UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 17 International Trade
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Geography |
Chapter | Chapter 17 |
Chapter Name | International Trade (अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार) |
Number of Questions Solved | 11 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 17 International Trade (अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
विश्व के प्रमुख निर्यात एवं आयात व्यापार का वर्णन कीजिए।
उत्तर
एक देश का अन्य देशों से किया जाने वाला आयात एवं निर्यात (व्यापार) विश्व व्यापार या विदेशी व्यापार अथवा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है।
विश्व : निर्यात व्यापार (World : Export Trade)
पिछले 25-30 वर्षों में ऐंग्लो-अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोपीय देश विश्व का दो-तिहाई व्यापार करते थे, परन्तु अनेक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक संघ एवं सन्धियाँ बन जाने के कारण व्यापार के इस प्रारूप में अन्तर आ गया है। इसके अतिरिक्त शेष व्यापार एशियाई देशों-जापान एवं भारतद्वारा किया जाता है। रूस, कनाडा एवं पूर्वी यूरोपीय देशों के व्यापार में भी वृद्धि हुई है। अफ्रीकी देश, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड भी अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर व्यापारिक दृष्टिकोण से उभरने लगे हैं, परन्तु विश्व व्यापार में अभी भी यूरोपीय एवं अमेरिकी देशों का ही प्रभुत्व है।
विश्व निर्यात व्यापार की संरचना निम्नलिखित है-
- प्रमुखतया विकासशील देशों से खाद्यान्न, पेय-पदार्थ, कृषिगत अन्य उपजें, खनिज एवं धात्विक अयस्क, तम्बाकू, चाय, कहवा, चमड़ा और खालें आदि पदार्थ विकसित देशों को भेजे जाते हैं। प्रमुख निर्यातक देशों में इण्डोनेशिया, श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, संयुक्त अरब गणराज्य, मॉरीशस, घाना, कोलम्बिया, इक्वेडोर आदि प्रमुख हैं।
- मिलों एवं कारखानों में निर्मित विभिन्न वस्तुएँ- भारी मशीनें, इन्जीनियरिंग का सामान, सीमेण्ट, कागज, रसायन, रेशमी-ऊनी वस्त्र, मोटरगाड़ियाँ एवं धातुएँ-टिन, ताँबा, सीसा, जस्ता आदि विकसित देशों- संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली एवं जापान आदि-से मध्य-पूर्वी एवं एशियाई देशों, दक्षिणी अमेरिकी एवं अफ्रीकी देशों को निर्यात किये जाते हैं।
- वर्तमान समय में परम्परागत वस्तुओं के निर्यात की अपेक्ष कच्चा माल, निर्मित पदार्थ, मशीनें, पेट्रोलियम पदार्थों आदि का व्यापार अधिक होने लगा है।
- विश्व के निर्यात व्यापार की दिशा में भी अब परिवर्तन आ गया है। अनेक विकसित देश अब विश्व के विभिन्न देशों से विकासशील देशों की अपेक्षा अधिक निर्यात करने लगे हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय निर्यात व्यापार की संरचना एवं उसकी दिशा
Structure and Direction of International Export Trade
विश्व : आयात व्यापार (World : Import Trade)
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयात व्यापार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
- वर्तमान समय में विश्व के सभी देशों के आयात में विनिर्मित माल, यन्त्र एवं उपकरण तथा मशीनों का भाग अधिक होता है। कनाडा, क्यूबा, मैक्सिको, कोलम्बिया, पीरू, नार्वे आदि देशों का आयात इसी प्रकार का है।
- विश्व में अधिकांश देश औद्योगीकरण में स्वावलम्बी बनने के लिए अधिकाधिक आधारभूत खनिजों एवं यान्त्रिक उपकरणों तथा पूँजीगत सामान का आयात अधिक करते हैं।
- जनाधिक्य वाले देशों एवं विकसित देशों में खाद्यान्नों के आयात में वृद्धि हो रही है।
- ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी सदृश देशों में कच्चे माल के आयात में वृद्धि हो रही है।
- ब्रिटेन तथा पश्चिमी यूरोपीय देश-फ्रांस एवं जर्मनी आदि-महत्त्वपूर्ण आयातक देश हैं। इन देशों के आयात यूरोपीय तथा दक्षिणी अमेरिकी देशों से पूर्ण होते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय आयात व्यापार की संरचना एवं उसकी दिशा
Structure and Direction of International Import Trade
व्यापार के दृष्टिकोण से विश्व के देशों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है –
- वे देश जहाँ आयात एवं निर्यात व्यापार प्रायः बराबर होता है। ऐसे देशों में कम्पूचिया, सूडान, फिनलैण्ड एवं उरुग्वे आदि हैं। इन देशों से प्राथमिक वस्तुओं (कृषि, पशु एवं वन) से सम्बन्धित वस्तुओं का निर्यात तथा अन्य निर्मित वस्तुओं का आयात किया जाता है।
- वे देश जहाँ निर्यात, आयात की अपेक्षा अधिक होता है, वहाँ इनका व्यापार अधिक अनुकूल रहता है। वेनेजुएला, अर्जेण्टीना, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, इण्डोनेशिया, चेक एवं स्लोवाकिया, कनाडा, संयुक्त राज्य, सऊदी अरब, इराक, ईरान, रूस, फ्रांस, मलेशिया आदि देशों से विशिष्ट वस्तुओं, अर्थात् रबड़, खनिज तेल, चाय, निर्मित पदार्थ आदि का निर्यात होता है।
- वे देश जहाँ आयात, निर्यात की अपेक्षा अधिक होता है, वहाँ इन देशों का व्यापार अधिक प्रतिकूल रहता है। ब्रिटेन, भारत, जापान, इटली, नार्वे तथा अधिकांश यूरोपीय देश इसी श्रेणी में आते हैं। इन देशों द्वारा खाद्यान्न, अन्य कच्चे माल तथा मशीनी उपकरणों का आयात किया जाता है।
प्रश्न 2
चाय तथा खनिज तेल के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का वर्णन कीजिए।
या
खनिज तेल के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का वर्णन कीजिए। (2014)
या
टिप्पणी लिखिए-खनिज तेल का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार।
उत्तर
चाय का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
(International Trade of Tea)
चाय एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ है। इसका उत्पादने उष्ण व उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में ही किया जाता है, जबकि इसकी माँग संसार के अधिकांश देशों में रहती है। संसार के विकसित राष्ट्रों में चाय का उत्पादन बिल्कुल नहीं होता, परन्तु उनकी ऊँची क्रयशक्ति तथा अधिक खपत के कारण वे राष्ट्र चाय के प्रमुख आयातक बन गए हैं।
चाय के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की विशेषताएँ
(Characteristics of International Trade of Tea)
चाय के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- चाय का 90% उत्पादन उष्णार्द्र जलवायु के देशों में किया जाता है, जबकि उसका.90% उपभोग
शीतप्रधान जलवायु के देश करते हैं। - चाय की अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भागीदारी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- संसार में लगभग 26 लाख टन चाय का उत्पादन होता है जिसमें से लगभग 47% (12.2 लाख टन) विश्व व्यापार में प्रयुक्त होगी। अत: चाय का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विकासशील देशों की निर्यात आय की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- यूरोपीय साझा बाजार के सभी देशों का मुख्य आयात चाय ही होती है।
- चाय के कुल निर्यात का लगभग 13.3% भारत, 12.2% श्रीलंका, 12% चीन, 11% कीनिया (अफ्रीका), 5% इण्डोनेशिया और 3.8% अर्जेण्टीना द्वारा किया जाता है।
- कुल चाय आयात का 70% भाग ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान, इराक, ईरान एवं मिस्र द्वारा किया जाता है तथा 5% जापान, 3% पोलैण्ड तथा 3% सऊदी अरब द्वारा किया जाता है।
- चाय विकासशील एवं खेतिहर देशों की आय का मुख्य स्रोत बनी हुई है। इसे निर्यात कर ये देश ‘पर्याप्त विदेशी मुद्रा अर्जित करते हैं।
- भारत और श्रीलंका के निर्यात व्यापार में चाय महत्त्वपूर्ण स्थान रहती है।
- चाय की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत में ग्रेट ब्रिटेन का स्थान सर्वप्रथम है, अतः यह चाय का सबसे बड़ा ग्राहक है।
- विश्व के कुल चाय व्यापार में भारत का योगदान लगभग 13% है।
- चाय के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत के प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी श्रीलंका, इण्डोनेशिया, कीनिया तथा चीन हैं।
खनिज तेल का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
(International Trade of Mineral Oil)
आधुनिक युग में खनिज तेल एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ऊर्जा संसाधन है। अत: इसके संचित भण्डार एवं उत्पादन क्षेत्रों पर आर्थिक या राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक दाँव-पेंच चलते रहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण वस्तु है। विश्व में ऐसे गिने-चुने देश हैं जो खनिज तेल के उत्पादन में स्वावलम्बी हैं और निर्यात करने की स्थिति में भी हैं। ऊर्जा संकट को ध्यान में रखते हुए खनिज तेल का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है।
खनिज तेल के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की विशेषताएँ
(Characteristics of International Trade of Mineral Oil)
खनिज तेल के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- खनिज तेल का निर्यात करने वाले देश बहुत कम हैं, जबकि इसके आयातक देशों की सूची बहुत लम्बी है।
- खनिज तेल का शोधन करने पर इससे अनेक उपयोगी पदार्थ प्राप्त होते हैं। इन पदार्थों पर बहुत-से महत्त्वपूर्ण उद्योग-धन्धे आधारित होते हैं, अतः सभी देश आवश्यकतानुसार खनिज तेल के आयात पर बल देते हैं।
- खनिज तेल उत्पादकः खाड़ी देशों में कृषि, उद्योग तथा व्यापार पिछड़ी हुई दशा में हैं, अत: ये खनिज तेल का निर्यात कर अपनी अन्य आवश्यकता की वस्तुएँ आयात करने में सक्षम हो पाए हैं।
- सभी औद्योगिक राष्ट्र खनिज तेल का भारी मात्रा में आयात करते हैं।
- खनिज तेल को यदि भूमि से न निकाला जाए तो वह स्वत: ही स्थानान्तरित हो जाता है; अतः खनिज तेल उत्पादक देश इसके निर्यात द्वारा ही उत्पादन कर पाते हैं।
- विकसित होते हुए परिवहन साधनों ने खनिज तेल के उपभोग को कई गुना बढ़ा दिया है; अत: सभी राष्ट्र खनिज तेल के आयात में वृद्धि कर रहे हैं।
- विश्व में प्रतिवर्ष कुल लगभग 3 अरब टन खनिज तेल का उत्पादन होता है जिसके लगभग एक-तिहाई भाग (103 करोड़ टन) का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होता है। तेल के बड़े आयातकों में संयुक्त राज्य अमेरिका (विश्व का 17%), जापान (14%) और पश्चिमी यूरोपीय देश (30%) हैं।
- खनिज तेल के बड़े निर्यातकों में सऊदी अरब (18%), रूस (16%), मैक्सिको (6%), इराक (6%), ईरान (5.5.%), नाइजीरिया (5.2%), संयुक्त अरब अमीरात (52%), वेनेजुएला (4%), लीबिया (3.8%) और इण्डोनेशिया (3.7%) प्रमुख हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका खनिज तेल का संसार सबसे अधिक उपभोग करने वाला देश है। 46 करोड़ टन घरेलू उत्पादन के अतिरिक्त यह प्रतिवर्ष लगभग 18 करोड़ टन तेल का आयात करता है। रूस अपने 31.5 करोड़ टन उत्पादन में से लगभग 8 करोड़ टन खनिज तेल का निर्यात कर देता है। जापान एक महान औद्योगिक देश होने के कारण संसार का दूसरा बड़ा तेल आयातक देश बन गया है।
- पश्चिमी यूरोप में केवल ब्रिटेन के अतिरिक्त सभी देशों का घरेलू उत्पादन न होने के कारण तथा इन विकसित राष्ट्रों में पेट्रोलियम की अधिक माँग होने के कारण खाड़ी देशों से खनिज तेल का बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है।
प्रश्न 3
निम्नलिखित में से किसी एक के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विवरण दीजिए –
(1) गेहूँ
(2) चावल
(3) लौह-अयस्क
(4) कोयला।
उत्तर
(1) गेहूँ का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
गेहूँ विश्व का सबसे अधिक बोया जाने वाला खाद्यान्न है। विश्व की अधिकांश सभ्य जातियाँ खाद्यान्नों में गेहूँ पर ही आश्रित हैं। इसका उत्पादन क्षेत्र इतना विस्तृत है कि विश्व के अनेक जलवायु प्रदेशों में यह उगाया जाता है तथा वर्ष भर इसकी खेती कहीं-न-कहीं होती रहती है। इसके उपरान्त भी अनेक देशों में गेहूं का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाता है, फलतः वे अपनी माँग की आपूर्ति के लिए अन्य देशों पर निर्भर करत हैं। इस तथ्य का लाभ उठाने के लिए संसार के कम जनसंख्या वाले और विस्तृत कृषि-भूमि वाले देश मशीनों से गेहूं की विस्तृत खेती करते हैं, जैसे-कनाड़ा, अर्जेण्टीना, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका।
इन देशों द्वारा अपनी आवश्यकता से इतना अधिक गेहूं उत्पन्न किया जाता है कि उसे निर्यात करना भी कभी-कभी उनके लिए समस्या हो जाती है। इन देशों में बड़े-बड़े फार्मों में बड़े पैमाने पर खेती किए जाने के कारण गेहूं की उत्पादन लागत भी कम आती है। इसी कारण विश्व व्यापार में इनकी वे देश प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते जहाँ गेहूं की सघन कृषि करने में अपेक्षाकृत लागत अधिक आती है।
विश्व के प्रायः अधिक जनसंख्या वाले देश अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए गेहूं का आयात करते हैं। विश्व के कुल निर्यात का लगभग 84% भाग संयक्त राज्य अमेरिका, कनाड़ा, अर्जेण्टीना, पश्चिमी एशियाई ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस एवं जर्मनी का है। इनके अतिरिक्त रूस, हंगरी, रूमानिया, इटली, टर्की आदि भी गेहूँ के निर्यातक देश हैं। भारत भी अपने समीपवर्ती देशों को गेहूं का निर्यात करने लगा है। गेहूं के आयातक देशों में चीन, यूरोपीय देश, ब्राजील, जापान, मिस्र, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देश, ब्रिटेन आदि प्रमुख हैं।
(2) चावल का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
चावल संसार की आधी से अधिक जनसंख्या का मुख्य भोजन है। वस्तुतः शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के निवासियों के लिए गेहूँ जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के निवासियों के लिए-चावल आवश्यक है। व्यापारिक दृष्टि से चावल, गेहूं की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।
संसार के कुल चावल उत्पादन का केवल 10% भाग ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रयुक्त होता हैं, क्योंकि अधिकांश बड़े चावल उत्पादक देश ही अत्यधिक जनसंख्या वाले देश होने के कारण चावल के बड़े उपभोक्ता भी हैं। विश्व का कुल चावल उत्पादन लगभग 61 करोड़ मीट्रिक टन है जिसमें से केवल 2.5 करोड़ टन चावल का ही विश्व व्यापार किया जाता है। थाईलैण्ड, म्यांमार, ताइवान, पाकिस्तान, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, मिस्र, ब्राजील, जापान, कम्बोडिया, वियतनाम और स्पेन संसार के प्रमुख चावल निर्यातक देश हैं। ये देश चावल के बड़े उत्पादक नहीं हैं। अपनी माँग से अधिक चावल उत्पादन के कारण ही ये चावल के निर्यातक बने हुए हैं। आवश्यकता से कम उत्पादन होने के कारण बांग्लादेश, इण्डोनेशिया, खाड़ी के देश, जापान, रूस, श्रीलंका, मलेशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका आदि देश चावल का आयात करते हैं।
(3) लौह-अयस्क का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
लौह-अयस्क लोहा व इस्पात उद्योग का प्रमुख कच्चा माल है। इस्पात उद्योग का विकास करने के लिए संभी राष्ट्र यथाशक्ति प्रयत्नशील हैं क्योंकि यह सभी मशीनों, परिवहन उपकरणों, इंजीनियरी उद्योगों का आधार होता है। इसीलिए इसे ‘आधुनिक सभ्यता का जनक’ कहा जाता है। यह भारी और कम मूल्य वाला खनिज पदार्थ है, अत: अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में इसका महत्त्व कम है। इसी कारण इसका व्यापार सामान्यतः पड़ोसी देशों के बीच ही किया जाता है।
संसार के कुल 99.44 करोड़ टन लौह-अयस्क उत्पादन को लगीग एक-तिहाई अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रयुक्त किया जाता है। संसार के बड़े लौह-अयस्क निर्यातक देश ब्राजील (24%), ऑस्ट्रेलिया (19%), रूस (16%), कनाड़ा (12%), भारत (7%), स्वीडन (4.4%), लाइबेरिया (3.5%) एवं वेनेजुएला (3.3%) हैं। लौह-अयस्क के बड़े आयातक देशों में जापान (विश्व का लगभग एक-तिहाई), जर्मनी (15%), संयुक्त राज्य (6.4%), इटली (4.5%), फ्रांस (4%), चीन (3.9%) एवं बेल्जियम (3.9%) प्रमुख हैं।
ब्राजील में उत्पादित लौह-अयस्क के प्रमुख ग्राहक संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान हैं। ऑस्ट्रेलिया और भारत का अधिकांश लौह-अयस्क जापान को निर्यात किया जाता है। अफ्रीका के लौह-अयस्क उत्पादक देश और वेनेजुएला मुख्यत: संयुक्त राज्य अमेरिका को लौह-अयस्क निर्यात करते हैं। कनाडा से लौह-अयस्क का निर्यात संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देशों के लोहा-इस्पात उत्पादक देशों को किया जाता है।
(4) कोयले का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
कोयला आज भी महत्त्वपूर्ण ऊर्जा का स्रोत है और अनेक उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करता है। भारी होने के कारण इसका व्यापार अधिकतर जलमार्गो (नाव्य नहरों, नाव्य नदियों और महासागरीय मार्गों) द्वारा किया जाता है। इसका व्यापार अधिकतर निकटस्थं देशों के साथ किया जाता है। क्योंकि लम्बी दूरियों तक़ इसका परिवहन करने पर यह महँगा हो जाता है। वस्तुत: विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 10% (45.6 करोड़ टन) कोयला ही अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में व्यापारिक दृष्टिकोण से प्रयुक्त किया जाता है।
यूरोप के देश अधिकतर आपस में ही जलमार्गों द्वारा इसका व्यापार कर लेते हैं। और साथ-ही-साथ वापसी में वही जलयान लौह-अयस्क को ढोते हैं। इसीलिए कोयले और लौह-अयस्क की खानों के निकट ही लोहा-उत्पादक केन्द्र स्थापित किए गए हैं। पोलैण्ड से नार्वे, स्वीडन, फिनलैण्ड, आस्ट्रिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और इटली को कोयला निर्यात किया जाता है। संसार के बड़े कोयला निर्यातक देश ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, पोलैण्ड, यूक्रेन, भारत, दक्षिणी अफ्रीका आदि हैं। जापान संसार का सबसे बड़ा कोयला आयातक देश है। (विशेषतः कोकिंग कोयले का)। जापान आज निकटता के आधार पर ही चीन के कोयला क्षेत्रों का विकास अपने आयात के लिए कर रहा है। संसार के बड़े कोयला आयातक देश जापान, फ्रांस कनाडा, बेल्जियम, इटली, डेनमार्क, स्पेन, नार्वे, स्वीडन, अर्जेण्टीना आदि हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष बताइए।
उत्तर
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं –
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा बहुधा किसी देश के क्षयशील खनिज संसाधन शीघ्र ही समाप्त हो जाते हैं। उन संसाधनों की पूर्ति सम्भव नहीं होती।
- कभी-कभी विदेशी व्यापार से देशवासियों को हानिकारक मादक वस्तुओं के उपयोग का अतिशय अभ्यास हो जाता है, उदाहरणार्थ-चीनवासियों को मदिरा तथा अफीम की लत पड़ गई थी।
- प्रत्येक देश में कुछ विशेष वस्तुओं के उत्पादन का विशेषीकरण होता है तथा अन्य क्षेत्र अविकसित रह जाते हैं। इस प्रकार देश का एकपक्षीय विकास ही होता है, जो इस देश की अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होता है।
- देशी बाजारों में विदेशी माल आने पर देश के उद्योग-धन्धे प्रायः चौपट हो जाते हैं तथा पनप नहीं पाते। स्वतन्त्रता के पूर्व भारत के बाजारों में विदेशी वस्त्रों के कारण स्वदेशी वस्त्र व्यवसाय ठप हो गया था।
- जो देश अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विदेशी व्यापार (आयात) पर निर्भर करते हैं, युद्धकाल या अन्य किसी संकट काल में व्यापार बन्द होने पर उसका आर्थिक ढाँचा अस्त-व्यस्त हो जाता है।
- विदेशी व्यापार से उपजे आर्थिक तथा औद्योगिक असन्तुलन का प्रभाव एक ही देश पर सीमित नहीं रहता, अन्य सम्बन्धित देश भी उसके शिकार होते हैं।
प्रश्न 2
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के गुण बताइए।
उत्तर
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं –
- खाद्य संकट के समय विदेशों से अन्न के आयात से देश की भुखमरी से रक्षा होती है। इस प्रकार देशवासियों के स्वास्थ्य एवं जीवन की रक्षा होती है।
- प्रायः देशों में उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन होता है जिनके लिए परिस्थितियाँ अनुकूलतम होती हैं। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से प्रादेशिक श्रम-विभाजन का विकास होता है।
- जिन वस्तुओं का देश में उत्पादन नहीं होता, आयात द्वारा उपभोक्ताओं को वे सहज उपलब्ध हो जाती हैं।
- यदि किसी देश में किसी उद्योग के लिए कच्चा माल उपलब्ध नहीं है, किन्तु अन्य सभी सुविधाएँ प्राप्त हैं तो कच्चे माल के आयात द्वारा उस उद्योग का विकास सम्भव है। जिन देशों के पास कच्चा माल अधिक है, किन्तु अन्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, तो वे कच्चे माल का निर्यात करके बदले में आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त कर सकते हैं।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से देशों के मध्य व्यापारिक प्रतिस्पर्धा बनी रहती है। अतएव वे उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता के प्रति सतर्क रहते हैं तथा मूल्य भी कम रखने की चेष्टा करते हैं।
प्रश्न 3
राष्ट्रमण्डल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
राष्ट्रमण्डल (Commonwealth Nation) सदस्य संख्या (53) तथा क्षेत्रीय व्यापार की दृष्टि से यह व्यापार संगठन संयुक्त राष्ट्र के बाद सबसे बड़ा है, किन्तु यह प्रभावी संगठन नहीं है। इसके सदस्य वे सभी देश हैं जो कभी ब्रिटेन के नियन्त्रण में थे। भारत, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैपड, श्रीलंका, मलेशिया, घाना, नाइजीरिया, साइप्रस, सियरालिओन, तंजानिया, जमैका, ट्रिनिडाड, तोबेगो, युगाण्डा, जंजीबार, केन्या, सिंगापुर व बांग्लादेश इसके सदस्य हैं। ब्रिटेन की रंगभेद नीति के कारण दक्षिणी अफ्रीका, रोडेशिया, जाम्बिया तथा 1971 ई० में पाकिस्तान इससे अलग हो गए।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर
कोई भी देश अपनी आवश्यकता की सभी वस्तुओं की पूर्ति स्वयं नहीं कर सकता; अतः उसे अन्य देशों से व्यापार द्वारा अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ मँगानी पड़ती हैं। इसे ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं।
प्रश्न 2
भारत के विदेशी व्यापार की दो नवीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
नब्बे के दशक से लागू आर्थिक उदारवादी नीति के कारण हमारे विश्व के सभी देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्धों में वृद्धि हुई है। विश्व-व्यापारीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण भारत के निर्यात व्यापार में गुणात्मक एवं मात्रात्मक परिवर्तन आए हैं।
प्रश्न 3
भारत की दो निर्यातक वस्तुओं का वर्णन कीजिए। [2010, 12, 13, 15]
उत्तर
- चाय – भारत चाय का प्रमुख निर्यातक देश है। ब्रिटेन भारतीय चाय का मुख्य ग्राहक है। इसके अतिरिक्त कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, ईरान, संयुक्त अरब गणराज्य, रूस, जर्मनी तथा सूडान आदि देश प्रमुख ग्राहक हैं।
- सूती वस्त्र – भारत सूती-वस्त्र, विशेष रूप से सिले-सिलाए परिधानों के निर्यात में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यह निर्यात मुख्यत: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, मलेशिया, सूडान, म्यांमार, अदन, अफगानिस्तान आदि देशों को किया जाता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
यूरोपीय संघ का मुख्यालय है।
(क) जेनेवा
(ख) न्यूयॉर्क
(ग) ब्रुसेल्स
(घ) ओस्लो
उत्तर
(ग) ब्रुसेल्स।
प्रश्न 2
आसियान का सदस्य नहीं है।
(क) ब्राजील
(ख) सिंगापुर
(ग) थाईलैण्ड
(घ) मलेशिया
उत्तर
(क) ब्राजील
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