UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण-एक समीक्षा) are part of UP Board Solutions for Class 11 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण-एक समीक्षा).
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Economics |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण-एक समीक्षा) |
Number of Questions Solved | 57 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण-एक समीक्षा)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
भारत में आर्थिक सुधार क्यों आरम्भ किए गए?
उत्तर
वर्ष 1991 में भारत को विदेशी ऋणों के मामले में संकट का सामना करना पड़ा। सरकार अपने विदेशी ऋण के भुगतान करने की स्थिति में नहीं थी। पेट्रोल आदि आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए सामान्य रूप से रखा गया विदेशी मुद्रा भण्डार पन्द्रह दिनों के लिए आवश्यक आयात का भुगतान करने योग्य भी नहीं बचा था। इस संकट को आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ने और भी गहन बना दिया था। इन सभी कारणों से आर्थिक सुधार आरम्भ किए गए।
प्रश्न 2.
विश्व व्यापार संगठन के कितने सदस्य देश हैं?
उत्तर
विश्व व्यापार संगठन के 160 सदस्य देश हैं।
प्रश्न 3.
भारतीय रिजर्व बैंक का सबसे प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर
भारतीय रिजर्व बैंक का प्रमुख कार्य मौद्रिक नीति बनाना और उसे लागू करना है।
प्रश्न 4.
रिजर्व बैंक व्यावसायिक बैंकों पर किस प्रकार नियन्त्रण रखता है?
उत्तर
भारत में विसीय क्षेत्र का नियन्त्रण रिजर्व बैंक का दायित्व है। रिजर्व बैंक के विभिन्न नियम और कसौटियों के माध्यम से ही बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों के कार्यों का नियमन होता है। भारतीय रिजर्व बैंक निम्नलिखित प्रकार से व्यावसायिक बैंकों पर नियन्त्रण रखता है
- कोई बैंक अपने पास कितनी मुद्रा जमा रख सकता है। |
- यह ब्याज की दरों को निर्धारित करता है।
- विभिन्न क्षेत्रों को उधार देने की प्रकृति इत्यादि को भी यक्लक करता है।
प्रश्न 5.
रुपयों के अवमूल्यन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
विदेशी विनिमय बाजार में विदेशी मुद्रा से तुलना में रुपये के मूल्य को घटाने को रुपये का अवमूल्यन कहा जाता है।
प्रश्न 6.
इनमें भेद करें
(क) युक्तियुक्त और अल्पांश विक्रय।
(ख) द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार।
(ग) प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क अवरोधक।
उत्तर
(क) युक्तियुक्त और अल्पांश विक्रय
युक्तियुक्त विक्रय राज्य के स्वामित्व वाली इकाइयों में कमी करने को युक्तियुक्त विक्रय कहते हैं। अल्पांश विक्रय-इसके अन्तर्गत वर्तमान सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के एक हिस्से को निजी क्षेत्र को बेच दिया जाता है।
(ख) द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार
द्विपक्षीय व्यापार इसमें दो देशों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में समान अवसर प्राप्त होते हैं।
बहुपक्षीय व्यापार- बहुपक्षीय व्यापार में सभी देशों को विश्व व्यापार में समान अवसर प्राप्त होते, हैं। इसमें विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य ऐसी नियम आधारित व्यवस्था की स्थापना है, जिसमें कोई देश मनमाने ढंग से व्यापार के मार्ग में बाधाएँ खड़ी न कर पाए। इसका उद्देश्य सेवाओं का सृजन और व्यापार को प्रोत्साहन देना भी है ताकि विश्व के संसाधनों का इष्टतम प्रयोग हो सके।
(ग) प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क अवरोधक
प्रशुल्क अवरोधक- प्रशुल्क, आयातित वस्तुओं पर लगाया गया कर है जिसके कारण आयातित वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं और इससे विदेशी प्रतिस्पर्धा से घरेलू उद्योगों की रक्षा होती है। आयात पर कठोर नियन्त्रण एवं ऊँचे प्रशुल्क द्वारा ये अवरोधक लगाए जाते हैं। इसमें सीमा कर तथा
आयात- निर्यात करों को शामिल किया जाता है। अप्रशुल्क अवरोधक-अप्रशुल्क अवरोधक (जैसे कोटा एवं लाइसेंस) में वस्तुओं की मात्रा निर्दिष्ट की जाती है। ये अवरोधक भी परिमाणात्मक अवरोधक कहलाते हैं।
प्रश्न 7.
प्रशुल्क क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर
देशी उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए प्रशुल्क लगाए जाते हैं।
प्रश्न 8.
परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को क्या अर्थ होता है?
उत्तर
देशी उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से, हमारे नीति-निर्धारकों ने परिमाणात्मक उपाय लागू किए। इसके लिए आयात पर कठोर नियन्त्रणों एवं प्रशुल्कों का प्रयोग होता था। परिमाणात्मक उपाय प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क दोनों प्रकार से किए जाते हैं। कोटा, लाइसेंस, प्रशुल्क आदि परिमाणात्मक प्रतिबन्धों के अन्तर्गत आते हैं।
प्रश्न 9.
‘लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? क्यों?
उत्तर
निजीकरण से तात्पर्य है—किसी सार्वजनिक उपक्रम के स्वामित्व या प्रबन्धन का सरकार द्वारा त्याग। किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा जनसामान्य को इक्विटी की बिक्री के माध्यम से निजीकरण को विनिवेश कहा जाता है। निजीकरण का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यक्षमता को बढ़ाना है। परन्तु निजीकरण से हमेशा उद्योग क्षेत्र की कार्यक्षमता में बढ़ोतरी नहीं होती है, लेकिन इससे सार्वजनिक क्षेत्र का वित्तीय भार सरकार पर कुछ कम हो जाता है। हमारे विचार से लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक व सामाजिक कल्याण करने वाली सार्वजनिक इकाइयों का निजीकरण बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 10.
क्या आपके विचार में बाह्य प्रापण भारत के लिए अच्छा है? विकसित देशों में इसका विरोध क्यों हो रहा है?
उत्तर
बाह्य प्रापण वैश्वीकरण की प्रक्रिया का एक विशिष्ट परिणाम है। इसमें कम्पनियाँ किसी बाहरी स्रोत (संस्था) से नियमित सेवाएँ प्राप्त करती हैं; जैसे-कानूनी सलाह, कम्प्यूटर सेवा, विज्ञापन, सुरक्षा आदि। संचार के माध्यमों में आई क्रान्ति, विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार, ने अब इन सेवाओं को ही एक विशिष्ट आर्थिक गतिविधि का स्वरूप प्रदान कर दिया है।
आजकल बहुत सारी बाहरी कम्पनियाँ ध्वनि आधारित व्यावसायिक प्रक्रिया प्रतिपादन, अभिलेखांकन, लेखांकन, बैंक सेवाएँ, संगीत की रिकार्डिंग, फिल्म सम्पादन, शिक्षण कार्य आदि सेवाएँ भारत से प्राप्त कर रही हैं। अब तो अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ-साथ अनेक छोटी-बड़ी कम्पनियाँ भी भारत से ये सेवाएँ प्राप्त करने लगी हैं क्योंकि भारत में इस तरह के कार्य बहुत कम लागत में और उचित रूप से निष्पादित हो जाते हैं। इस कार्य से भारत विकसित देशों से काफी विदेशी मुद्रा पारिश्रमिक के रूप में अर्जित कर रहा है। विकसित देश बाह्य प्रापण का इसीलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि भारत ने बाह्य प्रापण के व्यापर में अच्छी प्रगति की है और विकसित देशों को इस बात का डर है कि कहीं उनका देश उक्त सेवाओं पर भारत पर निर्भर न हो जाए।
प्रश्न 11.
भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिसके कारण यह विश्व का बाह्य प्रापण केन्द्र बन रहा है। ये अनुकूल परिस्थितियाँ क्या हैं?
उत्तर
भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिसके कारण यह विश्व का बाह्य प्रापण केन्द्र बन रहा है। ये विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं
- भारत में इस तरह के कार्य कम लागत में व उचित रूप से निष्पादित हो जाते हैं क्योंकि यहाँ | मजदूरी दर विकसित देशों की तुलना में काफी कम है।
- भारत में जनसंख्या आधिक्य के कारण कुशल श्रमिक बहुत हैं जिसके कारण उक्त सेवाओं में कुशलता एवं शुद्धता का मानक भी भारत रख सकता है।
प्रश्न 12.
क्या भारत सरकार की नवरत्न नीति सार्वजनिक उपक्रमों के निष्पादन को सुधारने में सहायक रही है? कैसे? ।
उत्तर
1996 ई० में नवउदारवादी वातावरण में सार्वजनिक उपक्रमों की कुशलता बढ़ाने, उनके प्रबन्धन में व्यवसायीकरण लाने और उनकी स्पर्धा क्षमता में प्रभावी सुधार लाने के लिए सरकार ने नौ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का चयन कर उन्हें नवरत्न घोषित कर दिया। ये कम्पनियाँ हैं—IOCL, BPCL, HPCL,ONGC, SAIL, IPCL, BHEL, NTPC और BSNL. नवरत्न’ नाम से अलंकरण के बाद इन कम्पनियों के निष्पादन में निश्चय ही सुधार आया है। स्वायत्तता मिलने से ये उपक्रम वित्तीय बाजार से स्वयं संसाधन जुटाने एवं विश्व बाजार में अपना विस्तार करने में सफल होते जा रहे हैं।
प्रश्न 13.
सेवा क्षेत्रंक के तीव्र विकास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण कौन-से रहे हैं?
उत्तर
सेवा क्षेत्रक के तीव्र विकास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण इस प्रकार हैं
- भारत में मजदूरी की दरें विकसित देशों की तुलना में काफी कम हैं।
- जनसंख्या आधिक्य के कारण भारत में कुशल श्रमिकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
- निम्न मजदूरी-दरें व कुशल श्रम शक्ति की उपलब्धता के कारण बाह्य प्रापण के जरिए भारत विश्व स्तर पर उल्लेखनीय कार्य कर रहा है। यह भी सेवा क्षेत्र के तीव्र विकास का कारण है।
प्रश्न 14.
सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ लगता है। क्यों?
उत्तर
सुधार कार्यों से कृषि को कोई लाभ नहीं हो पाया है और कृषि की संवृद्धि दर कम होती जा रही है। इस पर विचार के लिए हम निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार कर सकते हैं
- कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक व्यय; जैसे—सिंचाई, बिजली, सड़क-निर्माण और शोध-प्रसार आदि पर व्यय में काफी कमी आई है।
- उर्वरक सहायिकी में कमी ने उत्पादन लागतों को बढ़ा दिया है।
- विश्व व्यापार संघ की स्थापना के कारण कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क में कटौती, न्यूनतम समर्थन मूल्यों की समाप्ति का विचार है जिस कारण देशी किसानों को बाहरी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
- आन्तरिक उपभोग की खाद्यान्न फसलों के स्थान पर निर्यात के लिए नकदी फसलों पर बल दिया जा रहा है। इससे देश में खाद्यान्नों की कीमतों पर दबाव बढ़ रहा है।
- प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता एवं गुणवत्ता घट रही है।
- सरकार का ध्यान कृषि से उद्योग की ओर परिवर्तित हुआ है।
प्रश्न 15.
सुधार काल में औद्योगिक क्षेत्रक के निराशाजनक निष्पादन के क्या कारण रहे हैं?
उत्तर
आर्थिक सुधारों का औद्योगिक क्षेत्र के विकास पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ा है। यह प्रभाव अग्रलिखित है
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने पदार्थों की बिक्री के लिए भारतीय बाजारों का शोषण कर रही हैं और घरेलू उत्पादक अपनी कमजोर प्रतियोगी शक्ति के कारण पीछे की ओर खिसकते जा रहे हैं।
- औद्योगिक उत्पादनका निष्पादन सन्तोषजनक नहीं रहा। यह अस्सी के दशक के निष्पादन स्तर से भी नीचा था।
प्रश्न 16.
सामाजिक न्यायं और जन-कल्याण के परिप्रेक्ष्य में भारत के आर्थिक सुधारों पर चर्चा करें।
उत्तर
उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों के माध्यम से वैश्वीकरण के भारत सहित अनेक देशों पर कुछ सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि वैश्वीकरण विश्व बाजारों में बेहतर पहुँच तथा तकनीकी उन्नयन द्वारा विकासशील देशों के बडे उद्योगों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण बनने का अवसर प्रदान कर रहा है। दूसरी ओर आलोचकों का विचार है कि वैश्वीकरण ने विकसित देशों को विकासशील देशों के आन्तरिक बाजार पर कब्जा करने का भरपूर अवसर प्रदान किया है। इसके कारण गरीब देशवासियों का कल्याण ही नहीं वरन् उनकी पहचान भी तिरे में पड़ गई है। विभिन्न देशों और जनसमुदायों के बीच की खाई और विस्तृत हो रही है। आर्थिक सुधारों ने केवल उच्च आय वर्ग की आमदनी और उपभोग स्तर का उन्नयन किया है तथा सारी संवृद्धि कुछ गिने-चुने क्षेत्रों; जैसे-दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त, मनोरंजन आदि तक सीमित रही है। कृषि विनिर्माण जैसे आधारभूत क्षेत्रक, जो देश के करोड़ों लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं, इन सुधारों से लाभान्वित नहीं हो पाए हैं।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उदारीकरण का उपाय नहीं है-
(क) लाईसेन्स अथवा पंजीकरण की समाप्ति
(ख) विस्खार तथा उत्पादन की स्वतन्त्रता
(ग) सार्वजनिक क्षेत्र को सीमित करना
(घ) लघु उद्योगों की निवेश सीमा में वृद्धि
उत्तर
(ग) सार्वजनिक क्षेत्र को सीमित करना
प्रश्न 2.
GATT नामक एक बहुपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए
(क) 30 नवम्बर, 1947 को
(ख) 30 अक्टूबर, 1947 को
(ग) 30 सितम्बर, 1950 को
(घ) 30 जनवरी, 1950 को
उत्तर
(ख) 30 अक्टूबर, 1947 को
प्रश्न 3.
विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य है
(क) वस्तुओं के उत्पादन एवं व्यापार की प्रसार करना
(ख) सेवाओं के उत्पादन एवं व्यापार का प्रसार करना
(ग) विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 4.
भारत में औद्योगिक नीति की प्रक्रिया कब से अपनायी जा रही है?
(क) सन् 1991 ई० से
(ख) सन् 1992 ई० से
(ग) सन् 1993 ई० से
(घ) सन् 1994 ई० से
उत्तर
(क) सन् 1991 ई० से ।
प्रश्न 5.
देश में विदेशी निवेश के संरक्षण के लिए भारत के बहुपक्षीय निवेश गारण्टी एजेन्सी (MIGA) प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर कब किए? (क) 14 अप्रैल, 1991 ई० को ।
(ख) 14 अप्रैल, 1992 ई० को
(ग) 13 अप्रैल, 1992 ई० को
(घ) 13 अप्रैल, 1991 ई० को ।
उत्तर
(ग) 13 अप्रैल, 1992 ई० को ||
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में अपनाई गई मिश्रित अर्थव्यवस्था की क्या विशेष बात थी?
उत्तर
भारत में अपनाई गई मिश्रित अर्थव्यवस्था में बाजार अर्थव्यवस्था की विशेषताओं के साथ नियोजित अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ भी पायी जाती थीं।
प्रश्न 2.
वर्ष 1991 में भारत को किन संकटों का सामना करना पड़ा?
उत्तर
वर्ष 1991 में भारत को निम्नलिखित संकटों का सामना करना पड़ा
- विदेशी मुद्रा कोष में कमी के कारण उत्पन्न आयातों का भुगतान करने का संकट,
- मूल्यों में तीव्र वृद्धि,
- आयातों में वृद्धि।
प्रश्न 3.
वित्तीय संकट का उद्गम स्रोत क्या था?
उत्तर
वित्तीय संकट का वास्तविक उद्गम स्रोत 1980 ई० के दशक में अर्थव्यवस्था में अकुशल प्रबन्धन था।।
प्रश्न 4.
सरकार को अपने राजस्व से अधिक व्यय क्यों करना पड़ा? ।
उत्तर
गरीबी, बेरोजगारी और जनसंख्या विस्फोट के कारण सरकार को अपने राजस्व से अधिक व्यय करना पड़ा।
प्रश्न 5.
किन्हीं दो अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर
1. अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक) |
2. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष।।
प्रश्न 6.
भारत को ऋण देने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने क्या शर्ते रखीं?
उत्तर
भारत को ऋण देने के लिए सरकार ने निम्नलिखित शर्ते रखीं
1. सरकार उदारीकरण करेगी,
2. निजी क्षेत्र पर लगे प्रतिबन्धों को हल्लाएगी तथा
3. विदेशी व्यापार पर लगे प्रतिबन्ध कम करेगी।
प्रश्न 7.
नई आर्थिक नीति का क्या उद्देश्य था?
उत्तर
नई आर्थिक नीति का उद्देश्य था-अर्थव्यवस्था में अधिक स्पर्धापूर्ण व्यावसायिक वातावरण की रचना करना तथा फर्मों के व्यापार में प्रवेश करने तथा उनकी संवृद्धि के मार्ग के आने वाली बाधाओं को दूर करछा।
प्रश्न 8.
स्थायित्वकारी उपाय के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर
1. भुगतान सन्तुलन में आ गई कुछ त्रुटियों को दूर करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भण्डार (बनाना)।
2. मुद्रा स्फीति को नियन्त्रित करना।
प्रश्न 9.
संरचनात्मक सुधार उपाय अपनाने के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर
1. अर्थव्यवस्था की कुशलता को सुधारना,
2. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों की अनम्यताओं (कठोरता) को दूर कर भारत की अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा-क्षमता को संवर्धित करना।
प्रश्न 10.
उदारीकरण की नीति क्या थी?
उत्तर
उदारीकरण की नीति आर्थिक गतिविधियों पर लगे प्रतिबन्धों को दूर करे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को मुक्त करने की नीति थी।
प्रश्न 11.
औद्योगिक क्षेत्र के विनियमीकरण की मुख्य बातें क्या हैं?
उत्तर
1. केवल 6 उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों के लिए लाइसेन्स व्यवस्था समाप्त कर दी गई।
2. सार्वजनिक क्षेत्रक के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या केवल 3 रखी गई।
3. लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित अनेक वस्तुओं को अनारक्षित श्रेणी में रख दिया गया।
प्रश्न 12.
वित्तीयक क्षेत्रक में कौन-कौन से सुधार किए गए हैं?
उत्तर
1. भारतीय और विदेशी निजी बैंकों को बैंकिंग क्षेत्र में पदार्पण की अनुमति दी गई।
2. विदेशी निवेश संस्थाओं तथा व्यापारी बैंक, म्युचुअल फण्ड और पेंशन कोष आदि को भारतीय वित्तीय बाजार में प्रवेश करने की अनुमति दी गई है।
प्रश्न 13.
कर-व्यवस्था में क्या सुधार किए गए?
उत्तर
1. व्यक्तिगत आय-कर पर लगाए गए करों की दरों में निरन्तर कमी की गई है।
2. निगम कर की दरों को धीरे-धीरे कम किया जा रहा है।
3. अप्रत्यक्ष करों की दरों में कमी की गई है तथा कर-संग्रह प्रक्रिया को सरल बनाया गया है।
प्रश्न 14.
विदेशी विनिमय के क्षेत्र में क्या सुधार किए गए हैं?
उत्तर
1. अन्य देशों की तुलना में रुपये का अवमूल्यन किया गया है।
2. विनिमय दरों का निर्धारण बाजार शक्तियों द्वारा ही किया जा रहा है।
प्रश्न 15.
व्यापार नीति में सुधार के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर
1. आयात और निर्यात पर परिमाणात्मक प्रतिबन्धों की समाप्ति।
2. प्रशुल्क दरों में कटौती तथा
3. आयातों के लिए लाइसेन्स प्रक्रिया की समाप्ति।
प्रश्न 16.
सरकार के 1996 ई० में नौ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को नवरत्न घोषित करने के क्या उद्देश्य थे? ”
उत्तर
1. सार्वजनिक उपक्रमों की कुशलता में वृद्धि करना,
2. उनके प्रबन्धन में व्यवसायीकरण लाना तथा
3. उनकी स्पर्धा क्षमता में प्रभावी सुधार करना।।
प्रश्न 17.
निजीकरण से क्या आशय है?
उत्तर
निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों के स्वामित्व एवं प्रबन्ध को निजी स्वामित्व, प्रबन्ध एवं संचालन में अन्तरित किया जाता है।
प्रश्न 18.
विनिवेश से क्या आशय है?
उत्तर
किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा जनसामान्य को इक्विटी की बिक्री के माध्यम से निजीकरण को विनिवेश कहा जाता है।
प्रश्न 19.
विनिवेश के क्या उददेश्य थे?
उत्तर
1. वित्तीय अनुशासन एवं आधुनिकीकरण,
2. निजी पूँजी और प्रबन्ध क्षमताओं का उपयोग,
3. सार्वजनिक उद्यमों के निष्पादन में सुधार।।
प्रश्न 20.
वैश्वीकरण से क्या आशय है?
उत्तर
वैश्वीकरण उदारीकरण का एक विस्तृत रूप है। इसका मुख्य क्षेत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और शेष विश्व के मध्य नियन्त्रण व प्रतिबन्ध रहित सम्बन्धों का विकास है।
प्रश्न 21.
बाह्य प्रापण का क्या अर्थ है?
उत्तर
बाह्य प्रापण का अर्थ है-कम्पनियों द्वारा किसी बाह्य स्रोत से नियमित सेवाएँ प्राप्त करना।
प्रश्न 22.
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कब और क्यों की गई?
उत्तर
विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना 1995 ई० में निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की गई
1. व्यापार बाधाओं को समाप्त करना,
2. सेवाओं के सृजन और व्यापार को प्रोत्साहन देना,
3. पर्यावरण संरक्षण।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आर्थिक सुधारों से क्या आशय है? भारत में आर्थिक सुधारों को लागू करने के उद्देश्य बताइए।
उत्तर
आर्थिक सुधार का अर्थ– आर्थिक सुधारों से अभिप्राय उन सभी उपायों से है जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था को अधिक कुशल एवं प्रतियोगी बनाना है।
आर्थिक सुधारों के उद्देश्य- भारत में आर्थिक सुधारों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित रहे हैं|
- अवसंरचना के विकास द्वारा अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना।।
- आर्थिक विकास एवं आर्थिक स्वामित्व के मध्य उचित समन्वय स्थापित करना।
- औद्योगिक उत्पादकता एवं कार्यकुशलता में वृद्धि करना।
- वित्तीय क्षेत्र में सुधार करना एवं साख व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना।
- सार्वजनिक उपक्रमों के कार्य निष्पादन में सुधार लाना।
- विदेशी विनियोग, विदेशी तकनीकी एवं विदेशी पूँजी में अन्तर्रवाह को प्रोत्साहित करना।
- राजकोषीय अनुशासन को लागू करना।।
प्रश्न 2.
निजीकरऐप से क्या आशय है?
उत्तर
निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों के स्वामित्व एवं प्रबन्ध को निजी स्वामित्व, प्रबन्ध एवं संचालन में अन्तरित किया जाता है। ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र की असफलताओं को दृष्टिगत रखते हुए किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में सन् 1984 ई० में ही तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी ने घोषणा की थी, “सार्वजनिक क्षेत्र ऐसे बहुत से क्षेत्रों में फैल गया है, जहाँ इसे नहीं फैलना चाहिए। था। हम अपने सार्वजनिक क्षेत्र का विकास केवल उन क्षेत्रों में करें, जिनमें निजी क्षेत्र अक्षम है, किन्तु अब हम निजी क्षेत्र के लिए बहुत से द्वार खोल देंगे, ताकि वह अपना विस्तार कर सके और अर्थव्यवस्था अधिक स्वतन्त्र रूप से विकसित हो सके। निजी क्षेत्र को अधिक व्यापक क्षेत्र उपलब्ध कराने के लिए अनेक नीतिगत परिवर्तन किए गए, जिनका सम्बन्ध औद्योगिक लाइसेन्सिग नीति को अधिक उदार बनाने, निर्यात-आयात नीति के अन्तर्गत मात्रात्मक प्रतिंबन्धों को समाप्त करने, राजकोषीय एवं विदेशी पूँजी से सम्बन्धित नियन्त्रणों एवं प्रतिबन्धों को कम करने तथा प्रशासनिक सरलीकरण से था।
प्रश्न 3.
भारत में निजीकरण के विस्तार के लिए सरकार ने क्या किया है?
उत्तर
भारत में निजीकरण के विस्तार के लिए सरकार ने निम्नलिखित उपाय किए हैं
- सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों में कमी की गई है और निजी क्षेत्र के लिए औद्योगिक क्षेत्र खोले गए हैं।
- सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों में अंश पूँजी का अपनिवेश किया जा रहा है ताकि विकास के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाए जा सकें तथा इन उपक्रमों के कार्य निष्पादन में सुधार किया जा सके।
- आधारभूत संरचना (परिवहन, संचार एवं बीमा) के क्षेत्र में अधिकाधिक निजी भागीदारी को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
- सेवा सुविधाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाई जा रही है।
- निजीकरण की नई व्यवस्था चालू की गई है जिसमें स्वामित्व तो सरकार के अधीन रहता है, लेकिन संचालक मण्डल में, शीर्ष स्तर पर निजी संचालकों की नियुक्ति की जा रही है।
- सरकार ने अपनी नई औद्योगिक नीति में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देने की नीति अपनाई है।
प्रश्न 4.
उदारीकरण से क्या आशय है?
उत्तर
उदारीकरण का अभिप्राय अर्थव्यवस्था पर प्रशासनिक नियन्त्रण को धीरे-धीरे शिथिल करते हुए अन्तत: उन्हें समाप्त कर देने से है। यह आर्थिक कार्यकरण में सरकारी हस्तक्षेप का विरोध है। यह विरोध मूलतः दो मान्यताओं पर आधारित है—प्रथम, सरकारी हस्तक्षेप प्रतियोगिता को कुंठित करता है, कुशलता को घटाता है और उत्पादन लागतों को बढ़ाता है, जिससे अर्थव्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता करने में शिथिल पड़ जाती है। दूसरे, सरकारी नियन्त्रणों के कारण संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग नहीं हो पाता, जिससे मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों ही दृष्टियों से उत्पादन पिछड़ जाता है। भारत में यह प्रक्रिया औद्योगिक नीति सन् 1991 ई० से अपनाई जा रही है।
प्रश्न 5.
सार्वभौमीकरण (भूमण्डलीकरण) से क्या आशय है? इस दृष्टि से भारतीय निवेश नीति (1991 ई०) की मुख्य बातें बताइए।
उत्तर
सार्वभौमीकरण उदारीकरण का ही एक विस्तृत रूप है। इसका मुख्य क्षेत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और शेष विश्व के मध्य नियन्त्रण व प्रतिबन्ध रहित सम्बन्धों का विकास है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में बनने वाली वस्तुओं को प्रोत्साहन देने हेतु विदेशी निवेशकों पर भारत में उद्योग खोलने अथवा भारतीय उद्योगों में पूँजी लगाने पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगे हुए थे, जो देश के आर्थिक विकास में बाधक बने हुए थे। इस सन्दर्भ में घोषित निवेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
- देश में उच्च प्राथमिकता प्राप्त 34 उद्योगों में 51% इक्विटी तक के विदेशी निवेश के लिए स्वतः अनुमोदन की अनुमति के लिए विदेश नीति को अधिक उदार बनाया गया।
- प्रवासी भारतीयों (NRIs) को उच्च प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों में पूँजी और आय की प्रत्यावर्तनीयता के साथ शत-प्रतिशत इक्विटी तक निवेश करने की अनुमति प्रदान की गई।
- भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों को भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति लिए बिना आवासीय सम्पत्ति अधिगृहीत करने का अधिकार प्राप्त हो गया है।
- FERA के उपबन्धों को उदार बना दिया गया है। अब इसके स्थान पर FEMA लागू है।
- विदेशी कम्पनियों को 14 मई, 1992 ई० से देशी बिक्री के सम्बन्ध में अपने ट्रेडमार्क का प्रयोग करने की अनुमति दे दी गई।
- देश में विदेशी निवेश के संरक्षण के लिए 13 अप्रैल, 1992 ई० को भारत ने ‘बहुपक्षीय निवेश गारण्टी एजेन्सी’ (MIGA) प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर भी किए हैं।
- गैर-प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों में विदेशी निवेश को उदार बनाने के लिए विदेशी निवेश संवर्द्धन (FIPB) का गठन किया गया है, ताकि विदेशी कम्पनियों के निवेश सम्बन्धी मामलों का निपटारा शीघ्रता से किया जा सके।
प्रश्न 6.
भारत सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र सम्बन्धी नीति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
सार्वजनिक क्षेत्र सम्बन्धी नीति (Public Sector Policy)-सार्वजनिक क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने एक नया दृष्टिकोण अपनाया, जिसके मुख्य अंग अग्रलिखित हैं
- सार्वजनिक विनियोग के वर्तमान पोर्टफोलियो के यथार्थवाद की कसौटी के आधार पर समीक्षा की जाएगी ताकि इसे उन क्षेत्रों से दूर रखा जा सके जिनमें सामाजिक धारणाएँ महत्त्वपूर्ण नहीं हैं और जहाँ निजी क्षेत्र अधिक कुशल है।
- सार्वजनिक क्षेत्र को अपेक्षाकृत अधिक प्रबन्धकीय स्वायत्तता प्रदान की जाएगी।
- सार्वजनिक उद्यमों के लिए बजटीय सेमर्थन क्रमशः घटाया जाएगा।
- सार्वजनिक व निजी क्षेत्र प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा कुछ चुने हुए उद्यमों में हिस्सा (शेयर) पूँजी को अत्रिनियोग किया जाएगा।
- अति रुग्ण सार्वजनिक उद्यमों को भारी हानियाँ उठाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इस नीति के अनुपालन के लिए अनेक उपाय अपनाए गए हैं|
- सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या को 17 से कम करके 8, फिर 6 और अब 3 कर दिया गया है।
- जीर्ण रूप से बीमार सार्वजनिक उद्यमों को, उनके पुनरुत्थान/पुनःस्थापना के लिए औद्योगिक एवं वित्तीय पुनःनिर्माण बोर्ड (BIFR) को सौंप दिया जाएगा।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लाभदायकता एवं प्रत्याय दर बढ़ाने के प्रयास किए जाएँगे।
- सरकार की 20% तक हिस्सा पूँजी पारस्परिक निधियों द्वारा चुने गए निजी उद्यमों में विनियोजित की जाएगी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आर्थिक सुधार से क्या आशय है? भारत में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया अपनाने की क्या। आवश्यकता थी?
उत्तर
आर्थिक सुधार का अर्थ
आर्थिक सुधार से आशय आर्थिक संकट को दूर करने की दृष्टि से अपनाए जाने वाले उपायों से है। सरकार ने 1991 ई० में नवीन आर्थिक नीति की घोषणा की और इस नवीन आर्थिक नीति में व्यापक आर्थिक नीतियों को सम्मिलित किया। इन सुधारों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में अधिक स्पर्धापूर्ण व्यावसायिक वातावरण की रचना करना और फर्मों के व्यापार में प्रवेश करना तथा उनके विकास के मार्ग । में आने वाली बाधाओं को दूर करना था। इसके अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक दोनों ही प्रकार के उपायों की घोषणा की गई। अल्पकालिक उपायों का उद्देश्य भुगतान सन्तुलन में आ गई कुछ त्रुटियों को दूर करना और मुद्रा स्फीति को.नियन्त्रित करना था जबकि दीर्घकालिक उपायों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था की कुशलता को सुधारना तथा अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों की असमानताओं को दूर कर अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा क्षमता को संवर्धित करना था।
आर्थिक सुधारों की आवश्यकता
भारत में 1 अप्रैल, 1951 से मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाते हुए, आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाया गया था। अभी तक 11 पंचवर्षीय योजनाएँ तथा पाँच एकवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं। योजनाएँ अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में सफल भी रही हैं और असफल भी। सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्त्व, निजी क्षेत्र पर नियन्त्रण, उद्योग एवं व्यापार पर प्रतिबन्ध, नौकरशाही एवं लालफीताशाही ने जून 1991 के अन्छ में देश में एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट पैदा कर दिया। विदेशी मुद्रा भण्डार में निरन्तर कमी, नए ऋणों में विलम्ब, अनिवासी खातों से धन की निकासी, निरन्तर आसमान छूती महँगाई ने अर्थव्यवस्था को डाँवाँडोल कर दिया। अतः अर्थव्यवस्था को आर्थिक संकट से निकालने, आर्थिक विकास में गति लाने, वित्तीय असन्तुलन को दूर करने, मुद्रा स्फीति को नियन्त्रित करने, भुगतान सन्तुलन को सन्तुलित करने तथा विदेशी विनिमय के भण्डार में वृद्धि करने के लिए नवीन आर्थिक नीति की घोषणा करना और आर्थिक सुधारों को अपनाना आवश्यक हो गया। संक्षेप में, भारत में आर्थिक सुधारों को अपनाने की आवश्यकता मुख्य रूप से निम्नलिखित कारणों से अनुभव की गई
- अनुत्पादक व्ययों में निरन्तर वृद्धि होने के कारण सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा था। इसका अर्थ है कि सरकार के कुल व्यय कुल प्राप्तियों से बहुत अधिक थे जिनकी पूर्ति ऋणों द्वारा की जाती थी। इसके फलस्वरूप ऋण और ऋणों पर ब्याज में वृद्धि होती गई और सरकार के ऋण-जाल में फंसने की सम्भावना बढ़ गई। अत: इस राजकोषीय घाटे को कम करना आवश्येक था।
- व्यापार सन्तुलन के निरन्तर प्रतिकूल रहने के कारण भुगतान सन्तुलन की समस्या उत्पन्न हो गई। थी। निर्यातों में वृद्धि की तुलना में आयातों में अधिक तेजी से वृद्धि हुई। घाटे को पूरा करने के लिए विदेशी ऋण लिए गए।
- 1991 ई० में ईराक युद्ध के कारण पेट्रोल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई। खाड़ी संकट के कारण भुगतान सन्तुलन का घाटा बहुत अधिक बढ़ गया।
- 1990-91 ई० में भारत के विदेशी विनिमय कोष इतने कम हो गए थे कि वे 15 दिन के आयात के लिए भी काफी नहीं थे। उस समय की चन्द्रशेखर सरकार को विदेशी ऋण सेवा का भुगतान करने के लिए सेना गिरवी रखना पड़ा था।
- मूल्य स्तर में तेजी से वृद्धि हो रही थी जिसके कारण देश की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी। कीमतों के बढ़ने का मुख्य कारण घाटे की वित्त व्यवस्था थी।
6. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का कार्य निष्पादन असन्तोषजनक था। ये उद्यमी परिसम्पत्ति के बजाय दायित्व बनते जा रहे थे।
प्रश्न 2.
उदारीकरण से क्या आशय है? आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत सरकार ने अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए कौन-से उपाय अपनाए?
उत्तर
उदारीकरण का अर्थ उदारीकरण का अभिप्राय अर्थव्यवस्था पर प्रशासनिक नियन्त्रण को धीरे-धीरे शिथिल करते हुए अन्ततः उन्हें समाप्त कर देने से है। यह आर्थिक कार्यकरण में सरकारी हस्तक्षेप का विरोध है। यह विरोध मूलतः दो मान्यताओं पर आधारित है–प्रथम, सरकारी हस्तक्षेप प्रतियोगिता को कुण्ठित करता है, कुशलता को घटाता है और उत्पादन लागतों को बढ़ाता है जिससे अर्थव्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता करने में शिथिल पड़ जाती है। दूसरे, सरकारी नियन्त्रणों के कारण संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग नहीं हो पाता, जिससे मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों ही दृष्टियों से उत्पादन पिछड़ जाता है। भारत में यह प्रक्रिया सन् 1991 से अपनाई जा रही है।
भारत में 1991 ई० से पूर्व अर्थव्यवस्था पर अनेक प्रकार के नियन्त्रण लगा रखे थे; जैसे–औद्योगिक लाइसेन्स व्यवस्था, आयात लाइसेन्स, विदेशी मुद्रा नियन्त्रण, बड़े घरानों द्वारा निवेश पर प्रतिबन्ध आदि। इन नियन्त्रणों के परिणामस्वरूप, नए उद्योगों की स्थापना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, भ्रष्टाचार, अनावश्यक विलम्ब तथा अकुशलता में वृद्धि हुई तथा आर्थिक प्रगति की दर कम हो गई। अत: सरकार ने उदारीकरण की नीति अपनाई अर्थात् प्रत्यक्ष भौतिक नियन्त्रणों से अर्थव्यवस्था को मुक्ति दिलाने का प्रयास किया।
उदारीकरण के उपाय
ऑर्थिक सुधार कार्यक्रमों के अन्तर्गत सरकार ने उदारीकरण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए हैं
1. लाइसेन्स अथवा पंजीकरण की समाप्ति- नई औद्योगिक नीति (1991) में सरकार ने नियन्त्रण के स्थान पर ‘उदारवादी नीति अपनाई। अब तक केवल 6 उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेने की अनिवार्य व्यवस्था है, शेष उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेना अनिवार्य नहीं है। ये उद्योग हैं
- शराब,
- सिगरेट,
- रक्षा उपकरण,
- औद्योगिक विस्फोटक,
- खतरनाक रसायन,
- औषधियाँ।
2. एकाधिकारी कानून से छूट- अब एम०आर०टी०पी० फर्म की अवधारणा को समाप्त कर दिया गया है। अब इन फर्मों को अपना विस्तार करने की स्वतन्त्रता मिल गई है। निर्धारित पूँजी निवेश सीमा भी समाप्त कर दी गई है।
3. विस्तार तथा उत्पादन की स्वतन्त्रता- उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत अब उद्योगों को अपना विस्तार तथा उत्पादन करने की स्वतन्त्रता है। अब उत्पादक बाजार की माँग के आधार पर यह निर्णय भी ले सकते हैं कि उन्हें कौन-सी वस्तुओं का उत्पादन करना है।
4. लघु उद्योगों की निवेश सीमा में वृद्धि- लघु उद्योगों की निवेश सीमा को बढ़ाकर 5 करोड़ कर दिया गया है ताकि वे अपना आधुनिकीकरण कर सकें।
5. पूँजीगत पदार्थों के आयात की स्वतन्त्रता- उदारीकरण की नीति के फलस्वरूप भारतीय उद्योग | अपना विस्तार तथा आधुनिकीकरण करने के लिए विदेशों से मशीनें तथा कच्चा माल खरीदने के लिए स्वतन्त्र हैं।
6. तकनीकी आयात की छूट- आधुनिकीकरण के लिए उच्च तकनीक का प्रयोग आवश्यक है। भारतीय उद्योगों को नई तकनीकी उपलब्ध कराने के लिए अब उच्चतम प्राथमिकता वाले उद्योगों को तकनीकी समझौते करने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
7. ब्याज-दरों का स्वतन्त्र निर्धारण- भारतीय रिजर्व बैंक ने व्यापारिक बैंकों को यह स्वतन्त्रता दे। दी है कि वे बाजार शक्तियों के आधार पर स्वयं ही ब्याज-दर का निर्धारण करें।
प्रश्न 3.
निजीकरण से क्या आशय है? आर्थिक सुधारों में भारत सरकार ने निजीकरण के लिए क्या उपाय अपनाए हैं?
उत्तर
निजीकरण का अर्थ
निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों के स्वामित्व एवं प्रबन्ध को निजी स्वामित्व प्रबन्ध एवं संचालन में अन्तरित किया जाता है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित उद्योगों में से अधिक-से-अधिक उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया जाता है तथा वर्तमान सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से निजी क्षेत्र को बेच दिया जाता है। विक्रीत अंश उसका स्वामित्व एवं प्रबन्ध निजी क्षेत्र में आ जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के अकुशल निष्पादन ने निजीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन दिया है। निर्णय लेने की स्वतन्त्रता का अभाव, निर्णय लेने में विलम्ब, आर्थिक प्रोत्साहनों की कमी, उत्पादन क्षमता का निम्न प्रयोग एवं प्रबन्धकीय दोषों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की उत्पादकता का स्तर निरन्तर गिरता जा रहा था। इससे निजीकरण की प्रक्रिया को बल मिला और यह माना गया कि अकुशल सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपने से अर्थव्यवस्था अधिक कुशल होगी, अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ेगी तथा उत्पादन की गुणवत्ता एवं विविधता में वृद्धि होगी, और इससे सभी उपभोक्ता लाभान्वित होंगे।
निजीकरण के उपाय
आर्थिक सुधार कार्यक्रम के अन्तर्गत सरकार ने निजीकरण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए हैं
1. सार्वजनिक क्षेत्र को सीमित करना- औद्योगिक नीति में प्रारम्भ से ही सार्वजनिक क्षेत्र को , प्रमुख स्थान दिया गया था। इसके पीछे यह धारणा थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार से पूँजी संचय में वृद्धि होगी, औद्योगिकीकरण को गति मिलेगी, विकास की दर बढ़ेगी तथा निर्धनता में कमी आएगी। किन्तु परिणाम इसके विपरीत निकले और सार्वजनिक क्षेत्र इन आशाओं में खरा नहीं उतर सका। फलत: सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या 17 से घटाकर 3 कर दी गई।
2. विनिवेश – सरकार ने घाटे में चल रहे उपक्रमों को निजी क्षेत्र को पूर्णत: या अंशतः बेचना आरम्भ कर दिया है। अब इनका स्वामित्व तथा प्रबन्ध सरकार के स्थान पर निजी क्षेत्र का हो जाएगा।
प्रश्न 4.
वैश्वीकरण अथवा भूमण्डलीकरण से क्या आशय है? वैश्वीकरण की दिशा में सरकार ने क्या उपाय अपनाए हैं?
उत्तर
वैश्वीकरण का अर्थ
वैश्वीकरण का अर्थ है-देश की अर्थव्यवस्था को संसार के अन्य देशों की अर्थव्यवस्था से मुक्त व्यापार पूँजी और श्रम की मुक्त गतिशीलता आदि के द्वारा सम्बन्धित करना। इसके अन्तर्गत देश की अर्थव्यवस्था विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ एकीकृत कर दी जाती है। किन्तु भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में इसका अर्थ इससे अधिक व्यापक है। भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में वैश्वीकरण के अन्तर्गत निम्नलिखित बातें सम्मिलित की जाती हैं–अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोलना, नियन्त्रणों को धीरे-धीरे समाप्त करना, आयात उदारीकरण कार्यक्रमों को व्यापक आधार पर लागू करना तथा निर्यात संवर्द्धन को प्रोत्साहित करना।
वैश्वीकरण के लिए सरकार द्वारा अपनाए गए उपाय
आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत भारत सरकार ने वैश्वीकरण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए हैं
1. विदेशी पूँजी निवेश की साम्य सीमा में वृद्धि–आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत भारत सरकार ने विदेशी पूँजी निवेश की सीमा 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 51 से 100 प्रतिशत तक कर दी। उच्च प्राथमिकता प्राप्त 47 उद्योगों व निर्यातक व्यापारिक घरानों के लिए यह 100 प्रतिशत थी। इस सम्बन्ध में विदेशी मुद्रा नियमन अधिनियम’ (FERA) के स्थान पर ‘विदेशी मुद्रा प्रबन्ध अधिनियम’ (FEMA) लागू किया गया है।
2. आंशिक परिवर्तनशीलता- भारतीय रुपये को आंशिक रूप से परिवर्तनशील बना दिया गया। यह परिवर्तनशीलता पूँजीगत सौदों पर लागू नहीं थी। इस प्रकार राजस्व खाते में रुपया पूर्णत: परिवर्तनशील कर दिया गया।
3. दीर्घकालीस व्यापार नीति- विदेश व्यापार नीति को दीर्घकाल अर्थात् 5 वर्ष के लिए लागू किया गया। इसमें व्यापार में लगे सभी नियन्त्रण व प्रतिबन्धों को हटा दिया गया, प्रशासनिक नियन्त्रणों को न्यूनतम कर दिया गया तथा खुली प्रतियोगिता को प्रोत्साहन दिया गया।
4. प्रशुल्कों में केमी- आर्थिक सुधारों के अनुरूप प्रशुल्कों (आयात-निर्यात शुल्क) को धीरे-धीरे कम किया जा रहा है।
प्रश्न 5.
आर्थिक सुधार कार्यक्रम के अन्तर्गत अपनाए गए राजकोषीय एवं वित्तीय सुधारों को बताइए।
उत्तर
राजकोषीय सुधार
राजकोषीय सुधार से आशय सरकार की आय में वृद्धि करना और सार्वजनिक व्यय को इस प्रकार कम करना है कि उत्पादन तथा आर्थिक कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। इसका उद्देश्य राजकोषीय असन्तुलन को दूर करके राजकोषीय अनुशासन को बनाए रखना है। इसका मुख्य कारण देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बढ़ते राजकोषीय घाटे, ऋण एवं ऋणजाल में फँसी अर्थव्यवस्था, ब्याज में वृद्धि, विदेशी विनिमय में कमी आदि के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की निरन्तर बिगड़ती स्थिति। भारतीय अर्थव्यवस्था को इस स्थिति से उबारने के लिए अनेक उपाय अपनाए गए; जैसे-सार्वजनिक व्यय पर नियन्त्रण, करों में वृद्धि, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के शेयरों में वृद्धि तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उत्पादों की कीमतों में वृद्धि। राजा चेलैया समिति की रिपोर्ट के आधार पर राजकोषीय नीति में अनेक सुधार किए गए। मुख्य सुधार निम्नलिखित थे
- कर-प्रणाली को अधिक वैज्ञानिक एवं युक्तिसंगत बनाया गया। आयकर की अधिकतम दर को 50 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया।
- विदेशी कम्पनियों के लाभ को कम किया गया।
- आयात-निर्यात कर को घटाया गया।
- अनेक वस्तुओं पर उत्पादन कर को घटाया गया।
- आर्थिक सहायता को कम किया गया।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को राजकोषीय प्रेरणा प्रदान की गई और पोर्टफोलियो निवेश के.तिए विदेशियों को प्रोत्साहित किया गया।
- कर-प्रणाली की संरचना को सरल बनाया गया।
- सीमा शुल्क की दरों को युक्तिपरक बनाया गया।
वित्तीय सुधार
वित्तीय सुधारों से आशय देश की बैंकिंग तथा वित्तीय नीतियों में सुधार करने से है। नरसिंहम समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने वित्तीय क्षेत्र में निम्नलिखित सुधार किए
- वैधानिक तरलता अनुपात को 38.5 प्रतिशत से कम करके 25 प्रतिशत कर दिया गया।
- आरक्षित नकदी अनुपात को धीरे-धीरे कम करके 4.5 प्रतिशत पर लाया गया। किन्तु गत कुछ समय से इसमें निरन्तर वृद्धि की जा रही है। वर्तमान में यह 6.5% प्रतिशत है।
- ब्याज-दरों का निर्धारण करने के लिए बैंकों को स्वतन्त्र छोड़ दिया गया।
- बैंकिंग प्रणाली की पुनर्संरचना की गई। बैंकिंग क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया।
- बैंकों को अधिकाधिक स्वतन्त्रता प्रदान की जा रही है।
प्रश्न 6.
नवीन आर्थिक नीति (आर्थिक सुधार) के प्रभावों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
आर्थिक सुधार के लिए अपनाए गए विभिन्न कार्यक्रमों के भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक एवं ऋणात्मक दोनों ही प्रकार के प्रभाव पड़े हैं। इनका संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है सकारात्मक (अनुकूल) प्रभाव।
- भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीनता से बाहर निकलकर एक सक्रिय अर्थव्यवस्था बन गई है। आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ अधिक सक्रिय हुई हैं। इसके फलस्वरूप देश की संवृद्धि दर बढ़ी है। यह लगभग 8 प्रतिशत अनुमानित है।
- औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि लगभग 10 प्रतिशत है। भारत की सूचना प्रौद्योगिकी विश्व में अपना स्थान बनाए हुए है।
- निरन्तर बढ़ते राजकोषीय घाटे में कमी आई है। सरकारी राजस्व में वृद्धि हुई है।
- मुद्रा स्फीति पर रोक लगी है (यद्यपि गत दो वर्षों से इसमें पुनः वृद्धि आरम्भ हो गई है)।
- उपभोक्ता को विविध प्रकार की उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उचित कीमत पर सरलता से प्राप्त हो | जाती हैं। इसके फलस्वरूप लोगों के जीवन स्तर एवं जनकल्याण में वृद्धि हुई है।
- विदेशी विनिमय कोषों में आशा से अधिक वृद्धि हुई है। इसमें भारतीय बाजारों में निवेश के प्रति विदेशियों का
विश्वास बढ़ा है।
- देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। निवेश के साथ पूँजी व तकनीकी का |
भी अन्तर्रवाह बढ़ा है।
- एक उभरती आर्थिक शक्ति के रूप में भारत की पहचान होने लगी है।
- भारतीय बाजारों की संरचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है। भारतीय बाजार अब अधिक प्रतियोगी| बनते जा रहे हैं। इस प्रकार आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप न केवल विकास की प्रक्रिया में तेजी आई है, अपितु इसमें विविधता भी आई है और वैश्विक दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था अधिक सुदृढ़ हुई है।
नकारात्मक (प्रतिकूल प्रभाव
1. आर्थिक सुधारों का लाभ उद्योग क्षेत्र को अधिक मिला है, कृषि क्षेत्र उपेक्षित रहा है। उद्यमियों का ध्यान कृषि से उद्योगों की ओर विवर्तित हुआ है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कृषि क्षेत्र का धीमा विकास औद्योगिक क्षेत्र की विकास प्रक्रिया में बाधा डाल सकता है।
2. विकास प्रक्रिया का स्वरूप नगरीय हो गया है। सभी विदेशी कम्पनियाँशहरी क्षेत्रों को ही अपना केन्द्रबिन्दु बनाए हुए हैं। इससे ग्रामीण-शहरी अन्तर बढ़ा है।
3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कारण हमारे देश पर ‘आर्थिक उपनिवेशवाद’ का खतरा मँडराने लगा है। ये कम्पनियाँ भारतीय बाजारों का शोषण कर रही हैं और कमजोर स्पर्धा क्षमता के कारण भारतीय उद्योगपति हताश हो रहे हैं।
4. उपभोक्तावाद के प्रसार के कारण लोग अपव्ययी बनते जा रहे हैं। प्रदर्शन प्रभाव के कारण परिवारों की शान्ति भंग हो रही है। 5. भारतीय समाज का सांस्कृतिक ह्रास हो रहा है। आर्थिक सम्पन्नता नैतिक मूल्यों पर हावी हो चुकी
संक्षेप में, आर्थिक सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही प्रकार के प्रभाव छोड़े हैं। कुछ भी अमिश्रित वरदान नहीं है। अत: इनका पालन बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अन्तर्राष्ट्रीय बड़े खिलाड़ी हम पर हावी न हों और घरेलू अर्थव्यवस्था को कोई हानि न हो।
प्रश्न 7.
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना क्यों की गई? इसके कार्य एवं कार्य-प्रणाली पर प्रकाश डालिए।
अथवा विश्व व्यापार संगठन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
विश्व व्यापार संगठन
30 अक्टूबर, 1947 को GATT’ नामक एक बहुपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। तब से लेकर दिसम्बर, 1994 तक गैट के अन्तर्गत वार्ताओं के आठ दौर सम्पन्न हुए हैं। गैट का आठवाँ दौर बहुचर्चित एवं विवादास्पद रहा क्योंकि इसमें वस्तुओं के व्यापार के साथ-साथ सेवाओं, बौद्धिक सम्पदाओं आदि के सम्मिलित किए जाने के लिए विकसित देशों की ओर से काफी दबाव पड़ा। अन्ततः 15 अप्रैल, 1995 को मराकश (मोरक्को) में समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसके द्वारा नए विषयों को भी विश्व व्यापार के दायरे में शामिल कर लिया गया और विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना की
अनुशंसा की गई। विश्व व्यापार संगठन (WTO) से आशय- विश्व व्यापार संगठन उरुग्वे दौर की वार्ताओं के बाद हुए समझौते को कार्यरूप देने एवं उनके अनुपालन की देख-रेख करने के लिए गठित एक बहुपक्षीय व्यापारिक संगठन है। यह सदस्य देशों के बीच व्यापार सम्बन्धों के लिए एक संस्थागत ढाँचा प्रदान करेगा एवं इससे जुड़े बहुपक्षीय व्यापारिक समझौते से सम्बन्धित बातचीत के लिए एक मंच की तरह कार्य करेगा। विश्व व्यापार संगठन ने 1 जनवरी, 1995 से कार्य करना आरम्भ कर दिया है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। वर्ष 2014 में WTO की सदस्य संख्या 160 थी।
विश्व व्यापार संगठन का प्रशासनिक ढाँचा– विश्व व्यापार संगठन के शीर्ष पर एक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन है। इसकी बैठक हर दो वर्ष के अन्तराल पर एक बार बुलाई जाएगी। दो मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों के बीच एक महापरिषद् का गठन किया गया है, जिसमें प्रत्येक सदस्य देश का एक-एक प्रतिनिधि शामिल होगा। इस महापरिषद् के अधीन तीन और परिषदें होंगी
- सेवाओं के लिए परिषद्,
- उत्पादों के लिए परिषद् तथा
- बौद्धिक सम्पदा के लिए परिषद्।
इन परिषदों के अधीन अनेक समितियाँ गठित की जाएँगी, जो क्षेत्र के अन्दर आने वाले विशेष मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगी; यथा-
- व्यापार एवं विकास के लिए समिति,
- भुगतान सन्तुलन के लिए समिति,
- बजट के लिए समिति आदि।।
विश्व व्यापार संगठन की कार्य-प्रणाली– विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत आने वाले सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाएँगे। जिन विषयों पर सर्वसम्मति नहीं हो पाएगी, उन पर मतदान होगा। प्रत्येक सदस्य देश को केवल एक मत देने का अधिकार होगा। किसी भी सदस्य देश को संगठन के प्रति उसके दायित्वों से राहत देने के लिए तीन-चौथाई बहुमत की आवश्यकता होगी, सदस्य राष्ट्रों के बीच व्यापारिक विवादों को हल करने के लिएँ एक विवाद निपटारा विधि (Dispute Settlement Mechanism) की व्यवस्था की गई है। शिकायत मिलने पर विवाद निपटाने के लिए निर्धारित विस्तृत कानूनी प्रक्रिया के अन्तर्गत ही विवाद का निपटारा किया जाएगा। दोषी पाए जाने वाले सदस्य देश के विरुद्ध तो बदले की कार्यवाही (Retaliatory measures) की जाएगी। संगठन में उल्लिखित प्रावध्रानों का उल्लंघन दण्डनीय होगा।
विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य
विश्व व्यापार संगठन की प्रस्तावना में इसके उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया है, जो निम्नलिखित हैं
- जीवन-स्तर में वृद्धि करना,
- पूर्ण रोजगार एवं प्रभावपूर्ण माँग में वृहत् स्तरीय, परन्तु ठोस वृद्धि करना,
- वस्तुओं के उत्पादन एवं व्यापार का प्रसार करना,
- सेवाओं के उत्पादन एवं व्यापार का प्रसार करना,
- विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना,
- अविरत (Sustainable) विकास की अवधारणा को स्वीकार करना तथा
- पर्यावरण को संरक्षण एवं उसकी सुरक्षा करना।।
विश्व व्यापार संगठन के कार्य
विश्व व्यापार संगठन (WTO) के कुछ कार्यों का उल्लेख निम्नवत् किया जा सकता है
- विश्व व्यापार समझौता एवं बहुपक्षीय तथा बहुवचनीय (Plurilatera) समझौतों के कार्यान्वयन, प्रशासन एवं परिचालन हेतु सुविधाएँ प्रदान करना।
- व्यापार एवं प्रशुल्क से सम्बन्धित किसी भी भावी मसले पर सदस्यों के बीच विचार-विमर्श हेतु एक मंच के रूप में कार्य करना।
- विवादों के निपटारे (Settlement of Disputes) से सम्बन्धित नियमों एवं प्रक्रियाओं को प्रशासित करना।
- व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया (Trade Policy Review Mechanism) से सम्बन्धित नियमों एवं | प्रावधानों को लागू करना।
- वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामंजस्य भाव (Coherence) लाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक से सहयोग करना।।
- विश्व संसाधनों (World Resources) का अनुकूलतम प्रयोग करना।
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