UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 भीमसेनप्रतिज्ञा
परिचय- भरतमुनि ने अपने नाट्य-शास्त्र में लिखा है कि ब्रह्माजी ने ऋग्वेद से ‘संवाद’, सामवेद से ‘संगीत’, यजुर्वेद से ‘अभिनय तथा अथर्ववेद से ‘रस’ के तत्त्वों को लेकर नाट्यवेद’ के नाम से पंचम वेद की रचना की। संस्कृत नाटकों की रचना के मुले-स्रोत रामायण, महाभारत तथा अन्य पौराणिक ग्रन्थ हैं। इनके आधार पर संस्कृत में अनेक नाटकों की रचनाएँ हुई हैं। । प्रस्तुत पाठ ‘भीमसेनप्रतिज्ञा’ का (UPBoardSolutions.com) संकलन श्री भट्टनारायण द्वारा रचित ‘वेणीसंहारम्’ नामक नाटक से किया गया है। वेणीसंहारम्’ की कथा मुख्य रूप से ‘महाभारत’ के ‘सभा-पर्व’ से ली गयी है। वैसे इस नाटक में उद्योग-पर्व’, ‘भीष्म-पर्व’, ‘द्रोण-पर्व’ तथा ‘शल्य-पर्व’ की भी कुछ घटनाओं का समावेश है। नाटककार के जीवन-काल के विषय में पुष्ट प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ये आठवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए थे।
पाठलाग प्रस्तुत पाठ में भीमसेन के चरित्र में वीर रस का परिपाक और नारी के प्रति सम्मान का भाव व्यक्त हुआ है। पाठगत विषयवस्तु से प्राचीन भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक प्राप्त होती है। पाठ का सारांश निम्नलिखित है
क्रुद्ध भीमसेन के साथ सहदेव दर्शकों के सम्मुख रंगमंच पर उपस्थित होते हैं। उपस्थित होते ही भीमसेन इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि दुर्योधन ने पाण्डवों के विनाश के लिए अनेकानेक ओछे हथकण्डों को अपनाया है, अतः मेरे जीवित रहते हुए कौरव किसी प्रकार भी सुखी नहीं रह सकते हैं। भीमसेन के इस रोषपूर्ण वचन को सुनकर सहदेव उनसे शान्त रहने का आग्रह करते हुए आसन-ग्रहण करने का निवेदन करते हैं। आसन पर बैठते ही भीमसेन सहदेव से पूछते हैं कि सन्धि का क्या हुआ? सहदेव उन्हें बताते हैं कि वासुदेव कृष्ण दुर्योधन के पास मात्र पाँच-इन्द्रप्रस्थ, वृकप्रस्थ, जयन्त, वारणावत और एक अज्ञात नाम–ग्रामों को दिये जाने के लिए सन्धि-प्रस्ताव लेकर गये थे। इस पर भीमसेन आश्चर्यचकित होकर कहते हैं कि क्या पाँच ग्रामों की सन्धि?’ तत्पश्चात् वे (UPBoardSolutions.com) कहते हैं कि “ठीक है, मेरे ज्येष्ठ भाई किसी भी शर्त पर सन्धि करने के लिए भले ही तैयार हो जाएँ, किन्तु मैं जब तक कौरवों का सर्वनाश नहीं कर लूंगा, मुझे तब तक कोई भी सन्धि स्वीकार्य नहीं होगी। भीमसेन की इस रोषपूर्ण वाणी को सुनकर सहदेव बड़े विनीत भाव से उनसे कहते हैं कि ऐसा करने से तो वंश का नाश हो जाएगा। इस पर क्रुद्ध होकर भीमसेन कहते हैं, कि “उन पर तुझे भी तरस आता है; किन्तु मेरे सम्मुख वह दृश्य आज भी मूर्त रूप से खड़ा है, जिसमें भरी सभा में भीष्म, द्रोण, शकुनि, कर्ण और अन्यान्य जनों के सम्मुख द्रौपदी को अपमानजनक रूप में केश खींचकर लाया गया था और उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया गया था। क्या तुझे उस दृश्य पर लज्जा नहीं आती?”
इसी बीच रंगमंच पर द्रौपदी आती है और वह उन दोनों से उनकी उद्विग्नता का कारण पूछती है। द्रौपदी के प्रश्न का उत्तर देते हुए भीमसेन कहते हैं कि “पाण्डवों के सान्निध्य में रहते हुए भी पांचालराजतनया की ऐसी दीन अवस्था? क्या इससे बढ़कर उद्वेग का अन्य कोई कारण हो सकता है?’ भीमसेन के पीड़ा से भरे वचन सुनकर द्रौपदी उनके पास जाकर निवेदन करती है-“क्या उद्वेग का कोई अन्य कारण (UPBoardSolutions.com) भी है?’ भीमसेन उत्तर देते हैं कि “कौरव वंशरूपी दावानल में कौन कीट-पतंग के समान आचरण कर रहा है? मुक्तकेशिनी इस द्रौपदी को उस दावानल की धूमशिखा समझो।” बस, यहीं कथानक समाप्त हो जाता है।
चरित्र चित्रण
भीमसेन
परिचय- भीमसेन पाण्डु और कुन्ती का पुत्र तथा युधिष्ठिर का छोटा भाई था। वह पाण्डवों में सर्वाधिक बलशाली और सुगठित शरीर वाला था। उसने अज्ञातवास के समय युद्ध में सौ कौरवों को
मारने की प्रतिज्ञा की थी। वह युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण को सन्धि करने के लिए दूत बनाकर भेजने से क्रुद्ध हो जाता है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(1) प्रतिशोधक उग्र स्वभाव- भीमसेन उग्र स्वभाव वाला बलशाली योद्धा है। वह परिस्थितिवश द्रौपदी के अपमान को किसी तरह सहन तो कर लेता है, परन्तु उसे अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है; यहाँ तक कि वह अपने अग्रज युधिष्ठिरसहित सभी भाइयों को (UPBoardSolutions.com) भी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए त्यागने को तैयार है। उसे प्रतिशोध लिये बिना किसी कीमत पर कौरवों से सन्धि स्वीकार्य नहीं है। इसीलिए वह कौरवों के नाश की बात को बड़ी उग्रवाणी में कहता है। उसका वचन, “भीमसेन के जीवित रहते हुए वे स्वस्थ नहीं रह सकते।’, उसके उग्र स्वभाव का ही उदाहरण है।।
(2) परम वीर- उग्र स्वभाव का होने के साथ-साथ वह परम वीर थे। उसे अपनी वीरता का पूर्ण विश्वास है, तभी तो वह चारों भाइयों को छोड़कर अकेले ही कौरवों से द्रौपदी के अपमान का बदला लेने की बात कहता है। उसके द्वारा युद्ध में सौ कौरवों को मारकर दु:शासन के लहू से द्रौपदी के केशों को सँवारने की प्रतिज्ञा भी उसकी वीरता का साक्ष्य प्रस्तुत करती है।
(3) अत्याचार- विरोधी व स्पष्ट वक्ता-अत्याचार करने वाले से अत्याचार को सहन करने वाला अधिक दोषी माना जाता है। इसलिए भीमसेन किसी अत्याचारे को सहन नहीं करना चाहता। वह द्रौपदी पर कौरवों द्वारा अत्याचार करने का भी विरोध करता है। उस अत्याचार के विरोध में परिस्थितिवश (UPBoardSolutions.com) वह अन्य कुछ तो नहीं कर पाता, किन्तु दुर्योधन की जंघा को तोड़कर वे दुःशासन की छाती को लहू पीकर द्रौपदी के वेणी-बन्धन की प्रतिज्ञा अवश्य करता है। वह सहदेव से स्पष्ट कह देता है कि चाहे सभी भाई सन्धि कर लें, किन्तु मैं सन्धि नहीं करूंगा। उसकी ये स्पष्ट और तर्कपूर्ण टिप्पणियाँ उसके स्पष्ट वक्ता होने का समर्थन करती हैं।
(4) बुद्धिमान्– भीमसेन पूर्ण क्रोधान्ध भी नहीं है, वरन् बुद्धिमान् भी है। वह प्रत्येक बात और उसके अन्तिम परिणाम को भली-भाँति सोचकर ही अपने भाव व्यक्त करता है। वह व्यक्ति के मुख-मण्डल को देखकर उसके अन्त:करण की बात को जान लेने में अति-निपुण है। मुक्तकेशिनी द्रौपदी को देखकर उसकी उदासी के कारण को वह जान लेता है, तभी तो वह कहता है–“इसमें पूछना ही क्या? तुम्हारे खुले केश ही कह रहे हैं कि तुम्हारी उदासी का क्या कारण है?” “
(5) नारी- सम्मान का पक्षधर-भीमसेन का चरित्र ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः सूक्ति से प्रेरित दिखाई पड़ती है। स्त्री का अपमान करने वाले को वह अक्षम्य मानता है, तभी तो वह प्रत्येक कीमत पर द्रौपदी को अपनी जंघा पर बिठाने की इच्छा करने वाले दुर्योधन की जंघा को तोड़ना तथा (UPBoardSolutions.com) द्रौपदी का केश-कर्षण करने वाले दुःशासन की छाती को विदीर्ण कर उसका लहू पीकर नारी-अपमान का बदला लेना चाहता है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भीमसेन एक वीर, क्रोधी, बुद्धिमान, स्पष्ट वक्ता और नारी का सम्मान करने वाला क्षत्रिय है। इसके साथ ही उसमें स्वाभिमान, अदम्य साहस, दृढ़-प्रतिज्ञता और निर्भीकता जैसे अन्य गुण भी विद्यमान हैं।
द्रौपदी
परिचय-‘भीमसेनप्रतिज्ञा’ के रूप में संकलित नाट्यांश में भीमसेन और सहदेव ही मुख्य पात्र हैं, किन्तु इन दोनों के वार्तालाप का केन्द्रबिन्दु द्रौपदी ही है। वह नाट्यांश के उत्तरार्द्ध में मंच पर प्रवेश करती है और गिनती के संवाद ही बोलती है। उसको देखकर भीमसेन का क्रोध और अधिक भड़क उठता है। उद्दीपन के रूप में इस नाट्यांश में आयी द्रौपदी की कतिपय चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(1) मानिनी- द्रौपदी भरी सभा में कौरवों द्वारा किये गये अपने अपमान को भूल नहीं पाती। उसे अपने अपमान का उतना दु:ख नहीं है, जितना उसे इस अपमान को देखकर शान्त रहने वाले अपने पतियों की निर्लज्जता पर है। वह कुछ करने में समर्थ नहीं है; इसीलिए वह अपने पतियों को अपने (UPBoardSolutions.com) अपमान की निरन्तर याद दिलाते रहने के लिए अपने केशों को तब तक खुला रखने की प्रतिज्ञा करती है, जब तक कि वे उसके अपमान का बदला नहीं ले लेते।
(2) क्रोधिनी– मानिनी के साथ-साथ द्रौपदी क्रोधी स्वभाव की भी है। यही क्रोध तो उससे कौरवों का विनाश न होने पर अपने केशों को न सँवारने की प्रतिज्ञा कराता है।
(3) पतियों की अन्धसमर्थक नहीं- द्रौपदी अपने पतियों द्वारा लिये गये निर्णयों की अन्ध्रसमर्थक नहीं है। अपने अपमान पर शान्त रहने वाले पतियों की शान्त-प्रवृत्ति का वह अनुकरण । नहीं करती, वरन् इसके विपरीत आचरण करती है; तभी तो वह भीमसेन को अपने अपमान की बदला लेने के लिए उकसाती है।
(4) पतियों को फटकारने वाली- वह पतियों की उचित-अनुचित बातों को चुपचाप सहन नहीं करती, वरन् समय पर उनका प्रतिकार भी करती है। भीमसेन की बात सुनकर वह अपने शेष चार पतियों के विषय में मन-ही-मन कहती है–‘नाथ, न लज्जन्त एते।’ (नाथ! इनको लज्जा नहीं आती।) वह प्रत्यक्ष रूप में भी मीठी फटकार लगाती हुई कहती है-‘कोऽन्यो मम परिभवेण खिद्यते।’
(5) तीखी, किन्तु मधुरा– द्रौपदी का स्वभाव यद्यपि तीखा है, किन्तु अवसरानुरूप वह मधुर व्यवहार भी करती है। इसमें ये दोनों विपरीत गुण उसी प्रकार समाहित हैं, जिस प्रकार से कटु दवा के ऊपर शक्कर की मीठी परत चढ़ी हो। यद्यपि भीमसेन के क्रोध का कारण वही है और वही (UPBoardSolutions.com) उसे भड़काती भी है, तथापि वह भीमसेन से अधिक क्रोध न करने के लिए कहकर अपने उपर्युक्त दोनों गुणों का परिचय सहज ही दे देती है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि द्रौपदी पौराणिक पात्र अवश्य है, किन्तु यहाँ पर वह अपने _ अधिकारों के प्रति सचेत रहने वाली आधुनिक नवयुवती का प्रतिनिधित्व भी करती है।
लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्नोत्तर
अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए
प्रश्न 1
क्रुद्धो भीमसेनः केन अनुगम्यमानः प्रविशति?
उत्तर
क्रुद्धो भीमसेनः सहदेवेन अनुगम्यमानः प्रविशति।
प्रश्न 2
कृष्णः केन पणेन सन्धि कर्तुं सुयोधनं प्रति प्रहितः?
उत्तर
कृष्णः पञ्चभिः ग्रामैः सन्धि कर्तुं सुयोधनं प्रति प्रहितः।
प्रश्न 3
प्रतिज्ञा केन कूता?
उत्तर
प्रतिज्ञा भीमसेनेन कृता।
प्रश्न 4
भीमसेनेन का प्रतिज्ञा कृता?
उत्तर
भीमसेनेन कौरवशतं हन्तुं, दुःशासनस्य उरस्य रक्तं पातुं, दुर्योधनस्य ऊरूद्वयं गदया चूरयित्वा द्रौपद्या: केशान् सज्जीकर्तुं प्रतिज्ञामकरोत्।
प्रश्न 5
सन्धिप्रस्तावे के पञ्चग्रामाः आसन्?
उत्तर
सन्धिप्रस्तावे इन्द्रप्रस्थः, वृकप्रस्थः, जयन्तः, वारणावतः कश्चिद् एकः ग्रामः च इति पञ्चग्रामीः आसन्।
प्रश्न 6
द्रौपद्याः क्रोधः केन प्रशमितः?
उत्तर
द्रौपद्याः क्रोधः भीमसेनेन प्रशमितः।
प्रश्न 7
द्रौपद्याः क्रोधः भीमसेनेन कथं प्रशमितः?
उत्तर
दु:शासनस्य उरस्य रक्तेन अनुरञ्जिताभ्यां हस्ताभ्यां केशानां संयमनस्य प्रतिज्ञां कृत्वा भीमसेनेने द्रौपद्या: क्रोधः प्रशमितः।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक | विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए
1. भीमसेनप्रतिज्ञा’ नाट्यांश किस ग्रन्थ से संकलित है?
(क) “विक्रमोर्वशीयम्’ से ।
(ख) ऊरुभंगम्’ से ।
(ग) “वेणीसंहारम्’ से
(घ) “किरातार्जुनीयम्’ से
2. ‘वेणीसंहारम्’ नाटक के रचयिता कौन हैं?
(क) भट्टनारायण
(ख) भास
(ग) महाकवि कालिदास
(घ) भवभूति
3. ‘वेणीसंहारम्’ रचना का मूल-स्रोत कहाँ से लिया गया है?
(क) ‘किरातार्जुनीयम्’ के प्रथम सर्ग से :
(ख) ‘शिशुपालवधम् के तृतीय सर्ग से :
(ग) ‘महाभारत’ के विंदुर पर्व से
(घ) महाभारत के सभापर्व से ।
4. ‘भीमसेनप्रतिज्ञा’ नामक नाटक का नायक कौन है?
(क) भीम
(ख) दुर्योधन
(ग) सहदेव
(घ) युधिष्ठिर
5. भीमसेन किस बात की प्रतिज्ञा करते हैं?
(क) दुर्योधन की जंघा तोड़ने की
(ख) सन्धि न मानने की
(ग) युधिष्ठिर से अलग होने की
(घ) द्रौपदी के वेणीसंहार की
6. ‘हज्जे बुद्धिमतिके, कथय नाथस्य। कोऽन्यो मम परिभवेण खिद्यते।’ में ‘बुद्धिमतिका’ कहा गया है
(क) चेटी को
(ख) कुन्ती को
(ग) द्रौपदी को
(घ) सुभद्रा को ।
7. भीमसेन क्यों क्रोधित था? |
(क) क्योंकि वह जन्मजात क्रोधी स्वभाव का था।
(ख) क्योंकि उसे धृतराष्ट्र-पुत्रों के नाम से चिढ़ थी।
(ग) क्योंकि दुर्योधन एवं दु:शासन ने पाण्डवों का अपमान किया था
(घ) क्योंकि धर्मराज युधिष्ठिर की ऐसी ही आज्ञा थी।
8. ‘स्वस्था भवन्ति मयि जीवति धार्तराष्टाः।’ में ‘मयि’ पद को प्रयोग करने वाला कौन है?
(क) सहदेव
(ख) दुर्योधन ।
(ग) भीम
(घ) अर्जुन
9. ‘आकृष्य पाण्डववधूपरिधानकेशान्’ में ‘पाण्डववधू’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) उत्तरा
(ख) सुभद्रा
(ग) द्रौपदी
(घ) कुन्ती
10. ‘एवं कृते लोके तावत् स्वगोत्रक्षयाशंकि हृदयमाविष्कृतं भवति।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?
(क) श्रीकृष्ण
(ख) द्रौपदी
(ग) सहदेव
(घ) भीमसेन
11. ‘उदासीनेषु युष्मासु मम मन्युः न पुनः कुपितेषु” में मम’ शब्द का प्रयोग हुआ है
(क) द्रौपदी के लिए
(ख) भीमसेन के लिए
(ग) सहदेव के लिए
(घ) दुर्योधन के लिए।
12. ‘न खल्वमङ्गलानि चिन्तयितुमर्हन्ति भवन्तः कौरवाणाम्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) सुयोधनः
(ख) भीमसेनः
(ग) सहदेवः
(घ) युधिष्ठिरः
13. ‘भगवान् कृष्णः केन………………” सन्धि कर्तुं सुयोधनं प्रतिहितः।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क)‘पणेन’ से
(ख) “पृथिव्या’ से
(ग) “धनेन’ से
(घ) “मूल्येन’ से
14. ‘प्रयच्छ•••••••यामान्कञ्चिदेकं च पञ्चमम्।’ श्लोक की चरण-पूर्ति होगी
(क) ‘पण्डितो’ से
(ख) ‘मूख’ से
(ग) “चतुरो’ से
(घ) ‘त्रयोः ‘ से
15. ‘न लज्जयति………………”सभायां केशकर्षणम्।’ श्लोक की चरण-पूर्ति होगी– | “
(क) ‘तनयानाम् से
(ख) ‘पुत्राणाम् से
(ग) ‘दाराणाम् से
(घ) “मातृणाम्’ से
16. ‘मुक्तवेणीं स्पृशन्नेनां कृष्णां धूमशिखामिव।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) भीमसेनः
(ख) सहदेवः
(ग) द्रौपदी
(घ) कृष्णा