UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 7 घरेलू विधियों से जल को शुद्ध करना
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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
शुद्ध तथा अशुद्ध जल के लक्षणों या गुणों को स्पष्ट कीजिए। जल किस प्रकार से दूषित हो जाता है?
या
जल किस प्रकार दूषित होता है ? आप अशुद्ध जल को कैसे शुद्ध करेंगी? [2008, 10]
या
जल में पाई जाने वाली मुख्य अशुद्धियों का वर्णन कीजिए। [2008]
या
जल अशुद्ध होने के क्या कारण हैं? [2010]
उत्तर:
शुद्ध जल के गुण या लक्षण
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि हमारी पृथ्वी पर थल की तुलना में जल का भाग बहुत अधिक है। जल के मुख्य स्रोत समुद्र, नदियाँ, झीलें, तालाब, झरने तथा भूमिगत जल हैं। जल की अत्यधिक मात्रा उपलब्ध होने पर भी विश्व को पेयजल की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस समस्या का मूल कारण यह है कि हमारे लिए केवल शुद्ध जल ही उपयोगी होता है। अशुद्ध जल या दूषित जल न तो पिया जा सकता है और न ही भोजन पकाने तथा अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में ही इस्तेमाल किया जा सकता है। इस स्थिति में शुद्ध जल के आवश्यक गुणों एवं लक्षणों की पहचान की समुचित जानकारी होना आवश्यक है।
शुद्ध जल वह सरल यौगिक है जो हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से बनता है। शुद्ध जल स्वादरहित, रंगरहित, गन्धरहित द्रव्य होता है। शुद्ध अवस्था में जल साफ, स्वच्छ एवं पूर्ण रूप से पारदर्शी होता है। शुद्ध जल में एक प्रकार की प्राकृतिक चमक भी होती है।
अशुद्ध जल के गुण या लक्षण
जल एक अत्यधिक उत्तम विलायक है। अनेक वस्तुएँ एवं लवण जल में शीघ्र ही घुल जाते हैं। इसीलिए पूर्ण शुद्ध अवस्था में जल मुश्किल से ही प्राप्त होता है। कोई-न-कोई लवण जल में घुल जाता है अथवा कुछ अशुद्धियों या गन्दगी का जल-स्रोतों में समावेश हो जाता है जिसके . परिणामस्वरूप जल अशुद्ध हो जाता है। अशुद्ध जल के गुणों या लक्षणों का उल्लेख करने से पूर्व कहा जा सकता है कि वह जल अशुद्ध है जिसमें शुद्ध जल के आवश्यक किसी एक गुण या सभी गुणों को अभाव होता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि अशुद्ध जल में
किसी-न-किसी प्रकार का स्वाद पाया जाता है। यह खारा भी हो सकता है तथा मीठा भी। अशुद्ध जल में गन्ध या दुर्गन्ध का पाया जाना भी एक लक्षण है। प्रायः अशुद्ध जल मटमैला भी हो सकती है। अशुद्ध जल में कुछ अशुद्धियाँ तैरती हुई भी दिखाई दे सकती हैं। अशुद्ध जल अर्द्ध-पारदर्शी होता है तथा उसमें शुद्ध जल की प्राकृतिक चमक का भी प्रायः अभाव ही होता है।
जल का दूषित होना
प्रकृति ने हमें शुद्ध जल ही प्रदान किया था, परन्तु विभिन्न कारणों से जल क्रमश: दूषित होता जा रहा है। जल को अधिक दूषित करने में सर्वाधिक योगदान सभ्य व औद्योगिक एवं नगरीय मानव समाज का ही है। विभिन्न अति विकसित एवं आधुनिक मानवीय गतिविधियों के कारण ही जल क्रमशः दूषित होता जा रहा है। जल को दूषित करने वाले कुछ मुख्य कारकों का संक्षिप्त विवरण अग्रवर्णित है
(1) घरेलू वाहित मल (सीवेज):
इसमें मल-मूत्र, घरेलू गन्दगी तथा कपड़ों को धोने के बाद का जल आदि सम्मिलित होते हैं। सामान्य रूप से इस प्रकार का दूषित जल, घर की नालियों तथा बड़े नालों के माध्यम से बहता हुआ मुख्य जल-स्रोतों में मिल जाता है तथा इन स्रोतों के जल को भी प्रदूषित कर देता है। इसके परिणामस्वरूप नदियों के किनारे, झील आदि के जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। वाहित मल से अनेक प्रकार के कीटाणु जल में आ जाते हैं, जिसके कारण जल का अत्यधिक क्लोरीनीकरण करना आवश्यक हो जाता है।
(2) वर्षा का जल:
वर्षा का जल खेतों की मिट्टी की ऊपरी परत को बहाकर नदियों, झीलों तथा समुद्र तक पहुँचा देता है। इसके साथ अनेक प्रकार के खाद (नाइट्रोजन एवं फॉस्फेट के यौगिक) एवं कीटनाशक पदार्थ भी जल में पहुँच जाते हैं तथा जल क्रमशः दूषित हो जाता है।
(3) औद्योगिक संस्थानों द्वारा विसर्जित पदार्थ:
इनमें अनेक विषैले पदार्थ (अम्ल, क्षार, सायनाइड आदि), रंग-रोगन व कागज उद्योग द्वारा विसर्जित पारे (मरकरी) के यौगिक, रसायन एवं पेस्टीसाइड उद्योग द्वारा विसर्जित सीसे (लैड) के यौगिक तथा कॉपर वे जिंक के यौगिक प्रमुख हैं। इन सभी पदार्थों के जल में मिल जाने से जल दूषित एवं हानिकारक हो जाता है।
(4) तैलीय (ऑयल) प्रदुषण:
इस प्रकार का प्रदूषण समुद्र के जल में होता है। समुद्र में यह प्रदूषण या तो जहाजों द्वारा तेल विसर्जित करने से होता है अथवा समुद्र के किनारे स्थित तेल-शोधक संस्थानों के कारण होता है।
(5) रेडियोधर्मी पदार्थ:
नाभिकीय विखण्डन के फलस्वरूप अनेक रेडियोधर्मी पदार्थ जल को दूषित कर देते हैं। इस प्रकार का प्रदूषण प्रायः समुद्र के जल में होता है।
जल में पाई जाने वाली मुख्य अशुद्धियाँ
दूषित जल में मुख्य रूप से दो प्रकार की अशुद्धियाँ पायी जाती हैं जिन्हें क्रमशः घुलित अशुद्धियाँ तथा अघुलित अथवा तैरने वाली अशुद्धियाँ कहा जाता है। इन दोनों प्रकार की अशुद्धियों को। संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है
(1) घुलित अशुद्धियाँ:
जल एक उत्तम विलायक है; अत: इसके सम्पर्क में आने वाले विभिन्न पदार्थ शीघ्र घुलकर इसमें समा जाते हैं। इस प्रकार जल में समा जाने वाले विजातीय तत्त्वों को जल की घुलित अशुद्धियाँ कहा जाता है। इस प्रकार की अशुद्धियाँ प्रायः दो प्रकार की होती हैं। प्रथम वर्ग की घुलित अशुद्धियाँ कुछ लवण होते हैं। मुख्य रूप से जल के कुछ सल्फेट, कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट घुल जाया करते हैं। ये लवण घुलकर पानी को कठोर बना देते हैं। कठोर जल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। लवणों के अतिरिक्त कुछ गैसें भी जल में घुल जाती हैं। ये गैसें मुख्य रूप से सल्फ्यूरेटेड हाइड्रोजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड होती हैं। इन गैसों से युक्त जल भी हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही होता है।
(2) अघुलित अथवा तैरने वाली अशुद्धियाँ:
अशुद्ध जल में कुछ ऐसी अशुद्धियाँ भी पाई जाती हैं जो जल में नहीं घुलतीं, परन्तु इनका जल में अस्तित्व ही जल को दूषित एवं हानिकारक बना देता है। इस प्रकार की अशुद्धियों को तैरने वाली अशुद्धियाँ भी कहा जाता है। जल में पाई जाने वाली इस प्रकार की मुख्य अशुद्धियाँ निम्नलिखित हो सकती हैं| ”
- धूल-मिट्टी के कण एवं विभिन्न प्रकार का कूड़ा-करकट। पत्ते, घास, तिनके तथा बाल आदि इसी प्रकार की अशुद्धियाँ मानी जाती हैं।
- विभिन्न रोगों के रोगाणु भी जल को अशुद्ध बनाते हैं। अशुद्ध जल में हैजा, पेचिश, मोतीझरा आदि रोगों के कीटाणु पाए जाते हैं।
- अशुद्ध जल में अनेक प्रकार के कीड़े, कीड़ों के बच्चे तथा अण्डे भी पाए जाते हैं।
- जल को अशुद्ध बनाने वाली कुछ अशुद्धियाँ पशुजनित भी होती हैं। पशुओं द्वारा जल में मल-मूत्र विसर्जित कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त उनके शरीर के बाल एवं अन्य अशुद्धियाँ भी जल को अशुद्ध बना देती हैं।
(संकेत–अशुद्ध जल को शुद्ध करने की घरेलू विधियों के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 2 के अन्तर्गत ‘अशुद्ध जल को शुद्ध करने की घरेलू विधियाँ देखें।
प्रश्न 2:
अशुद्ध जल को शुद्ध करने की घरेलू विधियों का सविस्तार वर्णन कीजिए। [2007, 11, 12, 13, 15, 17]
या
अशुद्ध जल को शुद्ध करने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं? किन्हीं दो विधियों का वर्णन कीजिए। [2011, 17, 18]
या
अशुद्ध जल का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? जत की अशुद्धियों को किस प्रकार दूर कर सकते हैं? [2008]
या
घर पर जल शुद्ध करने की कोई एक रासायनिक विधि लिखिए। [2011, 14, 15]
या
अशुद्ध जल को (चित्र सहित) चार घड़ों द्वारा शुद्ध करने की विधि लिखिए।
या
जल कितने प्रकार से दूषित होता है? जल में पाई जाने वाली अशुद्धियों को दूर करने के उपाय बताइए। [2008]
या
घर पर जल शुद्ध करने की विधियाँ लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14]
उत्तर:
(संकेत:जल कितने प्रकार से दूषित होता है, इसके अध्ययन के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 1 के अन्तर्गत ‘जल कां दूषित होना’ शीर्षक देखें।
अशुद्ध जल को शुद्ध करने की घरेलू विधियाँ
अनेक प्रकार के घुलित एवं अघुलित कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थों तथा अनेक प्रकार के कीटाणुओं की उपस्थिति के कारण जल अशुद्ध अथवा दूषित हो जाता है। इस प्रकार के जल का सेवन स्वास्थ्य को कुप्रभावित करता है तथा अनेक रोगों की उत्पत्ति का कारण बन सकता है। अतः इन अशुद्धियों को दूर कर शुद्ध जल प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। इस प्रकार जनसाधारण के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से जल के शुद्धिकरण की घरेलू विधियों का ज्ञान और भी महत्त्वपूर्ण है। घरेलू विधियों द्वारा जल को शुद्ध करने के विभिन्न उपायों को निम्नलिखित तीन वर्गों में रखा जा सकता है
(क) भौतिक विधियाँ,
(ख) यान्त्रिक विधियाँ एवं
(ग) रासायनिक विधियाँ।
(क) भौतिक विधियाँ:
जल-शोधन की कुछ प्रमुख भौतिक विधियाँ निम्नलिखित हैं
(1) जल को उबालकर शुद्ध करना:
उबालने से जल के अधिकांश कीटाणु नष्ट हो जाते हैं, जल में घुली गैसें निकल जाती हैं तथा अनेक घुलित लवण अवक्षेपित होकर नीचे बैठ जाते हैं। इस प्रकार उबालने से जल की अनेक अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं और यह पीने योग्य हो जाता है। । उबालने के उपरान्त जल को निथार कर अथवा छानकर उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उबालना अशुद्ध जल को शुद्ध करने की एक उत्तम विधि है, परन्तु इस विधि द्वारा केवल सीमित मात्रा में ही जल को शुद्ध किया जा सकता है।
अतः अधिक-से-अधिक पीने वाले तथा खाना पकाने के लिए पानी, को ही इस विधि द्वारा शुद्ध किया जा सकता है।
(2) आसवन विधि द्वारा जल का शुद्धीकरण:
इस विधि में अशुद्ध जल को उबाला जाता है। तथा परिणामस्वरूप बनी जल-वाष्पे को एक स्वच्छ बर्तन में एकत्रित कर ठण्डा करके शुद्ध जल प्राप्त किया जाता है। इस विधि में जल की अशुद्धियाँ उबालने वाले बर्तन में ही रह जाती हैं। आसवन विधि द्वारा शुद्ध किए गए जल को आसुत जल कहते हैं। आसुत जल उत्तम कोटि का शुद्ध जल होता है जिसे पीने में तथा औषधियों के विलायक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इस विधि द्वारा भी केवल सीमित मात्रा में ही जल को शुद्ध किया जा सकता है।
(3) परा-बैंगनी अथवा अल्ट्रा-वॉयलेट किरणों से जल का शुद्धिकरण:
प्राचीनकाल से ही जल को शुद्ध करने के लिए सूर्य के प्रकाश का उपयोग किया जाता रहा है। सूर्य के प्रकाश में पाई जाने वाली पराबैंगनी किरणें जल के कीटाणुओं को नष्ट कर देती हैं। आजकल यन्त्रों द्वारा दूषित जल में परा-बैंगनी किरणें डालकर जल को शुद्ध किया जाता है।
(ख) यान्त्रिक विधियाँ:
आजकल दूषित जल को शुद्ध करने के लिए अनेक यान्त्रिक साधन अपनाये जाते हैं। ये जल को पीने के योग्य बनाने गन्दा पानी के लिए सरल उपकरण हैं। इनमें से कुछ प्रमुख यान्त्रिक साधन निम्नलिखित हैं
(1) चार घड़ों की विधि:
यह विधि ग्रामीण क्षेत्रों में पानी । अधिक प्रचलित है। इसमें चार घड़ों को लकड़ी के स्टैण्ड पर कोयले का चूरा एक के ऊपर एक रख दिया जाता है। ऊपर के तीन घड़ों की तली में एक छिद्र होता है। सबसे ऊपर के घड़े में अशुद्ध जल पानी भर दिया जाता है। दूसरें घड़े में कोयला पीसकर रख देते हैं तथा कंकड़ तथा बालू तीसरे घड़े में ऊपर की ओर बालू तथा नीचे की ओर कंकड़ अथवा बजरी रख देते हैं। प्रत्येक छिद्र में थोड़ी रूई लगा देना लाभकर रहता है। अब सबसे ऊपर के घड़े का जल धीरे-धीरे । शेष घड़ों से छनकर गुजरता हुआ नीचे के घड़े में एकत्रित होता रहता है। इस विधि में जल में तैरती हुई अघुलित अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं तथा जल पीने योग्य हो जाता है।
(2) आधुनिक निस्यन्दक अथवा फिल्टर द्वारा जल का शुद्धीकरण:
पाश्चर चैम्बरलेन फिल्टर तथा वर्कफील्ड फिल्टर द्वारा जल को प्रभावी ढंग से छानकर शुद्ध किया जाता है। इसका निर्माण क्ले तथा पोर्सलीन मिट्टी से किया जाता है। इसमें नीचे की ओर एक बाहरी बर्तन । टोंटी लगी होती है तथा अन्दर की ओर एक दूसरा बर्तन ऊपर लटका होता है जिसकी तली में क्ले मिट्टी का बना सिलेण्डर होता है। सिलेण्डर का पतला भाग दूसरे बर्तन में निकला होता है। यह सिलेण्डर सिलेण्डर – ही जल को शुद्ध करने का कार्य करता है। इस सिलेण्डर को पोर्सलीन का – समय-समय पर स्वच्छ कराते रहना चाहिए। इस फिल्टर द्वारा जल भीतरी बर्तन तेजी से छनता है तथा पूर्णरूप से शुद्ध होता है। घरेलू उपयोग के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। आजकल बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ; जैसे बजाज, क्रॉम्पटन, बलसारा इत्यादि; विभिन्न क्षमता के फिल्टर बना रही हैं, जिनको बाजार से क्रय किया जा सकता है।
(ग) रासायनिक विधियाँ:
जल-शोधन की प्रमुख रासायनिक विधियाँ निम्नलिखित हैं
(1) अवक्षेपक द्वारा:
अशुद्ध जल में फिटकरी डालने से जल में निलम्बित पदार्थ अवक्षेपित होकर नीचे बैठ जाते हैं। इस जल में थोड़ी मात्रा में चूना मिला देने से जल और शुद्ध हो जाता है। इसके अतिरिक्त निर्मली नामक एक फल भी जल की अशुद्धियों को अवक्षेपित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अवक्षेपण के उपरान्त जल को निथार अथवा छान कर अशुद्धियों से रहित किया जा सकता है।
(2) कीटाणुनाशक पदार्थों द्वारा:
विभिन्न प्रकार के जीवाणु व कीटाणु जल की अशुद्धि का एक महत्त्वपूर्ण कारण होते हैं। अशुद्ध जल को पीने योग्य बनाने के लिए इनको नष्ट किया जाना अति. आवश्यक है। जल को शुद्ध करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मुख्य कीटाणुनाशकों का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है
(i) पोटैशियम परमैंगनेट:
यह लाल दवा के नाम से भी प्रसिद्ध है। गाँवों में तालाबों व कुओं के जल को शुद्ध करने में इसका प्रयोग किया जाता है। 1000 लीटर जल में पाँच ग्राम लाल दवा डाली जाने पर जल में उपस्थित अधिकांश कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
(ii) तूतिया अथवा कॉपर सल्फेट:
इसका उपयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए, क्योंकि अधिक मात्रा में यह मनुष्यों के लिए भी विषैला प्रभाव रखता है। दो लाख भाग जल में एक भाग तूतिया डालने से जल पीने योग्य हो जाता है।
(iii) आयोडीन:
200 भाग जल में एक भाग पोटैशियम आयोडाइड डालने से जल के अनेक प्रकार के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
(iv) ब्लीचिंग पाउडर:
एक लाख गैलन जल में 250 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर डालने से अनेक प्रकार के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
(v) क्लोरीन:
यह एक उपयोगी कीटाणुनाशक गैस है। प्राय: सार्वजनिक जल आपूर्ति संस्थाओं द्वारा जल के कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए जल का क्लोरीनीकरण किया जाता है। चार हजार भाग जल में एक भाग क्लोरीन विलेय करने से जल के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं तथा जल पीने योग्य हो जाता है। अब क्लोरीन की गोलियाँ भी उपलब्ध है, जिन्हे घरेलू स्तर पर जल के शुद्धिकरण के लिए इस्तेमाल किया जा सकती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
अशुद्ध जल से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 13, 15, 16]
उत्तर:
व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए केवल शुद्ध जल ही उपयोगी है। अशुद्ध जल अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। अशुद्ध जल से अनेक रोग होने की आशंका रहती है। मुख्य रूप से अशुद्ध जल के निरन्तर सेवन से पाचन क्रिया बिगड़ जाती है, भूख घट जाती है तथा जी मिचलाने लगता है। कै होना, कब्ज हो जाना आदि रोग भी अशुद्ध जल पीने से ही हुआ करते हैं। इसके अतिरिक्त हैजा, मियादी बुखार, पेचिश, अतिसार आदि रोग भी अशुद्ध जल के सेवन से हो सकते हैं। कुछ रासायनिक तत्त्वों से अशुद्ध हुए जल के सेवन से कैन्सर जैसे घातक रोग भी हो सकते हैं।
प्रश्न 2:
कठोर जल किसे कहते हैं? कठोरता कितने प्रकार की होती है?
या
कठोर जल की क्या पहचान है?
या
जल में कितने प्रकार की कठोरता पाई जाती है? जल की कठोरता कैसे दूर की जा सकती है? [2007, 11, 13, 15]
या
जल की कठोरता को दूर करने के उपाय लिखिए। [2017]
उत्तर:
कठोर जल: साबुन के साथ सरलता से झाग उत्पन्न न करने वाला जल कठोर कहलाता है। जल में कठोरता इसमें उपस्थित लवणों के कारण होती है। जल की कठोरता दो प्रकार की होती है
(क) अस्थायी कठोरता:
यह वह कठोरता है जिसे आसानी से उबालकर जल से दूर किया जा सकता है।
(ख) स्थायी कठोरता:
यह वह कठोरता है जिसे उबालकर दूर नहीं किया जा सकता हैं। यह जल कपड़े धोने एवं दैनिक कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं होता है।
जल की अस्थायी कठोरता कैल्सियम व मैग्नीशियम के बाइकार्बोनेटों के कारण होती है तथा स्थायी कठोरता कैल्सियम व मैग्नीशियम के क्लोराइड अथवा सल्फेट के कारण। अस्थायी कठोरता को सरलता से दूर किया जा सकता है, किन्तु स्थायी कठोरता का निवारण कठिन है। जल की अस्थायी कठोरता को जल उबालकर समाप्त किया जा सकता है; किन्तु स्थायी कठोरता का निवारण कठिन है। स्थायी कठोरता के निवारण के लिए कठोर जल में कपड़े धोने का सोडा अल्प मात्रा में मिलाया जाता है। अथवा सोडे एवं चूने का मिश्रण मिलाया जाता है। इसके अतिरिक्त परम्यूटिट विधि द्वारा भी स्थायी करता को संमाप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 3:
कठोर जल से क्या हानियाँ होती हैं। [2008]
उत्तर:
जिस जल में विभिन्न प्रकार के अनावश्यक तत्त्व घुलित अवस्था में होते हैं, उसे कठोर जल कहते हैं। कठोर जल में साबुन कम झाग उत्पन्न करता है। यह पीने में तो स्वादिष्ट होता है किन्तु भोजन पकाने व वस्त्र धोने के लिए उपयुक्त नहीं होता। इसके उपयोग से तल-जम जाने के कारण बॉयलर शीघ्र ही खराब हो जाते हैं। इसमें घुले कई रासायनिक पदार्थ कई बार हानिकारक मात्रा में घुले होते हैं। तो वे ऐसा जल पीने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं जिससे एक स्वस्थ मनुष्य के बीमार पड़ने का खतरा भी होता है।
प्रश्न 4:
मृद एवं कठोर जल में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2007, 09, 10, 13, 15, 16, 17]
या
मृदु जल किसे कहते हैं? [2016]
उत्तर:
स्थायी एवं अस्थायी कठोरता से रहित जल को मृदु जल कहा जाता है और यह जल ही सेवन योग्य होता है। कठोर जल तथा मृदु जले में विद्यमान अन्तरों को निम्नांकित तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
प्रश्न 5:
शुद्ध तथा अशुद्ध जल में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2007, 08, 10, 11, 14, 16, 18]
उत्तर:
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
शुद्ध जल की क्या पहचान है? [2011, 15]
या
शुद्ध जल के क्या गुण हैं? [2012, 15]
या
सुरक्षित पीने के पानी की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शुद्ध जल स्वादहीन, गन्धहीन, रंगहीन, पारदर्शी तथा एक प्रकार की प्राकृतिक चमक से युक्त होता है। इसमें किसी रोग के कीटाणु नहीं होते। यह पीने के लिए सुरक्षित होता है।
प्रश्न 2:
जल में कितने प्रकार की अशुद्धियाँ पाई जाती हैं? [2007, 08, 09]
उत्तर:
जल में दो प्रकार की अशुद्धियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें क्रमश: जल की घुलित अशुद्धियाँ तथा जल की अघुलित अथवा तैरने वाली अशुद्धियाँ कहा जाता है।
प्रश्न 3:
अशुद्ध जल को शुद्ध करने की भौतिक विधियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
अशुद्ध जल को शुद्ध करने की तीन भौतिक विधियाँ हैं-उबालना, आसवन तथा अल्ट्रा-वॉयलेट किरणों का प्रभाव।।
प्रश्न 4:
कठोर जल किसे कहते हैं? इसकी पहचान क्या है?
उत्तर:
जिस जल में विभिन्न अनावश्यक पदार्थ घुलित अवस्था में विद्यमान होते हैं, उस जल को कठोर जल कहते हैं। कठोर जल साबुन के साथ कम झाग उत्पन्न करता है।
प्रश्न 5:
जल की कठोरता को दूर करने के दो उपाय लिखिए। [2017]
उत्तर:
जल की अस्थायी कठोरता जल को उबालकर दूर की जा सकती है। जल की स्थायी कठोरता को दूर करने के लिए जल में सोड़े तथा चूने का मिश्रण मिलाया जाता है।
प्रश्न 6:
आसुत जल किस जल को कहते हैं? [2007, 08]
या
आसुत जल की उपयोगिता लिखिए। [2007, 11]
या
आसुत जल क्या है? इसका प्रयोग कब किया जाता है? [ 2011, 13, 15]
उत्तर:
आसवन विधि द्वारा शुद्ध किए गए जल को आसुत जल कहते हैं। यह जल पूर्ण रूप से शुद्ध होता है। इसका पेयजल के रूप में तथा दवाओं में प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 7:
जल को छानकर किस प्रकार की अशुद्धियों से मुक्त किया जा सकता है?
उत्तर:
जल को छानकर अघुलित अथवा तैरने वाली अशुद्धियों से मुक्त किया जा सकता है।
प्रश्न 8:
ग्रामीण क्षेत्रों में जल को कीटाणु मुक्त करने के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा का नाम बताइए।
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में जल को कीटाणु मुक्त करने के लिए लाल दवा या पोटैशियम परमैंगनेट नामक दवा इस्तेमाल की जाती है।
प्रश्न 9:
जल के कीटाणओं को मारने के लिए कौन-सी गैस इस्तेमाल की जाती है?
उत्तर:
जल के कीटाणुओं को मारने के लिए क्लोरीन नामक गैस इस्तेमाल की जाती है।
प्रश्न 10:
जल के शुद्धिकरण के लिए प्रयोग किये जाने वाले जीवाणुनाशक पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जल के शुद्धिकरण के लिए सामान्य रूप से अपनाये जाने वाले मुख्य जीवाणुनाशक पदार्थ हैं ब्लीचिंग पाउडर, नीला थोथा, पोटैशियम परमैंगनेट तथा क्लोरीन।
प्रश्न 11:
जल को उबालने से किस प्रकार की कठोरता दूर होती है?
उत्तर:
जल को उबालने से केवल उसकी अस्थायी कठोरता ही दूर हो सकती है।
प्रश्न 12:
अशुद्ध जल की पहचान लिखिए। [2008]
उत्तर:
अशुद्ध जल का रंग मटमैला या गंदला होता है। इसका स्वाद खारा तथा यह अर्द्ध-पारदर्शी होता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए
1. शुद्ध जल में अभाव होता है
(क) गन्ध को
(ख) स्वाद का
(ग) रंग का
(घ) इन सभी को
2. शुद्ध जल कौन-सा होता है?
(क) वायु रहित
(ख) रंग रहित
(ग) स्वाद रहित
(घ) नाइट्रोजन रहित
3. जल दूषित कैसे होता है?
(क) हाथ की गन्दगी से
(ख) पात्र की गन्दगी से
(ग) कुएँ की गन्दगी से
(घ) सभी स्रोतों से
4. घर पर शुद्ध पेय जल प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम उपाय है
(क) जल का आसवन करना
(ख) जल को उबालना
(ग) जल का अवक्षेपण करना
(घ) जल का क्लोरीनीकरण करना
5. आसवन विधि द्वारा शुद्ध किए गए जल का नाम है
(क) कठोर जल
(ख) आसुत जल
(ग) प्राकृतिक जल
(घ) मृदु जल
6. आसुत जल का प्रयोग होता है
(क) दवाओं में
(ख) खाना बनाने में
(ग) पीने में
(घ) सफाई करने में
7. कपड़ों की धुलाई के लिए कौन-सा जल उत्तम होता है? [2008, 17]
(क) मृदु
(ख) कठोर
(ग) ठण्डा
(घ) गर्म
8. कठोर जल में कौन-से लवण घुले रहते हैं?
(क) लौह लवण
(ख) कैल्सियम
(ग) फॉस्फोरस
(घ) पोटैशियम
9. जल की अघुलित अशुद्धियों को जल से अलग किया जा सकता है
(क) अवक्षेपण क्रिया द्वारा
(ख) आसवन क्रिया द्वारा
(ग) उबालने की क्रिया द्वारा
(घ) छानने की क्रिया द्वारा
10. व्यापक स्तर पर जल को कीटाणुरहित करने का उत्तम उपाय है
(क) उबालना
(ख) आसवन
(ग) ब्लीचिंग पाउडर अथवा क्लोरीन का इस्तेमाल
(घ) कुछ भी करना व्यर्थ है।
11. जल की घुलित अशुद्धियों को अलग करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है
(क) क्लोरीन का
(ख) तूतिया का
(ग) फिटकरी का
(घ) लाल दवा का
12. आसुत जल किस विधि द्वारा तैयार होता है?
(क) उबालकर
(ख) आसवन द्वारा
(ग) एक्वागार्ड द्वारा
(घ) छानकर
13. कुएँ के जल को शुद्ध करने के लिए उसमें डालते हैं [2007, 08, 09, 10]
(क) पोटैशियम परमैंगनेट
(ख) ब्लीचिंग पाउडर
(ग) गन्धक
(घ) डी० डी० टी० पाउडर
14. जल शुद्धिकरण के लिए किसका प्रयोग किया जाता है? [2008]
(क) सोडियम परमैंगनेट
(ख) ब्लीचिंग पाउडर
(ग) पोटैशियम परमैंगनेट
(घ) जिंक ऑक्साइड
15. पोटैशियम परमैंगनेट का प्रयोग जल के शुद्धिकरण के लिए कहाँ किया जाता है? [2013]
(क) समुद्र में
(ख) नदी में
(ग) बरसात में
(घ) कुएँ में
उत्तर:
1. (घ) इन सभी का,
2. (घ) नाइट्रोजन रहित,
3. (घ) सभी स्रोतों से,
4. (ख) जल को उबालना,
5. (ख) आसुत जल,
6. (क) दवाओं में,
7. (क) मृदु.
8. (ख) कैल्सियम,
9. (घ) छानने की क्रिया द्वारा,
10. (ग) ब्लीचिंग पाउडर अथवा क्लोरीन का इस्तेमाल,
11. (ग) फिटकरी,
12. (ख) आसवन द्वारा,
13. (क) पोटैशियम परमैंगनेट,
14. (ख) ब्लीचिंग पाउडर,
15. (घ) कुएं में।
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