य सृजन के साधनों द्वारा निर्धनों के लिए आय और रोजगार को बढ़ाया जा सकता है। इस नीति को तृतीय पंचवर्षीय योजना से आरम्भ किया गया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत छोटे उद्योग लगाने के लिए बैंक ऋणों के माध्यम से वित्तीय सहयोग उपलब्ध कराया जाता है। भूमिहीनों को भूमि आवंटित करके रोजगार के अधिक अवसरों का सृजन होता है। वित्तीय सहायता, भूमि एवं अन्य परिसम्पत्तियों के अर्जन से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है तथा आमदनी बढ़ती है, जिससे निर्धनता की समस्या हल होती है।

 

प्रश्न 5.
भारत सरकार द्वारा निर्धनता पर त्रि-आयामी प्रहार की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर
भारत सरकार ने निर्धनता निवारण के लिए त्रि-आयामी नीति अपनाई, जिसका विवरण इस प्रकार है
1. संवृद्धि आधारित रणनीति- यह इस आशा पर आधारित है कि आर्थिक संवृद्धि (अर्थात् सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में तीव्र वृद्धि) के प्रभाव समाज के सभी वर्गों तक पहुँच जाएँगे। यह माना जा रहा था कि तीव्र दर से औद्योगिक विकास और चुने हुए क्षेत्रों में हरित क्रांति के माध्यम से कृषि का पूर्ण कार्याकल्प हो जाएगा। परंतु जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूस प्रति व्यक्ति आय में बहुत कमी आई जिस कारण धनी और निर्धन के बीच की दूरी और बढ़ गई।

2. वर्धनशील परिसम्पत्तियों और कार्य का सृजन- प्रथम आयाम की असफलता के बाद नीति-निर्धारकों को ऐसा लगा कि वर्धनशील परिसम्पत्तियों और कार्य सृजन के साधनों द्वारा निर्धनों के लिए आय और रोजगार को बढ़ाया जा सकता है। इस दूसरी नीति को द्वितीय पंचवर्षी योजना से आरम्भ किया गया। स्वरोजगार एवं मजदूरी आधारित रोजगार कार्यक्रमों को निर्धनता भगाने का मुख्य माध्यम माना जाता है। स्वरोजगार कार्यक्रमों के उदाहरण हैं—ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (REGP), प्रधानमंत्री रोजगार योजना (PMRY) तथा स्वर्णजयंती शहरी रोजगार योजना (SJSRY)। इन रोजगार कार्यक्रमों एवं वित्तीय सहायता के माध्यम से निम्न आय वर्ग के लोगों को आय अर्जित करने के अवसर प्राप्त हुए हैं।

3. न्यूनतम आधारभूत सुविधाएँ– निर्धनता निवारण की दिशा में तीसरा आयाम न्यूनतम आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना है। इस नीति के अंतर्गत उपभोग, रोजगार के अवसर, स्वास्थ्य एवं शिक्षा में आपूर्ति बढ़ाने पर बल दिया गया। निर्धनों के खाद्य उपभोग और पोषण-स्तर को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख कार्यक्रम हैं—सार्वजनिक वितरण व्यवस्था, एकीकृत बाल विकास योजना तथा मध्यावकाश भोजन योजना। बेसहारा बुजुर्गों एवं निर्धन महिलाओं के लिए भी सामाजिक सहायता अभियान चलाए जा रहे हैं।

प्रश्न 6.
सरकार ने बुजुर्गों, निर्धनों और असहाय महिलाओं के सहायतार्थ कौन-से कार्यक्रम अपनाए हैं?
उत्तर
सरकार ने बुजुर्गों, निर्धनों और असहाय महिलाओं की सहायतार्थ निम्नलिखित कार्यक्रम अपनाए हैं-सामाजिक सुरक्षा बीमा योजना (1989-80 ई०), राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (1994-95 ई०), राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना (1994-95 ई०), राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना (1994-95 ई०), प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (1997-98 ई०), लक्ष्य आधारित खाद्यान्न वितरण कार्यक्रम (1997-98 ई०), महिला सर्वशक्ति योजना (1998-99 ई०), अन्नपूर्णा योजना (2001 ई०), महिला स्वयंसिद्ध योजना (2001-02 ई०), महिला स्वाधार योजना (2001-02 ई०), वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना (2003-04 ई०), जननी सुरक्षा योजना (2003-04 ई०), सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना (2003-04 ई०), आशा योजना (2005 ई०), एकल बालिका नि:शुल्क शिक्षा योजना (2005 ई०), राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण स्कीम-सबला (2010-11 ई०), इन्दिरागांधी मातृत्व सहयोग योजना (2010-11 ई०)।

 

प्रश्न 7.
क्या निर्धनता और बेरोजगारी में कोई संबंध होता है? समझाए।
उत्तर
निर्धनता का संबंध व्यक्ति के रोजगार एवं उसके स्वरूप से भी होता है; जैसे—बेरोजगारी, अल्परोजगार, कभी-कभी काम मिलना आदि। अधिकांश शहरी निर्धन या तो बेरोजगार हैं या अनियमित मजदूर हैं, जिन्हें कभी-कभी रोजगार मिलता है। ये अनियमित मजदूर समाज के बहुत ही दयनीय सदस्य हैं। क्योंकि इनके पास रोजगार सुरक्षा, परिसम्पत्तियाँ, वांछित कार्य-कौशल, पर्याप्त अवसर तथा निर्वाह के लिए अधिशेष नहीं होते हैं। इसीलिए भारत सरकार ने अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार कार्यक्रम आरम्भ किए। इसी क्रम में 1970 ई० के दशक में चलाया गया ‘काम के बदले अनाज’ एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम रही। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अकुशल निर्धन लोगों के लिए मजदूरी पर रोजगार के सृजन के लिए भी सरकार के पास अनेक कार्यक्रम हैं। इनमें से प्रमुख हैं-राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम तथा सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना।

प्रश्न 8.
सापेक्ष और निरपेक्ष निर्धनता में क्या अंतर है?
उत्तर
सापेक्ष निर्धनता– सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न वर्गों, प्रदेशों या दूसरे देशों की तुलना में पायी जाने वाली निर्धनता से है। जिस देश या वर्ग के लोगों का जीवन निर्वाह स्तर निम्न होता है वे उच्च निर्वाह स्तर के लोगों या देशों की तुलना में गरीब या सापेक्ष रूप से निर्धन माने जाते हैं।

 

निरपेक्ष निर्धनता- निरपेक्ष निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है। भारत में निरपेक्ष निर्धनता का अनुमान लगाने के लिए निर्धनता रेखा की धारणा का प्रयोग किया जाता है। निर्धनता रेखा वह है जो उस प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय को प्रकट करती है जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट कर सकते हैं। भारत की कीमतों के आधार पर ३ 328 ग्रामीण क्षेत्र में तथा १ 454 शहरी क्षेत्र में प्रति मास उपभोग को निर्धनता रेखा माना गया है। जिन लोगों का प्रति माह उपभोग व्यय इससे कम है उन्हें निर्धन माना जाता है। कैलोरी की दृष्टि से निर्धनता रेखा की सीमा ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी है।

प्रश्न 9.
मान लीजिए कि आप एक निर्धन परिवार से हैं और छोटी सी दुकान खोलने के लिए सरकारी सहायता पाना चाहते हैं। आप किस योजना के अंतर्गत आवेदन देंगे और क्यों? ”
उत्तर
स्वरोजगार कार्यक्रम के अंतर्गत निर्धन परिवार का कोई भी शिक्षित सदस्य किसी भी प्रकार की छोटी दुकान चलाने के लिए सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकता है। पूर्व रोजगार कार्यक्रमों के तहत परिवारों और व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, पर नब्बे के दशक से इस नीति में बदलाव 
आया है। अब इन कार्यक्रमों का लाभ चाहने वालों को स्वयं सहायता समूहों का गठन करने के लिए प्रेरित किया जाता है। प्रारम्भ में उन्हें अपनी ही बचतों को एकत्र कर परस्पर उधार देने को प्रोत्साहित किया जाता है। और बाद में सरकार ‘बैंकों के माध्यम से उन स्वयं सहायता समूहों को आंशिक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है। ये समूह ही निश्चित करते हैं कि किसे ऋण दिया जाए।

 

प्रश्न 10.
ग्रामीण और शहरी बेरोजगारी में अंतर स्पष्ट करें। क्या यह कहना सही होगा कि निर्धनता गाँवों से शहरों में आ गई है? अपने उत्तर के पक्ष में निर्धनता अनुपात प्रवृत्ति का प्रयोग करें।
उत्तर
दिए गए तालिका’और चित्र भारत में निर्धनता प्रवृत्तियों के ग्रामीण-शहरी परिदृश्य को प्रस्तुत करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में पायी जाने वाली निर्धनता शहरी निर्धनता की तुलना में अभी भी अधिक है।
तालिका : गरीबी की जनगणना का अनुपात-ग्रामीण, शहरी व कुल 
(प्रतिशत में)
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इन आँकड़ों से निम्नलिखित निष्कर्ष निकालते हैं

  1. ग्रामीण निर्धनता 1972-73 ई० में 54% से घटकर 1999- 2000 में 27.09% हो गई थी।
  2. शहरी निर्धनता भी 1972-73 ई० में 42% से गिरकर 23.62% हो गई थी।
  3. गाँवों में गरीबी का स्तर शहरों से ज्यादा है।
  4. 1993-94 ई० तथा 1999-2000 ई० में गरीबी के स्तर में सराहनीय,कमी आई।

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प्रश्न 11.
भारत के कुछ राज्यों में निर्धनता रेखा के नीचे की जनसंख्या का प्रयोग कर सापेक्ष निर्धनता की अवधारणा की व्याख्या करें।
उत्तर
योजना आयोग द्वारा जारी अखिल भारतीय स्तर के आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, कनार्टक व उत्तराखण्ड में निर्धनता अनुपात में 10 प्रतिशत बिन्दु से भी अधिक की कमी वर्ष 2005 से 2010 में दर्ज की गई है, जबकि पूर्वात्तर के राज्यों असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम व नागालैण्ड में निर्धनता अनुपात में वृद्धि हुई है, बिहार, छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश जैसे अपेक्षाकृत बड़े राज्यों में निर्धनता अनुपात में मामूली कमी दर्ज की गई है। योजना आयोग के इन आँकड़ों के अनुसार 2009-10 में देश में निर्धनों की सर्वाधिक संख्या वाले राज्य क्रमशः उत्तर प्रदेश, बिहार व महाराष्ट्र रहे हैं, जबकि निर्धनता अनुपात की दृष्टि से पहले तीन स्थान क्रमशः बिहार, छत्तीसगढ़ व मणिपुर के हैं। केन्द्रशासित क्षेत्रों में निर्धनता अनुपात न्यूनतम अण्डमान निकोबार में 0.4 प्रतिशत, पुदुचेरी में 1.2 प्रतिशत व लक्षद्वीप में 6.8 प्रतिशत पाया गया है। राज्यों में न्यूनतम निर्धनता अनुपात वाले राज्य क्रमशः गोवा (8.7 प्रतिशत), जम्मू कश्मीर (9.4 प्रतिशत) व हिमचल प्रदेश (9.5 प्रतिशत) रहे हैं।

प्रश्न 12.
मान लीजिए कि आप किसी गाँव के निवासी हैं। अपने गाँव से निर्धनता निवारण के कुछ | सुझाव दीजिए।
उत्तर
स्वतंत्रता के बाद से हमारी सभी नीतियों का ध्येय समान और सामाजिक न्याय सहित तीव्र और संतुलित आर्थिक विकास रहा है। हमारा निर्धनता निवारण कार्यक्रम प्रगति पर है लेकिन हमें निर्धनता निवारण में सराहनीय सफलता प्राप्त नहीं हुई है। ग्रामीण होने के नोते गाँव से निर्धनता निवारण हेतु मैं निम्नलिखित सुझाव देंगा

  1. सर्वप्रथम निर्धनों की पहचान की जाए।
  2. संवृद्धि कार्यक्रमों में निर्धनों की प्रभावपूर्ण सहभागिता को प्रोत्साहन दिया जाए।
  3. निर्धनता-ग्रस्त क्षेत्रों की पहचान कर वहाँ स्कूल, सड़कें, विद्युत, संचार, सूचना आदि आधारित संरचनाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।
  4. संवृद्धि कार्यक्रमों में निर्धनों की प्रभावपूर्ण सहभागिता होनी चाहिए जिससे रोजगार के अवसरों की | रचना होगी और आय के स्तर में सुधार होगा।
  5. स्वरोजगार कार्यक्रमों के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाए।
  6. अकुशल श्रमिकों को प्रशिक्षण दिया जाए।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
केन्द्र आयोजित ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम की पुनर्संरचना की गई
(क) 1 मई, 1999 को
(ख) 1 अप्रैल, 1999 को
(ग) 2 अक्टूबर, 1993 को
(घ) 2 नवम्बर, 1993 को
उत्तर
(ख) 1 अप्रैल, 1999 को

प्रश्न 2.
अन्नपूर्णा योजना के तहत पात्र वयोवृद्ध नागरिकों को प्रतिमाह कितना अनाज निःशुल्क उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है? (क) 5 किग्रा
(ख) 10 किग्रा
(ग) 15 किग्रा
(घ) 20 किग्रा
उत्तर
(ख) 10 किग्रा

प्रश्न 3.
7 सितम्र, 2005 को अधिसूचित मनरेगा कार्यक्रम का उद्देश्य
(क) प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का गारण्टीशुदा रोजगार उपलब्ध कराना। (ख) प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 90 दिन का| गारण्टीशुदा रोजगार उपलब्ध कराना।
(ग) प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 200 दिन का 
गारण्टीशुदा रोजगार उपलब्ध कराना।
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(क)प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का गारण्टीशुदा 
रोजगार उपलब्ध कराना।

प्रश्न 4.
बारहवीं पंचवर्षीय योजना में विकास का लक्ष्य रखा गया
(क) 6%
(ख) 7%
(ग) 8%
(घ) 9%
उत्तर
(घ) 9%

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्धनता से क्या आशय है?
उत्तर
निर्धनता वह सामाजिक स्थिति है जिसमें समाज का एक भाग अपने जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की संतुष्टि करने में असमर्थ रहता है।

प्रश्न 2.
निर्धनता की परिभाषा का मूल आधार क्या है?
उत्तर
निर्धनता की परिभाषा का मूल आधार न्यूनतम या अच्छे जीवन-स्तर की कल्पना है।

प्रश्न 3.
नगरीय क्षेत्र में निर्धनता की माप का आधार क्या है?
उत्तर
नगरीय क्षेत्र में वह व्यक्ति निर्धन माना जाता है जिसे प्रतिदिन 2,100 कैलोरी प्राप्त नहीं हो पाती।

प्रश्न 4.
ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता की माप का आधार क्या है?
उत्तर
ग्रामीण क्षेत्र में वह व्यक्ति निर्धन माना जाता है जिसे प्रतिदिन 2,400 कैलोरी प्राप्त नहीं हो पाती।

प्रश्न 5.
भारत में निर्धनता का प्रतिशत क्या है?
उत्तर
भारत में निर्धनता का प्रतिशत 26.1 है। इस प्रकार भारत को हर चौथा व्यक्ति निर्धन है।

प्रश्न 6.
कुछ निर्धन वर्गों को बताइए।
उत्तर
गाँवों में भूमिहीन श्रमिक, नगरों में झुग्गियों में रहने वाले लोग, निर्माण स्थलों के दैनिक भोगी श्रमिक, भिक्षु तथा ढाबों में काम करने वाले बाल श्रमिक आदि।

प्रश्न 7.
भूमिहीनता से क्या आशय है?
उत्तर
किसी भूमि का स्वामी न होना भूमिहीनता कहलाती है।

प्रश्न 8.
बेरोजगारी से क्या आशय है?
उत्तर
मजदूरी की प्रचलित दरों पर काम करने के इच्छुक व योग्य व्यक्तियों को काम को न मिल पाना बेरोजगारी कहलाता है।

प्रश्न 9. 
परिवार का आकार क्या होता है?
उत्तर
परिवार में सदस्यों की संख्या को परिवार का आकार कहते हैं।

प्रश्न 10.
निरक्षरता से क्या आशय है?
उत्तर
निरक्षरता से आशय व्यक्ति विशेष में लिखने-पढ़ने की योग्यता का न होना है।

प्रश्न 11.
खराब स्वास्थ्य/कुपोषण क्या होता है?
उत्तर
स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं/पोषण का अभाव खराब स्वास्थ्य/कुपोषण कहलाता है।

प्रश्न 12.
बाल श्रम क्या है?
उत्तर
14 वर्ष से कम आयु में धन कमाने के लिए काम करना बाल श्रम कहलाता है।

प्रश्न 13.
असहायता से क्या आशय है?
उत्तर
असहायता से आशय निम्न लोगों के साथ खेतों, कारखानों, सरकारी कार्यालयों, रेलवे स्टेशनों तथा अन्य स्थानों पर दुर्व्यवहार करने से है।

प्रश्न 14.
सामाजिक अपवर्जन क्या है?
उत्तर
निर्धनों को बेहतर माहौल और अधिक अच्छे वातावरण में रहने वाले सम्पन्न लोगों की सामाजिक समता से वंचित रहकर निकृष्ट वातावरण में दूसरे निर्धनों के साथ रहना सामाजिक अपवर्जन कहलाता है।

प्रश्न 15.
असुरक्षा की अवधारणा क्या है?
उत्तर
असुरक्षा निर्धनता के प्रति एक माप है। किसी भी प्राकृतिक आपदा (बाढ़ अथवा भूकम्प) के कारण अथवा नौकरी न मिलने के कारण, दूसरे लोगों की तुलना में अधिक प्रभावित होने की बड़ी सम्भावना का निरूपण ही असुरक्षा है।

प्रश्न 16.
निर्धनता के आकलन की सर्वमान्य विधि क्या है?
उत्तर
निर्धनता के आकलन की सर्वमान्य विधि ‘आय’ अथवा ‘उपभोग’ स्तर है।

प्रश्न 17.
अमेरिका में किस आदमी को निर्धन माना जाता है?
उत्तर
अमेरिका में उस आदमी को निर्धन माना जाता है जिसके पास कार नहीं है।

प्रश्न 18.
निर्धनता रेखा का आकलन किस संगठन द्वारा किया जाता है?
उत्तर
निर्धनता रेखा का आकलन, प्रतिदर्श सर्वेक्षण के माध्यम से राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (N.S.S.O.) द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 19.
उन सामाजिक समूहों को बताइए जो निर्धनता के प्रति सर्वथा असुरक्षित है?
उत्तर
निम्न सामाजिक समूह निर्धनता के प्रति सर्वथा असुरक्षित हैं-
1. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के परिवार,
2. ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार,
3. नगरीय अनियमित श्रमिक परिवार।

प्रश्न 20.
अनुसूचित जनजातियों में निर्धनता का प्रतिशत क्या है? ।
उत्तर
अनुसूचित जनजातियों में निर्धनता का प्रतिशत 51 है।

प्रश्न 21.
नगरीय क्षेत्रों में अनियमित मजदूरों का निर्धनता का प्रतिशत कितना है?
उत्तर
नगरीय क्षेत्रों में अनियमित मजदूरों का निर्धनता का प्रतिशत 50 है।

प्रश्न 22.
भूमिहीन कृषि श्रमिकों का निर्धनता का प्रतिशत क्या है?
उत्तर
भूमिहीन कृषि श्रमिकों का निर्धनता का प्रतिशत 50 है।

प्रश्न 23.
अनुसूचित जातियों में निर्धनता का प्रतिशत क्या है?
उत्तर
अनुसूचित जातियों में निर्धनता का प्रतिशत 63 है।

प्रश्न 24.
बिहार और छत्तीसगढ़ में निर्धनता का प्रतिशत क्या है? ”
उत्तर
बिहार में निर्धनता का प्रतिशत 53.5 तथा छत्तीसगढ़ में 48.7 है। यह स्थिति वर्ष 2009-10 की

प्रश्न 25.
किन राज्यों में निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आई है?
उत्तर
केरल, जम्मू कश्मीर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हरियाणा में निर्धनता मैं उल्लेखीय गिरावट आई है।

प्रश्न 26.
वर्तमान समय में भारत सरकार की निर्धनता विरोधी रणनीति किन दो कारकों पर निर्भर| करती है?
उत्तर
वर्तमान में भारत सरकार की निर्धनता विरोधी रणनीति निम्न कारकों पर निर्भर करती है
1. आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन तथा
2. लक्षित निर्धनता विरोधी कार्यक्रम।।

प्रश्न 27.
‘राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम कब और कितने जिलों में लागू किया गया?
उत्तर
यह कार्यक्रम 2004 ई० में देश के सबसे अधिक पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया।

प्रश्न 28.
प्रधानमंत्री रोजगार योजना, 2003 ई० का उद्देश्य क्या है?
उत्तर
इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है।

प्रश्न-29.
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना 1999 ई० का उद्देश्य क्या है?
उत्तर
इस कार्यक्रम का उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्व-सहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायता के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना है।

प्रश्न 30. भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
उत्तर
भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती सभी को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा, निर्धनों को उचित सम्मान दिलाना है।

प्रश्न 31.
निर्धनता उन्मूलन के कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर
कार्यक्रमों का उचित क्रियान्वयन किया जाए, उनके परस्पर व्यापी होने के दोष को समाप्त किया जाए तथा उनके उचित परिवीक्षण पर बल दिया जाए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है? क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन को यह तरीका सही है? । उत्तर
भारत में निर्धनता रेखा का आकलन दो स्तरों पर किया जाता है-
1. आय स्तर,
2. उपभोम स्तर।

आय स्तर- आय स्तर के आधार पर वर्ष 2009-10 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों में ३१ 672.8 प्रतिमाह और शहरी क्षेत्रों में १ 859.6 प्रतिमाह किया गया था।

उपभोग स्तर-
उपभोग स्तर के आधार पर भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन और नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। विभिन्न देशों में निर्धनता आकलन के तरीके भिन्न-भिन्न हैं। प्रत्येक देश एक काल्पनिक रेखा का प्रयोग करता है जिसे विकास एवं उसके स्वीकृत न्यूनतम सामाजिक मानदण्डों के वर्तमान स्तर के अनुरूप माना जाता है; उदाहरण के लिए अमेरिका में उस आदमी को निर्धन माना जाता है जिसके पस कार नहीं है। जबकि भरत में यह उपयोग स्तर पर आधारित हैं निर्धनता आकलन का यह तरीका सही है।

प्रश्न 2.
भारत में 1973 ई० से निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर
भारत में निर्धनता अनुपात 1973 ई० में लगभग 55 प्रतिशत था जो 1983 ई० में घटकर 36 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2000 में निर्धनता रेखा के नीचे के निर्धनों का अनुपात 26 प्रतिशत पर आ गया। इसमें नगरों में निर्धनता अनुपात 23.62 प्रतिशत तथा ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता अनुपात 27.09 प्रतिशत था। अनुमान है कि यह 2007 ई० में गिरकर 19.3 प्रतिशत रह जाएगा। निरपेक्ष संख्या के रूप में भारत में 1973-74 ई० में 32.13 करोड़ जनसंख्या निर्धन थी। यह 1999-2000 ई० में घटकर 26.02 करोड़ रह गई। वर्ष 2015-16 में यह संख्या 38.14 करोड़ हो गई।

प्रश्न 3.
उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान कीजिए जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपोय हैं?
उत्तर
निर्धनता अनुपात भारत के सभी सामाजिक समूहों और आर्थिक वर्गों में एक समान नहीं है। जो सामाजिक समूह निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित हैं, वे अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के परिवार हैं। इसी प्रकार आर्थिक समूहों में सर्वाधिक असुरक्षित समूह, ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार और नगरीय अनियमित श्रमिक परिवार हैं। भारत में अनुसूचित जनजाति में 51 प्रतिशत, नगरीय क्षेत्र के अनियमित मजदूरों में 50 प्रतिशत, भूमिहीन कृषि श्रमिकों में 50 प्रतिशत तथा अनुसूचित जातियों में 43 प्रतिशत निर्धन हैं।

प्रश्न 4.
भारत में अंतर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के कारण बताइए।
उत्तर
भारत में प्रत्येक राज्य में निर्धनता अनुपात में भिन्नता पाई जाती है। कुछ राज्य अति निर्धन बने हुए हैं। तो कुछ राज्यों की निर्धनता अनुपात में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। जहाँ ओडिशा, बिहार, असम व त्रिपुरा आदि में निर्धनता अधिक है, वहीं, गोवा, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में निर्धनता में काफी कमी आई है। इससे अंतर्राज्यीय असमानताएँ बढ़ी हैं। इसके मुख्य कारण हैं

1. पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों में कृषि विकास दर काफी ऊँची रही है,
2. केरल ने मानव संसाधन के विकास पर काफी बल दिया है,
3. पश्चिम बंगाल ने भू-सुधार कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन में सफलता प्राप्त की है तथा
4. आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु में सार्वजनिक वितरण प्रणाली बेहद सफल रही है।

प्रश्न 5.
निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी रणनीति की चर्चा कीजिए।
उत्तर
निर्धनता उन्मूलन ही भारत की विकास रणनीति का प्रमुख उद्देश्य रहा है। सरकार की वर्तमान रणनीति मुख्यतः दो घटों पर आधारित है
1. आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन तथा
2. लक्षित निर्धनता विरोधी कार्यक्रम।
1. आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन- 1950 से 1980 ई० तक देश में प्रति व्यक्ति आय बहुत धीमी 
गति से बढ़ी (3.5 प्रतिशत)। किंतु 1980-90 ई० के दशक में यह 6 प्रतिशत तक पहुँच गई। दसवीं योजना में विकास लक्ष्य 8 प्रतिशत था। बारहवीं योजना में विकास लक्ष्य 9% रखा गया है। आर्थिक संवृद्धि की उच्च दर ने निर्धनता को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2. लक्षित निर्धनता विरोधी कार्यक्रम- इनके मुख्य कार्यक्रम निम्न प्रकार हैं-राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 ई०; राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम, 2004 ई; प्रधानमंत्री रोजगार योजना, 1993 ई०; ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम 1995 ई; स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, 1999 ई०; प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, 2000 ई०; अन्त्योदय अन्न योजना।। हाल के वर्षों में इन कार्यक्रमों के उचित पर्यवेक्षण पर बल दिया गया है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर संक्षेप में दीजिए
(क) मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?
(ख) निर्धनों में भी सबसे निर्धन कौन हैं?
(ग) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 ई० की मुख्यविशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर
(क) मानव निर्धनता से अभिप्राय मनुष्य का जीवन, स्वास्थ्य और कुशलता के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं की आपूर्ति न कर पाना है। परंतु आधुनिक समय में निर्धनता को निरक्षरता स्तर, कृपोषण के कारण रोग प्रतिरोध की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता तक न पहुँच पाने के संदर्भ में जाना जाता है।
(ख) निर्धनों में सबसे निर्धन अनुसूचित जनजातियाँ, नगरीय अनियमित मजदूर, ग्रामीण खेतिहर मजदूर 
तथा अनुसूचित जातियाँ आदि हैं।
(ग) महात्मा गांधी सृष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 ई० की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. यह अधिनियम देश के 200 जिलों में प्रत्येक परिवार को वर्ष में 100 दिन के सुनिश्चित रोजगार का प्रावधान करता है।
  2. धीरे-धीरे इस योजना का विस्तार 600 जिलों में किया जाएगा।
  3. प्रस्तावित रोजगारों का एक-तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित है।
  4. यदि आवेदक को 15 दिन के अंदर रोजगार नहीं दिया जा सका, तो वह दैनिक रोजगार भत्ते का हकदार होगा।

प्रश्न 7.
निर्धनता के विभिन्न आयामों को बताइए।
उत्तर
निर्धनता के अनेक आयाम निम्नलिखित हैं
(अ) आर्थिक आयाम

  1. भुखमरी,
  2. आश्रय का न होना,
  3. नियमित रोजगार की कमी।।

(ब) सामाजिक आयाम

  1. निरक्षरता स्तर,
  2. कुपोषण के कारण रोग-प्रतिरोधी क्षमता में कमी
  3. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी तथा
  4. सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता तक पहुँच में कमी।

प्रश्न 8.
भारत में निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित समूहों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
भारत में असुरक्षित समूहों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के परिवार, ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार, नगरीय | अनियमित मजदूर परिवार निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित हैं।
  2. इनमें निर्धनता के नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों का प्रतिशत भारत के सभी समूहों के लिए औसत प्रतिशत (26) से अधिक है। यह अनुसूचित जनजातियों में 51, नगरीय अनियमित मजदूरों में 50, भूमिहीनों व कृषि श्रमिकों में 50 तथा अनुसूचित जातियों में 43 प्रतिशत है।
  3. ये समूह आर्थिक व सामाजिक सुविधाओं से वंचित हैं।
  4. अनुसूचित जनजाति परिवारों को छोड़कर अन्य सभी तीनों समूहों में नब्बे के दशक में कमी आई है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्धनता को परिभाषित कीजिए। इसके मुख्य स्वरूप बताइए। निर्धनता का आकलन कैसे | किया जाता है?
उत्तर

निर्धनता का अर्थ एवं परिभाषा

निर्धनता का अर्थ उस स्थिति से है जिसमें समाज का एक भाग अपने जीवन की आधारभूत/न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में विफल रहता है। इन आधारभूत/न्यूनतम आवश्यकताओं में भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा तथा स्वास्थ्य संबंधी न्यूनतम मानवीय आवश्यकताएँ सम्मिलित होती हैं। इन न्यूनतम आवश्यकताओं के पूरा न होने पर मनुष्य को कष्ट होता है, इसके स्वास्थ्य का स्तर गिरता है, कार्यकुशलता का ह्रास होता है, उत्पादन की हानि होती है, आय कम होती है। इस प्रकार निर्धनता और उत्पादन के निम्न स्तर का दुश्चक्र बन जाता है।
परिभाषा– निर्धनता से अभिप्राय है-जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति की अयोग्यता।

निर्धनता के स्वरूप

निर्धनता को दो रूपों में समझाया जा सकता है
1. सापेक्ष निर्धनता– सापेक्ष निर्धनता से आशय विभिन्न वर्गों, प्रदेशों या दूसरे देशों की तुलना में 
पायी जाने वाली निर्धनता से है। जिस देश या वर्ग के लोगों का जीवन निर्वाह स्तर निम्न होता है, वे सापेक्ष रूप से निर्धन होते हैं।
उदाहरण- मामा अमेरिका की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय, 34,870 डॉलर और भारत की प्रति 
व्यक्ति वार्षिक आय 330 डॉलर है, तो भारत सापेक्षिक रूप से निर्धन है।

2. निरपेक्ष निर्धनत- निरपेक्ष निर्धनता से आशय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता की माप से है। भारत में निरपेक्ष निर्धनता का अनुमान लगाने के लिए निर्धनता रेखा’ की अवधारणों का प्रयोग किया जाता है।

निर्धनता रेखा- निर्धनता रेखा वह है जो उस प्रति व्यक्ति औसत मासिक आय को प्रकट करती है जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट कर सकते हैं।

भारत में निर्धनता रेखा- भारत में 2009-10 ई० की कीमतों पर ग्रामीण क्षेत्र में है 672.8 तथा शहरी क्षेत्रों में १ 859.6 प्रति मास उपभोग को निर्धनता रेखा माना गया है। भारत में उन व्यक्तियों को निरपेक्ष रूप से निर्धन माना गया है जिसका मासिक उपभोग व्यय इस रेखा से नीचे है।

निर्धनता का आकलन

भारत में निर्धनता के आकलन का आधार है-
1. कैलोरी आवश्यकता तथा
2. आय आधार।

1. कैलोरी आवश्यकता- भारत में निर्धनता रेखा का आकलन करते समय कैलोरी आवश्यकता को ध्यान में रखा जाता है। खाद्य वस्तुएँ; जैसे-अनाज, दालें, सब्जियाँ, दूध, तेल, चीनी आदि; मिलकर आवश्यक कैलोरी की पूर्ति करती हैं। आयु, लिंग, काम करने की प्रकृति आदि के आधार पर कैलोरी आवश्यकताएँ बदलती रहती हैं। भारत में स्वीकृत कैलोरी की आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक शारीरिक कार्य करते हैं, अतः ग्रामीण क्षेत्रों की कैलोरी आवश्यकता शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मानी गई है।

2. आय आधार- खाद्यान्न, चीनी व तेल आदि के रूप में इन कैलोरी आवश्यकताओं को खरीदने के लिए प्रति व्यक्ति मौद्रिक व्यय को, कीमतों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए, समय-समय पर संशोधित किया जाता है। निर्धनता रेखा का आकलन समय-समय पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण के माध्यम से किया जाता है। ये सर्वेक्षण एन०एस०एस०ओ० द्वारा समय-समय पर कराए जाते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में निर्धनता के क्या कारण हैं? निर्धनता दूर करने के उपाय भी बताइए। .
उत्तर
भारत में निर्धनता के कारण। भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है। अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की भाँति भारतीय अर्थव्यवस्था भी गरीबी के दुश्चक्र में फंसी है। भारत में निर्धनता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

(अ) आर्थिक कारण
1. अल्प विकास–
भारत में निर्धनता का सर्वप्रमुख कारण देश का अल्प विकास है। यद्यपि गत 56 वर्षों में हम योजनाबद्ध आर्थिक विकास के मार्ग पर अग्रसर हैं तथापि हमारे विकास की गति बहुत धीमी रही है। धीमे आर्थिक विकास के कारण राष्ट्रीय आय में वांछित वृद्धि नहीं हो सकती है।

2. आय तथा धन के वितरण में असमानता- भारत में आय व धन का वितरण असमान है। रिजर्व बैंक के एक अनुमान के अनुसार समस्त राष्ट्रीय आय का लगभग 30% भाग जनसंख्या के 10% धनी लोगों को प्राप्त होता है, जबकि जनसंख्या के 20% निर्धन वर्ग को राष्ट्रीय आय का केवल 8% भाग ही प्राप्त हो पाता है। ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहरी क्षेत्र में आय वितरण की असमानता और भी अधिक है।

3. अपर्याप्त विकास दर- भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर निम्न है। योजनाकाल में औसत विकास दर लगभग 3.5% रही है जिसने गरीबी की जड़ों को और अधिक गहरी कर दिया है।

4. जनसंख्या की उच्च वृद्धि-दर- भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर अर्थव्यवस्था की विकास दर की तुलना में ऊँची रही है। इसका दुष्परिणाम यह है कि प्रति व्यक्ति आय व उपभोग कम हो जाता है, अभावे पनपने लगते हैं, जीवन-स्तर में ह्रास होता है और निर्धनता व्यापक रूप धारण कर लेती

5. बेरोजगारी– देश में निरन्तर बढ़ती हुई बेरोजगारी ने निर्धनता को और अधिक व्यापक बनाया है। बेरोजगारी के बढ़ते रहने से निर्धनता अधिक संचयी रूप धारण करती जा रही है। वर्तमान में 3 | करोड़ से भी अधिक लोग बेरोजगार हैं।

6. प्रादेशिक असंतुलन तथा असमानताएँ- असंतुलित प्रादेशिक विकास के साथ-साथा निर्धनता का वितरण भी असमान हो गया है; उदाहरण के लिए उड़ीसा (ओडिशा) में 66.4%, त्रिपुरा में 59.7%, बिहार व मध्य प्रदेश में 57.5% जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रही है, जबकि पंजाब में केवल 15.1% तथा हरियाणा में 24.8% जनसंख्या निर्धनता के स्तर से नीचे

7. स्फीतिक दबाव- भारत में सामान्य कीमत स्तर बढ़ता रहा है। कीमतों के बढ़ने पर मुद्रा की क्रय-शक्ति कम हो जाती है और वास्तविक आय गिर जाती है। इसके फलस्वरूप समाज में निम्न तथा मध्यम आय वर्ग के लोगों की निर्धनता बढ़ जाती है।

8. पूँजी की कमी- भारत में प्रति व्यक्ति आय का स्तर निम्न है, जिससे बचत कर्म होती है और पूँजी-निर्माण दर भी कम रहती है। पूँजी की प्रति व्यक्ति निम्न उपलब्धता और पूँजी-निर्माण की निम्न दर ने देश में निर्धनता को जन्म दिया है।

9. औद्योगीकरण का निम्न स्तर- कृषि तथा विनिर्माणी क्षेत्र में परम्परागत उत्पादन तकनीकों ने प्रति व्यक्ति उत्पादकता के स्तर को नीचा बनाए रखा है, जिसके कारण गरीबी और अधिक गहने हुई है।

(ब) सामाजिक कारण

आर्थिक कारणों के अतिरिक्त सामाजिक कारण भी निर्धनता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुए हैं। भारत में विद्यमान सामाजिक ढाँचे में बँधे रहने के कारण लोग जान-बूझकर निर्धनता से चिपके हुए हैं। सामाजिक सम्मान एवं प्रतिष्ठा की झूठी महत्त्वाकांक्षा ने लोगों को अपव्ययी बना दिया है। जनसाधारण में व्याप्त निक्षरता, भाग्यवादिता, धार्मिक रूढ़िवादिता व अन्धविश्वास ने गरीबी को बढ़ाया है। जातिवाद एवं संयुक्त परिवार प्रणाली ने लोगों को अकर्मण्य बनाया है और उन्हें आधुनिक तकनीक का प्रयोग करने से रोका है और सामाजिक संस्थाओं ने श्रम को अगतिशील बनाकर उनकी प्रगति में बाधा डाली है।।

(स) राजनीतिक कारण
देश की लम्बी दासता ने अर्थव्यवस्था को गतिहीन बना दिया था। विदेशी शासकों ने देश में आधारभूत उद्योगों के विकास में कोई रुचि नहीं ली। उनकी ‘वि-औद्योगीकरण की नीति (Policy of Deindustrialization) ने देश के औद्योगिक आधार को कमजोर बना दिया। देश में सामन्तशाही प्रथा पनपी, जिसने कृषकों को भरपूर शोषण किया। उनकी नीति ने एक ओर जमींदारों को जन्म दिया और दूसरी ओर भूमिहीन किसानों को। फलत: उनके शोषण के साथ-साथ निर्धनता भी बढ़ती चली गई। निर्धनता दूर करने के उपाय भारत में निर्धनता दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं

1. विकास की गति को तीव्र किया जाए। इससे रोजगार के अधिक अवसर सृजित होंगे और निर्धनता में कमी आएगी।
2. आय एवं धन के वितरण की असमानताओं को कम किया जाए।
3. जनसंख्या की वृद्धि को नियंत्रित करने हेतु प्रयास किए जाएँ। इस संबंध में परिवार कल्याण 
कार्यकम्रमों को सफल बनाने के लिए भरसक प्रयास किए जाएँ।
4. कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए यथासंभव प्रयास किए जाएँ। |
5. कीमत स्थिरता के उत्पादन एवं वितरण व्यवस्था में सुधार किए जाएँ।
6. बेरोजगारी (अर्द्ध-बेरोजगारी, अदृश्य बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी व शिक्षित बेरोजगारी) को दूर | करने के लिए छोस कदम उठाए जाएँ।
7. उत्पादन तकनीक में आवश्यक परिवर्तन किए जाएँ।
8. न्यूनतम आवश्यर्कता कार्यक्रम’ को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।
9. देश के पिछड़े क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाए।
10. ‘स्वरोजगार के लिए सभी आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।

प्रश्न 3.
निर्धनता उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों की चर्चा कीजिए।
उत्तर

निर्धनता उन्मूलन के लिए भारत सरकार द्वारा किए गए उपाय

भारत में निर्धनता उन्मूलन हेतु सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है

पंचवर्षीय योजनाओं में निर्धनता उन्मूलन विकास कार्यक्रम

सन् 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ। इसके बाद ग्रामीण विकास एवं किसानों के हितों के लिए ठोस प्रयास किए गएँ। अनेक राज्यों में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किया गया, पंचायती राज व्यवस्था को नया जीवन दिया गया, सामुदायिक विकास कार्यक्रमों का तेजी से विस्तार किया गया तथा गाँवों में विद्युत, जल, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास तथा ग्रामीण औद्योगीकरण सहित अनेक परियोजनाएँ बनाई गईं। प्रथम तीन

पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान ग्रामीण विकास के लिए निम्नलिखित कार्यक्रमों को अपनाया गया

  1. सामुदायिक विकास कार्यक्रम, 1952 ई०,
  2. व्यावहारिक पोषाहार कार्यक्रम, 1958 ई०,
  3. पंचायती राज व्यवस्था, 1959 ई०,
  4. सघन कृषि जिला कार्यक्रम, 1960 ई०,
  5. पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम, 1962 ई०,
  6. जनजाति क्षेत्र का विकास कार्यक्रम, 1964 ई०,
  7. सघन कृषि क्षेत्र कायर्चक्रम, 1965 ई०,
  8. उन्नत बीज कार्यक्रम, 1965 ई० तथा
  9.  सघन क्षेत्र विकास कार्यक्रम, 1965 ई०॥

तीन वार्षिक योजनाओं तथा चौथी एवं पाँचवीं पंचवर्षीय योजनाओं में निम्नलिखित कार्यक्रमों को लागू किया गया

  1. लघु कृषक मास अभिकरण, 1969 ई०,
  2. सीमांत कृषक एवं कृषि श्रमिक अभिकरण, 1969 ई०,
  3. सूखाग्रत त्र कार्यक्रम, 1974-75 ई०,
  4. ग्रामीण निर्माण कार्यक्रम, 1973 ई०,
  5. ग्रामीण रोजगार हेतु क्रैश कार्यक्रम 1971 ई०,
  6. पायलट परियोजना, 1972 ई०,
  7. न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम, 1974 ई०,
  8. बीस सूत्रीय कार्यक्रम, 1975 ई०,
  9. काम के बदले अनाज कार्यक्रम 1977 ई०,
  10. अन्त्योदय योजना, 1977 ई०,
  11. मरुभूमि विकास कार्यक्रम, 1977 ई०,
  12. कमाण्ड एरिया विकास कार्यक्रम, 1978 तथा जिला उद्योग केंद्र, 1978 ई० तथा
  13. रोजगार गारण्टी कार्यक्रम, 1982 ई०।।

वर्ष 1978-79 से 2000 ई० तक की अवधि में ग्रामीण विकास कार्यक्रमों को एक नई दिशा प्राप्त हुई। इस अवधि में ग्रामीण विकास हेतु प्रमुख रूप से निम्नलिखित कार्यकम्रम आयोजित किए गए-

  1. एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम,
  2. ट्राइसेम कार्यक्रम,
  3. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम,
  4. राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम,
  5. विशेष पशुधन विकास कार्यक्रम,
  6. ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम,
  7. जवाहर रोजगार योजना,
  8. आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग हेतु नई स्वरोजगार योजना,
  9. नेहरू रोजगार योजना,
  10. अकोलग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम,
  11. रोजगार गारण्टी कार्यक्रम तथा
  12. मजदूरी रोजगार कार्यक्रम आदि।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए चल रही विभिन्न योजनाओं; समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम कार्यक्रम, ग्रामीण महिला एवं बाल विकास, ट्राइसेम, गंगा विकास योजना, दस लाख कुआँ योजना, ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजार पूर्ति योजना; को मिलाकर 1 अप्रैल, 1998 ई० से स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना आरम्भ की गई। ‘जवाहर रोजगार योजना’ को ‘ग्राम समृद्धि योजना में बदल दिया गया और इसका विकास क्षेत्र भी बढ़ाया गया। इन्दिरा आवास योजना की जगह समग्र आवास योजना प्रारम्भ की गई।

वर्ष 2000 के बाद की अवधि- ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जनवरी 2001 ई० में सूखा प्रभावित राज्यों के ग्रामीण इलाकों में काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम शुरू किया। नौकरी छूट जाने के कारण प्रभावित कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए 10 अक्टूबर, 2001 ई० को ‘आश्रय बीमा योजना शुरू की गई। 2002 ई० में ‘बीमा ग्राम योजना चालू की गई। 27 जनवरी, 2003 ई० को ‘हरियाली परियोजना का शुभारम्भ किया गया। 14 नवम्बर, 2004 ई० को प्रधनमंत्री ने काम के बदले अनाज कार्यक्रम का शुभारम्भ आन्ध्र प्रदेश के रंगा रेड्डी जिले में गाँव अलूर में किया। बजट 2005-06 के प्रस्तावों में इस योजना को राष्ट्रीय ग्रामीण गारण्टी रोजगार योजना में रूपांतरित करने का प्रावधान किया। गया।

कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाओं को संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-

1. प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (Prime Minister Rural Road Programme PMRRP)
यह योजना 25 दिसम्बर, 2000 ई० को शुरू हुई। देश के सभी गाँवों को पक्के सड़क मार्गों से जोड़ने की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 500 से अधिक जनसंख्या वाले सभी गाँवों को अच्छी बारहमासी सड़कों से जोड़ दिया जाएगा। इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य 
चल रहा है।

2. ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल हेतु प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (Prime Minister Gramodaya Yojana-PMGY)-इस कार्यक्रम के तहत राज्यों को धन जारी करने के लिए पेयजलापूर्ति विभाग, भारत सरकार को शीर्षस्थ विभाग है। ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम का क्रियान्वयन मिशन द्वारा 1999 ई० में जारी हुआ और अब तक दिए गए निर्देशों के मुताबिक होगा। इस योजना का उद्देश्य उन ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की व्यवस्था करना है, जहाँ पेयजल उपलब्ध नहीं है या आंशिक रूप से उपलब्ध है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल से लौह तत्त्वों, आर्सेनिक तथा फ्लुओराइड जैसे हानिकारक तत्त्वों को दूर करना हैं।

3. ग्रामीण पेयजल आपूर्ति- ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल सुविधाएँ ‘राज्य स्कन्ध न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के तहत प्रदान की जाती हैं। केन्द्र सरकार के प्रशासन हेतु राष्ट्रीय एजेण्डे में अगले पाँच वर्षों में सभी के लिए सुरक्षित पेयजल के प्रावधान की घोषणा की गई है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु बनाई गई रणनीति में निम्नलिखित मुद्दे सम्मिलित हैं– बचे हुए ग्रामीण क्षेत्रों तथा ऐसे क्षेत्रों को सुरक्षित पेयजल व्यवस्था शीघ्र प्रदान करना, जहाँ केवल कुछ ही लोगों को पेयजल की सुविधा प्राप्त है, हानिकारक तत्त्वों से प्रभावित क्षेत्रों में जल की गुणवत्ता संबंधी समस्याओं से लड़ना तथा जल गुणवत्ता प्रबन्धन व निगरानी व्यवस्थाओं को संस्थागत करना, तंत्र एवं स्रोत दोनों की निरंतरता को बढ़ाना तथा पेयजल सुविधासम्पन्न ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित पेयजल की निरंतर आपूर्ति को सुनिश्चित करना।

4. केन्द्र प्रायोजित ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (Central Rural Sanitation Programme-CRSP)- ग्रामीण स्वच्छता राज्य का विषय होने के कारण ग्रामीण स्वच्छता कार्यकम्रम राज्य क्षेत्र के न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के तहत राज्य सरकारों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। इस कार्यक्रम की शुरुआत 1986 ई० में हुई। 1 अप्रैल, 1999 ई० को इस कार्यक्रम की पुनर्संरचना की गई। पुनर्गठित केन्द्र प्रायोजित ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम को चरणबद्ध क्रम में निर्धनता निर्धारक तथ्य पर मुख्यत: आधारित प्रदेशवारे निधियों के आबंटन के सिद्धांत से हटाकर माँग प्रेरित’ पहले की ओर केन्द्रित किया जा रहा है। कार्यक्रम में उच्च अनुदान के स्थान पर निम्न अनुदान की ओर झुकाव रहेगा।

5. इन्दिरा आवास योजना (Indira Avas Yojana-IAY)- इन्दिरा आवास योजना वर्ष 1985-86 में RLEGP में एक उपभोक्ता कार्यक्रम के रूप में प्रारम्भ की गई थी, जिस द्देश्य अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के सबसे निर्धन लोगों तथा मुक्त ए गए बँधुआ श्रमिकों के लिए मकानों का निर्माण कराना है, जो उन्हें नि:शुल्क (Free of Cost) उपलब्ध कराए जाते हैं। वर्ष 1989-90 ई० में RLEGP के जवाहर रोजगार योजना में विलय के बाद इस योजना को भी जवाहर रोज़गार योजना (JRY) का अंग बना दिया गया था, किंतु 1996 ई० में इसे JRY से पृथक् कर एक स्वतंत्र योजना का रूप दे दिया गया। इस प्रकार 1 जनवरी, 1996 ई० से यह एक स्वतंत्र योजना के रूप में लागू है। इस योजना का लक्ष्य अत्यंत निर्धन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के, मुक्त बँधुआ मजदूरों और गैर-अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों की श्रेणियों में आने वाले ग्रामीण गरीबों को आवासीय इकाइयों के निर्माण और मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों को सुधारने में मदद देना है। जिसके लिए उन्हें सहायता अनुदान दिया जाता है।

6. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (Prime Minister Gramodaya Yojana- PMGY)-इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए आवासों की कमी को दूर करना तथा इन क्षेत्रों के पर्यावरण के स्वस्थ विकास में सहायता देना है। प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना की रूपरेखा, इन्दिरा आवास योजना पर आधारित है।
ग्रामीण आवासों के लिए ऋण एवं अनुदान की योजना (Credit Cum Subsidy Plan for Rural Housing)-यह योजना 1 अप्रैल, 1999 ई० से शुरू की गई थी। इस योजना में प्रत्येक पात्र परिवार को ३ 10,000 का अनुदारन तथा प्रति परिवार र 40,000 तक का ऋण दिया जाता है। स्वच्छ शौचालय और धुआँरहित चूल्हे ग्रामीणों के आवास के अभिन्न अंग बनाए गए हैं। यह योजना ऐसे ग्रामीण परिवारों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, जिनकी वार्षिक आमदनी १ 32,000 तक है। योजना के लिए धनराशि का बँटवारा केन्द्र और राज्यों के बीच 75 : 25 के अनुपात में होता है।

7. समग्र आवास योजना (Samagra Avas Yojana-SAY)-यह योजना 1 अप्रैल, 1999 ई० को शुरू हुई। इसका मुख्य उद्देश्य आवास, स्वच्छता, पेयजल की समग्रे व्यवस्था तथा ग्रामीण क्षेत्रों के सम्पूर्ण पर्यावरण के साथ-साथ लोगों के जीवन में गुणवत्तापूर्ण सुधार लाना है।।

8. ग्रामीण आवास और पर्यावरण विकास का अभिनव कार्यक्रम (New Programme for Rural Housing and Environment Development-PRHED)—यह योजना 1 अप्रैल, 1999 ई० से शुरू हुई। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में नवीन व प्रमाणित आवास प्रौद्योगिकियों, डिजाइनों और ग्रामीण सामग्रियों को बढ़ावा देना व उन्हे प्रचारित करना है।

9. ग्रामीण निर्माण केन्द्र (Rural Construction Centre-RCC)—इस कार्यक्रम की शुरुआत केरल में 1995 ई० में हुई। इसका उद्देश्य प्रशिक्षण तथा किफायती व पर्यावरण के अनुकूल निर्माण सामग्री के उत्पादन के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना, सूचना-प्रसार तथा कुशलता बढ़ाना है। ग्रामीण निर्माण केन्द्रों को प्रयोगशाला से जमीन तक प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण में सम्मिलित किया जा रहा है। ग्रामीण निर्माण केन्द्र राज्य सरकार, ग्रामीण विकास एजेन्सियों, निजी उद्यमियों, सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं आदि के द्वारा स्थापित किया जा सकता है। ग्रामीण निर्माण केन्द्र की स्थापना हेतु एकमुश्त र 15 लाख की सहायता प्रदान की जा सकती है। राष्ट्रीय आवास और पर्यावरण के लिए राष्ट्रीय मिशन (National Mission for National Housing and Environment)-इस मिशन की स्थापना ग्रामीण आवास क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई।

10. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (Swarna Jayanti Gram Swa-Rojgar Yojana-sGSY)- स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना गाँवों में रहने वाले निर्धनों के लिए स्वरोजगार की एक अकेली योजना है, जो 1 अप्रैल, 1999 ई० को प्रारम्भ की गई। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में भारी संख्या में कुटीर उद्योगों की स्थापना करना है। इस योजना में सहायता प्राप्त व्यक्ति स्वरोजगारी कहलाएँगे, लाभार्थी नहीं। इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक सहायता प्राप्त परिवार को धन उपलब्ध होने पर तीन वर्ष में निर्धनता-रेखा से ऊपर उठाना है। आगामी पाँच वर्षों में प्रत्येक विकास खण्ड में रहने वाले निर्धन ग्रामीणों में से 30% को इस योजना के दायरे में लाने का प्रस्ताव है। विकास खण्ड स्तर पर प्रमुख गतिविधियों का चयन पंचायत समितियों द्वारा किया जाएगा। यह योजना एक ऋण एवं अनुदान कार्यक्रम है। ऋण प्रमुख तत्त्व होगा, जबकि अनुदान केवल समर्थनकारी तत्त्व। अनुदान परियोजना लागत के 30% की एक समान दर पर होगी, किंतु इसकी अधिकतम सीमा १ 7,500 होगी। अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए यह सीमा 50% या अधिकतम १ 10,000 होगी। सिंचाई परियोजनाओं के लिए अनुदान की कोई अधिकतम सीमा नहीं होगी। योजना में दी जाने वाली धनराशि को केन्द्र और राज्य सरकारें 75: 25 के अनुपात में वहन करेंगी।

11. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (Jawahar Gram Samriddhi Yojana-JGSY)- यह योजना पहले की जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठित, सुव्यवस्थित और व्यापक स्वरूप है। 1 अप्रैल; 1999 ई० को प्रारम्भ की गई इस योजना का उद्देश्य गाँव में रहने वाले निर्धनों का जीवन-स्तर सुधारना और उन्हें लाभप्रद रोजगार के अवसर प्रदान करना है। इस योजना को दिल्ली और चण्डीगढ़ को छोड़ समग्र देश में सभी ग्राम पंचायतों में लागू किया गया है। योजना में खर्च की जाने वाली राशि 75: 25 के अनुपात में केन्द्र व राज्य सरकारें वहन करेंगी।

12. जिला ग्रामीण विकास एजेन्सी प्रशासन (District Rural Development Agency-DRDA)- प्रशासनिक खर्च के संबंध में विभिन्न कार्यक्रमों में एकरूपता नहीं होने के कारण केन्द्र द्वारा प्रायोजित एक नई जिला ग्रामीण एजेन्सी (DRDA) प्रशासन योजना 1 अप्रैल, 1999 ई० से शुरू की गई। इस योजना का उद्देश्य जिला ग्रामीण विकास एजेन्सियों को सशक्त बनाना तथा इन्हें इनके क्रियान्वयन के लिए अधिक व्यावसायिक बनाना है।

13. सुनिश्चित रोजगार योजना (Sunishchit Rojgar Yojana-SRY)- वर्ष 1997-98 में इस योजना को देश की सभी पंचायतों में लागू कर दिया गया। इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण गरीबों को भीषण मन्दी के दिनों में श्रम कार्यों द्वारा अतिरिक्त मजदूरी रोजगार अवसरों को प्रदान करना है। यह योजना उन सभी निर्धनों के लिए है। जिनको मजदूरी रोजगार की आवश्यकता है। योजना के अंतर्गत संसाधनों का बंटवारा केन्द्र और राज्य सरकारें क्रमशः 25 : 25 के अनुपात में वहन करेंगी।

14. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme NSAP)—यह कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 ई० से लागू किया गया। इस कार्यक्रम के तीन निम्नलिखित प्रमुख घटक थे

  1. राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना,
  2. राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना,
  3. राष्ट्रीय प्रसव | लाभ योजना। उपर्युक्त सभी योजनाएँ वृद्धावस्था परिवार के कमाऊ सदस्य की मृत्यु तथा मातृत्व के दौरान सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती हैं।

1. राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत निर्धनता रेखा से नीचे वर्ग के 65 वर्ष अथवाउससे अधिक आयु वाले आवेदक को १ 75 प्रति माह की राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन दिए जाने का प्रावधान है।

2.राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना के अंतर्गत परिवार के मुख्य आय अर्जक (महिला अथवापुरुष) की सामान्य मृत्यु होने पर (18 वर्ष से अधिक व 65 वर्ष से कम) निर्धन परिवार को १ 5,000 की एकमुश्त राशि उत्तरजीवी लाभ के रूप में दी जाती है। दुर्घटना से मृत्यु की स्थिति में है 10,000 की सहायता दी जाती है।

3. राष्ट्रीय प्रसव लाभ योजना के अंतर्गत निर्धन परिवारों की 19 वर्ष या उससे अधिक आयु की महिलाओं के लिए पहले दासे बच्चों के जनम पर प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर मातृत्व देखभाल हेतु १ 500 की वित्तीय सहायता दी जाती है। यह कार्यक्रम 100% केन्द्र पोषित कार्यक्रम है, जो पंचायत/नगरपालिका जैसी स्थानीय संस्थाओं द्वारा क्रियान्वित किया जाता है।

15. अन्नपूर्णा योजना Annapurna Yojana)- यह योजना निर्धन एवं बेसहारा वयोवृद्ध नागरिकोंको नि:शुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा मार्च 1991 ई० में प्रारम्भ की गई। 19 मार्च, 1999 ई० को प्रधानमंत्री द्वारा गाजियाबाद जिले के सिखेड़ा गाँव से इस योजना को प्रारम्भ किया गया था। अन्नपूर्णा योजना के तहत पात्र वयोवृद्ध नागरिकों को प्रतिमाह 10 किग्रा अनाज निःशुल्क उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है।

16. कुटीर ज्योति कार्यक्रम (Kutir Jyoti Programme-KJP)–हरिजन और आदिवासीपरिवारों सहित निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार के लिए भारत सरकार ने 1988-89 ई० में ‘कुटीर ज्योति’ कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को एक बत्ती का विद्युत कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए ३ 400 की सरकारी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।

17. लोक कार्यक्रम एवं ग्रामीण प्रौद्योगिकी विकास परिषद् (Council for Advancement of People’s Action and Rural Technology : CAPART)-इसका गठन 1 सितम्बर, 1986 को किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण समृद्धि के लिए परियोजनाओं के क्रियान्वयन में स्वैच्छिक कार्य को प्रोत्साहन देना और उनमें मदद करना है। कपार्ट की नौ प्रादेशिक समितियाँ/प्रादेशिक केन्द्र हैं। प्रादेशिक समितियों को अपने-अपने प्रदेशों में स्वयंसेवी संस्थाओं की है 20 लाख तक के परिव्यय वाली परियोजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार प्राप्त है।

18. एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम (Integrated Waste Land Development | Programme–IWLDP)–यह कार्यक्रम वर्ष 1989-90 से चलाया जा रहा है। यह पूर्णतया केन्द्र प्रायोजित कार्यकम्रम है। इस कार्यक्रम से बंजर भूमि विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उत्पन्न करने में भी मदद मिलती है।

19.निवेश संवर्द्धन योजना (Investment Promotion Plan–IPP)-गैर-वन बंजर भूमि के विकास के लिए संसाधनों को एकत्र करने में निगमित क्षेत्र तथा वित्तीय संस्थानों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1994-95 में निवेश संवर्द्धन योजना शुरू की गई थी। इस योजना के तहत सामान्य वर्ग के लिए केन्द्रीय संवर्द्धन अंशदान/सब्सिडी १ 25 लाख या कृषि आधारित विकास परियोजना लागत को 25 प्रतिशत, जो भी कम हो, तक सीमित हैं; बशर्ते परियोजना में संवर्द्धक का अंशदान परियोजना लागत के 25 प्रतिशत से कम न हो। लघु कृषकों के लिए अनुदान की सीमा 30 प्रतिशत है तथा सीमांत कृषकों व अनुसूचित जाति/जनजाति के कृषकों के लिए कृषि-आधारित विकास गतिविधियों की परियोजना लागत का 50 प्रतिशत है।

20. प्रौद्योगिकी विकास, विस्तार एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम (Technological Development Expansion and Training Programme-TDETP)–वर्ष 1993-94 में बंजर भूमि के सुधार द्वारा खाद्य, ईंधन, लकड़ी, चारा आदि के निरंतर उत्पादन हेतु उपयुक्त प्रौद्योगिकी विकास के लिए एक केन्द्रीय उपक्रम योजना–प्रौद्योगिकी विकास, विस्तार एवं प्रशिक्षण योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, जिला ग्रामीण विकास एजेन्सियों तथा शासकीय संस्थानों, जिनके पास पर्याप्त संस्थागत ढाँचा तथा संगठनात्मक समर्थन हो, के जरिए लागू किया जा रहा है। निजी कृषकों/निगमित निकायों की बंजर भूमि पर लागू परियोजनाओं के मामले में परियोजना लागत को 60:40 के अनुपात में भू-संसाधन विभाग तथा हितग्राहियों के मध्य बॉटना आवश्यक है।

21. सूखा सम्भावित क्षेत्र कार्यक्रम (Drought-prone Area Development Programme DADP)-सूखे की सम्भावना वाले चुनिन्दा क्षेत्रों में यह राष्ट्रीय कार्यक्रम 1973 ई० में प्रारम्भ किया गया था। कार्यक्रम का उद्देश्य इन क्षेत्रों में भूमि, जल व अन्य प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित विकास करके पर्यावरण संतुलन को बहाल करना है। कार्यक्रम हेतु वित्त की व्यवस्था केन्द्र व संबंधित राज्य द्वारा 50: 50 के अनुपात में की जाती है। वर्तमान में यह कार्यक्रम 13 राज्यों के 55 जिलों के 947 ब्लॉकों में चलाया जा रहा है तथा इसके अधीन कुल क्षेत्र 41 लाख हेक्टेयर है।

22. मरुस्थल विकास कार्यक्रम (Oasis Development Programme-ODP)-मरुभूमि को बढ़ने से रोकने, मरुभूमि में सूखे के प्रभाव को समाप्त करने, प्रभावित क्षेत्रों में पारिस्थितिक संतुलन बहाल करने व इन क्षेत्रों में भूमि की उत्पादकता तथा जल संसाधनों को बढ़ाने के उद्देश्य से मरुस्थले विकास कार्यक्रम चुने हुए क्षेत्रों में 1977-78 ई० में प्रारम्भ किया गया था। यह कार्यक्रम शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता के आधार पर क्रियान्वित किया जा रहा है।

23. महात्मामयी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा)- गरीबी को प्रभावी तरीके से दूर करने के लिए मजदूरी मिलने वाले रोजगार कार्यक्रमों को तैयार करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम बनाया। अपने वैधानिक ढाँचे और अधिकार आधारित दृष्टिकोण की वजह से मनरेगा का यह कार्यक्रम बेरोजगारों को रोजगार देने और पहले से चले आ रहे कार्यक्रमों का एक प्रतिमान बन गया है। 7 सितम्बर, 2005 को अधिसूचित मनरेगा कार्यक्रम का उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का गारण्टीशुदा अकुशल मजदूरी/रोजगार उपलब्ध कराना है। 2 फरवरी, 2006 से लागू इस अधिनियम के अंतर्गत पहले चरण में 200 जिलों को शामिल किया गया और 2007-08 में इसे बढ़ाकर 130 अतिरिक्त जिले शामिल कर लिए गए। अन्य शेष जिलों को एक अप्रैल 2008 को अधिसूचना जारी करके अधिनियम में शामिल कर लिया गया।

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