UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 5 भोजस्य शल्यचिकित्सा (कथा – नाटक कौमुदी)

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परिचय

प्रस्तुत पाठ बल्लालसेन द्वारा रचित ‘भोज-प्रबन्ध’ नामक कृति से संगृहीत है। इस ग्रन्थ को ऐतिहासिक दृष्टि से कोई खास महत्त्व नहीं है, किन्तु साहित्यिक दृष्टि से इसे ग्रन्थ की महत्ता स्वीकार की गयी है। इस ग्रन्थ में संस्कृत के सभी प्रसिद्ध कवियों को राजा भोज की सभा में उपस्थित दिखाया गया है। इसीलिए इतिहासकारों ने इसे अप्रामाणिक माना है। प्रस्तुत कथा में राजा भोज से मस्तिष्क की शल्य-चिकित्सा का परिचय दिया जाना यह प्रमाणित करता है कि भारत में प्राचीन काल में भी मस्तिष्क जैसे जटिल अंग की सफल शल्य-क्रिया किया जाना सम्भव था।

पाठ-सारांश

भोज के सिर में पीड़ा – किसी समय राजा भोज अपने नगर से बाहर गये। वहाँ उन्होंने जल से कपाल-शोधन क्रिया की। उस समय कोई अत्यधिक छोटी मछली का बच्चा राजा के कपाल में घुस गया। तब से राजा के सिर में पीड़ा रहने लगी। श्रेष्ठ वैद्यों की चिकित्सा से भी वह पीड़ा किंचित् ठीक नहीं हुई। इस प्रकार राजा भयंकर बीमारी से पीड़ित हो गये।

रोग का ठीक न होना – एक वर्ष बीतने पर भी राजा भोज का रोग ठीक नहीं हुआ। वे अनेक ओषधियों के सेवन से तंग आ गये थे। तब उन्होंने अपने मन्त्री बुद्धिसागर से कहा कि आज के बाद कोई भी वैद्य नगर में न रहे। उनकी सभी ओषधियों की शीशियों को नदी में डलवा दिया जाये। अब मेरा मृत्यु-समय निकट आ गया है। यह सुनकर सभी नगरवासी अत्यधिक दुःखी हुए।

नारद-कथन – इसके बाद कभी देवसभा में गये हुए नारदमुनि से इन्द्र ने पृथ्वीलोक का समाचार पूछा। नारद ने कहा कि महाराज भोज किसी रोग से बहुत पीड़ित हैं। उनका रोग किसी भी चिकित्सक की चिकित्सा से ठीक नहीं हुआ; अतः राजा ने सभी वैद्यों को देश से निकाल दिया है और वैद्यकशास्त्र भी झूठा है, ऐसा कहकर उसे भी निरस्त कर दिया है।

इन्द्र द्वारा अश्विनीकुमारों से प्रश्न – तब इन्द्र ने पास बैठे हुए अश्विनीकुमारों (देवताओं के वैद्य या चिकित्सक) से कहा कि यह धन्वन्तरिशास्त्र कैसे झूठा है ? तब अश्विनीकुमारों ने कहा कि देवेश! धन्वन्तरिशास्त्र झूठा नहीं है, किन्तु इस रोग की चिकित्सा तो देवता ही कर सकते हैं। कपाल-शोधन के समय भोज के कपाल में एक अत्यधिक छोटी मछली का बच्चा घुस गया था, उसी के कारण यह रोग है।

अश्विनीकुमारों द्वारा राजा भोज की शल्य-चिकित्सा  तब इन्द्र के आदेश से वे दोनों अश्विनीकुमार ब्राह्मण का वेश बनाकर धारानगरी में गये और वहाँ अपना परिचय काशी नगरी से आये वैद्यों के रूप में दिया। वैद्यों का नगर में प्रवेश निषिद्ध है, यह जानकर वे दोनों बुद्धिसागर के साथ राजा के पास गये। राजा ने मुख के तेज से उन्हें देवता रूप में पहचानकर उनका सम्मान किया। राजा से दोनों ने कहा–राजन्, डरो मत, रोग को गया हुआ समझो। राजा को एकान्त में ले जाकर और बेहोश करके राजा के कपाल से मछली निकालकर, पात्र में रखकर, उनके कपाल को ज्यों-का-त्यों जोड़कर राजा को होश में लाकर उन्हें मछली दिखा दी और बताया कि कपाल-शोधन के समय यह मछली कपाल में चली गयी थी। राजा के पथ्य पूछने पर, उन्होंने गर्म जल से स्नान, दुग्धपान और श्रेष्ठ स्त्रियों को ही मानवों का पथ्य बताया।

अश्विनीकुमारों का प्रस्थान – राजा ने बीच में ‘मानवों का वाक्यांश सुनकर पूछा कि आप कौन हैं ? राजा ने उनको हाथों से पकड़ा, लेकिन वे कालिदास अपना श्लोक का चौथा चरण ‘स्निग्धमुष्णञ्च भोजनम्’ पूरा करें कहकर अन्तर्धान हो गये। राजा ने भी कालिदास को लीला-मानुष मानकर उनका अत्यधिक सम्मान किया।

चरित्र-चित्रण

भोज [2007,08,09, 10, 12, 13, 14, 15)

परिचय महाराज भोज ऐतिहासिक महापुरुष के रूप में भारतीय विद्वत् समाज में प्रतिष्ठित हैं। ये वीर, साहसी एवं महादानी थे। एक बार कपालकशोधन (मस्तिष्क की वह क्रिया, जिसमें पानी के द्वारा मस्तिष्क को साफ किया जाता है) क्रिया करते समय एक अत्यधिक छोटी मछली का बच्चा इनके मस्तिष्क में प्रवेश कर गया, जिससे उनके मस्तिष्क में निरन्तर पीड़ा रहने लगी। मर्त्यलोक के वैद्यों के रोग-निदान में असफल रहने पर अश्विनीकुमार शल्य-चिकित्सा से पीड़ा का निवारण कर देते हैं। यहाँ भोज को देव-प्रिय राजा के रूप में भी चित्रित किया गया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. निराशावादी – इतिहास में राजा भोज को अधिकांश स्थानों पर धैर्यशाली एवं आशावादी के रूप में चित्रित किया गया है, किन्तु यहाँ पर उन्हें सामान्य मानव की भाँति निराशाबादी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। बैद्यों द्वारा अपने मस्तिष्क की पीड़ा का कोई निदाम न पाकर वह जीवन से निराश हो जाते है उनके “मम देवसमागमसमयः समागतः इति” (मेरा देवताओं के पास जाने का समय हो गया है) वाक्य से उनका निराशावादी दृष्टिकोण स्पष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं उनका वैद्यकशास्त्र से भी विश्वास उठ जाता है और वह अपने मन्त्री को समस्त वैद्यों को राज्य से निष्कासित करने तथा सम्पूर्ण ओषधियों को नदी में फिंकवाने का आदेश देते हैं।

2. बुद्धिमान् एवं तत्त्वद्रष्टा – महाराज भोज यहाँ पर तत्त्वद्रष्टा के रूप में भी चित्रित किये गये हैं। अश्विनीकुमारों के मुख-मण्डल के तेज को देखकर ही वे समझ जाते हैं कि वैद्य के रूप में ये देव-पुरुष हैं। तथा देवता मानकर ही वे उनका सत्कार भी करते हैं। अपने बुद्धि-चातुर्य से वे अश्विनीकुमारों के एतदवो मानुषापथ्यमिति’ कथन से उनका देवलोकवासी होना जान लेते हैं और अन्तत: उनसे पूछ ही लेते हैं कि यदि हम मनुष्य हैं तो आप दोनों कौन हैं? यह तथ्य उनके बुद्धिमान् एवं तत्त्वद्रष्टा होने की पुष्टि करते हैं।

3. सर्वलोकप्रिय राजा – महाराजा भोज इस लोक में ही प्रसिद्ध नहीं हैं, वरन् देवलोक में भी उनकी प्रसिद्धि है। प्रजा तो उन्हें चाहती ही है, देवता भी पृथ्वी पर उनकी सकुशल उपस्थिति चाहते हैं। नारद से उनकी मस्तिष्क-पीड़ा की बात सुनकर इन्द्र स्वयं अश्विनीकुमारों को भूलोक में जाकर भोज की चिकित्सा करने का आदेश देते हैं।

4. कपाल-स्वच्छता के ज्ञाता – राजा भोज कपल-स्वच्छता की विधि से परिचित हैं। वे कपाल की आन्तरिक स्वच्छता का भी पूर्ण ज्ञान रखते हैं। कपाल की स्वच्छता करते समय ही एक अत्यधिक छोटी मछली का बच्चा कपाल में प्रवेश कर जाता है।

5. गुणग्राही – गुणवान् ही गुणवानों का सम्मान करता है। यह बात राजा भोज पर चरितार्थ होती है। मानवों के लिए पथ्य बताते समय अश्विनीकुमार श्लोक के तीन चरण ही कह पाते हैं कि राजा भोज ‘मानुषाः’ शब्द सुनकर उनका हाथ पकड़ लेते हैं और उनसे पूछते हैं कि आप दोनों कौन हैं ?’ तब चौथे चरण की पूर्ति कालिदास करेंगे, यह कहकर अश्विनीकुमार अन्तर्धान हो जाते हैं। तब कालिदास द्वारा स्निग्धमुष्णञ्च भोजनम्’ कहकर चरण-पूर्ति करने पर और अश्विनीकुमारों द्वारा कालिदास की विद्वत्ता की ओर संकेतमात्र करने से वह कालिदास को लीला-पुरुष मानकर उनका भी अत्यधिक सम्मान करते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजा भोज प्रजावत्सल, सर्वगुणसम्पन्न, बुद्धिमान् और सर्वलोकप्रिय राजा हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजः कः आसीत् ? [2006, 07, 10, 12, 15]
या
भोजः कस्याः नगर्याः राजा आसीत्? [2011, 13]
उत्तर :
भोज: धारानगर्याः राजा आसीत्।

प्रश्न 2.
द्वारस्थौः भिषजौ किमाहुः ?
उत्तर :
द्वारस्थौ भिषजौ आहु–भो विप्रौ ? न कोऽपि भिषग्प्रवरः प्रवेष्टव्यः इति राज्ञोक्तम्।

प्रश्न 3.
सः कुत्र अगच्छत् ?
उत्तर :
स: नगरात् बहिरगच्छत्।

प्रश्न 4.
मानुषा पथ्यं किम् अस्ति ?
या
मानुषाणां पथ्यं किमस्ति ? [2015]
उत्तर :
उष्णजलेन स्नानं, पयः पानं, वरास्त्रियः, स्निग्धम् उष्णं च भोजनम् एतद् मानुषां पथ्यम्।

प्रश्न 5.
भोजस्य चिकित्सा काभ्यां कृता कुतः चतौ समागतौ ? [2010]
उत्तर :
भोजस्य चिकित्सा अश्विनीकुमाराभ्यां कृता, तौ च स्वर्गात् समागतौ।

प्रश्न 6.
श्लोकस्य तुरीयं चरणं केन पूरितम् ?
उत्तर :
श्लोकस्य तुरीयं चरणं कालिदासेन पूरितम्।

प्रश्न 7.
राज्ञः कपाले वेदना किमर्थम् जाता ? [2008]
उत्तर :
कपालशोधनकाले राज्ञः कपाले एकः शफरशाव: प्रविष्टः। अत: कपाले वेदना अभवत्।

प्रश्न 8.
पुरन्दरः नारदं किमाह ?
उत्तर :
पुरन्दर: नारदम् आह—भो मुने! इदानीं भूलोके का नाम वार्ता ? इति।

प्रश्न 9.
कालिदासः चतुर्थ चरणं केन रूपेण पूरितवान् ? [2006]
उत्तर :
कालिदास चतुर्थ चरणं “स्निग्धम् उष्णं च भोजनम्” इति रूपेण पूरितवान्।

प्रश्न 10.
भोजः कालिदासं कं मत्वा परं सम्मानितवान् ? [2013]
उत्तर :
भोजः कालिदासं लीलामानुषं मत्वा परं सम्मानितवान्।

प्रश्न 11.
भोजस्य कस्मिन् स्थाने वेदना जाता? [2009, 15]
उत्तर :
भोजस्य कपाले वेदना जाता।

प्रश्न 12.
भोजस्य मन्त्री कः आसीत्? [2012, 13, 14]
उत्तर :
भोजस्य मन्त्री बुद्धिसागरः आसीत्।

प्रश्न 13. 
राजा बुद्धिसागरं किम् अकथयत्? [2014]
उत्तर :
राजा बुद्धिसागरं अकथयत् “मम देवसमागम समय: समागतः।”

बहुविकल्पीय प्रश्न

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर-रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए
[संकेत – काले अक्षरों में छपे शब्द शुद्ध विकल्प हैं।]

1. ‘भोजस्य शल्यचिकित्सा’ शीर्षक पाठ किस संस्कृत ग्रन्थ से उधृत है?

(क) ‘महाभारत’ से
(ख) ‘हितोपदेश’ से
(ग) ‘पञ्चतन्त्रम्’ से
(घ) ‘भोज-प्रबन्ध’ से

2. राजा भोज ने अपने कपाल का शोधन किस जल से किया था ?

(क) कुएँ के जल से
(ख) तालाब के जल से
(ग) घड़े के जल से
(घ) नदी के जल से

3. राजा भोज के सिर की पीड़ा का मुख्य कारण क्या था ?

(क) अयोग्य वैद्य
(ख) कपाले में प्रविष्ट शफरशाव
(ग) कार्य का दबाव
(घ) गलत ओषधि का प्रयोग

4. पुरन्दर की सभा में भोज की पीड़ा के विषय में किस मुनि ने बताया ?

(क) वीणामुनि ने
(ख) भरद्वाज मुनि ने
(ग) विश्वामित्र ने
(घ) अगस्त्य मुनि ने

5. “भोजस्य शल्यचिकित्सा” पाठ में ‘वीणामुनि’ के द्वारा किस मुनि का संकेत किया गया है?

(क) वाल्मीकि का
(ख) नारद को
(ग) व्यास का
(घ) वशिष्ठ का

6. पुरन्दर (इन्द्र) ने अश्विनीकुमारों को राजा भोज की चिकित्सा के लिए भेजा था, क्योंकि –

(क) राजा भोज इन्द्र के मित्र थे
(ख) भोज ने उन्हें बुलाया था
(ग) भोज से प्रभूत धन मिलने की आशा थी
(घ) भिषक् शास्त्र की असिद्धि हो रही थी

7. अश्विनीकुमारों ने भोज की शिरो-वेदना की चिकित्सा कहाँ की ?

(क) राजदरबार में
(ख) राजमहल में
(ग) एकान्त स्थल पर
(घ) देवता के मन्दिर में

8. …………………….. वरास्त्रियः एतद्वो मानुषापथ्यमिति” को सुनकर भोज ने अश्विनीकुमारों –

(क) को मरवा दिया
(ख) के हाथों को अपने हाथों में पकड़ लिया
(ग) को भगा दिया।
(घ) को बन्दी बना लिया।

9. अश्विनीकुमारों के कथनानुसार कालिदास श्लोक का कौन-सा चरण पूरा करेंगे ?

(क) चतुर्थ
(ख) तृतीय
(ग) द्वितीय
(घ) प्रथम

10. …………………….. “वासी श्री भोजभूपालरोगपीडितो नितरामस्वस्थो वर्तते।”वाक्य में रिक्त-स्थान में आएगा –

(क) मिथिलानगर
(ख) चित्रपूरनगर
(ग) उज्जयिनी
(घ) धारानगर

11. ‘भो स्वर्वैद्यौ! कथमनृतं धन्वन्तरीयं शास्त्रम् ?” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?

(क) राजा भोज:
(ख) पुरन्दरः
(ग) नारदः
(घ) कालिदासः

12. …………………….. अम्भसा स्नानं, पयःपानं, वरास्त्रियः एतद्वो मानुषापथ्यमिति।” वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति के लिए उपयुक्त पद है –

(क) शीतेन
(ख) तटाका
(ग) कूपेन
(घ) अशीतेन

13. स्निग्धमुष्णञ्च भोजनम् इति।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?

(क) अश्विनीकुमारः
(ख) कालिदासः
(ग) राजा भोजः
(घ) पुरन्दरः

14. “ततो भोजोऽपि …………………….. लीलामानुषं मत्वा परं सम्मानितवान्।” वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी –

(क) अश्विनीकुमारौ’ से
(ख) कालिदासम्’ से
(ग) “वीणामुनिम्’ से
(घ) “बुद्धिसागरम्’ से

15. हर्षचरितस्य रचयिता …………………….. अस्ति।

(क) भट्टनारायणः
(ख) बाणभट्टः
(ग) आर्यशूरः
(घ) बल्लालसेनः

16. ‘भोजप्रबन्धस्य’ प्रणेता (रचयिता) …………………….. आसीत्। [2008,09, 12, 13, 14]

(क) बल्लालसेनः
(ख) चरकः
(ग) भोजः
(घ) कालिदासः

17. भोजः …………………….. नृपः आसीत्।

(क) धारानगर्याः
(ख) मथुरानगर्याः
(ग) काशीनगर्याः
(घ) अलकानगर्याः

18. मोजस्य चिकित्सकः …………………….. आसीत्। [2007,08]

(क) चरकः
(ख) अश्विनीकुमारः
(ग) धन्वन्तरिः
(घ) हरिहरः

19. भोजस्य …………………….. वेदना जाता। [2007,08,09]

(क) उदरे
(ख) कपाले
(ग) वक्षस्थले
(घ) पृष्ठभागे

20. अथ कदाचित् …………………….. नगराद बहिः निर्गतः। [2009]

(क) भोजो
(ख) श्रीहर्षों
(ग) जनको
(घ) शिववीरः

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