UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 वन एवं जीव संसाधन (अनुभाग – तीन)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 वन एवं जीव संसाधन (अनुभाग – तीन)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जैव विविधता से क्या अभिप्राय है ? भारत में जैव विविधता की सुरक्षा तथा संरक्षण के लिए क्या उपाय किये जा रहे हैं ?
उत्तर :

जैव विविधता

जैव विविधता से अभिप्राय जीव-जन्तुओं तथा पादप जगत् में पायी जाने वाली विविधता से है। संसार के अन्य देशों की भॉति हमारे देश के जीव-जन्तुओं में भी विविधता पायी जाती है। हमारे देश में जीवों की 81,000 प्रजातियाँ, मछलियों की 2,500 किस्में तथा पक्षियों की 2,000 प्रजातियाँ विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त 45,000 प्रकार की पौध प्रजातियाँ भी पायी जाती हैं। इनके अतिरिक्त उभयचरी, सरीसृप, स्तनपायी तथा छोटे-छोटे कीटों एवं कृमियों को मिलाकर भारत में विश्व की लगभग 70% जैव विविधता पायी जाती है।

जैव विविधता की सुरक्षा तथा संरक्षण के उपाय

वन जीव-जन्तुओं के प्राकृतिक आवास होते हैं। तीव्र गति से होने वाले वन-विनाश का जीव-जन्तुओं के आवास पर दुष्प्रभाव पड़ा है। इसके अतिरिक्त अनेक जन्तुओं के अविवेकपूर्ण तथा गैर-कानुनी आखेट के कारण अनेक जीव-प्रजातियाँ दुर्लभ हो गयी हैं तथा कई प्रजातियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। अतएव उनकी सुरक्षा तथा संरक्षण आवश्यक हो गया है। इसी उद्देश्य से भारत सरकार ने अनेक प्रभावी कदम उठाये हैं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं

1. देश में 14 जीव आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फियर रिजर्व) सीमांकित किये गये हैं। अब तक देश में आठ जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किये जा चुके हैं। सन् 1986 ई० में देश का प्रथम जीव आरक्षित क्षेत्र नीलगिरि में स्थापित किया गया था। उत्तर प्रदेश के हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में नन्दा देवी, मेघालय में नोकरेक, पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन, ओडिशा में सिमलीपाल तथा अण्डमान- निकोबार द्वीप समूह में जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किये गये हैं। इस योजना में भारत के विविध प्रकार की जलवायु तथा विविध वनस्पति वाले क्षेत्रों को भी सम्मिलित किया गया है। अरुणाचल प्रदेश में पूर्वी हिमालय क्षेत्र, तमिलनाडु में मन्नार की खाड़ी, राजस्थान में थार का मरुस्थल, गुजरात में कच्छ का रन, असोम में काजीरंगा, नैनीताल में कॉर्बेट नेशनल पार्क तथा मानस उद्यान को जीव आरक्षित क्षेत्र बनाया गया है। इन जीव आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना का उद्देश्य पौधों, जीव-जन्तुओं तथा सूक्ष्म जीवों की विविधता तथा एकता को बनाये रखना तथा पर्यावरण-सम्बन्धी अनुसन्धानों को प्रोत्साहन देना है।

2. राष्ट्रीय वन्य-जीव कार्य योजना वन्य-जीव संरक्षण के लिए कार्य, नीति एवं कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करती है। प्रथम वन्य-जीव कार्य-योजना, 1983 को संशोधित कर अब नयी वन्य-जीव कार्य योजना (2002-16) स्वीकृत की गयी है। इस समय संरक्षित क्षेत्र के अन्तर्गत 89 राष्ट्रीय उद्यान एवं 490 अभयारण्य सम्मिलित हैं, जो देश के सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र के 1 लाख 56 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल पर विस्तृत हैं।

3. वन्य जीवन (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर (इसका अपना पृथक् अधिनियम है) शेष सभी राज्यों द्वारा लागू किया जा चुका है, जिसमें वन्यजीव संरक्षण तथा विलुप्त होती जा रही प्रजातियों के संरक्षण के लिए दिशानिर्देश दिये गये हैं। दुर्लभ एवं समाप्त होती जा रही प्रजातियों के व्यापार पर इस अधिनियम द्वारा रोक लगा दी गयी है। राज्य सरकारों ने भी ऐसे ही कानून बनाये हैं।

4. जैव-कल्याण विभाग, जो अब पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय का अंग है, ने जानवरों को अकारण दी जाने वाली यन्त्रणा पर रोक लगाने सम्बन्धी शासनादेश पारित किया है। पशुओं पर क्रूरता पर रोक सम्बन्धी 1960 के अधिनियम में दिसम्बर, 2002 ई० में नये नियम सम्मिलित किये गये हैं। अनेक वन-पर्वो के साथ ही देश में प्रति वर्ष 1-7 अक्टूबर तक वन्य जन्तु संरक्षण सप्ताह मनाया जाता है, जिसमें वन्य-जन्तुओं की रक्षा तथा उनके प्रति जनचेतना जगाने के लिए विशेष प्रयास किये जाते हैं। इन सभी प्रयासों के अति सुखद परिणाम भी सामने आये हैं। आज राष्ट्र-हित में इस बात की आवश्यकता है कि वन्य-जन्तु संरक्षण का प्रयास एक जन-आन्दोलन का रूप धारण कर ले।

प्रश्न 2.
वनस्पति और जीव-जन्तुओं के अन्तर्सम्बन्ध पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर :

वनस्पति और जीव-जन्तुओं में अन्तर्सम्बन्ध

वनस्पति से तात्पर्य धरातल पर उगे हुए पेड़-पौधों (वृक्षों), घास व झाड़ियों से होता है। इसके उत्पादन में मानव का कोई योगदान नहीं होता। यह स्वत: उगती एवं विकसित होती हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे ‘प्राकृतिक वनस्पति’ या ‘वन’ कहते हैं। पृथ्वी पर सभी जीवधारियों को भोजन वनस्पति से ही प्राप्त होता है। पेड़-पौधे सूर्य से प्राप्त की गई ऊर्जा को खाद्य ऊर्जा में परिणत करने में समर्थ होते हैं।

इस प्रकार विभिन्न पर्यावरणीय एवं पारितन्त्रीय परिवेश में जो कुछ भी प्राकृतिक रूप से उगता है, उसे प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं। प्राकृतिक वनस्पति पौधों का वह समुदाय है जिसमें लम्बे समय तक किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं हुआ है। मानव हस्तक्षेप से रहित प्राकृतिक वनस्पति को अक्षत वनस्पति कहते हैं। भारत में अक्षत वनस्पति हिमालय, थार मरुस्थल और बंगाल डेल्टा के सुन्दरवन के अगम्य क्षेत्रों में पाई जाती है।

इसी प्रकार असोम में एक सींग वाला गैंडा, हाथी, कश्मीर हंगुल (हिरण), गुजरात के गिर क्षेत्र में शेर (सिंह), बंगाल के सुन्दरवन क्षेत्र में बाघ (भारत का राष्ट्रीय पशु), राजस्थान में ऊँट आदि विभिन्न पर्यावरणीय और पारितन्त्रीय परिवेश के अनुरूप पाए जाते हैं।

वन एवं वन्य जीव हमारे दैनिक जीवन में इतने गुथे हुए हैं कि हम इनकी उपयोगिता का सही प्रकार से अनुमान नहीं लगा पाते हैं। उदाहरण के लिए नीम की छाल, रस और पत्तियों का उपयोग कई प्रकार की दवाइयों में किया जाता है। नीम पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित होने के साथ-साथ लगभग 200 कीट प्रजातियों के नियन्त्रण में प्रभावशाली है। अभी भी लोग गाँवों में फोड़ा-फुसी होने पर उसके घाव को नीम की पत्तियों के उबले पानी से धोकर साफ करते हैं तथा घाव को सुखाने के लिए उसकी छाल को पीसकर उसका लेप लगाते हैं। इसी प्रकार तुलसी का पौधा विषाणुओं को नष्ट करने में सहायक है और उसकी पत्तियों का प्रयोग कई चीजों में किया जाता है। इसी तरह सतावर, अश्वगंधा, घृतकुमारी आदि औषधीय पौधों का प्रयोग औषधियाँ बनाने में किया जाता है।

पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। हम इस ऑक्सीजन को सॉस के रूप में ग्रहण करते हैं। अगर पृथ्वी पर पेड़-पौधे न रहें तो हमें ऑक्सीजन कहाँ से प्राप्त होगी और हम कैसे जीवित रह सकेंगे? हमें लकड़ी, छाल, पत्ते, रबड़, दवाइयाँ, भोजन, ईंधन, चारा, खाद इत्यादि प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से वनों से ही प्राप्त होती हैं। वन वर्षा करने, मिट्टी का कटाव रोकने और भूजल के पुनर्भरण में भी सहायक होते हैं। इस प्रकार वनों से हमें अनेक लाभ हैं।

वनों की भाँति ही जीवों का भी हमारे दैनिक जीवन में महत्त्व है। वन और जीव, पर्यावरण को स्वच्छ और सन्तुलित रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। उदाहरण के लिए वर्तमान में गिद्ध पक्षी हमारे परिवेश में कम दिखाई पड़ रहे हैं। ये मरे हुए जानवरों का मांस खाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में हमारी सहायता करते हैं। इनके विलुप्त हो जाने पर मरे जानवरों के शवों के इधर-उधर सड़ने से, वायु प्रदूषित होती है। गिद्ध हमारे पर्यावरण को स्वच्छ करते हैं पर अब ये विलुप्त होने की कगार पर हैं। बड़े जीवों की भाँति ही . छोटे-छोटे कीट-पतंगों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। उदाहरण के लिए कई कीट महत्त्वपूर्ण पदार्थ; जैसे-शहद, रेशम और लाख बनाते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में कितने प्रकार के प्राकृतिक वन पाये जाते हैं ? प्रत्येक का वितरण तथा आर्थिक महत्त्व बताइट। भारत के किन्हीं दो प्रकार के वनों का वर्णन कीजिए। [2010]
या
भारतीय वनों का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए [2010]
(क) वनों के प्रकार, (ख) क्षेत्र, (ग) आर्थिक महत्त्व।
या
भारतीय वनों का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए [2016]
(क) वनों के प्रकार, (ख) वनों का महत्त्व, (ग) वन संरक्षण।
या
भारतीय वनों के किन्हीं छः लाभों का वर्णन कीजिए। [2016]
या

वनों के महत्त्व पर प्रकाश डालिए तथा वन विनाश रोकने के लिए कोई चार उपाय सुझाइए। [2016]
या

वनों के तीन आर्थिक महत्त्व बताइए। [2018]
उत्तर :

वनों के प्रकार तथा क्षेत्र

भारत में प्राकृतिक वनस्पति के सभी रूप (वन, घास-भूमियाँ, झाड़ियाँ आदि) मिलते हैं। इन विविध रूपों में वन सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। भारत में वनों का वितरण निम्नलिखित है—

1. उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन,
2. उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती (मानसूनी) वन,
3. कॅटीले वन,
4. ज्वारीय वन तथा
5. हिमालय के वन (पर्वतीय वन)

1. उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन- ये वन पश्चिमी घाट, मेघालय तथा उत्तर-पूर्वी भारत में मिलते हैं। इन क्षेत्रों में 250 सेमी से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। अत: इन वनों में सदापर्णी, सघन तथा 60 मीटर से भी अधिक ऊँचाई तक के वृक्ष होते हैं। इन वृक्षों में महोगनी, ऐबोनी, रोज़वुड आदि किस्में मुख्य हैं। दुर्गम होने के कारण उत्तर-पूर्वी भारत में इनका समुचित आर्थिक उपयोग नहीं हो सका है।

2. उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती (मानसूनी) वन- 
ये वन भारत में सर्वाधिक विस्तृत हैं। ये शिवालिक श्रेणियों तथा प्रायद्वीपीय भारत में पाये जाते हैं। इन क्षेत्रों में 75 से 200 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है। इन वनों के वृक्ष शुष्क ग्रीष्म काल में अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। इन वनों में आर्थिक महत्त्व वाले साल, सागौन, शीशम, चन्दन, बॉस आदि किस्मों के बहुमूल्य लकड़ी के वृक्ष मुख्य रूप से पाये जाते हैं।

3. कॅटीले वन- 
ये वन 50 सेमी से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। ये वन दक्षिणी प्रायद्वीप के शुष्क पठारी भागों, गुजरात, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में मिलते हैं। ये वन छितरे हुए तथा कॅटीले होते हैं। इन वनों में कीकर, बबूल, खैर, कैक्टस आदि प्रमुख वृक्ष पाये जाते हैं।

4. ज्वारीय वन- 
ये वन नदियों के डेल्टाई भागों में पाये जाते हैं। बंगाल में ‘सुन्दरवन डेल्टा’ में ये | मुख्यतः पाये जाते हैं। इन वनों में ‘सुन्दरी वृक्ष तथा मैंग्रोव मुख्य हैं। ताड़, बेंत, केवड़ा अन्य उपयोगी वृक्ष हैं।

5. हिमालय के वन (पर्वतीय वन)- 
हिमालय में उच्चावच के अनुसार वनों के कटिबन्ध मिलते हैं। 1,000 मीटर तक की ऊँचाई पर उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन मिलते हैं। 1,000 से 2,000 मीटर तक उपोष्ण कटिबन्धीय सदापर्णी वन मिलते हैं। 1,600 से 3,300 मीटर की ऊँचाई तक शीतोष्ण कटिबन्धीय शंकुधारी वन मिलते हैं। 3,600 मीटर के ऊपर अल्पाइन वन पाये जाते हैं।

वनों का आर्थिक महत्त्व

प्राकृतिक वनस्पति (वनों) से हमें अनेक प्रकार के लाभ होते हैं, जो वनों के आर्थिक महत्त्व के सूचक हैं। इनकी उपयोगिता निम्नलिखित है

  • वनों से अनेक प्रकार की लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं, जिनको उपयोग इमारतें बनाने, वन-उद्योग तथा ईंधन के रूप में होती है। साल, सागौन, शीशम, देवदार तथा चीड़ प्रमुख इमारती लकड़ी की किस्में हैं।
  • वनों से प्राप्त लकड़ियाँ वनोद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करती हैं। कागज, दियासलाई, प्लाइवुड, रबड़, लुगदी तथा रेशम उद्योग वनों पर ही आधारित हैं।
  • वनों से सरकार को राजस्व तथा रॉयल्टी के रूप में आय होती है।
  • वनों से लगभग 80 लाख व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है।
  • वनों से अनेक प्रकार के गौण उत्पाद प्राप्त होते हैं, जिनमें कत्था, रबड़, मोम, कुनैन तथा जड़ी-बूटियाँ मुख्य हैं।
  • वनों का उपयोग पशुओं के चरागाह के रूप में भी होता है।
  • वनों से अनेक जीव-जन्तुओं को संरक्षण मिलता है।
  • वनों में अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं, जिनकी आजीविका भी वनों पर आधारित है।
  • वन जलवायु के नियन्त्रक तथा बाढ़ नियन्त्रण में सहायक होते हैं।
  • ये वर्षा कराने में सहायक होते हैं तथा इनसे मृदा में उत्पादकता बढ़ती है।
  • वन पर्यावरण प्रदूषण को रोकते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करते हैं।
  • वन मरुस्थल के प्रसार को रोकते हैं।
  • वनों से पर्यटक उद्योग में वृद्धि होती है। नोट-वन संरक्षण के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 6 देखें।

प्रश्न 4. पारिस्थितिकीय सन्तुलन में वन्य-जीवों के योगदान को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
या
पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाये रखने में जैव-विविधता के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

पारिस्थितिकीय सन्तुलन में वन्य-जीवों का योगदान
अथवा जैव-विविधता का महत्त्व

पारिस्थितिकीय जैव सन्तुलन के लिए वन्य-जीवों का योगदान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इनके द्वारा पर्यावरण के बहुत-से प्रदूषित पदार्थों को समाप्त किया जाता है, जिससे पर्यावरण को स्वस्थ बनाये रखने में ये सहयोग प्रदान करते हैं।

भारत में अनेक प्रकार के वन्य जीव-जन्तु पाये जाते हैं, परन्तु उचित संरक्षण के अभाव के कारण उनकी अनेक प्रजातियाँ या तो नष्ट हो चुकी हैं अथवा लुप्तप्राय हैं। इसका एक प्रमुख कारण वन्य-जीवों का संहार है। कुछ व्यक्ति अपने मनोरंजन तथा अवशेषों (दाँत, खाल, मांस एवं पंख) की प्राप्ति हेतु उनका संहार करते हैं। परिणामस्वरूप इनकी अनेक प्रजातियाँ ही विलुप्त हो गयी हैं। विगत सौ वर्षों में विलुप्त होने वाले पक्षियों में अमेरिकी सुनहरी ईगल, सफेद चोंच वाला वुडपेकर, जंगली टर्की, हुपिंग क्रेन, टेम्पेटर हंस आदि प्रमुख हैं। सफेद शेर, हाथी, दरियायी घोड़ा, कस्तूरी मृग, श्वेत मृग आदि अब भारत के दुर्लभ जीव हैं। मस्क बैल एवं नीली ह्वेल लुप्त होने की सीमा पर हैं। मोर तथा पश्चिमी राजस्थान में पाया जाने वाला गोंडावन (बस्टर्ड) पक्षी भी कम होते जा रहे हैं। औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाले विषाक्त जल से भी बड़ी संख्या में मछलियों एवं अन्य छोटे जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है। इससे जलीय पौधों की भी अनेक प्रजातियाँ नष्ट हो चुकी हैं। जब जीव की कोई प्रजाति विलुप्त होती है, तो सजीव जगत् के एक अंश को हम सदैव के लिए खो देते हैं। इससे खाद्य-श्रृंखला पर गहरा प्रभाव पड़ता है तथा पर्यावरण एवं जन्तु-जगत् का सन्तुलन गड़बड़ा जाता है। यह विचारणीय है कि यदि खाद्य-श्रृंखला ही नष्ट हो गयी तो पर्यावरण को भी नष्ट होने से नहीं बचाया जा सकेगा। परिणामस्वरूप मनुष्य स्वयं भी विलुप्त हो जाएगा। अधोलिखित उदाहरणों से इसे और भी स्पष्ट किया जा सकता है

  • कुल्लू घाटी में सेबों की फसल पर एक प्रकार का कीड़ा लग गया, जिसने सम्पूर्ण सेबों की फसल को चौपट कर दिया। कीटनाशकों के छिड़काव से भी कोई आशातीत लाभ नहीं हुआ। अन्तत: वहाँ एक विशेष प्रकार का कीड़ा लाकर छोड़ा गया तब उन हानिकारक कीड़ों पर काबू पाया जा सका।
  • अण्डमान-निकोबार द्वीप समूहों के जंगलों में एक बार सभी शेरों को मार डाला गया। परिणाम यह हुआ कि वहाँ हिरणों की संख्या बढ़ गयी और लोगों को खेती करना मुश्किल हो गया। अन्तत: वहाँ के जंगलों में फिर शेर छोड़े गये।

उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि मानवे तथा वन्य-प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं और संसार के सभी जीव-जन्तु प्रकृति की श्रृंखलाओं से जुड़े हुए हैं। यदि इनमें से एक भी श्रृंखला टूट जाती है तो पूरे जीवमण्डल का सन्तुलन लड़खड़ा जाता है। प्राकृतिक सन्तुलन के बिगड़ने से मनुष्य के समक्ष अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। यही कारण है कि इससे बचाव हेतु पारिस्थितिक सन्तुलन, जीवों के आर्थिक महत्त्व, जीवों के विभिन्न रूप-रंग, स्वभाव तथा व्यवहार के आकर्षण ने वन्य-जीव संरक्षण को राष्ट्रीय उत्तरदायित्व की विषय-वस्तु बना दिया है।

प्रश्न 5.
“वन राष्ट्र की अमूल्य निधि है।” इस कथन की पुष्टि करते हुए वनों के महत्व को सविस्तार लिखिए। वनों के कोई दो प्रत्यक्ष लाभ लिखिए। [2009, 11]
या
वनों के तीन महत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2013]
या

वनों से होने वाले तीन लाभ लिखिए। [2013]
या

भारतीय वनों के किन्हीं चार लाभों का उल्लेख कीजिए। [2013]
या

वनों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। [2014]
या
भारतीय वनों के दो महत्त्व पर प्रकाश डालिए। [2015]
उत्तर :

भारत में वनों का महत्त्व

वन किसी भी राष्ट्र की अमूल्य सम्पत्ति होते हैं, जो वहाँ की जलवायु, भूमि की बनावट, वर्षा, जनसंख्या के घनत्व, कृषि, उद्योग आदि को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। इसीलिए के०एम० मुन्शी ने लिखा है, “वृक्ष का अर्थ है पानी, पानी का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है। भारत जैसे कृषिप्रधान देश के लिए तो वनों का महत्त्व और भी अधिक हो जाता है। भारत में वनों के महत्त्व को इनसे मिलने वाले लाभों से भली-भाँति समझा जा सकता है। वनों से प्राप्त होने वाले लाभों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है

1. प्रत्यक्ष लाभ तथा
2. अप्रत्यक्ष लाभ।

I. प्रत्यक्ष लाभ
वनों से हमें निम्नलिखित प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होते हैं

1. लकड़ी की प्राप्ति- वनों से हमें विभिन्न प्रकार की इमारती तथा जलाने वाली लकड़ियाँ प्राप्त होती | हैं, जो फर्नीचर, इमारतों, उद्योग-धन्धों, कृषि-यन्त्रों के निर्माण आदि के काम आती हैं।
2. उद्योगों को कच्चा माल- माचिस, कागज, प्लाइवुड, रबड़ आदि उद्योगों का विकास वनों पर निर्भर करता है। वनों से विभिन्न उद्योगों के लिए बाँस, लकड़ी, तारपीन का तेल, रंग, रबड़, लाख, वृक्षों की छाल आदि कच्चा माल प्राप्त होता है।
3. पशुओं के लिए चारा- वनों से पशुओं के चारे के रूप में घास-फूस प्राप्त होती है, जिससे चारे की फसलों की आवश्यकता घट जाती है और अधिक भूमि पर खाद्य-फसलें उगायी जा सकती हैं।
4. रोजगार- लगभग 80 लाख व्यक्तियों को वनों से रोजगार प्राप्त होता है।
5. कुटीर व लघु उद्योगों के विकास में सहायक- शहद, रेशम, मोम, कत्था, बेंत आदि के उद्योग वनों पर आधारित हैं। इसके अतिरिक्त बीड़ी, रस्सी, टोकरियाँ आदि बनाने के उद्योगों के विकास में भी वन सहायक होते हैं।
6. औषधियाँ- आयुर्वेदिक, यूनानी तथा एलोपैथी चिकित्सा-प्रणालियों में काम आने वाली विभिन्न पत्तियाँ, टहनियाँ, जड़े, फल-फूल आदि वनों से प्राप्त होते हैं। भारतीय वनों से लगभग 500 प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं।
7. सुगन्धित तथा अन्य तेल- तारपीन, चन्दन, नीम, महुआ आदि तेलों का उत्पादन वनों से प्राप्त सामग्रियों पर ही आधारित है।
8. शिकारगाह- अनेक जंगली जानवर वनों में रहते हैं, जिनका शिकार करके खालें, हड्डियाँ, सींग आदि प्राप्त किये जाते हैं। इन वस्तुओं का निर्यात भी किया जाता है। वर्तमान में भारत सरकार द्वारा वन्य जन्तुओं के अनधिकृत शिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
9. सरकार को आय- वनों से केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों को पर्याप्त धनराशि आय के रूप में प्राप्त होती है।
10. पर्यटन के सुन्दर स्थान- वन प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं। भ्रमण के इच्छुक व्यक्ति वनों के सुन्दर स्थलों पर घूमने के लिए जाते हैं।

II. अप्रत्यक्ष लाभ
वनों से प्राप्त होने वाले अप्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं
1. वर्षा में सहायक- वन बादलों को रोककर निकटवर्ती स्थानों में वर्षा कराने में सहायक होते हैं। जिन क्षेत्रों में वन अधिक होते हैं, वहाँ वर्षा अधिक होती है।
2. भूमि कटाव पर रोक- वनों की घास-फूस तथा वृक्ष पानी के वेग को कम कर देते हैं, जिससे पानी उपजाऊ मिट्टी को अपने साथ बहाकर ले जाने में अधिक सफल नहीं हो पाता।
3. बाढ़-नियन्त्रण में सहायक- वन वर्षा के जल-प्रवाह की गति को कम करके तथा जल को स्पंज की भाँति सोखकर बाढ़ों की भीषणता को कम कर देते हैं।
4. जलवायु पर नियन्त्रण- वन जलवायु की विषमताओं को रोककर उसे समशीतोष्ण बनाये रखते हैं। घने वन तीव्र हवाओं को रोकते हैं, जिससे निकटवर्ती स्थानों में अधिक गर्म व अधिक ठण्डी हवाएँ। नहीं आ पातीं।
5. पर्यावरण सन्तुलन- वन कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलकर वायु-प्रदूषण को रोकते हैं और पर्यावरण का सन्तुलन बनाये रखते हैं।
6. खाद की प्राप्ति- वनों की निकटवर्ती भूमि उपजाऊ होती है, क्योंकि वनों के वृक्षों की पत्तियाँ व घास-फूस गल-सड़कर खाद का कार्य करते हैं। मिट्टी में वनस्पति का अंश मिल जाने से उसकी उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है।
7. विदेशी आक्रमणों से सुरक्षा- शत्रु घने जंगलों से गुजरकर आक्रमण करने का साहस नहीं कर पाते।।
8. अन्य लाभ-

  • वन विभिन्न पशु-पक्षियों को रहने के लिए स्थान प्रदान करते हैं।
  • जंगलों में रहने वाले जंगली जाति के लोगों को वन फल-फूल तथा जानवरों के मांस के रूप में भोजन भी प्रदान करते हैं।

प्रश्न 6.
वनों के ह्रास के कोई तीन कारण लिखिए। वनों के संरक्षण के लिए तीन उपायों का सुझाव दीजिए। [2013]
या
वन संरक्षण क्या है? इसके दो उपायों का सुझाव दीजिए। [2014]
या

भारत में वनों के हास के दो कारण बताइए। [2014, 15]
या

भारत में वनों के हास के क्या कारण हैं ? उनके हास से उत्पन्न समस्याओं की विवेचना कीजिए।
या
वनों की हानि से होने वाले किन्हीं तीन प्रभावों का उल्लेख कीजिए। [2011]
या

वनों के हास से क्या आशय है? भारत में वनों के हास से होने वाले दो प्रभाव बताइए। [2013]
या

वन संरक्षण के तीन उपाय सुझाइए। [2013]
उत्तर :

वनों के हास के कारण

उपग्रहों से लिये गये चित्रों से ज्ञात हुआ है कि भारत में प्रति वर्ष 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के वन नष्ट हो रहे हैं। वनों के विनाश में मध्य प्रदेश सबसे आगे है। यहाँ लगभग 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वनों का विनाश हुआ है। आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र में लगभग 10 लाख हेक्टेयर तथा राजस्थान व हिमाचल में लगभग 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वन विनाश हुआ है। भारत में अब (2015) के अनुसार, 21.34% क्षेत्र पर वन हैं। इन वनों के विनाश के निम्नलिखित कारण हैं

  • निरन्तर बढ़ती जनसंख्या व सामाजिक आवश्यकताएँ।
  • वन भूमि का खेती के लिए उपयोग।
  • उद्योग-धन्धों व मकानों का निर्माण।
  • ईंधन व इमारती लकड़ी की बढ़ती माँग।
  • बाँधों के निर्माण से वनों का जलमग्न होना।
  • सड़कों व रेलमार्गों का निर्माणं।
  • अनियन्त्रित पशुचारण के कारण।
  • जनता में वृक्षों के संवर्धन के प्रति चेतना के अभाव के कारण।
  • स्थानान्तरणशील या झूमिंग कृषि के कारण।
  • दावानल, आँधी, भूस्खलन के कारण।
  • वन-आधारित शक्तिगृहों के लिए वनों की अन्धाधुन्ध कटाई।

हास से उत्पन्न समस्याएँ या प्रभाव

भारत में वनों के अन्धाधुन्ध ह्रास के निम्नलिखित हानिकारक प्रभाव पड़े हैं

  • वनों के अविवेकपूर्ण दोहन से बाढ़ों की आवृत्ति बढ़ी है, जिससे भूमि का अपरदन हुआ है। इन दोनों का दुष्प्रभाव कृषि पर पड़ता है।
  • वनों के कटाव से वर्षा की मात्रा में कमी आयी है, जिससे सूखे का संकट पैदा हुआ है।
  • वन अनेक जीव-जन्तुओं के प्राकृतिक आवास होते हैं। वनों के विनाश से जीव-जन्तुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट हुए हैं।
  • वनों के विनाश का प्रभाव सम्पूर्ण पारिस्थितिक तन्त्र पर पड़ता है। इसके दीर्घकालीन दुष्परिणाम होते हैं, जिनसे मानव भी अछूता नहीं रह सका है।
  • वन वायु को शुद्ध करते हैं। वनों के अत्यधिक दोहन से वायु प्रदूषण बढ़ा है।
  • वनों के ह्रास से रोग तथा अन्य बीमारियों का प्रतिशत बढ़ा है।
  • वनों के ह्रास से औषधीय वनस्पति का अत्यधिक विनाश हुआ है।
  • वनों के विनाश से भू-क्षरण, अतिवृष्टि, बाढ़ तथा भूमिगत जल की कमी की समस्या उत्पन्न हुई है।

वन संरक्षण

वनों को नष्ट होने से बचाने व उनके विकास के लिए किया जाने वाला प्रयास वन संरक्षण कहलाता है।

वनों के विकास हेतु सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास
(वन संरक्षण के उपाय)

देश में वनों के सुनियोजित विकास के लिए सरकार ने समय-समय पर अनेक कदम उठाये हैं। अपनी वन-नीति के अन्तर्गत सरकार ने वनों के संरक्षण तथा विकास के लिए निम्नलिखित मुख्य कार्य किये हैं
1. वन महोत्सव- सन् 1950 ई० में केन्द्रीय वन मण्डल की स्थापना की गयी। सन् 1950 ई० में ही भारत सरकार के तत्कालीन कृषि मन्त्री के०एम० मुन्शी ने ‘अधिक वृक्ष लगाओ’ आन्दोलन प्रारम्भ किया, जिसे ‘वन महोत्सव’ का नाम दिया गया। यह आन्दोलन अब भी चल रहा है। यह प्रत्येक वर्ष पूरे देश में 1 जुलाई से 7 जुलाई तक मनाया जाता है। इस आन्दोलन का उद्देश्य वन-क्षेत्र में वृद्धि तथा जनता में वृक्षारोपण की प्रवृत्ति पैदा करना है।

2. वन-नीति की घोषणा- 
भारत सरकार ने 1952 ई० में अपनी वन-नीति की घोषणा की, जिसमें इन बातों का निश्चय किया गया–

  • देश में वनों का क्षेत्र बढ़ाकर 33% किया जाएगा।
  • वनों पर सरकारी नियन्त्रण होगा।
  • नहरों, नदियों व सड़कों के किनारे वृक्ष लगाये जाएँगे।
  • राजस्थान के रेगिस्तान को रोकने के लिए इसकी सीमा पर वृक्ष लगाये जाएँगे आदि।

3. केन्द्रीय वन आयोग की स्थापना- सरकार ने इसकी स्थापना 1965 ई० में की। इस आयोग का कार्य वन सम्बन्धी आँकड़े व सूचनाएँ एकत्रित करना तथा उन्हें प्रोत्साहित करना था। यह आयोग बाजारों का अध्ययन करके वनों के विकास में लगी विभिन्न संस्थाओं के कार्यों में तालमेल बैठाता है।

4. सर्वेक्षण कार्य-
वनों के सर्वेक्षण के लिए सरकार ने एक पृथक् संगठनं बनाया है, जो लगभग
2 लाख वर्ग किमी वन-क्षेत्र का सर्वेक्षण कर चुका है।

5. राष्ट्रीय वन अनुसन्धान संस्थान- 
इसकी स्थापना देहरादून में की गयी है, जिसका मुख्य कार्य वनों तथा वनों से प्राप्त वस्तुओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना है। यह संस्थान कर्मचारियों को वन सम्बन्धी शिक्षा देकर प्रशिक्षित करता है। वन सम्बन्धी शिक्षा देने के लिए देहरादून तथा चेन्नई में फॉरेस्ट कॉलेज खोले गये हैं।

6. काष्ठ-कला प्रशिक्षण केन्द्र-
इसकी स्थापना 1965 ई० में देहरादून में की गयी थी। यह केन्द्र लकड़ी काटने व उसे प्राप्त करने के आधुनिक तरीकों सम्बन्धी प्रशिक्षण प्रदान करता है।

7. पंचवर्षीय योजनाओं में वन- 
विकास-सन् 1951 ई० में प्रथम योजना के लागू होने के बाद से वन-विकास के लिए निरन्तर प्रयास किये गये हैं। छठी योजना के अन्तर्गत वनों के विकास पर 1,168 करोड़ व्यय किये गये। सातवीं योजना में वनों के विकास के लिए १ 1,203 करोड़ तथा आठवीं पंचवर्षीय योजना में हैं 1,200 करोड़ व्यय करने का प्राक्धान था। अब तक वन-क्षेत्र में 67.8 हजार किमी लम्बी सड़कों का निर्माण किया जा चुका है।

8. अन्य प्रयास-

  • वनों को ठेके पर देने की प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से विभिन्न राज्यों में वन-विकास निगमों की स्थापना की गयी है।
  • सन् 1978 ई० में अहमदाबाद में भारतीय वन प्रबन्ध संस्थान की स्थापना की गयी, जिसका कार्य वन विभाग के कर्मचारियों को वन-प्रबन्ध की आधुनिक विधियों से अवगत कराना है।
  • वनों के विकास के लिए भारत को हरा-भरा बनाओ आन्दोलन’ प्रारम्भ किया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वन्य-जीव संरक्षण का महत्त्व बताइए।
उत्तर :
भारत में वन्य-जीवों का संरक्षण एक दीर्घकालिक परम्परा रही है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि ईसा से 6000 वर्ष पूर्व के आखेट-संग्राहक समाज में भी प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर विशेष ध्यान दिया जाता था। प्रारम्भिक काल से ही मानव समाज कुछ जीवों को विनाश से बचाने के प्रयास करते रहे हैं। हिन्दू महाकाव्यों, धर्मशास्त्रों, पुराणों, जातकों, पंचतन्त्र एवं जैन धर्मशास्त्रों सहित प्राचीन भारतीय साहित्य में छोटे-छोटे जीवों के प्रति हिंसा के लिए भी दण्ड का प्रावधान था। इससे स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में वन्य-जीवों को कितना सम्मान दिया जाता था। आज भी अनेक समुदाय वन्य-जीवों के संरक्षण के प्रति पूर्ण रूप से सजग एवं समर्पित हैं। विश्नोई समाज के लोग पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं के संरक्षण के लिए उनके द्वारा निर्मित सिद्धान्तों का पालन करते हैं। महाराष्ट्र में भी मोरे समुदाय के लोग मोर एवं चूहों की सुरक्षा में विश्वास रखते हैं। कौटिल्य द्वारा लिखित ‘अर्थशास्त्र में कुछ पक्षियों की हत्या पर महाराजा अशोक द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धों का भी उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 2.
भारतीय वनों की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2011]
उत्तर :
भारतीय वनों की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. भारत में जलवायु की विभिन्नता के कारण विविध प्रकार के वन पाये जाते हैं। यहाँ विषुवत्रेखीय सदाबहार वनों से लेकर शुष्क, कॅटीले वन व अल्पाइन कोमल लकड़ी वाले) वन तक मिलते
  2. भारत में कोमल लकड़ी वाले वनों का क्षेत्र कम पाया जाता है। यहाँ कोमल लकड़ी वाले वन हिमालय के अधिक ऊँचे ढालों पर मिलते हैं, जिन्हें काटकर उपयोग में लाना अत्यन्त कठिन है।
  3. भारत के मानसूनी वनों में ग्रीष्म ऋतु से पूर्व वृक्षों की पत्तियाँ नीचे गिर जाती हैं; जिसे पतझड़ कहते हैं।
  4. भारत के वनों में विविध प्रकार के वृक्ष मिलते हैं। अत: उनकी कटाई के सम्बन्ध में विशेषीकरण नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 3.
यव वृक्ष कहाँ पाया जाता है? इससे कौन-सी औषधि बनायी जाती है ?
उत्तर :
हिमालयन यव (चीड़ की प्रजाति का सदाबहार वृक्ष) एक औषधीय पौधा है जो हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके पेड़ की छाल, पत्तियों, टहनियों और जड़ों से टकसोल (Taxol) नामक रसायन निकाला जाता है जिसे कैंसर के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इससे बनायी गयी दवाई विश्व में सबसे अधिक बिकने वाली कैंसर औषधि है। इसके रस के अत्यधिक निष्कासन से इस वनस्पति जाति को खतरा उत्पन्न हो गया है। पिछले एक दशक में हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में यव के हजारों पेड़ सूख गये हैं।

भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति हेतु कृषि क्षेत्र एवं औद्योगीकरण के विस्तार के कारण जिस प्रकार वनों की अन्धाधुन्ध कटाई हो रही है, वह एक गम्भीर चिन्ता का विषय है। देश में वन आवरण के अन्तर्गत अनुमानित 6,78,333 वर्ग किमी क्षेत्रफल है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 20.60 प्रतिशत है। इसमें सघन वन क्षेत्र तो केवल 3,90,564 वर्ग किमी ही है। राष्ट्रीय वननीति के अनुसार देश में वन क्षेत्र का विस्तार 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र पर होना चाहिए। हमारे प्रदेश में तो वनों का क्षेत्रफल कुल क्षेत्रफल का केवल 6,98 प्रतिशत ही है।

प्रश्न 4.
वन्य जीवन के संरक्षण की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर :
वन्य जीवन संरक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित दो कारणों से होती है

  1. प्राकृतिक सन्तुलन में सहायक-वन्य जीवन वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार हैं। किन्तु वर्तमान समय में अत्यधिक वन दोहन तथा अनियन्त्रित और गैर-कानूनी आखेट के कारण भारत की वन्य जीव-सम्पदा का तेजी से ह्रास हो रहा है। अनेक महत्त्वपूर्ण पशु-पक्षियों की प्रजातियाँ विलोप के कगार पर हैं। प्राकृतिक सन्तुलन बनाये रखने के लिए वन्य-जीव संरक्षण की बहुत आवश्यकता है।
  2. पर्यावरण प्रदूषण-पर्यावरण प्रदूषण पर प्रभावी रोक लगाने के लिए भी पशुओं एवं वन्य-जीवों का संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि इनके द्वारा पर्यावरण में उपस्थित बहुत-से प्रदूषित पदार्थों को नष्ट कर दिया जाता है। इसके साथ ही वन्य-जीव पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने में अपना अमूल्य योगदान देते हैं।

प्रश्न 5.
पारितन्त्र किसे कहते हैं ? [2014]
उत्तर :
किसी क्षेत्र के पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु परस्पर इतने जुड़े होते हैं तथा एक-दूसरे पर इतने आश्रित होते हैं कि एक के बिना दूसरे के अस्तित्व की कल्पना तक नहीं की जा सकती। ये एक-दूसरे पर आश्रित पेड़-पौधे और जीव-जन्तु मिलकर एक पारितन्त्र का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए-जीवजन्तु भोजन, ऑक्सीजन आदि के लिए पेड़-पौधों पर आश्रित होते हैं। वर्षा, पर्यावरण आदि के लिए भी वे पेड़-पौधों पर आश्रित हैं। जीव-जन्तु भी पेड़-पौधों के लिए उपयोगी हैं, क्योंकि वे इनको बनाये रखने और इनकी वृद्धि करने में अनेक प्रकार से सहायक हैं। इस पारितन्त्र का विकास लाखों-करोड़ों वर्षों में हुआ है। इससे छेड़छाड़ के गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य-जीव अभयारण्य को परिभाषित करते हुए इनमें किसी एक अन्तर का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
राष्ट्रीय उद्यान एक या एक से अधिक पारितन्त्रों वाला वृहत् क्षेत्र होता है। विशिष्ट वैज्ञानिक शिक्षा तथा मनोरंजन के लिए इसमें पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं की प्रजातियों, भू-आकृतिक स्थलों और आवासों को संरक्षित किया गया है। राष्ट्रीय उद्यान की ही भाँति, वन्य-जीव अभयारण्य भी वन्य-जीवों की सुरक्षा के लिए स्थापित किये गये हैं। अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यानों में सूक्ष्म अन्तर हैं। अभयारण्य में बिना अनुमति शिकार करना वर्जित है, परन्तु चराई एवं गो-पशुओं का आवागमन नियमित होता है। राष्ट्रीय उद्यानों में शिकार एवं चराई पूर्णतया वर्जित होते हैं। अभयारण्यों में मानवीय क्रियाकलापों की अनुमति होती है, जबकि राष्ट्रीय उद्यानों में मानवीय हस्तक्षेप पूर्णतया वर्जित होता है।

प्रश्न 7.
वन और वन्यजीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर :
भारत में प्रकृति की पूजा सदियों से चला आ रहा परम्परागत विश्वास है। इस विश्वास का उद्देश्य प्रकृति के स्वरूप की रक्षा करना है। विभिन्न समुदाय कुछ विशेष वृक्षों की पूजा करते हैं और प्राचीनकाल से उनका संरक्षण भी करते चले आ रहे हैं। उदाहरण के लिए—छोटा नागपुर क्षेत्र में मुंडा और संथाल जनजातियाँ महुआ और कदम्ब के पेड़ों की पूजा करती हैं। ओडिशा और बिहार की जनजातियाँ। विवाह के दौरान इमली और आम के पेड़ों की पूजा करती हैं। बहुत-से लोग पीपल और बरगद के वृक्षों की पूजा आज भी करते हैं।

अंतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति क्या है ? [2009]
उत्तर :
किसी भी क्षेत्र में व्याप्त घास से लेकर बड़े-बड़े वृक्षों तक को उस क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 2.
 प्राकृतिक वनस्पति को प्रभावित करने वाले कारकों के नाम बताइए।
उत्तर :
प्राकृतिक वनस्पति को प्रभावित करने वाले कारकों के नाम इस प्रकार हैं-मृदा, तापमान, वर्षा की मात्रा और समय (अवधि)

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश के कितने प्रतिशत क्षेत्र पर वनावरण होना चाहिए?
उत्तर :
राष्ट्रीय वन-नीति के अनुसार देश के 33.3% क्षेत्र पर वन होने चाहिए।

प्रश्न 4.
भारत के राष्ट्रीय पशु तथा पक्षी के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत का राष्ट्रीय पशु ‘शेर’ तथा राष्ट्रीय पक्षी ‘मोर’ है।

प्रश्न 5.
भारत में प्रथम जीव आरक्षित क्षेत्र कब और कहाँ स्थापित किया गया ?
उतर :
सन् 1986 ई० में केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों के सीमावर्ती 5,500 वर्ग किमी क्षेत्र में नीलगिरि पर प्रथम जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किया गया।

प्रश्न 6.
जैव संरक्षण की क्यों आवश्यकता है ? कोई दो कारण बताइए।
उत्तर :
जैव संरक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित दो कारणों से होती है

  • मनुष्य के चारों ओर विद्यमान पारिस्थितिक तन्त्र को सन्तुलन प्रदान करने के लिए।
  • विभिन्न जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए।

प्रश्न 7.
शेर संरक्षित परियोजना भारत के किस राज्य में लागू है?
उतर :
शेर संरक्षित परियोजना भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में लागू है।

प्रश्न 8.
भारत के दो प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों के नाम बताइए।
उतर :
भारत के दो प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान हैं

  • जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान,
  • सुन्दरवन राष्ट्रीय उद्यान।

प्रश्न 9.
भारत के दो प्रमुख पक्षी विहारों के नाम बताइए।
उतर :
सरिस्का तथा भरतपुर में पक्षी विहार हैं।

प्रश्न 10.
चार औषधीय पौधों के नाम बताइए।
उत्तर :
चार औषधीय पौधे हैं-चन्दन, अशोक, नीम तथा महुआ।

प्रश्न 11.
बाघ परियोजना कब से लागू की गई है?
उत्तर :
बाघ परियोजना 1973 ई० से लागू की गई है।

प्रश्न 12.
वनों पर आधारित किन्हीं दो उद्योगों का उल्लेख कीजिए। [2013, 14, 17]
उत्तर :
वनों पर आधारित दो उद्योग हैं-कागज-उद्योग तथा बीड़ी उद्योग।

प्रश्न 13.
वनों की हानि से क्या आशय है? [2011]
उत्तर :
वनों की हानि से आशय वनों को तेजी से काटे जाने से है, जिससे वन क्षेत्र कम होता जा रहा है। और वनों का ह्रास होता जा रहा है।

प्रश्न 14.
पारिस्थितिकीय तन्त्र को परिभाषित कीजिए। [2015]
उत्तर :
समस्त वनस्पति जगत, जन्तु जगत एवं भौतिक पर्यावरण का सम्मिलन पारिस्थितिकीय तन्त्र कहलाता है।

प्रश्न 15.
‘वन महोत्सव’ से आप क्या समझते हैं? [2016]
उत्तर :
वन महोत्सव–राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के प्रति जनजागरण के लिए सरकार ने प्रतिवर्ष 5 दिसम्बर को वन महोत्सव मनाये जाने का निर्णय लिया। यह दिन प्रत्येक राज्य में पेड़ लगाने के, रूप में मनाया जाता है। इस दिन लाखों की संख्या में वृक्षारोपण किया जाता है। इस योजना का सही क्रियान्वयन न होने से भी इसके विकास में सही गति नहीं पकड़ी जिसकी अपेक्षा की गयी है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. सुन्दरवन उगते हैं [2012]

(क) गंगा के डेल्टा में
(ख) दक्कन के पठार पर
(ग) गोदावरी के डेल्टा में
(घ) महानदी के डेल्टा में

2. निम्नलिखित में कौन सदाबहारी वन है? [2012]
या
निम्नलिखित में से कौन वृक्ष सदाबहारी जंगलों में पाया जाता है? [2015]

(क) महोगनी
(ख) शीशम
(ग) अपेशिया
(घ) आम

3. मानसूनी वनों का प्रमुख वृक्ष है|

(क) रबड़
(ख) आम
(ग) महोगनी
(घ) शीशम

4. कॉर्बेट नेशनल पार्क कहाँ पर है?

(क) रामनगर (नैनीताल)
(ख) दुधवा (लखीमपुर)
(ग) बाँदीपुर (राजस्थान)
(घ) काजीरंगा (असोम)

5. सागौन का वृक्ष कहाँ पाया जाता है?

(क) सदाबहार वनों में
(ख) डेल्टाई वनों में
(ग) मानसूनी वनों में
(घ) पर्वतीय वनों में

6. वन महोत्सव कब प्रारम्भ हुआ था?

(क) 1950 ई० में
(ख) 1955 ई० में
(ग) 1960 ई० में
(घ) 1945 ई० में

7. वन हमारी सहायता करते हैं

(क) मिट्टी का कटाव रोककर
(ख) बाढ़ रोककर
(ग) वर्षा की मात्रा बढ़ाकर
(घ) इन सभी प्रकार से

8. ‘काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान’ कहाँ स्थित है?

(क) उत्तर प्रदेश में
(ख) असोम में
(ग) ओडिशा में
(घ) गुजरात में

9. ज्वारीय वन कहाँ पाये जाते हैं? [2012, 14, 16]

(क) डेल्टाई भागों में
(ख) मरुस्थलीय भागों में
(ग) पठारी भागों में
(घ) पर्वतीय भागों में

10. वह राज्य जहाँ सर्वाधिक शेर पाये जाते हैं

(क) उत्तर प्रदेश
(ख) गुजरात
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) आन्ध्र प्रदेश

11. भारत का राष्ट्रीय पक्षी है [2017]

(क) कबूतर
(ख) मोर
(ग) गौरैया
(घ) हंस

12. किस राज्य में सुन्दरवन स्थित है? [2013]

(क) ओडिशा
(ख) मेघालय
(ग) पश्चिम बंगाल
(घ) अरुणाचल प्रदेश

13. भारत में कितने प्रतिशत भू-भाग पर वन हैं? [2014]

(के) 22.8%
(ख) 23.6%
(ग) 25.9%
(घ) 24.05%

उत्तरमाला.

1. (क), 2. (क), 3. (घ), 4. (क), 5. (ग), 6. (क) 7. (घ), 8. (ख), 9. (क), 10. (ख), 11. (ख), 12. (ग), 13. (घ)

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