UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 17 व्यापारिक बैंक

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बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा खाता बैंकों में खोला जाता है?
(a) पूँजी खाता
(b) चालू खाता
(c) बहीखाता
(d) रोकड़ खाता
उत्तर:
(b) चालू खाता

प्रश्न 2.
14 बड़े व्यापारिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किस तिथि को हुआ? (2014)
अथवा
14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किस वर्ष में हुआ था? (2017)
(a) 17 जुलाई, 1970
(b) 1 अप्रैल, 1960
(c) 19 जुलाई, 1969
(d) 15 फरवरी, 1980
उत्तर:
(c) 19 जुलाई, 1969

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा व्यापारिक बैंक नहीं है?
(a) रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया
(b) देना बैंक
(c) केनरा बैंक
(d) विजया बैंक
उत्तर:
(a) रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा बैंक राष्ट्रीयकृत है?
(a) बैंक ऑफ महाराष्ट्र
(b) बैंक ऑफ राजस्थान
(c) कर्नाटक बैंक
(d) जम्मू एवं कश्मीर बैंक
उत्तर:
(d) बैंक ऑफ महाराष्ट्र

प्रश्न 5.
निम्न में कौन-सा बैंक भारत में राष्ट्रीयकृत बैंक है? (2016)
(a) एक्सिस बैंक
(b) बैंक ऑफ अमेरिका
(c) पंजाब नेशनल बैंक
(d) एच डी एफ सी बैंक
उत्तर:
(c) पंजाब नेशनल बैंक

प्रश्न 6.
भारत में राष्ट्रीयकृत बैंकों की वर्तमान संख्या है।
(a) 18
(b) 19
(c) 20
(d) 25
उत्तर:
(b) 19

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंक जनता को अल्पकालीन/दीर्घकालीन ऋण देते हैं।
उत्तर:
अल्पकालीन

प्रश्न 2.
व्यापारिक बैंक जमा राशि पर ब्याज देता है/नहीं देता है।
उत्तर:
देता है

प्रश्न 3.
बचत बैंक खाते पर अधिविकर्ष की सुविधा मिलती है/नहीं मिलती है। (2010)
उत्तर:
नहीं मिलती है

प्रश्न 4.
सन् 1969 में भारत सरकार द्वारा 19/14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। (2010)
उत्तर:
14

प्रश्न 5.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण का एक प्रमुख उद्देश्य शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवा का विकास करना है।
उत्तर:
ग्रामीण

प्रश्न 6.
ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसका बैंक में खाता होता है, ………. ” कहलाता है। (ग्राहक/ऋणी)
उत्तर:
ग्राहक

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंक किसे कहते हैं?
उत्तर:
व्यापारिक बैंक वे बैंक होते हैं, जो सामान्य बैंकिंग का कार्य करते हैं। भारत में सभी राष्ट्रीयकृत बैंक व्यापारिक बैंक हैं। व्यापारिक बैंक अनुसूचित बैंक भी होते हैं। ये बैंक केन्द्रीय बैंक के निर्देशन में कार्य करते हैं। ये बैंक जनता से निक्षेप स्वीकार करते हैं, अल्पकालीन ऋण प्रदान करते हैं व साख का निर्माण करते हैं। व्यापारिक बैंक साख नियन्त्रण का कार्य नहीं करते हैं।

प्रश्न 2.
अनुसूचित बैंक किसे कहते हैं? (2007)
उत्तर:
भारत में वे बैंक अनुसूचित बैंक कहलाते हैं, जिनका नाम भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की द्वितीय अनुसूची में सम्मिलित किया हुआ है। ये बैंक निम्न शर्तों का पालन करते हैं

  1. उस बैंक की प्रदत्त पूँजी तथा कोष कम-से-कम ३ 5 लाख हो
  2. उस बैंक के कार्य अपने जमाकर्ताओं के हित के विरुद्ध न हों
  3. वह बैंक भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत हो

प्रश्न 3.
एक व्यापारिक बैंक के दो प्रमुख कार्य लिखिए। (2016)
उत्तर:
व्यापारिक बैंक के दो कार्य निम्नलिखित हैं

  1. जमाएँ स्वीकार करना व्यापारिक बैंक जनता के धन को बचत खाते, चालू खाते, सावधि जमा खाते, आवर्ती जमा खाते, आदि के द्वारा जमा करके उन पर ब्याज देते हैं।
  2. धन उधार देना ये बैंक अनेक प्रकार के अल्पकालीन ऋण प्रदान करते हैं; जैसे-नकद साख द्वारा, अधिविकर्ष सुविधाओं द्वारा, आदि।

प्रश्न 4.
किन्हीं चार गैर-राष्ट्रीयकृत बैंकों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर:
गैर-राष्ट्रीयकृत बैंक निम्न हैं-

  1. येस बैंक
  2. एच डी एफ सी बैंक
  3. एक्सिस बैंक
  4. आई सी आई सी आई बैंक

प्रश्न 5.
भारत के किन्हीं चार राष्ट्रीयकृत बैंकों के नाम लिखिए। (2016)
उत्तर:
राष्ट्रीयकृत बैंकों के नाम निम्नलिखित हैं-

  1. सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
  2. पंजाब नेशनल बैंक
  3. बैंक ऑफ बड़ौदा
  4. यूनियन बैंक

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
वाणिज्यिक बैंक के कार्यों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए। (2011)
उत्तर:
वाणिज्यिक या व्यापारिक बैंकों के कार्य निम्नलिखित हैं

1. जमाएँ स्वीकार करना व्यापारिक बैंक जनता के धन को बचत खाते, चालू खाते, सावधि जमा खाते, आवर्ती जमा खाते, आदि के द्वारा जमा करके उन पर ब्याज देते हैं।
2. धन उधार देना ये बैंक अनेक प्रकार के अल्पकालीन ऋण भी देते हैं; जैसे-नकद साख द्वारा, अधिविकर्ष सुविधाओं द्वारा, व्यापारिक विपत्रों के हुण्डियों को भुनाकर, आदि।
3. एजेन्सी सम्बन्धी कार्य ये बैंक एजेण्ट के रूप में धन का हस्तान्तरण करना, ग्राहकों की ओर से भुगतान प्राप्त करना, ग्राहकों की ओर से भुगतान करना, विनिमय-पत्रों आदि का भुगतान प्राप्त करना, ग्राहकों को आर्थिक सलाह देना, आदि कार्य करते हैं।
4. अन्य कार्य

  • विदेशी व्यापार को सरल बनाना।
  • रुपयों के हस्तान्तरण का कार्य।
  • व्यापारिक सूचना सम्प्रेषित करने का कार्य।
  • धन के विनियोजन सम्बन्धी कार्य।

प्रश्न 2.
वाणिज्यिक बैंकों के पाँच दोषों का वर्णन कीजिए। (2006)
उत्तर:
वाणिज्यिक या व्यापारिक बैंकों के दोष निम्नलिखित हैं

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना व्यापारिक बैंक बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करके अपनी जमाओं को कम सुरक्षित स्थानों पर भी विनियोजित कर देते हैं।
  2. असन्तुलित विकास व्यापारिक बैकों का अधिकतर विकास शहरों में ही किया गया, किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग विकास पर ध्यान ही नहीं दिया गया।
  3. प्रबन्धकीय अकुशलता व्यापारिक बैंकों में प्रबन्धकीय कुशलता का अभाव पाया जाता है। अधिकतर बैंक बड़े-बड़े उद्योगपतियों के स्वामित्व में कार्य करते हैं।
  4. पारस्परिक सहयोग का अभाव व्यापारिक बैंकों में आपसी सहयोग के .. स्थान पर प्रतिस्पर्धा पाई जाती है।
  5. व्यक्तिगत जमानत पर ऋण न देना व्यापारिक बैंक किसी भी व्यक्ति को व्यक्तिगत जमानत पर ऋण प्रदान नहीं करते हैं।
  6. राष्ट्रीय ऋण नीति का अभाव व्यापारिक बैंकों में कुशल राष्ट्रीय ऋण नीति का अभाव पाया जाता है, जिससे किए जाने वाले विनियोग आर्थिक विकास में योगदान नहीं दे पाते हैं।
  7. ऋण देने की दोषपूर्ण नीति ये बैंक कृषि व लघु उद्योगों को कम ऋण प्रदान करते हैं, जबकि बड़े-बड़े व्यापारियों व उद्योगपतियों को अधिक ऋण प्रदान करते हैं।

प्रश्न 3.
बैंक के राष्ट्रीयकरण के लाभ बताइए। (2008)
उत्तर:
बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लाभ बैंकों के राष्ट्रीयकरण से निम्नलिखित लाभ हुए हैं

  1. आर्थिक विकास में वृद्धि बैंकों को राष्ट्रीयकृत किए जाने से इनकी जमाओं में वृद्धि हुई है। अत: इन जमाओं का उपयोग देश की आर्थिक नीति के अनुसार किया जाने लगा, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला।
  2. सहयोग में वृद्धि 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो जाने से इन्हें रिज़र्व बैंक का सहयोग प्राप्त हुआ, जिससे देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई है।
  3. बैंकों की कार्यकुशलता में वृद्धि गैर-राष्ट्रीयकृत बैंकों की अपेक्षा राष्ट्रीयकृत बैंकों की कार्यकुशलता में अधिक वृद्धि हुई है।
  4. समाजवाद को बढ़ावा बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंकों की धनराशि का प्रयोग पूँजीपतियों के अतिरिक्त समाज के सामान्य वर्ग के लिए भी किया गया, जिससे समाजवाद को बढ़ावा मिला।
  5. उद्योग-धन्धों में वृद्धि बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने से उद्योग-धन्धों के विकास हेतु सरकार द्वारा उदार ऋण नीति को अपनाया गया।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण की हानियाँ बैंकों के राष्ट्रीयकरण से निम्नलिखित हानियाँ हुई हैं-

  1. भ्रष्टाचार में वृद्धि राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंकों की कार्यप्रणाली में भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिला, क्योंकि बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो जाने से बैंकों से ऋण प्राप्त करने की प्रक्रिया बहुत लम्बी व कठिन हो गई।
  2. राजनीति का प्रवेश राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंकों के संचालन व प्रबन्ध में राजनीतिज्ञों का प्रवेश होने के कारण बैंकों की समस्त पूँजी कुछ ही हाथों में जाने का भय उत्पन्न हो गया है।
  3. कर्मचारियों की कार्यकुशलता में कमी राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंकों में सरकारी नौकरी हो जाने के कारण कर्मचारियों की कार्यकुशलता में कमी आई है।
  4. नौकरशाही का प्रभुत्व बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंक सरकारी क्षेत्रों में आ गए, जिससे अन्य सरकारी क्षेत्रों की भाँति बैंकों में नौकरशाही व लालफीताशाही व्याप्त होने लगी है।
  5. क्षेत्रीय संकीर्णता राष्ट्रीयकृत बैंकों की अधिक शाखाओं का विस्तार शहरों में होने के कारण शहरी क्षेत्रों की जमाओं का प्रयोग उसी क्षेत्र में किया जाता है, जिस कारण पिछड़े हुए एवं अविकसित क्षेत्रों का विकास रुक जाता है।

प्रश्न 4.
भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पाँच उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। (2006)
अथवा
सन् 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। (2006)
अथवा
भारत में वाणिज्यिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पाँच प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  1. बैंकिंग सुविधाओं का सन्तुलित विकास बैंकों के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य देश के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं का पर्याप्त विकास करना था।
  2. आर्थिक सत्ता के केन्द्रीकरण का अन्त राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य पूँजीपतियों की सत्ता को समाप्त करना था, जिससे पूँजी का सभी वर्गों में समान वितरण हो।
  3. कृषि साख प्रदान करना बैंकों के राष्ट्रीयकरण द्वारा किसानों को आवश्यक मात्रा में ऋण उपलब्ध करवाना था।
  4. शाखाओं को प्रसार बैंकों के राष्ट्रीयकरण से सभी क्षेत्रों में बैंकिंग शाखाओं का विस्तार करना था।
  5. राष्ट्रीय आय में वृद्धि राष्ट्रीयकरण से ग्रामीण व शहरी लोगों को बैंकिंग सुविधा उपलब्ध करवाकर उनमें बचते की आदत को प्रोत्साहित करना था, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो सके।
  6. लघु उद्योगों को साख राष्ट्रीयकरण के द्वारा लघु उद्योगों को ऋण उपलब्ध करवाकर लघु उद्योगों का विकास करना था।
  7. साख का राष्ट्रहित में प्रयोग बैंकों के राष्ट्रीयकरण से साख का प्रयोग देश के विकास के लिए करना था।
  8. सामान्य व्यक्तियों की सहायता राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य आम-आदमी को उसकी आवश्यकतानुसार ऋण देकर सहायता उपलब्ध कराना था।
  9. विकास के लिए वित्त बैंकों के राष्ट्रीयकरण के द्वारा देश में तीव्र आर्थिक विकास की वित्त की व्यवस्था करना था, जिससे आर्थिक नियोजन के अनुसार देश का विकास किया जा सके।
  10. समाजवाद की स्थापना बैंकों के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य समाजवाद की स्थापना करना था। जिससे प्रत्येक समाज को विकास की ओर अग्रसर किया जा सके।

प्रश्न 5.
सन् 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरणं पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2011)
अथवा
सन् 1969 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीयकृत दस बैंकों के नामों का उल्लेख कीजिए। (2010, 06)
उत्तर:
व्यापारिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण बैंकिंग व्यवसाय को प्रभावी एवं मजबूत बनाने के उद्देश्य से 19 जुलाई, 1969 को देश के 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इन बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवा का विकास करना था। इन बैंकों की जमा राशि के 50 करोड़ से अधिक थी। ये बैंक निम्नलिखित हैं

  1. सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
  2. बैंक ऑफ इण्डिया
  3. बैंक ऑफ बड़ौदा
  4. पंजाब नेशनल बैंक
  5. केनरा बैंक
  6. यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक
  7. यूनाइटेड बैंक ऑफ इण्डिया
  8. सिण्डीकेट बैंक
  9. बैंक ऑफ महाराष्ट्र
  10. देना बैंक
  11. इलाहाबाद बैंक
  12. यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया
  13. इण्डियन बैंक
  14. इण्डियन ओवरसीज़ बैंक
  15. अप्रैल, 1980 को सरकार ने 6 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया।

जिन बैंकों की जमाएँ 200 करोड़ तक थीं। ये बैंक हैं-

  1. दी आन्ध्रा बैंक
  2. दो न्यू बैंक ऑफ इण्डिया
  3. कॉर्पोरेशन बैंक
  4. दी ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स
  5. दी पंजाब एण्ड सिन्ध बैंक
  6. विजया बैंक

सितम्बर, 1993 में दीं न्यू बैंक ऑफ इण्डिया का पंजाब नेशनल बैंक में विलय कर देने के बाद वर्तमान में राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या 19 हो गई है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
वाणिज्यिक बैंकों से आप क्या समझते हैं? वाणिज्यिक बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का वर्णन कीजिए। (2008)
अथवा
वाणिज्यिक बैंक किसे कहते हैं? वाणिज्यिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
वाणिज्यिक या व्यापारिक बैंक से आशय व्यापारिक बैंक वे बैंक होते हैं, जो सामान्य बैंकिंग का कार्य करते हैं। भारत में सभी राष्ट्रीयकृत बैंक व्यापारिक बैंक होते हैं तथा ये बैंक अनुसूचित बैंक भी होते हैं। ये बैंक केन्द्रीय बैंक के निर्देशन में कार्य करते हैं एवं जनता से निक्षेप स्वीकार करते हैं, अल्पकालीन ऋण प्रदान करते हैं तथा साख का निर्माण भी करते हैं। व्यापारिक बैंकों के निम्नलिखित दो प्रकार हैं

1. अनुसूचित बैंक भारत में वे बैंक अनुसूचित बैंक कहलाते हैं, जिनका नाम भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की द्वितीय अनुसूची में सम्मिलित किया हुआ है। ये बैंक निम्नलिखित शर्तों का पालन करते हैं

  • उस बैंक की प्रदत्त पूँजी तथा कोष कम-से-कम ₹ 5 लाख हो।
  • उस बैंक के कार्य अपने जमाकर्ताओं के हित के विरुद्ध न हों।
  • वह बैंक भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत हो।
  • उस बैंक की आर्थिक स्थिति अच्छी हो।

2. गैर-अनुसूचित बैंक जिन बैंकों का नाम भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की द्वितीय अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है, वे गैर-अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक कहलाते हैं।

वाणिज्यिक या व्यापारिक बैंकों के कार्य या सेवाएँ वाणिज्यिक या व्यापारिक बैंकों के कार्य या सेवाएँ निम्नलिखित हैं

I. मुख्य कार्य या प्राथमिक कार्य

1. जमा पर धन प्राप्त करना बैंक की प्रमुख कार्य जमा पर धन प्राप्त करना
है। बैंक जनता से जमा के रूप में धन को स्वीकार करता है। बैंक पाँच प्रकार के खातों द्वारा जनता से जमा प्राप्त करता है

(i) चालू खाता ये खाते मुख्य रूप से व्यापारियों और व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा खोले जाते हैं। इन खातों में दिन में कई बार धन जमा कराने व निकालने की सुविधा रहती है। इस प्रकार के खाते पर बैंक प्रायः ब्याजे नहीं देते हैं।

(ii) बचत बैंक खाता यह खाता कम तथा निश्चित आय वर्ग वाले व्यक्तियों के लिए अधिक लाभकारी होता है। इस प्रकार के खाते का मुख्य उद्देश्य जनता क़ी छोटी-छोटी बचतों को एकत्र करके उनमें बचत की भावना को विकसित करना होता है। यह खाता कोई भी साधारण व्यक्ति खोल सकता है। बैंक इस खाते पर 4% की दर से ब्याज भी देता है।

(iii) सावधि जमा खाता जिन व्यक्तियों का उद्देश्य अधिक ब्याज कमाना होता है, उनके द्वारा यह खाता खोला जाता है। यह खाता एक निश्चित अवधि के लिए होता है। यह खाता एक नाम, संयुक्त नाम या नाबालिग के द्वारा भी खोला जा सकता है।

(iv) निरन्तर/आवर्ती जमा खाता इस प्रकार के खाते में प्रतिमाह एक निश्चित धनराशि जमा करानी पड़ती है। यह एक निश्चित अवधि के लिए खोला जाता है। यह खाता ३5 के गुणक में खोला जाता है। इस खाते में चक्रवृद्धि दर से ब्याज मिलता है।

2. ऋण देना व्यापारिक बैंक सामान्यत: निम्नांकित प्रकार के ऋण प्रदान करते हैं-

(i) अधिविकर्ष द्वारा जब बैंक अपने ग्राहकों को उनके द्वारा जमा की गई राशि से अधिक रुपया निकालने की अनुमति दे देता है, तो वह अतिरिक्त राशि अधिविकर्ष (Overdraft) कहलाती है। यह सुविधा प्रायः बैंक द्वारा चालू खाते पर प्रदान की जाती है। यह सुविधा अल्पकालीन होती है।

(ii) नकद साख इसमें व्यापारी बैंक से अपने ऋण की एक सीमा तय कर लेता है। इस प्रकार वह राशि व्यापार के खाते में जमा हो जाती है। व्यापारी अपनी आवश्यकतानुसार रुपया निकालता और जमा कराता रहता है। इसमें ब्याज सम्पूर्ण राशि पर न लगाकर केवल निकाली गई राशि पर ही लगाया जाता है और यह सुविधा बैंक द्वारा चल-अचल सम्पत्ति की जमानत पर प्रदान की जाती है।

(iii) ऋण और अग्रिम जब ऋण पूर्व निश्चित अवधि के लिए दिया जाता है, तो उसे ऋण और अग्रिम (Loan and Advance) कहते हैं। इसमें पूर्ण धनराशि पर ब्याज प्रारम्भ से ही लगाया जाता है, चाहे ऋण का प्रयोग करें या न करें। यह ऋण भी बैंक द्वारा चल-अचल सम्पत्ति की जमानत पर प्रदान किया जाता है।

(iv) अल्प सूचना पर देय यह ऋण सामान्यत: बड़े नगरों में ही प्रचलित है। इस पर ब्याज 0.5% से लेकर 3.5% तक ही वसूला जाता है।

(v) हुण्डियों तथा विनिमय-विपत्रों को भुनाना व्यापारिक बैंक हुण्डियों तथा विनिमय-विपत्रों को भुनाने का कार्य भी करते हैं। अतः इन्हें भुनाकर बैंक ऋण देने की व्यवस्था करते हैं। ये ऋण व्यक्तिगत जमानत एवं प्रतिभूतियों की जमानत दोनों पर प्रदान किए जाते हैं।

3. एजेन्सी के रूप में कार्य व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए निम्न एजेन्सी सम्बन्धी कार्य भी करते हैं|

  • ग्राहकों की ओर से बीमे की किस्त का भुगतान करना।
  • लॉकर्स की सुविधा प्रदान करना।
  • ये गहने अथवा बहुमूल्य वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं।
  • ये अंश व ऋणपत्रों का क्रय-विक्रय करते हैं।
  • ये बैंक अपने ग्राहकों को आर्थिक सलाह व सम्मति भी देते हैं।
  • ये बैंक साख-पत्रों, बिल, ड्राफ्ट, हुण्डी, विनिमय-विपत्र, आदि का निर्गमन करते हैं।
  • ये बैंक अंशपत्रों पर लाभांश व ऋणपत्रों पर ब्याज एकत्रित करते हैं।

4. विदेशी विनिमय का कार्य आधुनिक व्यापारिक बैंक एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में बदलने का कार्य भी करते हैं।
5. रुपये के हस्तान्तरण का कार्य ये बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान पर रुपये भेजने की शीघ्र, सस्ती व सरल सुविधा प्रदान करने का कार्य भी करते हैं।
6. व्यापारिक सूचना सम्प्रेषित करने का कार्य ये बैंक बाजार की माँग से सम्बन्धित आँकड़ों का संग्रह करके अपने ग्राहकों तक पहुँचा देने का कार्य भी करते हैं।
7. धन के विनियोजन सम्बन्धी कार्य ये बैंक अपनी जमा को लगभग 26% धन विनियोग में लगाते हैं।
8. साख निर्धारण का कार्य सेयर्स के अनुसार, “बैंक केवल एक मुद्रा जुटाने वाली संस्था ही नहीं है, वरन् मुद्रा की निर्माता भी है।” अर्थात् बैंक नकद जमा, साख जमा, आदि का भुगतान करके साख का निर्माण भी करते हैं अर्थात् “बैंक उस जगह पर काटते हैं, जहाँ पर बोते नहीं।’
9. अन्य सेवाएँ बैंक अपने ग्राहकों को अन्य आवश्यक सेवाएँ भी प्रदान करते हैं; जैसे

  1. सरकार तथा अन्य संस्थाओं के ऋणों का अभिगोपन करना।
  2. यात्री चैक जारी करना।
  3. आँकड़ों व व्यापारिक सूचनाओं को एकत्रित करके उनका प्रकाशन करना, आदि।

प्रश्न 2.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लाभ एवं हानियों का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर:
बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लाभ बैंकों के राष्ट्रीयकरण से निम्नलिखित लाभ हुए हैं

  1. आर्थिक विकास में वृद्धि बैंकों को राष्ट्रीयकृत किए जाने से इनकी जमाओं में वृद्धि हुई है। अत: इन जमाओं का उपयोग देश की आर्थिक नीति के अनुसार किया जाने लगा, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला।
  2. सहयोग में वृद्धि 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो जाने से इन्हें रिज़र्व बैंक का सहयोग प्राप्त हुआ, जिससे देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई है।
  3. बैंकों की कार्यकुशलता में वृद्धि गैर-राष्ट्रीयकृत बैंकों की अपेक्षा राष्ट्रीयकृत बैंकों की कार्यकुशलता में अधिक वृद्धि हुई है।
  4. समाजवाद को बढ़ावा बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंकों की धनराशि का प्रयोग पूँजीपतियों के अतिरिक्त समाज के सामान्य वर्ग के लिए भी किया गया, जिससे समाजवाद को बढ़ावा मिला।
  5. उद्योग-धन्धों में वृद्धि बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने से उद्योग-धन्धों के विकास हेतु सरकार द्वारा उदार ऋण नीति को अपनाया गया।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण की हानियाँ बैंकों के राष्ट्रीयकरण से निम्नलिखित हानियाँ हुई हैं-

  1. भ्रष्टाचार में वृद्धि राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंकों की कार्यप्रणाली में भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिला, क्योंकि बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो जाने से बैंकों से ऋण प्राप्त करने की प्रक्रिया बहुत लम्बी व कठिन हो गई।
  2. राजनीति का प्रवेश राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंकों के संचालन व प्रबन्ध में राजनीतिज्ञों का प्रवेश होने के कारण बैंकों की समस्त पूँजी कुछ ही हाथों में जाने का भय उत्पन्न हो गया है।
  3. कर्मचारियों की कार्यकुशलता में कमी राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंकों में सरकारी नौकरी हो जाने के कारण कर्मचारियों की कार्यकुशलता में कमी आई है।
  4. नौकरशाही का प्रभुत्व बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंक सरकारी क्षेत्रों में आ गए, जिससे अन्य सरकारी क्षेत्रों की भाँति बैंकों में नौकरशाही व लालफीताशाही व्याप्त होने लगी है।
  5. क्षेत्रीय संकीर्णता राष्ट्रीयकृत बैंकों की अधिक शाखाओं का विस्तार शहरों में होने के कारण शहरी क्षेत्रों की जमाओं का प्रयोग उसी क्षेत्र में किया जाता है, जिस कारण पिछड़े हुए एवं अविकसित क्षेत्रों का विकास रुक जाता है।

प्रश्न 3.
एक व्यापारिक बैंक में ग्राहकों द्वारा खोले जाने वाले विभिन्न प्रकार के खातों का वर्णन कीजिए। (2016)
अथवा
बैंक में कितने प्रकार के खाते खोले जा सकते हैं? समझाइए। (2006)
अथवा
बैंक में खोले जाने वाले विभिन्न प्रकार के खातों का वर्णन कीजिए। (2006)
उत्तर:
बैंक मुख्य रूप से निम्नलिखित खाते खोलने की सुविधा देते हैं-

1. चालू खाता यह खाता व्यापारियों तथा उद्योगपतियों के द्वारा खोला जाता है। इस खाते में दिन में कितनी भी बार लेन-देन किया जा सकता है। चालू खाते में जमा राशि पर ब्याज नहीं दिया जाता है।

चालू खाता खोलने की विधि चालू खाता खोलने के लिए बैंक से नि:शुल्क फॉर्म प्राप्त करके इसे भरना पड़ता है। इस आवेदन-पत्र में व्यक्ति या संस्था का नाम, व्यवसाय का पूरा पता, साक्षी के हस्ताक्षर, खाता खोलने वाले के हस्ताक्षर, नमूने के हस्ताक्षर, आदि सूचनाओं की पूर्ति करनी पड़ती है।

नमूने के हस्ताक्षर खाता खोलने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर को बैंक अपनी हस्ताक्षर-प्राप्त पुस्तिका में नमूने के रूप में ले लेता है, जिन्हें बैंक भविष्य के लिए अपने पास सुरक्षित रखता है।

न्यूनतम जमा राशि चालू खाते में ग्राहकों को बैंक द्वारा निश्चित की गई न्यूनतम राशि सदैवं जमा रखनी पड़ती है।

चालू खाता खोलने पर प्राप्त होने वाली पुस्तकें
चालू खाता खोलने पर बैंक द्वारा निम्नलिखित तीन पुस्तकें प्रदान की जाती हैं-

  • पास बुक यह एक छोटी पुस्तक होती है, जिसमें ग्राहक व बैंक के मध्ये किए गए सभी लेन-देन का तिथिवार विवरण लिखा होता है।
  • चैक बुक यह एक पुस्तक की तरह होती है। इसमें धनराशि निकालने के लिए 10 से 100 तक के कोरे फॉर्म लगे रहते हैं। इसके दो भाग होते हैं- बाँया वे दाँया। बाँया भाग प्रतिपर्ण वे दाँया भाग चैक कहलाता है। चैक या चैक बुक खो जाने पर बैंक को तुरन्त सूचित करना चाहिए।
  • जमा की पुस्तक इस पुस्तक का उपयोग धनराशि जमा कराने के लिए किया जाता है। इसमें धनराशि जमा कराने के लिए कोरे फॉर्म लगे रहते हैं। यह फॉर्म चैक, बिल, ड्राफ्ट व नकदी के साथ जमा कराया जाता

2. बचत बैंक खाता यह खाता सामान्यतः छोटी-छोटी बचतें जमा करने के लिए खोला जाता है। इस खाते पर अधिविकर्ष की सुविधा नहीं मिलती है। खाता खोलने की विधि इस प्रकार का खाता खोलने के लिए बैंक से प्राप्त निःशुल्क आवेदन-पत्र भरना होता है, जिसमें नाम, पता व व्यवसाय, आदि भरकर हस्ताक्षर करके जमा करानी पड़ती है। यह खाता कम-से-कम ₹ 500 जमा करवाकर खोला जा सकता है। खाता खोलते समय बैंक में नमूने के हस्ताक्षर करने होते हैं। इसे बैंक भविष्य के लिए सुरक्षित रखता है। खाताखोलने पर पास बुक, चैक बुक व जमा की पुस्तक, आदि प्रदान की जाती हैं।

3. सावधि जमा खाता सावधि जमा खाता एक निश्चित अवधि के लिए खोला जाता है। परिपक्वता की तिथि पर ब्याज सहित राशि लौटा दी जाती है। खाता खोलने की विधि इसमें बैंक से एक छपा हुआ आवेदन फॉर्म प्राप्त : कर उसे भरना होता है। बैंक जमाकर्ता को एक रसीद देता है, जिसे ‘स्थायी जमा रसीद’ कहा जाता है। इसमें जमाकर्ता का नाम, पता, धनराशि, जमा की अवधि व ब्याज दर, आदि का उल्लेख होता है।

4. निरन्तर/आवर्ती जमा खाता इस प्रकार के खाते को ‘संचयी जमा खाता भी पड़ती है। यह खाता ₹ 5 के गुणक में खोला जाता है। यह एक निश्चित अवधि के लिए खोला जाता है। इस खाते में चक्रवृद्धि दर से ब्याज मिलता है। इसमें निर्धारित अवधि समाप्त होने पर जमा राशि ब्याज सहित निकाली जा सकती है।

प्रश्न 4.
बैंक तथा ग्राहक के मध्य सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बैंक और ग्राहक का सम्बन्ध बैंक और ग्राहक का सम्बन्ध जानने से पूर्व बैंक और ग्राहक का अर्थ जान लेना चाहिए। बैंक का अर्थ बैंक वह संस्था है, जो मुद्रा को व्यवसाय करती है। यह एक ऐसी संस्था है जहाँ धन जमा कराने, ऋण देने एवं कटौती की सुविधाएँ दी जाती हैं।

ग्राहक का अर्थ ग्राहक की कोई वैधानिक परिभाषा नहीं होती है। सामान्यत: ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसका बैंक में खाता है, वह ग्राहक कहलाती है। सामान्यत: बैंक और ग्राहक के मध्य तीन प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं

1. ऋणी और ऋणदाता को सम्बन्ध बैंक और ग्राहक के मध्ये सबसे महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध ऋणी एवं ऋणदाता का है। जब ग्राहक बैंक में धन जमा कराता है, तो बैंक को इस धन का इच्छानुसार उपयोग करने का अधिकार मिल जाता है। ऐसी स्थिति में बैंक ऋणी तथा ग्राहक ऋणदाता होता है। इसके विपरीत जब ग्राहक अपने खाते में जमा राशि से अधिक राशि निकालता है, तो बैंक ऋणदाता तथा ग्राहक ऋणी होगा। ऋणी व ऋणदाता के रूप में बैंक और ग्राहक के मध्य निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं

  • ऋण के उपयोग की स्वतन्त्रता बैंक अपने ग्राहकों के जमा धन को अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है।
  • ऋण लौटाने की स्वतन्त्रता न होना बैंक ग्राहकों की धनराशि को इच्छानुसार नहीं लौटा सकता है। वह इस राशि को तभी लौटा सकता है, जब ग्राहक भुगतान प्राप्त करना चाहता है।
  • ग्राहकों के खातों व धनराशि की गोपनीयता बैंक अपने ग्राहकों के खातों की स्थिति गोपनीय रखता है।

2. अभिकर्ता (एजेण्ट) और प्रधान का सम्बन्ध वर्तमान समय में बैंक अपने ग्राहकों को अभिकर्ता के रूप में अनेक प्रकार की सेवाएँ प्रदान करते हैं; जैसे

  • ग्राहकों के चैकों, प्रतिज्ञा-पत्रों, विनिमय बिलों, आदि का भुगतान प्राप्त करना।
  • ग्राहक के ऋणपत्रों पर ब्याज, लाभांश, ऋण की राशि, मकान का किराया, आदि वसूल करना।
  • ग्राहक की ओर से ऋणों की किस्तें, ब्याज, चन्दा, किराया, बीमे की किस्तें, कर, आदि का भुगतान करना।
  • ग्राहकों के धन का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण करना।
  • ग्राहक की ओर से प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना।
  • ग्राहक के आदेशानुसार अन्य कार्य करना।

3. धरोहरधारी और धरोहरकर्ता का सम्बन्ध बैंक ग्राहकों को धन, बहुमूल्य प्रपत्र एवं अन्य महँगी वस्तुएँ सुरक्षार्थ रखते हैं। इन वस्तुओं का स्वामित्व तो ग्राहक का ही होता है, लेकिन अधिकार बैंक के पास रहता है। बैंक का उन वस्तुओं को सुरक्षित रखने व माँगने पर वापस लौटाने का दायित्व होता है। इस प्रकार, बैंक एक धरोहरधारी व धरोहरकर्ता के रूप में कार्य करता है। बैंक ग्राहक की धरोहर को सुरक्षित रखने व इसे लौटाने की गारण्टी देता है। यदि लापरवाही से ग्राहक की कोई हानि होती है, तो बैंक ही इसके लिए उत्तरदायी होता है। इस प्रकार मूल्यवान् वस्तु को धरोहर के रूप में रखने वाले ग्राहक को ‘धरोहरकर्ता एवं बैंक को ‘धरोहरधारी’ कहते हैं।

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