UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 16 दीनबन्धु ज्योतिबाफुले (गद्य – भारती)
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पाठ का सारांश
ग्यारह अप्रैल, सन् 1827 ई० में पुणे नामक स्थान पर जन्मे ज्योतिबा फुले एक भारतीय विचारक, समाज-सेवक, लेखक, दार्शनिक और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्होंने महाराष्ट्र में सत्यशोधक संस्था को संगठित किया था। दलित स्त्रियों के उत्थान के लिए अनेक कार्यों को करने वाले ज्योतिबा फुले का विचार था कि भारतीय समाज में सभी शिक्षित हों।
ज्योतिबा फुले के पूर्वज सतारा से पुणे आकर फूलों की माला बेचकर जीवन-यापन करते थे। इसी कारण से ये ‘फुले’ नाम से विख्यात हुए। आरम्भ काल में मराठी भाषा का अध्ययन करने वाले फुले की शिक्षा बीच में ही रुक गयी। इक्कीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने अंग्रेजी भाषा से सातवीं कक्षा की शिक्षा पूरी की। 1840 में इनका विवाह सावित्री नाम की कन्या के साथ हुआ। पत्नी के साथ मिलकर इन्होंने स्त्री-शिक्षा के लिए कार्य किया। उन्होंने विधवा तथा अन्य स्त्रियों के साथ-साथ कृषकों की दशा को सुधारने का प्रयत्न किया। 1848 में स्त्रियों के लिए प्रथम विद्यालय संचालित किया। इस प्रयत्न में उच्चवर्गीय लोगों ने अवरोध भी उत्पन्न किया किन्तु वे उनके आगे टिक न सके।
फुले के मन में सन्तों के प्रति अगाध श्रद्धा थी। दलितों की सहायता के लिए ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की। इनके सेवा कार्य को देखकर इन्हें मुम्बई की एक सभा में महात्मा’ की उपाधि दी गई। ज्योतिबा ने बिना ब्राह्मण के विवाह कराने की मान्यता मुम्बई न्यायालय से दिलाई। उन्होंने तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी आदि अनेक ग्रन्थों की रचना की। ज्योतिबा फुले क्रान्तिकारी विचारक, समाजसेवक, दार्शनिक और लेखक थे। अस्पृश्यता के दु:ख के उन्मूलन में इनकी भूमिका अकथनीय रही है। इन महापुरुष का स्वर्गवास 28 नवम्बर, 1890 ई० में पुणे में हुआ था। माली समाज के महात्मा ज्योतिबा फुले एक ऐसे महामानव थे जिन्होंने निम्न जाति को समानता का अधिकार दिलाने के लिए आजीवन कार्य किया। हमारे देश के इतिहास में सावित्री फुले को प्रथम दलित शिक्षिका का गौरव प्राप्त हुआ था।
गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद
(1)
ज्योतिराव गोविन्दराव इत्याख्यस्य जन्म अप्रैलमासस्य एकादशदिनाङ्के सप्तविंशत्याधिके अष्टादशखीष्टाब्दे पुणे नामके स्थानेऽभवत्। अयं महात्मा फुले एवं ज्योतिबा फुले नाम्ना प्रचलितो एको महान् भारतीय विचारकः, समाजसेवकः, लेखकः, दार्शनिकः क्रान्तिकारी कार्यकर्ता चासीत्। त्रयोधिकसप्ततिः अष्टादशशते ख्रीष्टाब्दे अयं महाराष्ट्र ‘सत्यशोधक समाज’ नामक संस्थां संगठितवान्। नारीणां दलितानाञ्चोत्थानायायमनेकानि कार्याण्यकरोत्। ‘भारतीयाः मानवाः सर्वे शिक्षिताः स्युः’, अस्य एतत् चिन्तनमासीत्।।
शब्दार्थ इत्याख्यस्य = इस नाम वाले। स्थानेऽभवत् =स्थान पर हुआ। संगठितवान् = संगठित किया। दलितानाञ्चोत्थानायायमनेकानि = और दलितों के उत्थान के लिए अनेक, सर्वे शिक्षिताः स्युः = सभी शिक्षित हों।।
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य-खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘दीनबंधु ज्योतिबा फुले’ शीर्षक पाठ से उधृत है।
प्रसंग इस गद्यांश में ज्योतिबा फुले के जन्म और उनके गुणों के विषय में बताया गया है।
अनुवाद ज्योतिराव गोविन्दराव इस नाम वाले (पुरुष) का जन्म ग्यारह अप्रैल अठारह सौ सत्ताईस ई० में पुणे नामक स्थान पर हुआ। यह महात्मा फुले और ज्योतिबा फुले नामों से प्रचलित एक महान् भारतीय विचारक, समाजसेवक, लेखक, दार्शनिक और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। सन् अठारह सौ तिहत्तर ई० में इन्होंने महाराष्ट्र में ‘सत्यशोधक समाज’ नामक संस्था को संगठित किया। नारियों और दलितों के उत्थान के लिए अनेक कार्य किए। सभी भारतीय मानव शिक्षित हों, यह इनका चिन्तन था।
(2)
तस्य पूर्वजाः पूर्वं सतारातः आगत्य पुणे नगरं प्रत्यागत्य पुष्पमालां गुम्फयन् स्वजीवनं निर्वापयामास। परिणामस्वरूपे मालाकारस्य कार्ये संलग्नाः इमे ‘फुले’ नाम्ना विख्याताः अभवन्। महानुभावोऽयं प्रारम्भिककाले मराठीभाषां अपठत् किन्तु दैववशात् अस्य शिक्षा मध्येऽवरुद्धा संजाता। सः पुनः पठितुं मनसि विचार्य एकविंशतिं वर्षस्यावस्थायां आंग्लभाषायाः सप्तम्याः कक्षायाः शिक्षा पूरितवान्। चत्वारिंशत् अधिकाष्टादशशतमे (1840) खीष्टाब्दे अस्य विवाहः सावित्री नाम्न्याः कन्यया साकमभवत्। अस्य भार्यापि स्वयमपि एका प्रसिद्ध समाजसेविका संजाता। समाजस्योन्नतये स्वभार्यया सह मिलित्वाऽयं दलितोत्थानाय स्त्रीशिक्षायै च कार्यमकरोत्।। शब्दार्थ सतारातः आगत्य = सतारा से आकर पुष्पमालां गुम्फयन् =फूलमाला बनाते हुए। मालाकारस्य कायें संलग्नाः = माली के कार्य में संलग्न होने से। दैववशात् =भाग्यवश होकर| मनसि विचार्य = मन से सोचकर। भार्यापि = पत्नी भी। स्त्रीशिक्षायै = स्त्री-शिक्षा के लिए।
प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में लेखक दीनबंधु ज्योतिबा के उपनाम तथा शिक्षा के विषय में बताते हुए लिखता है।
अनुवाद उनके पूर्वज पहले सतारा से आकर पुणे नगर में पुनः लौटकर फूलमाला बनाते हुए अपने जीवन का निर्वाह करने लगे। इसके परिणामस्वरूप माली के कार्य में संलग्न होने के कारण ये ‘फुले’ नाम से विख्यात हो गये। इस महोदय ने प्रारम्भिक काल में मराठी को पढ़ा किन्तु भाग्यवश इनकी शिक्षा बीच में ही रुक गयी। उन्होंने पुनः पढ़ने का विचार करके इक्कीस वर्ष की अवस्था में अंग्रेजी भाषा से सातवीं कक्षा की शिक्षा पूरी की। सन् 1840 ई० में इनका विवाह सावित्री नाम की कन्या के साथ हुआ। इनकी पत्नी भी स्वयं ही एक प्रसिद्ध समाजसेविका हुईं। समाज की उन्नति के लिए अपनी पत्नी के साथ मिलकर इन्होंने दलितों के उत्थान और स्त्री-शिक्षा के लिए कार्य किए।
(3)
ज्योतिबा फुले भारतीयसमाजे प्रचलिताः जात्याः आधारिताः विभाजनस्य पक्षौ नाऽसीत्। सः वैधव्ययुक्तानां नारीणाम् एवम् अपराणां नारीणां कृते महत्त्वपूर्ण कार्यं कृतवान्। कृषकाणां दशां वीक्ष्य दुःखितोऽयं तेषाम् उद्धाराय सतत् प्रयत्नशीलः आसीत्। ‘स्त्रीणामसफलतायाः कारणं तेषामशिक्षैव विद्यते’ इति विचार्य सः अष्टाचत्वरिंशत् अधिकाष्टदशखष्टाब्दे एकः विद्यालयः संचालितवान् अस्य कार्याय देशस्यायं प्रथमो विद्यालयः आसीत्। बालिका शिक्षायै शिक्षिकायाः स्वल्पतां दृष्ट्वा सः स्वयमेव शिक्षकस्य भूमिका निर्वहत्। अनन्तरं स्वभार्या शिक्षिकारूपेण नियुक्तवान्। उच्च सवंर्गीयाः जनाः प्रारम्भ कालादेव तस्य कार्ये बाधां स्थापयितु कटिबद्धाः आसन्। परञ्च अयं स्वकार्ये प्रयतमानः अग्रगण्यः अभवत्। तं अग्रे गतिशीलं दृष्ट्वा ते दुर्जनाः तस्य पितरं प्रति अशोभनीयं कथनमुक्ता। दम्पत्तिं स्वगृहात् बहिः प्रेषितवान्। स्वगृहात् बर्हिगमने सतितस्य कार्यावरुद्धं संजातम् परंच शीघ्रातिशीघ्रमेव सः बलिकाशिक्षायै त्रयोः विद्यालयाः उदघाटितवान्।
शब्दार्थ प्रचलितजात्याधारितविभाजनस्य = प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन के वैधव्ययुक्तानां नारीणाम् = विधवा स्त्रियों के अपराणां नारीणाम् = अन्य (दूसरी) नारियों के वीक्ष्य = देखकर/जानकर/समझकरे त्रीणामसफलतायाः कारणम् =स्त्रियों की असफलता का कारण स्वल्पता दृष्ट्वा = अपनी कमी को जानकर कार्ये बाधां स्थापयितुम = कार्य में अड़चन (बाधा डालने के लिए प्रयतमानः = प्रयास में लगे रहने वाले
प्रसंग इस गद्यांश में समाजसेवी ज्योतिराव गोविन्दराव फुले के द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों का उल्लेख किया गया है।
अनुवाद ज्योतिबा फुले भारतीय समाज में प्रचलित जातिगत विभाजन के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने विधवा स्त्रियों और दूसरी नारियों के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए, किसानों की दशा को देखकर दु:खी होकर ये उनके उद्धार के लिए सतत् प्रयत्नशील हुए। ‘स्त्रियों की असफलता का कारण उनकी अशिक्षा ही है। ऐसा विचार करके उन्होंने सन् 1848 ई० में एक विद्यालय चलाया। इस कार्य के लिए देश का यह प्रथम विद्यालय था। लड़कियों की शिक्षा के लिए अध्यापिकाओं की कमी जानकर (देखकर) उन्होंने स्वयं ही शिक्षक की भूमिका का निर्वहन किया। बाद में अपनी पत्नी को शिक्षिका के रूप में नियुक्त किया। उच्चवर्गीय लोग प्रारम्भिक काल से ही उनके कार्य में बाधा डालने के लिए कटिबद्ध थे। परन्तु ये अपने कार्य में निरन्तर अग्रगण्य रहे। उनकी आगे बढ़ने की गतिशीलता को देखकर उन दुर्जनों ने उनके पिता के प्रति अशोभनीय बातें भी कहीं। पति-पत्नी को अपने घर से बाहर भेज दिया। अपने घर से बाहर निकलने से उनका कार्य रुक गया, परन्तु अति शीघ्र ही उन्होंने बलिकाओं की शिक्षा के लिए तीन विद्यालय खोल दिए।
(4)
अस्य हृदि सन्त-महात्मानं प्रति बहुरुचिरासीत्। तस्य विचारेषु ‘ईश्वस्य सम्मुखे नर-नारी सर्वे समानाः सन्ति, तेषु श्रेष्ठता लघुता अशोभनीया विद्यते। दलितजनानामसहायञ्च न्यायार्थं महापुरुषोऽयं ‘सत्यशोधक समाजम्’ स्थापितवान्। अस्य सामाजिक सेवाकार्यं विलोक्य अष्टाशीति अष्टादशशतख्रीष्टाब्दे मुम्बईनगरस्य एका विशाला सभा तं ‘महात्मा’ इत्युपाधिना अलङ्कृतवान्। ज्योतिबा महोदयेन ब्राह्मणेन पुरोहितेन बिनैव विवाहसंस्कारमकारयत्। अस्य संस्कारस्य मुम्बई न्यायालयात् मान्यता संप्राप्ता। सः तु बालविवाहस्य विरोधं एवञ्च विधवाविवाहस्य समर्थकः आसीत्।
शब्दार्थ हृदि = हृदय में। विचारेषु = विचारों में। दलितजनानामसहायांनाञ्च = दलितों और असहाय जनों का। विलोक्य = देखकर
प्रसंग इस गद्यांश में लेखक ज्योतिबा फुले की रुचियों का ज्ञान तथा उनको मिली उपाधि आदि के विषय में चर्चा करता हुआ कहता है।
अनुवाद इनके (ज्योतिबा फुले के) हृदय में संत-महात्माओं के प्रति अत्यधिक रुचि थी। उनके विचारों में भगवान के सामने स्त्री-पुरुष सभी समान हैं और उनके बीच लघुता और श्रेष्ठता प्रकट करना अशोभनीय है। दलितों और असहाय जनों के न्याय के लिए इस महापुरुष ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। इनके सामाजिक सेवा कार्य को देखकर 1888 ई० में मुम्बई नगर की एक विशाल सभा में इन्हें महात्मा’ इस उपाधि से अलंकृत किया गया। ज्योतिबा महोदय के द्वारा ब्राह्मण और पुरोहितों के बिना विवाह संस्कार कराया गया। इस संस्कार की मुम्बई न्यायालय से मान्यता मिली। वे बाल विवाह के विरोधक और विधवा विवाह के समर्थक थे।
(5)
स्वजीवनकाले स तु अनेकानि पुस्तकानि अलिखत्, यथा—तृतीयरत्नं, छत्रपतिशिवाजी, राजाभोसले इत्याख्यस्य पँवाडा, ब्राह्मणानां चातुर्यम्, कृषकस्य कशा अस्पृश्यानां समाचारं इत्यादयः। महात्मा ज्योतिबा एवं तस्य संगठनस्य संघर्ष कारणात् सर्वकारेण ‘एग्रीकल्चरएक्ट’ इति स्वीकृतम्। धर्मसमाजस्य परम्परायाः सत्यं सर्वेर्षां सम्मुखमानेतुं तेन अन्यानि अपराणि पुस्तकानि-रचितानि। ज्योतिबा बुद्धिमान् महान् क्रान्तिकारी-भारतीयविचारकः समाजसेवकः लेखकः दार्शनिकश्चासीत्। महाराष्ट्रनगरे धार्मिकसंशोधनमान्दोलनं प्रचलनासीत्। जातिप्रथामुन्मूलनार्थमेकेश्वरवादं स्वीकर्ते ‘प्रार्थना समाजस्य स्थापना संजाता। अस्य प्रमुखः गोविन्द रानाडे आरजी भण्डारकरश्चासीत्। अयं महान् समाजसेवकः अस्पृश्यानां उद्धाराय सत्यशोधक समाजस्य स्थापनाम् अकरोत्। महात्मा ज्योतिबा फुले (ज्योतिराव गोविन्दराव फुले) महोदयस्य मृत्युः नवम्बर मासस्य अष्ट विंशति दिनांके नवत्यधिक अष्टादशशततमे खीष्टाब्दे (28 नवम्बर, 1890 ई०) पुणे नगरे अभवत्।।
शब्दार्थ स्वजीवनकाले = अपने जीवनकाल में। कृषकस्य कशाः = किसानों का कोड़ा। अस्पृश्यानां समाचारम् =अछूतों की कैफियत। सर्वेषां सम्मुखमानेतुम् = सभी के सामने लाने के लिए। जातिप्रथामुन्मूलनार्थम् =जाति प्रथा को जड़ से मिटाने के लिए।
प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में महात्मा ज्योतिबा फुले के लेखन कार्य के द्वारा दी गई समाज-सेवा का उल्लेख किया गया है।
अनुवाद अपने जीवनकाल में तो उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की; जैसे–तीसरे रत्न छत्रपति शिवाजी, राजा भोसले आदि की जीवनियाँ, ब्राह्मणों की चतुरता, किसानों का कोड़ा, अछूतों की कैफियत
आदि। महात्मा ज्योतिबा एवं उनके संगठन के संघर्ष के कारण से सरकार के द्वारा ‘एग्रीकल्चर एक्ट स्वीकार किया गया। धर्म समाज की परम्परा की सत्यता को सबके सम्मुख लाने के लिए इनके द्वारा अनेक दूसरी पुस्तकों की रचना की गई। ज्योतिबा बुद्धिमान, महान् क्रान्तिकारी, भारतीय विचारक, समाजसेवक, लेखक और दार्शनिक थे। महाराष्ट्र नगर में धार्मिक संशोधन आन्दोलन प्रचलित था। जाति प्रथा को जड़ से उखाड़ने के लिए और एक ईश्वरवाद को स्वीकार करने के लिए प्रार्थना समाज’ की स्थापना की गई। इसके प्रमुख गोविन्द रानाडे और आर०जी० भण्डारकर थे। इस महान् समाजसेवक ने अछूतों के उद्धार के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना की। महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु 28 नवम्बर, 1890 ई० में पुणे नगर में हुई।
(6)
अस्पृश्यनां दुःखेनोन्मूलने अस्य भूमिका अकथनीया विद्यते। पुणेनगरे दलितानां गृतिः शोचनीयासीत्। उच्चजातीनां कुपात् जलं नेतुं ते मुक्ताः नासन्। ते दलितानामेतादृशीं दुर्दशां दृष्ट्वा-दृष्ट्वा तस्य हृदयं विदीर्णोजातः तदैव सः स्वमनसि विचारयामास यत् एषाम् दुःखम् दूरीकरणीयम्। अयं महापुरुषः तेषाम्। अमानवीयव्यवहारं दृष्ट्वा सः स्वगृहस्य जलसंचय कूपम् अपृश्यानां कृते मुक्तं कृतवान्। सः नगरपालिकायाः सदस्यः आसीत् अतः तेषां कृते सार्वजनिकस्थाने जलसंचय कूपं स्यात् एतत् प्रबन्धनं कृतम्। मालाकारसमाजस्य महात्मा ज्योतिबा फुले एव एतादृशः महामानवः आसीत् यः निम्नजातीनां जनानां कृते समानतायाः अधिकारस्य आजीवनं कार्यमकरोत्।।
शब्दार्थ दलितानां गतिः = दलितों की स्थिति हृदयं विदीर्णोजातः = मन दुःखी हो जाता था, जलसंचय कूपम् = पानी की हौज।।
प्रसंग अछूत जातियों के दुःख के उन्मूलन में इनकी भूमिका का वर्णन इस गद्यांश में किया गया है।
अनुवाद अछूत वर्ग (की जाति) के दु:खों को दूर करने में इनकी भूमिका अकथनीय है। पुणे नगर में दलितों की गति सोचनीय थी। उच्च जाति के लोगों के कुएँ से पानी लेने के लिए वे मुक्त नहीं थे (अर्थात् पानी नहीं ले सकते थे)। उन दलितों की ऐसी दुर्दशा देख-देखकर उनका हृदय विदीर्ण हो जाता था तभी उन्होंने अपने मन में विचार किया कि इनके दुःख को दूर करना होगा। इन महापुरुष ने उनके अमानवीय व्यवहार को देखकर अपने घर में जलसंचय करने के लिए कुएँ को अछूतों के लिए मुक्त कर दिया। वे नगरपालिका के सदस्य थे अत: उनके लिए सार्वजनिक स्थानों से जलसंचय करने के लिए कुआँ हो, ऐसा प्रबन्ध किया। माली समाज के महात्मा ज्योतिबा फुले ऐसे ही महामानव थे जिन्होंने निम्न जाति के लोगों के समानता के अधिकार के लिए आजीवन कार्य किया।
(7)
अस्य सहधर्मचारिणी सावित्रीबाई अस्य कार्येण प्रभाविता आसीत्। अतः सा नारी शिक्षयितुं कटिबद्धासीत्। यदा सा नारी पाठयितुं प्रारब्धवती तदैव दलितविरोधिनः उच्चस्वरैः विरोधं प्रकटयन उक्तवन्तः यत् एकाहिन्दूनारी शिक्षिका भूता समाजस्य धर्मस्य च विरोधं कर्तुं शक्नोति। नारी जातेः पठनं पाठनं वा धर्मविरुद्धं वर्तते। सावित्रीबाई यदा विद्यालयं गच्छति स्म तदा तस्योपरि मृत्तिका-गोमय-प्रस्तरखण्डान् नारीशिक्षाविरोधिनः प्रक्षेपयन्ति स्म एवञ्च व्यंग्यबाणैः अपीड़यन् तथापि सा स्वकर्तव्यात् विमुखा न सजाता| मराठी शिक्षकः शिवराम भवालकरः अस्याः प्रशिक्षकः आसीत्। इयं उपेक्षितानां दलितनारीणां कृते बहुविद्यालयं संचालितवती।।
शब्दार्थ सहधर्मचारिणी = धर्मपत्नी। पाठयितुं प्रारब्धवती = पढ़ाना आरम्भ किया, उच्चस्वरैः = ऊँची आवाजों में उक्तवन्तः = कहने लगे। गोमयम् = गोबर व्यंग्यबाणैः = उपहास के बाणों से।
प्रसंग इस गद्यांश में ज्योतिबा फुले की धर्मपत्नी सावित्रीबाई के स्वभाव और सामाजिक कार्यों का वर्णन किया गया है।
अनुवाद इनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई इनके कार्यों से प्रभावित थीं। अतः वे नारी शिक्षा के लिए कटिबद्ध थी। जब उन्होंने नारियों को पढ़ाना प्रारम्भ किया तभी दलित विरोधियों ने उच्च स्वरों में विरोध प्रकट करते हुए कहा कि एक हिन्दू नारी शिक्षक होने से समाज और धर्म का विरोध कर सकती है। नारी जाति को पढ़ना या पढ़ानी धर्म के विरुद्ध है। सावित्रीबाई जब विद्यालय जाती थीं तब उनके ऊपर मिट्टी-गोबर-पत्थर के टुकड़े नारी-शिक्षा के विरोधी फेंकते थे और व्यंग्य के बाणों से पीड़ित करते थे। तब भी वे अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं हुईं। मराठी शिक्षक शिवराम भवालकर इनके प्रशिक्षक थे। इन्होंने उपेक्षित दलित स्त्रियों के लिए अनेक विद्यालय संचालित किए।
(8)
द्विपंचाशताधिकाष्टादशखीष्टाब्दे फरवरीमासस्य सप्तदशदिनाङ्के अस्य विद्यालयस्य निरीक्षणं सजातम् परिणामस्वरूपे अस्य अष्टादशविद्यालयाः संचालिताः अभवन्। नवम्बरमासस्य षोडशदिनाङ्के ‘विश्रामबाडा’ इति स्थाने सार्वजनिव-अभिनन्दनसमारोहे अस्याः अभिनन्दनं सम्पन्नम्। अस्माकं देशस्य इतिहासे सावित्री फूले प्रथमा दलिताशिक्षिकायाः गौरवेणालङ्कृता।
शब्दार्थ निरीक्षणं सञ्जातम् = निरीक्षण किया गया। इति स्थाने = इस नाम वाले स्थान पर। देशस्य इतिहासे = देश के इतिहास में।।
प्रसंग इस गद्यांश में ज्योतिबा फुले की धर्मपत्नी सावित्रीबाई’ के द्वारा शिक्षा जगत् के लिए किया गया प्रयास और उनकी सफलता का वर्णन किय गया है।
अनुवाद सत्रह फरवरी, सन् 1852 ई० में इनके विद्यालय का निरीक्षण हुआ जिसके परिणामस्वरूप इनके अठारह विद्यालय संचालित हुए। नवम्बर मास की सोलह दिनांक को विश्रामबाडा नामक स्थान पर सार्वजनिक अभिनन्दन समारोह में इनका अभिनन्दन किया गया। हमारे देश के इतिहास में सवित्री फुले प्रथम दलित शिक्षिका के गौरव से अलंकृत हुईं।
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