UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 23 नाड़ी, श्वास-गति और ताप का चार्ट बनाना

 

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 23 नाड़ी, श्वास-गति और ताप का चार्ट बनाना

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य के शरीर की तापमान ज्ञात करने के उपकरण एवं उनका प्रयोग करने की विधि का वर्णन कीजिए। चित्र की सहायता से थर्मामीटर के बारे में लिखिए। [2011]
                                                                                  या
थर्मामीटर से तापक्रम नापने की विधि लिखिए। थर्मामीटर का प्रयोग करते समय आप क्या सावधानियाँ रखेंगी? [2010, 13, 14, 16]
                                                                                  या
रोगी के तापक्रम चार्ट का क्या महत्त्व है? टाइफाइड तथा मलेरिया रोग के तापमान अंकन चार्ट का नमूना बनाइए। [2008]
                                                                                  या
तापक्रम चार्ट कैसे और क्यों बनाया जाता है ? किन रोगों में इसका बनाना अति आवश्यक है ? [2009]
                                                                                  या
रोगी का तापमान लेते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? [2012, 13, 14, 15]
                                                                                  या
थर्मामीटर से आप क्या समझती हैं? थर्मामीटर का प्रयोग करते समय ध्यान में रखने योग्य तथ्य क्या हैं? [2012, 13, 14, 15, 16]
                                                                                  या
तापमान चार्ट में आप क्या-क्या लिखेंगी ? [2016]
उत्तर:
क्लीनिकल थर्मामीटर व्यक्ति के स्वास्थ्य के मूल्यांकन के लिए उसके शरीर के तापमान को जानना आवश्यक होता है। स्वस्थ व्यक्ति के शरीर का सामान्य तापक्रम 98.4° फारेनहाइट होता है। शरीर के तापमान को मापने वाले उपकरण को क्लीनिकल थर्मामीटर कहा जाता है। यह एक विशेष प्रकार का उपकरण है जिससे किसी भी व्यक्ति के शरीर का तापमान ज्ञात किया जा सकता है। यह एक काँच की बनी नली होती है जिसके बीच में एक सँकरी नली  के समान रिक्त स्थान होता है। इसके एक सिरे : पर एकै घुण्डी के अन्दर पारा भरा होता है।
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घुण्डी को उच्च ताप पर रखने पर पारा सँकरे रिक्त स्थान में ऊपर की ओर बढ़ने लगता है। थर्मामीटर लम्बाई में चिह्नांकित रहता है। प्रायः दो प्रकार के थर्मामीटर प्रयोग में लाए जाते हैं। एक प्रकार का थर्मामीटर शरीर का ताप फारेनहाइट में नापता है। इसमें सामान्यतः 95° फारेनहाइट से 110° फारेनहाइट तक चिह्न लगे होते हैं। दूसरे प्रकार के थर्मामीटर से शरीर का ताप सेल्सियस में नापा जाता है तथा इस पर 35° सेण्टीग्रेड से 43° सेण्टीग्रेड तक चिह्न लगे होते हैं। प्रथम प्रकार के थर्मामीटर में 98.4° फारेनहाइट पर तथा दूसरे प्रकार के थर्मामीटर में 36° सेण्टीग्रेड पर तीर को लाल चिह्न बना होता है, जो कि एक स्वस्थ मनुष्य के शारीरिक ताप का द्योतक होता है।

थर्मामीटर का प्रयोग-
प्रयोग करने से पूर्व थर्मामीटर को स्वच्छ पानी से भली प्रकार साफ कर लेना चाहिए। चिकित्सालय में थर्मामीटर अनेक व्यक्तियों का ताप ज्ञात करने के लिए प्रयुक्त होता है। अत: प्रत्येक बार प्रयोग में लाने के लिए इसे स्प्रिट द्वारा साफ कर रोगाणुरहित किया जाता है। तत्पश्चात् थर्मामीटर को झटककर इसके पारे को सबसे नीचे के चिह्न परे उतार लेते हैं। अब इसे घुण्डी (बल्ब) की ओर से रोगी के मुँह (जीभ के नीचे) लगा दिया जाता है। दो-तीन मिनट बाद थर्मामीटर को रोगी के मुंह से निकालकर देखा जाता है कि इसमें पारा किस चिह्न तक चढ़ा है। यह चिह्न रोगी के शारीरिक ताप को प्रदर्शित करता है। छोटी आयु के बच्चों का शारीरिक ताप ज्ञात करने के लिए थर्मामीटर को उनकी बगल में लगाया जाता है। थर्मामीटर का प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए-

  1. थर्मामीटर का प्रयोग करने से पूर्व उसे भली प्रकार से साफ कर लेना चाहिए। प्रत्येक बार प्रयोग में लाने से पहले किसी नि:संक्रामक घोल (प्राय: स्प्रिट) से इसे धो लेना चाहिए।
  2. रोगी यदि अचेतावस्था में हो, तो उसके मुँह में थर्मामीटर नहीं लगाना चाहिए।
  3. रोगी को यदि पसीना आ रहा हो तो उसे पोंछकर तथा कुछ देर रुककर ही उसका तापमान लेना चाहिए।
  4. थर्मामीटर लगाते व निकालते समय शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।
  5. तापमान लेने के पश्चात् थर्मामीटर को साफ कर सुरक्षित स्थान पर रख देना चाहिए।

मलेरिया का ताप-चार्ट बनाना –
मलेरिया में ताप में अधिक उतार-चढ़ाव की प्रवृत्ति पायी जाती है। यदि मलेरिया तीसरे दिन आता है तो पहले दिन ताप । अत्यधिक होगी एवं दूसरे दिन सामान्य होकर तीसरे दिन पुनः अत्यधिक हो जाएगी। परन्तु आन्त्र ज्वर । (typhoid) में ताप रोग के प्रथम सप्ताह में उच्च, दूसरे सप्ताह में अत्यन्त स्थिर तथा तीसरे सप्ताह में धीरे-धीरे नीचा होकर सामान्य हो जाता है। यद्यपि आजकल ओषधियों द्वारा ताप की इस सामान्य प्रवृत्ति को डॉक्टरों द्वारा परिवर्तित कर दिया जाता है।
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रोगी के ताप का चार्ट बनाना –
तीव्र ज्वर या अधिक समय तक रहने वाले ज्वर से पीड़ित रोगियों के तापमान का चार्ट बनाना आवश्यक होता है, क्योंकि इसके आधार पर चिकित्सक को ओषधियों के उचित प्रयोग की सुविधा हो जाती है। तापमान का चार्ट बनाने के लिए रोगी को प्रत्येक दो अथवा चार घण्टे बाद ताप लेकर निम्न प्रकार से तालिका बनानी चाहिए-
रोगी का नाम  ………………..
आयु  ………………..
सम्भावित रोग ………………..
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प्रश्न 2.
मनुष्य में नाड़ी की गति का परीक्षण किस प्रकार किया जाता है? तपेदिक के रोगी की अवस्था को ग्राफ द्वारा आप किस प्रकार प्रदर्शित करेंगी?
उत्तर:
नाड़ी की गति मनुष्य के शरीर में रक्त प्रवाह की क्रिया हर समय चलती रहती है। इस क्रिया में फेफड़ों द्वारा शुद्ध किया गया रक्त हृदय द्वारा सारे शरीर में वितरित किया जाता है तथा शरीर के सभी अंगों से अशुद्ध रक्त हृदय तक जाता है।
जहाँ से यह फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेज दिया जाता ताप सु-शः सुशा- सुश है। इन सब कार्यों को करने के लिए एक विशेष, निश्चित 106° तथा नियमित गति से हृदय में हर समय सिकुड़न और शिथिलन होता रहता है। जब यह सिकुड़ता है, तो रुधिर दबाव के साथ धमनियों में पहुँचता है, जोकि रुधिर के

अधिक दबाव के कारण फैल जाती हैं। जब हृदय फैलता है, तो धमनियों में रुधिर का दबाव कम हो जाता है तथा वे पूर्वावस्था में आ जाती हैं। इस प्रकार हृदय के साथ-साथ धमनियों में भी धड़कन होती है, जिसे हम नाड़ी की गति कहते हैं।
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सामान्यत: स्वस्थ व्यक्ति को हृदय प्रति मिनट 72  बार फैलता व सिकुड़ता है। इसके साथ ही उसकी धमनियाँ भी धड़कती हैं। इनको कुछ स्थानों पर अनुभव किया जा सकता है, विशेषकर उन स्थानों पर जहाँ इन धमनियों को आगे बढ़ने के लिए किसी हड्डी के ऊपर से गुजरना पड़ता है। इन स्थानों पर उँगली रखने पर धमनी की धड़कन को स्पष्टतः अनुभव किया जा सकता है। अतः हम इसकी संख्या घड़ी देखकर प्रति मिनट ज्ञात कर सकते सुबह तथा शाम को ताप लेकर हैं। यह नाड़ी की गति का परीक्षण कहलाता है। प्राय: एक सामान्य व्यक्ति के लिए नाड़ी की गति 70-80 बार प्रति मिनट होती है। आयु के अनुसार इसमें कुछ अन्तर होते हैं, जिन्हें निम्नांकित सारणी में प्रदर्शित किया गया है-

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नाड़ी की गति शरीर में अनेक स्थानों पर अनुभव की जा सकती है। उदाहरण के लिए-गर्दन पर, पैर पर, कलाई पर व पेट के मध्य में आदि-आदि। किन्तु सामान्यत: सबसे अधिक सुविधाजनक स्थान कलाई के पास अँगूठे की दिशा में पहुँचने पर होता है जहाँ यह सहज ही अनुभव की जा सकती है। नाड़ी देखते समय घड़ी भी देखनी आवश्यक है, जिससे कि नाड़ी की गति का आकलन प्रति मिनट किया जा सके। चिकित्सक को सूचित करने के लिए नाड़ी के गुण देखना भी आवश्यक है; जैसे-

  1. नाड़ी कमजोर चलती है या तेज,
  2. निश्चित समय पर चलती है अथवा रुक-रुक कर,
  3. निश्चित गति जानने के लिए प्रत्येक पन्द्रह मिनट बाद नाड़ी की गति को गिनना चाहिए। यदि एक ही गति आती है, तो गति को स्थिर व निश्चित माना जाता है अन्यथा अनिश्चित व अस्थिर माना जाएगा।

तपेदिक के रोगी की अवस्था का ग्राफ – रोगी की अवस्था का ग्राफ बनाने के लिए उसके तापमान, नाड़ी की गति, श्वास की गति, मल-मूत्र आदि की स्थिति को ग्राफ पेपर पर अंकित किया जाता है। ग्राफ कागज पर रोगी का नाम, आयु, रोग का नाम व रोग के प्रारम्भ एवं मुक्ति की तिथि अंकित कर दी जाती है।

प्रत्येक दिन प्रात: और सायंकाल का ताप लेकर निर्धारित तिथि व समय के नीचे ग्राफ पेपर पर नीचे से ऊपर की ओर (ऊर्ध्वतल में) निर्धारित स्थान पर बिन्दु लगाकर अंकित कर दिया जाता है। बाद में बिन्दुओं को मिलाकर ग्राफ बना दिया जाता है। नाड़ी की गति के अंकन के लिए ग्राफ पेपर के आधार के साथ तापक्रम के समान बिन्दु लगाये जाते हैं। इसके लिए पहले खाने में जो दस खाने हैं उन्हें एक के बराबर माना जाएगा। इस प्रकार नाड़ी गति की विभिन्न संख्याओं को अंकित कर दिया जाएगा। इसके नीचे श्वास गति व मल-मूत्र की अवस्था भी अंकित की जाती है।

प्रश्न 3.
रोगी को मल-मूत्र कराते समय किन-किन बातों का ध्यान रखा जाता है? एनिमा का प्रयोग आप किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
रोगी को मल-मूत्र विसर्जन कराना वह रोगी जिसको चलने-फिरने की अनुमति प्राप्त है, सामान्य व्यक्ति की तरह से परिचारिका की देख-रेख में मल-त्याग कर सकता है। परन्तु यदि रोगी सम्पूर्ण समय बिस्तर पर ही रहता है और चल-फिर सकने की क्षमता नहीं रखता अथवा उसे चलने-फिरने की अनुमति नहीं है, तो उसे परिचारिका की सहायता से बिस्तर में लेटी हुई दशा में ही मल-त्याग करना होता है। इसके लिए उसे एक विशेष प्रकार के मल-पात्र (बेड-पैन) की आवश्यकता होती है। परिचारिका को इस प्रकार के रोगी का मल-मूत्र विसर्जन कराते समय निम्नलिखित विधि एवं सावधानी अपनानी चाहिए-

  1. मल-मूत्र त्याग के समय रोगी के बिस्तर पर रबर-शीट डालनी चाहिए।
  2. रोगी को सीधे लिटाकर, उसके घुटने मुड़वा देने चाहिए।
  3. रोगी के बिस्तर के कपड़ों को मोड़ देना चाहिए।
  4. साफ, साबुत मल-पात्र (बेड-पैन) रोगी की कमर के नीचे लगा देना चाहिए। यह अधिक ठण्डा नहीं होना चाहिए।
  5. मल-पात्र (बेड-पैन) रखने के बाद रोगी को सहारा देने के लिए तकिया लगा देना चाहिए।
  6. ओढ़ने की चादर को गन्दा होने से बचाने के लिए इसके नीचे कोई पुराना अखबार लगा देना चाहिए।
  7. मल-त्याग के उपरान्त रोगी के मल-पात्र को धीरे से एक हाथ से उठा देना चाहिए।
  8. मल-त्याग के बाद रोगी की गुदा को गीली रूई या टॉयलेट-पेपर अथवा जल से धोकर भली-भाँति साफ कर देना चाहिए।
  9. मल-पात्र को हटाते ही ढक देना चाहिए तथा उसे कमरे से बाहर कर देना चाहिए।
  10. यदि रोगी बार-बार मल-त्याग करता है, तो सुरक्षात्मक-पैडों का प्रयोग करना चाहिए।
  11. यदि रोगी को केवल मूत्र-त्याग करना है, तो मूत्र-पात्र का प्रयोग करना चाहिए।
  12. प्रयोग के बाद रोगी के मल-मूत्र पात्र को खौलते पानी से साफ कर व कपड़े से पोंछसुखाकर रखना चाहिए।

मल-विसर्जन के समय ध्यान देने योग्य बातें-

  1. रोगी ने दिन में कितनी बार मल-मूत्र त्याग किया ?
  2. मल का रंग कैसा रहा? स्वस्थ अवस्था में यह भूरा होता है। ऐसा न होने की दशा में चिकित्सक को अवगत कराना चाहिए।
  3. मल किस तरह का है? गाँठदार, पतला, रक्तयुक्त अथवा कीड़े होने की दशा में चिकित्सक से परामर्श प्राप्त करना चाहिए।
  4. प्राकृतिक रूप से मल-त्याग न होने पर भी चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।

एनिमा का प्रयोग। रोगी को यदि प्राकृतिक रूप से मल-त्याग नहीं हो रहा है, तो उसे आवश्यकतानुसार चिकित्सक से परामर्श प्राप्त कर एनिमा देना उचित रहता है। एनिमा आवश्यकतानुसार कई प्रकार के होते हैं और उन्हें अलग-अलग प्रकार के उपकरणों द्वारा रोगी को दिया जा सकता है।

कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकार के एनिमा, उनके उपकरणों तथा उनको लगाने की विधि निम्नलिखित है-
(1) साबुन के घोल का एनिमा – इसके लिए एक निश्चित पात्र होता है जिसमें एक ओर तले के पास एक टोंटी या नली लगी होती है जिससे रबर की एक लम्बी व पतली नली लगी होती है। रबर की नली के सिरे पर एक प्लास्टिक की लम्बी नली लगी होती है। इस नली को रोगी की गुदा में 10-12 सेमी अन्दर तक डाला जाता है। ऊपर के पात्र में साबुन का पानी भर दिया जाता है। साबुन का घोल बनाने के लिए 15 ग्राम साबुन को पाँच लीटर गर्म जल में घोला जाता है। यह घोल अधिक गर्म नहीं होना चाहिए। एनिमा पात्र की ऊँचाई रोगी के बिस्तर से न्यूनतम आधा मीटर होनी चाहिए। अब टोंटी खोल देने पर साबुन का घोल । रोगी की बड़ी आंत में प्रवेश करने लगता है। इस समय रोगी को लम्बे-लम्बे श्वास दिलाने चाहिए। जब पर्याप्त घोल पेट में पहुँच जाए, तो नोजल को धीरे-धीरे रोगी की गुदा से निकालकर रोगी को सीधा कर देना चाहिए।
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(2) नमक के पानी का एनिमा – इस एनिमा को प्रयोग करने के लिए उपर्युक्त उपकरण की ही आवश्यकता होती है। आधा लीटर जल में आधा चम्मच नमक डाल दिया जाता है। पानी हल्का गर्म ही होना चाहिए। इसे उपर्युक्त विधि द्वारा ही लगाया जाता है। यह एनिमा रोगी के कमजोर होने या कोई आघात पहुंचने पर लगाया जाता है। यदि अधिक दुर्बलता के कारण रोगी जल इत्यादि लेने में असमर्थ हो तो नमक के घोल में थोड़ा ग्लूकोज भी मिला देते हैं।

(3) अरण्डी के तेल का एनिमा – इसके लिए एक विशेष प्रकार के उपकरण की आवश्यकता होती है। अरण्डी के तेल को जल-ऊष्मक में गर्म करते हैं। इसके लिए एक बर्तन में जल गर्म , करते हैं तथा एक अन्य छोटे बर्तन में तेल रख देते हैं। जल के गर्म होने पर तेल भी गर्म हो जाता है। अब 200 मिली तेल एनिमा के उपकरण में भर लेते हैं। अरण्डी के तेल का एनिमा उन रोगियों को दिया जाता है जिनको मल की गाँठे बन गई हैं।
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(4) ग्लिसरीन का एनिमा – यह प्राय: बच्चों को दिया जाता है। इसे देने के लिए एक विशेष प्रकार की सिरिंज की आवश्यकता पड़ती है। दो चम्मच ग्लिसरीन को एक शीशी में डालकर जल-ऊष्मक में हल्का गर्म कर लिया जाता है। अब इसे पिचकारी में भरकर एनिमा लगाते हैं।
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
किसी रोगी की श्वास की गति का निरीक्षण आप किस प्रकार करेंगी? या श्वसन-क्रिया की दर से क्या तात्पर्य है? [2018]
उत्तर:
सामान्य अवस्था में एक स्वस्थ मनुष्य निश्चित गति से श्वास लेता है। यदि इस गति में तेजी अथवा कमी आती है तो उसके स्वास्थ्य में अवश्य ही कोई कमी है। मनुष्य में श्वसन-क्रिया नि:श्वसन (श्वास बाहर छोड़ना) व प्र:श्वसन (श्वास भीतर लेना) के दो पदों में सम्पूर्ण होती है। एक मिनट में होने वाली श्वसन क्रिया को श्वसन की दर माना जाता है। एक स्वस्थ मनुष्य में यह प्रक्रिया एक मिनट में लगभग 15 से 18 बार दोहराई जाती है। एक शिशु में यह गति अधिक तेज होती है। श्वास की गति को भी ताप या नाड़ी की गति के अनुसार ही तालिका या ग्राफ पर अंकित किया जाता है। किसी व्यक्ति की श्वास की गति का निरीक्षण करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाता है-

  1. श्वास हल्का है अथवा गहरा,
  2. श्वास लेते समय कोई कठिनाई अथवा कष्ट तो नहीं है,
  3. श्वास लेते समय किसी प्रकार की आवाज तो नहीं होती है,
  4. श्वास क्रिया नियमित है अथवा अनियमित।

प्रश्न 2. 
नाड़ी, श्वास-गति तथा तापमान मनुष्य के स्वास्थ्य से किस प्रकार जुड़े रहते हैं?
उत्तर:
नाड़ी, श्वास-गति तथा तापमान का मनुष्य के स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध है। सामान्यतः नाड़ी तथा श्वास की गति का 4 और 1 अनुपात होता है। नाड़ी की गति सामान्यतया शरीर का ताप 1° फारेनहाइट बढ़ने पर 10 बार बढ़ जाती है। अत: श्वास की गति भी उपर्युक्त अनुपात के अनुसार बढ़ जाएगी। इस प्रकार नाड़ी, श्वास की गति और तापमान भी परस्पर सम्बन्धित होते हैं तथा किसी व्यक्ति के तापमान को देखकर उसकी नाड़ी की गति एवं श्वास की गति का अनुमान लगाया जा सकता है, परन्तु यह तब ही सम्भव हो सकता है, जबकि उस व्यक्ति की सामान्य अवस्था में हमें उसकी नाड़ी व श्वास की गति का पूर्ण ज्ञान हो।

प्रश्न 3.
रोगी को मल-मूत्र विसर्जन कराते समय चिकित्सक की सूचनार्थ आप किन-किन बातों का लिखित विवरण तैयार करेंगी?
उत्तर:
रोगी के मल-मूत्र विसर्जन के सम्बन्ध में चिकित्सक को प्राय: निम्नलिखित सूचनाएँ देनी होती हैं-

  1. मल-मूत्र का रंग और बनावट कैसी है?
  2. मल-मूत्र से किस प्रकार की दुर्गन्ध आती है?
  3. रोगी को मल-मूत्र विसर्जन में किस प्रकार का कष्ट होता है?
  4. रोगी मल-मूत्र त्यागते समय किसी प्रकार की रुकावट की अनुभूति तो नहीं करता?
  5. रोगी कितनी बार और किस-किस समय मल-मूत्र त्याग करता है?
  6. रोगी के मल-मूत्र की जाँच की विभिन्न रिपोर्ट।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शरीर का ताप ज्ञात करने के लिए किस उपकरण का प्रयोग किया जाता है। [2008, 10]
उत्तर:
उक्ट शरीर का ताप लेने के लिए क्लीनिकल थर्मामीटर प्रयुक्त किया जाता है।

प्रश्न 2.
थर्मामीटर की उपयोगिता बताइए। [2012]
उत्तर:
थर्मामीटर से व्यक्ति के शरीर का तापमान मापा जाता है। इससे ज्वर का निर्धारण किया जाता है।

प्रश्न 3.
शरीर का तापक्रम मापने के लिए किन इकाइयों का प्रयोग किया जाता है? [2007]
उत्तर:
शरीर का तापक्रम मापने के लिए प्रायः डिग्री फारेनहाइट नामक इकाई का प्रयोग किया जाता है। किन्तु कुछ थर्मामीटर डिग्री सेण्टीग्रेड में भी होते हैं। अतः डिग्री सेण्टीग्रेड भी शरीर का ताप मापने की एक प्रचलित इकाई है।

प्रश्न 4.
थर्मामीटर में कौन-सा पदार्थ भरा जाता है और क्यों?
उत्तर:
थर्मामीटर में पारा भरा जाता है। यह चमकदार होता है तथा थर्मामीटर की दीवारों से चिकता भी नहीं है। ताप पाकर इसका विस्तार समान रूप में होता है।

प्रश्न 5.
एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर का ताप कितना होता है?
                                          या
थर्मामीटर (तापमापक यन्त्र) में न्यूनतम तापमान कितना होता है? [2008 ]
उत्तर:
एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर का ताप प्रायः 98.4° फारेनहाइट होता है।

प्रश्न 6.
तापक्रम चार्ट बनाने से क्या लाभ हैं? [2009, 11, 12]
                                       या
रोग का तापक्रम चार्ट बनाना क्यों आवश्यक है? [2007, 09, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 18]
उत्तर:
तापक्रम चार्ट बनाने से यह लाभ होता है कि चिकित्सक उसको देखकर आसानी से रोगी के स्वास्थ्य में हो रहे परिवर्तनों तथा रोगी की दशा आदि का उचित ज्ञान प्राप्त कर सकता है और तद्नुसार दवा आदि में तत्काल परिवर्तन भी कर सकता है।

प्रश्न 7.
शरीर का ताप बढ़ने पर किसी व्यक्ति की नाड़ी की गति में क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर:
शरीर का ताप बढ़ने पर (प्राय: ज्वर आदि में) नाड़ी की गति प्रति डिग्री फारेनहाइट पर दस बार बढ़ जाती है।

प्रश्न 8.
ऐसे रोगी, जिन्हें श्वास लेने में कठिनाई हो, को तत्काल किस प्रकार की सहायता दी जानी चाहिए?
उत्तर:
श्वास लेने में कठिनाई महसूस करने वाले रोगी को तत्काल ऑक्सीजन दी जानी चाहिए।

प्रश्न 9.
सामान्यतः श्वास की गति कितनी होती है?
                                  या
एक स्वस्थ मनुष्य एक मिनट में कितनी बार श्वास लेता है?
उत्तर:
सामान्यतः एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में 15-18 बार श्वास लेता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न-निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए-

1. एक सामान्य स्त्री की नाड़ी की गति प्रति मिनट होती है-
(क) 72-80
(ख) 77-85
(ग) 80-90
(घ) 90-100

2. स्वस्थ मनुष्य की नाड़ी एक मिनट में कितनी बार चलती है?
(क) 20-30
(ख) 40-50
(ग) 60-70
(घ) 72-80

3. शरीर का तापमान कब लेना चाहिए?
(क) खाना खाने के 15 मिनट बाद
(ख) खाना खाने के तुरन्त बाद
(ग) कुछ भी खाने-पीने के 15 मिनट बाद
(घ) पेय पदार्थ लेने के तुरन्त बाद

4. एक स्वस्थ मनुष्य एक मिनट में कितनी बार साँस लेता है ? [2009]
(क) 14 से 15 बार
(ख) 15 से 16 बार
(ग) 17 से 18 बार
(घ) 18 से 20 बार

5. मानव शरीर का सामान्य तापक्रम कितना होता है? [2010, 15, 16, 17]
(क) 98.4° फारेनहाइट
(ख) 99° फारेनहाइट
(ग) 97.6° फारेनहाईट
(घ) 100° फारेनहाइट

6. शरीर का तापमान देखने का अल्पतम समय है
(क) 13 से 2 मिनट
(ख) 2 से 3 मिनट
(ग) 3 से 4 मिनट
(घ) 5 मिनट

7. थर्मामीटर द्वारा ज्ञात करते हैं [2010, 13, 14, 17]
(क) नाड़ी की गति
(ख) श्वसन की दर
(ग) रुधिर का दाबे
(घ) शरीर का तापमान

8. श्वसन तन्त्र का मुख्य अंग होता है [2009]
(क) फेफड़े
(ख) अग्न्याशय
(ग) यकृत
(घ) आमाशय

9. शरीर का तापमान नापने के लिए प्रयुक्त किया जाता है- [2008, 10]
(क) लैक्टोमीटर
(ख) थर्मामीटर
(ग) बैरोमीटर
(घ) हाइड्रोमीटर

10. एक स्वस्थ व्यक्ति का हृदय एक मिनट में कितनी बार धड़कता है ? [2016, 17]
(क) 72
(ख) 80
(ग) 100
(घ) 200

11. नाड़ी दर का सम्बन्ध होता है [2015, 18]
(क) मानव हृदय की धड़कन से
(ख) भोजन पाचने से।
(ग) श्वास लेने से
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर:

  1. (ख) 77-85,
  2. (घ) 72-80,
  3. (ग) कुछ भी खाने-पीने के 15 मिनट बाद,
  4. (ख) 15 से 16 बार,
  5. (क) 98.4° फारेनहाइट,
  6. (ख) 2 से 3 मिनट,
  7. (घ) शरीर का तापमान,
  8. (क) फेफड़े,
  9. (ख) थर्मामीटर,
  10. (क) 72,
  11. (क) मानव हृदय की धड़कन से।