UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 9 पर्यावरण और जनजीवन पर उसका प्रभाव
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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
पर्यावरण का अर्थ और परिभाषा निर्धारित कीजिए तथा पर्यावरण के विभिन्न वर्गों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
मनष्य ही क्या प्रत्येक प्राणी एवं वनस्पति जगत भी पर्यावरण से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है तथा ये सभी अपने पर्यावरण से प्रभावित भी होते हैं। पर्यावरण की अवधारणा को स्पष्ट करने से पूर्व ‘पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करना आवश्यक है।
पर्यावरण शब्द दो शब्दों अर्थात् ‘परि’ तथा ‘आवरण’ के संयोग या मेल से बना है। ‘परि’ का अर्थ है चारों ओर’ तथा आवरण का अर्थ है ‘घेरा। इस प्रकार पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ हुआ चारों ओर का घेरा’। इस प्रकार व्यक्ति के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि व्यक्ति के चारों ओर जो प्राकृतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक शक्तियाँ और परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, इनके प्रभावी रूप को ही पर्यावरण कहा जाता है। पर्यावरण का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। पर्यावरण उन समस्त शक्तियों, वस्तुओं और दशाओं का योग है, जो मानव को चारों ओर से आवृत किए हुए हैं। मानवे से लेकर वनस्पति तथा सूक्ष्म जीव तक सभी पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं। पर्यावरण उन सभी बाह्य दशाओं एवं प्रभावों का योग है, जो जीव के कार्य-कलापों एवं जीवन को प्रभावित करता है। मानव जीवन पर्यावरण से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है।
पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ एवं सामान्य परिचय को जान लेने के उपरान्त इस अवधारणा की व्यवस्थित परिभाषा प्रस्तुत करना भी आवश्यक है। कुछ मुख्य समाज वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
- जिस्बर्ट के अनुसार पर्यावरण से आशय उन समस्त कारकों से है जो किसी व्यक्ति या जीव को चारों ओर से घेरे रहते हैं तथा उसे प्रभावित करते हैं एवं जीव अपने पर्यावरण के प्रभाव से बच नहीं सकता। उनके शब्दों में, “पर्यावरण वह है जो किसी वस्तु को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।”
- रॉस ने पर्यावरण के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए एक संक्षिप्त परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है, “पर्यावरण हमें प्रभावित करने वाली कोई बाहरी शक्ति है।”
उपर्युक्त विवरण द्वारा पर्यावरण का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है। कि व्यक्ति के सन्दर्भ में स्वयं व्यक्ति को छोड़कर इस जगत् में जो कुछ भी है वह सब कुछ सम्मिलित रूप से व्यक्ति का पर्यावरण है।
पर्यावरण का वर्गीकरण
पर्यावरण के अर्थ एवं परिभाषा सम्बन्धी विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि पर्यावरण की धारणा अपने आप में एक विस्तृत अवधारणा है। इस स्थिति में पर्यावरण के व्यवस्थित अध्ययन के लिए पर्यावरण को समुचित वर्गीकरण प्रस्तुत करना आवश्यक है। सम्पूर्ण पर्यावरण को मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है
(1) प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण:
प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत समस्त प्राकृतिक शक्तियों एवं कारकों को सम्मिलित किया जाता है। पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, पर्यावरण और जनजीवन पर उसका प्रभाव 113 वनस्पति जगत् तथा जीव-जन्तु तो प्राकृतिक पर्यावरण के घटक ही हैं। इनके अतिरिक्त प्राकृतिक शक्तियों एवं घटनाओं को भी प्राकृतिक पर्यावरण ही माना जाएगा। सामान्य रूप से कहा जा सकता है। कि प्राकृतिक पर्यावरण न तो मनुष्य द्वारा निर्मित है और न यह मनुष्य द्वारा नियन्त्रित ही है। प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव मनुष्य के जीवन के सभी पक्षों पर पड़ता है। जब हम पर्यावरण-प्रदूषण की बात करते हैं तब पर्यावरण से आशय सामान्य रूप से प्राकृतिक पर्यावरण से ही होता है।
(2) सामाजिक पर्यावरण:
सामाजिक पर्यावरण भी पर्यावरण का एक रूप या पक्ष है। सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचा ही सामाजिक पर्यावरण कहलाता है। इसे सामाजिक सम्बन्धों का पर्यावरण भी कहा जा सकता है। परिवार, पड़ोस, खेल के साथी, समाज, समुदाय, विद्यालय आदि सभी सामाजिक पर्यावरण के ही घटक हैं। सामाजिक पर्यावरण भी व्यक्ति को गम्भीर रूप से प्रभावित करता है, परन्तु यह सत्य है कि व्यक्ति सामाजिक पर्यावरण के निर्माण एवं विकास में अपना योगदान प्रदान करता है।
(3) सांस्कृतिक पर्यावरण:
पर्यावरण का एक रूप या पक्ष सांस्कृतिक पर्यावरण भी है। सांस्कृतिक पर्यावरण प्रकृति-प्रदत्त नहीं है, बल्कि इसका निर्माण स्वयं मनुष्य ने ही किया है। मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सभी प्राणियों के सन्दर्भ में सांस्कृतिक पर्यावरण का कोई महत्त्व नहीं है। वास्तव में मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तुओं का समग्र रूप तथा परिवेश सांस्कृतिक पर्यावरण कहलाता है। सांस्कृतिक पर्यावरण भौतिक तथा अभौतिक दो प्रकार का होता है। सभी प्रकार के मानव-निर्मित उपकरण एवं साधन सांस्कृतिक पर्यावरण के भौतिक पक्ष में सम्मिलित हैं। इससे भिन्न मनुष्य द्वारा विकसित किए गए मूल्य, संस्कृति, धर्म, भाषा, रूढ़ियाँ, परम्पराएँ आदि सम्मिलित रूप से सांस्कृतिक पर्यावरण के अभौतिक पक्ष का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 2:
पर्यावरण के जनजीवन पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष प्रभावों का वर्णन कीजिए। [2010]
या
प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण जनजीवन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।” इस कथन को स्पष्ट करते हुए पर्यावरण के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
या
पर्यावरण मानव के लिए किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर:
जब पर्यावरण के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है, तब सर्वप्रथम प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण के प्रभावों को ही अध्ययन किया जाता है। वास्तव में पर्यावरण का यही रूप प्रकृति प्रदत्त है तथा मनुष्य के नियन्त्रण से बाहर है। भौगोलिक पर्यावरण के अर्थ को डॉ० डेविस ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “मनुष्य के सन्दर्भ में भौगोलिक पर्यावरण से अभिप्राय भूमि या मानव के चारों ओर फैले उन सभी भौतिक स्वरूपों से है जिनमें वह रहता है, जिनका उसकी आदतों एवं क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है। इस कथन से स्पष्ट है कि प्राकृतिक पर्यावरण के समस्त कारक मनुष्य
के नियन्त्रण से मुक्त हैं।
पर्यावरण के जनजीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव
पर्यावरण जनजीवन के सभी पक्षों को गम्भीर रूप से प्रभावित करता है। पर्यावरण के जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को सामान्य रूप से दो वर्गों में बाँटा जाता है। प्रथम वर्ग में जनजीवन पर पर्यावरण के प्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाले प्रभावों को सम्मिलित किया जाता है तथा द्वितीय वर्ग में जनजीवन पर अप्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाले प्रभावों को सम्मिलित किया जाता है। पर्यावरण के जनजीवन पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाले प्रभावों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है|
(1) पर्यावरण का जनसंख्या पर प्रभाव:
किसी भी क्षेत्र की जनसंख्या के स्वरूप के निर्धारण में वहाँ के प्राकृतिक पर्यावरण की सर्वाधिक भूमिका होती है। अनुकूल प्राकृतिक पर्यावरण होने पर सम्बन्धित क्षेत्र की जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है तथा प्रतिकूल प्राकृतिक पर्यावरण होने की स्थिति में सम्बन्धित क्षेत्र की जनसंख्या का घनत्व कम होता है। यही कारण है कि उपजाऊ भूमि वाले मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, जबकि रेगिस्तानी क्षेत्रों, बंजर भूमि वाले क्षेत्रों तथा दुर्गम पहाड़ी-क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि पर्यावरण जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करता है।
(2) पर्यावरण का खान-पान पर प्रभाव:
मनुष्य को अपनी खाद्य-सामग्री अपने पर्यावरण से ही प्राप्त होती है। इस स्थिति में जिस क्षेत्र में जो खाद्य-सामग्री बहुतायत में उपलब्ध होती है, वही उस क्षेत्र के निवासियों का मुख्य आहार होती है। उदाहरण के लिए–उपजाऊ मैदानी क्षेत्रों में लोगों का , मुख्य आहार वहाँ उगने वाले अनाज तथा सब्जियाँ एवं दालें आदि ही होते हैं। इससे भिन्न समुद्रतटीय क्षेत्रों में लोग अपने आहार में मछली एवं जलीय जीवों के मांस को अधिक स्थान देते हैं। इसी प्रकार ठण्डे एवं अति ठण्डे क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश व्यक्ति मांसाहारी होते हैं, जबकि गर्म क्षेत्रों के अधिकांश निवासी शाकाहारी होते हैं।
(3) पर्यावरण का वेशभूषा पर प्रभाव:
प्राकृतिक पर्यावरण को वहाँ के निवासियों की वेशभूषा पर भी पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति बारीक, ढीले तथा सूती वस्त्र धारण करते हैं। इससे भिन्न ठण्डे क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति गर्म एवं चुस्त वस्त्र धारण किया करते हैं। अनेक ठण्डे प्रदेशों में जानवरों की खाले से भी कोट इत्यादि बनाकर पहने जाते हैं।
(4) पर्यावरण का आवासीय स्वरूप पर प्रभाव:
प्राकृतिक पर्यावरण मनुष्य के निवास हेतु प्रयुक्त मकानों तथा इनकी सामग्री को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए—पर्वतीय पर्यावरण में पत्थर तथा लकड़ी सरलता से उपलब्ध होती है। अत: इन क्षेत्रों में मकान बनाने के लिए पत्थर तथा लकड़ी को ही अधिक इस्तेमाल किया जाता है। जिन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है वहाँ मकानों की छतें ढलावदार बनाई जाती हैं। मैदानी क्षेत्रों में प्रायः ईंट, सीमेण्ट, लोहे आदि से मकान बनाए जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में, प्रायः भूकम्प आते रहते हैं। इन क्षेत्रों को अधिक क्षति से बचाने के दृष्टिकोण से लकड़ी के मकान ही बनाए जाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि पर्यावरण जन-सामान्य के आवासीय स्वरूप को भी प्रभावित करता है।
(5) पर्यावरण का आवागमन के साधनों पर प्रभाव:
प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण का आवागमन के साधनों के विकास पर भी पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। समुद्र तथा नदियों के निकटवर्ती क्षेत्रों में स्टीमर एवं नौकाएँ आवागमन का साधन होती हैं। मैदानी क्षेत्रों में सड़कें बनाना तथा रेल की पटरियाँ बिछाना सरल होता है। अतः इन क्षेत्रों में रेलगाड़ियाँ, मोटर कारें, बसें आदि वाहन अधिक होते हैं। ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में खच्चर ही आवागमन एवं माल ढोने के साधन माने जाते हैं।
(6) पर्यावरण का शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव:
जन-सामान्य के शारीरिक लक्षणों पर भौगोलिक पर्यावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति की त्वचा के रंग पर जलवायु एवं स्थानीय तापमान का अनिवार्य रूप से प्रभाव पड़ता है। गर्म क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का रंग बहुधा काला तथा ठण्डे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का रंग गोरा होता है। भूमध्यरेखीय जलवायु में रहने वाले व्यक्ति वहाँ की अतिरिक्त उष्णता के कारण नाटे कद के और काले रंग के होते हैं, जबकि भूमध्यसागरीय जलवायु के निवासी प्रायः गोरे तथा लम्बे कद के होते हैं।
(7) पर्यावरण का व्यावसायिक जीवन पर प्रभाव:
प्राकृतिक पर्यावरण सम्बन्धित क्षेत्र के निवासियों के मूल व्यवसायों को भी प्रभावित करता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि समुद्र एवं जुल-स्रोतों के निकट रहने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय मछली पकड़ना होता है। नदियों से सिंचित मैदानी क्षेत्रों में कृषि-कार्य ही मुख्य व्यवसाय होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में भेड़-बकरियाँ पालना एक मूले व्यवसाय माना जाता है, जब कि अधिक वन वाले क्षेत्रों में लकड़ी काटना मूल व्यवसाय माना जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि पर्यावरण अनिवार्य रूप से व्यावसायिक जीवन को भी प्रभावित करता है।
प्रश्न 3:
पर्यावरण-प्रदूषण से आप क्या समझती हैं? पर्यावरण-प्रदूषण के सामान्य कारणों काभी वर्णन कीजिए। [2007, 08, 16, 18]
या
पर्यावरण प्रदूषण की परिभाषा लिखिए। प्रदूषण के कारण बताइए। पर्यावरण-प्रदुषण नियन्त्रण के लिए सरकार द्वारा क्या उपाय किए गए हैं? [2008, 09, 11, 12]
या
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं? [2017]
या
जनजीवन पर पर्यावरण के हानिकारक प्रभाव को रोकने के बारे में लिखिए। [2013]
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण का अर्थ
पर्यावरण-प्रदूषण का सामान्य अर्थ है-हमारे पर्यावरण का दूषित हो जाना। पर्यावरण को निर्माण प्रकृति ने किया है। प्रकृति-प्रदत्त पर्यावरण में जब किन्ही तत्त्वों का अनुपात इस रूप में बदलने जगती है जिसका जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना होती है, तब कहा जाता है कि यावरण प्रदूषित हो रहा है। उदाहरण के लिए-यदि पर्यावरण के मुख्य भाग वायु में ऑक्सीजन के स्थान पर अन्य विषैली गैसों का अनुपात बढ़ जाये तो कहा जाएगा कि वायु-प्रदूषण हो गया है। ण के किसी भी भाग के दूषित हो जाने को पर्यावरण-प्रदूषण कहा जाएगा। यह प्रदूषण जल-प्रदूषण, मृदा-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण तथा ध्वनि-प्रदूषण के रूप में हो सकता है।
पर्यावरण-प्रदूषण के सामान्य कारण
पर्यावरण प्रदूषण अपने आप में एक गम्भीर तथा व्यापक समस्या है। इस समस्या को उत्पन्न करने तथा बढ़ावा देने वाले वैसे तो असंख्य कारण हैं, परन्तु कुछ सामान्य कारण ऐसे हैं जो अधिक प्रबल तथा
अति स्पष्ट हैं। इस वर्ग के कारणों को ही पर्यावरण-प्रदूषण के सामान्य लक्षण कहा जाता है। इस वर्ग के मुख्य कारणों का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है
(1) जल-मल का अनियमित निष्कासन:
आवासीय क्षेत्रों से जल-मल का अनियमित निष्कासन पर्यावरण-प्रदूषण का एक मुख्य कारण है। खुले शौचालयों से उत्पन्न होने वाली दुर्गन्ध वायु प्रदूषण में सर्वाधिक योगदान देती है। इसके अतिरिक्त वाहित मल जल के स्रोतों को प्रदूषित करता है। घरों में इस्तेमाल होने वाला जल भी विभिन्न कारणों से अत्यधिक प्रदूषित हो जाता है तथा नाले-नालियों के माध्यम से यह दूषित जल नदियों के जल को भी प्रदूषित कर देता है।
(2) घरेलू अवशिष्ट पदार्थ:
घरों में इस्तेमाल होने वाले असंख्य पदार्थों के अवशिष्ट भाग भी पर्यावरण-प्रदूषण में उल्लेखनीय योगदान प्रदान करते हैं। फिनाइल, मच्छर मारने वाले घोल, डिब्बाबन्दी में इस्तेमाल डिब्बे, डिटर्जेण्ट, शैम्पू, साबुन आदि सभी के अवशेष जल, वायु तथा मिट्टी को गम्भीर रूप से प्रदूषित करते हैं।
(3) औद्योगिकीकरण:
तीव्र गति से होने वाला औद्योगिकीकरण भी पर्यावरण-प्रदूषण के लिए जिम्मेदार एक मुख्य कारण है। औद्योगिक संस्थानों में जहाँ ईंधन जलने से वायु-प्रदूषण होता है। वहीं उनमें इस्तेमाल होने वाली रासायनिक सामग्री के अवशेष आदि वायु, जल तथा मिट्टी को निरन्तर प्रदूषित करते हैं। औद्योगिक संस्थानों में चलने वाली मशीनों, सायरनों तथा अन्य कारणों से ध्वनि-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।
(4) दहन तथा धुआँ:
आधुनिक-उन्नत समाज में मानव ने दहन का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत कर लिया है। घरेलू रसोईघर से लेकर असंख्य वाहनों तथा औद्योगिक संस्थानों में सर्वत्र दहन का ही बोलबाला है, लकड़ी, कोयला, गैस, पेट्रोल तथा डीजल आदि के दहन से जहाँ अनेक विषैली गैसें तथा धुआँ उत्पन्न होता है, वहीं अप्राकृतिक स्रोतों से भी हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं। ये सब सामूहिक रूप से वायु के प्राकृतिक स्वरूप को परिवर्तित करते हैं। परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
(5) कीटनाशकों का बढ़ता प्रयोग:
जैसे-जैसे कृषि एवं उद्यान-क्षेत्र में विस्तार हुआ है, वैसे-वैसे कीटनाशकों को प्रयोग भी निरन्तर बढ़ा है। विभिन्न कीटनाशक अत्यधिक विषैले हैं तथा इनका प्रभाव दूरगामी है। फसलों पर तथा घरों में होने वाले कीटनाशकों के छिड़काव से वायु, जल तथा मिट्टी का अत्यधिक प्रदूषण हो रहा है। इस प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव मनुष्यों तथा पशु-पक्षियों पर
निरन्तर पड़ रहा है।
(6) नदियों में कूड़ा-करकट तथा मृत शरीर बहाना:
जैसे-जैसे जनसंख्या तथा नगरीकरण में वृद्धि हो रही है; वैसे-वैसे कूड़े-करकट की समस्या भी बढ़ रही है। अज्ञानता तथा प्रचलन के अनुसार कूड़े-करकट तथा मनुष्यों एवं पशुओं के मृत-शरीरों को नदियों में बहा दिया जाता है। इस प्रकार का विसर्जन सुविधाजनक तो प्रतीत होता है, परन्तु इस प्रचलन के परिणामस्वरूप जल-प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि होती है। इस जल-प्रदूषण से कुछ अंशों में वायु तथा मिट्टी के प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।
(7) वृक्षों की अत्यधिक कटाई:
पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि करने वाला एक मुख्य उल्लेखनीय कारण वृक्षों की अत्यधिक कटाई भी है। वृक्ष वे प्रकृति-प्रदत्त कारक हैं जो वायु के प्राकृतिक स्वरूप को सन्तुलित बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वृक्ष सूर्य के प्रकाश से कार्बन डाइ-ऑक्साइड ग्रहण करके ऑक्सीजन छोड़ते हैं। वृक्षों के अत्यधिक संख्या में कट जाने के परिणामस्वरूप वायु का प्राकृतिक स्वरूप विकृत होने लगती है और वायु-प्रदूषण की स्थिति को बढ़ावा मिलता है।
(8) रेडियोधर्मी पदार्थ:
पर्यावरण प्रदूषण के लिए उत्तरदायी कारकों में रेडियोधर्मी पदार्थों का भी उल्लेखनीय योगदान है। विभिन्न आणविक परीक्षणों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले रेडियोधर्मी पदार्थों ने भी पर्यावरण को गम्भीर रूप से प्रदूषित किया है। प्रदूषण के इस कारक के गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव सभी प्राणियों तथा पेड़-पौधों पर भी पड़ रहे हैं। विभिन्न प्रकार के कैन्सर तथा
आनुवंशिक रोग इसी प्रकार के प्रदूषण के परिणाम हैं।
पर्यावरण-प्रदूषण पर नियन्त्रण
पर्यावरण-प्रदूषण अपने आप में एक गम्भीर समस्या है तथा सम्पूर्ण मानव-जगत के लिए एक चुनौती है। इस समस्या के समाधान के लिए मानव-मात्रं चिन्तित है। विश्व के प्रायः सभी देशों में पर्यावरण-प्रदूषण पर प्रभावी नियन्त्रण के लिए अनेक उपाय किए जा रहे हैं। हमारे देश में भी इस समस्या से मुकाबला करने के लिए अनेक उपाय किए जा रहे हैं। कुछ उपायों का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है
- औद्योगिक संस्थानों के लिए कड़े निर्देश जारी किए गए हैं कि वे पर्यावरण-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के हर सम्भव उपाय करें। इसके लिए आवश्यक है कि पर्याप्त ऊँची चिमनियाँ लगाई. जाएँ तथा उनमें उच्च कोटि के छन्ने लगाए जाएँ। औद्योगिक संस्थानों से विसर्जित होने वाले जल को पूर्ण रूप से उपचारित करके ही पर्यावरण में छोड़ा जाना चाहिए। यही नहीं, ध्वनि-प्रदूषण को रोकने के लिए जहाँ तक सम्भव हो ध्वनि अवरोधक लगाये जाने चाहिए। औद्योगिक संस्थानों के आस-पास अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाए जाने चाहिए।
- वाहन पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य कारण हैं; अत: वाहनों द्वारा होने वाले प्रदूषण को भी नियन्त्रित करना आवश्यक है। इसके लिए वाहनों के इंजन की समय-समय पर जाँच करवाई जानी
चाहिए। ईंधन में होने वाली मिलावट को भी रोका जाना चाहिए। - जन-सामान्य को पर्यावरण-प्रदूषण के प्रति सचेत होना चाहिए तथा जीवन के हर क्षेत्र में प्रदूषण पर प्रभावी रोक लगाने के हर सम्भव उपाय किए जाने चाहिए।
पर्यावरण-प्रदूषण वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति की समस्या है; अतः इसे नियन्त्रित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक होना चाहिए। पर्यावरण प्रदूषण के प्रत्येक कारण को जानने का प्रयास किया जाना चाहिए तथा प्रत्येक कारण के निवारण का भी उपाय किया जाना चाहिए।
प्रश्न 4:
पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए। [2008, 09, 11, 12, 13, 17, 18]
या
पर्यावरण के दूषित होने से मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
या
विस्तारपूर्वक समझाइए। प्रदूषण किसे कहते हैं? प्रदूषण का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [2011]
या
व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पर्यावरण-प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ता है? [2011]
या
मानव जीवन पर पर्यावरण-प्रदूषण का क्या दुष्प्रभाव पड़ता है? संक्षेप में लिखिए। [2017]
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव
पर्यावरण का जनजीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है और यह जनजीवन, के सभी पक्षों को प्रभावित करता है। सामान्य स्थितियों में जनजीवन पर्यावरण के अनुरूप निर्धारित हो जाता है तथा उस स्थिति में पर्यावरण से कोई हानि नहीं होती, परन्तु जब पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है अर्थात् प्रदूषण की दर बढ़ जाती है तो जन-सामान्य के जीवन पर प्रतिकूल तथा हानिकारक प्रभाव पड़ने लगता है। पर्यावरण-प्रदूषण का अर्थ है-पर्यावरण के किसी एक या सभी पक्षों का दूषित हो जाना। पर्यावरण-प्रदूषण के परिणामस्वरूप विभिन्न साधारण, गम्भीर तथा अति गम्भीर रोग पनपने लगते हैं। जिनसे जन-स्वास्थ्य को गम्भीर खतरा उत्पन्न हो जाता है, परन्तु पर्यावरण-प्रदूषण का अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिकूल प्रभाव जनसाधारण के आर्थिक जीवन पर भी पड़ता है। रोगों की वृद्धि तथा स्वास्थ्य के निम्न स्तर के कारण जनसाधारण की उत्पादक-क्षमता घटती है तथा रोग निवारण के लिए अतिरिक्त धन व्यय करना पड़ता है। इससे जनसाधारण का जीवन आर्थिक संकट का शिकार हो जाता है। जनजीवन पर पर्यावरण-प्रदूषण के पड़ने वाले प्रभावों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
(1) जन-स्वास्थ्य पर प्रभाव:
पर्यावरण-प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव जन-स्वास्थ्य पर पड़ता है। जैसे-जैसे पर्यावरण का अधिक प्रदूषण होने लगता है, वैसे-वैसे प्रदूषण जनित रोगों की दर एवं गम्भीरता में वृद्धि होने लगती है। पर्यावरण के भिन्न-भिन्न पक्षों में होने वाले प्रदूषण से भिन्न-भिन्न प्रकार के रोग बढ़ते हैं। हम जानते हैं कि वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप श्वसन-तन्त्र से सम्बन्धित रोग अधिक प्रबल होते हैं। जल-प्रदूषण के परिणामस्वरूप पाचन-तन्त्र से सम्बन्धित रोग अधिक फैलते हैं। ध्वनि-प्रदूषण भी तन्त्रिकी-तन्त्र, हृदय एवं रक्तचाप सम्बन्धी विकारों को जन्म देता है। इसके साथ-ही- साथ मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यवहारगत सामान्यता को ध्वनि-प्रदूषण विकृत कर देता है। अन्य प्रकार के प्रदूषण भी जन-सामान्य को विभिन्न सामान्य एवं गम्भीर रोगों का शिकार बनाते हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि पर्यावरण-प्रदूषण अनिवार्य रूप से जन-स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। प्रदूषित पर्यावरण में रहने वाले व्यक्तियों की औसत आयु भी घटती है तथा स्वास्थ्य का सामान्य स्तर भी निम्न रहता है।
(2) व्यक्तिगत कार्यक्षमता पर प्रभाव:
व्यक्ति एवं समाज की प्रगति में सम्बन्धित व्यक्तियों की कार्यक्षमता का विशेष महत्त्व होता है। यदि व्यक्ति की कार्यक्षमता सामान्य या सामान्य से अधिक हो, तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है तथा समृद्ध बन सकता है। जहाँ तक पर्यावरण-प्रदूषण का प्रश्न है, इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की कार्यक्षमता अनिवार्य रूप से घटती है। हम जानते हैं कि पर्यावरण-प्रदूषण के परिणामस्वरूप जन-स्वास्थ्य का स्तर निम्न होता है। निम्न स्वास्थ्य स्तर वाला व्यक्ति न तो अपने कार्य को कुशलतापूर्वक कर सकती है और न ही उसकी उत्पादन-क्षमता सामान्य रह पाती है। ये दोनों ही स्थितियाँ व्यक्ति एवं समाज के लिए हानिकारक सिद्ध होती हैं। वास्तव में प्रदूषित वातावरण में भले ही व्यक्ति अस्वस्थ न भी हो, तो भी उसकी चुस्ती
एवं स्फूर्ति तो घट ही जाती है। यही कारक व्यक्ति की कार्यक्षमता को घटाने के लिए पर्याप्त होता है।
(3) आर्थिक जीवन पर प्रभाव:
व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र की आर्थिक स्थिति पर भी पर्यावरण प्रदूषण का उल्लेखनीय प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वास्तव में यदि व्यक्ति के स्वास्थ्य का स्तर निम्न हो तथा उसकी कार्यक्षमता भी कम हो, तो वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समुचित धन कदापि अर्जित नहीं कर सकता। पर्यावरण-प्रदूषण के परिणामस्वरूप व्यक्ति की उत्पादन क्षमता घट जाती है। इसके साथ-ही-साथ यह भी सत्य है कि यदि व्यक्ति अथवा उसके परिवार का कोई सदस्य प्रदूषण का शिकार होकर किन्हीं साधारण या गम्भीर रोगों से ग्रस्त रहता है तो उसके उपचार पर भी पर्याप्त व्यय करना पड़ सकता है। इससे भी व्यक्ति एवं परिवार का बजट बिगड़ जाता है तथा व्यक्ति एवं परिवार की आर्थिक स्थिति निम्न हो जाती है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि पर्यावरण-प्रदूषण के प्रभाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों ही रूपों में कुप्रभावित होती है। इस कारक के प्रबल तथा विस्तृत हो जाने पर समाज एवं
राष्ट्र की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है।
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि पर्यावरण प्रदूषण का जनजीवन पर बहुपक्षीय, गम्भीर तथा प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए पर्यावरण-प्रदूषण को आज गम्भीरतम विश्वस्तरीय समस्या माना जाने लगा है।
प्रश्न 5:
जल-प्रदूषण क्या है? जल-प्रदूषण के कारण और इसकी रोकथाम के उपाय लिखिए।
मानव जीवन पर पड़ने वाले जल-प्रदूषण के प्रभावों का वर्णन कीजिए। [2012]
या
मानव-जीवन पर वायु-प्रदूषण के प्रभाव लिखिए। [2009, 12, 14]
या
वायु-प्रदूषण किसे कहते हैं ? वायु प्रदूषण के क्या कारण हैं ? वायु-प्रदूषण की रोकथाम के उपायों के लिए अपने सुझाव दीजिए। [2007, 09, 10, 11, 14, 15, 16]
या
वायु-प्रदूषण के कारण, मानव जीवन पर प्रभाव एवं बचाव के उपाय संक्षेप में लिखिए। [2013, 12]
या
जल-प्रदूषित होने से कैसे बचाया जा सकता है? [2014]
या
जल-प्रदूषण से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए। [2013]
या
पयार्वरण-प्रदूषण से आप क्या समझती हैं? यह कितने प्रकार का होता है? [2012, 13, 15, 16]
या
कोई चार उपाय लिखिए जिनके द्वारा आप वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करने में सहायता कर सकते हैं। [2016]
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण की अवधारणा
पर्यावरण प्रदूषण की नवीनतम अवधारणा वर्तमान विज्ञान, औद्योगीकरण और नगरीकरण की देन है। प्रदूषण शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Pollute’ शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। ‘पोल्यूट’ का अर्थ होता है। ‘दूषित’ या ‘खराब हो जाना। प्रदूषण शब्द भ्रष्ट या खराब होने का भी सूचक है। इस प्रकार प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ हुआ दूषित हो जाना। प्राकृतिक पर्यावरण हमारे लिए अत्यन्त लाभदायक है। जब यह प्रदूषकों के कारण अपना उपयोगी स्वरूप खोकर विकृत होने लगता है, तब उसे पर्यावरण-प्रदूषण कहा जाता है। दूषित तत्त्व तथा गन्दगियाँ कल्याणकारी पर्यावरण को धीरे-धीरे हानिकारक बना रही हैं। पर्यावरण जब अपना मूल लाभकारी गुण खोकर दूषित हो जाता है, तब उसे पर्यावरण-प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है। प्रदूषण उत्पन्न होने से पर्यावरण के गुणकारी तत्त्वों का सन्तुलन बिगड़ जाता है। वह लाभ के स्थान पर हानि पहुँचाने लगता है। पर्यावरण में असन्तुलन आ जाने तथा पारिस्थितिकी-तन्त्र में विकृति की स्थिति को प्रदूषण कहा जाता है।
प्रदूषण की परिभाषा
प्रदूषण की विशेष जानकारी ज्ञात करने के लिए हमें उसकी विभिन्न परिभाषाओं पर दृष्टिपाते करना होगा। विभिन्न पर्यावरणविदों ने प्रदूषण को निम्नवत् परिभाषित किया है
विज्ञान सलाहकार समिति के अनुसार, “पर्यावरण प्रदूषण मनुष्यों की गतिविधियों द्वारा, ऊर्जा, स्वरूपों, विकिरण स्तरों, रासायनिक तथा भौतिक संगठन, जीवों की संख्या में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न उप-उत्पाद हैं जो हमारे परिवेश में पूर्ण अर्थवा अधिकतम प्रतिकूल परिवर्तन उत्पन्न करता है।”
ओडम के अनुसार, “प्रदूषण हमारी हवा, मृदा एवं जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में अवांछनीय परिवर्तन है जो मानव जीवन तथा अन्य जीवों, हमारी औद्योगिक प्रक्रिया, जीवनदशाओं तथा सांस्कृतिक विरासतों को हानिकारक रूप में प्रभावित करता है अथवा जो कच्चे पदार्थों के स्रोतों को नष्ट कर सकता है, करेगा।”
पर्यावरण-प्रदूषण के रूप
पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य रूप हैं-जल-प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा-प्रदूषण तथा ध्वनि-प्रदूषण।
जल-प्रदूषण
जल में जीव रासायनिक पदार्थों तथा विषैले रसायन, खनिज ताँबा, सीसा, अरगजी, बेरियम, फॉस्फेट, सायनाइड, पारद आदि की मात्रा में वृद्धि होना ही जल-प्रदूषण है। प्रदूषकों के कारण जब जीवनदायी जल अपनी उपयोगिता खो देता है और उसका गुणकारी तत्त्व घातक बन जाता है तब उसे
जल-प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है। जल-प्रदूषण दो प्रकार का होता है
(1) दृश्य प्रदूषण तथा
(2) अदृश्य प्रदूषण।
कारण: जल-प्रदूषण निम्नलिखित कारणों से होता है
- औद्योगीकरण जल-प्रदूषण के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी है। चमड़े के कारखाने, चीनी एवं ऐल्कोहल के कारखाने, कागज की मिलें तथा अन्य अनेकानेक उद्योग नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं।
- नगरीकरण भी जल-प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है। नगरों की गन्दगी, मल व औद्योगिक अवशिष्टों के विषैले तत्त्व भी जल को प्रदूषित करते हैं।
- समुद्रों में जहाजरानी एवं परमाणु अस्त्रों के परीक्षण से भी जल प्रदूषित होता है।
- नदियों के प्रति परम्परागत भक्ति-भाव होते हुए भी तमाम गन्दगी; जैसे-अधजले शव और जानवरों के मृत शरीर तथा अस्थि-विसर्जन आदि; भी नदियों में ही किया जाता है, जो नदियों के जल के प्रदूषित होने का एक प्रमुख कारण है। |
- जल में अनेक रोगों के हानिकारक कीटाणु मिल जाते हैं, जिससे प्रदूषण उत्पन्न हो जाता है।
- भूमि-क्षरण के कारण मिट्टी के साथ रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक पदार्थों के नदियों
में पहुँच जाने से नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है। - घरों से बहकर निकलने वाला फिनाइल, साबुन, सर्फ आदि से युक्त गन्दा पानी तथा शौचालय का दूषित मल नालियों में प्रवाहित होता हुआ नदियों और झील के जल में मिलकर उसे प्रदूषित कर देता है।
- नदियों और झीलों के जल में पशुओं को नहलाना, मनुष्यों द्वारा स्नान करना व साबुन आदि से गन्दे वस्त्र धोना भी जल-प्रदूषण का मुख्य कारण है।
नियन्त्रण के उपाय:
जल की शुद्धता और उसकी उपयोगिता को बनाए रखने के लिए प्रदूषण को नियन्त्रित किया जाना आवश्र प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाए जा सकते हैं
- नगरों के दूषित जल और मल को नदियों और झीलों के स्वच्छ जल में सीधे मिलने से रोका जाए।
- कल-कारखानों के दूषित और विषैले जल को नदियों और झीलों के जल में न गिरने दिया जाए।
- मल-मूत्र एवं गन्दगीयुक्त जल का उपयोग बायोगैस निर्माण या सिंचाई के लिए करके प्रदूषण को रोकने का प्रयास किया जाए।
- सागरों के जल में आणविक परीक्षण न कराए जाएँ।
- नदियों के तटों पर दिवंगतों का अन्तिम संस्कार विधि-विधान से करके उनकी राख को प्रवाहित करने के स्थान पर दबा दिया जाए।
- पशुओं के मृत शरीर तथा मानव शवों को स्वच्छ जल में प्रवाहित न करने दिया जाए।
- जल-प्रदूषण नियन्त्रण के ध्येय से नियम बनाये जाएँ तथा उनका कठोरता से पालन कराया जाए।
- नदियों, कुओं, तालाबों और झीलों के जल को शुद्ध बनाये रखने के लिए प्रभावी उपाय काम में लाये जाएँ।
- जल-प्रदूषण के कुप्रभाव तथा उनके रोकने के उपायों का जनसामान्य में प्रचार-प्रसार कराया जाए।
- जल उपयोग तथा जल संसाधन संरक्षण के लिए राष्ट्रीय नीति बनायी जाए।
मानव जीवन पर प्रभाव
जल-प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों अथवा हानियों का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है
- प्रदूषित जल के सेवन से जीवों को अनेक प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है।
- जल-प्रदूषण अनेक बीमारियों; जैसे-हैजा, पीलिया, पेट में कीड़े, यहाँ तक कि टायफाइड; का भी जनक है। राजस्थान के दक्षिणी भाग के आदिवासी गाँवों के तालाबों का दूषित पानी पीने से ‘नारू’ नाम का भयंकर रोग होता है। इन सुविधाविहीन गाँवों के 6 लाख 90 हजार लोगों में से 1 लाख 90 हजार लोगों को यह रोग है।
- प्रदूषित जल का प्रभाव जल में रहने वाले जन्तुओं और जलीय पौधों पर भी पड़ रहा है। जल-प्रदूषण के कारण ही मछली और जलीय पौधों में 30 से 50 प्रतिशत तक की कमी हो गई है। जो खाद्य पदार्थ के रूप में मछली आदि का उपयोग करते हैं उनके स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचती है।
- प्रदूषित जल का प्रभाव कृषि उपजों पर भी पड़ता है। कृषि से उत्पन्न खाद्य पदार्थों को मानव व पशुओं द्वारा उपयोग में लाया जाता है, जिससे मानव व पशुओं के स्वास्थ्य को हानि होती है।
- जल जन्तुओं के विनाश से पर्यावरण असन्तुलित होकर विभिन्न प्रकार के कुप्रभाव उत्पन्न करता है।
वायु-प्रदूषण :
वायु में विजातीय तत्त्वों की उपस्थिति चाहे गैसीय हो या पार्थक्य या दोनों का मिश्रण, जोकि मानव के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक हो, वायु-प्रदूषण कहलाता है। वायु-प्रदूषण मुख्य रूप से धूल-कण, धुआँ, कार्बन-कण, सल्फर डाइऑक्साइड, कुहासा, सीसा, कैडमियम आदि घातक पदार्थों के वायु में विलय से होता है। ये सब उद्योगों एवं परिवहन के साधनों के माध्यम से वायुमण्डल में मिलते हैं। वायु के कल्याणकारी रूप का विनाशकारी रूप में परिवर्तन ही वायु-प्रदूषण है। वर्तमान समय में मानव को प्राणवायु के रूप में वायु प्रदूषण के कारण शुद्ध ऑक्सीजन भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है।
कारण: वायु-प्रदूषण निम्नलिखित कारणों से होता है
- नगरीकरण, औद्योगीकरण एवं अनियन्त्रित भवन-निर्माण से वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है।।
- परिवहन के साधनों (ऑटोमोबाइलों) से निकलता धुआँ वायु-प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है।
- नगरीकरण के निमित्त नगरों की बढ़ती गन्दगी भी वायु को प्रदूषित कर रही है।
- वनों की अनियमित एवं अनियन्त्रित कटाई से भी वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है।
- रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक ओषधियों के कृषि में अधिकाधिक उपयोग से भी वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है।
- रसोईघरों तथा कारखानों की चिमनियों से निकलते धुएँ के कारण वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है।
- विभिन्न प्रदूषकों के अनियन्त्रित निस्तारण से वायु-प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है।
- दूषित जल-मल के एकत्र होकर दुर्गन्ध फैलाने से वायु प्रदूषित हो रही है।
- युद्ध, आणविक विस्फोट तथा दहन की क्रियाएँ भी वायु को प्रदूषित करती हैं।
- कीटनाशक दवाओं के छिड़काव के कारण वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है।
नियन्त्रण के उपाय:
वायु मानव जीवन का मुख्य आधार है। वायु-प्रदूषण मानव जीवन के अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। वायु-प्रदूषण रोकने के लिए प्रभावी उपाय ढूँढ़ना आवश्यक है। वायु-प्रदूषण रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाए जा सकते हैं
- कल-कारखानों को नगरों से दूर स्थापित करना तथा उनसे निकलने वाले धुएँ, गैस तथा राख पर नियन्त्रण करना। इसके लिए ऊँची चिमनियाँ लगाई जानी चाहिए तथा चिमनियों में उत्तम प्रकार के छन्ने लगाए जाएँ।
- परिवहन के साधनों पर धुआँरहित यन्त्र लगाए जाएँ।
- नगरों में हरित पट्टी के रूप में युद्ध स्तर पर वृक्षारोपण किया जाए।
- नगरों में स्वच्छता, जल-मले निकास तथा अवशिष्ट पदार्थों के विसर्जन की उचित व्यवस्था की जाए।
- वन रोपण तथा वृक्ष संरक्षण पर बल दिया जाए।
- रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के प्रयोग को नियन्त्रित किया जाए।
- घरों में बायोगैस, पेट्रोलियम गैस या धुआँरहित चूल्हों का प्रयोग किया जाए।
- खुले में मैला, कूड़ा-करकट तथा अवशिष्ट पदार्थ सड़ने के लिए न फेंके जाएँ।
- गन्दा जल एकत्र न होने दिया जाए।
- वायु-प्रदूषण रोकने के लिए कठोर नियम बनाए जाएँ और दृढ़ता से उनका पालन कराया जाए।
मानव जीवन पर प्रभाव
वायु-प्रदूषण के मानव जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं
- वायु प्रदूषण से जानलेवा बीमारियाँ; जैसे छाती और साँस की बीमारियाँ यथा ब्रॉन्काइटिस, तपेदिक, फेफड़ों का कैन्सर आदि; उत्पन्न होती हैं।
- वायु प्रदूषण मानव शरीर, मानव की खुशियों और मानव की सभ्यता के लिए खतरा बना हुआ है। परिवहन के विभिन्न साधनों द्वारा उत्सर्जित धुआँ नागरिकों पर विभिन्न प्रकार के कुप्रभाव डालता है।
- वायु-प्रदूषण चारों ओर फैले खेतों, हरे-भरे पेड़ों व रमणीक दृश्यों को भी धुंधला कर देता है व उन पर झीनी चादर डाल देता है, बल्कि खेतों, तालाबों व जलाशयों को भी अपने कृमिकणों से विषाक्त करता रहता है, जिसका सीधा प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
- चिकित्साशास्त्रियों ने पाया है कि जहाँ वायु-प्रदूषण अधिक है वहाँ बच्चों की हड्डियों का विकास कम होता है, हड्डियों की उम्र घट जाती है तथा बच्चों में खाँसी और साँस फूलना तो प्रायः देखा जाता है।
- वायु-प्रदूषण का प्रभाव वृक्षों पर भी देखा जा सकता है। चण्डीगढ़ के पेड़ों और लखनऊ के दशहरी आमों पर वायु प्रदूषण के बढ़ते हुए खतरे को सहज ही देखा जा सकता है, जहाँ मानव को फल कम मात्रा में मिल रहे हैं और उनकी विषाक्तता का सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
- दिल्ली के वायुमण्डल में व्याप्त प्रदूषण का प्रभाव आम नागरिकों के स्वास्थ्य पर तो पड़ा ही, दिल्ली की परिवहन पुलिस पर भी पड़ा है और यही दशा कोलकाता और मुम्बई की भी है, अर्थात् इससे मानव का जीवन (आयु) घट रहा है। दिल्ली नगर में वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को देखते हुए ही सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषिद्ध कर दिया गया है।
- वायु-प्रदूषण के कारण ओजोन की परत में छिद्र होने की सम्भावना व्यक्त होने से सम्पूर्ण विश्व भयाक्रान्त हो उठा है।
- शुद्ध वायु न मिलने से शारीरिक विकास रुकने के साथ-साथ शारीरिक क्षमता घटती जा रही है।
- वायु-प्रदूषण मानव अस्तित्व के सम्मुख एक गम्भीर समस्या बनकर खड़ा हो गया है, जिसे रोकने में भारी व्यय करना पड़ रहा है।
प्रश्न 6:
‘ध्वनि प्रदूषण क्या है? इसके उत्तरदायी कारकों को बताते हुए मानव-जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए। [2008]
या
ध्वनि-प्रदूषण का मानव-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [2011, 17]
या
ध्वनि-प्रदूषण के दो कारण लिखिए। [2013]
उत्तर:
ध्वनि-प्रदूषण का अर्थ
वायुमण्डल में परिवहन के साधनों, कल-कारखानों, रेडियो, लाउडस्पीकर, ग्रामोफोन आदि के तीव्र ध्वनि से उत्पन्न शोर को ध्वनि-प्रदूषण कहते हैं। कानों को ने भाने वाला वह कर्कश स्वर, जो मानसिक तनाव का कारण बनता है, ध्वनि-प्रदूषण कहलाता है। ध्वनि की तीव्रता के मापन की इकाई डेसीबल है। सामान्य रूप से 80-85 डेसीबल तीव्रता वाली ध्वनियों को प्रदूषण की श्रेणी में रखा जाता है तथा इनका प्रतिकूल प्रभाव मानव-स्वास्थ्य पर पड़ता है। वर्तमान युग में ध्वनि-प्रदूषण सुरसा के मुँह की भाँति बढ़ता जा रहा है। ध्वनि-प्रदूषण के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी है
- सर्वाधिक ध्वनि-प्रदषण परिवहन के साधनों; जैसे बसों, ट्रकों, रेलों, वायुयानों, स्कुटरों आदि; के द्वारा होता है। धड़धड़ाते हुए असंख्य वाहन कर्कश स्वर देकर शोर उत्पन्न करते हैं, जिससे ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न होता है।
- कारखानों की विशालकाय मशीनें, कल-पुर्जे, इंजन आदि भयंकर शोर उत्पन्न करके ध्वनिप्रदूषण के स्रोत बने हुए हैं।
- विभिन्न प्रकार के विस्फोटक भी ध्वनि-प्रदूषण के जन्मदाता हैं।
- घरों पर जोर से बजने वाले रेडियो, दूरदर्शन, कैसेट्स तथा बच्चों की चिल्ल-पौं की ध्वनि भी प्रदूषण उत्पन्न करने के मुख्य साधन हैं।
- वायुयान, सुपरसोनिक विमान व अन्तरिक्ष यान भी ध्वनि-प्रदूषण फैलाते हैं।
- मानव एवं पशु-पक्षियों द्वारा उत्पन्न शोर भी ध्वनि-प्रदूषण का मुख्य कारण है।
- आँधी, तूफान तथा ज्वालामुखी के उद्गार के फलस्वरूप भी ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न होता है।
नियन्त्रण के उपाय
- ध्वनि-प्रदूषण को नियन्त्रित करने हेतु हमें स्वयं पर ही नियन्त्रण करना सीखना होगा; जैसे कि ध्वनि विस्तारक यन्त्रों की ध्वनि को विभिन्न शुभ अवसरों पर कम-से-कम रखा जाए।
- सड़क पर आवागमन के दौरान अपने वाहनों के हॉर्न बहुत तीव्र ध्वनि वाले न रखें और उनका यथासम्भव कम-से-कम प्रयोग करें।
- कारखानों में तीव्र शोर वाली मशीनों के लिए साइलेन्सर या ऐसे ही कुछ अन्य उपाय किए जाएँ।
- समय-समय पर मशीनों की मस्म्मत कराते रहना चाहिए जिससे वे अनावश्यक शोर न करें।
- सड़क पर खड़े करने वाले अपने वाहनों को चालू अवस्था में कदापि न छोड़े।
मानव जीवन पर प्रभाव
ध्वनि-प्रदूषण का मानव जीवन पर निम्नलिखित कुप्रभाव पड़ता है
- ध्वनि-प्रदूषण मानव के कानों के परदों पर, मस्तिष्क और शरीर पर इतना घातक आक्रमण करता है कि संसार के सारे वैज्ञानिक तथा डॉक्टर इससे चिन्तित हो रहे हैं।
- ध्वनि-प्रदूषण वायुमण्डल में अनेक समस्याएँ उत्पन्न करता है और मानव के लिए एक गम्भीर खतरा बन गया है। नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट कोच ने कहा है कि वह दिन दूर नहीं जब आदमी को अपने स्वास्थ्य के इस सबसे बड़े नृशंस शत्रु ‘शोर’ से पूरे जी-जान से लड़ना पड़ेगा।
- ध्वनि-प्रदूषण के कारण व्यक्ति की नींद में बाधा उत्पन्न होती है। इससे चिड़चिड़ापन बढ़ता है तथा स्वास्थ्य खराब होने लगता है।
- शोर के कारण श्रवण शक्ति कम होती है। बढ़ते हुए शोर के कारण मानव समुदाय निरन्तर बहरेपन की ओर बढ़ रहा है।
- ध्वनि-प्रदूषण के कारण मानसिक तनाव बढ़ने से स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है। इससे व्यक्ति के रक्तचाप में वृद्धि हो सकती है तथा हृदय-रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। निरन्तर अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से व्यक्ति के सुनने की क्षमता भी समाप्त हो सकती है।
- ध्वनि-प्रदूषण मनुष्य के आराम में बाधक बनता जा रहा है।
ध्वनि-प्रदूषण की समस्या दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है। इस अदृश्य समस्या का निश्चित समाधान खोजना नितान्त आवश्यक है।
वास्तव में जल, वायु और ध्वनि-प्रदूषण आज के सामाजिक जीवन की एक गम्भीर चुनौती हैं। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनकर उभरा है। बढ़ते प्रदूषण ने मानव सभ्यता, संस्कृति तथा अस्तित्व पर प्रश्न-चिह्न लगा दिया है। भावी पीढ़ी को इस विष वृक्ष से बचाए रखने के लिए प्रदूषण का निश्चित समाधान खोजना आवश्यक है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
पर्यावरण का सामाजिक संगठन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
यह सत्य है कि पर्यावरण (प्राकृतिक पर्यावरण) सामाजिक संगठन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं करता, परन्तु पर्यावरण सामाजिक संगठन को अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य प्रभावित करता है। इस प्रभाव को लीप्ले ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “ऐसे पहाड़ी व पठारी देशों में जहाँ खाद्यान्न की कमी होती है, वहाँ जनसंख्या की वृद्धि अभिशाप मानी जाती है और इस प्रकार की विवाह संस्थाएँ स्थापित की जाती हैं जिनसे जनसंख्या में वृद्धि न हो। जौनसार भाभर क्षेत्र में खस जनजाति में सभी भाइयों की एक ही पत्नी होती है। इससे जनसंख्या-वृद्धि प्रभावी तरीके से नियन्त्रित होती है। विवाह की आयु, परिवार को आकार तथा प्रकार भी अप्रत्यक्ष रूप से भौगोलिक परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं। इसके विपरीत मानसूनी प्रदेश, जो कि विभिन्न सुविधाओं से सम्पन्न हैं, सदैव अधिक जनसंख्या की समस्या से घिरे रहते हैं।
प्रश्न 2:
पर्यावरण का राजनीतिक संगठन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पर्यावरण के जनजीवन पर अप्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाले प्रभावों के अन्तर्गत राजनीतिक संगठन पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख किया जाता है। विभिन्न अध्ययनों द्वारा स्पष्ट है कि पर्यावरण का प्रभाव राज्य तथा राजनीतिक संस्थाओं पर भी पड़ता है। प्रतिकूल पर्यावरण में जनजीवन प्रायः घुमन्तू होता है तथा इस स्थिति में स्थायी राजनीतिक संगठनों का विकास नहीं हो पाता। अनुकूल पर्यावरण आर्थिक विकास में सहायता प्रदान करता है तथा समाज की राजनीति को स्थायी रूप प्रदान करता है। इस प्रकार की परिस्थितियों में प्रजातन्त्र या साम्यवाद जैसी राजनीतिक व्यवस्थाएँ विकसित होती हैं। यही नहीं, प्राकृतिक पर्यावरण का प्रभाव सरकार के स्वरूप तथा राज्य के संगठन पर भी पड़ता है।
प्रश्न 3:
पर्यावरण का जन-सामान्य के धार्मिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
प्राकृतिक पर्यावरण अनिवार्य रूप से जन-सामान्य के धार्मिक जीवन को प्रभावित करता है। पर्यावरण के प्रभाव को अधिक महत्त्व देने वाले विद्वानों का मत है कि प्राकृतिक शक्तियाँ धर्म के विकास को प्रभावित करती हैं। मैक्समूलर ने धर्म की उत्पत्ति का सिद्धान्त ही प्राकृतिक शक्तियों के भय से इनकी पूजा करने के रूप में प्रतिपादित किया है। विश्व के जिन क्षेत्रों में प्राकृतिक प्रकोप अधिक है, वहाँ पर धर्म का विकास तथा धर्म के प्रति आस्था रखने वाले व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है। एशिया की मानसूनी जलवायु के कारण ही यहाँ के लोग भाग्यवादी बने हैं। कृषिप्रधान देशों में इन्द्र की पूजा होना सामान्य बात है। स्पष्ट है कि धर्म विकास तथा धर्म के स्वरूप के निर्धारण में भी पर्यावरण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
प्रश्न 4:
पर्यावरण का जनसाधारण की कलाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जन-सामान्य के जीवन में विभिन्न कलाओं का भी महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। विद्वानों का मत है कि वास्तुकला, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य तथा नाटकों पर भौगोलिक परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है। सुन्दर प्राकृतिक पर्यावरण में चित्रकारी तथा नीरस पर्यावरण में होने वाली चित्रकारी में स्पष्ट रूप से अन्तर देखा जा सकता है। वास्तव में सभी कलाकार अपनी कला के लिए विषयों का चुनाव अपने पर्यावरण से ही करते हैं। यही कारण है कि विभिन्न प्राकृतिक पर्यावरण में विकसित होने वाली कलाओं के स्वरूप में स्पष्ट अन्तर देखा जा सकता है।
प्रश्न 5:
पर्यावरण संरक्षण के लिए जनता को कैसे जागरूक किया जा सकता है? [2011, 13, 18]
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण अपने आप में एक अति गम्भीर एवं विश्वव्यापी समस्या है। इस समस्या को नियन्त्रित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण के लिए जनता को जागरूक करना अति आवश्यक है। इसके लिए व्यापक स्तर पर पर्यावरण-प्रदूषण के कारणों तथा उससे होने वाली हानियों की विस्तृत जानकारी जन-साधारण को दी जानी चाहिए। इसके लिए जन-संचार के समस्त माध्यमों (रेडियो, दूरदर्शन तथा पत्र-पत्रिकाओं आदि) को इस्तेमाल किया जाना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में प्रत्येक स्तर पर पर्यावरण-शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण-संरक्षण में योगदान के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में प्रत्येक व्यक्ति को पेड़-पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए तथा पॉलीथीन के बहिष्कार के लिए तैयार करना चाहिए।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
‘पर्यावरण की एक परिभाषा लिखिए। [2013, 14, 15, 16]
या
पर्यावरण से आप क्या समझती हैं? (2010)
उत्तर:
“पर्यावरण वह है जो किसी वस्तु को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।” -जिस्बर्ट
प्रश्न 2:
पर्यावरण के कौन-कौन से वर्ग माने जाते हैं?
उत्तर:
पर्यावरण के मुख्य रूप से तीन वर्ग माने जाते हैं। इन्हें क्रमशः प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक पर्यावरण कहते हैं।
प्रश्न 3:
अनुकूल पर्यावरण वाले क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व कैसा होता है?
उत्तर:
अनुकूल पर्यावरण वाले क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।
प्रश्न 4:
गर्म जलवायु वाले पर्यावरण में लोगों की वेशभूषा कैसी होती है?
उत्तर:
गर्म जलवायु वाले पर्यावरण में लोगों की वेशभूषा बारीक सूती कपड़े की बनी तथा ढीली-ढाली होती है।
प्रश्न 5:
मैदानी क्षेत्रों में लोगों का आहार कैसा होता है?
उत्तर:
मैदानी क्षेत्रों में लोगों के आहार में अनाज तथा दालों एवं सब्जियों का अधिक समावेश होता है।
प्रश्न 6:
पर्यावरण-प्रदूषण किसे कहते हैं? [2007, 14, 15]
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण का अर्थ है-पर्यावरण का दूषित हो जाना। प्रकृति-प्रदत्त पर्यावरण में जब किन्हीं तत्त्वों का अनुपात इस रूप में बदलने लगता है जिसका जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तब कहा जाता है कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है।
प्रश्न 7:
पर्यावरण प्रदूषित होने के कोई दो कारण लिखिए। [2011, 13]
उत्तर:
औद्योगीकरण तथा वृक्षों की अत्यधिक कटाई पर्यावरण-प्रदूषण के दो मुख्य कारण हैं।
प्रश्न 8:
वृक्षारोपण से क्या लाभ हैं? [2009, 11, 14, 16, 17, 18]
उत्तर:
वृक्षारोपण से पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा सामान्य बनी रहती है तथा वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित करने में सहायता मिलती है।
प्रश्न 9:
वृक्ष (पेड़-पौधे) पर्यावरण (वातावरण) को कैसे शुद्ध करते हैं? [2011, 12, 13, 17, 18]
उत्तर:
वृक्ष पर्यावरण से कार्बन डाई-ऑक्साइड को ग्रहण करके तथा ऑक्सीजन विसर्जित करके पर्यावरण को शुद्ध करते हैं।
प्रश्न 10:
जल-प्रदूषण के दो कारण लिखकर उनके निवारण के उपाय लिखिए। [2011, 12, 13, 14]
उत्तर:
जल-प्रदूषण के दो मुख्य कारण माने जाते हैं (अ) औद्योगीकरण तथा (ब) नगरीकरण। इन कारणों के निवारण के लिए औद्योगीकरण अवशेषों एवं व्यर्थ पदार्थों को जल स्रोतों में मिलने से रोका जाना चाहिए तथा नगरीय कूड़े-करकट को भी जल-स्रोतों में मिलने से रोकना चाहिए।
प्रश्न 11:
वायु-प्रदूषण से क्या तात्पर्य है? इससे क्या हानि होती है? [2015]
उत्तर:
वायु में किसी भी प्रकार की अशुद्धियों का व्याप्त हो जान्। वायु-प्रदूषण कहलाता है। वायु-प्रदूषण से श्वसन-तन्त्र के विभिन्न रोग हो जाते हैं।
प्रश्न 12:
वायु-प्रदूषण के दो कारण लिखिए। [2018]
उत्तर:
(1) नगरीकरण, औद्योगीकरण एवं अनियन्त्रित भवन-निर्माण से वायु बान्त्रत भवन-निमोण से वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है।
(2) विभिन्न परिवहन साधनों (वाहनों) से निकलता धुआँ तथा कारखानों की चिमनियों से निकलता धुआँ वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी कर रहा है।
प्रश्न 13:
मिल व कारखाने वातावरण को कैसे दूषित करते हैं? [2010, 11]
या
कल-कारखानों से वातावरण कैसे प्रदूषित होता है? [2010, 11, 14, 15]
उत्तर:
मिल तथा कारखानों से निकलने वाली दूषित गैसें तथा विभिन्न व्यर्थ पदार्थ वातावरण को दूषित करते हैं। इनसे वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण तथा मृदा-प्रदूषण में वृद्धि होती है। मिल तथा कारखानों में होने वाली ध्वनियों से ध्वनि-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।
प्रश्न 14:
ध्वनि-प्रदूषण किसे कहते हैं? [2008, 12]
उत्तर:
वायुमण्डल में परिवहन के साधनों; कल-कारखानों, रेडियो, लाउडस्पीकरों; के शोर को ध्वनि-प्रदूषण कहते हैं।
प्रश्न 15:
वायु-प्रदूषण से फैलने वाले चार रोगों के नाम लिखिए। [2008, 12, 17]
उत्तर:
वायु-प्रदूषण से जानलेवा बीमारियाँ; जैसे-छाती और साँस की बीमारियाँ यथा ब्रॉन्काइटिस, तपेदिक, फेफड़ों का कैन्सर, हड्डियों को विकास रुक जाना आदि; फैलती हैं।
प्रश्न 16:
पौधे कार्बन डाइऑक्साइड किस समय छोड़ते हैं? [2010]
उत्तर:
सभी पेड़-पौधे रात के समय कार्बन डाइऑक्साइड विसर्जित करते हैं।
प्रश्न 17:
ध्वनि-प्रदूषण तथा वायु-प्रदूषण में क्या अन्तर होता है? [2007]
उत्तर:
ध्वनि-प्रदूषण की दशा में पर्यावरण में शोर बढ़ जाता है जबकि वायु-प्रदूषण की दशा में वायु दूषित हो जाती है तथा उसमें हानिकारक तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाती है।
प्रश्न 18:
मृदा-प्रदूषण का जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [2008]
उत्तर:
मृदा-प्रदूषण में होने वाली वृद्धि का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव फसलों पर पड़ता है। कृषि-उत्पादन घटते हैं। इसके अतिरिक्त प्रदूषित मिट्टी में उत्पन्न होने वाले भोज्य-पदार्थों को ग्रहण करने से हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए
1. पर्यावरण में सम्मिलित हैं
(क) जड़ पदार्थ
(ख) चेतन पदार्थ
(ग) प्राकृतिक कारक
(घ) ये सभी
2. सम्पूर्ण पर्यावरण का गठन होता है
(क) प्राकृतिक पर्यावरण से
(ख) सामाजिक पर्यावरण से
(ग) सांस्कृतिक पर्यावरण से
(घ) इन सभी से
3. पर्यावरण का अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है
(क) जन-सामान्य के धार्मिक जीवन पर
(ख) जन-सामान्य की कलाओं पर
(ग) जन-सामान्य के साहित्य पर
(घ) इन सभी पर
4. आधुनिक युग की गम्भीर समस्या है
(क) बेरोजगारी
(ख) निरक्षरता
(ग) पर्यावरण-प्रदूषण
(घ) भिक्षावृत्ति
5. पर्यावरण-प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है
(क) जन-स्वास्थ्य पर
(ख) व्यक्तिगत कार्यक्षमता पर
(ग) आर्थिक जीवन पर
(घ) इन सभी पर
6. पर्यावरण-प्रदूषण में वृद्धि करने वाले कारक हैं
(क) औद्योगीकरण
(ख) नगरीकरण
(ग) यातायात के शक्ति-चालित साधने
(घ) ये सभी
7. पौधे वायुमण्डल का शुद्धिकरण करते हैं [2016]
या
पौधे भोजन बनाते समय वायुमण्डल का शुद्धिकरण करते हैं [2007]
(क) नाइट्रोजन द्वारा
(ख) ऑक्सीजन द्वारा
(ग) कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा
(घ) जल द्वारा
8. प्रदूषण से बचने के लिए किस प्रकार का ईंधन उत्तम होता है? [2017]
(क) लकड़ी
(ख) कोयला
(ग) गैस
(घ) कंडी (उपला)
9. चौबीसों घण्टे ऑक्सीजन प्रदान करने वाला पौधा कौन-सा है?
(क) आम का पेड़
(ख) आँवला का पेड़
(ग) पीपल और नीम का पेड़
(घ) गुलाब का पेड़
10. वस्तु के जलने से गैस बनती है [2009, 11, 17]
(क) कार्बन डाइऑक्साइड
(ख) नाइट्रोजन
(ग) ऑक्सीजन
(घ) ओजोन
11. जल-प्रदूषण को रोकने के लिए कौन-से रासायनिक पदार्थ का प्रयोग किया जाता है?
(क) सोडियम क्लोराइड
(ख) कैल्सियम क्लोराइड
(ग) ब्लीचिंग पाउडर
(घ) पोटैशियम मेटाबोइसल्फाइट
12. ध्वनि मापक इकाई को कहते हैं
(क) कैलोरी
(ख) फारेनहाइट
(ग) डेसीबल
(घ) इनमें से कोई नहीं
13. ध्वनि प्रदूषण का कारण है [2016, 17, 18]
(क) साइकिल
(ख) लाउडस्पीकर
(ग) रिक्शा
(घ) इनमें से सभी
14. ध्वनि प्रदूषण प्रभावित करता है। [2017]
(क) आमाशय को
(ख) वृक्क को
(ग) कान को
(घ) यकृत को
15. लाउडस्पीकर की आवाज से किस प्रकार का प्रदूषण फैलता है? [2015]
(क) वायु-प्रदूषण
(ख) ध्वनि प्रदूषण
(ग) मृदा-प्रदूषण
(घ) जल-प्रदूषण
16. प्रकृति में ऑक्सीजन का सन्तुलन बनाए रखते हैं [2008, 09, 12, 15]
(क) मनुष्य
(ख) कीट-पतंगे
(ग) वन्य-जीव
(घ) पेड़-पौधे
17. पौधों से ऑक्सीजन प्राप्त होती है [2009, 14, 15 ]
(क) रात में
(ख) सवेरे में
(ग) दिन में
(घ) शाम को
18. पौधे कार्बन डाइऑक्साइड गैस किस समय छोड़ते हैं ? [2010]
(क) दिन में
(ख) रात में
(ग) दोपहर के समय
(घ) इनमें से कोई नहीं
19. हमारे स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार का प्रदूषण हानिकारक है? [2011, 13, 14, 15]
(क) जल-प्रदूषण
(ख) ध्वनि प्रदूषण
(ग) वायु-प्रदूषण
(घ) ये सभी
20. पर्यावरण कहते हैं। [2013]
(क) प्रदूषण को
(ख) वातावरण को
(ग) पृथ्वी के चारों ओर के वातावरण को
(घ) इनमें से कोई नहीं
21. वायु-प्रदूषण का कारण है। [2014]
(क) औद्योगीकीकरण
(ख) वनों की अनियमित कटाई
(ग) नगरीकरण
(घ) ये सभी
22. पर्यावरण दिवस किस दिन मनाया जाता है ? [2011, 12, 13, 15, 16]
(क) 1 जून
(ख) 5 जून
(ग) 12 जून
(घ) 18 जून
23. ऑक्सीजन कहाँ से प्राप्त होती है? [2013]
(क) बन्द कमरे से
(ख) पेड़-पौधों से
(ग) नालियों से
(घ) खनिज से
24. कार्बनिक यौगिकों (वस्तुओं के जलने से कौन-सी गैस बनती है ? [2015, 16, 17]
(क) ऑक्सीजन
(ख) कार्बन डाइऑक्साइड
(ग) नाइट्रोजन
(घ) अमोनिया
25. ‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस’ किस दिन मनाया जाता है ? [2018]
(क) 21 जून
(ख) 20 जून
(ग) 25 जून
(घ) 28 जून
उत्तर:
1. (घ) ये सभी,
2. (घ) इन सभी से,
3. (घ) इन सभी पर,
4. (ग) पर्यावरण-प्रदूषण,
5. (घ) इन सभी पर,
6. (घ) ये सभी,
7. (ख) ऑक्सीजन द्वारा,
8. (ग) गैस,
9. (ग) पीपल और नीम का पेड़,
10. (क) कार्बन डाइऑक्साइड,
11. (ग) ब्लीचिंग पाउडर,
12. (ग) डेसीबल,
13. (ख) लाउडस्पीकर,
14. (ग) कान,
15. (ख) ध्वनि प्रदूषण,
16. (घ) पेड़-पौधे,
17. (ग) दिन में,
18. (ख) रात में,
19. (घ) ये सभी,
20. (ग) पृथ्वी के चारों ओर के वातावरण को,
21. (घ) ये सभी,
22. (ख) 5 जून,
23. (ख) पेड़-पौधों से,
24. (ख) कार्बन डाइ-ऑक्साइड,
25. (क) 21 जून
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